Tuesday, January 20, 2009

मुस्कुराहट उधार मिल सकती है क्या ??

मुस्कुराहट उधार
मिल सकती है क्या ??

सुबह सुबह एक सज्जन फोन पर कहने लगे..
हम सकपकाए, भय्ये पहले ये तो बताओ की बोल कौन रिया है.. सामने से आवाज़ आई हम लल्लन लखनवी बोल रहे है.. वैसे तो हम ऐसे अंजान लोगो से बात नही करते पर जब लखनऊ का नाम जुड़ा था तो हम भी सोचे की बात कर ली जाए.. वो क्या है लखनऊ हमे बड़ा प्रिय है भले ही हम कभी गये नही वहा.. पर गये तो चाँद पे भी नही है मामा मामा तो कहते ही है.. खैर वो छोड़िए.. बात लल्लन की करते है.. हम बोले लल्लन मिया कहा नंबर मिलाया है आपने.. किस से बात करनी है..

लल्लन भाई बोले जो मिल जाए उसी से बात कर लेंगे.. हम बोले भाई अभी तो हम मिले हुए है. और धीरू भाई की मेहरबानी से इनकमिंग फ्री है, परमपिता की मेहरबानी से हम भी फ्री है तो अपना मूह खोलकर जो बोलना हो बोलिए.. हम निस्वार्थ भाव से सुनेंगे..

लल्लन जी को शायद हमारी बात समझ नही आई.. पर फिर भी अपनी बात करते रहे.. बोले आप जो भी हो आपको एक पीड़ित व्यक्ति की सहयता करनी चाहिए.. सहायता का नाम सुनकर हुमारी घंटी बजी.. हम बोले भाई साहब आपको ग़लतफ़हमी हुई है मेरे ससुराल से दहेज में मिले मोबाइल पर मत जाइए.. मैं तो बहुत मामूली आदमी हू.. लल्लन मिया बोले लाहोल विला कूवत तुम साले आम आदमी सहायता का नाम सुनते ही बटुए की तरफ देखते हो.. अमाँ मियां हर मदद पैसो से थोड़े ही होती है.. लल्लन मियां की बात सुनकर हम थोड़े सहमे... हमने भी फंटा मारा ऐसी बात नही है लल्लन जी पहले हम भी लोगो की बहुत मदद किया करते थे वो तो अब उम्र का तक़ाज़ा है वरना.. खैर आप बताइए.. कौन पीड़ित है..

इतना सुनते ही लल्लन मिया सेंटिमेंटल हो गये.. बोले अब तुम तो जानते हो छोटू.. आईला छोटू ये लल्लन मिया को कैसे पता की बचपन में हमारा कद छोटा होने से सब हमको छोटू कहते थे.. छोटू शब्द सुनते ही हमने बचपन की यादो में गोते लगा लिए वो चिल्लाए कहा गुम हो जाते हो छोटू.. हमने कहा जी माफ़ कीजिए यूही ज़रा.. आप बताइए.. क्या पीड़ा है आपको.. वो बोले रोज़ शाम को ऑफीस से घर आता हू.... बॉस की डाँट सुनके और घर आते ही बीवी परेशान करती है.. तंग आकर टीवी ऑन करता हू.. तो देखता हू हर चॅनेल लाफ्टर थेरेपी चला रहा है. .. राजू के ठहाके . .हसी के हंस्गुल्ले.. रंगीन मिज़ाज़ राजू.. सुनील पाल के क़हक़हे..

ऐसे ऐसे हँसी के प्रोग्राम आते रहते है.. की क्या बताऊ रोना जाता हैएक ही जोक हर चेनल पर इतनी बार दिखाया जाता है की वो जोक कम और जोंक ज्यादा लगता है। चेनल आपको तब तक हँसाने का दावा करता है जब तक की आप रो ना पड़े .. अब क्या बताऊ तुम्हे छोटू की हँसे हुए एक ज़माना गुज़र गया.. इसलिए सोचा की फोन करके किसी से हसी उधार ले लू.. ऐसे छिछोरे प्रोग्राम देख कर दूसरो की ही हँसी बर्बाद की जा सकती है.. अपनी नही.. इसलिए उधार माँग रहा हू.. तुम क्या कहते हो छोटू?

