Monday, March 31, 2008

उनसे कहिए क़ी रात ख्वाबो में आया ना करे

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सुबह अपनी किस्मत पर हँसी आया ना करे
उनसे कहिए क़ी रात ख्वाबो में आया ना करे

अश्क गिर पड़ते है जब भी सुनता हू मैं...
उनसे कहिए क़ी यू ग़ज़ल गाया ना करे....

हमसे मुलाकात अब दोबारा मुमकिन ही नही...
उनसे कहिए क़ी सोच कर वक़्त जाया ना करे....

गर दे नही सकता है बन्दो को वो खुदा..
तो उस से कहिए क़ी ख्वाब दिखाया ना करे....

बदनाम गलियो में अब ठिकाना है मेरा
शरीफो से कहिए क़ी आया ना करे.......

याद हमे रखे ऐसा तो नही कहते है हम...
पर इतना तो करम हो क़ी भुलाया ना करे...

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Monday, March 24, 2008

तेरे नाम का रंग..


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रंग
लगा दिया था तुमने
चुपके से
आकर के मेरे
गालो पर..
पूरे मोहल्ले में
खबर फैली थी..
तुम्हारा नाम
पहली बार मेरे
नाम के साथ आया
था.. और इक ऐसे
रंग में रंगी थी मैं
क़ी फिर कभी छूट ना पाया
मेरे बाबूजी से तुमने
अपनी पसंद बताई थी
फिर तुम्हारा नाम मेरे
नाम के साथ आया था
बस उस दिन से...
तुम्हारे रंग में जो रंगी थी
उसी को याद करती हू
तुम्हारी यादो के
रंगो से अपनी सूनी
माँग भरती हू... ना जीती हू
ना मरती हू..
जंग के बाद
जो चिट्ठी आई थी रतन वीर
सिंह क़ी बीवी के लिए..
उसी को पढ़ती रहती हू
शायद उसमे आख़िरी बार
तुम्हारा नाम...
मेरे नाम के साथ आया था
बस तब से सोचती रहती हू
क़ी फिर किसी होली के दिन
तुम्हारा आना हो चुपके से
मुझे पता भी ना चले
और तुम आकर के
लगा दो रंग.. क़ी मैं
फिर से तुम्हारा नाम मेरे
नाम के साथ मिलाना चाहती हू
और तुम्हारे रंगो में ही
रंग कर तुम्हारी हो जाना चाहती हू......

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Monday, March 17, 2008

कृपया इसे ना पढ़े

शीर्षक पढ़कर चौकियगा नही, क्योकि यदि इसका शीर्षक भारतीय सभ्यता या संस्क्रती होता तो शायद ही इसे कोई पढ़ता, क्योंकि हमारे यहा लोग विदेशी विषयो को शीग्रता से अपना लेते है, ऐसे लोगो में युवाओ की संख्या अधिक है.. और ये युवा विदेशी त्यौहारो को भारतीय त्यौहार की अपेक्षा अधिक हर्षोल्लास से मानते है.. अभी कुछ दिन पहले की घ्टना है एक निजी विधालय में किसी उत्सव की तैयारिया हो रही थी.. जिसमे विधालय के छात्र उत्साहपूर्वक भाग ले रहे थे.. पूछने पर पता चला की ये टीचर्स डे की तैयारिया थी.. सुन ने में अच्छा लगा की इस दिन सभी छात्र अपने अध्यापक को ऊपहार सहित धन्यवाद देते है.. परंतु इस टीचर डे को मनाने वाले लोग "गुरु पूर्णिमा" को कैसे भूल गये जो की हमारे देश में सदियो से मनाया जाता आ रहा है.. जिस दिन गुरु, अर्थार्त अपने शिक्षक की पूजा की जाती है..एवम उन्हे भगवान का स्थान दिया जाता है.. तो सही मायनो में यह है टीचर्स डे .. पर ना जाने क्यो हमारे देश में इसे भूल कर टीचर्स डे मनाया जाता है.. और गुरु पूर्णिमा वंचित रह जाती है...

