Thursday, July 30, 2009

सुगर क्यूब पिक्चर प्रजेंट्स "पापाजी"

सुगर क्यूब पिक्चर प्रजेंट्स "पापाजी"






रद्दी पेप्पर..
तपती दोपहरी में बाहर रद्दी वाले ने आवाज़ लगायी.. मैं उठ गया था.. मुझे लगा अखबार बहुत हो गए है इन्हें रद्दी में बेच दिया जाना चाहिए.. मैंने उस से पुछा अखबार का क्या भाव है.. वो बोला अंग्रेजी है या हिंदी?
मैंने कहा तुझे कौनसा पढना है? तू भाव बता..
अंग्रेजी का आठ, हिंदी का छ:
और मराठी का?
मराठी का तो.... मालूम नहीं साहब..
चल कोई बात नहीं छ दे देना..


मैं रद्दी निकालने लग गया.. पुराने अखबारों के बीच में एकदम से पापाजी की फोटो नज़र गयी.. और मैं फिर से उन गलियों में कही खो गया जब मैं बहुत छोटा था.. हमारे बड़े से घर में के बरामदे में बाहर बैठे पापाजी.. और उनके इर्द गिर्द जमा लोग.. पापाजी से मिलने दिन भर कई लोग आते थे.. मैं देखता था, पापाजी सबकी बाते बड़े ध्यान से सुनते थे... दादाजी का बनाया बहुत बड़ा घर था हमारे पास.. लेकिन पहले इसे दादाजी ने जमींदार के यहाँ गिरवी रखा था.. बहुत साल तक वो घर जमींदार के पास गिरवी ही रहा.. दादाजी के स्वर्गवास के बाद पिताजी शहर चुके थे.. उसी जमींदार के भाई के यहाँ पिताजी नौकरी करते थे.. एक दिन जमींदार के भाई ने पिताजी के साथ बदतमीजी कर ली थी.. बस तभी पिताजी उसकी नौकरी को लात मारकर वापस यहाँ गए थे..

गाँव आकर पिताजी ने देखा कि जमींदार ने घर पर कब्जा कर रखा है.. तीन कमरों को छोड़कर बाकी को जमींदार ने अपना गोदाम बना दिया था.. दो कमरों में दोनों चाचा जी रहते थे.. तीसरे में हम जाकर रहने लग गए थे.. चाचा जी हमेशा पिताजी को कहते थे कि जमींदार से घर छुड़वाना है तो जबरदस्ती करनी पड़ेगी.. पर पापाजी उनकी बात नहीं मानते थे.. पापाजी शांत स्वभाव के थे.. वो मना करते थे.. पापाजी जमींदार से बात भी कर आये थे.. उसने कहा था वो जमीन दे देगा.. पर वो कभी देता नहीं था..

एक रात बहुत हंगामा हुआ था घर में.. जब बड़े चाचा जी ने जमींदार के गोदाम में आग लगा दी थी.. पिताजी ने उस रात खूब फटकार लगायी थी उनको.. पिताजी नहीं चाहते थे कि हम चाचा से कोई बात भी करे इसीलिए उन्होंने अम्मा को बोलकर हमको आगाह कर दिया था.. पर मैं चाचा जी से अक्सर मिल लेता था.. मेरे दोनों बड़े भाई हमेशा पिताजी के साथ ही रहते.. पर मैं नहीं रहता था.. मुझे चाचा जी का साथ अच्छा लगता था.. उनकी बातो में एक अजीब सा जोश होता था.. मैंने जमींदार के प्रति उनकी आँखों में एक जूनून देखा था.. वो कहते थे.. "ये घर मेरी जमीन है.. मेरी माँ.. और मैं अगर अपनी माँ की लाज ना रख पाया तो ऐसा बेटा किस काम का ?"

फिर एक दिन घर में बहुत चुप्पी थी.. पता चला चाचा जी को पुलिस पकड़ कर ले गयी थी.. मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया.. पर बाद में पता चला.. जमींदार के बेटे ने चाचा जी के दोस्तों को गोलियों से मार दिया था.. और चाचा जी ने जमींदार के घर में घुस कर उसके बेटे को गोली मार दी.. पता नहीं ये सच था नहीं.. पर उस रात पुलिस आई थी.. पापाजी बहुत गुस्से में थे.. उन्होंने पुलिस वालो को बोला इसे ले जाकर जो सजा देनी हो दे दो.. हमारे पापाजी उसूलो के पक्के थे..सही न्याय के पक्षधर थे वो.. उस दिन के बाद से मैंने कभी चाचा जी को नहीं देखा.. पता नहीं कहाँ चले गए थे.. लोग कहते थे वो मर गए.. पर मैंने आज तक नहीं माना.. मुझे लगता है कही ना कही वो जिन्दा होंगे आज भी..