मैं क्या कहता उनकी बात सुनकर मुझे मेरी पीड़ा याद गयीमैं टे टे करके रोने लगालल्लन मियांघबरा गये... उन्हे लगा की यहा से तो हँसी मिलना मुश्किल है उन्होने कहा मैं फोन रखता हू..... तुम अपना ख्याल रखना छोटू.. छोटू शब्द के सम्बोधन ने और रुला दिया.. परेशानी दूर करने के लिए मैने टीवी ऑन किया तो देखा हसी के गुलगुले रहा है.. मैं और ज़ोर से रोने लगा.. फिर फट से मोबाइल उठाया और कॉल किया.. सामने से आवाज़ आई कौन.. हम बोले

मुस्कुराहट उधार
मिल सकती है क्या ??

Thursday, January 15, 2009

रेड लाइट.

रेड लाइट...



नही ये वो रेड लाईट एरिया नही जहाँ पर मजबूरिया कुछ जरूरतों से जद्दोजहद करती हो.. ये तो शहर के व्यस्त चौराहे पर लगी वो तीन लाईट है जहा इंसान कुछ देर के लिए ही सही पर रुकता है..

मैं भी रुकता हू.. मेरे पास में एक साइकिल रिक्शा खड़ा है.. जिसमे पीछे एक लड़का और लड़की बैठे है.. ठंड बहुत तेज़ है.. लड़के ने गले में अभिषेक बच्चन की स्टाइल में मफ्लर डाल रखा है.. लड़का लड़की दोनो आगे बैठे रिक्शा वाले को देखकर हंस रहे है.. मेरी नज़र रिक्शा वाले पर जाती है.. उसने नीले कलर का स्वेटेर पहन रखा है.. जो बगल से फटा हुआ है.. उसी के बीच एक अख़बार फसाया हुआ है.. शायद सर्दी से बचने के लिए..

रोड लाइट के बिल्कुल करीब एक लड़कीनुमा महिला की आवाज़ आ रही है.. भैया ऐसे क्या करते हो.. शायद उन्होने कार चलाते वक़्त बेल्ट नही लगा रखा था.. पुलिस वाला कह रहा है आप समझती नही मैडम! साहब आए हुए है.. चालान तो बनेगा ही बनेगा.. वो गाड़ी की तरफ मुडी.. शायद लाइसेंस माँगा हो पुलिस वाले ने.., पर नही उसने अपना फ़ोन निकाला है.... अब वो पुलिस वाले को फ़ोन दे रही है.. पुलिस वाले ने गाड़ी की चाबी वापस दे दी है.. वो लड़कीनुमा महिला फिर से अपनी गाड़ी में बैठकर जा रही है... पुलिस वाला गुस्से में कुछ बड़बड़ा रहा है..

उसने देखा रिक्शे वाले का रिक्शा लाइन से थोड़ा आगे बढ़ गया.. गुस्से में उसने आव देखा ना ताँव और रिक्शे की हवा निकाल दी.. रिक्शा वाले के पास मोबाइल नही है...वो अब बड़बड़ा रहा है...

लड़के लड़की उतर गये रिक्शे से.. अरे भई अब हम कैसे जाएँगे? रिक्शे वाले ने कहा दो मिनट रूको हवा भरवा लेता हू.. लड़के ने मना कर दिया.. हम नही रुकेंगे.. रिक्शे वाला कह रहा है पैसे तो पूरे लूँगा.. लड़का मना कर रहा है.. रिक्शे वाला चिल्ला रहा है.. लड़की ने अपने पर्स में से निकाल कर दे दिए.. अब लड़का मन ही मन कुछ बड़बड़ा रहा है..

