गर खाली बैठे है तो ऊब जाइए...
वरना चुल्लू भर पानी में डूब जाइए..
उपरोक्त पंक्तियो का किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नही है.. और यदि है तो वो पूर्णतया काल्पनिक है..
अब चलते है आज की पोस्ट की तरफ..
"परिवर्तन प्रक्रति का नियम है" छोटा था तब पड़ोस के एक घर में पोस्टर पे लिखा था.. बाद में उस पोस्टर को बदल के वहा रिकी मार्टिन का पोस्टर लग गया.. कुछ दिनों बाद वहा लियनार्डो आ गया.. और आज वहा दो बिल्लियों की तस्वीर लगी है.. वाकई परिवर्तन संसार का नियम है..
सब कुछ बदल रहा है.. ज़िंदगी लाइफ हो गयी है.. दोस्त ड्यूड हो गये है.. माँ पिघल कर मोंम बन गयी है.. मुन्ना अब मॉंटी बन गया है.. मनोहर काका का बेटा राकेशनाथ अब रिंकू बन गया है..
बहुत कुछ हमारे घर में भी बदला है.. कभी टेबल फ़ैन को घूमते हुए रखकर चारो भाई एक कमरे में सो जाते थे.. आज सबका अपना कमरा बन गया है उनमे कूलर लग चुके है.. पहले पड़ोसी के यहा टी वी देखने जाते थे.. और वो भी उन पडोसियों के यहाँ जो साले इतने कमीने थे की नीचे ज़मीन पर बिठा देते थे.. ये भी नही सोचते की बच्चे की चड्डी फटी हुई है.. पर आज सबके कमरे में अपना टी वी है.. डिश टी वी और टाटा स्काइ के साथ.. बदल रहा है. सब कुछ..
अगर आप पढ़ते हुए ऊब रहे थे.. तो एक बार सबसे उपर लिखी दो लाइन पढ़ लीजिए.. मुझे लगता है आप डूबना पसंद करेंगे.. तो इस पोस्ट में डूब जाइए.. या फिर वेले बैठे ऊब जाइए..
बदलाव ज़रूरी है.. हर चीज़ में..
जो पीढ़ी बदलाव में विश्वास नही करती वो तुच्छ व्यक्तियों की पीढ़ी कहलाती है..- अनूप शुक्ल "नैनीताल वाले" ..
तो अब चलते है बदलाव की तरफ बदलाव कैसे किए जाए...
लाइब्रेरी में जाकर यदि आपके मन को शांति नही मिल रही है.. तो वहा बैठकर ऊबने से अच्छा है किताब लेकर किसी ऐसी जगह जाए जहा आपको शांति मिलती हो..
ऑफीस में अगर आज कोई काम नही है तो बैठे बैठे समय वेस्ट ना करके दोस्तो या रिश्तेदारो से मिलने चले जाए.. सच मानिए उन्हे भी बहुत खुशी होगी की आप उनके लिए वक़्त निकालते है..
जिस रास्ते से रोज़ घर जाते है.. उसे आज बदल दीजिए.. किसी नये मोड़ से मुड़कर देखिए..
अपने फ़ोन में कुछ खास दोस्तो के नाम बदल दीजिए.. जैसे अपनी वाइफ का मोबाइल नंबर एमरजेंसी के नाम से डाल दीजिए.. अपनी मम्मी के लिए लिखिए गोड'स गिफ्ट... बॉस का नाम भूतनाथ और किसी खास दोस्त का नाम उसकी गर्ल फ्रेंड के नाम से सेव कर दीजिए..
अगर आप ब्लोगर है और रोज़ एक ही तरह की पोस्ट लिखते लिखते ऊब गये है.. तो अपना विषय बदलिए.. उदहारण के लिए अगर आप बहुत ही रोने धोने वाली पोस्ट लिखते है.. तो अब अंट शंट लिखिए.. अपनी शैली बदलिए..
कुछ भी जो आप बदलकर जीवन में नये रंग भर सकते है.. वैसा करिए.. वरना आप खाली समय में बैठे बैठे ऊब कर ईश्वर की दी हुई ज़िंदगी का समय वेस्ट कर सकते है.. लेकिन ये पल लौट कर नही आने वाले ...
