Monday, December 29, 2008

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

कही आज फिर बॉस ने रात को देर तक रोक लिया तो..? नही वो साफ़ कह देगी.. ऑफीस टाइम के बाद मैं नही रुक सकती.. पहले तो गर्मिया थी शाम देरी से होती थी पर अब नही अब अंधेरा जल्दी हो जाता है.. मगर वो बॉस को कैसे मना करे समझ नही पा रही थी.. नौकरी का भी सवाल था.. अगर ये नौकरी भी हाथ से गयी.. तो क्या होगा..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

अगर पहले कभी ऐसा होता तो वो कभी मना नही करती.. लेकिन पिछले सात दिनों से जो उसके साथ हो रहा है.. उसने उसे विचलित कर दिया है.. इन सात दिनों में तीन बार उन लड़को ने उसके साथ बदतमीज़ी की है.. रोहित को इस बारे में बताया पर उसका कहना है तुम घर बदल दो.. कही और घर ले लो.. मगर कैसे? ये घर कितनी मुश्किलो से मिला है.. फिर यहा किराया भी कम है.. लेकिन उन लड़को का क्या.. पहले वो बैठे बैठे कुछ भी बोलते रहते थे.. तब तक तो ठीक था मगर.. कल, कल रात तो वो मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया..

अकेले अकेले कहा जा रहे हो?

अचानक सब कुछ फिर से उसके चेहरे के सामने आ गया.. कल रात ऑफीस की केब उसे गली के बाहर तक छोड़ के गयी थी.. उसने तेज़ कदमो से घर की तरफ बढ़ना शुरू किया..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

जैसे ही वो थोड़ा आगे बढ़ी. की एक लड़के ने उसका रास्ता रोक लिया..

अकेले अकेले कहा जा रहे हो?

दूसरा जो पीछे बैठा था वही से बोला.. हमे भी तो साथ ले लो जहा जा रहे हो? और सब ज़ोर से हँसने लगे..

प्लीज़ मुझे जाने दिजिये.. बोलते हुए उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

अरे तो हमने कहा मना किया है.. जाइए ना.. पर हमे भी तो साथ ले जाइए..

उसकी आँखो में आँसू आ गये..

लड़का बोला अरे ये तो रोने लग गयी.. विदाई का वक़्त आ गया है..

वो रोते हुए भागने लगी.. लड़के उसके पीछे पीछे चलने लगे.. वो रोती जा रही थी.. तेज़ कदमो से जाने लगी.. थोड़ी दूर तक चलने के बाद लड़के लौट गये.. वो रोती हुई घर में चली गयी..


उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

उसको गुस्सा आ रहा था खुद पर.. कितना कुछ बोल के आई थी घर पर.. माँ मैं सब संभाल लूँगी.. पापा मैं हू आपकी बहादुर बेटी.. कुछ नही होगा पापा.. कितनी लड़किया अकेली रहती है बाहर.. मैं सब संभाल लूँगी..

कुछ भी तो नही संभाल पाई थी वो.. क्यो लड़ झगड़ कर आ गयी वो यहा.. अपनी सहेलियो से बोला था उसने.. तुम्हारी तरह नही रहूंगी.. रसोई में जीकर रसोई में नही मरना मुझे.. मैं सबको दिखा दूँगी मैं कौन हू..

आज जो हुआ.. उसने रोहित को फ़ोन पे बताया.. रोहित ने फिर से इस बार उसको घर बदलने के लिए कहा..

मैने तो तुम्हे पहले ही मना किया था.. वहा मत रहो.. अब भुगतो इतना बोल कर रोहित ने फ़ोन रख दिया..

उसने फ़ोन को उठाकर ज़ोर से दीवार पर फेंका..

क्या हुआ मैडम? ऑफीस का चपरासी भागता हुआ उसके कॅबिन की तरफ आया..

कुछ नही एक गिलास पानी ले आओ..

उसने फोन लगाया और अपनी माँ को सब कुछ बताया.. उसे लगा उसकी माँ उसे वापस घर बुला लेंगी..

पर उसकी माँ बोली.. "तू मेरी बेटी होकर डर गई..पगली तू एक औरत है.. जा और जाकर बता की एक औरत की शक्ति क्या है.. औरत सिर्फ़ लक्ष्मी या सरस्वती ही नही होती.. वक़्त पड़ने पर वो काली और दुर्गा का रूप भी ले सकती है.. क्या यही सिखाया है मैने तुझे डर के हार मान जाएगी तू.. आज अगर तू डर गयी तो वो तुझे रोज़ डराएँगे.. डरने से कुछ नही होगा बेटी जाकर बता तू किसकी बेटी है बता दे.. बता दे.."

