वैसे हर बारिश की अपनी एक अलग कहानी है.. बचपन में स्कूल से लौटते वक़्त बारिश आ जाये तो किसी पेड़ के नीचे गीले होकर दांत बजाते हुए सहमे खड़े रहते थे.. पास में ही पड़ी गीली मिट्टी की महक मौसम को और लजीज बना देती..
घर में जहाँ तहा कमरे में कटोरे रखे मिलते.. बारिश में हर हिन्दुस्तानी की तरह अपनी भी छत टपकती थी.. फिर वो घर ही क्या जहा कभी छत से पानी न टपका हो..
हम तो खिसक लेते पुरानी निकर और बनियान पहनकर.. कागज़ की किश्तियों में कौन मेहनत करे इसलिए चप्पल ही पानी में बहा देते.. एक दो बार तो चप्पल की किस्मत भी टाइटैनिक सी निकली.. घर जाके अपने एक चौथाई दांत दिखा के बच गए थे.. वरना हाल तो अपना भी टाइटैनिक सा होना था..
बारिश में बिजली का जाना तो राजमे और चावल के साथ जैसा है.. जैसे ही बिजली जाती.. मोहल्ले के हर घर से चिल्लाने की आवाज़ आती.. बिना ब्लूटूथ के सब एक दुसरे से कनेक्टेड से लगते..
इतने सालो से कितनी ही बारिशे आई और गयी पर पकोडियो का दौर रुका नहीं.. जोधपुर के गरमा गरम मिर्ची बडो के लिए तो कत्ले आम हो जाता है.. चाय पे चाय चलती है.. खिड़की के नीचे हार्न बजता है और आवाज़ आती है "अबे बारिश हो रही है और तू घर में बैठा है.." छतो पर चढ़कर सब तेरी वाली मेरी वाली करते है.. बस शेल्टर के नीचे खड़े लोग खुद को खुशनसीब समझते है.. रिक्शे वाले अपनी बीडी सुलगा कर रिक्शे में बैठ जाते है.. कोलेज की लड़किया सड़क पर जमा पानी से छलांगे मार मार कर आगे बढती है.. कार के वाइपर्स की कामचोरी करने से लोग हाथ बाहर निकालकर रुमाल से कांच साफ़ करते है.. बिना हेलमेट लोग धड़ल्ले से गाडी चला रहे है.. पुलिस वाले भी केबिन में है.. आज तो बारिश हो रही है ना.. सबको छूट है..
चलते चलते
रिक्शा बाहर उल्टा पड़ा है.. घर में तवे का भी यही हाल है... किसनू सोच रहा है बारिश रुक जाये तो चूल्हा चालु हो... बंटी बालकनी में आ चुका है.. खुश हो रहा है.. ट्यूशन से छुट्टी..! हे भगवान ये बारिश ऐसे ही होती रहे..
कहा ना मैंने.. हर बारिश की अपनी अलग कहानी है..
Baarish ka behad vyaavhaarik, pramaanik aur bhaartiy anubhav. Badhai
ReplyDeleteसच ही कहा है दोस्त ये बारिश भी अजीब है ...किसी के लिए रूमानी तो किसी के लिए जालिम ....फर्क तो बस इंसान का है
ReplyDeleteबहुत खूब। सच हर बारिश की अपनी एक कहानी होती है। फोटो अच्छा है। वैसे हम भी बरखा का इंतजार कर रहे है कि वो आए तो हम भी कुछ लिखे उसके साथ बैठकर पर वो है कि बस कुश भाई के पास बैठी हुई है।
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने हर वारिश की एक आपनी कहानी होती है ..............कही जमीन तो कही पानी नही होती......बहुत ही सुन्दर्
ReplyDeleteमिर्ची वादों की याद दिलादी तुमने....शाम को बनाने पड़ेंगे...हमारे यहाँ तो मिलते नहीं...भिजवा दो....
ReplyDeleteवाह कुश जी सही कहा आपने भारत में बारिश की बात ही अलग हैं .
ReplyDeleteहां भाई अब तो बारिश भी एक जश्न मनाने लायक बात होगई है. बहुत लाजवाब लिखा. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कॉमेंट्स की लंबी फेहरिस्त में अब हमारा भी नाम हुआ करेगा कुश भाई...
ReplyDelete" आपने बचपन को साकार कर दिया... यह तस्वीर हमारे घर पर आज भी वैसे का वैसा है जैसा आपने बयान किया
बहुत अच्छा लिखा आपने... दिल जीत लिया
badhiyan lekh hai baarish par, aisa laga jaise aas paas ki zindgi simat kar shabdon mein aa baithi ho
ReplyDeleteबहुत ही रोचक पोस्ट...बात कहने में आपका जवाब नहीं...भाषा और शिल्प हमेशा की तरह लाजवाब....मजा आ गया पढ़ कर...मंटो की किताब इस बार शत प्रतिशत पक्की...
