छोटी सी थी मैं
जब अब्बु रोज़ चवन्नी दिया
करते थे.. एक मेरी
और दूसरी रमज़ान की
होती थी..साथ साथ
मस्जिद के परले वाली
दुकान से चकली
ख़रीदने जाते थे
एक दिन रमज़ान ने
मेरी चकली गिरा दी
मैने ग़ुस्से में
आकर उसकी चवन्नी
छीन ली.. और भाग कर
पहुँची बानो की
छत पर.. रमज़ान पीछे
पीछे आया. तो उछाल दी
आसमान में .. उस रोज़ रमज़ान
बहुत रोया था.. रात मैने
उसकी चवन्नी ढूँढ ली
मगर दे ना सकी उसे लाकर,
रमज़ान अब भी आता है साल
में एक बार अपनी चवन्नी
लेने ..
सुना है अब लोग उसकी चवन्नी को
चाँद कहते है...
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(२)
पैरो के नीचे
ज़मीन दबा के
जो ज़ोर से छलांग लगाई
की जा पहुँची आसमान
की पेशानी पर..
और लबो से इक
निशानी छोड़ दी वहा..
तब सुर्ख़ लाल
रहती थी.. मगर वक़्त
के साथ पिघलते पिघलते
रंग उतरता गया..
मैं जीती रही बदस्तूर..
इक रोज़ मेरा भी चलना हुआ
तबसे मेरे होंठ की
वो निशानी मेरी याद में
सफ़ेद पड़ गयी है..
सुना है लोग उसे आजकल
चाँद कहते है...
कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Thursday, August 21, 2008
Monday, August 18, 2008
जब आख़िरी दफ़ा हम प्याला हुए थे हम दोनो..
वो गर्म शाम जब आख़िरी दफ़ा हम प्याला हुए थे हम दोनो.. अब भी मेरे जेहन
में जमी सीलन पर फिसलकर आती है मेरी यादो में.. हाँ वही गर्म शाम जब हम प्याला हुए थे हम दोनो..
मैं तिराहे वाले कॉफी शॉप की आराम कुर्सी पर बैठा था.. की तुम ले आई कॉफी के दो गरम प्याले.. मैं अपनी उंगलियो पर उस प्याले की गर्माहट अब भी महसूस करता हू.. हल्की हवा के झोंके ने जो उड़ाई थी ज़ुल्फ तुम्हारी
वल्लाह!! मैं अब भी उस से बातें करता हू
मेरे हाथ मैं पुखराज देखकर.. कहा था तुमने
ये क्या उल्टा सीधा पढ़ते रहते हो.. कभी गुलज़ार ..कभी ख़ुसरो पागल हो जाओगे...
तुम तो बिना पढ़े ही हो... मैने जवाब दिया था तुम इतनी ज़ोर से हँसी की पूरे कॉफी शॉप ने मुड़कर देखा था..
परवाह किसे है
तुम्हारा जवाब था..
लेकिन मैं तुम्हारा जवाब नही दे पाया.. जी तो किया था की सांसो के लिबास फाड़ के रख दु और खींच के रख दु दिल की धड़कनो को.. कब से थाम के बैठी है मुझे.. जवाब है मेरे पास.. दे भी सकता हू तुम्हे.. मगर पिताजी और उनकी इज़्ज़त.. बचपन से जवानी तक का सफ़र.. लबो को सील चुके थे सब..
तुम डरती हुई हँसी थी... तुमने पुछा.. चुप क्यू हो? कुछ बोलते क्यू नही.. मुझे घबराहट हो रही है.. जवाब दो ना..
काश की मैं दे पाता जवाब तुम्हे.. तुम्हारी आँखें जिनमे मैं अपनी तस्वीर देखता था तब मिला नही पाया था
नज़रे इनसे..
अच्छा हुआ अभी पता चल गया.. वैसे भी मैं बुज़दिल इंसान के साथ जी नही सकती.. थॅंक यू..