वो अपनी कुर्सी से खड़ी हुई.. एक अनोखी शक्ति का अनुभव हुआ उसे.. उसकी आँखो में एक फ़ैसला था..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

चपरासी पानी देकर जाने लगा..

"सुनो.. ये लिस्ट लो और सामने से ये सामान ले आओ.." वो बोली

मैडम जी ये सामान ?

"जो कहा वो करो.. जाओ.." उसने फ़ैसला कर लिया था.. आज पहली बार वो देर होने से घबरा नही रही थी..

केब ने उसे छोड़ा .. वो गली की तरफ़ बढ़ी ..

उसकी धड़कने बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी..

सारे लड़के वही बैठे हुए थे.. वो उनकी तरफ़ बढ़ी.. एक लड़के की बाइक के पास जाकर उसने बाइक को लात मारकर गिरा दिया.. हे दम तो आ.. वो गरज़ी .. लड़के सहम गये.. वो कुछ समझे नही.. उसने अपने बालो में लगा क्लचर खोला और बोली आ अगर अपनी माँ अपनी का दूध पिया है तो..

उनमे से एक लड़का तेज़ी से उसकी और बढ़ा.. वो तैयार थी.. जैसे ही वो पास आया.. उसने अपने पर्स में रखा डियो निकाला.. और उसकी आँखो में स्प्रे किया.. लड़का ज़ोर से चिल्लाया.. वो आगे बढ़ी और उस लड़के के पेट पे ज़ोर से लात मारी..

बाकी के लड़के आगे आए.. साली तेरी ये हिम्मत... और चारो लड़के उसके सामने आए.. उसने अपने पर्स में से लाल मिर्च निकाली और उनकी आँखो में उछाल दी.. एक लड़के ने उसे धक्का दिया.. वो नीचे गिर गयी.. उसका पर्स दूर जा गिरा.. वो लड़का आया और उसके बाल पकड़ कर.. घुमा दिया..

उसने अपनी कोहनी से लड़के के पेट में मारा.. लड़का संभल नही पाया.. वो उछली... दूसरा लड़का आया... लड़की ने उसकी टाँगो के बीच में ज़ोर से लात जमा दी.. लड़का उछलकर पीछे जा गिरा.. वो आगे बढ़ी.. बाकी तीनो लड़को को धक्का दिया.. और उनके पेट में ज़ोर से लात मार के तीनो को गिरा दिया..

उनमे से एक उठा.. उसने चाकू निकाला.. और लड़की के सामने खड़ा हो गया.. लड़की ने अपनी आँखे बंद की और ज़ोर से चिल्लाते हुए छलाँग लगाई.. लड़के की बाइक पर एक पाँव लगाते हुए दूसरे पाँव से लड़के के मुँह पर वार किया.. लड़का तैयार नही था.. उसके हाथ से चाकू छूट कर गिर गया.. लड़की ने चाकू हाथ में लिया और लड़के के सीने पर पाँव रखकर खड़ी हो गयी..

उग्रचंडा प्रचंडा च चंडोग्रा चंडनायिका..
चन्डा चंडवती चैव चंडरूपातिचंडिका..


उसके खुले बाल हवा में लहरा रहे थे..बालो के बीच से झांकती उसकी रक्त सी लाल आँखों को देखकर लड़के काँप उठे.. गिरा हुआ लड़का हाथ जोड़कर माफी माँग रहा था... बाकी चारो लड़के उसके पाँव में गिरकर माफी माँगने लगे.. उसने चाकू फैंका...अपना पर्स उठाया और अपने हाथ झटकते हुए आगे बढ़ गई..

लड़के सहमे हुए उसे जाते हुए देख रहे थे..

ज्वालाकारालाम्त्युग्रमं अशेषासुरसूदनं..
त्रिशूलं पातुनोऽर्भीते भद्रकाली नमोस्तुते..


वो घर पहुँची... रोहित के बीस मिस काल थे.. उसने रोहित को फ़ोन किया... रोहित बोला कहा हो तुम मैं कब से तुम्हे फ़ोन कर रहा हू.. मैने तुम्हारे लिए घर देख लिया है..

क्या हुआ.. कुछ बोल क्यो नही रही हो.. जवाब दो ना..