ReplyDeleteमेरा कहना है:-
"खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए"
अहमद फ़राज़ साहेब फरमाते हैं:
"इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़
कच्चा तेरा मकान है कुछ तो ख्याल कर "
नीरज
"जोधपुर के गरमा गरम मिर्ची बडो के लिए तो कत्ले आम हो जाता है.. चाय पे चाय चलती है.. खिड़की के नीचे हार्न बजता है और आवाज़ आती है "अबे बारिश हो रही है और तू घर में बैठा है.." छतो पर चढ़कर सब तेरी वाली मेरी वाली करते है.. बस शेल्टर के नीचे खड़े लोग खुद को खुशनसीब समझते है.. रिक्शे वाले अपनी बीडी सुलगा कर रिक्शे में बैठ जाते है.. कोलेज की लड़किया सड़क पर जमा पानी से छलांगे मार मार कर आगे बढती है.. कार के वाइपर्स की कामचोरी करने से लोग हाथ बाहर निकालकर रुमाल से कांच साफ़ करते है.. बिना हेलमेट लोग धड़ल्ले से गाडी चला रहे है.. पुलिस वाले भी केबिन में है.. आज तो बारिश हो रही है ना.. सबको छूट है.."
ReplyDeleteएसा ही है जोधपुर... पुरानी याद दिला दि कुश..
:))))))))))
ReplyDeleteसाधारण सी बारिश की बात को कितना मजेदार बना दिया आपने ....
नाव तो लगभग सभी ने बहाई पर चप्पल भी .....वो भी टाइटेनिक की तरह :)))
Interesting !!!
Barish par theory of relativity ka sundar prayog kiya hai...aapke lekhan se hamein purane bheege se din yaad aa gaye.
ReplyDeleteBadhiya hai....
बहुत बढ़िया लिखा बारिश के ऊपर वाकई में ऐसी ही होती है बारिश धन्यवाद .
ReplyDeleteआज तो अपने यहाँ भी बारिश है ये पकौडे अच्छे याद दिलाये बस खाने की तयारी कीजिये बहुत बडिया लिखते हैं शब्दोंकी बारिश की बधाई
ReplyDeleteसच कहा .............. हर बारिश से जुडी अलग अलग यादें होती हैं ..... हर बारिश की अपनी एक कहानी होती है...... lajawaab post
ReplyDeleteohhhhhhhh....! sach ...! bilkul mere mohalle ki barish...! yaha.n lucknow me nahi hoti aise aft effects barish ke..ya hote bhi honge jinka bachpan yaha beeta hoga unke sath...!
ReplyDeleteabhi to lekin us tarah barish bhi nahi ho rahi...!
कितने मायने हैं और बारिश एक!!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन चित्रण-जीवंत लेखन! बधाई.
बहुत खुब इस से भी ज्यादा शरारते हम भी करते थे, वो कागज की कश्ती बनाना, जोहड के गन्दे पानी मै नहाना, भाई बहुत कुछ याद दिला दिया आप ने
ReplyDeleteवाह! बहुत बढिया चित्रण
ReplyDeleteबचपन में स्कूल से लौटते वक़्त बारिश आ जाये तो किसी पेड़ के नीचे गीले होकर दांत बजाते हुए सहमे खड़े रहते थे।
खूबसूरत अभिव्यक्ति...कुछ पंक्तियां तो वाकई कमाल हैं।
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है, कुश भाई। शानदार अभिव्यक्ति। मीतू जी के कॉमेंट को भी हमारा ही माना जाए!
ReplyDeleteएक बारिश, हजार अफसाने।
ReplyDeleteकितने जाने, कितने अनजाने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अब के सावन ऐसे बरसे ....पर यहाँ तो बरस ही नहीं रहा ..:) आपके लिखे से बारिश की यादे ताजा हो गयी ...बारिश की मीठी फुहार दिल में याद आये बातें हजार ..लिखते रहा करो ..
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन लिखा है कुश. पोस्ट पढ़कर सबकुछ आँखों के सामने आ गया. बरसात में भीग नहीं पाते अब. भाग जाते हैं. लेकिन मन भी ललचाता है.
ReplyDeleteइधर भी यही हाल है :) भीग आये हम भी.
ReplyDeleteइस बार की बारिश तो रुला रही है कुश !
ReplyDeleteअनुराग जी की एक त्रिवेणी याद आ गयी...
ReplyDeleteकासिद बनकर आया है बादल
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है,
आसमां से आज कई यादे गिरेंगी.....
कुश जी आपने बहुत ही अच्छा लिखा है....
बहुत ही अच्छा लिखा कुश साहब...विशेष कर चलते चलते ने तो मन मोह लिया... ब्लूटूथ वाली बात भी सच हैं... पुराने दिन यादों में ताजे करा दिए...साधू.
ReplyDeleteमुई बारिशे होती है ऐसी है....फितरते नहीं बदलती ...कभी यूँ होती है........