एक तेज़ी के साथ तुम सीढ़िया उतर गयी थी.. मैं जहा था वही रह गया...
प्याले में आधी कॉफी छोड़ गयी थी तुम.. तब से आधी ज़िंदगी जी रहा हू मैं
तब से आँसुओ से दोस्ती जो हुई की एक सीलन जम गयी जेहन में और उसी पर फिसल फिसलकर आ जाती है यादो में वो गर्म शाम
जब आख़िरी दफ़ा हम प्याला
हुए थे हम दोनो..
Thursday, August 14, 2008
अमा! ये कौनसा त्योहार है?
Tuesday, August 12, 2008
Thursday, August 7, 2008
छपाक !!
छपाक !! टेबल पर पड़ी पानी की गिलास नीचे गिर पड़ी, एक तो इतना सारा सामान बिखरा है टेबल पर एक गिलास भी नही टिकती.. शाम हो चुकी है.. आज फिर लेट हो गया.. सोचा था जल्दी पहुँचा तो राजमा चावल बनाऊंगा.. पर फिर लेट हो गया रास्ते से मैगी ले लूँगा.. ..
मोहन बाबू, ज़रा देखिए तो खिड़की से बाहर बारिश तो नही है..
साहब बादल तो छाए हुए है. लगता है होने वाली है.. जल्दी से निकल लीजिए..
ओफ्फो एक तो ये बारिश का भी कुछ भरोसा नही..
हेलो! ए वन गैरेज, आप गाड़ी लेकर आए नही? अरे मगर आपने ही तो कहा था शाम तक हो जाएगी,
यार कमाल करते है आप, ठीक है लेकिन कल सुबह तक आप किसी भी हालत में गाड़ी घर पे छोड़ जाइएगा..
हद होती है, सुबह से शाम हो गयी गाड़ी ठीक नही होती इनसे..
मोहन बाबू मैं चलता हू..
क्या हुआ भाई लिफ्ट क्यो बंद है?
साहब काम चल रहा है एक घंटा लगेगा..
ओह नो! जब भी सुबह टोस्ट जलता है पूरा दिन खराब जाता है.. मम्मी को बोलू तो कहती है कब तक नाश्ते में टोस्ट जलाएगा.. शादी करके बहू ले आ.. एक तो मुझे आज तक समझ नही आया टोस्ट जलाने और शादी में क्या रिलेशन है? अब सीढ़ियो से उतरना पड़ेगा.. ये सारा काम रात को क्यो नही करते.. इतनी सीढिया पता नही पिछली बार कब चढी थी.. ऐ टी एम्? हमारी बिल्डिंग में ए टी एम भी है!.. कमाल है कभी सीढ़ियो से उतरा ही नही.. अपनी ही बिल्डिंग से अंजान हू.. चलो यार सीढ़िया तो ख़त्म हुई.. वैसे इतने टाइम बाद इतना पैदल चला हू.. डॉक्टर्स तो कहते भी है वॉक पर जाओ.. पर टाइम कहा है? सुबह आँख खुलते ही तो ऑफीस का टाइम हो जाता है..और रात को तो बस सोना दिखता है.. चलो आज वॉक कर ही ली जाए..
छपाक! ओये दिखता नही है क्या.. स्साले पता नही कैसे गाड़ी चलाते है.. ये भी नही सोचते की कोई पैदल चल रहा है..
उपर बादल तो है.. बारिश होने वाली है फटाफट पहुँच जाऊ घर तो अच्छा है..रात को सारी मेल्स का जवाब भी देना है.. रात को लेट सोया तो फिर सुबह लेट हो जाएगा.. पता नही हो क्या रहा है.. कर क्या रहा हू.. पूरे वीक में वीकेंड का इंतेज़ार करता हू.. छुट्टी मिली नही की बस सो गये.. फिर वीकेंड.. फिर काम..लोग कहते है यही तो लाइफ है.. अरे लाइफ तो कब की पीछे छूट गयी.. अब तो बस एक दिनचर्या है जिसे पूरा करना पड़ता है.. हम इतने मुश्किल क्यो होते जा रहे है..
