रेड लाइट...
नही ये वो रेड लाईट एरिया नही जहाँ पर मजबूरिया कुछ जरूरतों से जद्दोजहद करती हो.. ये तो शहर के व्यस्त चौराहे पर लगी वो तीन लाईट है जहा इंसान कुछ देर के लिए ही सही पर रुकता है..
मैं भी रुकता हू.. मेरे पास में एक साइकिल रिक्शा खड़ा है.. जिसमे पीछे एक लड़का और लड़की बैठे है.. ठंड बहुत तेज़ है.. लड़के ने गले में अभिषेक बच्चन की स्टाइल में मफ्लर डाल रखा है.. लड़का लड़की दोनो आगे बैठे रिक्शा वाले को देखकर हंस रहे है.. मेरी नज़र रिक्शा वाले पर जाती है.. उसने नीले कलर का स्वेटेर पहन रखा है.. जो बगल से फटा हुआ है.. उसी के बीच एक अख़बार फसाया हुआ है.. शायद सर्दी से बचने के लिए..
रोड लाइट के बिल्कुल करीब एक लड़कीनुमा महिला की आवाज़ आ रही है.. भैया ऐसे क्या करते हो.. शायद उन्होने कार चलाते वक़्त बेल्ट नही लगा रखा था.. पुलिस वाला कह रहा है आप समझती नही मैडम! साहब आए हुए है.. चालान तो बनेगा ही बनेगा.. वो गाड़ी की तरफ मुडी.. शायद लाइसेंस माँगा हो पुलिस वाले ने.., पर नही उसने अपना फ़ोन निकाला है.... अब वो पुलिस वाले को फ़ोन दे रही है.. पुलिस वाले ने गाड़ी की चाबी वापस दे दी है.. वो लड़कीनुमा महिला फिर से अपनी गाड़ी में बैठकर जा रही है... पुलिस वाला गुस्से में कुछ बड़बड़ा रहा है..
उसने देखा रिक्शे वाले का रिक्शा लाइन से थोड़ा आगे बढ़ गया.. गुस्से में उसने आव देखा ना ताँव और रिक्शे की हवा निकाल दी.. रिक्शा वाले के पास मोबाइल नही है...वो अब बड़बड़ा रहा है...
लड़के लड़की उतर गये रिक्शे से.. अरे भई अब हम कैसे जाएँगे? रिक्शे वाले ने कहा दो मिनट रूको हवा भरवा लेता हू.. लड़के ने मना कर दिया.. हम नही रुकेंगे.. रिक्शे वाला कह रहा है पैसे तो पूरे लूँगा.. लड़का मना कर रहा है.. रिक्शे वाला चिल्ला रहा है.. लड़की ने अपने पर्स में से निकाल कर दे दिए.. अब लड़का मन ही मन कुछ बड़बड़ा रहा है..
और भी बहुत सारे लोग है.. एक भाईसाहब तेज़ी से आए अपना स्कूटर लेकर.. थोड़ी सी टक्कर लग गयी कार को.. वो मुस्कुरा कर बोले सॉरी सर.. और आगे आकर खड़े हो गये.. एक साइकिल वाला आगे जाने के चक्कर में उनके स्कूटर के काँच से अपना हेंडल छु के निकल गया.. वो भाई साहब चिल्लाए.. अबे अँधा है क्या.. दिखता नही.. साले पता नही कहा कहा से आ जाते है..
एक बच्चा भीख माँगते हुए आया.. और साइकिल वाले के टायर से टकराया.. साइकिल वाले ने उसको थप्पड़ मारा.. और बोला चल भाग यहा से..
वो लड़का भीख माँगते हुए किसी कार की खिड़की पर खड़ा है.. भीख मांगने के चक्कर में कांच पर उसकी उंगलियों के निशान बन गए.. अंदर बैठे आदमी ने उसे धक्का देकर पीछे हटाया... वो बच्चा खिड़की में से उस आदमी के मुँह पर थूक कर चला गया है...
बस में बैठे एक आदमी ने खिड़की में से बाहर पान थूक दिया है.. जो एक भाईसाहब के कंधे पर गिरा.. उन्हे गुस्सा आ गया.. वो बोलना तो चाहते थे पर बोल नही पा रहे थे.. वो इधर उधर देखने लगे. फिर सड़क पर गुटका थूका और बोले भले आदमी थूकने से पहले देख तो लो कोई नीचे खड़ा है या नही..
मैं बस खड़े खड़े सोच रहा हूँ.. मुझे किसी से कोई सहानुभूति क्यो नही हो रही है.. ? क्या मैं बदल रहा हू? क्या मुझमे अब भावनाए नही बची है? ..क्या मेरी लाइफ मटीरियलीस्टिक हो रही है....?
