Saturday, May 31, 2008

बुरे फंसे बच्चू... ( यादो की गुल्लक फूटी है....)

स्कूल के दिन थे.. शायद नौंवी कक्षा में था, नयी गर्ल फ्रेंड मिली थी. नाम बताया तो रुसवाई होगी ..उम्मीद है आप पूछेंगे भी नही.. हमारा बर्थडे तब शायद दीवाली वाले दिन था.. उसका फोन आया (हमारे पास मोबाइल नाम की चीज़ तबसे ही है) हम बड़े खुश हो गये.. अगले दिन मिलने के वादे के साथ.. मगर रात को ही यार दोस्तो ने कंगाल कर दिया.. जेब में सिर्फ़ 70 रुपये बचे थे.. अगले दिन की चिंता हो रही थी.. फिर ख्याल आया की कल सब रिश्तेदारो के यहा जाएँगे.. सभी से कुछ ना कुछ तो मिलेगा ही पार्टी का अरेंज्मेंट हो जाएगा ..यही सोच के सो गये रात को..

लेट सोए थे तो सुबह आँख खुली 10 बजे, नहा धो के रेडी हुए की मैडम का फोन आ गया.. हम उस से मिलने चले गये.. बर्थडे विश किया उसने. और बोली की मेरे फ्रेंड्स भी पार्टी चाहते है(मेरे आज तक समझ में नही आया की साले लोग दूसरो के बॉय फ्रेंड से पार्टी क्यू लेते है) वैसे तो जेब में 70 रुपये ही थे.. पर मन में आस हो तो फिर क्या बात.. उपर से उसे कैसे कह दे की पैसे नही है.. तो उसको बोला की ठीक है.. आ जाओ

उसने कहा की 1 बजे तक वो अपने फ्रेंड्स को लेकर आ जाएगी और मुझे कॉल करेगी ..ऐसे मौको पर ओम का जाप बढ़ा काम आता है.. मेरे भी आया मेरा फ्रेंड मिल गया रास्ते में, वो अपने मामा के यहा से बोनी करके आ रहा था.. मैने उस से पूछा तो उसने कहा 100 रुपए है.. मैने कहा 100 से कुछ नही होगा तो बोला मौंसी के यहा भी हो आता हू कुछ और मिल जाएँगे.. फिर ले लेना.. मैने कहा ठीक है थोड़ी देर बाद मैदान पर मिलना..(अजी वही मैदान जहा हम क्रिकेट खेलते थे) फिर मैं एक दूसरे दोस्त के यहा गया.. उसके पास 600 थे.. अपना काम बन गया.. 600+100+70 अपना काम तो बन ही गया. मैने उस से कहा एक काम कर तू भी मेरे साथ चल ले. उसने बोला मैं तैयार होकर आता हू.. मैं मैदान पर पहुच गया.. अब 600 वाला दोस्त तो आ गया लेकिन 100 वाला नही आया.. और दिल है की मानता नही आख़िर बात पैसो की थी.. अब जैसे ही वो आया ठीक उसी वक्त मैडम भी आ गई.. उन्होने हमे देखते ही बुला लिया.. और कहा चलो.. अब उसके सामने पैसे कैसे माँगे.. पहले लिए होते तो अच्छा होता...

मैं चुपचाप बाइक उठाकर जाने लगा 700 रूपये मुझे अलविदा कह रहे थे.. या फिर शायद मेरी किस्मत पर हंस रहे थे.. अब सारी लाज जेब में पड़े 70 रुपयो को बचानी थी.. वो आगे आगे मैं पीछे पीछे इतने में हमारे पड़ोस में रहने वाले भैया मिल गये.. बोले मुझे आगे तक छोड़ दे.. अब जब किस्मत रूठी हो तो ऐसा होना आम बात है, काहे के भैया साले मेरी गाड़ी पे बैठ कर आगे जा रही मेरी ही गर्ल फ्रेंड पे लाइन मार रहे थे. मुझे बोलते है की इसको कही देखा है.. मुझे गुस्सा आ रहा था.. क्योंकि हम दोनो बात नही कर पा रहे थे.. मैने सोचा उसे पहले बता दूँगा.. लेकिन बात हुई नही.. खैर उन भैया से पीछा छूटा तो मैने एक कॉफी शॉप पे बाइक रोकी वो भी आ गयी.. और अकेली नही आई साथ में खुशख़बरी भी लाई की उसके दोस्त नही आ रहे है.. हमारा दिल गार्डेन गार्डेन हो गया.. वहा कॉफी 20 रुपये की थी.. और 20 के कोई स्नॅक्स ले लो फिर भी हम अमीर के अमीर.. लेकिन हाय री फूटी किस्मत हमारी.. दीवाली का नेक्स्ट दे था सो कॉफी शॉप बंद!

