Wednesday, October 10, 2007

"शिथिल मैं शिथिल मॅन"

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शिथिल मैं शिथिल मॅन
उड़ रहा जैसे क्टी पतंग
ना लक्ष्य है ना आस है
ना हिम्मत ना प्रयास है
देखता हू दूर बहुत
क्षितिज़ के उस पार तक
धूल है बस धूल है..
ना बूझ सके वो प्यास है
क़दम जमे ज़मीन पर
ना इनमे कोई जान है
थमते है ठहरते है
ना जाने कहा प्राण है
भविष्या को देखती
नज़र है इक आँख है
झूलती डगर पर
टूटती सी साख है
बहुत से है गगन में मेघ
ना बूँद ना आभास है
सूखी पड़ी ज़मीन से
जैसे कोई परीहास है
रुकी हुई थकि हुई
गुम सी अब मिठास है
फूल क्या लताए क्या
सबकी सब उदास है
रूकु कही, थमू कही
रोशनी हो जलु कही..
धागा बनू जलता राहू
साथी मुझे मोम की तलाश है
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"सामने वाला घर आज भी याद है"

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नया नया कमरा लिया था
सामने वाला घर आज भी याद है
जहा वो रहती थी..
नर्म मुलायम पँखो वाली
परी मैं जिसको कहता था..

खिड़की में आती थी और
सुखाती थी अपने बालो को
मैं उसके बालो से गिरती बूंदो की ठंडक
अपने गालो पर पाता था..

ना चाहते हुए भी
नज़र उस ओर मूड जाती थी
किताब हाथ में लिए
चश्मा नाक पर रहता था

ना नज़रे मिलाकर भी
वो नज़रना दे देती थी
मैं मस्त पवन सा
फ़िज़ाओ में मंडराता था

शाम सुहानी आते ही
वो आ जाती थी खिड़की में
मैं ख़्यालो में ही उसके माथे पर
आती ल्टो को हटाता था..

पोस्टमैन आता चिट्ठी देने
और वो लेने आती थी
बस इक नज़र का मिलना होता
दो सदी की प्यास बूझ जाती थी

वो छत पर आती थी
कपड़े सूखाने
मैं दिल के तरकश से
नज़रो के बान चलाता था

वो शरमाती थी बेलो सी
और जवाब मुझे मिल जाता था
मैं ख़ुद को बस इक ही पल में
बदलो से आगे पाता था

अब भी तो सब कुछ वैसा है
तुम अब भी उतनी ही प्यारी हो
मैं प्राण नाथ तुम्हारा हू
तुम प्रानो से मुझको प्यारी हो

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"छू लेते है लब तेरी आँख का पानी"

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छू लेते है लब तेरी आँख का पानी
जब शर्म से इनमे नमी आ जाती है

थाम लेते है कलाई बड़े यकीन के साथ
जब उमीदो की थोड़ी कमी आ जाती है

तुम जो साथ हो तो ज़िंदगी जन्नत है
वरना अक्सर इसमेें गमी आ जाती है


तमन्ना है पनाह मिल जाए तेरे क़दमो में
मगर वहा भी बेरहम ज़मी आ जाती है


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"सलाम नाथुराम! सलाम नाथुराम"

सुबह सोकर उठा तो
हैरान रह गया..
जहा भी जाता हू लोग एक दूसरे
को कह रहे है..
सलाम नाथुराम! सलाम नाथुराम

मैं घर में घुस जाता हू
दरवाज़े खिड़किया सब
बंद कर लेता हू.. छुप जाता हू
बाथरूम मैं दरवाज़ा
बंद करके.. आईने में मुझे
फिर नज़र आता है नाथुराम..

घर की सारी दीवारो पर..
नाथुराम की तस्वीरे है.
टीवी में नाथुराम,, अख़बार में
नाथुराम.. मुझे पागल बना
दिया है इसने..

जहा भी नज़र दौड़ाता हू
मुझे सब नाथुराम क्यो लगते है..

मैं भागता हू एक व्यक्ति मिलता है
मुझे फूल देता है..
गले लगाता है... मैं सब भूल जाता हू
ख़ुश हो जाता हू... उसका नाम पूछता हू
वो मुन्ना बताता है..
मैं उसको शुक्रिया कहता हू..
एक फूल लेता हु..दुस्रे को देता हू
वो वही फूल किसी और को देता हू
मुझे गाँधी नज़र आता है.. नाथुराम
मेरी आँखो से दूर जाता है..
गाँधी ही गाँधी हर ओर नज़र आता है
वाह मुन्ना ...कमाल कर दिया तुमने

गाँधिगिरी चलाने की तुमको है बधाई
हम है तुम्हारे साथ लगे रहो मुन्नाभाई..

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"बादल मानते नही बरस जाते है चुपके स"

बादल मानते नही
बरस जाते है चुपके से
इन्हे तेरी यादो में
रोना अच्छा लगता है

पेडो की डालिया झूम जाती है
अक्सर हवाओ में
इन्हे तेरे ख़्यालो में
ख़ुश होना अच्छा लगता है

समंदर हो जाता है चुप
शाम के कद्म रखते ही
इसे तेरे ख्वाब देखते हुए
सोना अच्छा लगता है

सूरज बैठ जाता है चुपचाप आकर
सुबह सुहानी पहाड़ी के पीछे
इसे तेरे आने की ताकीद में
बाट जोना अच्छा लगता है

हवाए मंद मंद उड़ते हुए
अक्सर ठिठक कर रुक जाती है
इन्हे तेरे ख़्यालो की राहो में
खोना अच्छा लगता है

तू आकर सिमट जाए मेरी बाजुओ में
और मैं गुज़ार लू पूरी ज़िंदगी अपनी
इसी हसीन पल की आस का बीज
बोना अच्छा लगता है

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