Monday, June 30, 2008

फिर फँसे बच्चू!! (यादो की गुल्लक फूटी है)

बात है स्कूल के दिनो की.. फिज़िक्स का प्रेक्टिकल था उस दिन.. आम तौर पर बायो वालो के लिए थोड़ा सा मुश्किल ही होता है फिज़िक्स समझना.. डा.साहब भी सहमत होंगे मुझसे..खैर सर ने पहले ही आकर बता दिया की स्पेक्टरॉमीटर सेट है जाकर के सिर्फ़ रीडिंग ले लेना उसे छेड़ना मत वरना रीडिंग्स चेंज हो जाएगी.. सारी इंस्ट्रकसंस समझा दी गयी.. फिर भी हम पर भोले बाबा का आशीर्वाद जो है.. तो हम भी भोले भले.. जाके छेड़ ही दिया.. बस फिर क्या रीडिंग हो गयी चेंज.. इतने में एक्सटर्नल महाशय आ गये.. मुझसे पूछने लगे ये कैसे सेट करोगे.. मैने जो पता था बता दिया.. वो पास में खड़े होकर बोले करो.. अब हमने आवाज़ लगाई हनुमान जी को (अरे जनाब मन में आवाज़ लगाई थी.. आप भी ना यार) खैर शायद हनुमान जी वही से कही गुज़र रहे होंगे तो उन्होने सुन ली.. सर गये.. इतने में मैने अपने एक दूसरे सर को बुलाया, नाम था अजय सिंह उनको मैने कहा की सर ये ठीक कर दो.. सर ने आकर के ठीक तो किया पर हुआ नही.. रीडिंग सही नही आ रही थी..
थोड़ी देर मशक्कत के बाद वो बोले की रतन सर को बुला लो.. अब रतन सर जो थे वो थे हमारे सीनियर सर उनसे हमे बड़ा डर लगता था.. उनको बुलाया.. आते ही गुस्से में बोले जब मना किया था तो छेड़ा क्यो.. मैने कहा सर मैने थोड़े ही छेड़ा ये तो वो अजय सर छेड़ के चले गये..
बस फिर क्या था.. रतन सर सबके सामने बोले अजय जी आप क्या करते हो यार क्यू छेड़ के गये इसका यू ही टाइम वेस्ट हो गया.. अजय सर की सिट्टी पिट्टी गुम.. वो बोले सर छेड़ा तो इसी ने था.. मैने तो ठीक कर के दिया था..
और सर हमारी तरफ पलटे.. मैने कहा सॉरी सर.. सर जी कहने लगे काफ़ी स्मार्ट हो..
आप भी मान ही गये होंगे की स्मार्ट तो हू...

आगे फिर क्या हुआ सुनिए तो सही.. वाईवा बाकी था.. एक्सटर्नल जनाब कुर्सी पर बैठे थे.. हमसे नाम पूछा उन्होने.. भगवान कसम उस समय माता सरस्वती स्वयं हमारी जीभ पर विराजमान थी हमने अपना पूरा नाम बताया.. वो कुर्सी पर मेंढक की तरह उछल पड़े और बोले वैष्णव हो.. हमें लगा जैसे वैष्णव होना इस धरती का सबसे बड़ा पाप है.. लेकिन खुद को संभाल कर मैने कहा .. यस् सर ..
बस फिर क्या था हमारा टेस्ट शुरू.. पापा क्या करते है.. घर मैं कौन कौन है.. नानाजी का नाम , दादा जी का नाम.. चलो बढ़िया पापाजी को मेरा नमस्ते कहना...
मैने कहा वाईवा ?? वो बोले हो गया, जाओ
हम बजरंग बली की जय बोल के बाहर भाग आए ..

तो ये था हमारा टेस्ट.. आप समझ ही गये होंगे.. की वो सर भी वैष्णव ही थे.. और धन्य हो भारत का जातिवाद, हमारे फिज़िक्स प्रॅक्टिकल मैं 50 मैं से 47 मार्क्स आए थे... लेकिन ये सब सिर्फ़ इसलिए नही हुआ.. की सर वैष्णव थे.. बल्कि इसलिए हुआ.. की हनुमान जी तब भी मेरे आस पास ही थे..