और भी बहुत सारे लोग है.. एक भाईसाहब तेज़ी से आए अपना स्कूटर लेकर.. थोड़ी सी टक्कर लग गयी कार को.. वो मुस्कुरा कर बोले सॉरी सर.. और आगे आकर खड़े हो गये.. एक साइकिल वाला आगे जाने के चक्कर में उनके स्कूटर के काँच से अपना हेंडल छु के निकल गया.. वो भाई साहब चिल्लाए.. अबे अँधा है क्या.. दिखता नही.. साले पता नही कहा कहा से आ जाते है..

एक बच्चा भीख माँगते हुए आया.. और साइकिल वाले के टायर से टकराया.. साइकिल वाले ने उसको थप्पड़ मारा.. और बोला चल भाग यहा से..

वो लड़का भीख माँगते हुए किसी कार की खिड़की पर खड़ा है.. भीख मांगने के चक्कर में कांच पर उसकी उंगलियों के निशान बन गए.. अंदर बैठे आदमी ने उसे धक्का देकर पीछे हटाया... वो बच्चा खिड़की में से उस आदमी के मुँह पर थूक कर चला गया है...

बस में बैठे एक आदमी ने खिड़की में से बाहर पान थूक दिया है.. जो एक भाईसाहब के कंधे पर गिरा.. उन्हे गुस्सा आ गया.. वो बोलना तो चाहते थे पर बोल नही पा रहे थे.. वो इधर उधर देखने लगे. फिर सड़क पर गुटका थूका और बोले भले आदमी थूकने से पहले देख तो लो कोई नीचे खड़ा है या नही..

मैं बस खड़े खड़े सोच रहा हूँ.. मुझे किसी से कोई सहानुभूति क्यो नही हो रही है.. ? क्या मैं बदल रहा हू? क्या मुझमे अब भावनाए नही बची है? ..क्या मेरी लाइफ मटीरियलीस्टिक हो रही है....?

सोचते सोचते पता ही नही चला लाइट कब ग्रीन हो गयी.. अब तो सिर्फ़ तीन सेकेंड बचे है.. ओह नो ! फिर से रेड लाइट..

अक्सर ज़िंदगी में ऐसा हो जाता है.. लाइट ग्रीन हो जाती है और हमे पता नही चलता.. फिर कुछ देर के लिए खड़ा रहना पड़ता है.. मैने सोच लिया है.. इस बार लाइट ग्रीन होते ही निकल जाऊँगा...

वैसे रेड लाइट पर अभी भी बहुत कुछ हो रहा है.. पर वो फिर कभी बताऊँगा... आप देखिए कही आपकी लाइट ग्रीन तो नही है..

Monday, January 5, 2009

एक और साल.. एक और रेजोलुशन

नए साल का पहला दिन है... मैं उनिंदी आँखो को मलते हुए उठता हू और दरवाज़ा खोलता हू.. कोई मेरे आँगन में पूरी दुनिया का बंडल बाँध कर फैंकता है.. मैं उसे उठाता हु.. ऊपर नज़र जाती है... सुबह सुबह फिर आसमान में किसी ने सोने का एक सिक्का रख दिया है..

कभी सोचा है की कोई रात को पैदा हो और सुबह मर जाए.. ? ये ओस की बूंदे, रात को आई थी..
मेरे आँगन में लगे गुलाब पर आख़िरी साँसे गिन रही है.. छोटी सी ज़िंदगी भी कितनी खूबसूरती से जी जाती है..

रात को कितने लोगो ने नशा किया होगा...मुझे सुबह की चाय का नशा है.. चाय बनाता हु .. और हाथ में पूरी दुनिया लेकर बैठ जाता हू.. नया साल है.. नये साल की बधाई दी जा रही है.. नये साल पर रेजोलुशन लीजिए.. लिखा है स्मोकिंग छोड़िए.. ड्रिंकिंग छोड़िए.. गाड़ी धीरे चलाइए.. पर ये सब तो मैं पहले ही नही करता.. फिर रेजोलुशन क्या लिया जाए..