ले देके एक ऐसा रेस्टोरेंट खुला मिला जिसमे जाने की इज़ाज़त मेरी जेब नही दे रही थी.. वो आगे थी और मेरे पैरो को ज़मीन ने पकड़ लिया.. लेकिन भारी चूमबक से जैसे लोहे को छुड़ाते है वैसे अपने पैरो को छुड़ाकर अंदर गया..

दोनो टेबल पर बैठे बातें कर रहे थे..मैने मेनू देख के कहा की आज तो बर्थडे बॉय की पसंद का ही आएगा.. वो बोली वैसे भी रोज़ तुम अपनी पसंद का ही खिलाते हो.. और उसने मेनू मेरे हाथो से छीन लिया.. मुझे ऐसा लगा जैसे साक्षात यम के दूत आकर मेरे प्राण मुझसे छीन कर ले जा रहे है.... उसके हाथ में पड़ा मेनू मेरी लाचारी पे मुस्कुरा रहा था...

फाइनली उसने दो आइस क्रीम का ऑर्डर दिया.. एक आइस क्रीम ही 50 की थी.. मेरी उंगलियो ने हिसाब लगाया.. दो के 100 और जेब में सत्तर.. अब तेरा क्या होगा रे कालिया ..शोले फिल्म का ये कालजयी डायलॉग वहा पर सच साबित हो रहा था...

वेटर की टिप तो भूल ही गया था... थोड़ी देर बाद आइस क्रीम आ गयी.. मैने पूछा कुछ और लोगी.. उसने मना कर दिया... थोड़ी राहत मिली.. जैसे जैसे आइस क्रीम ख़तम हो रही थी.. साँसे और तेज़ होने लगी.. मैने मन में फिर ओम जपा और हिम्मत करके उसको बोल ही दिया.. की मेरे पास पैसे कम पड़ गये.. और ज़रा बहाना तो देखिए.. 600 रुपए वाले फ्रेंड का नाम लेकर कहा की उसे कुछ रुपए चाहिए थे वो अपनी गर्ल फ्रेंड को कही ले जा रहा था. तो सारे रुपए उसको दे दिए अभी सिर्फ़ 70 रुपए है..

अबकी बार झटका खाने की बारी उसकी थी.. क्योंकि उसके पास भी पैसे नही थे..उस्के हाथ में पकड़ी आइस क्रीम अचानक पूरी पिघल गयी.. उसने कहा पहले क्यो नही बोला.. मैं क्या बोलता.. अब दोनो आइस क्रीम ख़त्म हो चुकी थी.. मैने उस से कहा की तुम बाहर जाओ और वहा जाकर मुझे भी आवाज़ दे देना मैं आऊंगा और भाग जाएँगे... लेकिन उसने मना कर दिया.. वो बोली की मैं बात कर लेती हू.. और कोई चारा नही था..

इतने में सामने से वेटर हाथ में बिल लेकर आ रहा था.. मैने खुद को दो रस्सियो के बीच बँधा पाया और वेटर के हाथ में बिल की जगह खंजर नज़र आ रहा था.. मेरी शायद हलाल होने की बारी थी... वो बिल देके थॅंक यू बोलके चला गया.. अब हम दोनो बैठ गये .. किसी में इतनी हिम्मत नही की खोल के देखे.. खैर मैने बिल खोला .. और मुझे सारे देवी देवता साक्षात सामने नज़र आने लगे.. इस बार भगवान में और विश्वास हो गया था.. पिछले जन्मो के किए अच्छे काम यहा काम आ गये.. उसने मेरी तरफ देखा और पूछा क्या हुआ... मैने उसे बिल दिखाया.. जिसपे लिखा था... दीवाली ऑफर 50% ऑफ ऑन एवरी बिल !!

Friday, May 30, 2008

ये 'उनके' लिए है ....



