Tuesday, June 16, 2009

आँठवा अखबार

देर रात मालिनी आईने के सामने बैठी रही.. आने वाले मेहमान को निहार रही है.. बगल वाले कमरे के दरवाजे के खटखटाने की आवाज़ से बेखबर.. जानती है कि थोडी देर बाद ये आवाज़ बंद हो जायेगी.. रात और लम्बी होती जा रही है.. मालिनी सोने की कोशिश कर रही है.. वो जानती है कि उसे सुबह जल्दी उठना है.. सोचते सोचते उसकी आँख लग गयी है..

सुबह दस्तक दे चुकी है.. मस्जिद की तरफ से अजान सुनाई दे रही है.. अँधेरा अभी है थोडा सा.. गाडी फूटपाथ पर पहुची और अखबारों का बण्डल फेंका.. अखबार वाले ने अख़बार उठाया.. आँखे मली और साइकिल उठाली..

इधर मालिनी की भी आँख खुल गयी.. आज थोडी थकान लग रही है.. आखिर सातवा महिना चल रहा है.. वो जानती है उसे क्या करना है.. तैयारी कर रही है.. बस उसे देर नहीं हो जाये..

साइकिल पर तेजी से पैडल मारता हुआ अखबार वाला गली में घुस रहा है.. मालिनी इस बात से बेखबर है की बगल वाले कमरे से बालकनी का दरवाजा खुल चुका है.. अखबार वाले ने पहला अखबार फेंक दिया है.. आँठवा अखबार इसी घर में गिरेगा.. मालिनी जल्दी से जल्दी नहाकर बाहर आना चाहती है.. चौथा अखबार भी फेंक दिया अखबार वाले ने..

मालिनी जल्दी से बाहर आने की कोशिश कर रही है॥ ये सातवा अखबार भी फेंक दिया उसने... बालकनी के नीचे चुका है अखबार वाला॥... ऊपर बालकनी में देखता है और सहम जाता है.. घोष बाबु खड़े है अखबार मांग रहे है.. अखबार वाला सोच रहा है क्या करे। घोष बाबु चिल्लाये... अबे देता क्यों नहीं है अखबार..

मालिनी ने सुन लिया वो भागी उसे रोकना होगा.. अखबार वाला सोच रहा है क्या करे ? घोष बाबु की बैचैन आँखे उसे मजबूर कर रही है.. वो अखबार फेंकने के लिए हाथ उठाता है.. मालिनी तेजी से भागती है.. अखबार हवा में उछला जा चुका है.. मालिनी जैसे ही पहुचती है.. घोष बाबु जोर से चिल्लाते हुए अन्दर की तरफ़ भाग जाते है.. घोष बाबु जोरो से रो रहे है. मालिनी को जिस बात का डर था वही हुआ... घोष बाबु कमरे के अन्दर चले गए और जोर जोर से दीवार पर सर मर रहे है... मालिनी की आँखों में आंसू है... पर वो जानती है ये उसे अकेले करना है वो इंजेक्शन में दवाई भर रही है... घोष बाबु ने हाथ उछाल दिया॥ मालिनी फ़िर से उनकी तरफ़ लपकी... इस बार उसने हाथ पकड़ कर इंजेक्शन लगा ही दिया॥ घोष बाबु की आँखे बंद हो रही है वो नीचे गिर चुके है... मालिनी ने उनके सर के नीचे तकिया रख दिया है... आँखों से गिरते आंसू लिए उसने अखबार उठाया है... उसे तो कोई इंजेक्शन लागने वाला भी नही है... आख़िर उसे ही अपने आने वाले बच्चे और अपने ससुर को संभालना है... उसने अखबार को खींच कर दीवार पे मारा है...

और रोते हुए देख रही है दीवार पर लगी अपने पति की तस्वीर को और पूछ रही है क्यो नही ले गए हमें भी साथ... वैसे भी कौनसा जी रहे है हम... रोज़ सुबह बाबूजी की ये हालत देखी नही जाती... हर रोज़ इस उम्मीद पर की आज उस आतंकवादी को सजा मिलेगी जिसने उनके इकलौते बेटे को लील लिया... मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया और एक अजन्मे बच्चे के बाप को... जिसकी तो कोई गलती भी नही थी... डाक्टर कहते है बाबूजी की दिमागी हालत ठीक नही ... मैं अकेली कैसे करू ये सब... अब और नही देख सकती मैं ऐसे...

आज रात मालिनी ने एक फ़ैसला कर लिया है...