सिलसिला यही समाप्त नही होता.. क्योंकि विदेशो में कई त्यौहार है जो भारत में बड़े स्तर पर मनाए जाते है..शुरु करते है वॅलिंटाइन डे से इसे प्रेम का संदेश देने वाला त्योहार भी कहते है.. परंतु हमारे यहा करवा चोथ कई सदियो से मनाया जाता आ रहा है.. जिसमे पत्निया अपने पति की चिर आयु के लिए व्रत रखती है. सही मायनो में यही प्रेम का संदेश देने वाला त्योहार है..

इसी क्रम में चिल्ड्रन्स डे का भी नाम आता है॥ जो की हमारे देश में ख़ासा लोकप्रिय है.. इस दिन बच्चो को टॉफिया खिलोने आदि बाँटे जाते है.. जो की अच्छी बात है.. मगर बाल दिवस मानने वाले लोग बच्छ बारस को कैसे भूल जाते है.. जिस दिन माताए अपने बच्चो के सर पर तिलक लगाकर उनके उज्जवल भविष्य एवं दीर्घ आयु की मंगल कामना करती है.. तो हम इसे चिल्ड्रेन'स डे कहे या फिर उसे जिसका मात्रा नाम चिल्ड्रेन'स डे है..

इतना ही नही इधर कुछ वर्षो से सिस्टर्स डे भी ख़ासा लोकप्रिय हुआ है.. सिस्टर्स डे अर्थार्त बहनो का एक दिन.. बहन का दिन कहने भर से ही यह उनकी गरिमा नही दर्शाता, बहन की गरिमा रक्षा बंधन से होती है.. जिस दिन बहने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है..बहनो के लिए इस से बड़ा सम्मान वाला त्यौहार और कौनसा हो सकता है...

इन उत्सवो के बीच एक पर्व "गुड नेब्र्स डे " भी एक बड़े वर्ग द्वारा मनाया जाता है.. गुड नेब्र्स डे अर्थार्त पड़ोसियो का एक दिन.. जिस दिन पड़ोसियो का धन्यवाद अदा किया जाता है.. परंतु हमारे सुख दुख में साथ देने वाले पड़ोसियो के लिए क्या वर्ष में एक ही दिन, ये कैसी सन्स्क्रति है? हमारे देश में तो प्रत्येक त्योहार या उत्सवो में पड़ोसियो को मिठाइया बाटी जाती है वा उनसे गले मिलकर बधाइया दी जाती है.. अर्थार्त हमारे यहा सभी त्योहारो पर गुड नेब्र्स डे मनाया जाता है..

एक दिन माफी माँगने का.. वर्ष भर यदि हमसे कोई भूल हो जाए तो एक दिन माफी माँगने का भी होता है जिसे सॉरी डे कहा जाता है.. परंतु हम सभी जानते है की जैन समाज में कई वर्षो से क्षमा याचना पर्व मनाया जाता है जिस दिन लोग वर्ष भर की गई ग़लतीओ के लिए क्षमा माँगते है..

इतने उत्सवो में यदि वुमन्स डे का नाम नही ले ऐसा कैसे हो सकता है॥ वुमन्स दे अर्थार्त नारी का एक दिन.. नारी जिसे शक्ति कहा जाता है.. उसके लिए मात्र एक दिन? जबकि हमारे यहा शक्ति का त्यौहार नौ दिन तक नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है.. नवरात्रि में माता की नौ रूपो में अराधना की जाती है.. तो हम पहले ये सोचे की नौ दिन की नवरात्रि मनाई जाए या एक दिन का वुमन्स डे..

मात्रा इतना ही नही भाईयो के लिए भी ब्रदर दे नाम का एक दिवस मनाया जाता है.. इस उत्सव को मानने वाले शायद भाई दूज को भूल जाते है जो हमारे देश में कई सदियो से मनाया जाता आ रहा है..