बादलो की जो आहट हुई.. मैने
सर उठाकर देखा.. वो
आ गयी.... इतने में एक
बूँद आँखो पर आ गिरी..
उसने कहा बारिश आने
वाली है.. मुझे जाना होगा
मैने जवाब नही दिया..
बस उसे देखता रहा
कुछ इस तरह जैसे आज से
पहले कभी देखा नही..
वो मेरे करीब आई और बोली
क्या हुआ बुद्धूराम.. बोलते
क्यो नही.. मेरे होंठ हिले
और सिर्फ़ इतना कह पाए..
आई लव यू... रूही के कोमल
फाहो जैसी मुस्कुराहट
फैल गयी उसके गालो पे..
अपनी पलको को झुकाकर बोली
आई लव यू 2.. और पलट गयी
मैने पूछा दो कौन?
उसने जवाब नही दिया और
जाने लगी.. मैने चिल्ला कर
पूछा सोना बताओ ना दो कौन ?
उसने जाते हुए पीछे मूड
कर देखा मुस्कुराई और सिर्फ़ इतना बोली..
एक तुम और दूसरे भी तुम..

--------------------

Tuesday, May 27, 2008

हिन्दी ब्लॉग जगत की हालत बताता एक ब्लोगर का फ़ोन..

श्रीमति जी मायके गयी हुई थी.. तो हमने सोचा आज कोई वीरोचित काम किया जाए बस फट से हमने टी वी का रिमोट हाथ में लिया और चला दिया आई पी एल का मॅच.. वाह मज़ा आ गया सोचा आज तो छक्के चोक्के देखेंगे बैठकर.. मगर आप तो जानते ही है हमारी किस्मत.. ससुर फोन की घंटी बज गयी.. हम ने कहा धत्त तेरी की ! दो तीन बार घंटी बजी और हमने फ़ैसला किया की आज तो कुछ भी हो जाए फोन नही उठाएँगे.. अमा यार खिलाड़ी यहा चोक्के छक्को से धुलाई कर रहे है.. और यहा ये फोन.. धुलाई! धुलाई से याद आया कही ये फोन हमारी पत्नी का हुआ तो.. नही नही फोन तो उठाना पड़ेगा.. हम फ़ौरन भागे और फोन उठाया.. सामने से आवाज़ आई चरित्रहिन . ब्लॉगस्पोट. कॉम से बात हो सकती है.. आए ये भला कैसा नाम है.. हमने अपना सर खुज़ाया और पूछा क्या नाम फरमाया आपने. फिर से आवाज़ आई चरित्रहिन. ब्लॉगस्पोट. कॉम, एक तो हम पहले ही मॅच में पड़े व्यवधान से नाखुश थे उपर से ये अजीब सा नाम सुनकर हम तेश में आ गये .. हमने कहा यहा इस नाम का कोई नही रहता शायद आपने ग़लत नंबर मिलाया है.. पहले जाकर अपने चस्मे का नंबर ठीक करो फिर फोन लगाओ... वो महाशय भड़क गये उन्हे शायद ये अपनी अस्मिता पर प्रहार लगा.. उन्होने कहा साले तू मुझे जानता नही है.. कल सुबह सारे एग्रिगेटर्स में सबसे ज़्यादा बार पढ़ा गया लेख नही लिख दु तेरे बारे में तो मेरा नाम भी नेतिकता का पतन. ब्लॉगस्पोट. कॉम नही .. हम थोडा घबरा गये एक तो हमे उनकी भाषा समझ नही आ रही थी.. दूसरा हम ठहरे सीधे सादे आदमी और वो भी घर पे अकेले.. पर सामने टेबल पर पड़ी श्रीमति जी की तस्वीर देख कर हमे भी जोश आ गया...
हमने कहा की आपकी प्राब्लम क्या है क्या चाहिए आपको जो आप मुझसे इतनी अभद्र भाषा में बात कर रहे है.. वो हंसा और बोला अबे तू भी क्या एग्रिगेटर से निकाले हुए ब्लॉग जैसी बातें कर रहा है.. सीधी सी बात है अपने को तो अपने ब्लॉग की टी आर पी बढ़ानी है बस.. इसलिए सबसे पहले.. जो सबसे पॉपुलर हो उसके बारे में उल्टा सीधा लिख डालो.. फिर कोई उसका हिमायती आए तो उससे भी दो चार पेंच लड़ा लो.. ऐसी ऐसी गंदी भाषा का प्रयोग करो टिप्पणी में की खुद गलिया जो है वो कोने में जाकर टे टे करके रोने लग जाए.. बस फिर क्या कोई ना कोई आपकी पोस्ट के बारे में अपनी ब्लॉग पे पाँच सौ शब्दो की पोस्ट लिख डालेगा और उस पोस्ट में आपकी अभद्र टिप्पणी को भी हाइपरलिंक कर के देगा.. बस लोग बाग आएँगे आपकी ब्लॉग पर और हो गये आप भी पॉपुलर यही है ब्लॉग का गणित..