सोचते सोचते पता ही नही चला लाइट कब ग्रीन हो गयी.. अब तो सिर्फ़ तीन सेकेंड बचे है.. ओह नो ! फिर से रेड लाइट..
अक्सर ज़िंदगी में ऐसा हो जाता है.. लाइट ग्रीन हो जाती है और हमे पता नही चलता.. फिर कुछ देर के लिए खड़ा रहना पड़ता है.. मैने सोच लिया है.. इस बार लाइट ग्रीन होते ही निकल जाऊँगा...
वैसे रेड लाइट पर अभी भी बहुत कुछ हो रहा है.. पर वो फिर कभी बताऊँगा... आप देखिए कही आपकी लाइट ग्रीन तो नही है..
कुश जी, नमस्कार
ReplyDeleteभाई, लगता है कि आप कुछ ज्यादा ही सेंसिटिव हो गए हो. तभी तो ग्रीन लाइट नहीं दिखी. चलो अब निकल जाना
रेड लाईट पर बहुत कुछ चलता है ......सच कहा आपने....मंगल वार को मगल देवता तो शनिवार को शनि देवता और भी न जाने क्या क्या ......बहुत सच्चा लिखा है आपने
ReplyDeleteसुंदर चित्रण रेड लाईट की सूक्ष्म घटनाओ का . हर बड़ा अपने छोटे पर ही तो रौब दिखता है . और छोटा सिर्फ़ बडबडाने के आलावा कर भी क्या सकता है
ReplyDelete1--नही ये वो रेड लाईट एरिया नही--lagat hai kal ki chittha charcha ka sar aa gaya--tabhi title aisa chuna hai????
ReplyDelete2-अभिषेक बच्चन की स्टाइल--us ka style chalta hai kya????
3=लड़कीनुमा महिला--ye kya hota hai???
4-रिक्शा वाले के पास मोबाइल नही है--sahi -
5 -लड़की ने अपने पर्स में से निकाल कर दे diye-naya jamaana--sahi observation!-- .
6-conclusion-- लाइफ मटीरियलीस्टिक हो रही है-
bahut achcha observation aur prastuti hai..
wo pasand wala sticker nahin paste kiye ho Kush???ab lekh pasand karne blogvani jana padega..
ReplyDeleteहाँ अब लोग अपनी सेंसिटिव नेस अलग अलग हिस्सों में दिखाते है..इनमे से वाही साइकिल वाले जो इस बच्चे को थप्पड़ मारते है..जाकर अपने शब् के गिरे हुए बच्चे को उठायेगे....यही महिला जिन्होंने बेल्ट नही लगायी...ऑफिस में अपने चपरासी या मातहत को अनुशासन का पाठ पढायेंगी....हम जैसे slumdog millinorie को देखकर रोयेगे..क्यूंकि अंग्रेज भी poor india कह कर रोये है .....फ़िर बाहर आकर मेक्दोनल में बर्गर खाकर अपने दो चार दोस्तों को एस एम् एस करेगे...टी.वी देखेगे .सरकार को गाली देंगे ओर सो जायेंगे .नौकरिया झट पर बद्लेगे .ओर अपनी सेंसिटिव नेस लोकर में रख देंगे जैसे अगर इसे बाहर खर्च किया तो ख़त्म हो जायेगी....हर आदमी कई किरदार लिए बैठा है.....एक घंटे कुछ.दूसरे घंटे कुछ.....जिंदगी के इस पन्ने पर जिस आदमी को आप हीरो समझने लगते है.....अगले कुछ पन्ने पर वाही खलनायक बना दिखता है........रोज सिक्के जमा कर हम दिन खर्च कर रहे है...ओर ख़ुद भी खर्च हो रहे है आहिस्ता आहिस्ता ...अफ़सोस जिंदगी में मिले रेड लाईट के सिग्नल हम इग्नोर कर देते है
ReplyDeletekafi acha observation hai kush bhai.hamari or se badhai
ReplyDeletebas bhavnao ki bahav mein behte gaye,bahut achha observation aur prastuti bhi.actualy itani uthalputhal hai ke bahut kehna hai magar alfaz nahi mil rahe,yahi zindagi hai.
ReplyDeletekush bhai mast likhe hai aap..kaafi accha observation.....
ReplyDeleteजीवन की विविध झलकियाँ ! बहुत खूब !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी तस्वीर पेश की आपने| हम अनजाने में अक्सर insensitive हो जाते हैं| आइना दिखा गया "रेड लाइट"|
ReplyDeleteजिन्दग की सारी कैकोफोनी दिखा दी आपने रेड-लाइट पर!