अब एक खबर -
खबर मिली है की शेयर मार्केट के गिरने की अति तीव्र प्रक्रिया से लोग ऊबने लगे है..
क्या कहा? तीव्र प्रक्रिया से भी लोग ऊबते है????
बढ़िया आइडिया दिए हैं आपने "आइडिया महाराज जी "
ReplyDeleteन ऊबने के ...कई काम में लाये जा सकते हैं .डूब के पढ़े हैं हमने यह
डूबने से बच गए तो ब्लॉग पर चीलें उड़ाइये
ReplyDeleteजिस रास्ते से रोज़ घर जाते है.. उसे आज बदल दीजिए.. किसी नये मोड़ से मुड़कर देखिए..
ReplyDeletebahut khub kuch par log aesa nahin kartey
dartey haen sab nayae raasto par chalne sae
but this is an excellent line
कुछ लोग उबने के लिए भी बड़ी मेहनत करते है....ओर कुछ लोग उनके इस काम में बिन मांगे मदद भी.. पर जिंदगी बिना जम्हाई के भी नही चलती.......फ़िर भी आप कहा मानते है...ऊपर देखिये .दाई ओर.....अरे थोड़ा ओर दाये...दिखा आसमान ......लो चला दी कूंची.....भर दिया रंग........
ReplyDeleteक्या करे परिवर्तन संसार का नियम जो है.....
chullu bhar paani me dhoobte dhoobte bahut time lagega, fir se oob jaayenge :)
ReplyDeletewaise badhiya upay hai oob se bachne ka, sivaye ek ke...office me kaam na ho to...shayad boss ke paas baith kar thodi der baat karna jyada better hai, kahin company wale hamse oob gaye to???
पहले पड़ोसी के यहा टी वी देखने जाते थे.. और वो भी उन पडोसियों के यहाँ जो साले इतने कमीने थे की नीचे ज़मीन पर बिठा देते थे.. ये भी नही सोचते की बच्चे की चड्डी फटी हुई है..
ReplyDeleteइब समझ म्ह आगया की ये गालियों का ढेर कहां से इकठ्ठा हुआ है ? :)
. जैसे अपनी वाइफ का मोबाइल नंबर एमरजेंसी के नाम से डाल दीजिए.. अपनी मम्मी के लिए लिखिए गोड'स गिफ्ट... बॉस का नाम भूतनाथ और किसी खास दोस्त का नाम उसकी गर्ल फ्रेंड के नाम से सेव कर दीजिए..
अब कोई हमारे जैसा अनाड़ी वाइफ के नंबर की जगह दोस्त का नंबर सेव करले तो क्या होगा ?
खैर सारे आइडिया किंग के सारे आइडिये मस्त हैं ! कुछ तो आलरेडी प्रयोग में हैं और बाकी भी आजमा कर देख लेते हैं ! :)
रामराम !
हाय ड्यूड दिस इज़ विव हिअर !
ReplyDeleteशांति न मिले तो सरला के साथ डूब जाएं ? :)
बहुत ही अच्छा लिखा है बदलाव पर
ReplyDeleteसूक्ष्म दृष्टि का उचित प्रयोग किया है........
sher to bahut khoob maara hai...Doobne se oobna achchha...Doob jaayenge to blogging kaise karenge?
ReplyDeleteShaandaar post hai!
bahut mast raha ...acche ideas hain...bas implement karne ke der hai...
ReplyDeletehaahaaa मजा़ आ गया खुश.. (आपकी सलाह से आपका नाम बदल दिया :)
ReplyDeleteबहुत अच्छे कुश!
ReplyDeleteआप ने 'ऊब' से बचने के लिए कई उपाय सुझाये...
--लेकिन सच कहूँ ये २४ घंटे का दिन भी छोटा लगता है..
ऊब के लिए कहाँ वक्त है??इतना कुछ करने को होता है-
बस जगजीत जी की [???उन्ही की है शायद] ग़ज़ल याद करती हूँ--
'ये करें या वो करें , ज़िन्दगी दो दिन की है...दो दिन में हम क्या क्या करें??