ये गणित में तो हम सुसुर हमेशा से ही कमज़ोर रहे.. तो हम तो बस उन साहब को ही सुनते रहे लेकिन अब खुज़ियाने की फ़ितरत हमारी भी तो जाती नही तो पूच बैठे भैया एक बात बताओ की एक बार तो तुमने कर लिया विवाद और हो गये पॉपुलर लेकिन क्या हमेशा कोई तुम्हारी ब्लॉग पढ़ेगा.. वो हंसा और बोला मुझे तो ऐसा लगता है की तू कोई ऐसा ब्लॉग है जिसे पढ़ते सब है पर टिप्पणी कोई नही देता.. अरे प्यारे... विवाद और ब्लॉग्गिंग का तो यशराज और शाहरुख जैसा साथ है.. जब भी लगे की टी आर पी डाउन है.. लिख दो औरत नरक का द्वार है बस फिर क्या महिला मुक्ति के ब्लॉग झंडा लेकर उठ जाएँगे और माँ कसम इस से बढ़िया टी आर पी बढाने का तरीका हमने आज तक नही देखा.. और सोचो एक साथ इतनी सारी महिलाओ की टिप्पणी अपने ब्लॉग पर तो मज़ा ही आ जाएगा.. हमने कहा भाई तुम तो बड़ी कमिनी प्रवर्ति के आदमी लगते हो.. वो बोला प्यारे इसीलिए तो बलॉगर हू
आजकल कमिने ब्लॉग्स ही पढ़े जाते है.. आप किसी को कुत्ता बोल दो बस फिर देखो एक ही रात में आपका ब्लॉग पॉपुलर.. मैं तो कहता हू तुम भी अपना एक ब्लॉग बना लो.. करना कुछ नही है.. बस यहा वहा से कुछ भी उठा लो और छाप दो.. और टिप्पणिया पाओ.. हम बोले लेकिन भाई कुछ भी लिखा हुआ पढ़के कौन टिप्पणी करेगा.. इस बार तो उसने अट्टहास भरा... और बोला प्यारे किसने कहा की लोग पोस्ट पढ़के टिप्पणी देते है.. दो तरीके बताता हू टिप्पणी पाने के या तो लड़की के नाम से ब्लॉग बना ले फिर देख टिप्पणियो का भंडार.. और या फिर आठ दस टिप्पणिया सेव करके रख ले दस रात को सोने से पहले और दस सुबह उठने के बाद टिप्पणी करता चल.. बस टिप्‍पणी के बदले टिप्‍पणी ब्लॉग जगत का सार्वभौमिक सत्य है ये..
हम फिर भी अड़े रहे और कहा लेकिन सारे ऐसे थोड़े ही होते है.. अच्छे लोग भी तो होते होंगे.. इस बार वो उदास हो गया और बोला बस यही सोच के परेशान रहता हू.. कुछ लोग बेवजह फँस जाते है और नये लोगो के लिए दुख होता है.. एक तरफ तो कुछ हिन्दी के बढ़िया ब्लॉगर नये ब्लॉग्स लाने की मुहिम छेड़ते है दूसरी तरफ कुछ लोग इस तरह की गंदगी फैलाते है.. नये ब्लॉग्स का स्वागत कुछ ऐसे होता है की बेचारे दो ही दिन में ब्लॉगिंग छोड़ के आई पी एल देखने बैठ जाते है.. आई पी एल का नाम आते ही हमे याद आया की हम तो मॅच देख रहे थे.. पर अब मॅच में इंटेरेस्ट नही रहा.. सामने से कोई आवाज़ नही आ रही थी शायद उसने सेनटी होकर फोन रख दिया था.. मैं पूरी रात रीसिवर हाथ में लेकर खड़ा यही सोचता रहा.. की क्या यही है हिन्दी ब्लोग्जगत.. सुबह एक ब्लॉग शुरू करने बैठा .. शांत ब्लॉग जगत. ब्लॉगस्पोट. कॉम.. लेकिन अगले ही पल मेसेज आया दिस नेम इस नोट अवेलेबल ट्राइ अनदर नेम..

