Tuesday, January 5, 2010

साईड 'ए' वाली ज़िन्दगी भी क्या जिंदगी थी....


रेट्रो मेमोरीज...  उन गलियों की जहाँ छीले हुए घुटनों के साथ.. सड़क पर गावस्कर को पीछे छोड़ने की कसमे खायी थी .. आवारगी कंधो पर ढोते हुए पापा से नज़रे बचाते घरो में घुसने का नाम ही तब ज़िन्दगी हुआ करता था.. कैलंडर के पन्नो के साथ उम्र भी बदल चुकी है...

पर रेट्रो जमाना अभी भी अन्दर ही अन्दर किसी कोने में दुबका हुआ पड़ा है.. एक चवन्नी में दुनिया जहान ढूंढ लेने वाली उस उम्र..... उस खालिस उम्र में बीती हर एक बात रेट्रो हो चुकी है... ठीक उस उम्र में जब बेफिक्री का लिहाफ ओढ़े एक टांग पे टांग टिकाये घंटो कही पड़े रहते थे.. और दुनिया को बदलने की ख्वाहिशे जेब से बाहर सरक रही होती.. ईमान तब स्कूल के बस्ते में साबुत पड़ा मिलता था.. और दुनियादारी नाइजीरिया के किसी सुदूरवर्ती इलाके में रही होगी शायद..

कागज़ तक पर पांव पड़ने पर विधा माता से माफ़ी माँगना और टिश्यु पेपर के खास पलो में इस्तेमाल के बीच की दुनिया.. प्रलय आने से पहले ही शायद दो भागो में बँट चुकी है.. नागराज.. फेंटम.. बांकेलाल.. हवालदार बहादुर.. एक उम्र इन लोगो के साथ भी गुज़र डाली जो साले दुनिया में ही कही नहीं है..  दिवाली के बाद जो पैसे मिलते थे.. उससे बाकी कई दिनों नागराज से मुलाक़ात पक्की हो जाती थी.. अठन्नी में किराये पर एक कोमिक्स आती थी.. जिसे आठ लोग पढ़ते थे और अठन्नी बँट जाती..

खाना खाने के लिए मम्मी की आवाज़े.. या दूध का गिलास देखकर पिकासो की पेंटिंग सा मुंह.. बचपन की उन तमाम कीमती चीजों से भरी हुई जेबे.. जिन्हें बेचने पर बाज़ार में दो कौड़ी भी ना मिले.. खाली सडको पर चक्कों को लकड़ी से चलाते हुए पास से गुजरती हुई कारो को देखकर आँखों में सपने ठूंस लेना.. रेल की पटरियों पर सिक्के रखना.. और सिक्को को सोने की अशर्फी में बदल जाने के लल्लू ख्याल...  सड़क पर जमा पानी में जानबूझ के पांव रखना.. एक छक्के में कोने वाली आंटी की बालकनी की लाईट फोड़कर भागना.. बिना हाथ धोये गरमा गरम जलेबियों पर टूट पड़ना.. और दोस्त की आवाज़ पे पंखा टी वी सब चालु छोड़ जाना..

भगवान चाहे मिले ना मिले.. पर साईकिल का ताला खुला मिलना... कैंची साईकिल चलाकर मोहल्ला नाप लेना.. शाम स्टाइल मारने के लिए बैडमिन्टन खेलना और फिर कॉक को 'उनके' घर में फेंकना.. फिर लेने जाना.. वो कॉक भी अगर जिन्दा हुई तो कही रेट्रो मोड़ में पड़ी मिलेंगी.. सीडी और आईपॉडस का तब जन्म भी नहीं हुआ था.. उलझती कैसेटो की रील को घुमा घुमाकर टेप रिकोर्डस में चलाना.. साईड 'ए' वाली ज़िन्दगी भी क्या जिंदगी थी.... अब लगता है किसी ने पलट के ज़िन्दगी की साईड 'बी' लगा दी है..

और जो कुछ युही पड़ा मिला.. 
दूरदर्शन का रुकावट के लिए खेद है.. या फिर गुमशुदा की तलाश.. सिबाका गीत माला.. या मिले सुर मेरा तुम्हारा.. हमदर्द का टोनिक सिंकारा.. केम्पा कोला.. हिंदी फीचर फिल्म का शेष भाग.. लेम्रेडा स्कूटर.. बोल्बेटम पैंट... कानो पर आते हुए बाल.. और लास्ट में आर डी बर्मन का........वकाऊ 

स्पेशल थैंक्स टू मेजर गौतम.... जिनकी पोस्ट ने आज कुछ लिखने को मजबूर किया.. वैसे ये तो अपना रेट्रो मोड़ था.. कुछ आपका भी तो होगा.. ?