छपाक! ओह नो, ये सड़क के गड़डे भी ना.. सड़क से ज़्यादा तो उसमे खड्डे हो गये है.. थोड़ी सी बारिश हुई नही की पानी भर जाता है.. लोगो से तो इतना टैक्स लेते है ये करते क्या है पैसो का.. पता नही देश कहा जा रहा है. और ये कहते है इंडिया शाइनिंग इंडिया शाइनिंग.. सारी की सारी पैंट खराब हो गयी. आज ही तो पहनी थी.. फिर कौन धोएगा.. यार ये बारिश होती ही क्यो है?
ओह नो बारिश शुरू हो गयी.. अब क्या करू.. दस पंद्रह मिनट का तो रास्ता बाकी होगा ही.. रुकना ही पड़ेगा.. बारिश में गीले हो गये तो फिर जुखाम वुखाम.. बारिश तेज़ हो गयी है.. मोबाइल गीला हो गया तो प्रॉब्लम हो जाएगी.. कही से पोलिथीन का केरी बैग मिल जाए तो उसमे डाल लू.. वो लड़की मूँगफली बेचने वाली लड़की उसके पास होगा..
बेटा तुम्हारे पास केरी बैग होगा जिसमे मैं ये मोबाइल डाल सकु?
केरी बैग केरी बैग.. ह्म्म्म प्लास्टिक की थैली
अरे ये कहा जा रही है..
ओये हेलो..
ये आँख बंद करके क्यो खड़ी हो गयी.. बाहें फैलाकर खड़ी है.. क्या हुआ इसे.. ओह शायद पानी की बूँदो से खेल रही है.. ये एक बूँद गिर रही है.. थोड़ा लेफ्ट थोड़ा लेफ्ट.. नही थोड़ा राईट हा हा ये गिरी.. छपाक!!
ये तो अच्छा है, मैं भी करके देखता हू.. क्या हुआ कोई बूँद नही गिर रही है.. एक आँख खोल के देखता हू..
आँहा अंकल आँख बंद करो.. वो मेरे पास आकर कहती है..
मैं फिर से आँख बंद करता हू बाहे फैलाकर उपर देखता हू.. मुझे लग रहा है कोई बूँद आ रही है.. मेरी ओर.. बहुत करीब मेरे बिल्कुल करीब. बस गिरने ही वाली है मेरी आँखो पर.. ये गिरी ये गिरी.. और ये गिरी...छपाक!!
आह! मज़ा आ गया.. मैं खिलखिलाके हंसता हू.. वो भी मुझे देखके हंस रही है..
आओ अंकल..
वो मेरा हाथ पकड़ के मुझे ले जा रही है.. मैं उसे रोक नही पाता हू.. उसके नन्हे हाथो में अपना हाथ सौंप के बस चल रहा हू.. वो सड़क पे जमा पानी के बीच जाकर ज़ोर से उछलती है छपाक! और सारा पानी मुझपर.. और भी बच्चे आ गये है.. सब कूदते है पानी में.. छपाक.. छपाक.. बस यही आवाज़ आ रही है.. मैं खुद को रोक नही पता हू.. मेरी पैंट पूरी गंदी हो चुकी है.. मैं उनको रोकता हू.. वो सब मेरी और देखते हुए बोलते है ए ए ए ए ए.. और ये छपाक! मैं भी कूदता हू.. सब मिलकर कूद रहे है पानी में..
और बस ये आवाज़ आ रही है.. छपाक! छपाक!
