Monday, December 29, 2008

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

कही आज फिर बॉस ने रात को देर तक रोक लिया तो..? नही वो साफ़ कह देगी.. ऑफीस टाइम के बाद मैं नही रुक सकती.. पहले तो गर्मिया थी शाम देरी से होती थी पर अब नही अब अंधेरा जल्दी हो जाता है.. मगर वो बॉस को कैसे मना करे समझ नही पा रही थी.. नौकरी का भी सवाल था.. अगर ये नौकरी भी हाथ से गयी.. तो क्या होगा..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

अगर पहले कभी ऐसा होता तो वो कभी मना नही करती.. लेकिन पिछले सात दिनों से जो उसके साथ हो रहा है.. उसने उसे विचलित कर दिया है.. इन सात दिनों में तीन बार उन लड़को ने उसके साथ बदतमीज़ी की है.. रोहित को इस बारे में बताया पर उसका कहना है तुम घर बदल दो.. कही और घर ले लो.. मगर कैसे? ये घर कितनी मुश्किलो से मिला है.. फिर यहा किराया भी कम है.. लेकिन उन लड़को का क्या.. पहले वो बैठे बैठे कुछ भी बोलते रहते थे.. तब तक तो ठीक था मगर.. कल, कल रात तो वो मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया..

अकेले अकेले कहा जा रहे हो?

अचानक सब कुछ फिर से उसके चेहरे के सामने आ गया.. कल रात ऑफीस की केब उसे गली के बाहर तक छोड़ के गयी थी.. उसने तेज़ कदमो से घर की तरफ बढ़ना शुरू किया..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

जैसे ही वो थोड़ा आगे बढ़ी. की एक लड़के ने उसका रास्ता रोक लिया..

अकेले अकेले कहा जा रहे हो?

दूसरा जो पीछे बैठा था वही से बोला.. हमे भी तो साथ ले लो जहा जा रहे हो? और सब ज़ोर से हँसने लगे..

प्लीज़ मुझे जाने दिजिये.. बोलते हुए उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

अरे तो हमने कहा मना किया है.. जाइए ना.. पर हमे भी तो साथ ले जाइए..

उसकी आँखो में आँसू आ गये..

लड़का बोला अरे ये तो रोने लग गयी.. विदाई का वक़्त आ गया है..

वो रोते हुए भागने लगी.. लड़के उसके पीछे पीछे चलने लगे.. वो रोती जा रही थी.. तेज़ कदमो से जाने लगी.. थोड़ी दूर तक चलने के बाद लड़के लौट गये.. वो रोती हुई घर में चली गयी..


उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

उसको गुस्सा आ रहा था खुद पर.. कितना कुछ बोल के आई थी घर पर.. माँ मैं सब संभाल लूँगी.. पापा मैं हू आपकी बहादुर बेटी.. कुछ नही होगा पापा.. कितनी लड़किया अकेली रहती है बाहर.. मैं सब संभाल लूँगी..

कुछ भी तो नही संभाल पाई थी वो.. क्यो लड़ झगड़ कर आ गयी वो यहा.. अपनी सहेलियो से बोला था उसने.. तुम्हारी तरह नही रहूंगी.. रसोई में जीकर रसोई में नही मरना मुझे.. मैं सबको दिखा दूँगी मैं कौन हू..

आज जो हुआ.. उसने रोहित को फ़ोन पे बताया.. रोहित ने फिर से इस बार उसको घर बदलने के लिए कहा..

मैने तो तुम्हे पहले ही मना किया था.. वहा मत रहो.. अब भुगतो इतना बोल कर रोहित ने फ़ोन रख दिया..

उसने फ़ोन को उठाकर ज़ोर से दीवार पर फेंका..

क्या हुआ मैडम? ऑफीस का चपरासी भागता हुआ उसके कॅबिन की तरफ आया..

कुछ नही एक गिलास पानी ले आओ..

उसने फोन लगाया और अपनी माँ को सब कुछ बताया.. उसे लगा उसकी माँ उसे वापस घर बुला लेंगी..

पर उसकी माँ बोली.. "तू मेरी बेटी होकर डर गई..पगली तू एक औरत है.. जा और जाकर बता की एक औरत की शक्ति क्या है.. औरत सिर्फ़ लक्ष्मी या सरस्वती ही नही होती.. वक़्त पड़ने पर वो काली और दुर्गा का रूप भी ले सकती है.. क्या यही सिखाया है मैने तुझे डर के हार मान जाएगी तू.. आज अगर तू डर गयी तो वो तुझे रोज़ डराएँगे.. डरने से कुछ नही होगा बेटी जाकर बता तू किसकी बेटी है बता दे.. बता दे.."

वो अपनी कुर्सी से खड़ी हुई.. एक अनोखी शक्ति का अनुभव हुआ उसे.. उसकी आँखो में एक फ़ैसला था..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

चपरासी पानी देकर जाने लगा..

"सुनो.. ये लिस्ट लो और सामने से ये सामान ले आओ.." वो बोली

मैडम जी ये सामान ?

"जो कहा वो करो.. जाओ.." उसने फ़ैसला कर लिया था.. आज पहली बार वो देर होने से घबरा नही रही थी..

केब ने उसे छोड़ा .. वो गली की तरफ़ बढ़ी ..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

सारे लड़के वही बैठे हुए थे.. वो उनकी तरफ़ बढ़ी.. एक लड़के की बाइक के पास जाकर उसने बाइक को लात मारकर गिरा दिया.. हे दम तो आ.. वो गरज़ी .. लड़के सहम गये.. वो कुछ समझे नही.. उसने अपने बालो में लगा क्लचर खोला और बोली आ अगर अपनी माँ अपनी का दूध पिया है तो..

उनमे से एक लड़का तेज़ी से उसकी और बढ़ा.. वो तैयार थी.. जैसे ही वो पास आया.. उसने अपने पर्स में रखा डियो निकाला.. और उसकी आँखो में स्प्रे किया.. लड़का ज़ोर से चिल्लाया.. वो आगे बढ़ी और उस लड़के के पेट पे ज़ोर से लात मारी..

बाकी के लड़के आगे आए.. साली तेरी ये हिम्मत... और चारो लड़के उसके सामने आए.. उसने अपने पर्स में से लाल मिर्च निकाली और उनकी आँखो में उछाल दी.. एक लड़के ने उसे धक्का दिया.. वो नीचे गिर गयी.. उसका पर्स दूर जा गिरा.. वो लड़का आया और उसके बाल पकड़ कर.. घुमा दिया..

उसने अपनी कोहनी से लड़के के पेट में मारा.. लड़का संभल नही पाया.. वो उछली... दूसरा लड़का आया... लड़की ने उसकी टाँगो के बीच में ज़ोर से लात जमा दी.. लड़का उछलकर पीछे जा गिरा.. वो आगे बढ़ी.. बाकी तीनो लड़को को धक्का दिया.. और उनके पेट में ज़ोर से लात मार के तीनो को गिरा दिया..

उनमे से एक उठा.. उसने चाकू निकाला.. और लड़की के सामने खड़ा हो गया.. लड़की ने अपनी आँखे बंद की और ज़ोर से चिल्लाते हुए छलाँग लगाई.. लड़के की बाइक पर एक पाँव लगाते हुए दूसरे पाँव से लड़के के मुँह पर वार किया.. लड़का तैयार नही था.. उसके हाथ से चाकू छूट कर गिर गया.. लड़की ने चाकू हाथ में लिया और लड़के के सीने पर पाँव रखकर खड़ी हो गयी..

उग्रचंडा प्रचंडा च चंडोग्रा चंडनायिका..
चन्डा चंडवती चैव चंडरूपातिचंडिका..


उसके खुले बाल हवा में लहरा रहे थे..बालो के बीच से झांकती उसकी रक्त सी लाल आँखों को देखकर लड़के काँप उठे.. गिरा हुआ लड़का हाथ जोड़कर माफी माँग रहा था... बाकी चारो लड़के उसके पाँव में गिरकर माफी माँगने लगे.. उसने चाकू फैंका...अपना पर्स उठाया और अपने हाथ झटकते हुए आगे बढ़ गई..

लड़के सहमे हुए उसे जाते हुए देख रहे थे..

ज्वालाकारालाम्त्युग्रमं अशेषासुरसूदनं..
त्रिशूलं पातुनोऽर्भीते भद्रकाली नमोस्तुते..


वो घर पहुँची... रोहित के बीस मिस काल थे.. उसने रोहित को फ़ोन किया... रोहित बोला कहा हो तुम मैं कब से तुम्हे फ़ोन कर रहा हू.. मैने तुम्हारे लिए घर देख लिया है..

क्या हुआ.. कुछ बोल क्यो नही रही हो.. जवाब दो ना..

तुम मेरे लिए अब परेशान मत होना रोहित... मुझे घर नही बदलना.. मैने अब अपना इरादा बदल दिया है.. गुड बाय

नमस्चंडिके चंडोर्दंडलीला लसत्खण्डिताखण्डलाशेषशत्रो..
त्वमेका गतिर्देवी निस्तार्हेतु नमस्ते जगत् तारिणी त्राहि दुर्गे..

Wednesday, December 24, 2008

गर खाली बैठे है तो ऊब जाइए... वरना चुल्लू भर पानी में डूब जाइए.

गर खाली बैठे है तो ऊब जाइए...
वरना चुल्लू भर पानी में डूब जाइए..


उपरोक्त पंक्तियो का किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नही है.. और यदि है तो वो पूर्णतया काल्पनिक है..


अब चलते है आज की पोस्ट की तरफ..

"परिवर्तन प्रक्रति का नियम है" छोटा था तब पड़ोस के एक घर में पोस्टर पे लिखा था.. बाद में उस पोस्टर को बदल के वहा रिकी मार्टिन का पोस्टर लग गया.. कुछ दिनों बाद वहा लियनार्डो आ गया.. और आज वहा दो बिल्लियों की तस्वीर लगी है.. वाकई परिवर्तन संसार का नियम है..

सब कुछ बदल रहा है.. ज़िंदगी लाइफ हो गयी है.. दोस्त ड्यूड हो गये है.. माँ पिघल कर मोंम बन गयी है.. मुन्ना अब मॉंटी बन गया है.. मनोहर काका का बेटा राकेशनाथ अब रिंकू बन गया है..


बहुत कुछ हमारे घर में भी बदला है.. कभी टेबल फ़ैन को घूमते हुए रखकर चारो भाई एक कमरे में सो जाते थे.. आज सबका अपना कमरा बन गया है उनमे कूलर लग चुके है.. पहले पड़ोसी के यहा टी वी देखने जाते थे.. और वो भी उन पडोसियों के यहाँ जो साले इतने कमीने थे की नीचे ज़मीन पर बिठा देते थे.. ये भी नही सोचते की बच्चे की चड्डी फटी हुई है.. पर आज सबके कमरे में अपना टी वी है.. डिश टी वी और टाटा स्काइ के साथ.. बदल रहा है. सब कुछ..


अगर आप पढ़ते हुए ऊब रहे थे.. तो एक बार सबसे उपर लिखी दो लाइन पढ़ लीजिए.. मुझे लगता है आप डूबना पसंद करेंगे.. तो इस पोस्ट में डूब जाइए.. या फिर वेले बैठे ऊब जाइए..

बदलाव ज़रूरी है.. हर चीज़ में..

जो पीढ़ी बदलाव में विश्वास नही करती वो तुच्छ व्यक्तियों की पीढ़ी कहलाती है..- अनूप शुक्ल "नैनीताल वाले" ..


तो अब चलते है बदलाव की तरफ बदलाव कैसे किए जाए...