तुम मेरे लिए अब परेशान मत होना रोहित... मुझे घर नही बदलना.. मैने अब अपना इरादा बदल दिया है.. गुड बाय

नमस्चंडिके चंडोर्दंडलीला लसत्खण्डिताखण्डलाशेषशत्रो..
त्वमेका गतिर्देवी निस्तार्हेतु नमस्ते जगत् तारिणी त्राहि दुर्गे..

Wednesday, December 24, 2008

गर खाली बैठे है तो ऊब जाइए... वरना चुल्लू भर पानी में डूब जाइए.

गर खाली बैठे है तो ऊब जाइए...
वरना चुल्लू भर पानी में डूब जाइए..


उपरोक्त पंक्तियो का किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नही है.. और यदि है तो वो पूर्णतया काल्पनिक है..


अब चलते है आज की पोस्ट की तरफ..

"परिवर्तन प्रक्रति का नियम है" छोटा था तब पड़ोस के एक घर में पोस्टर पे लिखा था.. बाद में उस पोस्टर को बदल के वहा रिकी मार्टिन का पोस्टर लग गया.. कुछ दिनों बाद वहा लियनार्डो आ गया.. और आज वहा दो बिल्लियों की तस्वीर लगी है.. वाकई परिवर्तन संसार का नियम है..

सब कुछ बदल रहा है.. ज़िंदगी लाइफ हो गयी है.. दोस्त ड्यूड हो गये है.. माँ पिघल कर मोंम बन गयी है.. मुन्ना अब मॉंटी बन गया है.. मनोहर काका का बेटा राकेशनाथ अब रिंकू बन गया है..


बहुत कुछ हमारे घर में भी बदला है.. कभी टेबल फ़ैन को घूमते हुए रखकर चारो भाई एक कमरे में सो जाते थे.. आज सबका अपना कमरा बन गया है उनमे कूलर लग चुके है.. पहले पड़ोसी के यहा टी वी देखने जाते थे.. और वो भी उन पडोसियों के यहाँ जो साले इतने कमीने थे की नीचे ज़मीन पर बिठा देते थे.. ये भी नही सोचते की बच्चे की चड्डी फटी हुई है.. पर आज सबके कमरे में अपना टी वी है.. डिश टी वी और टाटा स्काइ के साथ.. बदल रहा है. सब कुछ..


अगर आप पढ़ते हुए ऊब रहे थे.. तो एक बार सबसे उपर लिखी दो लाइन पढ़ लीजिए.. मुझे लगता है आप डूबना पसंद करेंगे.. तो इस पोस्ट में डूब जाइए.. या फिर वेले बैठे ऊब जाइए..

बदलाव ज़रूरी है.. हर चीज़ में..

जो पीढ़ी बदलाव में विश्वास नही करती वो तुच्छ व्यक्तियों की पीढ़ी कहलाती है..- अनूप शुक्ल "नैनीताल वाले" ..


तो अब चलते है बदलाव की तरफ बदलाव कैसे किए जाए...

लाइब्रेरी में जाकर यदि आपके मन को शांति नही मिल रही है.. तो वहा बैठकर ऊबने से अच्छा है किताब लेकर किसी ऐसी जगह जाए जहा आपको शांति मिलती हो..

ऑफीस में अगर आज कोई काम नही है तो बैठे बैठे समय वेस्ट ना करके दोस्तो या रिश्तेदारो से मिलने चले जाए.. सच मानिए उन्हे भी बहुत खुशी होगी की आप उनके लिए वक़्त निकालते है..

जिस रास्ते से रोज़ घर जाते है.. उसे आज बदल दीजिए.. किसी नये मोड़ से मुड़कर देखिए..

अपने फ़ोन में कुछ खास दोस्तो के नाम बदल दीजिए.. जैसे अपनी वाइफ का मोबाइल नंबर एमरजेंसी के नाम से डाल दीजिए.. अपनी मम्मी के लिए लिखिए गोड'स गिफ्ट... बॉस का नाम भूतनाथ और किसी खास दोस्त का नाम उसकी गर्ल फ्रेंड के नाम से सेव कर दीजिए..

अगर आप ब्लोगर है और रोज़ एक ही तरह की पोस्ट लिखते लिखते ऊब गये है.. तो अपना विषय बदलिए.. उदहारण के लिए अगर आप बहुत ही रोने धोने वाली पोस्ट लिखते है.. तो अब अंट शंट लिखिए.. अपनी शैली बदलिए..