सच कहु इतनी खुशी बड़े दिनो से नही हुई.. बारिश की बूंदे कम होती जा रही है.. धीरे धीरे सब बच्चे जाते है.. वो लड़की मुझे देखकर हंस रही है.. बहुत खुश लगती है.. वो अपनी सबसे छोटी अंगुली मुँह पे रखकर कानो के पास अंगूठा रखते हुए मुझे याद दिलाती है फोन.. और भागकर फूटपाथ पे जाती है.. मैं देखता हू.. उसकी मूँगफलिया भीग चुकी है.. उनके नीचे पड़ा मेरा मोबाइल ठीक है.. उतना नही भीगा.. मैं उसे पैसे देता हू.. वो मना कर देती है.. अपनी मूँगफलियो को पानी में बहाकर.. सड़क के उस पार चली जाती है.. मैं उसे देखता रहता हू.. वो उस पार जाकर हाथ हिलाती है.. मैं भी उसे देखकर मुस्कुराता हू.. खुशी से कदम बढाते हुए.. पानी में कूदते हुए घर जाता हू.. घर पे आकर राजमा चावल बनाए है.. बहुत अच्छे बने है.. माँ को फोन करता हू.. पूछती है नाश्ते में ब्रेड जली थी क्या?? मैं हाँ कहता हू.. वो कहती है.. कितनी बार कहा है.. यूही ब्रेड जलाता रहेगा या... बस माँ बस.. एक काम करो एक बहू ढूँढ लो..
सच?
हा माँ सच!..
हेलो हेलो .. माँ कहा हो? हेलो..
हमारे आँगन में अक्सर बारीशो में पानी जमा हो जाता है.. माँ भी शायद आँगन में चली गयी..
एक आवाज़ आती है फोन पर... छपाक!
मोहन बाबू, ज़रा देखिए तो खिड़की से बाहर बारिश तो नही है..
साहब बादल तो छाए हुए है. लगता है होने वाली है.. जल्दी से निकल लीजिए..
ओफ्फो एक तो ये बारिश का भी कुछ भरोसा नही..
हेलो! ए वन गैरेज, आप गाड़ी लेकर आए नही? अरे मगर आपने ही तो कहा था शाम तक हो जाएगी,
यार कमाल करते है आप, ठीक है लेकिन कल सुबह तक आप किसी भी हालत में गाड़ी घर पे छोड़ जाइएगा..
हद होती है, सुबह से शाम हो गयी गाड़ी ठीक नही होती इनसे..
मोहन बाबू मैं चलता हू..
क्या हुआ भाई लिफ्ट क्यो बंद है?
साहब काम चल रहा है एक घंटा लगेगा..
ओह नो! जब भी सुबह टोस्ट जलता है पूरा दिन खराब जाता है.. मम्मी को बोलू तो कहती है कब तक नाश्ते में टोस्ट जलाएगा.. शादी करके बहू ले आ.. एक तो मुझे आज तक समझ नही आया टोस्ट जलाने और शादी में क्या रिलेशन है? अब सीढ़ियो से उतरना पड़ेगा.. ये सारा काम रात को क्यो नही करते.. इतनी सीढिया पता नही पिछली बार कब चढी थी.. ऐ टी एम्? हमारी बिल्डिंग में ए टी एम भी है!.. कमाल है कभी सीढ़ियो से उतरा ही नही.. अपनी ही बिल्डिंग से अंजान हू.. चलो यार सीढ़िया तो ख़त्म हुई.. वैसे इतने टाइम बाद इतना पैदल चला हू.. डॉक्टर्स तो कहते भी है वॉक पर जाओ.. पर टाइम कहा है? सुबह आँख खुलते ही तो ऑफीस का टाइम हो जाता है..और रात को तो बस सोना दिखता है.. चलो आज वॉक कर ही ली जाए..
छपाक! ओये दिखता नही है क्या.. स्साले पता नही कैसे गाड़ी चलाते है.. ये भी नही सोचते की कोई पैदल चल रहा है..