Monday, May 26, 2008

कीजिए स्वागत एक और नये ब्लॉग का..


कीजिए स्वागत एक और नये ब्लॉग का.. हिन्दी ब्लॉग्स की सुंदर बगिया में एक और कली खिल गयी है.. जी हा हिन्दी चिट्ठाजगत में एक और चिट्ठा शामिल हो गया है.. कृपया इनका हौसला बढ़ाए..

ब्लॉगर का नाम - मनीषा शर्मा
ब्लॉग का लिंक - "मोरपंख"

Friday, May 23, 2008

ये कह नही सकता....



सुबह की लालीमा, छाई है मुझ पर
पर ढल गयी है रात,
ये कह नही सकता

होंठ सील दिए याद मिटा दी
पर भूल गया हर बात,
ये कह नही सकता

आँसू तो रुक गये दिल हुआ पत्थर
पर भूल गया जज़्बात
ये कह नही सकता

हाथ मेरे तो अब भी खुले है
पर मिल जाए कोई साथ
ये कह नही सकता

चारदीवारी बना दी, दिल के चारो ओर
पर ना हो कोई वारदात
ये कह नही सकता

सब अपने से लगते, इस भीड़ में सारे
लगाके कौन बैठा घात
ये कह नही सकता

मायूस सी कलम देखती मुझे
भर जाए फिर दवात
ये कह नही सकता

लिखना तो बहुत है इस मंच पे आकर
पर क्या है मेरी औकात
ये कह नही सकता....

--------------------

Wednesday, May 14, 2008

धमाके से जयपुर हिला है मगर हारा नही..

13 मई 2008 की शाम को कोई भी जयपुर वासी शायद ही भूल पाएगा.. कल शाम जयपुर शहर के सबसे व्यस्ततम चौराहे पर स्थित हनुमान मंदिर पर पूजा हो रही थी. मंगलवार होने के कारण दर्शनार्थी बड़ी संख्या में मौजूद थे.. आरती होने के बाद प्रसाद वितरण किया जा रहा था की एक जोरदार धमाके ने सबको हिला दिया.. लोगो ने बाहर जाकर देखा तो कुछ ऐसा मंज़र था जो जयपुर के लोगो ने कभी सपने में भी नही सोचा था.. हर तरफ खून और चीत्कार.. ये पहला आतंकी हमला था.. उसके बाद एक एक करके इस तरह के कुल आठ धमाके और हुए.. और देखते ही देखते गुलाबी नगरी लहुलुहान हो गयी.. जिस हनुमान मंदिर में ये विस्फोट हुआ था मैं हर मंगलवार को वहा जाता हू... पर कल शाम आधे रास्ते से पता नही क्या सोचकर घर लौट आया..सोचा थोड़ी देर बाद जाऊँगा.. घर आकर खाना खाने बैठा ही था की मेरी एक मित्र सई का फोन आया. सब कुछ ठीक तो है जयपुर में ब्लास्ट हुआ है... फ़ौरन टीवी ऑन किया तो देखा एक नही कुल पाँच विस्फोट हुए धीरे धीरे धमाको की संख्या बदती रही और करीब आधे घंटे में ये संख्या 9 हो गयी.. चारो तरफ दहशत का माहॉल.. घरवाले और मित्र फोन करने का प्रयास कर रहे थे.. पर मोबाइल नेटवर्क जाम हो चुका था.. रात 8.30 के करीब एक एक करके सारे रेडियो स्टेशन बंद हो गये.. बड़ी मुश्किल से फोन मिल रहा था.. सबसे पहले जोधपुर फोन लगाया घरवालो को खबर की मैं यहा सुरक्षित हू.. वो कब से फोन लगा रहे थे मिल नही रहा था.. मुझसे बात करके उन्हे थोड़ी तस्सली हुई..