कुछ भी जो आप बदलकर जीवन में नये रंग भर सकते है.. वैसा करिए.. वरना आप खाली समय में बैठे बैठे ऊब कर ईश्वर की दी हुई ज़िंदगी का समय वेस्ट कर सकते है.. लेकिन ये पल लौट कर नही आने वाले ...


अब एक खबर -


खबर मिली है की शेयर मार्केट के गिरने की अति तीव्र प्रक्रिया से लोग ऊबने लगे है..

क्या कहा? तीव्र प्रक्रिया से भी लोग ऊबते है????

Wednesday, December 10, 2008

ज्ञानदत्त पांडे और डाक्टर अमर कुमार

देखिये न मैं भी कितना बेशर्म हूँ फ़िर आ गया हु अपनी पोस्ट लेकर..

आप लोग सोच रहे होंगे कि ये कुश साला रोज़ रोज़ अपने ब्लॉग पर कोई नयी पोस्ट लेकर आ जाता है.. और फिर हमे उसे ज़बरदस्ती पढ़ना पड़ता है.. फिर टिपियाना भी पड़ता है.. उपर से उसको पढ़ पढ़ कर बोर और हो गये है.. तो दोस्तो घबराईए मत आपकी इसी बोरियत को दूर करने की तरकीब लेकर आया हू.. मैं जानता हू की ब्लॉग जगत के दो दिग्गज ज्ञानदत्त पांडे और डाक्टर अमर कुमार.. की लेखन स्टाइल के मेरी तरह आप सब भी मुरीद है... तो मैने सोचा क्यो ना मेरी ब्लॉग पर आपको उन्ही की स्टाइल में कुछ परोसने का कार्यक्रम किया जाए... क्या कहा इतनी हिम्मत कहा से आई?

अजी पिछली बार जब इसी स्टाइल में हमने अनुराग जी, रक्षंदा, अजीत जी, और शिव कुमार जी की स्टाइल में लिखा था तब जो हमको आप लोगो ने शाबाशी दी.. बस उसी का ग़लत मतलब निकाल कर हम फिर हिम्मत कर लिए है...

तो इस बार दो दिग्गजो की स्टाइल में पढ़िए फिर से एक बार...


मानसिक हलचल वाले श्रीमान ज्ञानदत्त पांडे की लेखन स्टाइल



सुबह गाड़ी से ऑफीस जाते हुए सड़क के बीचो बीच हमारी गाड़ी खराब हो गयी.. जब तक ड्राईवर ठीक कर रहा था.. हमने सोचा बाहर घूम लिया जाए.. मैं अपने मतलब की चीज़े सड़क पर सर्चने लग गया.. सड़क के दूसरी तरफ मैंने देखा एक सब्जी वाला आलू और टमाटर बेच रहा था.. उसने अपने ठेले पर फिक्स रेट का भी बोर्ड लगा रखा था.. हम कन्फ्यूजिया गये की सब्जी वालो ने भी अब फिक्स रेट रखना शुरू कर दिया है..

उसके ठेले पर करीब दस लोग खड़े थे.. जितनी देर मैं वहा खड़ा रहा.. करीब चालीस लोगो ने वहा से सब्ज़ी खरीदी.. इस बीच कुछ लोग भाव पूछ कर भी चले गये.. कुछ ने आवश्यकता से अधिक सब्ज़ी खरीदी.. सब्ज़ी वाले ने अपने ठेले के नीचे वाली साइड में स्टेट काउंटर लगा रखा था.. मैं हमेशा कहता हू की इस तरह के स्टेट सबको अपने ठेले पर लगाने चाहिए..

ये है उस ठेले वाले का सब्ज़ी बेचने का ग्राफ..


इस सब्जी वाले ने आज अधिक दाम में सब्जी बेचकर बहुत मुनाफा कमाया है लेकिन बी बी सी ने कह दिया है.. की यदि इसी दाम पर सब्जिया बेची गयी तो अगले सप्ताह में महंगाई इतनी बढ़ जाएगी की आपको सब्जी खरीदने के लिए लोन लेना पड़ेगा..