लेकिन एक बात बहुत अच्छी हुई थी इन सब में.. जमींदार के मन में डर बैठ गया था.. उसने हमारी जमीन हमको वापस दे दी.. उस दिन घर में दिवाली का माहौल था.. पापाजी मिठाई लेकर आये थे... घर अब हमारा हो चुका था था.. जमींदार गाँव छोड़कर अपने भाई के पास शहर चला गया .. मुझे लगा था अब सब ठीक हो जायेगा.. मगर ऐसा हुआ नहीं.. पापाजी जी की उम्र हो चुकी थी तो उन्होंने मेरे बड़े भाईसाहब को बुलाया और कहा कि मैं घर तुम्हारे नाम कर देता हूँ.. अब तुम ही संभालो.. पर हमारे मंझले भईया घर संभालना चाहते थे.. और पापाजी को मंझले भईया से अधिक लगाव था.. पर बड़े भाईसाहब नहीं माने.. पिताजी एक बार फिर दुविधा में थे..

मैं खामोश खडा देख रहा था.. बड़े भाईसाहब के बच्चे मंझले भईया के बच्चो से लड़ते रहते थे.. फिर एक रात पापाजी ने चौकाने वाला निर्णय लिया.. उन्होंने घर का बंटवारा कर दिया.. एक हिस्सा मंझले भईया को दे दिया.. और दूसरा हिस्सा बड़े भईया को.. मैं छोटा था तो मैं बड़े भईया वाली तरफ ही रहता था.. एक दिन जब मैं दोपहर में अकेला बैठा था तो देखा.. बड़े भईया के बच्चो को मंझले भईया के बच्चो ने मार के भगा दिया.. बदले में बड़े भईया के बच्चे भी मारने लगे.. दोनों में हाथापाई हो गयी.. देखते ही देखते हँसता खिलखिलाता आँगन लहुलुहान हो गया..

मैंने पापाजी की तरफ देखा.. वे बड़े भईया के बच्चो को समझा रहे थे.. लड़ाई मत करो.. मैं उस वक्त घर से बाहर निकल गया.. ये वक़्त बहुत बुरा गुजरा था.. फिर एक दिन मंझले भईया ने कहा कि उन्हें बड़े भईया से दस हज़ार रूपये मिलने चाहिए अपने घर को चलाने के लिए.. बड़े भईया ने साफ़ मना कर दिया.. पर पापाजी को मंझले भईया से ज्यादा लगाव था.. उन्होंने खाना पीना बंद कर दिया.. पापाजी ने धमकी दी थी.. जब तक मंझले भईया को पैसे नहीं मिलेंगे वे खाना नहीं खायेंगे.. हम लोगो की एक भी नहीं चली.. अम्मा ने जाकर बड़े भईया को समझाया.. तब बड़े भईया ने रूपये दिए.. लेकिन उनके बच्चे रोज़ रोज़ लड़ते रहते थे.. जाने अनजाने ही मुझे इन सबके पीछे पापाजी कसूरवार लगते..

आखिर हमने जमींदार से घर छुड़वाया ही क्यों था? इस से अच्छा तो घर जमींदार के पास ही रहता.. कम से कम हम सुखी तो थे.. आपस में लड़ते तो नहीं थे.. मैंने सोचा कभी पापाजी से जाकर पुछु कि कल को अगर मैं भी अपना हिस्सा मांग लु तो? लेकिन मैं जानता था.. पापाजी पर इन बातो का कोई असर नहीं होगा.. वो अपने बनाये नियमो पर पक्के थे.. फिर एक रात मैं बड़े भईया से मिलने पहुंचा.. देखा उनका बड़ा बेटा मर चुका था.. मैंने पुछा ये सब कैसे हुआ? वे बोले हमने पिताजी की बात मान कर हथियार नहीं रखे अपने पास.. पर मेरे बच्चे को मंझले के बच्चो ने इतना पीटा की उसका दम निकल गया.. मेरा खून खौल उठा था.. मैं ये जान चुका था.. कि पापाजी अगर इसी तरह मंझले भईया को नज़रंदाज़ करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस घर का कोई नामोनिशान नहीं रहेगा.. और ना ही बड़े भईया का परिवार कभी सुख से रह पायेगा..