लाइब्रेरी में जाकर यदि आपके मन को शांति नही मिल रही है.. तो वहा बैठकर ऊबने से अच्छा है किताब लेकर किसी ऐसी जगह जाए जहा आपको शांति मिलती हो..

ऑफीस में अगर आज कोई काम नही है तो बैठे बैठे समय वेस्ट ना करके दोस्तो या रिश्तेदारो से मिलने चले जाए.. सच मानिए उन्हे भी बहुत खुशी होगी की आप उनके लिए वक़्त निकालते है..

जिस रास्ते से रोज़ घर जाते है.. उसे आज बदल दीजिए.. किसी नये मोड़ से मुड़कर देखिए..

अपने फ़ोन में कुछ खास दोस्तो के नाम बदल दीजिए.. जैसे अपनी वाइफ का मोबाइल नंबर एमरजेंसी के नाम से डाल दीजिए.. अपनी मम्मी के लिए लिखिए गोड'स गिफ्ट... बॉस का नाम भूतनाथ और किसी खास दोस्त का नाम उसकी गर्ल फ्रेंड के नाम से सेव कर दीजिए..

अगर आप ब्लोगर है और रोज़ एक ही तरह की पोस्ट लिखते लिखते ऊब गये है.. तो अपना विषय बदलिए.. उदहारण के लिए अगर आप बहुत ही रोने धोने वाली पोस्ट लिखते है.. तो अब अंट शंट लिखिए.. अपनी शैली बदलिए..

कुछ भी जो आप बदलकर जीवन में नये रंग भर सकते है.. वैसा करिए.. वरना आप खाली समय में बैठे बैठे ऊब कर ईश्वर की दी हुई ज़िंदगी का समय वेस्ट कर सकते है.. लेकिन ये पल लौट कर नही आने वाले ...


अब एक खबर -


खबर मिली है की शेयर मार्केट के गिरने की अति तीव्र प्रक्रिया से लोग ऊबने लगे है..

क्या कहा? तीव्र प्रक्रिया से भी लोग ऊबते है????

Wednesday, December 10, 2008

ज्ञानदत्त पांडे और डाक्टर अमर कुमार

देखिये न मैं भी कितना बेशर्म हूँ फ़िर आ गया हु अपनी पोस्ट लेकर..

आप लोग सोच रहे होंगे कि ये कुश साला रोज़ रोज़ अपने ब्लॉग पर कोई नयी पोस्ट लेकर आ जाता है.. और फिर हमे उसे ज़बरदस्ती पढ़ना पड़ता है.. फिर टिपियाना भी पड़ता है.. उपर से उसको पढ़ पढ़ कर बोर और हो गये है.. तो दोस्तो घबराईए मत आपकी इसी बोरियत को दूर करने की तरकीब लेकर आया हू.. मैं जानता हू की ब्लॉग जगत के दो दिग्गज ज्ञानदत्त पांडे और डाक्टर अमर कुमार.. की लेखन स्टाइल के मेरी तरह आप सब भी मुरीद है... तो मैने सोचा क्यो ना मेरी ब्लॉग पर आपको उन्ही की स्टाइल में कुछ परोसने का कार्यक्रम किया जाए... क्या कहा इतनी हिम्मत कहा से आई?

अजी पिछली बार जब इसी स्टाइल में हमने अनुराग जी, रक्षंदा, अजीत जी, और शिव कुमार जी की स्टाइल में लिखा था तब जो हमको आप लोगो ने शाबाशी दी.. बस उसी का ग़लत मतलब निकाल कर हम फिर हिम्मत कर लिए है...

तो इस बार दो दिग्गजो की स्टाइल में पढ़िए फिर से एक बार...


मानसिक हलचल वाले श्रीमान ज्ञानदत्त पांडे की लेखन स्टाइल



सुबह गाड़ी से ऑफीस जाते हुए सड़क के बीचो बीच हमारी गाड़ी खराब हो गयी.. जब तक ड्राईवर ठीक कर रहा था.. हमने सोचा बाहर घूम लिया जाए.. मैं अपने मतलब की चीज़े सड़क पर सर्चने लग गया.. सड़क के दूसरी तरफ मैंने देखा एक सब्जी वाला आलू और टमाटर बेच रहा था.. उसने अपने ठेले पर फिक्स रेट का भी बोर्ड लगा रखा था.. हम कन्फ्यूजिया गये की सब्जी वालो ने भी अब फिक्स रेट रखना शुरू कर दिया है..

उसके ठेले पर करीब दस लोग खड़े थे.. जितनी देर मैं वहा खड़ा रहा.. करीब चालीस लोगो ने वहा से सब्ज़ी खरीदी.. इस बीच कुछ लोग भाव पूछ कर भी चले गये.. कुछ ने आवश्यकता से अधिक सब्ज़ी खरीदी.. सब्ज़ी वाले ने अपने ठेले के नीचे वाली साइड में स्टेट काउंटर लगा रखा था.. मैं हमेशा कहता हू की इस तरह के स्टेट सबको अपने ठेले पर लगाने चाहिए..

ये है उस ठेले वाले का सब्ज़ी बेचने का ग्राफ..


इस सब्जी वाले ने आज अधिक दाम में सब्जी बेचकर बहुत मुनाफा कमाया है लेकिन बी बी सी ने कह दिया है.. की यदि इसी दाम पर सब्जिया बेची गयी तो अगले सप्ताह में महंगाई इतनी बढ़ जाएगी की आपको सब्जी खरीदने के लिए लोन लेना पड़ेगा..



बी बी सी की पोल रिपोर्ट




हो सकता है कुछ लोगो को मेरी ये पोस्ट समझ नही आई होगी.. ये मध्य वर्ग की स्नोबरी का ही असर है.. की उन्हे इस तरह की पोस्ट समझ नही आती.. और वो कन्फ्यूजिया जाते है... किसी को ये भी लग सकता है की मेरी ये पोस्ट बकवास है... वैसे यह जरूर है कि आपकी समझ का सिगनल-टू-न्वॉयज रेशो (signal to noise ratio) कम होता है; कि कई बातें आपके ऊपर से निकल जाती हैं। अब कोई दास केपीटल या प्रस्थान-त्रयी में ही सदैव घुसा रहे, और उसे आलू-टमाटर की चर्चा डी-मीनिंग (d- meaning – घटिया) लगे तो आप चाह कर भी अपनी पोस्टें सुधार नहीं पाते।


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कुछ तो है.....जो कि , यु ही निठल्ला, अचपन.. पचपन बचपन सरीखे ब्लोग्स के स्वामी गुरूवर डा. अमर कुमार की लेखन स्टाइल..




हिल हिल हिल पोरी हिल्ला ज़रा कमर तू अपनी हिल्ला... अपुन भी अपनी कमर हिल्ला रेला है.. क्या कहा ये कौनसी भाषा है.. अब ये अजीत भाई का ब्लॉग तो है नही जहा दो कोस पे भाषा बदले ये तो हमारी पर्सनल प्रॉपर्टी है.. यहा तो ऐसी ही भाषा मिलेगी.. बोले तो क्षेत्रीय भाषा.. क्या है की आज कल हर जगह क्षेत्रवाद ही फैल रहा है.. फिर भी आप अगर शुद्ध भाषा पढ़ना चाहते है तो उधर क्यू नही जाते?... हा जी उधर ही हमारे गुरु जी के हिया.. वहा पर फाइव स्टार भाषा में बात की जाती है..

ये हम है


हमारा क्या है हम ठहरे कच्ची बस्ती की नाली में रेंगने वाले कीडे.. कभी इसकी पीठ पर चढ़े तो कभी उसकी पीठ पर.. हालाँकि हम एक बेताल अपनी पीठ पर लिए घूमते है.. सही समझे एक ही तो जान की दुश्मन है हमारी पंडिताइन..

वैसे बेतालो की कमी तो ब्लॉग जगत में भी नही है.. एक प्रेत यहा घूमता विचरता पाया जाता है.. पर हमने भी पहाड़ी वाली मज़ार के मलंग से लिया हुआ ताबीज़ पहन रखा है.. ऐसे भूतो को तो हमने धूल चटा दी है..

वो तो आज अनुरगवा की डिमांड थी इसलिए मैं आधी रात को बैठ कर ये पोस्ट लिख रहा हु.. वरना अभी दो पैग लगाकर सो चुका होता...

रूकावट के लिए खेद है..., मुसलचंद खरदूषनचंद की वारिस पंडिताइन यहा तांकझांक कर हंसते हुए चली गयी, जाते जाते एक बोली कस गयी वा अलग से, "यह क्या अलाय बलाय लिख रहे हो? न कोई सर पैर है, न कोई विषय! अगर किसी की टिप्पणी आएगी भी तो यही होगी की आप जैसे चुगद को लिखने उखने की कोई तमीज़ भी है?" उनका हसना फिर शुरू हो गया.. हंस लो भाई हंस लो... आपकी इसी हँसी में तो मेरी ज़िंदगी फँसी है!

मैने कहा जाओ भागवान तो आँखे दिखाते हुए अब सोने का फरमान जारी करते हुए चली गयी.. पर मेरी तो शिव भाई से चेट चल रही है.. इस से पहले की श्रीमती जी दोबारा आए मैं भागता हू और शिव भाई आपसे यही कहूँगा.. 'अभी टेम नही है शिव भाई..'

तो अभी मैं चलता हू मित्रो (कहने में क्या जाता है), यदि आपमे से कोई इस नीचे बने हुए चोकोर टिप्पणी बक्से की और जाए तो किसी भी भाषा में कुछ भी फेंक सकता है...

Wednesday, December 3, 2008

एक तो बरसाती मेंढक, दूसरा चश्माधारी, तीसरा आँख का अँधा और चौथा भोंपु

वक़्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है.. ये तो सुना था.. लेकिन बेवक़्त कोई गधा ही किसी को अपना बेटा बना ले ये कभी ना देखा ना सुना...

खैर उपरोक्त पंक्तियो का मेरे इस लेख से कोई लेना देना नही.. किसी घटना, पात्र अथवा जीवित मृत, या शरीर से जीवित और आत्मा से मृत व्यक्ति से भी इसका कोई संबंध नही है..

आज हम आपको कुछ लोगो से मिलवाने वाले है

एक तो बरसाती मेंढक, दूसरा चश्माधारी, तीसरा आँख का अँधा और चौथा भोंपु



1) बरसाती मेंढक - जो केवल बरसात में बाहर निकलते है

बरसाती मेंढको के बारे में आप लोगो ने सुना होगा.. जो केवल बरसात में ही बाहर आते है और बारिश बंद होने के बाद दुबक लेते है.. ऐसे ही कुछ मेंढक चुके है..

उदहारण - पिछले कुछ दिनों से भारत का नपुंसक मीडिया जब चिल्ला चिल्ला के हिंदू आतंकवाद भगवा आतंकवाद की आवाज़े लगा रहा था... तब ये मेंढक छुपे हुए थे... तब इन्हे ये नही लगा की वक़्त सांप्रदायिकता को छोड़कर लोगो को एक करने का है.. और लोगो को समझाना है की आतंकवादी का कोई धर्म नही होता..

पर अब ये आएँगे और समझाएँगे की आतंकवादी का कोई धर्म नही होता कोई मज़हब नही होता... अरे भईया तो किसने कहा की धर्म या मज़हब होता है, हमे तो पता ही नही चलता अगर आप नही बताते तो




2) आँख का अँधा - ये धरती पर ग़लती से आए वो बेचारे है जिनकी आँखे तो है पर वो देख नही सकते


उदहारण - जैसे कोई कहे की आतंकवादी मासूम है.. उन्हे गुमराह किया गया है..