उपर बादल तो है.. बारिश होने वाली है फटाफट पहुँच जाऊ घर तो अच्छा है..रात को सारी मेल्स का जवाब भी देना है.. रात को लेट सोया तो फिर सुबह लेट हो जाएगा.. पता नही हो क्या रहा है.. कर क्या रहा हू.. पूरे वीक में वीकेंड का इंतेज़ार करता हू.. छुट्टी मिली नही की बस सो गये.. फिर वीकेंड.. फिर काम..लोग कहते है यही तो लाइफ है.. अरे लाइफ तो कब की पीछे छूट गयी.. अब तो बस एक दिनचर्या है जिसे पूरा करना पड़ता है.. हम इतने मुश्किल क्यो होते जा रहे है..
छपाक! ओह नो, ये सड़क के गड़डे भी ना.. सड़क से ज़्यादा तो उसमे खड्डे हो गये है.. थोड़ी सी बारिश हुई नही की पानी भर जाता है.. लोगो से तो इतना टैक्स लेते है ये करते क्या है पैसो का.. पता नही देश कहा जा रहा है. और ये कहते है इंडिया शाइनिंग इंडिया शाइनिंग.. सारी की सारी पैंट खराब हो गयी. आज ही तो पहनी थी.. फिर कौन धोएगा.. यार ये बारिश होती ही क्यो है?
ओह नो बारिश शुरू हो गयी.. अब क्या करू.. दस पंद्रह मिनट का तो रास्ता बाकी होगा ही.. रुकना ही पड़ेगा.. बारिश में गीले हो गये तो फिर जुखाम वुखाम.. बारिश तेज़ हो गयी है.. मोबाइल गीला हो गया तो प्रॉब्लम हो जाएगी.. कही से पोलिथीन का केरी बैग मिल जाए तो उसमे डाल लू.. वो लड़की मूँगफली बेचने वाली लड़की उसके पास होगा..
बेटा तुम्हारे पास केरी बैग होगा जिसमे मैं ये मोबाइल डाल सकु?
केरी बैग केरी बैग.. ह्म्म्म प्लास्टिक की थैली
अरे ये कहा जा रही है..
ओये हेलो..
ये आँख बंद करके क्यो खड़ी हो गयी.. बाहें फैलाकर खड़ी है.. क्या हुआ इसे.. ओह शायद पानी की बूँदो से खेल रही है.. ये एक बूँद गिर रही है.. थोड़ा लेफ्ट थोड़ा लेफ्ट.. नही थोड़ा राईट हा हा ये गिरी.. छपाक!!
ये तो अच्छा है, मैं भी करके देखता हू.. क्या हुआ कोई बूँद नही गिर रही है.. एक आँख खोल के देखता हू..
आँहा अंकल आँख बंद करो.. वो मेरे पास आकर कहती है..
मैं फिर से आँख बंद करता हू बाहे फैलाकर उपर देखता हू.. मुझे लग रहा है कोई बूँद आ रही है.. मेरी ओर.. बहुत करीब मेरे बिल्कुल करीब. बस गिरने ही वाली है मेरी आँखो पर.. ये गिरी ये गिरी.. और ये गिरी...छपाक!!
आह! मज़ा आ गया.. मैं खिलखिलाके हंसता हू.. वो भी मुझे देखके हंस रही है..
आओ अंकल..
वो मेरा हाथ पकड़ के मुझे ले जा रही है.. मैं उसे रोक नही पाता हू.. उसके नन्हे हाथो में अपना हाथ सौंप के बस चल रहा हू.. वो सड़क पे जमा पानी के बीच जाकर ज़ोर से उछलती है छपाक! और सारा पानी मुझपर.. और भी बच्चे आ गये है.. सब कूदते है पानी में.. छपाक.. छपाक.. बस यही आवाज़ आ रही है.. मैं खुद को रोक नही पता हू.. मेरी पैंट पूरी गंदी हो चुकी है.. मैं उनको रोकता हू.. वो सब मेरी और देखते हुए बोलते है ए ए ए ए ए.. और ये छपाक! मैं भी कूदता हू.. सब मिलकर कूद रहे है पानी में..
और बस ये आवाज़ आ रही है.. छपाक! छपाक!