ReplyDeleteकासिद बनकर आया है बादल
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है .....
आसमां से आज कई यादे गिरेंगी
ओर कभी यूँ की ख्वाहिश की जाती है....
सोचता हूँ अब इन नेज़ो को तराश लूँ
ओर घोप दूं आसमान के सीने मे.........
इल्म क़ी बारिश हो ओर वतन भीग जाये
हमारे शहर में शाम को गिरी है .आधी आधी....पर इन दिनों उदासी की परत है.शायद उसे बहा ले जाए ...
ReplyDeleteसच ही लिखा है तुमने, अपने हिस्से का सच !
सबों के सच भी अलग अलग हुआ करते हैं, यही है तुम्हारा ईमानदार सच !
लिखा तो भाई आपने बहुत उम्दा और जीवंत है, लेकिन हमारी ओर भी बारिश लाओ न.
ReplyDelete....और फिर बारिश में तो काफ़ी का मज़ा दोबाला हो जाता है:)
ReplyDeleteवास्तव में हर बारिश अलग होती है। हम तो अभी इंतजार में हैं।
ReplyDeleteबारिश का रूल भीग जाओ या भाग जाओ का पता आज ही चला ,धन्यबाद
ReplyDeleteबारिश का अपना रुल है.. या तो भीग जाओ या भाग जाओ..
ReplyDeleteपूरे लिखे से जैसे बारिश खुद टप-टप कर बरस रही हो...लैपटाप के स्क्रीन से बाहर निकल भीगोती हुई..
ये भी एक कहानी है।
और बारिश के रूल ने कायल किया
इतनी बढ़िया पोस्ट पढने के बाद तो अब सिर्फ बारिश का ही इंतज़ार है.
ReplyDeleteये भी खूब रही
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
वीनस केसरी
जोधपुर के मिर्ची बड़े याद आ गए। जयपुर की बारिश याद आ गई। बिड़ला मंदिर की हरितिमा का हर मौसम में एक बार ओलों से पट जाना, रामनिवास बाग के परिंदों के आशियानों का आंधी में तबाह होना, एमआई रोड की सड़कों पर रुका पानी और ब्रह्मपुरी में घुटनो घुटनो तक बाढ़....भई वाह
ReplyDeleteआनंद लिया हमने...
bahut behtarin baarish mein yaa bhigo ya bhag jaao,waah,sahi har barsat ki ek kahani,bahut hi sunder vivaran.
ReplyDeleteअब तो बारिश की बातों से ही जी बहलाना पड़ेगा:(
ReplyDeleteशुक्रिया, कुछ तो मन भीगा।
बिलकुल सही कहा....सबके लिए बारिश एक सी नहीं होती....
ReplyDeleteजो भी हो ,पर तुम्हारे लेख ने तो आनंद की बौछारों में भिगों दिया.....लाजवाब लिखा है....लाजवाब !!!
:):)
ReplyDeleteमिर्ची बड़े के नाम से ही यादें उभर आईं। जोधपुर में महेश मल्टीपरपज स्कूल में दोपहर में १० पैसे का मिलता था कण्टीन से। मिर्ची मित्र गण खाते थे और उसको लपेटने वाले बेसन को बतौर सब्जी मैं इस्तेमाल करता था।
ReplyDeleteकितनी पुरानी बात पर कितनी जतन से मन में सहेजी हुई!
आप के लेख से ये पंक्तियाँ मजेदार लगीं..'कागज़ की किश्तियों में कौन मेहनत करे इसलिए चप्पल ही पानी में बहा देते.. एक दो बार तो चप्पल की किस्मत भी टाइटैनिक सी निकली.'
ReplyDelete-अंत में इसी बारिश की एक अलग दास्ताँ सुना दी जो दुखद है.
--दमदार शीर्षक जो विषय की पूरी कहानी कह गया...
बारिश के दोनों पहलू अंदर तक उतर गयेद्। बधाई
ReplyDeleteAakhir hum 10 din ki lagataar mehnat ke baad pahunch gaye
ReplyDeleteBairsh wah mujhe pasand hai barish mein bheegna aur pakode
maza aa gaya
bahut achha laga padhna
Aapne bilkul such kaha ki har barish ki apni ek kahani hoti hai ... aur uska maja bhi alg alg hota hai..
ReplyDeleteRegards..
DevPalmistry : Lines Tell the Story Of ur Life
हम भी भीगे . आपने तो मन भीगा दिया .
ReplyDeleteSundar chitr ke saath, manbhavan post...!Itnee tippaniyon ke baad..likhe bhee to kya..?
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
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har barish ki apni alag kahani hoti hai
ReplyDeleteshayad har mausam ki baarish ki bhi
har shahar ki baarish ki bhi
hindi tol kaam nahi kar raha hai bhaikush islie likhne men majaa nahi aa rahi hai
warna kahne ko to bahut kuchh tha