चलो मान लिया की इनको किसी ने इस राह पर धकेला है... तो फिर जिसने इनको धकेला है इस राह पर, उनको किसने धकेला है.. और जिनको उन्होंने धकेला है.. उन्हे इस राह पर किसने धकेला है..

और अगर सिर्फ़ इन आतंकवादियो के मन में नफ़रत पैदा की गयी तो जिसने पैदा की उसके मन में नफ़रत कहा से आई .. क्या वो अपनी माँ के पेट से नफ़रत लेके पैदा हुआ?

और अगर ऐसा है तो फिर ये आतंकवादी क्यो नही नफ़रत लेकर पैदा हो सकते?

मार्कोस के अफ़सर ने स्पष्ट शब्दो में कहा की ये पूरी तरह से प्रशिक्षित थे.. वो जानते थे की वो क्या कर रहे है..

हमारी इच्छाशक्ति के विरुद्ध कोई किसी को इस बात के लिए नही बहला सकता की तुम जाकर मर जाओ पर लोगो को मार के आओ.. जिसने ये काम किया है वो ये जानते थे की वो क्या कर रहे है..





3) चश्माधारी - इनके पास एक चश्मा होता है ये सबको उसी चश्मे से देखते है...

ये वो व्यक्ति है जो कहेगा की मैं एकता चाहता हू.. ये वही बात हो गयी की तेज धूप में खड़ा व्यक्ति कहता है की मुझे धूप चाहिए.. फिर वो बताता है की देखो वहा छाया है और यहा धूप, मैं चाहता हू यहा पर भी धूप आए..

उदहारण - जैसे कोई कहे की तुम मुसलमान हो और वो हिंदू है.. मैं चाहता हू तुम दोनो एक हो जाओ..

एक होने की बात कैसे हो रही है. अलग करके.. ऐसे लोगो से मैं यही कहूँगा की हम लोग एक ही है और एकता से ही रहते है.. पर आप जैसे लोग बार बार हमे आकर ये एहसास दिलाते है की हम अलग है..





4)चुनाव में काम आने वाला भोंपु - जो सिर्फ़ बोलता है सुनता नही है..

भोंपु ऐसे होते है जो सिर्फ़ सुनाने का काम करते है.. सुनते नही है. ये वही बात सुनाते है जो इनको सुनानी हो.. इनके खुद के कान नही होते.. पर यदि ग़लती से आप ये समझ ले की चलो कोई बात नही कान नही है पर दिल तो होगा बात समझ तो सकते है.. और बात को इन्हे बताने गये तो ये आपकी बात ही अनसुनी कर देंगे..

उदहारण - जैसे आपने किसी ब्लॉग पर कुछ पढ़ा और आपने कमेन्ट किया तो ये भोंपु देखेंगे यदि आपका कमेंट इनकी विचारधारा से मेल ख़ाता नही होगा तो ये उसे दबा देंगे.. क्योकि ये नही चाहते की इनकी पॉल दूसरो के सामने खुल जाए..

तो दोस्तो आज की मुलाकात का ये सिलसिला समाप्त होता है..


अंत में
मैं न हिंदू हु न मुस्लिम, मैं एक भारतीय हु और यही मेरा धर्म है,

Friday, November 28, 2008

जवाब... जो मिलते नही

ट्रिंग ट्रिंग

हैलो

सी एम साहब से बात करनी है..?

हाँ सी एम बोल रहा हू

नमस्कार सी एम साहब.. आपके राज्य में रहने वाली एक लड़की बोल रही हू..

हाँ बोलो क्या काम है?

एक बात पुछनी थी..

हाँ पूछो

अगर कोई आपके घर में ज़बरदस्ती घुस जाए.. ओर आपकी माँ को नंगा कर दे तो?

ये क्या बकवास कर रही हो? कौन हो तुम?

मेरी बात को जवाब दीजिए ना.... अगर वो आपकी माँ का बलात्कार कर दे तो..

तेरी इतनी हिम्मत लोंड़िया.. जानती नही तू किससे बात कर रही है.. खाल खिंचवा दूँगा तेरी..

तो फिर उनकी खाल क्यो नही खिंचवाते.. ???

..

जवाब दीजिये ना..


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टू हेल विद द सिस्टम..

साला कोई भी हरामजादा.. हमारे घर में घुसता है ओर हमे मार के चला जाता है.. क्या हम कुछ नही करेंगे... ?

तुम बेवजह सेंटी हो रही हो रिया.. ऐसा कुछ नही है..

ऐसा ही है वॉट दे थिंक अबाउट देमसेल्फ़.. वो कुछ भी कर सकते है.. क्या ये देश उनके बाप का है?.

प्लीज़ ट्राय एन अंडरस्टॅंड

नो आई कांट .. आई कांट अंडरस्टॅंड.. ऐसे कैसे कोई आ कर किसी को भी मार सकता है.. ब्लडी मदरफकर!

बस रिया.. नाउ स्टॉप.. ये क्या अनप शनाप बोल रही हो..

तो ओर क्या करू.. क्या कुछ नही कर सकते हम?

हम युही मरते रहेंगे क्या राहुल ??

बताओ ना राहुल जवाब दो ना.. तुम तो हर बात जानते हो...

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अरे बेटा! कहाँ जा रहे हो ?

मम्मा मैंने होम वर्क कर लिया, अब बाहर जाके बॉम्ब ब्लास्ट बॉम्ब ब्लास्ट खेल लू ?

बोलो ना मम्मा ...?

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जल्दी से फोन लगा पापा के मोबाइल पर..?

क्या हुआ कुछ बोलता क्यो नही?? बोल ना बेटा.. बोल ना..

जवाब तो दे..


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क्यो मारा तूने बंटी को?

माँ वो कह रहा था.. तेरे पापा शहीद नही है...

..

माँ मैं भी पापा की तरह शहीद बनूंगा..

क्या हुआ माँ.. तुम रो क्यो रही हो.. ? बोलो ना माँ..


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शहीदो की मज़ारो पे लगेंगे हर बरस मेले..
वतन पर मिटने वालो का यही बाकी निशा होगा


.

Tuesday, November 25, 2008

ब्लोगीवुड की पहली फ़िल्म " शोले "

पहाड़ियो के बीच बसी हुई एक छोटी सी जगह है ब्लॉगगढ़.. अभी ब्लॉ्गगढ़ की ओर आने वाली पगडंडियों पर दो व्यक्ति घोड़े पे बैठकर आ रहे है...

जी हा ठीक समझे आप ये ठाकुर बलदेव पांडे के यहा जा रहे है...

नमस्कार ठाकुर साहब..

नमस्कार .. यहा तक आने में कोई तकलीफ़ तो नही हुई?

नही नही ठाकुर साहब... ब्लॉगगढ़ में आकर तो बहुत खुशी हुई है.. पर आपने बताया नही आपने मुझे कैसे याद किया?

मुझे दो आदमियो की तलाश है..

जय और वीरू..

जय और वीरू? ये कौन है.. ?


ये दोनो ब्लॉग जगत के छंटे हुए ब्लॉगर है.. मुझे आज भी याद है वो दिन... जब मैं पहली बार उड़नतश्तरी के ब्लॉग पे कमेंट करके अपनी माल गाड़ी से आ रहा था.. जय और वीरू वहा बैठे टिप्पणियों के बारे में सोच रहे थे...
की ताऊ नाम के एक डकैत ने मेरी रेल पर हमला कर दिया.. चारो तरफ से उसके आदमियो ने हमे घेर लिया.. तब जय और वीरू ने अपनी जान पर खेल कर मेरी मदद की..

मैं बेहोश हो चुका था.. ताऊ ने पटरी पर अपनी भैंस को खड़ा कर दिया.. जय और वीरू चाहते तो वहा से भाग सकते थे.. पर उन्होने मेरी माल गाड़ी को बचाना ज़्यादा ज़रूरी समझा..

क्या बोलता है जय? चले यहा से

इसे इस हालत में छोड़कर ?

इस हालत में छोड़ा तो ये ब्लॉग्गिंग नही कर पाएगा..

तो फिर क्या करे.. भैंस को उड़ा दे?

निकाल वही...

हेड आया तो भाग चलते है.. टेल आया तो भैंस को उड़ा देते है..

टेल !!

तू यही रुक जय.. मैं इस भैंस का काम तमाम करता हू..


वीरू ने कोयले डालने शुरू किए.. मगर भैंस बड़ी होशियार थी.. भाग कर खेतो में घुस गयी.. अपने जय और वीरू ने भी हार नही मानी.. ट्रेन को लेकर खेतो में घुस गये.. सत्रह दिन तक खेतो में ट्रेन चलाने के बाद भी जब भैंस नही मिली.. तो वो मुझे स्टेशन पर छोड़कर चले गये...

वो बेवकूफ़ है.. मगर ईमानदार है..

ब्लोगर है ... मगर समझदार है

सोच सकते है.. मगर सोचते नही..

मुझे ऐसे ही आदमी चाहिए.. क्या आप मुझे लाकर दे सकते है..

ठाकुर साहब मैं पूरी कोशिश करूँगा उन्हे ढूँढने की.. मगर ऐसे लोगो का कोई ठिकाना तो होता नही.. आज यहा तो कल वहा.. पता नही अभी वो कहा होंगे...


हेहे

ये ब्लोगरी........

हम नही छोड़ेंगे..

तोड़ेंगे... दम मगर..

इसका साथ ना छोड़ेंगे...


अरे मेरा ब्लॉग तेरा कमेन्ट
तेरा कमेन्ट मेरा ब्लॉग .. सुन ए मेरे यार..

जान पे भी खेलेंगे...

तेरे लिए ले लेंगे..

सबसे टिप्पणी...........

ये ब्लोगरी ..

हम नही छोड़ेंगे...


बाकी है अभी... डाकुओ का टिप्पणिया लूटने आना... टंकी पे चढ़ना.. बसंती का तांगा.. होली का गीत.. और भी बहुत कुछ.. बस देखते रहिए.. ब्लॉगीवूड़ की शोले

Saturday, November 22, 2008

ब्लोगीवुड की पहली फ़िल्म शोले रिलीज होने जा रही है

दोस्तों इंतज़ार हुआ ख़त्म
ब्लोगीवुड की पहली फ़िल्म शोले रिलीज होने जा रही
है





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Monday, November 17, 2008

नेकी कर और ढोल बजा ..

अनुराग बाबू का ब्लॉग चूसा इतना रस निकला की कल मधुमेह का चेक अप कराके आया हू.. पूरे पंद्रह सौ रुपये लगे.. मेरे पास कैश थे नही तो सोचा टी एम से निकाल लू.. लेकिन कौनसे वाले टी एम से निकालु? छ्: बॅंक में अकाउंट है.. एच डी एफ सी वाले से निकाल लेता हू घर के पास ही है तो अपनी बाईक पे चला जाऊँगा.. अब इतनी सी दूरी के लिए कौन कार निकालेगा... बस यही सोच के अपना एप्पल का लॅपटॉप बंद किया.. जी हा तीन दिन पहले ही मैने एप्पल का लॅप टॉप लिया है.. पुराना वाला मैने अपने ड्राइवर के बेटे को दे दिया.. बड़ा होशियार बच्चा है.. ड्राइवर के पास इतने पैसे नही की उसको पढ़ा सके.. इसलिए मैने उसका एडमिशन शहर के एक अच्छे स्कूल में करवा दिया.. जिसकी फीस दस हज़ार रूपये महिना है, और अपना लॅप टॉप भी उसको दे दिया..

खैर मैने सी ऑफ किया और उठा सीधे दो ब्रेड में टमाटर को दबा के अपने माइक्रोवेव में ग्रिल कर डाला.. हालाँकि मेरे कूक भी अच्छा खाना बनाते है.. पर मुझे अपने हाथ से बनाया सेंडविच अच्छा लगता है..