ReplyDeleteजबरदस्त चित्रण।
बहुत सुन्दर लिखा. पढते २ ऐसा लगा जैसे मैं ही रेड सिगनल के सामने खडा हूं. यथार्थ का सटीक चित्रण. शायद आज हम कुछ ज्यादा ही खुदगर्ज हो गये हैं.
ReplyDeleteरामराम.
जीवन की विविध झलकिया!
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण की आपने रेड लाईट की!
मन की बात
कुश भाई एक रेड लाईट से कई तस्वीरें दिखा दी। हम सब जिन चीजों को अनदेखा कर देते उन्हें आप ले आए। वैसे अनुराग जी की बातों पूरी तरह सहमत हूँ। और हाँ कुश भाई एक बात पूछनी थी ये ब्लोग का टेम्पलेट किस दुकान से लाए। एक आधी दुकान का लिंक हमें भी दे दो। कई बार पूछना चाहा पर भूल जाता।
ReplyDeleteईश्वर ने यह इन्सान नाम की कृति भी क्या खूब बनायी है। जितनी मूर्तियाँ उतने साँचों से निकली हुई। भीतर का मैटीरियल भी अलग-अलग डाल रखा है। फिर भी इनमें इतनी बुनियादी समानताएं मिलती हैं कि सोचकर दिमाग चकरा जाता है।
ReplyDeleteकुश जी आपने तो कमाल ही कर दिया यह सब देखा हुआ यूँ बताकर...। शुक्रिया।
bahut kuch dekhne ko milta hai......poori zindagi signal par hoti hai
ReplyDeleteकुश जी, आपके जाल घर पर पधारे सभी पाठकोँ को मकर सँक्रात की बधाई
ReplyDeleteये आपके गुलाबी शहर का जिक्र किया है ना आपने ?
सचाई को गुलाबी चश्मे से देखेँ तब अलग तस्वीर उभरती है और इस तरह सच !! १०० % !!
सड़क पर गुटका थूका और बोले भले आदमी थूकने से पहले देख तो लो कोई नीचे खड़ा है या नही.. क्या बात है। क्या केने,क्या केने टाइप!
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट!
रेड लाईट का यथार्थ वृतांत कितना कुछ सोचने को मजबूर कर देता है और उसे शब्दों में बखूबी बाँधा है. वाह!! सब कुछ जीवंत..इतने प्रहार झेलते संवेदनाऐं इम्यून हो गई हैं तो अब असर कितना कम होता है कि देख कर इंसान अनदेखा कर देता है.
ReplyDeleteभैया गलती हमारी ही रही जो सुबह आकर पढी ये पोस्ट !
ReplyDeleteऊपर ही लिख दिया करो कैसा मसाला है पोस्ट में .
सुबह सुबह इमोशनल कर दिया !
भावुक कर देने वाली पोस्ट लिखी है ...ज़िन्दगी में जैसा जिसको मौका मिलता है सब वैसा ही जी लेते हैं अपने ढंग से .
ReplyDeleteअक्सर ज़िंदगी में ऐसा हो जाता है.. लाइट ग्रीन हो जाती है और हमे पता नही चलता.. फिर कुछ देर के लिए खड़ा रहना पड़ता है.. मैने सोच लिया है.. इस बार लाइट ग्रीन होते ही निकल जाऊँगा...
ReplyDelete" सच कहा ग्रीन लाईट कभी किसी का इन्तजार नही करती , जो निकल गया वो निकल गया और जो रह गया उसे फ़िर से रेड लाईट के ग्रीन होने का इन्तजार करना पड़ता है ...चाहे जीवन हो या फ़िर सड़क.."
Regards
काफी दिनों बाद आज ब्लॉग देखने का मन किया तो ब्लॉगवाणी की रेटिंग में सबसे ऊपर तुम्हें पाकर खुशी हुई। लेख पढ़ा तो मजा आ गया। लगा नहीं पढ़ती तो शायद मिस कर देती। अच्छा वृतांत है कुश...रेड लाइट के सवा मिनट में जिंदगी के कई शेड्स समेट लिए। बढ़िया।
ReplyDeletepost par itni daer sae aayee iska afsos haen dr anuraag kae kament nae sab kuch keh diya jo man mae haen
ReplyDeleteपोस्ट पर टिप्पणी करने के लिए एक ही शब्द है....शानदार!
ReplyDeletebahut sundar chitran kush ji..
ReplyDeleteमै तो बस इतना ही कहुंगा...