बी बी सी की पोल रिपोर्ट




हो सकता है कुछ लोगो को मेरी ये पोस्ट समझ नही आई होगी.. ये मध्य वर्ग की स्नोबरी का ही असर है.. की उन्हे इस तरह की पोस्ट समझ नही आती.. और वो कन्फ्यूजिया जाते है... किसी को ये भी लग सकता है की मेरी ये पोस्ट बकवास है... वैसे यह जरूर है कि आपकी समझ का सिगनल-टू-न्वॉयज रेशो (signal to noise ratio) कम होता है; कि कई बातें आपके ऊपर से निकल जाती हैं। अब कोई दास केपीटल या प्रस्थान-त्रयी में ही सदैव घुसा रहे, और उसे आलू-टमाटर की चर्चा डी-मीनिंग (d- meaning – घटिया) लगे तो आप चाह कर भी अपनी पोस्टें सुधार नहीं पाते।


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कुछ तो है.....जो कि , यु ही निठल्ला, अचपन.. पचपन बचपन सरीखे ब्लोग्स के स्वामी गुरूवर डा. अमर कुमार की लेखन स्टाइल..




हिल हिल हिल पोरी हिल्ला ज़रा कमर तू अपनी हिल्ला... अपुन भी अपनी कमर हिल्ला रेला है.. क्या कहा ये कौनसी भाषा है.. अब ये अजीत भाई का ब्लॉग तो है नही जहा दो कोस पे भाषा बदले ये तो हमारी पर्सनल प्रॉपर्टी है.. यहा तो ऐसी ही भाषा मिलेगी.. बोले तो क्षेत्रीय भाषा.. क्या है की आज कल हर जगह क्षेत्रवाद ही फैल रहा है.. फिर भी आप अगर शुद्ध भाषा पढ़ना चाहते है तो उधर क्यू नही जाते?... हा जी उधर ही हमारे गुरु जी के हिया.. वहा पर फाइव स्टार भाषा में बात की जाती है..

ये हम है


हमारा क्या है हम ठहरे कच्ची बस्ती की नाली में रेंगने वाले कीडे.. कभी इसकी पीठ पर चढ़े तो कभी उसकी पीठ पर.. हालाँकि हम एक बेताल अपनी पीठ पर लिए घूमते है.. सही समझे एक ही तो जान की दुश्मन है हमारी पंडिताइन..

वैसे बेतालो की कमी तो ब्लॉग जगत में भी नही है.. एक प्रेत यहा घूमता विचरता पाया जाता है.. पर हमने भी पहाड़ी वाली मज़ार के मलंग से लिया हुआ ताबीज़ पहन रखा है.. ऐसे भूतो को तो हमने धूल चटा दी है..

वो तो आज अनुरगवा की डिमांड थी इसलिए मैं आधी रात को बैठ कर ये पोस्ट लिख रहा हु.. वरना अभी दो पैग लगाकर सो चुका होता...

रूकावट के लिए खेद है..., मुसलचंद खरदूषनचंद की वारिस पंडिताइन यहा तांकझांक कर हंसते हुए चली गयी, जाते जाते एक बोली कस गयी वा अलग से, "यह क्या अलाय बलाय लिख रहे हो? न कोई सर पैर है, न कोई विषय! अगर किसी की टिप्पणी आएगी भी तो यही होगी की आप जैसे चुगद को लिखने उखने की कोई तमीज़ भी है?" उनका हसना फिर शुरू हो गया.. हंस लो भाई हंस लो... आपकी इसी हँसी में तो मेरी ज़िंदगी फँसी है!

मैने कहा जाओ भागवान तो आँखे दिखाते हुए अब सोने का फरमान जारी करते हुए चली गयी.. पर मेरी तो शिव भाई से चेट चल रही है.. इस से पहले की श्रीमती जी दोबारा आए मैं भागता हू और शिव भाई आपसे यही कहूँगा.. 'अभी टेम नही है शिव भाई..'

तो अभी मैं चलता हू मित्रो (कहने में क्या जाता है), यदि आपमे से कोई इस नीचे बने हुए चोकोर टिप्पणी बक्से की और जाए तो किसी भी भाषा में कुछ भी फेंक सकता है...

Wednesday, December 3, 2008

एक तो बरसाती मेंढक, दूसरा चश्माधारी, तीसरा आँख का अँधा और चौथा भोंपु

वक़्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है.. ये तो सुना था.. लेकिन बेवक़्त कोई गधा ही किसी को अपना बेटा बना ले ये कभी ना देखा ना सुना...

खैर उपरोक्त पंक्तियो का मेरे इस लेख से कोई लेना देना नही.. किसी घटना, पात्र अथवा जीवित मृत, या शरीर से जीवित और आत्मा से मृत व्यक्ति से भी इसका कोई संबंध नही है..