खैर टी एम से दस हज़ार रुपये निकाल कर.. सीधे हॉस्पिटल पहुँचा.. मुझे लंबा इंतेज़ार नही करना पड़ा.. क्योंकि इस हॉस्पिटल में ही मैं तीन बार अपना ब्लड डोनेट कर चुका हू.. और यहा पर मैने डोनेशन देकर एमर्जेन्सी वॉर्ड का रिनोवेशन कराया था.. डॉक्टर मुझे देखते ही अपनी सीट से खड़ा हो गया.. मैने बताया की कैसे अनुराग जी के ब्लॉग की मिठास से मुझे मधुमेह की शंका हुई.. आप चेक अप करिए.. डॉक्टर ने तुरंत नर्स को बुलाया..

नर्स जब चेक अप कर रही थी तो मैने देखा उसकी आँखो में कुछ नमी सी थी.. मैने उस से कारण पूछा तो उसने बताया नही.. मैने जब बहुत ज़िद की तो वो बोली की उसकी शादी नही हो पा रही है.. दहेज की वजह से.. पूरे घरवाले परेशान है उसके पिताजी की तबीयत ठीक नही.. मुझसे उसका दुख देखा नही गया.. मैने फ़ौरन जेब से साढ़े आठ हज़ार रूपये निकाले (पंद्रह सौ चेक अप के काट लिए थे पहले ही).. हालाँकि डॉक्टर ने मना किया था..आपसे पैसे नही लूँगा.. पर मुझे ये बिल्कुल पसंद नही.. सबको अपनी मेहनत के पैसे मिलने ही चाहिए

क्लिनिक से लौटते हुए रास्ते में हनुमान मंदिर पे रुका.. जाते ही पंडित जी को बोला आज मंदिर में सौ किलो का चुरमा चढ़ाया जाए.. शाम को सभी में वो चुरमा वितरित करवाया.. और उनसे वादा किया की जिस तरह पिछली अमावस्या पर सबको कपड़े दान किए थे.. वैसे ही इस बार सबको कंबल दान करूँगा...

सभी मुझे दुआए दे रहे थे.. पर मुझे उन दुआओ के मिलने से ज़्यादा खुशी अपने मन को शांति मिलने से हुई..

नही नही आप ग़लत समझ रहे है.. ये सब करके मन को शान्ति नही मिली.. अब आपसे क्या छुपाना आज ये सब लिखकर मन को इतनी शांति मिली है.. की क्या बताऊ..

आपके मन में जो विचार रहे है.. वो बिल्कुल सही है... इसे आप ढिंढोरा पीटना ही कहेंगे...

यदि कोई दावा करना चाहे की उपरोक्त विवरण काल्पनिक है.. तो उसके दावे की सत्यता मैं अभी ही स्वीकार करता हू.. अच्छा कार्य करके मन को शांति मिलनी चाहिए.. ना की अच्छे कार्य के बारे में बताकर.. अपने कर्तव्य का पालन करना ही सद्कर्म है.. मैने पोस्ट लिखकर अपने कर्तव्य का पालन किया है.. अब आप टिप्पणी करके अपने कर्तव्य का पालन कीजिए.. यही सद्कर्म है...

Saturday, November 15, 2008

एक सिगरेट और जल गई..

घड़ी की टिक टिक की आवाज़ के अलावा और कोई शोर नही था कमरे में.. पर्दे का कोना बहुत मैला हो गया था शायद बार बार हाथ पोंछे जाने से.. पलंग पर शरलोक होम्स की कुछ किताबे बिखरी हुई पढ़ी थी.. उसी पलंग पर वो उल्टा लेटा हुआ था.. एक अंगड़ाई लेता हुआ वो उठा.. आँखें अभी तक बंद थी.. बंद आँखे किए हुए भी उसका हाथ ठीक टेबल पर पड़ी सिगरेट पर पड़ा.. आख़िरी सिगरेट थी.. वो उठा और खिड़की से परदा हटाकर देखा शाम हो चली थी.. हल्के हल्के बादल थे..

उसने रेडियो के पास पड़ी माचिस उठाई.. सिगरेट जलाने के लिए तीली जलाई..

एक रोशनी सी हुई उसकी आँखो में.. इस से पहले इस से खूबसूरत लड़की उसने नही देखी थी... लंबे बाल जो बार बार उड़ते हुए उसकी आँखो के आगे आ रहे थे.. सफेद रंग का चूड़ीदार और गुलाबी रंग का कुर्ता.. कंधे पर बेग लटकाए हुए.. कितनी सुंदर लग रही थी उसे.. वो जैसे ही उसके पास गया.. बस आ गयी थी.. वो बस में चढ़ गयी..

तीली बुझ गयी.. सिगरेट जली नही..

उसने फिर से तीली जलाई..

अगले दिन फिर वो बस स्टॉप पर पहुँचा.. और उस लड़की के पास खड़ा हो गया..

इस बार सिगरेट जल गयी थी..

अब तो ये रोज़ का सिलसिला बन गया.. लड़की भी जानती थी.. की वो यहा क्यो आता है.. धीरे धीरे सब कुछ ऐसे हुआ की लड़की को वो लड़का पसंद आने लगा.. लड़का अपनी बाइक लेकर बस स्टॉप पर आया.. और लड़की की तरफ देखा.. लड़की उसकी बाइक पर बैठ गयी.. फिर तो रोज़ उनका मिलना होता था..लड़की और लड़के में प्यार हो गया था..

उसने सिगरेट से एक लंबा कश लिया.. और खिड़की से झाँका.. बाहर बहुत शोर था..

कभी किसी गार्डन में.. कभी किसी कॉफी शॉप में.. दोनो मिलने लगे.. लड़की को लड़के का साथ सुकून देता था.. दोनो ने साथ जीने मरने की कसमे खाई थी..

उसने एक और कश खींचा.. और चुटकी बजाते हुए सिगरेट की एश ज़मीन पर गिरा दी..

उस दिन लड़का कार लेकर आया.. और लड़की ने घर पे कहा था की आज देर से घर पहुँचुँगी.. दोनो ने साथ साथ डिनर लिया.. फिर लड़का उसे लेकर समंदर किनारे गया.. दोनो हाथो में हाथ लेकर चलते रहे.. कुछ देर बाद दोनो लड़के के दोस्त के बीच हाउस में थे..

जलती हुई सिगरेट से एक चिंगारी गिरी जमीन पर..

हल्की हल्की रोशनी पूरे कमरे में फैली थी.. एक महक चारो तरफ फैली हुई.. जैसे बहुत दिनो से इंतेज़ार करती हुई.. दोनो एक दूसरे के बेहद करीब आ चुके थे.. लड़के ने उसे अपनी बाहो में भर लिया..

इस बार उसने बड़ी ज़ोर से कश खींचा... और खिड़की पर परदा लगा दिया..

सिगरेट अपने आख़िरी पड़ाव पर थी.. शायद एक या दो कश और ले सकता था वो..

बहुत दिन हो चुके थे.. इस बार भी बात नही हुई.. लड़की ने आज फिर से फ़ोन किया .. उसकी ऊंगलिया काँप रही थी.. नंबर मिलाने के लिए.. शायद वो जानती थी अब क्या होने वाला है.. उसने नंबर मिलाया.. सामने से फ़ोन काट दिया..

उसने सिगरेट का आख़िरी कश लिया.. और बची हुई सिगरेट को ज़मीन पर फेंका.. हल्का सा धुँआ अभी भी सिगरेट में बाकी था.. की तभी उसने अपनी जूते के नीचे दबा कर सिगरेट को मसल डाला..

एक हाथ गिरा बिस्तर पर.. जिसकी कलाई से लगातार खून बह रहा था..

Wednesday, November 12, 2008

ब्लॉगीवूड़ की पहली फिल्म... "शोले"

दोस्तो,
लंबे इंतेज़ार के बाद ब्लॉगीवूड़ की पहली फिल्म बनकर तैयार है.. और जल्द ही आपके सामने आने वाली है..फिल्म का पहला पोस्टर रिलीज़ किया जा चुका है.. फिल्म जल्द ही आपके सामने होगी... तब तक के लिए देखिए फिल्म का पोस्टर..

Photobucket


ठाकुर - ज्ञानदत्त पाण्डेय
जय - अनुराग आर्य
वीरू - कुश

बसंती - पल्लवी त्रिवेदी
राधा - पूजा उपाध्याय

गब्बर - समीर लाल
सांभा - अनूप शुक्ल

मौसी - लावन्या शाह
इमाम साहब - डा. अमर कुमार

अंग्रेजो के जमाने के ब्लॉगर - शिव कुमार मिश्रा
जासूस हरीराम - बाल किशन
सूरमा खोपोली - नीरज गोस्वामी

और भी कई कलाकार सिर्फ़ ब्लॉग जगत से... तो दिल थाम के बैठिए दोस्तो.. जल्द ही आपके सामने होगी ब्लॉगीवूड़ की पहली फिल्म

"शोले"

विशेष सूचना - घबराइये मत ये रामगोपाल वर्मा की आग जितनी बुरी भी नही होगी..

नोट - एडवांस बुकिंग चालू है.

Saturday, November 8, 2008

ज़िन्दगी कभी यू भी मुड़ जाती है...

जन्मदिन पर कितने ही लोगो ने फ़ोन किया.. इतनी सारी दुआए मिली की संभालनी मुश्किल हो गयी.. काश! दुआओ का भी कोई फिक्स डिपोसिट होता की आज जमा करा लो और जब ज़रूरत हुई तब निकाल लो..

जन्मदिन के दूसरे दिन शाम को एक फ़ोन आया.. नंबर अंजान था.. उठाया तो सामने से आवाज़ आई

"भाईकुश? " पुराने दोस्त इसी नाम से पुकारते थे

मैने कहा " हाँ "

वो बोली "बिलेटेड हैप्पी बर्थडे"

मुझे समझ नही आया कौन है पर मैंने थॅंक्स कहा

उसने कहा... "पहचाना नही"

इस बार मैने पहचान लिया था.. ये विद्या थी..

ज़िंदगी के सबसे ख़र्चीले.. आवारा.. पर मस्ती भरे दिनों की एक साथी.. लड़को के साथ पंजे लडाना उसका शौक था.. मुझसे हर बार हारती थी.. पर कभी उसके चेहरे पर शिकन भी नही आती.. देखना एक दिन तुमको ज़रूर हराऊँगी..

पूल टेबल पर उसका जवाब नही होता था.. हम दोनो की जोड़ी ने पूल में बहुतो को हराया है.. टयुसंस बंक करना और पूल खेलना.. बस हर दो चार दिन में ये हो ही जाता था...

एक दिन वो कही से बीडी का बण्डल ले आई बोली यार आज बीड़ी पीकर देखते है.. कैसी होती है.. शाम तक हम लोगो का खाँसी के मारे बुरा हाल था..

न्यू ईयर वाली शाम हम मिले उसने कहा आज की रात बारह बजे मस्ती करते है.. हम चाहते तो घर पे बता के जा सकते थे.. पर उसने कहा खिड़की से कूदकर चलते है.. एडवेंचर के बिना लाइफ क्या.. उस रात पहली बार मैं घर से बिना बताए रात को निकला था.. पूरी रात शहर की गलियो में बाइक पर घूमे थे..

उसकी ज़िंदगी में एडवेंचर्स की एक खास जगह थी.. हर सिंपल से काम में रोमांच.. यही उसका फंडा था .. पूरे ग्रूप की जान..

कुछ दिनों बाद हमारे एक्साम से हम लोगो में दूरिया बढ़ गयी...बहुत दिनों से मिलना नही हुआ था..