और फिर क्या करेंगे.. रेजोलुशन लेकर.. जो कभी पूरे ही नही होते.. क्यो कभी कुछ भी पूरा नही होता. ऐसा लगता है सब कुछ अधूरा है.. अधुरी खुशिया.. अधूरे काम.. अधूरे दिन.. अधूरी राते.. कभी पुरा होने की चाह में कितनी ही ज़िंदगिया अधूरी ही बीत जाती है..

मेरे पापा... अचानक याद आया..

पापा की कितनी ही हसरते मेरे कपड़ो की सिलाई के कुछ धागो के बीच उलझी हुई होगी.. कितने ही सपने मेरी किताबो के उपर चढ़े अख़बारो के कवर में दबे होंगे.. कितना गिल्ट महीने के आखिरी दिनों में मेरे स्कूल के फटे हुए जूतों के बीच से झांक रहा होगा..

पापा..

आज अचानक मुझे सुबह सुबह पापा की याद क्यो आ रही है.. पापा को रिटायर हुए तीन साल हो चुके है.. अब एक और साल बीत गया है.. सब कहते है पैसा हो तो खुशिया मिल जाती है.. क्या पापा के सामने जाकर रख दू चेक बुक.. और कहु की पापा आपके लिए ढेर सारी खुशिया लाया हू..

पर पापा के लिए खुशिया ये नही.. मैं जानता हू.. उन्हे इसमे खुशी नही मिलेगी.. पापा को खुशी तब मिलती थी जब मेरा कोई दोस्त घर के बाहर आकर मुझे आवाज़ लगाता और पापा अंदर मम्मी को मेरे दोस्त का नाम बताते की वो होगा.. और जब बाहर मेरा वही दोस्त होता जिसका नाम पापा ने लिया.. तो उनको बहुत खुशी होती थी..

मगर अब? अब तो दोस्त लोग घर नही आते मैं जो नही हू वहा.. आ जाए तो पहले ही फोन कर लेते है.. मिस कॉल मारू तो बाहर आ जाना.. पापा अब गेस नही करते..

ओस की बूंदे कभी मरती नही.. एक बूँद अभी अभी अख़बार पर गिरी..

अपनी उंगली से उसे हटाया.. एक खबर थी दिल्ली का अप्पू घर बंद होकर अब जयपुर में शुरू होने वाला है.. दोस्तो की फरमाइश याद आई.. इस बार रोलर कोस्टर की राइड पर चलेंगे.. कितना मज़ा आया था ना पिछली बार..

पापा के कंधो की राइड.. जब मम्मी खाना बनाती थी... पापा मुझे कंधे पर बिठाकर बाहर घुमाने ले जाते..पापा के कंधो की राइड के आगे कौन से रोलर कोस्टर की राइड होगी..

ओस की बूंदे मर कर भी नही मरती.. फिर गिर पड़ी..

अख़बार में फिर लिखा है किसी ने रेजोलुशन लिया है.. मोटा होना है.. पतला होना है.. लंबा होना है..

पापा को कोई गिफ्ट दू अच्छा सा? क्या दू?

वक्त ! ........... हाँ यही ठीक रहेगा.. पापा को थोड़ा वक़्त देता हू.. यही रेजोलुशन ठीक रहेगा.. ये साल पूरा पापा के नाम है.. बस

अख़बार बंद कर दिया है.. चाय ख़त्म हो चुकी है.. आसमान में टंगा सोने का सिक्का पिघल रहा है.. एक और दिन बाहर दरवाजे पर मेरा इंतेज़ार कर रहा है... मैं आदतन देर करता हू.. वो बाहर हॉर्न बजा रहा है..

पापा डांट रहे है.. रोज़ स्कूल बस को वेट करवाते हो.. हर काम में देर लगाते हो..

मैं तैयार होकर ऑफीस के लिए निकलता हू... आज का दिन मेरे साथ है.. अब देर नही करूँगा पापा...