साल में सिर्फ़ एक दिन माँ का नही होता.. हर दिन माँ का होता है.. इसी तर्ज़ पर आज समर्पित है कुछ शब्द माँ के लिए..
(1)
उम्मीद बूझने वाली है
मगर जाने कॉनसा
तेल डाल रखा है..
लौ बूझने का नाम नही लेती
हर थोड़ी देर बाद
और भड़क जाती है..
शायद जवान बेटे का इंतेज़ार करती
मा की आँखें होगी....
(2)
पड़ोस के घर में
लड़का हुआ था...लड्डू
आए थे घर में
पूरे चार लड्डू थे..
लेकिन घर में हम पाँच
अचानक एक आवाज़ आई
मुझे तो लड्डू नही
खाना... मैं
जानता हू वो माँ ही थी...
सच बात है ...कहते है कि धरती कि तरह होती है माँ ....पता नही क्या क्या सहती है......जाने किस मट्टी कि बनी होती है माँ ?
ReplyDeleteदोनों ही क्षणिकायें बेहतरीन हैं..बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete***राजीव रंजन प्रसाद
bahut khoobsoorat tareeqe se sachhai bayyan karti hai shanikaye..
ReplyDeletemaa..sabse chhota shabd lekin sabse badi den bhagwaan ki..
likhte rahe..
bahut khoobsoorat khyal Kush..
ReplyDeletebahut hi marmsparshi...
donon hi khoobsoorat hain...
mujhe doosri zyada pasand aayee :)
Maa...aaj kheer bahut achchi hai. Achch..ye aur le lo. Magar Ma tum...nahi mujhe to pasand nahi
ReplyDeleteYe vaakya ham sabke jivan kabhi na kabhi hua...aur aapne ise shabdo me qaid kar liya. In kshanikaon par prashansa nahi karoonga, ye Ma ke liye hain, prashansa, anushansa se kahin upar...haan..inko mehsoos karoonga aur maa ko yaad bhi
दोनों ही बहुत सुदर लिखी है और सही कहा माँ का एक ही दिन नही होता माँ तो हर पल साथ है
ReplyDelete'jawan bete ka intezar kati maa ki aankh hogi'...sach hi likha hain...
ReplyDeletekushbhai...aap kuchh galtiyon ka ehsas karvate hain apni likhai se...
आप्ने सही कहा हर दिन माँ का होता है .किसी भी रिश्ते के लिए एक दिन काफी नही होता .
ReplyDeleteआपकी दोनों रचनाए बेहतरीन लगी .
शायद जवान बेटे का इंतेज़ार करती
मा की आँखें होगी....
ये पंक्तिया बहुत अच्छी लगी
dono hi behad khoobsoorat!
ReplyDeleteदोनों रचनाऐं बहुत उम्दा हैं.
ReplyDeleteबिलकुल सही पर दिन माँ का होता है बडिया ।
ReplyDeleteवाह कुश...बहुत ही उम्दा रचनाएं हैं दोनों!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeletebahut sunder
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