Saturday, June 28, 2008

कहानी फूलकंवर और चंदू की... (भाग - चार)

पिछली कड़ी में आपने देखा किस तरह चंदू फुलो के घर तक जाने में कामयाब हुआ, फुलो का भाई माखन चंदू को घर में ले गया.. चंदू खटिया पर बैठा ही था की एक आवाज़ आई..

चंदू!!
पीछे से एक आवाज़ आई.. चंदू ने मुड़कर देखा तो फुलो खड़ी थी.. पीले सलवार कमीज़ और सफेद चुननी में बालो में लाल रीबिन लगाए.. आँखो में काज़ल डाले किसी परी जैसी लग रही थी.. चंदू ने उसकी आँखो में देखा तो बस देखता ही रह गया.. दोनो एक दूसरे को देखने में इतना खो गये की पता ही नही चला कब माखन आ गया..

अरे भाई कहा खो गये.. माखन बोला.. चंदू हड़बड़ाया.. क क क्या.. माखन बोला ये हमारी बहना है फूलकंवर .. इसको देखके हर कोई चकरा जाता है.. इधर आ फुलिया. हम मिलाते है तुझको चंदू से.. ये चंदू है अपने पीछे वाली गली में ही रहता है.. हमारे साथ स्कूल में पढता था.. फुलो और चंदू मंद मंद मुस्कुरा रहे थे.. चल अब जल्दी से दो गिलास लस्सी ले आ हम दोनो के लिए... माखन बोला.. फुलो ने कहा लस्सी तैयार है आप ले लो मुझे तो डूंगरी वाले हनुमान जी के मंदिर जाना है,.. शीला मेरी राह देख रही होगी.. अच्छा चल ठीक है तू जा मैं खुद ही ले लूँगा ..

फुलो तिरछी निगाओ से चंदू को देखकर बाहर चली गयी.. हाए ये प्यार की तिरछी नज़र का नज़राना, कितनो की लस्सी छुड़वा चुका है.. चंदू बोला यार माखन मैं भी चलता हू.. लस्सी फिर कभी पी लूँगा.. घर पे बापू इंतेज़ार कर रहे होंगे.. लेकिन माखन बोला बस दो मिनिट का काम है. बैठ तो सही.. नही माखन फिर कभी, आज ज़रा जल्दी है.. चल ठीक है जैसी तेरी मर्ज़ी.. चंदू फटाफट उठा और साइकल संभाली.. तेज़ तेज़ पेडल मार के बाहर निकल गया.. थोड़ी दूर जाते ही उसे फुलो दिख गयी.. लेकिन यहा आस पास लोग काफ़ी थे.. तो अपना चंदू आगे जाकर पुराने बरगद के नीचे बैठ गया और फुलो का इंतेज़ार करने लगा.. इतने में फुलो पहुँची वहा.. क्यो चंदू दुनिया के सामने हमसे बात करने में शरम आती है क्या.. हम इतनी दूर से पैदल आए और तू मज़े से साइकल पे आकर यहा बैठा है.. चंदू ने कहा अरे पगली सब ख्याल रखना पड़ता है.. फिर मुझे परवाह मेरी नही तेरी है.. मैं तो सारे गाँव के बीच तुझे कंधे पे बिठा लू.. मगर कल को किसी ने तुझे मेरे साथ देख कर तेरे बापू को कुछ बोल दिया तो तेरी बदनामी हो जाएगी.. और चंदू के रहते कोई फुलो को कुछ बोल दे ये हो नही सकता..