आज ज्ञानदत्त जी भी ऊबने का जिक्र किए हैं और इधर यह ऊबना आपको भी गिरफ्त में ले लिया है -कहीं यह चिट्ठाजगत में संक्रामकता तक न पहुच जाय -लिखा अपने लाजवाब है !
ReplyDeleteआपको इतना नये नये तरीके से लिखने को सूझता हैं ,कमाल हैं .बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteकिस किस में ऊबिये
ReplyDeleteकिस किस में डूबिये
आराम बड़ी चीज है
मुंह ढंक के सूतिये!
अरे वाह इतने सारे आइडिया एक ऊब से बचने के लिए। कुछ तो अजमा ही सकते है। वाह। वैसे बहुत सही कह गए आप।
ReplyDeleteपहले पड़ोसी के यहा टी वी देखने जाते थे.. और वो भी उन पडोसियों के यहाँ जो साले इतने कमीने थे की नीचे ज़मीन पर बिठा देते थे..
सच्ची मुच्ची।
यह ऊब?
ReplyDeleteहै बड़ी खूब,
हर कोई झेलता है इसे
कहीं वह जाय न डूब
जो निकल जाता है
निकल जाता है
जिसे बदलना है
वह चलता रहता है
निरंतर
उस के लिए क्या उब
और क्या डूब?
ये वही शुक्ला जी है ना जो नैनिताल से ऊब कर कानपुर आ गए????
ReplyDeleteब्लागर होने के नाते नैनीताल वाले अनूप शुक्ल का स्वागत करना पड़ रहा है। वर्ना पूछने का मन ये भी था कि ई का ऊटपटांग बोलते हैं जी! :)
ReplyDeleteआज राष्ट्रीय ऊब दिवस है क्या ??? एकसाथ इतने सारे रँगे पन्ने मिले पढने को ब्लोग्वानी पर .....
ReplyDeleteलेकिन आप तो बस आप ही हैं.......लोग समस्या पर जबतक मगजमारी करेंगे , समाधान प्लेट में सजाये आप हाजिर हो जायेंगे.....इन्तजार कर ऊबने का कोई मौका नही देंगे.......
बहुत बहुत बढ़िया पोस्ट है,कुश भाई. आपके दिए नुस्खों को आजमाकर कौन ऊब को भगा नही सकता ???
ड़ूब कर ऊब पर लिखा लेख खूब रहा।
ReplyDeleteबोले तो झक्कास लिखेला है - humm,
ReplyDeleteशैली बदल के कमेन्टयाये हैं कुश जी :)
क्या बात है बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है.......
ReplyDeleteबदलाव का नया रूप प्रस्तुत किया है बहुत अच्छा लगा पढ़ना बहुत ही रोमांचक है....और दिलचस्प भी ज़िन्दगी को ऐसे ही बदलाव रंगीन बना सकते हैं.,...
अक्षय-मन
हूँ...! तो आपके अनुसार अब मुझे अंट- शंट लिखना चाहिये...?
ReplyDeleteये सही आईडिया दिया..ये परिवर्तन वाला कुश...
ReplyDeleteकुछ हमें भी तो सुझाओ-ये गज़ल पोस्ट कर कर के मैं भी ऊब गया हूं..
अच्छे शब्दों की सजी-धजी अच्छी बातें-वाह !
ReplyDeleteअपने दिमाग से एक मुट्ठी ऊब की दूब उखाड़िये..
फिर एक चुल्लू बेगैरती के पानी में कुड़कुड़ाती आँच
पर निन्दा के छींटें देकर पकाइये !
इस गर्मागरम सूप में एक डली समूल मस्का डाल
कर परोसिये ! निश्चित ही आपके सभी बंधु-बांधव
आपसे ऊबकर पास नहीं फटकेंगे !
Chutila..
ReplyDeletebadhiya hai... :)
ReplyDeleteoobe bilkul nahi...aapki rachna aisa karne hi nahi deti.
ReplyDeletebahut badhiya idea hai
idea to hamesha hi achhe hote hain aapke pass
ReplyDeletelekin kya sach main badlaav achha hota hai
halaki ye bhi sach hai ki parivartan sansaar ka niyam hai
nahi badle to toot jaoge
वाह, क्या जलवे हैं!शानदार!
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएँ
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