आज हम आपको कुछ लोगो से मिलवाने वाले है

एक तो बरसाती मेंढक, दूसरा चश्माधारी, तीसरा आँख का अँधा और चौथा भोंपु



1) बरसाती मेंढक - जो केवल बरसात में बाहर निकलते है

बरसाती मेंढको के बारे में आप लोगो ने सुना होगा.. जो केवल बरसात में ही बाहर आते है और बारिश बंद होने के बाद दुबक लेते है.. ऐसे ही कुछ मेंढक चुके है..

उदहारण - पिछले कुछ दिनों से भारत का नपुंसक मीडिया जब चिल्ला चिल्ला के हिंदू आतंकवाद भगवा आतंकवाद की आवाज़े लगा रहा था... तब ये मेंढक छुपे हुए थे... तब इन्हे ये नही लगा की वक़्त सांप्रदायिकता को छोड़कर लोगो को एक करने का है.. और लोगो को समझाना है की आतंकवादी का कोई धर्म नही होता..

पर अब ये आएँगे और समझाएँगे की आतंकवादी का कोई धर्म नही होता कोई मज़हब नही होता... अरे भईया तो किसने कहा की धर्म या मज़हब होता है, हमे तो पता ही नही चलता अगर आप नही बताते तो




2) आँख का अँधा - ये धरती पर ग़लती से आए वो बेचारे है जिनकी आँखे तो है पर वो देख नही सकते


उदहारण - जैसे कोई कहे की आतंकवादी मासूम है.. उन्हे गुमराह किया गया है..

चलो मान लिया की इनको किसी ने इस राह पर धकेला है... तो फिर जिसने इनको धकेला है इस राह पर, उनको किसने धकेला है.. और जिनको उन्होंने धकेला है.. उन्हे इस राह पर किसने धकेला है..

और अगर सिर्फ़ इन आतंकवादियो के मन में नफ़रत पैदा की गयी तो जिसने पैदा की उसके मन में नफ़रत कहा से आई .. क्या वो अपनी माँ के पेट से नफ़रत लेके पैदा हुआ?

और अगर ऐसा है तो फिर ये आतंकवादी क्यो नही नफ़रत लेकर पैदा हो सकते?

मार्कोस के अफ़सर ने स्पष्ट शब्दो में कहा की ये पूरी तरह से प्रशिक्षित थे.. वो जानते थे की वो क्या कर रहे है..

हमारी इच्छाशक्ति के विरुद्ध कोई किसी को इस बात के लिए नही बहला सकता की तुम जाकर मर जाओ पर लोगो को मार के आओ.. जिसने ये काम किया है वो ये जानते थे की वो क्या कर रहे है..





3) चश्माधारी - इनके पास एक चश्मा होता है ये सबको उसी चश्मे से देखते है...

ये वो व्यक्ति है जो कहेगा की मैं एकता चाहता हू.. ये वही बात हो गयी की तेज धूप में खड़ा व्यक्ति कहता है की मुझे धूप चाहिए.. फिर वो बताता है की देखो वहा छाया है और यहा धूप, मैं चाहता हू यहा पर भी धूप आए..

उदहारण - जैसे कोई कहे की तुम मुसलमान हो और वो हिंदू है.. मैं चाहता हू तुम दोनो एक हो जाओ..

एक होने की बात कैसे हो रही है. अलग करके.. ऐसे लोगो से मैं यही कहूँगा की हम लोग एक ही है और एकता से ही रहते है.. पर आप जैसे लोग बार बार हमे आकर ये एहसास दिलाते है की हम अलग है..





4)चुनाव में काम आने वाला भोंपु - जो सिर्फ़ बोलता है सुनता नही है..

भोंपु ऐसे होते है जो सिर्फ़ सुनाने का काम करते है.. सुनते नही है. ये वही बात सुनाते है जो इनको सुनानी हो.. इनके खुद के कान नही होते.. पर यदि ग़लती से आप ये समझ ले की चलो कोई बात नही कान नही है पर दिल तो होगा बात समझ तो सकते है.. और बात को इन्हे बताने गये तो ये आपकी बात ही अनसुनी कर देंगे..

उदहारण - जैसे आपने किसी ब्लॉग पर कुछ पढ़ा और आपने कमेन्ट किया तो ये भोंपु देखेंगे यदि आपका कमेंट इनकी विचारधारा से मेल ख़ाता नही होगा तो ये उसे दबा देंगे.. क्योकि ये नही चाहते की इनकी पॉल दूसरो के सामने खुल जाए..

तो दोस्तो आज की मुलाकात का ये सिलसिला समाप्त होता है..


अंत में
मैं न हिंदू हु न मुस्लिम, मैं एक भारतीय हु और यही मेरा धर्म है,