फुलो के चेहरे पे मुस्कान आ गयी.. इतना प्यार करता है मुझसे?.. नही इस से भी ज़्यादा चंदू बोला.. चल अब तो यहा कोई नही बिठा के ले चल अपनी साइकल पर.. बस फिर क्या.. चंदू अपनी फुलो को आगे साइकल पर बिठाकर पेडल मारने लगा.. दोनो बातें करते हुए खिलखिलाते हुए पहुँच गये डूंगरी वाले हनुमान जी के मंदिर पे.. दोनो हनुमान जी के आगे हाथ जोड़ कर खड़े हो गये.. चंदू ने मन ही मन कहा "हे हनुमान जी आप तो संकट मोचन हो.. ये मेरे साथ जो आई है ना फुलो, बड़ी भोली है इसके सारे संकट मुझे दे देना और मेरी सारी खुशिया इसे" उधर फुलो हनुमान जी से कह रही थी.." हे बजरंग बली इस फुलो को तो आपने हमेशा जो माँगा वो दिया.. मुझे कुछ नही चाहिए बस मेरा चंदू हमेशा खुश रहे.." किसी ने सच ही कहा है प्यार में लोग एक दूसरे के लिए जीते है.. हनुमान जी को हाथ जोड़ के दोनो पीछे वाली डूंगरी पे जाकर बैठ गये जहा से सारा गाँव नज़र आता है..

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घने मुलायम काले बॉल
खिले खिले मतवाले बॉल

डाबर आँवला केश तेल...

रेशम सा एहसास जगे
चेहरा कितना ख़ास लगे..

आपके बॉल हो या श्रीदेवी के बॉल, सालो साल रखे ख्याल..
डाबर आँवला केश तेल..


विज्ञापन समाप्त

दोनो उपर डूंगरी पे बैठे थे.. वहा से सारा गाँव नज़र आता था.. और दरिया में बहता पानी भी.. सुन फुलो! हा बोल.. अगर आज तेरे भाई माखन को पता चल जाता तो? .. तो क्या माखन तो तुझे छोड़ता ही नही पहलवानी जो करता है.. अरे जा जा मैं भी कोई कम नही हू.. बिज्जो मौसी के घर जब चोर घुसे थे.. तो मैने ही पकड़ा था उसको.. माखन मेरे आगे तो चूहा है.. देखो चंदू हमारे भाई को कुछ ना बोलना.. अरे क्यो ना बोले वो तो है ही चूहा.. बंदर जैसे तो हंसता है.. चंदू ने चिढाया.. जाओ हम तुमसे बात नही करते.. अब प्यार में हिरोइन रूठेगी नही तो फिर प्यार कैसा? और हमारा चंदू लगा मनाने .. अरे मेरी फुलो मैं तो मज़ाक कर रहा था.. तू भी ना छोटी छोटी बातो का बुरा मान जाती है..

अब मान भी जाओ फुलो . आइन्दा कुछ नही कहूँगा तुम्हारे भाई को.. चल एक काम करता हू परसो जो अष्टमी का मेला लगेगा ना गाँव में वहाँ से तुझे काँच की चूड़िया दिलाऊँगा.. फुलो ने चंदू के सामने देखा और पूछा सच्ची? हा बाबा सच्ची.. तू आएगी ना वहाँ ? तेरे साथ ? और नही तो क्या.. तेरे साथ कैसे आऊ चंदू ? वहा तो सब घरवाले आएँगे हमारे साथ.. बाबूजी,माँ, माखन भैया और भाभी और मेरा छोटा भाई.. सब तो होंगे वहा.. मुझे कुछ नही पता चंदू गुस्से में बोला.. तुझे मेरे साथ झूले में बैठना पड़ेगा.. वो बड़े वाला झूला है ना 'ढोलर चाकरी' उसमे.. बहुत तेज़ तेज़ घूमता है.. अच्छा बाबा देखूँगी.. अच्छा बता मैं क्या पहन कर आऊ? फुलो ने पूछा,.. अब मैं क्या बताऊ जो मन में आए पहन लेना.. अरे ऐसे कैसे.. तेरी पसंद तो बता..

कुछ भी पहन ले फुलो तेरे पे तो हर रंग फबता है.. फुलो ने चंदू को देखकर पूछा सच्ची ? मूच्ची.. चंदू बोला.. और ढलते हुए सूरज को देखते हुए दोनो देर तक बातें करते रहे.. चंदू के कंधे पे सर टिका कर फुलो सब सुनती रही.. दरिया के पीछे से शाम धीरे धीरे ज़मी पे गिर रही थी..