पता नहीं कहा से मुझमे एक ताकत गयी थी.. मुझे चाचा जी के शब्द याद रहे थे... "ये घर मेरी जमीन है.. मेरी माँ.. और मैं अगर अपनी माँ की लाज ना रख पाया तो ऐसा बेटा किस काम का ?" मैंने दीवार पर लगी पापाजी की तस्वीर को प्रणाम किया और घर में पड़ी रिवाल्वर जेब में रखकर सीधा पापाजी के कमरे में घुस गया.. पापाजी उस वक़्त सो रहे थे.. उनको सोता देख मैं वापस लौट आया.. मैं जानता था.. पापाजी शाम को प्रार्थना के लिए जरुर बाहर बरामदे में आयेंगे.. मैंने देखा पापाजी सामने खड़े थे.. उनके आस पास हमेशा की तरह लोग जमा थे.. मैं उनके करीब गया.. और करीब.. वो ठीक मुझसे दो कदम की दूरी पर थे.. और मैंने रिवाल्वर निकाल कर गोली उनके सीने में चला दी... पापाजी वही निढाल होंकर गिर पड़े.. मैंने हाथ उठा लिए थे.. कोई मुझे आकर गिरफ्तार कर ले..

मुझपर मुकदमा चला.. मेरी उम्र कम थी इसलिए मुझे फांसी ना देकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी.. पर किस बात की सजा? सजा तो अपराधी को दी जाती है.. मैं कोई अपराधी नहीं था.. मैं अपराधी तब होता.. जब मैंने कोई अपराध किया होता.. मुझे कभी इस बात का दुःख नहीं हुआ कि मैंने पापाजी पर गोली चलायी.. उस वक़्त मुझे अपने घर को बचाना था.. पापाजी घर से बड़े नहीं थे.. अफ़सोस उन्होंने खुद को घर से बड़ा मान लिया था.. पर मैंने पापाजी को मुक्ति ही दी थी.. वरना आपस में लड़ते हुए अपने बच्चो को देखकर ना जाने उन्हें कैसा लगता..

पापाजी की मैं हमेशा से इज्जत करता था.. आज भी करता हूँ पर मैं पापाजी को कभी माफ़ नहीं कर सकता.. उनके एक फैसले की वजह से.. उनके अपने ही बेटो ने एक दुसरे के खून से हाथ रंग दिए थे.. ये सिलसिला तो आज भी जारी है.. दोनों भाइयो के बच्चे आज भी उसी तरह से लड़ते है.. मंझले भईया के बच्चे चोरी छुपे आकर.. बड़े भईया के बच्चो को मार के चले जाते है..

बाबु जी ऐसा क्या है तस्वीर में.. क्या देख रहे हो..
मैं अतीत से वापस लौटा.. रद्दी वाला मेरे नीचे पड़े अखबारों को उठा रहा था.. मैंने पुछा अंग्रेजी जानते हो?
वो बोला थोडी थोडी..
मैंने कहा अखबार में से कुछ पढ़ कर हिंदी बताओ उसकी..
उसने अखबार के ढेर में से एक उठाया.. और बोला देश के पापाजी..
मैंने पुछा क्या ? तो उसने अखबार मेरी तरफ बढा दिया..
तीस जनवरी का अखबार था..

Monday, July 13, 2009

उछालता कोई मुझे तो..



उछालता कोई मुझे तो
खिलखिला देती...
मुस्कुराता कोई तो
पलकें हिला देती..

पूछता कोई जो कुछ
जवाब आँखें हिला कर देती..
गोद मैं उठाता कोई तो
उसे गीला कर देती..


डाँटता कोई मुझे तो
झटमूट् रोती..
आती जब नींद तो
माँ की गोद में सोती..

मम्मी की पहन साड़ी
श्रृंगार मैं करती..
आ जाए ना कोई कमरे में
इस बात से डरती...

दादा को पकड़ कर
घोड़ा मैं बनाती..
ज़्यादा तो नही पर
खाना, थोड़ा मैं बनाती..