एक शाम पूल क्लब में मैने विद्या को एक लड़के के साथ देखा.. दोनो एक दूसरे को किस कर रहे थे.... मुझे बहुत गुस्सा आया.. मैं तेज़ी से उनकी और गया.. मैने विद्या का हाथ खींच कर उसको उस लड़के से अलग किया.. और ज़ोर से विद्या के गाल पर एक थप्पड़ मारा.. वो लड़का मेरी तरफ आया.. मैने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया.. सब लोग अंदर आ गये... कोई भी कुछ समझ नही पाया.. मैं तेज़ स्पीड से नीचे उतर गया..

विद्या मेरे पीछे पीछे आई.. मगर मैने उस से बात नही की.. मैं बहुत गुस्से में था.. उस रात मुझे नींद नही आई.. बार बार विद्या और उस लड़के का चेहरा मेरी आँखो के सामने आता रहा... मैं एक महीने के लिए अपनी मौसी के यहा चला गया..

थोड़े दिनों बाद पता चला.. विद्या गुवाहाटी चली गई है... मैंने उसे ढूँढने की भी कोशिश नही की.. वक़्त कैसे चला गया पता ही नही चला...

"क्यो अब तक नाराज़ हो?..." विद्या बोली..

मुझे याद आया मैं फोन पे हू...

"विद्या !..." मैने कहा

" क्या बात है पहचान लिया.."

" कैसी हो?"

" अच्छी हू! और तुम? "

" हाँ अच्छा हू.."

" सॉरी उस दिन मैने.."

उसने बात बीच में ही काट दी..

" बहुत मुश्किल से ढूढ़ा है तुम्हारा नंबर.. लेकिन एक दिन लेट हो गयी.."

" थॅंक्स!.." मेरी आवाज़ बहुत धीरे थी

" एक बात बतानी थी तुमको.."

" हाँ बोलो.." मैने कहा

"अच्छा हुआ उस दिन तुम आ गये.. वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती किस कर रहा था.. मैने तुमसे बात करने की इतनी कोशिश की पर तुम मिले नही.. तुमको उस दिन से थॅंक्स बोलना चाहती थी.. तुमको मेल भी किया हॉट मेल वाले आई डी पर.. लेकिन तुम्हारा जवाब नही आया.. आज इतने सालो बाद तुम्हारा नंबर मिला है...तुम नही आते तो पता नही क्या हो जाता.."

" मतलब उस दिन वो..??.."

" हाँ वो मेरे साथ ज़बरदस्ती कर रहा था.."

" तो तुमने बताया क्यो नही मुझे.."

" तुमने मौका ही नही दिया.. या फिर शायद किस्मत ने.."

मैं बहुत देर तक चुप रहा.. पता नही हमारी बात कब ख़त्म हुई... मैं बस सोचता ही रहा..

मैने उसे एक मौका भी नही दिया.. उसने कितनी कोशिश की थी मुझसे बात करने की.. पर मैने नही की.. और करीब सात साल तक हम दोनो को एक दूसरे की खबर नही थी.. मैं तो उसे भूल भी चुका था.. पर आज उसके फोन कॉल ने मन में अजीब सी हलचल मचा दी..

विद्या ठीक कहती थी.. एक ना एक दिन तुमको ज़रूर हराऊँगी..

Wednesday, November 5, 2008

21 22 23 और ये 24... पूरी 24



21 22 23 और ये 24... पूरी 24

पूरी दस

उहु! दस नही 24

24 नही दस..

क्या दस?

तुम्हारी ऊंगलिया..

नही 24 मोमबत्तिया.. जो मेरी ऊंगलियो में है..

मैने तो ऊंगलिया गिनी है पूरी दस है..

सिर्फ़ ऊंगलिया मत गिनो.. शादी के दिन भी गिनो..

उफ़! ग़लती करदी गिनके

क्या शादी के दिन?

नही ऊंगलिया..

ग़लती तो मैने की जो कब से मोमबत्तिया लगा रही हू तुम्हारे केक पर..

इन से रोशनी नही होगी..

तो फिर?

तुमसे होगी!

मतलब?

मतलब ये की पच्चीसवी मोमबत्ती तुम मेरे घर पर जलाना..

अरे वाह! क्या रोशनी हुई है.. सारी मोमबत्तिया जल गयी...

Tuesday, October 21, 2008

पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे..

पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे..

उसने खिड़की बंद नही की... पता नही क्यो उसे आज सुबह से ही लगा था कोई तूफान आने वाला है.. तेज़ हवा का एक बदतमीज़ झोंका खिड़की को खोलते हुए अंदर तक आ गया...

पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे...

उसकी नज़रे मोबाइल पर टिकी थी.. फिर एक बार मोबाइल की घंटी बजी.. वो देखता रहा स्क्रीन पर.. पूरी रिंग गयी.. उसने फोन नही उठाया.. कल शाम से वो ऐसा कितनी ही बार कर चुका था...

पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे...

उसने खिड़की की तरफ देखा.. आसमान लाल हो चुका था.. आज आँधी बड़ी ज़ोर से आने वाली थी.. उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई.. वो खिड़की की तरफ ही देखता रहा.. अबकी बार दरवाजा और तेज़ी से ख्टाकाया गया.. .वो उठा उसने दरवाजा खोला और फिर एक झटके के साथ बंद कर दिया.. मगर बाहर से धक्का लगा.. वो पीछे गिरा..

एक तेज़ हवा के झोंके की तरह वो कमरे के अंदर तक आ गयी..

वो मुँह फेर कर खड़ा हो गया..

सहमी हुई आवाज़ में वो बोली.. "तुमने कल मुझसे पूछा था ना की तुम मुझसे शादी कैसे कर सकते हो ये जानते हुए की मुझे एड्स है.." अबकी बार बादल बहुत ज़ोर से गरजे थे..

मैं उसी का जवाब देने के लिए यहाँ आई हूँ.. तुम्हे इतने फोन किए पर तुमने उठाया नही.. मैं जानती हू ये तुम्हारे लिए भी मुश्किल होगा.. तुमने ठीक कहा था मुझे एड्स है तो तुम मुझसे शादी कैसे कर सकते हो? फिर उस से क्या फर्क पड़ता है.. की हमने एक दूसरे के साथ रहने की कसमे खाई थी.. तीन सालो में तीन सुहानी सादिया मैने तुम्हारे साथ गुजार दी.. वो एक ही साँस में सब बोले जा रही थी..

पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे...

इसीलिए मैं यहा तुमसे कहने आई हू.. की मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. और एक नयी ज़िंदगी की शुरुआत करो.. मेरे साथ जीने में तुम्हारे लिए कुछ नही रखा है.. मैं यहाँ से बहुत दूर चली जाउंगी.. तुम्हारी ज़िन्दगी से भी..

खिड़की से आए तेज़ झोंके ने पानी का गिलास गिरा दिया.. छन्न छन्न की आवाज़ कमरे में बिखर गयी..

वो दबे कदमो से उसकी तरफ मुड़ा.. और पास में पड़े पन्ने उसकी ओर बढ़ा दिए.. वो उन्हे हाथो में लेकर देखती रही.. फिर उसकी तरफ नज़र उठाकर देखा.. अब तक उसकी आँखो में आँसू आ गये थे.. उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गयी थी.. अब तक वो ये जान गयी थी की कल जिसने उसे एड्स होने के कारण छोड़ने की बात कही थी.. ये एड्स उसे उसी ने दिया है..

रिपोर्ट के पन्ने उसके हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिर पड़े.. एक असीम सुकून उसके अंदर तक उतर गया.. वो नही जानती थी की क्यो उसे इस बात से बहुत खुशी हो रही थी..

उसने दबी आवाज़ में लड़की से पूछा क्या अब तुम मुझे छोड़ दोगी?

आसमान में एक बिज़ली ज़ोर से कड़की... उसने कोई जवाब नही दिया.. और तेज़ कदमो के साथ बाहर निकल गयी..

बादल बहुत तेज़ बरस रहे थे.. कुछ इस तरह से जैसे आज ये आखिरी बारिश हो... ऐसा तूफान पहले कभी नही आया था... वो दरवाजे की तरफ देखते हुए खड़ा रहा..

पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे..

Wednesday, October 15, 2008

... फुर्सत वाली चाय ...



फुर्सत वाली चाय

हाँ यही तो कहता था मैं..
सुरम्यी शाम जब गुनगुनाती
हुई आती थी घर हमारे....
कभी ऑफीस से घर जल्दी आता
तब मिलती थी..

.. फुर्सत वाली चाय..

मेरी उंगलिया चाय के प्याले से ज़्यादा
तुम्हारी गर्माहट से गरम
हो जाती थी.. तुम बिठाकर मुझे
आराम कुर्सी पर.. मेरी गोद में
बैठ जाती थी.. और तुम्हारी सांसो
की खुशबु चाय में मिल जाती थी..

क्या खूब होती थी वो..
फुर्सत वाली चाय..

तुम अंगूर की बेल जैसे.. झूल जाती
थी गर्दन पर मेरे.. और थाम लेती
मेरे हाथो को जैसे बारिश के बाद
पत्ते गिरती बूँदो को
थामा करते है..

और बिखेर देती थी मुस्कुराहट जैसे
सुबह बादलो में धूप..
बिखर जाती है.. और सितारे बिखर जाते
है जैसे रात में...

तुम नही जानती थी की..
तुम्हारी एक मुस्कुराहट.. ना जाने
कितनी गुड की डलियो सी मिठास ..
घोल जाती थी मेरी निगाओ में..

ये मुस्कुराहट.. मेरी दिन भर की
थकान उतार कर..
टंगा देती थी चिन्ताओ के साथ
खूँटी पर..

जब तक प्याला ख़त्म नही होता
उस चाय का.. तुम मेरी सांसो से
अपनी साँसे उलझा के रखती थी बस..

और मैं इन्तेज़ार करता रहता
था हमेशा की.. कब
ऑफीस से जल्दी घर जाना होगा..

अब भी इन्तेज़ार है.. आज शाम को टहलके
जल्दी घर आया था.. बाल्कनी
मैं बहू को देखा..
छोटे के लिए चाय लाई थी..

और आसमान से बूंदे गिरने लगी
दो तीन बूंदे लबो
पर अभी भी रुकी हुई है..
लगता है अब तुम वहा से पिलाती हो मुझे

.... फुर्सत वाली चाय

Monday, October 6, 2008

शहर की बदनाम गलियो में कोई दरवाजा खटखटा रहा है..

ठक ठक ठक!
ठक ठक ठक!

शहर की बदनाम गलियो में सुबह के आठ बजे कोई दरवाजा खटखटा रहा है.. अंदर से किसी आदमी की आवाज़ आई..

कौन है सुबह सुबह?

जी वो..

क्या है भई?

जी वो यहा पर..

क्या यहा पर?

यहा पर लड़किया....

अरे बाबूजी सुबह सुबह मस्ती सूझ रही है..

नही दरअसल..

हा जी सब पता है हमको.. बोलिए

आपके यहा पर लड़किया..

अरे लड़कियो के आगे भी कुछ बोलॉगे.. ??

लड़किया मिल जाएगी..?

हा हा क्यो नही आप हुकुम कीजिये पुरानी शराब की तरह है हमारे यहाँ का माल..

नही मुझे जवान लड़किया चाहिए

क्या मतलब?

यही कोई पंद्रह सौलह साल की..

ओहो!! बड़े रसिक लगते हो बाबू.. अंदर आकर पसंद कर लो

नही कोई भी..

अच्छा .. तो ये बात ..

कितने रुपये होंगे?

एक घंटे के दो हज़ार रुपये..

और पाँच घंटे के?