विश्वा में केवल भारत ही ऐसा देश है जहा सबसे ज़्यादा त्यौहार मनाए जाते है और वे आपसी भाईचारे से सबके साथ मिलकर मनाए जाते है.. इतना ही नही हमारे यहा छोटी से छोटी खुशियो पर भी मिठाइया बाँटी जाती है,कहने का तात्पर्य यह है की इतना उत्सव प्रिय देश होते हुए भी क्या कारण है की पश्चिमी सन्स्क्रति हमारे यहा अपने पाव पसार रही है..

इसका कारण एक ही है की हम जागरूक नही है.. आने वाली पीढ़ी को हमे हमारे त्योहारो से अवगत करना होगा.. हमे छोटी छोटी खुशियो का बाहे फैलाकर स्वागत करना होगा.. सभी भेदभाव भूल कर हमे सभी त्योहारो को परस्पर भाईचारे व सौहार्द से मानना होगा.. तभी हमारा देश भारत एक नये रूप में उभरकर आएगा..

Thursday, March 13, 2008

"नयी तरंग है...

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"नयी तरंग है...
नयी उमंग है...
नयी है जागी हुई
हर दिशा.....
कोमल कोमल
पंख हिलाती
महक रही है
हर लता.. ....
अनेक पुष्प
बिखर रहे है
निखर रही है
अदभुत छटा....
गीली गीली
माटी की खुशबू
बरस गयी है
पगली घटा....
रेत भी चंचल
उड़ रही है..
नैनो में जाकर
करती ख़ता..
सूरज बेचारा
गिर गया है
जैसे हो उसका
पंख कटा..
रात चोरनी
जैसे आई..
सांझ को भी
ना चला पता..
ना कोई देखे
ना कोई जाने
अब तो सजनी
घूँघट उठा..."

दृष्टि


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी




दृष्टि (Drishti)

दृष्टि उसकी है
जो सड़क पर
बैठे बचपन के आगे
एक सिक्का फेक
जाता है..

दृष्टि

दृष्टि उसकी भी है
जो देखता है मंडप
से लौटी बारातो को
और सिसकती
आँखो को भीगा
पाता है..

दृष्टि

दृष्टि उसकी भी है
जो पल्लवित होने
से पहले ही
पुष्प को
खींच कर
जड़ से अलग
कर देता है..

दृष्टि

दृष्टि उसकी भी है
जो किसी
अंधेरी गली
में जूझती
अस्मत को देखता है
और लौट जाता है

दृष्टि

दृष्टि उसकी भी है
जो योवन की
पहली सीढ़ी पर
सफेद साड़ी
में लिपटी
एक कोने में
जीवन बिताती औरत
को देखता है

दृष्टि

दृष्टि
उसकी भी है
जो देखता है
बिंब अपना दर्पण में
और पाता है चेहरा
और कोई.... और
पहचान नही पता है
स्वयं को..
भूलता जाता है...

दृष्टि


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Tuesday, March 11, 2008

हल्की हल्की आँच पर

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हल्की हल्की आँच पर
इश्क़ पक रहा है....
वक़्त से छूटता
हर पल थक रहा है

तेरी नज़र मेरी नज़र पे
कर रही इनायते..
की ज़ुलफ से तेरी मचलके
गिर रही है आयते...

हरे हरे ख्वाबो की
खुल रही गाँठ है...
की तेरी मुस्कुराहतो से
धुल रही रात है..

निगाहो से छलक रही
लबो की जो प्यास है..
तेरी निगाह में भी
रज़ा की इक उजास है

फ़िज़ा भी घोलने लगी है
महकशी.. दीवानगी..
अदाओ से तेरी गिर रही
है सादगी...

दिल से दिल मिल रहे है
बड़ी सुहानी रात है..
लफ्ज़ गिरते है जो लबो से
बस तेरी ही बात है..

और क्या कहु में जानम..

कब से निहारे खड़ा तुझे
चाँद भी थक रहा है
की हल्की हल्की आँच पर
ये इश्क़ पक रहा है

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