अगले दिन अखबार वाला फ़िर से आया है आज कोई बालकनी में उसे दिख नही रहा है... उसने अखबार फेंक दिया है मगर कोई आया नही... बाबूजी चैन से सो रहे है मालिनी भी नही उठ रही... पता नही कल रात को लिया गया मालिनी का फ़ैसला सही था या ग़लत...

पर अखबार में आज की ताज़ा ख़बर है वो आतंकवादी नाबालिग है...

Wednesday, June 3, 2009

जैसी बची है वैसी की वैसी बचा लो रे दुनिया..

मुसीबतों में भी लोगो को आशा की किरण नज़र जाती है.. देखिये ना हमारे घर के सामने करीब सौ सालो से जिन्दा एक महिला की मृत्यु हो गयी.. पता चला बीमार थी लेकिन मौत नहीं रही थी तो घर वालो ने उसे मुक्ति देने के लिए ४६ डिग्री टेम्प्रेचर में बिना पंखे वाले एक कमरे में सुला दिया.. बुढ़िया को रातो रात मुक्ति मिल गयी.. कल शाम को उस कमरे की खिड़की पर कूलर लग गया.. अब उसमे छोटा पढाई करेगा.. मेरे मोबाइल पर गाना बज रहा है.. "ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.." नहीं प्यासा का नहीं, गुलाल का है.. पुरानो की अब वेल्यु नहीं रही.. मैं पूरी रात इस घटना पर करवटे बदलता रहा..

दिसम्बर का महिना मैं अपने दोस्त के पिताजी की डेथ के बाद उस से मिलने गया.. डेथ के सात दिन बाद पहुंचा घर पर कुछ काम चल रहा था.. दीवार बनायीं जा रही थी... दुबई से छोटेवाले चाचा जी आये है अगले सप्ताह उनकी फ्लाईट है.. इसीलिए.. काम जल्दी हो रहा है... स्टार वन पर एक प्रोग्राम रहा है.. "दिल मिल गए.. "

एक महिना पहले मैं अपने जूते पोलिश करवा रहा था एक पंद्रह सोलह साल का लड़का था.. इतने में एक आदमी आया पोलिश वाले ने उसको कुछ रूपये दिए मैंने पुछा क्या है तो बोला ब्याज पे पैसे लिए है.. थोडी देर बाद वो बोला अब ऐसे हालात नहीं रहेंगे.. बस पंद्रह दिन की बात है फिर हमारे पास भी गाडी होगी.. बहुत जल्द मैं करोड़पति बनने वाला हूँ.. मैंने पुछा कैसे? तो बोला अहमदाबाद में किसी में माता आई है.. वहा पर कुछ भी ले जाओ वो सोना बन जाता है ... तीन दिन पहले देखा वो अभी भी वही जूते पोलिश कर रहा था.. मेरी हिम्मत नहीं हुई उसके पास जाने की.. सड़क के उस पार मंदिर के जीर्णोद्वार के लिए चंदा इकठ्ठा किया जा रहा है..

किसी ऑफिस के बाहर बैठा गार्ड अपनी लाचारी को तौलिया सर पे रखे ढो रहा है.. सूरज उसको दादागिरी दिखा रहा है.. मैं ऊपर देखता हूँ.. और पूछता हूँ हिम्मत है तो सी वालो को दिखाओ ये गर्मी.. वो मेरी बात का जवाब नहीं देता पर शाम को थोडी बारिश होती है.. शुक्र है थोडी तो गैरत है सूरज में.. अगले दिन सुबह ऑफिस आता हूँ मेरा सी खराब है.. खिड़की से बाहर देखता हूँ सूरज मुस्कुरा रहा है.. कितना इगो होता है ना लोगो में.. ?

रात के बारह बजे मैं फोन पर किसी से लड़ रहा हूँ.. उस गार्ड की खातिर जो सर पे तौलिया रखे बैठा है.. कूलर क्यों नहीं दे देते उसको..? मुझे जवाब मिला है.. गार्ड का काम ही वही है.. उसको कूलर कैसे दे सकते है.. बी प्रेक्टिकल..! रात बीत चुकी है सुबह सुबह मेरा होंकर पूरी दुनिया को बण्डल में बाँध के फेंकता है.. मैं चाय बनाने के लिए दूध गर्म करता हूँ.. अखबार में खबर है.. डेढ़ साल की बच्ची का बलात्कार.. मैंने दूध पूरा वाश बेसिन में डाल दिया है...


आज रात को फोन पर फिर से वही जवाब मिला है... बी प्रेक्टिकल.... गुलाल का गाना अभी भी बज रहा है..
जैसी बची है वैसी की वैसी बचा लो रे दुनिया...