सच कहु इतनी खुशी बड़े दिनो से नही हुई.. बारिश की बूंदे कम होती जा रही है.. धीरे धीरे सब बच्चे जाते है.. वो लड़की मुझे देखकर हंस रही है.. बहुत खुश लगती है.. वो अपनी सबसे छोटी अंगुली मुँह पे रखकर कानो के पास अंगूठा रखते हुए मुझे याद दिलाती है फोन.. और भागकर फूटपाथ पे जाती है.. मैं देखता हू.. उसकी मूँगफलिया भीग चुकी है.. उनके नीचे पड़ा मेरा मोबाइल ठीक है.. उतना नही भीगा.. मैं उसे पैसे देता हू.. वो मना कर देती है.. अपनी मूँगफलियो को पानी में बहाकर.. सड़क के उस पार चली जाती है.. मैं उसे देखता रहता हू.. वो उस पार जाकर हाथ हिलाती है.. मैं भी उसे देखकर मुस्कुराता हू.. खुशी से कदम बढाते हुए.. पानी में कूदते हुए घर जाता हू.. घर पे आकर राजमा चावल बनाए है.. बहुत अच्छे बने है.. माँ को फोन करता हू.. पूछती है नाश्ते में ब्रेड जली थी क्या?? मैं हाँ कहता हू.. वो कहती है.. कितनी बार कहा है.. यूही ब्रेड जलाता रहेगा या... बस माँ बस.. एक काम करो एक बहू ढूँढ लो..
सच?
हा माँ सच!..
हेलो हेलो .. माँ कहा हो? हेलो..
हमारे आँगन में अक्सर बारीशो में पानी जमा हो जाता है.. माँ भी शायद आँगन में चली गयी..
एक आवाज़ आती है फोन पर... छपाक!
Wednesday, August 6, 2008
मिश्रा जी से अरुण जी, अरुण जी से कुश - अपना सुदामा
पैसो की तंगी है यही सोच के हम खिड़की में लगे मनी प्लांट में पानी दे रहे थे.. की हमे ऑटो की आवाज़ आई. खिड़की से बाहर मुंडी निकाल के देखा तो अपना सुदामा भागा चला आ रहा था.. अजी वही सुदामा जो गुरु संदीपन से होते हुए मिश्रा जी तक पहुँचा और मिश्रा से होते है अरुण जी तक.. मगर हमारे यहा ये कैसे आया.. हांफते हांफते वो अंदर दाखिल हुआ.. और हमारे पैरो में गिर गया बोला कुश भाई बचाइए... बचा लीजिए.. हमने कहा भई बात क्या हुई? बताओ तो सही ये क्या पांडे जी की माल गाड़ी की तरह भागते ही जा रहे हो.. वो बोला कुश भाई क्या बताऊ ग़लत पंगे में फँस गया.. मैने पूछा क्यो क्या हुआ.. वो बोला क्या बताऊ गुरु जी से परेशान होकर अरुण जी के पास गया था.. वहा उन्होने मेरी हालत पतली कर दी.. इतनी परेशानी तो मुझे गुरुजी के सिलेंडर लाने में भी नही हुई थी.. हमने कहा यार सुदामा ये गोल गोल जलेबी ना बनाओ. जो भी सॉफ सॉफ कहो.. इस बार सुदामा सेनटी हो गेया.. बोला कुश भाई अरुण जी ने मुझ बेचारे पर कितने अत्याचार किए की क्या बताऊ.. अपने सारे ऑफीस के काम करवा लिए.. सुबह सुबह मुझसे कहते की लालजी के यहा से भांग वाला पान ले आ.. अब लालजी की दुकान दस किलोमीटर दूर.. हम कहते की जाएँगे कैसे.. तो स्कूटर की चाबी जेब में डालते हुए कहते की साइकल लेजा बाहर पड़ी होगी.. और वो साइकल भी ऐसी की क्या बताऊ.. दस किलोमीटर में बीस बार तो उसकी चैन उतर जाती.. उनके बच्चो को स्कूल छोड़के आना. बाज़ार से सब्ज़ी लेकर आना.. यहा तक की उन्होने अपनी फटी हुई बनियान भी हमसे धुलवा दी.. ब्राह्मण को धोबी बना डाला कुश भाई..