सबके फोन आ रहे थे.. मैं बस यही कह रहा था की मैं ठीक हू.. मैं ठीक हू.. पर क्या वाकई.. शारीरिक रूप से तो नही पर हा जो मानसकिक क्षति हुई है वो कैसे ठीक होगी.. जयपुर मेरा अपना शहर है.. पिछले 3 सालो से यहा हू.. अपने आँगन को लहुलुहान देख कर मन विचलित हो गया.. बाहर जा नही पा रहे थे तो न्यूज़ चेनल पर देखते जा रहे थे.. पुराने शहर में रहने वाले दोस्तो से संपर्क करने की कोशिश की तो हो नही पा रहा था.. न्यूज़ चेनल पे लगातार ख़बरे आ रही थी.. करीब अस्सी लोगो के मरने और 150 से भी ज़्यादा लोगो के घायल होने की खबर मिली.. सुबह जब जौहरी बाज़ार में रहने वाले मित्र को फोन किया तो उसने बताया की वो तो कोटा में है पर उनकी माताजी और बहन धमाके के वक़्त जौहरी बाज़ार में ही थी.. और सड़क पार करने की कोशिश कर रही थी. की सामने बम विस्फोट हो गया.. बस तबसे उनकी भी हालत खराब है अपनी आँखो के सामने इस तरह का मंज़र देखकर कोई भी विचलित हो सकता है..

मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर के बाहर धमाको का होना इस बात का संकेत देता है की आतंकवादियो ने सांप्रदायिक दंगे फैलाने के मक़सद से किया था.. मगर जयपुर के जज़्बे ने उनके इन शैतानी मंसूबो पार पानी फेर दिया.. शहर के लोगो ने धर्म मज़हब सब भूलकर पीड़ितो की सहायता पुलिस से कंधे से कंधा मिलकर की.. धमाके के कुछ ही देर बाद कई सव्यमसेवी संगठन और जयपुर के लोग सहयता के लिए आगे आए.. जिन लोगो के परिजनो का पता नही लग रहा था जयपुर शहर के बाशिन्दो ने उन्हे अपना परिजन कह कर अस्पताल पहुँचाया.. मरीज़ की जात पात पूछे बिना उनकी सुश्रुषा में लगे रहे.. कोई किसी की ग्लूकोस की बॉटल पकड़े खड़ा था कोई पट्टी कर रहा था.. कोई कत्रिम स्वान्स दे रहा था..

राजस्थान वीरो की भूमि रहा है. यहा की माटी में ही शौर्य भरा हुआ है.. और एक बार फिर जयपुर के लोगो ने एक साथ होकर आतंकी संगठनो को दिखा दिया है की धमाको से हम हिले ज़रूर है पर हारे नही.. और राजस्थान की जड़े इतनी कमज़ोर नही की चन्द धमाको से डर जाए.. जयपुर के सभी मज़हब के लोगो ने एक साथ मिलकर जो काम किया है वो देशभर के लोगो के लिए एक मिसाल है.. अगर आतंकवाद का ख़ात्मा करना है तो एक जुट होना पड़ेगा.. आतंक फैलाने वाले लोग यही चाहते है की सांप्रदायिक दंगे हो इसीलिए पिछले साल राजस्थान के अजमेर जिले की प्रसिद्ध दरगाह में विस्फोट किया गया था और इस बार निशाना बनाया हिन्दुओ की आस्था को.. लेकिन राजस्थान की जनता ने तब भी अपना धेर्य नही खोया.. एक होकर जवाब दिया.. और 'उन्हे' अपने मंसूबो में कामयाब नही होने दिया..

राजस्थान पुलिस ने सभी शहरवासीयो को सुबह सुबह एस एम एस किया की शांति बनाए रखे जल्द से जल्द इस दुस्साहस करने वालो को पकड़ लिया जाएगा.. हमे हमारी सरकार और पुलिस पर पूरा भरोसा है.. ये राजस्थान की अस्मिता पर हमला था और इसे राजस्थान की जनता बर्दस्त नही करेगी... हम एक होकर इनका सामना करेंगे..

जो भी लोग इस हादसे का शिकार हुए है.. मेरी उनके परिवारजनो से पूरण सहानुभूति है.. भगवान उन्हे इतना संबल प्रदान करे की वो इस दुख से जल्द से जल्द उबर पाए..


"जब कुछ इंसान मर जाते है....
तो बहुत ज़्यादा इंसान मारे जाते है.. "

Monday, May 12, 2008

हर दिन माँ का होता है

साल में सिर्फ़ एक दिन माँ का नही होता.. हर दिन माँ का होता है.. इसी तर्ज़ पर आज समर्पित है कुछ शब्द माँ के लिए..

