Tuesday, March 11, 2008

हल्की हल्की आँच पर

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हल्की हल्की आँच पर
इश्क़ पक रहा है....
वक़्त से छूटता
हर पल थक रहा है

तेरी नज़र मेरी नज़र पे
कर रही इनायते..
की ज़ुलफ से तेरी मचलके
गिर रही है आयते...

हरे हरे ख्वाबो की
खुल रही गाँठ है...
की तेरी मुस्कुराहतो से
धुल रही रात है..

निगाहो से छलक रही
लबो की जो प्यास है..
तेरी निगाह में भी
रज़ा की इक उजास है

फ़िज़ा भी घोलने लगी है
महकशी.. दीवानगी..
अदाओ से तेरी गिर रही
है सादगी...

दिल से दिल मिल रहे है
बड़ी सुहानी रात है..
लफ्ज़ गिरते है जो लबो से
बस तेरी ही बात है..

और क्या कहु में जानम..

कब से निहारे खड़ा तुझे
चाँद भी थक रहा है
की हल्की हल्की आँच पर
ये इश्क़ पक रहा है

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1 comment:

वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..