अब उस आदमी ने घूर कर देखा. और शरारती अंदाज़ में बोला.. क्यो बाबू कोई दवाई लेते हो क्या..

देखिए आप अपने काम से मतलब रखिए..

हा हा जी हमे क्या मतलब.. आप आइए अंदर..

नही मैं उन्हे साथ ले जाऊँगा अपने..

साथ में? क्यो जी कोई होटेल में...

देखिए आप ज़रूरत से ज़्यादा बोल रहे है..

अरे जनाब आप तो बुरा मान गये.. मैं अभी भेजता हू..

ये है बिंदिया.. इसे ले जाइए..

ऐ बिंदिया! साहब को खुश करना अच्छे से..

बिंदिया अधखुली आँखो से साहब को देख रही थी.. शायद अभी नींद पूरी नही हुई थी..

कोई और.. ?

क्यो साहब ये पसंद नही आई क्या?

नही ऐसी बात नही.. इसे तो ले ही जाऊँगा और भी कोई है क्या?

ऐ बाबू करना क्या चाहते हो? कोई गंदी फिल्म तो नही बना रहे हो..

अरे नही आप ग़लत समझ रहे है.. आप बताइए ना कोई है क्या? मैं एक घंटे के चार हज़ार दे दूँगा..

अरे साहब कैसी बात कर रहे है हुकुम कीजिए आप तो बस.. जितनी मर्ज़ी ले जाइए..

और हो सकती है..?

हा हा क्यो नही.. अरे सुन बिंदिया जा और बुला ला और पाँच को..

आइए साहब बैठिए.. कुछ लेंगे चाय वाय..

नही.. उसकी कोई जरूरत नही..

सारी लड़किया सहमी हुई खड़ी थी.. वो आदमी चिल्लाया.. जाओ रे साहब के साथ..

साहब ने नोटो का एक बंडल उसकी और बढ़ा दिया..

पैसे लेते हुए वो फिर एक बार बोला साहब जल्दी छोड़ जाना.. अपनी बच्चिया है..

साहब अपनी गाड़ी में सबको बिठा के चल दिए.. शहर की एक संभ्रांत कॉलोनी में.. इन लड़कियो ने ऐसे घर सिर्फ़ फ़िल्मो में देखे थे.. साहब ने एक बड़ी कोठी के आगे गाड़ी रोकी.. और सबको अंदर आने को कहा..

लड़किया विस्मय नज़रो से एक दूसरे को देख रही थी.. एक अजीब सा डर लग रहा था उन्हे.. साहब अंदर गये और अपनी धर्म पत्नी से बोले.. कही कोई लड़की नही मिली.. फिर इन लड़कियो को लाया हू.. पैसे देकर.. छ्: ही मिली है.. बाकी तीन का इंतेज़ाम तुम खुद कर लो.. और जितनी जल्दी हो सके अष्टमी का पूजन ख़त्म कर देना.. एक घंटे के हिसाब से आई हुई है..

इतना बोलकर साहब ऊपर वाले कमरे में चले गये.. साहब का बेटा खड़ा खड़ा देख रहा था.. साहब की पत्नी के लिए ये मुसीबत थी की बाकी तीन लड़किया कहाँ से लाए.. उन्हे तो ये भी नही पता था की पड़ोस में किसी के यहा कोई लड़का है या लड़की..

"ये पन्ना है एक डायरी का 16 सितंबर 2080 के दिन लिखा गया है.. लड़कियो को ऐसे लाना पड़ रहा है.. शुक्र है अष्टमी का पूजन अभी बंद नही हुआ है.. पता नही लोग अब भी धार्मिक है या फिर डर की वजह से पूजा पाठ कर रहे है.."

Thursday, October 2, 2008

दो क्षणिकाए - गाँधी और ईद...



तमाम
गवाहो ओर
सबूतो के
मद्देनज़र और लगे रहो
मुन्नाभाई की लोकप्रियता
को देखते हुए..
समाज के हर वर्ग में
गाँधिगिरी के सफलता
पूर्वक प्रचलन
होने से ये अदालत
इस नतीज़े पर
पहुँचती है.. की गाँधी नामक
विचार अभी मरा नही है..
केवल देह मात्र
को ख़त्म करने से..
विचार ख़त्म नही
होता.. गाँधी एक विचार है..
जो अभी भी
ज़िंदा है... इसलिए ये अदालत..
मुज़रिम
नाथुराम गोडसे को बा-इज़्ज़त बरी करती है ...


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कितनी रातो को बाँध के रखा
हिज्र की गाँठे खुल रही है..
वो शोख मखमली.. परी के जैसी
अपनी छत पर उतर रही है..

आशिक़ का ईमान ना कोई..
उसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..

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Wednesday, October 1, 2008

नुक्कड़ पे उस्ताद, जमूरा, बिल्ली और चूहा..

ज़मूरे!





उस्ताद!

चूहे बिल्ली का खेल दिखाएगा?

दिखाएगा

सीधी सच्ची बात बताएगा

बताएगा!

एक तरफ होकर बोला तो ?

उस्ताद कान के नीचे लगाएगा!

शाबाश जमूरे. तो फिर शुरू हो जा.. पब्लिक आ गयी है.. अंकल, आंटी, बेबी, बाबा, हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको दुआ सलाम कर..

हिंदू को नमस्ते.. मुसलमान को सलाम.. ईसाई को वेलकम.. और सिख को सत श्री अकाल...

तो ज़मूरे

उस्ताद!

एक थी बिल्ली

बिल्ली!

वो रोज़ घर में आती

आती!

दूध मलाई खाती

खाती!

पर बोलती पेट नही भरा

नही भरा!

बहुत दुखी होती.

होती रे!

बोलती की रोटी पतली है

पतली!

रोटी मोटी कर दी तो बोला गरम नही है..

गरम!

गरम की तो बोली घी नही

घी नही!

घी लगाया तो बोली देशी घी नही..

देशी घी नही!

देशी घी लगाया तो बोली कच्ची है..

उस्ताद एक बात पूछु?

पूछ ज़मूरे..

इसकी प्रॉब्लम क्या थी उस्ताद?

क्या बताऊ ज़मूरे? ये तो वोही जाने अब आगे सुन..

उस्ताद!

बिल्ली ने एक दिन घर में देखा..

देखा!

सब शांति से बैठे..

बैठे

आई एक काली बिल्ली..

बिल्ली!

चूहे को पकड़ा

पकड़ा!

और भाग गयी..

ईईईईईईईईईईई फिर क्या हुआ उस्ताद?

सबने बोला की बिल्ली चूहा खा गयी..

ज़मूरे!

उस्ताद!

सबने झूठ बोला क्या?

नही उस्ताद, सच बोला

पब्लिक से पूछो झूठ बोला क्या?

नही.... (पब्लिक)

ज़मूरे!

उस्ताद!

दूसरे दिन एक सफेद बिल्ली आई

आई!

बोली चूहा मैने नही खाया.. चूहा मैने नही खाया... घर घर में जाकर बोली चूहा मैने नही खाया..

ज़मूरे

उस्ताद!

क्या बिल्ली ने झूठ बोला..

नही उस्ताद चूहा तो काली बिल्ली ने खाया सफेद ने नही.. बिल्ली सच बोली..

पब्लिक से पूछो

नही बोला...(पब्लिक)

सफेद बिल्ली परेशान हो गयी..

क्यो उस्ताद?

वो कहती की बिल्लियो को बदनाम किया जा रहा है.. ये सब दुश्मन की चाल है.. चूहा उठाए कोई और बदनाम कोई और हो..

क्या ये बिल्ली ग़लत थी ज़मूरे?

नही उस्ताद इसका कहना ठीक था.. उसने थोड़ी चूहा खाया.. चूहा तो काली बिल्ली ने खाया था

ठीक कहा ज़मूरे.. पर किसी ने कहा की सफेद बिल्ली ने चूहा खाया?

नही उस्ताद उनको थोड़े ही पता था की बिल्ली सफेद थी या काली.. बिल्ली तो छुप छुप के आती थी..

तो फिर जब चूहा नही मिला तो सबने क्या कहा ज़मूरे

उस्ताद यही कहा की बिल्ली ने चूहा खाया..

तो क्या ग़लत कहा?

नही उस्ताद.. चूहा तो बिल्ली ने ही खाया था..

पब्लिक से पूछो

नही कहा ग़लत..(पब्लिक)

फिर जब चूहो के दल को बिल्ली को ढूँढना होगा तो क्या चूहो के मोहल्ले में ढूंढ़ेंगे?

नही उस्ताद.. ढूंढ़ेंगे तो बिल्ली के मोहल्ले में ही..

तो फिर सफेद बिल्ली बोली की यहा क्यो ढूंड रहे हो? हमने थोड़े ही मारा चूहे को.. क्या उसने ग़लत कहा?

नही उस्ताद! उसने तो ठीक कहा

तो फिर क्या करे वापस लौट जाए?

पर उस्ताद फिर काली बिल्ली को कहा ढूंढ़ेंगे?

तो क्या करे ढूंडे उसको?

ढूंदना ही पड़ेगा उस्ताद

ढूँढा तो फिर सारी बिल्लिया आ गयी बोली तुमने हम बिल्लियो को क्या समझ रखा है हमे क्या पड़ी है चूहो को खाने की हम तो दूध मलाई खाती है.. मक्खन खाती है.. हम चूहे नही खाती. हमे बदनाम कर रहे हो तुम?

बोल ज़मूरे क्या उन बिल्लियो ने सही कहा?

हा उस्ताद सही ही कहा होगा.. वो नही खाती होगी चूहे.

पर कोई बिल्ली तो खाती है ना ज़मूरे?

हा उस्ताद ये तो ठीक है!.. कोई तो खाती है..

तो फिर वो कैसे मिलेगी ज़मूरे?

उस्ताद वैसे तो मैं छोटा सा आदमी हू.. ज़्यादा समझता नही हू.. पर अगर सारी बिल्लिया जो चूहे नही खाती वो मदद करे काली बिल्लियो को ढूँदने दे.. तो काम हो सकता है..

ज़मूरे है तो तू छोटा सा पर बातें बड़ी करता है..

लेकिन अगर इन सबके बीच कोई निर्दोष बिल्ली फँस गयी तो ?

तो फिर ग़लती किसकी? उस्ताद

ग़लती किसी की नही ज़मूरे! ग़लती बोले तो परिस्थिति की.. काली बिल्ली ग़लत थी उसने पूरी बिल्लियो की जाति को बदनाम किया.. पर सफेद बिल्ली को समझना चाहिए था की एक बूढ़ी चुहिया का सगा बेटा मरा है.. चूहे की पिता जी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी..

ऐसे कितने ही मासूम चूहो को काली बिल्ली ने खाया है.. अगर सफेद बिल्ली निर्दोष है उसको सज़ा नही मिलनी चाहिए तो उन चूहो का क्या जिनको काली बिल्ली ने खाया..

हा उस्ताद बात तो ठीक है..

चूहे के बच्चे शाम को इंतेज़ार में थे पापा ने शाम को सबको घुमाने का प्रोग्राम बनाया था.. इस दीवाली पे चूहे की पत्नी को नयी साड़ी दिलाने का वादा किया था.. क्या उसकी पत्नी कभी वो साड़ी पहन पाएगी..

क्या कहु उस्ताद?

कुछ चूहे स्कूल से लौट रहे थे..तीन दिन की छुट्टिया मिली थी स्कूल से खुशी खुशी घर जा रहे थे.. नही पहुँचे.. क्या उनका कोई गुनाह था जमूरे?

क्या कहु उस्ताद?

चूहो की ज़िंदगी तो चूहो से भी बदतर हो गयी है.. कोई जब डरपोक होता है तो उसे कहते है चूहे जैसा है..