हालाँकि मैं भी मिश्रा जी के पास रहा हू.. मैने भी उनको बहुत चपत लगाई.. ब्राह्मण हू तो क्या हुआ हिसाब तो बानिए वाला रखता हू.. दो की चीज़ पाँच की बताता क्योंकि मैं जानता था की वो एक रुपया कम ही देंगे.. इस तरह मैने काफ़ी पैसे तो बना लिए.. मगर ये पंगेबाज जो है शक्ल से सीधे है वरना है टेढ़ी चीज़.. हम बोले भाई ऐसा क्या कर दिया.. सुदामा के चेहरे पर पसीना आ गया.. बोला क्या बताऊ कुश भाई मुझे सीख दी उन्होने की गुरुजी के लिए सिलेंडर ले जाओ.. और हमारे लिए एक ऑटो करवाकर हमे उसमे बिठा दिया.. हम तो बड़े प्रसन्न थे की पंगेबाज को लूट के आ गये.. गुरुजी प्रसन्न होंगे.. पर जैसे ही चौराहे से मूड कर आगे नाके पर आए तभी दो पुलिसे वालो ने हमको झेल लिया.. बोला क्या ले जा रहे हो.. हमने कहा जी गैस सिलेंडर है.. उन्होने चेक करके देखा तो पता चला इसमे तो अमोनियम नाइट्रेट है.. इतने बड़े बड़े सिलेंडर देखकर हमे शक़ तो हुआ था मगर हमे लगा बड़े लोगो के सिलेंडर भी बड़े होते होंगे.. पर हम बेचारे सीधे साधे आदमी पंगेबाज की पंगेबाजी समझ नही पाए.. हमने साफ साफ कहा जी ये तो हम पंगेबाज जी के यहा से लाए है.. उन्होने कहा बात करवाओ हमारी.. हमने फोन लगाया तो आवाज़ बदल कर बोले "वो तो अभी बाहर गये है आउट ऑफ इंडिया, एक साप्ताह बाद आएँगे" अब आप ही बताइए कुश भाई का इस बात पर कभी भरोसा किया जा सकता है की पंगेबाज जी जैसे लोग कभी आउट ऑफ इंडिया जा सकते है.. पुलिस वाले ने हमारी एक नही मानी और आठ दस डंडे जड़ दिए हमारी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर..
बस जेब में जो भी था वो उनको देकर और एक दिन की मोहलत ली है भला हो उसका जो वो ऑटो हमे दे दिया उसी ऑटो को खड़े खड़े चलाकर लाए है.. हमने पूछा खड़े खड़े क्यो तो सुदामा बोला अजी कहा तो था की प्राइवेट प्रॉपर्टी पर डंडे जमा दिए हा और उन्होने ये भी कहा किसी शरीफ आदमी की सिफारिश लेकर आओगे तो तुम्हे छोड़ेंगे.. अब आप ही बताइए कुश भाई आज की दुनिया में कौन शरीफ है.. किसके पास जाऊ.. किससे मदद की गुहार लगाऊ.. आप ही क्यो नही मेरी सिफारिश कर देते..हम तो गश खा गये सिफारिश और वो भी सुदामा की अजी वो तो पंगेबाज थे जो निकल लए हम तो इसके चक्कर में फँस जाएँगे,. हमे कहा अजी हमसे ज़्यादा तो दूसरे शरीफ लोग और है.. उनको पकड़ो.. सुदामा बोला लेकिन वो कौन है.. हमने कहा सोफे पर बैठो बताता हू आराम से. .वो बोला जी अभी तो सोफे पे नही बैठ सकता.. आप वैसे ही बता दीजिए.. हमने कहा ज़रूर बताऊँगा उन शरीफो के नाम लेकिन अपनी अगली पोस्ट में..