(1)


उम्मीद बूझने वाली है
मगर जाने कॉनसा
तेल डाल रखा है..
लौ बूझने का नाम नही लेती
हर थोड़ी देर बाद
और भड़क जाती है..
शायद जवान बेटे का इंतेज़ार करती
मा की आँखें होगी....



(2)

पड़ोस के घर में
लड़का हुआ था...लड्डू
आए थे घर में
पूरे चार लड्डू थे..
लेकिन घर में हम पाँच
अचानक एक आवाज़ आई
मुझे तो लड्डू नही
खाना... मैं
जानता हू वो माँ ही थी...

Wednesday, May 7, 2008

भगवान का नाम..
















भगवान का नाम ..
बचपन से सुनता आया हू
वो सबकी रक्षा करता है
मैं उसे ढूँड रहा हू,
कुछ लोग कहते है वो नही है
मैं मंदिर जाता हू..
मुझे मिलता है..
मैं उस से बात करता हू
वो सुनता है..
मैं लौट आता हू..
भगवान से मैने कहा तो था..फिर भी
सब वैसा ही है, कुछ बदलता क्यो नही
मा बोल ही रही थी...
आजकल सब माल नक़ली मिलता है
बनिया भी चालबाज़ है..
भगवान पर भरोसा तो है
वो नक़ली नही हो सकते
पर अगर हुए तो..
एक काम करता हू..
देख लेता हू
फिर मंदिर में जाकर...

----------------

Monday, May 5, 2008

जन्म हुआ... माँ खुश... दादी नाराज...


जन्म हुआ ,लोग आए
माँ खुश, दादी नाराज़
पिता रूख़े, पर अच्छे
दादी कहती, और बच्चे
स्कूल नही, घर आँगन
जींस नही, चूड़ी कंगन
खेल नही, चूल्हा चॉका
पढ़ने का, नही है मौक़ा
होली दीवाली, एक सी सब
छुटकारा मुझे मिलेगा कब
बड़ी हुई, लड़का ढूंढो
लड़का मिला, दहेज की चिन्ता
दहेज दिया, सुख नही
सुख मिला, कभी कभी
आख़िर क्या, पता नही
फिर हुआ, पाव भारी
इंतेज़ार है सबको उसका
क्या होगा, शायद लड़का
लेकिन ये तो लड़की हुई
जन्म हुआ, लोग आए
मा ख़ुश, दादी नाराज़.
----------------

Friday, May 2, 2008

साला! छोटा कही का..

