कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Thursday, October 2, 2008
दो क्षणिकाए - गाँधी और ईद...
तमाम गवाहो ओर
सबूतो के
मद्देनज़र और लगे रहो
मुन्नाभाई की लोकप्रियता
को देखते हुए..
समाज के हर वर्ग में
गाँधिगिरी के सफलता
पूर्वक प्रचलन
होने से ये अदालत
इस नतीज़े पर
पहुँचती है.. की गाँधी नामक
विचार अभी मरा नही है..
केवल देह मात्र
को ख़त्म करने से..
विचार ख़त्म नही
होता.. गाँधी एक विचार है..
जो अभी भी
ज़िंदा है... इसलिए ये अदालत..
मुज़रिम
नाथुराम गोडसे को बा-इज़्ज़त बरी करती है ...
-----------------------
कितनी रातो को बाँध के रखा
हिज्र की गाँठे खुल रही है..
वो शोख मखमली.. परी के जैसी
अपनी छत पर उतर रही है..
आशिक़ का ईमान ना कोई..
उसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
---
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अरे , आप भी ले लीजिए 'ईद मुबारक'।सुन्दर क्षणिकाएं
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा गाँधी एक विचार हैं। जो मर नही सकता।
ReplyDeleteकितनी रातो को बाँध के रखा
हिज्र की गाँठे खुल रही है..
वो शोख मखमली.. परी के जैसी
अपनी छत पर उतर रही है..
आशिक़ का ईमान ना कोई..
उसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
वाह जी क्या खूब लिखी हैं। दिल को छूता हुआ।
कितनी रातो को बाँध के रखा
ReplyDeleteहिज्र की गाँठे खुल रही है..
वो शोख मखमली.. परी के जैसी
अपनी छत पर उतर रही है..
आशिक़ का ईमान ना कोई..
उसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
अरसे बाद "कुश" मिला ...ऐसा लगता है हम सब कही खो रहे है अपने आप को
मुझको अपना चाँद मिला है..
ReplyDeleteतुमको अपनी ईद मुबारक..
मुबारक जी मुबारक .दोनों बहुत अच्छी लगी .
कितनी रातो को बाँध के रखा
ReplyDeleteहिज्र की गाँठे खुल रही है..
वो शोख मखमली.. परी के जैसी
अपनी छत पर उतर रही है..
:
bahot khub.....bas...aisa laga ki kshanika ke bajaye puri nazm hoti to aur bhi maza aata....aur gandhi vichar wali...sahi hai ...
केवल देह मात्र
ReplyDeleteको ख़तम करने से..
विचार ख़तम नही
होता.. गाँधी एक विचार है..
आपका ये विचार भी सुन्दरतम है और दुसरे वाला भी !
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
शुभकामनाएं !
आशिक़ का ईमान ना कोई..
ReplyDeleteउसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
बहुत सुंदर ! धन्यवाद !
कुश की कलम तो सच ही बोलती है...। मानना तो पड़ेगा ही। शानदार है...(कि नहीं, ...आप बताइए)
ReplyDelete:)
ले झाँक गि़रेबाँ ऐ कातिल, रमजान भी जाने वाला है।
बापू शास्त्री का दिवस मना पड़ चुकी गले में माला है॥
मज़हब को क्यूँ बदनाम करे, खेले क्यूँ खूनी खेल अरे।
आँगन में मस्जिद एक ओर, तो दूजी ओर शिवाला है॥
क्यों हाथ कटार लिया तूने,क्यों कर तेरे हाथ में भाला है?
कहाँ पाक-कुरान को छोड़ दिया,कहाँ तेरी वो जाप की माला है?
जब आज नमाज अता करना,या गंगाजी से जल भरना।
तो ऊपर देख लिया करना, बस एक वही रखवाला है॥
कितनी रातो को बाँध के रखा
ReplyDeleteहिज्र की गाँठे खुल रही है..
वो शोख मखमली.. परी के जैसी
अपनी छत पर उतर रही है..
वाह जी क्या खूब लिखी हैं। दिल को छूता हुआ।
कुश जी
ReplyDeleteआप की दोनों रचनाएँ ये साबित करती हैं की आप बेहद सुलझे हुए और बेहतरीन इंसान हैं...ऐसी रचनाएँ यूँ ही कोई नहीं लिख सकता...बधाई.