हालाँकि मैं भी मिश्रा जी के पास रहा हू.. मैने भी उनको बहुत चपत लगाई.. ब्राह्मण हू तो क्या हुआ हिसाब तो बानिए वाला रखता हू.. दो की चीज़ पाँच की बताता क्योंकि मैं जानता था की वो एक रुपया कम ही देंगे.. इस तरह मैने काफ़ी पैसे तो बना लिए.. मगर ये पंगेबाज जो है शक्ल से सीधे है वरना है टेढ़ी चीज़.. हम बोले भाई ऐसा क्या कर दिया.. सुदामा के चेहरे पर पसीना आ गया.. बोला क्या बताऊ कुश भाई मुझे सीख दी उन्होने की गुरुजी के लिए सिलेंडर ले जाओ.. और हमारे लिए एक ऑटो करवाकर हमे उसमे बिठा दिया.. हम तो बड़े प्रसन्न थे की पंगेबाज को लूट के आ गये.. गुरुजी प्रसन्न होंगे.. पर जैसे ही चौराहे से मूड कर आगे नाके पर आए तभी दो पुलिसे वालो ने हमको झेल लिया.. बोला क्या ले जा रहे हो.. हमने कहा जी गैस सिलेंडर है.. उन्होने चेक करके देखा तो पता चला इसमे तो अमोनियम नाइट्रेट है.. इतने बड़े बड़े सिलेंडर देखकर हमे शक़ तो हुआ था मगर हमे लगा बड़े लोगो के सिलेंडर भी बड़े होते होंगे.. पर हम बेचारे सीधे साधे आदमी पंगेबाज की पंगेबाजी समझ नही पाए.. हमने साफ साफ कहा जी ये तो हम पंगेबाज जी के यहा से लाए है.. उन्होने कहा बात करवाओ हमारी.. हमने फोन लगाया तो आवाज़ बदल कर बोले "वो तो अभी बाहर गये है आउट ऑफ इंडिया, एक साप्ताह बाद आएँगे" अब आप ही बताइए कुश भाई का इस बात पर कभी भरोसा किया जा सकता है की पंगेबाज जी जैसे लोग कभी आउट ऑफ इंडिया जा सकते है.. पुलिस वाले ने हमारी एक नही मानी और आठ दस डंडे जड़ दिए हमारी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर..
बस जेब में जो भी था वो उनको देकर और एक दिन की मोहलत ली है भला हो उसका जो वो ऑटो हमे दे दिया उसी ऑटो को खड़े खड़े चलाकर लाए है.. हमने पूछा खड़े खड़े क्यो तो सुदामा बोला अजी कहा तो था की प्राइवेट प्रॉपर्टी पर डंडे जमा दिए हा और उन्होने ये भी कहा किसी शरीफ आदमी की सिफारिश लेकर आओगे तो तुम्हे छोड़ेंगे.. अब आप ही बताइए कुश भाई आज की दुनिया में कौन शरीफ है.. किसके पास जाऊ.. किससे मदद की गुहार लगाऊ.. आप ही क्यो नही मेरी सिफारिश कर देते..हम तो गश खा गये सिफारिश और वो भी सुदामा की अजी वो तो पंगेबाज थे जो निकल लए हम तो इसके चक्कर में फँस जाएँगे,. हमे कहा अजी हमसे ज़्यादा तो दूसरे शरीफ लोग और है.. उनको पकड़ो.. सुदामा बोला लेकिन वो कौन है.. हमने कहा सोफे पर बैठो बताता हू आराम से. .वो बोला जी अभी तो सोफे पे नही बैठ सकता.. आप वैसे ही बता दीजिए.. हमने कहा ज़रूर बताऊँगा उन शरीफो के नाम लेकिन अपनी अगली पोस्ट में..
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