होती जब बरसात
ख़ूब मैं नहाती..
काग़ज़ की कश्तिया
पानी में बहाती..

फिर बड़ी हो जाती और
झूलती झूलो पे..
बन जाती तितली कोई और
घूमती फूलो पे...

सोमवार की पूजा के
फूल मैं चुनती..
आएगा कोई जो
उसके ख्वाब मैं बुनती..

ले जाता मुझे कोई
डोली में बिठाकर..
पलकों की छाओ में
आँखो में लिटाकार...

अपना फिर छोटा सा
परिवार मैं बनाती..
खशियो से सज़ा सा
संसार बसाती..

बाँट प्यार सभी को
सबके दर्द मैं लेती..
गर माँ तेरी कोख से
जन्म मैं लेती....

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Thursday, July 9, 2009

हर बारिश की अपनी एक अलग कहानी है..

अभी बाहर बारिश हो रही है.. हाथ की बोर्ड पर टक टक कर रहे है.. नज़रे खिड़की पर जमा है.. और मन है कि सोच रहा है एक फर्लांग भर कर सीधा सड़क पर पहुँच जाए और बारिश में दो चार ठुमके लगा ले.. ये बारिशे भी कितनी जालिम होती है.. हमेशा तब आती है जब आप बहुत बिजी होते है.. पर सब काम छोड़कर भीगे ही नहीं तो फिर बारिश कैसी ? बारिश का अपना रुल है.. या तो भीग जाओ या भाग जाओ..

वैसे हर बारिश की अपनी एक अलग कहानी है.. बचपन में स्कूल से लौटते वक़्त बारिश आ जाये तो किसी पेड़ के नीचे गीले होकर दांत बजाते हुए सहमे खड़े रहते थे.. पास में ही पड़ी गीली मिट्टी की महक मौसम को और लजीज बना देती..


घर में जहाँ तहा कमरे में कटोरे रखे मिलते.. बारिश में हर हिन्दुस्तानी की तरह अपनी भी छत टपकती थी.. फिर वो घर ही क्या जहा कभी छत से पानी न टपका हो..


हम तो खिसक लेते पुरानी निकर और बनियान पहनकर.. कागज़ की किश्तियों में कौन मेहनत करे इसलिए चप्पल ही पानी में बहा देते.. एक दो बार तो चप्पल की किस्मत भी टाइटैनिक सी निकली.. घर जाके अपने एक चौथाई दांत दिखा के बच गए थे.. वरना हाल तो अपना भी टाइटैनिक सा होना था..

बारिश में बिजली का जाना तो राजमे और चावल के साथ जैसा है.. जैसे ही बिजली जाती.. मोहल्ले के हर घर से चिल्लाने की आवाज़ आती.. बिना ब्लूटूथ के सब एक दुसरे से कनेक्टेड से लगते..

इतने सालो से कितनी ही बारिशे आई और गयी पर पकोडियो का दौर रुका नहीं.. जोधपुर के गरमा गरम मिर्ची बडो के लिए तो कत्ले आम हो जाता है.. चाय पे चाय चलती है.. खिड़की के नीचे हार्न बजता है और आवाज़ आती है "अबे बारिश हो रही है और तू घर में बैठा है.." छतो पर चढ़कर सब तेरी वाली मेरी वाली करते है.. बस शेल्टर के नीचे खड़े लोग खुद को खुशनसीब समझते है.. रिक्शे वाले अपनी बीडी सुलगा कर रिक्शे में बैठ जाते है.. कोलेज की लड़किया सड़क पर जमा पानी से छलांगे मार मार कर आगे बढती है.. कार के वाइपर्स की कामचोरी करने से लोग हाथ बाहर निकालकर रुमाल से कांच साफ़ करते है.. बिना हेलमेट लोग धड़ल्ले से गाडी चला रहे है.. पुलिस वाले भी केबिन में है.. आज तो बारिश हो रही है ना.. सबको छूट है..


चलते चलते
रिक्शा
बाहर उल्टा पड़ा है.. घर में तवे का भी यही हाल है... किसनू सोच रहा है बारिश रुक जाये तो चूल्हा चालु हो... बंटी बालकनी में आ चुका है.. खुश हो रहा है.. ट्यूशन से छुट्टी..! हे भगवान ये बारिश ऐसे ही होती रहे..

कहा ना मैंने.. हर बारिश की अपनी अलग कहानी है..