सुबह सुबह हम अलार्म घड़ी को धता बता कर सो रहे थे की अचानक फोन की घंटी बज गयी.. वो घंटी तो फिर भी कुछ नही थी.. श्रीमती जी रसोई में से चाय बनाते बनाते बोली अजी इतनी सुबह हो गयी खुद नही उठते कम से कम फोन तो उठा लो.. और हमने उस कर्कश ध्वनि से बचने के लिए फोन उठाया.. सामने से आवाज़ आई.. एडिटर साहब है.. हमने कहा भय्ये लगता है तुम कोई ग़लत नंबर डायल कर दिए हो.. यहा एडिटर नाम की प्रजाति नही पाई जाती है.. उसने पूछा तो फिर आप कौन है.. मुझे थोड़ी देर सोचने के बाद याद आया.. मैने कहा जी मैं तो पति हु..पर आप कौन है.. उसने कहा आप सिर्फ़ पति है? हम बोले भइया शादी कर लो तुम भी सिर्फ़ पति ही रहोगे.. उसने कहा बकवास बंद करो और मेरी बात सुनो.. ये सुनते ही हमे तेश आ गया.. हम बोले जनाब अपनी ज़बान संभालिए इस तरह से हमारी श्रीमती जी के अलावा कोई हमसे बात नही कर सकता.. सामने से आवाज़ आई माफ़ कीजिए भाई साहब.. दरअसल किसी और का गुस्सा आप पे निकाल दिया.. हमने पूछा मगर इतनी सुबह सुबह इतना गुस्सा क्यो हो भाई.. इतना सुनते ही वो थोड़े गंभीर हो गये बोले मैं तो परेशान हो गया हु.. ये साले एडिटर लोग खुद को समझते क्या है.. जो मर्ज़ी आए लिख देते है.. बर्दास्त करते करते उमरा बीत गयी है.. अभी एक किताब पढ़ रहा था.. सात राजकुमार.. इसमे साले राजा की बीमारी दूर करने के लिए हिमालय से जड़ी बूटी लानी थी तो सारे राजकुमार गये.. और साले बड़े बेटे जो थे एक एक करके गये और सौरव गॅंगली की तरह वापस लौट आए..हमने कहा मतलब सौरव की तरह टीम में वापस आ गये.. वो बोले आदमी हो या ढक्कन.. बेटिंग करने गये और जाते ही वापस पॅवलियन में आ गये.. अब बीच में टोकना मत और सुनो... एक एक करके छ: राज कुमार तो खाली हाथ आ गये लेकिन सबसे छोटा राजकुमार ले के आ गया जड़ी बूटी.. अब यार ये कोई बात हुई जब देखो तब छोटा छोटा.. राजा की तीन रानिया हो तो हमेशा ये छोटी रानी ही क्यो बुद्धिमान और सुंदर होती है.. सारे बेटो में छोटा ही लायक होता है.. हमने सोचा बात तो ससुरे ने बिल्कुल ठीक कही है.. हमे बचपन में हमारे पिताजी की याद आ गयी.. हमारे चप्पल जब भी जल्दी घिसते थे तो पिताजी कहते इतनी जल्दी घिस गये.. देख छोटे को वो कैसे चलता है तू हमेशा लल्लू ही रहेगा..
वो बोला अरे श्रीमान इतना ही नही.. ये तो हम बर्दास्त भी कर ले पर अमा ये कोई बात हुई की जादूगर रहता यहा है और उसकी जान सात समुंदर पार वाली काली पहाड़ी की लाल घाटी में सोने के पिंजरे में बैठे नीले तोते में है.. लोगो को अपने काले खाते तो सात समुंदर पार खुलवाते देखा था उनका पैसा तो वही रहता है पर जान कोई कैसे रख सकता है.. इस बात से मैं सहमत नही हुआ क्योंकि मेरी जान भी तो नुक्कड़ वाले मकान पर रहती थी.. वो बात अलग है की मेरी कभी उससे जान पहचान नही हुई.. वो बोला अरे और क्या बताऊ साहब इन राजाओ का तो क्या कहना कोई बंदा तलवारबाजी में जीत क्या गया बेटी की शादी उससे करवा देते है.. अमा यार तुम्हारी बेटी की कोई वेल्यू नही है क्या?.. राजा की बेटी है थोड़ा तो स्टॅंडर्ड मैंटेन करो.. हम बोले ये तो तुम ठीक कह रहे हो जब हमारी शादी की बात थी तो श्रीमती जी के पिताजी हमारे पिताजी के साडू की भाभी के मामा की ताई की ननद के पास में रहने वाले मिश्रा जी के बेटे से पूछ आए थी की बंदे का कैरेक्टर कैसा है.. फिर वो तो राजा की बेटी है..वो बोला और नही तो क्या.. लेकिन किताबो में चलता था तब तक तो ठीक था.. अब तो ये आम ज़िंदगी में होने लग गया तो हमसे सहा नही गया.. हम बोले आम ज़िंदगी में.. क्यू क्या हुआ... उसने कहा देखिए आई पी एल के मैच में जितने भी बड़े खिलाड़ी थे, बड़ी टीम थी वो तो कुछ कर नही पाए.. छोटे खिलाड़ी और छोटी टीमे जीत रही है... बड़ी कार् के होते हुए छोटी छोटी कारे बन रही है.. गोया की छोटे लोग भी अब कारो में बैठेंगे ये बात बड़े लोगो को हज़म नही हो रही है और हम ठहरे बड़े लोगो के स्पून... तो हमारा काम है एडिटर को पकड़ना और धमकाना की उल जुलूल लिखना बंद करो.. तुम्हारे छोटे लेख पढ़कर छोटे लोगो को हिम्मत मिल रही है.. बड़े बन रहे है.. लिखना बंद कर दो वरना प्रेस बंद करवा देंगे.. नही तो तुम्हारी टाँगे तोड देंगे.. टांगे टूटने की बात सुनकर हम सहम गये.. हम बोले लेकिन आप ये सब मुझे क्यो कह रहे है भइया.. मैं तो आपके छोटे भाई जैसा हू.. इतना सुनते ही उसे गुस्सा आ गया.. उसने फोन हमारे मुँह पर मारा और बोला कहाँ फोन मिला दिया.. साला! छोटा कही का..