नीरज
तमाम गवाहो ओर
ReplyDeleteसबूतो के
मद्देनज़र और लगे रहो
मुन्नाभाई की लोकप्रियता
को देखते हुए..
समाज के हर वर्ग में
गाँधिगिरी के सफलता
पूर्वक प्रचलन
होने बहुत सुंदर लिखा है. बधाई स्वीकारें.से ये अदालत
"... मुझको अपना चाँद मिला है..
ReplyDeleteतुमको अपनी ईद मुबारक.."
बहुत दमदार अभिव्यक्ति है।
अरे फ़ोटो तो असली लगाते !!!आप ने बिलकुल सही कहा हे मे आप से सहमत हू.
ReplyDeleteधन्यवाद
जबरदस्त रचनाऐं..शुभ दिवस की बधाई एवं शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteकुश जी, बहुत सुंदर!
ReplyDeleteवाह कुश जी, कमल का लिखते हैं आप....ओह फिर से वही कमेन्ट लिखा ही नही जाता...चलिए कुछ सच्चा कमेन्ट करते हैं...
ReplyDeleteकेवल देह मात्र
ReplyDeleteको ख़त्म करने से..
विचार ख़त्म नही
होता.. गाँधी एक विचार है..
जो अभी भी
ज़िंदा है... इसलिए ये अदालत..
मुज़रिम
नाथुराम गोडसे को बा-इज़्ज़त बरी करती है .....
चलिए अच्छा है,आपने नाथूराम को बरी कर दिया...लेकिन ये क्या? करम इतना तो ना करें, बाइज्ज़त बरी कर रहे हैं...थोड़ा एक दो चांटा तो लगा दें....
आशिक़ का ईमान ना कोई..
उसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक.....
अरे वाह, ये कौन सा आशिक मिल मिल गया आपको, जिसका कोई मज़हब ही नही है....लगता है आसमान से उतरा है...ज़रा हम से भी मिलवायें...मैं भी गौर से देखूं, ऐसे लोग देखने में कैसे लगते हैं....बहरहाल ये सब तो रहीं मजाक की बातें....काफी अरसे बाद एक शायर आई मीन, कवि के दर्शन हुए....अच्छा लगा...उम्मीद है मेरा कमेन्ट आपको बुरा नही लगा होगा, वैसे काफी संभाल के कमेन्ट किया है मैंने...क्या करूँ..मेरा कमेन्ट आजकल पोस्ट बनकर सब के सामने आजाता है...
बापू के विचार तो सदा सदा चलेंगे। बल्कि, अहिंसा के विस्तृत प्रयोग तो अभी होने बाकी हैं।
ReplyDeleteआशिक़ का ईमान ना कोई..
ReplyDeleteउसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
बहत सुंदर...मुबारक हो आपको भी...
ईद मुबारक...
ReplyDeleteगांधी के माध्यम से अच्छा व्यंग्य किया है।
ReplyDeleteक्षणिकाएँ भी लाजवाब हैं। आपको भी ईद और विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
nice wording!
ReplyDeleteआशिक़ का ईमान ना कोई..
ReplyDeleteउसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..बहुत अच्छा लगा पढ़ना।
Nathurak godse ko baijjat bari kiya jata hai
ReplyDeletewah kya baat kahi hai
kaha se soch lete ho itna alag
bhaut achha lagata hai blog tak aana sarthak hota hai
naye khyaal lekar hi jati hoon hamesha
"आशिक़ का ईमान ना कोई..
ReplyDeleteउसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक.."
अरे वाह ! कुश भाई आप ग़ज़ल भी लिखते हैं ? मज़ा आगया !
kushbhai...dono hi kshanikaye lajawab...
ReplyDeletepar ye sidha dil me utra...
आशिक़ का ईमान ना कोई..
उसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
kushbhai...dono hi kshanikaye lajawab...
ReplyDeletepar ye sidha dil me utra...
आशिक़ का ईमान ना कोई..
उसका क्या मज़हब होता है..
मुझको अपना चाँद मिला है..
तुमको अपनी ईद मुबारक..
aaj padhi ye dono kavitaye,Aap gajab likhte hain ,Aap ki lekhn shaili kamal ki hain ,bahut bahut bahut badhiya,badhi .gandhiji vali kshanika atyuttmm lagi .dhanywad
ReplyDeletesundar rachna chand lafzo mein bhaavpoorn ..baNdhai hoo
ReplyDelete