चूहे डरपोक होते है?

होते नही है जमूरे बन जाते है.. काली बिल्ली के उठाकर ले जाने से डरपोक हो गये है

क्या कहु उस्ताद?

क्या बिल्ली का फ़र्ज़ नही बनता की जब उसे पता चले की बिल्ली ने चूहा उठाया है तो सारी बिलियो को बुलाए पता लगाए आख़िर कौन है गद्दार बिल्ली जिसकी वजह से सारी बिल्ली जाति बदनाम हो रही है.. एक बिल्ली जिसे बच्चे प्यार से मौसी मौसी कहते है.. जो कही भी किसी भी घर में बेखौफ़ घूम सकती है.. सब बच्चे जिस से इतना प्यार करते है..

हो सकता है कुछ कुत्ते, बिल्ली को खाने की फिराक में भी रहते हो.. पर इस से ये तो नही साबित हो जाता की बिल्ली असुरक्षित है.. प्यार तो उस से भी लोग करते ही है.. इतनी प्यारी बिली प्रजाति पर यदि कोई आँच आए तो उनका फ़र्ज़ नही बनता की गद्दार बिल्ली को पकड़ कर सज़ा दे..

बनता है उस्ताद! अगर बिल्ली ऐसा करेगी तो चूहे भी खुश होंगे..

पर ये बात बिल्ली को समझाएगा कौन? तुम समझाओगे क्या जमूरे?

नही उस्ताद! मैं कौन होता हू किसी को समझाने वाला.. कोई किसी को समझाने वाला नही होता.. सबको अपने विवेक से सोचना पड़ता है.. क्या करना है और क्या नही.. चूहे अगर हमेशा चूहे ही बने रहे तो एक दिन धरती पर नज़र भी नही आएँगे..

बिल्लिया अपनी प्रतिष्ठा को लेकर बैठी रहेगी तो उनके बीच में कितनी ही काली बिल्लिया पनपती रहेगी और चूहो को मारती रहेगी.. जिस से सफेद बिल्लियो की जाति भी बदनाम होगी और वो फिर इल्ज़ाम लगाएगी की काली बिल्ली को नही पकड़ सकते तो सफेद बिल्लियो को क्यो पकड़ते हो..


तो क्या उस्ताद काली को पकड़ने भी नही देगी और सफेद को पकड़ने के खिलाफ भी बोलेगी? इसका मतलब कभी काली बिल्ली नही पकड़ी जाएगी? चूहे ऐसे ही चूहो की मौत मरते रहेंगे? हर काम पुलिस या प्रशासन पे छोड़ देंगे? क्या हमारा कोई फ़र्ज़ नही बनता?


पता नही जमूरे.. ये सब तुम पब्लिक से पूछो... पब्लिक को सब पता है पर चुप चाप बैठी रहती है..


.....................


उस्ताद!

क्या हुआ ज़मूरे?

पब्लिक चुप है उस्ताद.. कुछ नही बोलती..

तो चल फिर ज़मूरे.. समेट अपना ताम झाम.. जब तक पब्लिक ही कुछ नही बोलेगी तो मैं और तू गला फाड़ कर क्या कर लेंगे..

लेकिन उस्ताद?

लेकिन वेकीन छोड़ और कही और चल.. शायद वहा की पब्लिक थोड़ी समझदार हो..

Tuesday, September 30, 2008

देवता का विमान अभी भी ब्लोगाश्रम पर मंडरा रहा है

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..


पूर्व में हमने देखा ब्लॉग जगत के देवता, उसके विमान, सोंटाधारी का सोंटा और ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..



गुरुजी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसाए बैठे है.. देवता का विमान हवा में हिचकोले खा रहा है.. सोंटाधारी का सोंटा उसके बलिष्ठ कंधो पर ससम्मान विराजित है.. भगवान भुवन भास्कर भी धरा पर पहुँच चुके है.. उनकी किरणे भी डरी सहमी दबे कदमो से ब्लॉग जगत में प्रवेश कर रही है.. कुछ पुरानी किरणे उबासी लेते हुए उतर रही है..लगता है रात्रि मदिरालय में ही शय्यासीन थी.. कुछ नयी किरणे सहम सहम के ब्लॉगजगत को प्रकाशित कर रही है.. चहू और आनद ही आनद व्याप्त है..



सोंटाधारी के पावन करो से सोंटे खाने को आतुर ब्लॉगर गण अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे है.. कदाचित अगला सोंटा उनके ही कपाल पर सुशोभित न हो जाए..

गुरुजी गौर से किसी का ब्लॉग पत्र देख रहे है.. लगता है अब किसी भी बारी आ सकती है..

"कौन है ये गर्धभपुत्र? गुरुजी आक्रोशित हो उठे.. "

सोंटाधारी ने अपना सोंटा वायु में घुमाया.. आस पास दो चार मक्खिया भिनभिना रही थी जो घबरा उठी.. और सोंटाधारी को गालिया देती हुई उड़ गयी..

"कौन है ये अबूझनदास? "

जिस कुटिया में एकलदास जी को कुछ देर पूर्व ले जया गया था उसी दिशा में द्रष्टि धरे अबूझनदास खड़ा हुआ..

"हमसे क्या भूल हुई.. गुरुजी?"

"भूल? क्या ये भूल है? ऐसी भूल के लिए तो तुम्हे उस स्थान पर शूल चुभाने चाहिए जो तुम वैध जी को भी नही दिखा सको.."

"ऐसा क्या अनर्थ हुआ प्रभो?"

"तुमने अबोधराम के ब्लॉग पत्र पर क्या टिप्पणी की?"

"प्रभु उसने एक अन्य ब्लॉगर के लेख पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी जो की ठीक नही थी.. उसने उस ब्लॉग पर लिखी गयी पोस्ट के बारे में ग़लत लिखा और इतना ही नही ब्लॉगर का नाम और पोस्ट का लिंक तक लगा दिया.. "

"अबे! तो इसमे तेरे पुजनीय पिताश्री का क्या गया? एक बात बता तूने भी तो एक महिला के लेख का लिंक अपने ब्लॉग पत्र पर लगाया था और उसके नाम के साथ प्रकाशित किया था की बहुत सुंदर लिखा है.. स्मरण है की बुलाऊ सोंटाधारी को?"

सोंटाधारी के मुख मंडल पर मुस्कान बिखर आई..

अबूझनदास सहमे हुए बोला "परंतु गुरुजी मैने तो उसकी प्रशंसा की थी इसलिए लिंक लगाया.. अबोधराम ने तो आलोचना की.."

"तो मेरे प्यारे बंधु! क्या यहा पर प्रशंसाए लेने के लिए ही आते हो? यदि प्रशंसा बहुत प्रिय है तो आलोचनाए ग्रहण करना भी सीखो.. यदि प्रशंसा करने के लिए लिंक लगाया जा सकता है तो आलोचना करने के लिए भी लिंक लगाया जा सकता है.. अथवा कदाचित् प्रशंसा पाने के लिए ही आते हो यहा.." गुरुजी की वाणी में वेग अधिक था.

सोंटाधारी बूझ चुका था की इस अबूझनदास के साथ क्या करना है.. सोंटाधारी ने कुछ ही क्षणों में अबूझनदास के पृष्ठ भाग पर विभिन्न आयामो वाली ऐसी ऐसी कृतिया उकेरी की समस्त लोको के चित्रकार भी उनके आगे नतमस्तक हो जाए..

गुरुजी पुन अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुख घुसा के बैठ गये..

ये तो था ब्लॉगजगत की पावन धरा का दृश्य आइए देखे नभ में क्या चल रहा था..

देवता अभी अभी अपनी शय्या से गिरा.. विमान चालक ही ही ही करने लगा..

"क्षमा प्रभु एक अट्टालिका मध्य आ गयी थी.". विमान चालक मुस्कुराते हुए बोला

"कोई बात नही हो जाता है" उपरी स्तर पर यह कहते हुए देवता ने मन में विमान चालक को नाना प्रकार की गालियो से अलंकृत कर डाला..

" हो जाता है प्रभु हे हे हे! " विमान चालक ने अत्यंत ढीठता से कहा..

ब्लॉग जगत के उपर विमान चलाते रहने से ये गुण तो उसने सीख ही लिया था की कब बोलना है कब चुप रहना है और कब ढीठ बन जाना है.. और ढीठता भी ऐसी की जिसका किसी भी शास्त्र में कोई भी विवरण नही हो..

देवता को ज्ञात है की ये इस विमान चालक का प्रिय खेल है.. "छेड़ना"

विमान चालक अकारण ही देवता को छेड़ने के लिए विभिन्न प्रकार की हरकते करता रहता है.. जिससे की देवता खिन्न होकर उसे कुछ कहे और वो देवता को नरकलोक में गिरा सके..

परंतु हमारा देवता भी कम नही है... समस्त विमान चालक संगठन के एक एक कार्यकर्ता, देवता को नानाप्रकारो से विमान से गिराने का प्रत्यन कर चुके है परंतु देवता अपने पृष्ठ भाग को उचित रूप से चिपकाए हुए है विमान से..

आप भी तनिक अपना पृष्ठ भाग संभाल लीजिए कही कोई इस समय आपको गिराने के प्रयोजन में ना हो...

जारी

Thursday, September 25, 2008

ब्लोगाश्रम का सोंटाधारी...

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..


पूर्व में हमने देखा ब्लॉग जगत के देवता, उसके विमान और ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..



विमान ठीक ब्लोगाश्रम के ऊपर मंद गति से मंडरा रहा है.. कई दिवस हुए विमान के पुर्जो में तेल नही दे पाने से घर्र घर्र की मधुर ध्वनि वातावरण में सुशोभित हो रही है.. पक्षी विमान के पास आकर हेय दृष्टि से उसे देखकर जा रहे है.. एक नटखट पक्षी ने अभी अभी देवता के समीप अपनी दीर्घ शंका व्यक्त कर दी है..


देवता अपने पावन नेत्रो से उस पक्षी को खुन्नस अर्पित कर रहा है.. पक्षी देवता को अपने पृष्‍ठ भाग पे बची खुची शंका दिखाते हुए मुस्कुराता हुआ निकल चुका है..

देवता अपना चश्मा खोज रहा है.. आयु अधिक होने से दृष्टि कमजोर हो गयी है.. इतनी ऊंचाई से उचित दिखता नही है देवता को.. पुन: इस उँचाई से नीचे देवता विमान ले जा भी नही सकता..

क्या कहा आपने? क्यो नही ले जा सकता? अब मित्र बता तो रहे है किंचित संयम रखिये.. क्यो अकारण कथा के लंगोट में हाथ घुसा रहे है..

तो आपका प्रश्न था की देवता इस उँचाई से नीचे विमान क्यो नही ले जा सकता? इसका उत्तर ये है की कुछ दिवस पूर्व एक अन्य देवता इस उँचाई से विमान को तनिक नीचे ले गया था..उसी क्षण धरती से उर्ध्व दिशा में प्रकाश वेग से भी तीव्र गति से एक सोंटा आया और सीधा देवता के कपाल पर एक गुमडा सादर समर्पित कर गया..

बस तभी से देवता ने विमान को एक निश्चित उँचाई से नीचे नही ले जाने के लिए विमान चालक से विनती की है.. अब पुन ये प्रश्न मत कीजिएगा की विनती क्यो की.. यह हम आपको कथा के पूर्व में ही बता चुके है..

परंतु पाठक यदि प्रश्न भी ना पूछे तो वो पाठक ही क्या.. हमे विदित है की आपका अगला प्रश्न क्या है? आप यही पूछना चाह रहे है ना की वो सोंटा कहा से आया विमान में.. ?