ReplyDeleteआप ने इस लेख मे दुनिया के रंग दिखा दिये
धन्यवाद
बहुत सुंदर अवलोकन, सुंदर रचना के लिये बधाई।
ReplyDeleteलाल बत्ती की इस कहानी पे पिघलता सा कुछ
ReplyDeleteकुश की लेखनी को सलाम
kush bhai ab mai aap ki balog se bach nahi sakta , etana achchah likhte hai ki bhai padhna ke liye bar bar aana hi padata hai....
ReplyDeleteRegards
कुश जी, बहुत ही संजीदा बात को बहुत सहज ही व्यक्त कर जाना ही आपकी क़लम की विशेषता है। रेड लाइट को वास्तविक दृष्टांत बना दिया आपने। लाजवाब।
ReplyDeleteज़िन्दगी में आप जैसे संजीदा लोग है तो sensitivity है नही तो आजकल materialism का ज़माना है भाई ...बड़े शेहरो में कुछ ज़्यादा ,छोटे शेहरो में कुछ कम ...
ReplyDeleteकुश जी..
ReplyDeleteऎसा नहीं कि कुछ लिखना नहीं चाहता.. मैं तो ढेर सारी बातें करना चाहता हूं.. पर सारे शब्द आपको दे दिये थे ना...
आप सभी लोगों के ब्लाग्स पर मैं टिप्प्णियां दे कर, वैसा फील नहीं करना चाहता जैसे बारिश का कीट नकली पर लगा कर करता है.. तो मेरे विचारों को असली रखते हुए लिखता हूं कि बहुत सुंदर टिप्प्णी की है आज की माडर्न जीवन शैली पर.. अभी देखते हैं आप और भी क्या क्या बयान करते हो..
आदर सहित
बहुत सही चित्रण, जिन्दगी को बड़े करीब से आब्जर्व करते हैं आप
ReplyDeleteSach kahun kush aajkal bus kuch aisa hi haal hai main bhi yahi soch rahi hoon
ReplyDeletekya karan hai ki ab samvedansheel man bhi kisi ke dukh se dukhi nahi ho raha
main hairaan hoon ki aisa kyu hai
kyu
मुझे किसी से कोई सहानुभूति क्यो नही हो रही है.. ? क्या मैं बदल रहा हू? क्या मुझमे अब भावनाए नही बची है? ..क्या मेरी लाइफ मटीरियलीस्टिक हो रही है....?
magar ye soch hai
shayad koi bhi takleef dekh kar yahi lagta hai ki yahi zindgi hai
yaa hum khud main gum hai
khudgurz shayad ................
जिस तरहां से आपने इस व्यथा का चित्रण किया है वो बहुत ही प्रभावित करता है
ReplyDeleteअक्षय-मन
ReplyDeleteमाफ़ करना भाई कुश, यह पोस्ट आज ही पढ़ पाया..
तुम्हारा भेजा हुआ गज़नी मिले, अच्छे लगे ।
इस पोस्ट में कुछ ऎतराज़ दर्ज़ करना चाहूँगा,
"अभिषेक बच्चन की स्टाइल में मफ्लर" पर यह कहना है, कि वह मुझीसे तो ऎसा मफ्लर देखकर गया है, और श्रेय उनको दे रहे हो, भूलसुधार कर लेना ।
यह लड़कीनुमा महिला, कैसी होती होगी भला ? महिलानुमा लड़कियाँ तो बहुतेरी देखी हैं, यह... लड़कीनुमा महिला ? एक फोटू भेजें ।
तुमको सड़क पर इधर उधर देखने की आदत डा. अनुराग की संगत में लग गई है.. यह ठीक नहीं । वह तो डाक्टर कहलाने और शादी-शुदा होने के नाते पकड़े जाने पर बच निकलेंगे, और तुम पिट जाओगे । ध्यान रखना.. और हम लोगों को भी तो ग्रीन लाइट दिखलाओ, भाई !
Kush bahut dino baad aap ki post dekhi late ho gaya...ab sorry kya kahun lekin achchha lag raha hai ki ek khoobsurat post padhne ko mili.Aap kitni sadhar si lagne wali ghatnaon ko asadharan mod de dete ho...bahut khoob...tumhari lekhan kala kisi ko bhi apna deewana bana sakti hai...sach.
ReplyDeleteNeeraj
डॉ अमर कुमार जी की सलाह मानिये
ReplyDeleteरिस्क ले रहे हैं आप
बहुत बढिया
ReplyDeleteएक रेडलाइट के बाहने आपने लोगों की मानसिकता और नए जमाने का एकदम सही चित्रण किया है।
बढिया लिखते हो
बधाई
बडा ही जीवंत चित्रण किया है...कुश !!
ReplyDeleteथोड़ा भावुकता का भी पुट लिए ..
Awesome !!!