Thursday, March 31, 2011

सुगर क्यूब पिक्चर्स प्रजेंट्स "सिक्का"



उसे शौक था मरने का और मरके अमर होने का.. लोगो की यादो में.. तख्तियो पे नाम चाहता था.. स्कूलों अस्पतालों पर अपना नाम चाहता था.. यू चाहता तो वो ये भी था कि गली सड़क नहरों बांधो के नाम भी उसके नाम पर रख दिए जाए.. उसके मन में कीड़ा था अमर होने का होते जाने का.. लेकिन इसके लिए उसे मरना ज़रूरी था.. और यही एक काम था जो वो ठीक से नहीं कर पा रहा था.. उसने कई बार शाम ढले शहर की सबसे गहरी झील में डूब जाने की कोशिश की पर बात बनी नहीं.. कुछ देर तक तो वो पानी में पांव डाले बैठा रहता पर फिर थोडी देर बाद उसमे तैरती मछलियों को दाना डालकर लौट आता..

इस बार उसने पटरियों पर लेटकर ट्रेन से कट जाने का मन बनाया.. वो बहुत देर तक पटरी पे बने पुल के बीचो बीच बैठा रेलगाड़ियो को आते जाते हुए देखता रहा.. ट्रेन सामने से सीटी बजाती हुई आती.. इंजन से निकलता हुआ धुँआ उसकी साँसों में भी उतरता.. जब रेल ठीक पुल के नीचे से गुज़रती तो उसके दिल के साथ पुल भी थरथराता.. थोडी देर बाद वो हिम्मत करके सीढियों से नीचे उतर गया.. पास ही पड़ी लकड़ी उसने उठा ली.. और लकड़ी के एक सिरे को जमीन से रगड़ता हुआ वो पटरी के बराबर चलते हुए मरने के लिए सही जगह की तलाश में चलता रहा.. सूरज इस वक़्त ठीक सर के ऊपर था.. वो पटरी पर एक कोने पर बैठ गया.. सामने वाले ट्रैक पर कुछ कचरा बीनने वाले बच्चे ट्रेन के डिब्बो से फेंके गए चिप्स, बिस्किट के खाली पैकेट उठा रहे थे.. उनमे से किसी में एक चिप्स या बिस्कुट का चुरा मिल जाता तो चहक कर खा लेते.. वो बैठा यही सब देख रहा था कि उसके कानो में इंजन की आवाज़ गूंजी.. वो अपनी जगह से खड़ा हुआ.. वो चाहता था कि बच्चो को वहा से भगाकर ट्रेन के सामने खड़ा हो जाए.. पर इस से पहले की वो उन्हें भगाता उनमे से एक बच्चे ने पटरी पर सिक्का रख दिया और दुसरे से बोला कि ट्रेन गुजरने के बाद ये सिक्का सोने का बन जाएगा.. वो जानता था कि ऐसा कुछ होने नहीं वाला.. पर पटरी को घेरे उन चार चेहरों पर ठहरी आँखों में चमक देख कर वो रुक सा गया.. उसके कदम आगे नहीं बढे..

पर ट्रेन धीरे धीरे इसी तरफ बढ़ रही थी.. सीटी की आवाज़ कानो के और करीब आ रही थी.. गड गड की आवाज़ दिल दहलाने वाली मालूम पड़ती थी.. लड़के सब अपनी जगह ठहरे हुए थे.. सबकी निगाह इंजन पर टिकी हुई थी.. उसकी भी.. इंजन तेज़ी से उनकी तरफ आ रहा था.. लड़के एक कदम आगे सरक चुके थे और वो भी.. सिक्के के सोने में बदल जाने वाली असंभव सी बात के लिए वो आँखे गढ़ाए ये भी भूल गया कि वो यहाँ मरने के लिए आया था.. और इस ट्रेन के चले जाने के बाद उसे फिर साढे तीन घंटे इंतज़ार करना पड़ता.. लेकिन बिना ये जाने कि सिक्का सोना बना या नहीं वो कैसे मर सकता था? उसे लगा साढे तीन घंटे और इंतज़ार किया जा सकता.. फिर मरना तो है ही अभी मरो या साढे तीन घंटे बाद क्या फर्क पड़ता है..? इंजन मालगाड़ी का था.. जो अब उनके बिलकुल करीब आ चुका था.. पटरी के आस पास भीड़ देखकर इंजन ड्राईवर ने होर्न बजाया... पर लड़के हटे नहीं.. इंजन सिक्के के बिलकुल करीब आ गया.. कानफोडू आवाज़ के साथ रेल सिक्के के ऊपर से गुज़रने लगी.. सबकी निगाह उसी सिक्के पर थी.. जैसे ही हर डिब्बे का चक्का उस सिक्के पर से निकलता ट्रेन थोडी झुकी सी लगती.. बिजली की तेज़ी के साथ ट्रेन निकल गयी.. मिट्टी के गुबार के बीच चारो लड़के सिक्के की तरफ लपके और वो भी.. सिक्का सोना नहीं बन पाया.. अलबत्ता जो था उस से भी गया.. सिक्का चपटा हो गया जो अब किसी काम का नहीं रहा.. लड़के की आँख में आंसु आ गए.. बाकी तीनो लड़के हंसने लगे.. और अपना अपना थैला उठाके चल पड़े.. लड़का ठगा सा खड़ा कभी सिक्के को देखता तो कभी धुल उड़ाते जाती हुई ट्रेन को..

लड़के की बेवकूफी के चक्कर में उसने मरने का एक और मौका खो दिया.. उसे इस लफड़े में फसना ही नहीं था.. क्यों रुका वो यहाँ जबकि जानता था कि सिक्के का कुछ नहीं होने वाला.. पर लड़के की आँखों का विश्वास.. हाँ उसकी आँखों की चमक ही तो थी.. जिसने मजबूर कर दिया था उसे रुकने के लिए.. पर अब? साढे तीन घंटे बाद अगली ट्रेन आने तक वो क्या करेगा.. यही सोचते हुए.. उसने लड़के की तरफ नज़र घुमाई.. लड़का सिक्का वही पटरी पर फेंक कर चल पड़ा.. लड़का जा चुका था मगर सिक्का अभी भी पटरी पर पड़ा था..