तो चलिए हम श्रीमान सोंटेधारी से भी आपका परिचय करवा देते है..

कहा जाता है की इन्हे कभी बिना सोंटे के नही देखा गया.. पूरे ब्लॉग जगत में इन्हे लेकर भाँति भाँति की किवंदतिया फैली पड़ी है.. उनमे से ही एक हम उठाकर आपको बताते है की.. ये किसी से भी कभी भी भिड जाते है.. इनका मूल नाम तो किसी को नही ज्ञात परंतु ये ब्लॉगजगत में कही भी अनिष्ट देखते ही.. उस ब्लॉगर को एक सोंटे का प्रहार अर्पित कर आते है..

गुरुजी के आश्रम में इनका विशिष्ट स्थान है.. गुरुजी के आशीर्वाद से इन्होने अब तक नाना प्रकार की मुद्राओं में विविध स्थानो पर सोंटो का प्रहार किया है.. बस तभी से इनका नाम सोंटेधारी पड़ गया.. और इन्हे इनके वास्तविक नाम से कोई नही जानता.. कदाचित् इन्हे स्वयं भी अपना नाम स्मरण नही होगा..

अरे अरे मित्र.. इनके समीप जाने की चेष्ठा ना करे अन्यथा आपका पृष्‍ठ भाग इनके सोंटे की विजय गाथा में एक अध्याय और बढ़ा सकता है..

इन्हे इनके हाल पर छोड़कर हम आपको ले चलते है गुरूजी के समीप..

गुरुजी असुंदर जी को बिठाकर फिर से अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसा के बैठ गये..

"कौन है ये माँ का सपूत?" गुरुजी की वाणी में वेग अधिक था..

कुछ नये नये पास बनवाकर आए चेले काँप उठे.. वही कुछ पुराने अपने पास वालो से गुरुजी के विषय में कुछ यू कहने लगे..

"कुछ नही हुआ है. बुढऊ के रक्तचाप की गति उच्च निम्म होती रहती है.."

"हमने कहा कौन है ये माँ का सपूत?" ये मात्र उच्च रक्तचाप नही था..

"कौन है ये एकल दास?" गुरुजी ने क्रोध से पूछा..

एकलदास सोंटेधारी की दिशा में देखते हुए उठा और दोनो कर जोड़ते हुए बोला..

"हे समस्त गुरुओ में उत्तम! हमसे क्या भूल हुई?"

"उत्तम की सर्वोत्तम?" गुरुजी तनिक संतुलित होते हुए बोले..

"सर्वोत्तम प्रभो!"

"हम्म अब उचित है! परंतु ये कहा उचित है की तुम अन्य ब्लॉगरो पर आरोप प्रत्यारोप करते फ़िरो?" गुरुजी की वाणी में अभी तक क्रोध था.. सोंटा धारी दो कदम अग्र दिशा में आ चुका था और एकल दस दो कदम पीछे हो लिया..

"हे गुरुओ में सर्वोत्तम कुछ ब्लॉगर जो एक दूसरे के मित्र है वो मेरे ब्लॉगपत्र पर नही आकर एक दूसरे के ब्लॉगपत्र पर ही जाते थे.. मुझे ये उचित नही लगा, अत: मैं वहा टिप्पणी कर आया की एक ही दल में घूमते रहोगे या कदाचित् हमारे ब्लॉगपत्र पर भी दिव्य दृष्टि धरोगे.."

"गुरुजी बोले रे मूर्ख! कौन मित्र और कौन शत्रु? यहा सभी तुम्हारे मित्र ही तो है.. एक परिवार में भी तो पुत्र की माता से ज़्यादा बनती है पिता से कम.. क्या इसका ये अर्थ है की माता एवं पुत्र का पिता से कोई प्रथक दल है?"

"पुन: मित्र भी तो सब यहा आकर ही बने है.. एक दूसरे को पढ़कर ही बने है.. कोई पहले से मित्र थोड़े ही थे.."

"किंतु गुरुवर आप इन बिलावो से परिचित नही है.. ये तो आपके छींके से भी दही चुरा ले.. ऐसे जान पड़ते है.."

इतना सुनते ही गुरुजी के आदेश की प्रतीक्षा किए बिना ही सोंटाधारी आगे बढ़ा और श्रीयुत एकलदास को अपने एक हस्त से उठाकर पास की कुटिया में ले गया..

कुछ देर तक एकलदास की वाणी समीर की मंद बयारो के संग ताल से ताल मिलकर नाद करती रही.. उसके पश्चात् वो भी बंद हो गयी..

गुरुजी पुन: लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसा के बैठ गये.. सोंटाधारी पुन: बाहर आ गया.. अगली बारी की प्रतीक्षा में..

प्रार्थना कीजिए वो अगली बारी आपकी नही हो...

जारी

Tuesday, September 23, 2008

ब्लोगाश्रम के ऊपर मंडराता विमान

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..


पूर्व में हमने देखा ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..


गुरुजी अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसाए बैठे थे.. जो चेले टिप्पणी पाने के लिए कतार खंडित करके अग्रसर हो जाते थे.. वो भगवान से प्रार्थना कर रहे थे की उनकी बारी आज नही आए..



सुंदर लाल जी को स्वयं अपनी दृष्टि में धोबी पछाड़ लगाने के पश्चात् गुरुजी ने उच्च स्वर में कहा

"असुंदर लाल कहा है?"

"असुंदर भाई आश्रम की अघोषित परंपरा के अनुसार कर जोड़े हुए खड़े हुए"

"हे गुरुओ में श्रेष्ठ क्या भूल हुई हमसे?"

"श्रेष्ठ कि सर्वश्रेष्ठ ? गुरुजी ने आशंका व्यक्त की"

"गुरुओ में सर्वश्रेष्ठ स्वामी!"

"हुं अब उचित है.. परंतु ये अनुचित है की तुम्हारे ब्लॉग पत्र पर पोस्ट से ज़्यादा तो तुमने भिन्न भिन्न आयामो वाले अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगा रखी है .. पाठक तुम्हारी पोस्ट का स्वाद ले या फिर तुम्हारे चित्र का ?"

"अभयदान दे तो कुछ कहु स्वामी?"

"कह तो ऐसे रहे हो जैसे हम यहा प्रतिदिन दो चार को मृत्यु दंड देते है.... कहो क्या कहना है.."

"प्रभु हमे किसी ने कहा की ब्लॉगपत्र पर सुंदर चित्र लगाने से पाठक बहुत आते है.."

इतना सुनते ही पूरा आश्रम ठहाको से गूँजायमान हो उठा.. गर्दभ धरा पर लुट्ने लगे.. वृक्षों पर पक्षियो के पेट में बल पड़ गये.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समस्त धरा अपने मुँह पर हाथ रखकर हंस रही है..

गुरुजी भी हँसने लगे.. उनके हँसने से उनके उदर में कुछ हलचल सी हुई.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ब्लॉगी नदी के तट पर लहरे उत्पन्न हो रही हो..

पुन: ये तो रही ब्लॉग जगत की पावन धरा की बात यहाँ का तो आकाश भी इतना निराला है की एक पूरी ब्लॉग पुराण इसी पर लिखी जाए.. यूँ तो आकाश में पवन के वेग से भी तीव्र गति से उड़ने वाले यान गमन करते रहते है.. परन्तु इन सबके मध्य भी एक विशेष वातानाकूलित विमान है.. जो ब्लॉगरो के पुण्य कर्मो पर पुष्पवर्षा करता है.. जी हाँ देवताओ का विमान..

देवताओ के विमान की ये विशेषता है की इसमे एक विशाल उदर का स्वामी विराजता है.. जो ब्लॉगरो के सद्कार्यो अथवा उनकी सद् पोस्टो पर टिप्पणी वर्षा करते हुए अहो अहो का नाद करता है.. ब्लॉगजगत के श्रेष्टि वर्ग में यदा कदा इनकी टिप्पणिया मिल ही जाती है..

यधपि कुछ ब्लॉगरो पर इनकी टिप्पणी वर्षा नही हो पाती.. वो इस अपेक्षा से पोस्ट लिखते है की हमने सृष्टि की महानतम पोस्ट रच डाली है.. और अब तो स्वयं ब्रह्मा जी भी अपने विमान में बैठकर आएँगे और इन पर टिप्पणी वर्षा करेंगे..

परंतु इनके स्वपन भी तब खंडित हो जाते है.. जब तीनो लोको में एक भी कला प्रेमी व्यक्ति नही मिलता जो इनकी रचना का मर्म समझ सके.. सहश्त्रो बार अपने टिप्पणी वाले लिंक पर चटका लगाकर देख चुके है.. कदाचित् चमत्कार हो जाए..

अब तो कुछ एक नटखट ब्लॉगर भी इनसे परिहास करने लगे है.. इन्हे मार्ग मध्य में देखकर कहते है "वो देखो आकाश में उड़नतश्तरी.." ये देखते है तो इन्हे कुछ दृश्य नही होता.. फिर ये उन ब्लॉगरो को अनोनामस बंधु से भी सुंदर भाषा में गालिया देते हुए पाए जाते है..

परंतु सारे ही ब्लॉगर यहा पर ऐसे नही है.. कुछ एक तो ऐसे है जिन्हे टिप्पणी नही मिलती तो वे स्वयं ही अपने ब्लॉग पत्र पर अनोनामस बनकर टिप्पणी कर आते है इन शब्दो के साथ की..

" आहा! आपकी रचना में कैसी पीड़ा है.. हमारे हृदय को चीर कर चली गयी.. अभी हम नगर वैद्य के यहा उपचार कराने आए है.. "

परंतु ऐसे आत्मनिर्भर ब्लॉगर भी बहुत कम पाए जाते है ब्लॉग जगत की पावन भूमि पर..

विशाल उदर वाले स्वामी ने अभी अभी अपने विमान चालक से विनती की है..विमान को ब्लोगाश्रम की दिशा में ले जाने के लिए.. अब आपका प्रश्न होगा की इतने विशाल उदर के देवता ने अपने विमान चालक से विनती क्यो की आदेश क्यो नही दिया.. तो मित्र आपके इस प्रकार के प्रश्न के लिए तो खडाऊ लेकर आपकी ठुकाई करनी चाहिए.. पर क्या करे पाठक की ठुकाई करना शास्त्रों के विरुद्ध जो है..पुन: आपकी ठुकाई कर दी तो हमे पढ़ेगा कौन..

तो आपका प्रश्न था की देवता ने विनती क्यो की इसका उत्तर हम आपको बता देते है.. एक बार एक देवता ने अपने विमान चालक से अभद्र भाषा में बात की थी.. बस उसी क्षण उस चालक ने विमान उल्टा कर दिया.. और वो देवता मृत्युलोक की अतुलनीय धरा पर अपने पृष्‍ठ भाग के सहारे गिरा था.. बस तभी से एक दरार है.. अरे नही मित्र दरार वहा नही जहा आप सोच रहे है.. दरार तो चालक और देवता के मध्य है.. आप भी ना कहाँ से कहाँ चले जाते है... यदि उचित रस पान करना है तो हमारे साथ ही रहिए..

अजी साथ रहने का ये भी मतलब नही की आप हमे लघु शंका निवारण हेतु भी अकेला नही छोड़ेंगे.. अजी अभी जाइए जब आगे बढ़ेंगे हम स्वयं आपको बुला लेंगे.. अभी विश्राम कीजिए और किंचित सदभावो वाली पोस्ट लिख दीजिए.. किसे ज्ञात देवता प्रस्सन हो जाए और अपना विमान लेकर आपके ब्लॉग पत्र पर आकर टिप्पणी वर्षा कर दे..

जारी