चल फुलो अब चलते है.. और चंदू फिर से फुलो को अपनी साइकल पे बिठाकर साइकल चलता हुआ जा रहा था.. दरिया के पानी की आवाज़ फ़िज़ा में घुल रही थी.. अस्त होते हुए सूरज की रोशनी में दोनो चले जा रहे थे.. चंदू सोच रहा था की ये शाम कभी ढले ही नही.. और वो ज़िंदगी भर यू ही साइकल के पेडल मारता रहे...

क्या चंदू जो सोच रहा था वो सच होगा? क्या ज़िंदगी भर चंदू फुलो को साइकल पे घुमाएगा? क्या होगा मेले में? क्या ढोलर चाकरी झूले पे चंदू और फुलो झूला झूलेंगे? ये सब जानेंगे अगली कड़ी में 'हम लोग'

Friday, June 27, 2008

कॉफी विद कुश के लिए लिख भेजिए आपके सवाल


नमस्कार दोस्तो..

लावण्या जी, नीलिमा जी और अल्पना जी के सुझाव मिले पाठको के सवाल भी 'कॉफी विद कुश' में शामिल करने के लिए.. सबसे पहले तो आपके सुझावो के लिए हार्दिक धन्यवाद.. दरअसल पहले वाले तीन एपिसोड पहले ही बन चुके थे.. मगर अब इसे शुरू किया जा सकता है..

यदि आप भी पूछना चाहते है कोई सवाल हमारे अगले कॉफी विद कुश के मेहमान समीर जी से तो लिख भेजिए अपने सवाल. पर इतना ख्याल रखिए की सवाल अधिकतम पाँच हो सकते है.. कम से कम कितने भी.. सभी सवालो का प्रकाशन आवश्यक नही परंतु बढ़िया सवालो को प्रेषक के नाम के साथ सम्मिलित किया जाएगा.. तो फिर देर किस बात की लिख भेजिए अपने सवाल इस पते पर.. coffeewithkush@gmail.com

साथ ही स्वागत कीजिए ब्लॉग जगत में एक और नये ब्लॉग का नीला आसमान

Wednesday, June 25, 2008

कुछ क्षणिकाए - कुश

कुछ क्षणिकाए -


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तुमने आकर कहा था
ये मुलाकात अब आख़िरी है
मैं तो था जैसे
वैसे ही खड़ा रहा... मगर
रात के माथे पर शिकन
देखी मैने..

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पंजो के बल खड़े होकर
तुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..

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तेरे साथ बिताए पल
आ जाते है अक्सर ख्यालो में..
बड़ी बेरहमी से पकड़
के गिरेबान मेरा.. कई सवाल
पूछते है......
लबो पे मेरे
सिलवटे तो आती है मगर कोई
जवाब नही आता..

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घंटो तक चाँद को
निहारते हुए छत पे..
तुम ओर मैं बैठे रहते थे
बड़ी देर तक खामोशिया
बातें करती थी..
अब जो खामोशी है
वो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
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'कॉफी विद कुश' के अगले एपिसोड में सर्रर्रर्र... सर्रर्रर्र... सर्रर्रर्र

सर्रर्रर्र... सर्रर्रर्र... सर्रर्रर्र... सर्रर्रर्र... जी हा दोस्तो आपने ठीक पहचाना है ये आवाज़ वही से आ रही है.. 'कॉफी विद कुश' के अगले एपिसोड में उतरने वाली है हमारे स्टूडियो में.. एक नायाब 'ऊडन तश्तरी' .... जी हा दोस्तो हम मिलवाने वाले है आपको ब्लॉग ऊडन तश्तरी के चालक समीर जी से..

तो जानिए किस तरह से ऊडन तश्तरी जा पहुँची जबलपुर से कनाडा तक..

समीर जी की पसंद, ना पसंद के बारे में..

बचपन से लेकर अब तक चलती आ रही शरारातो के बारे में..

और भी कई दिलचस्प सवालो जवाबो का दौर लेकर आ रहे है हम.. कॉफी विद कुश के अगले एपिसोड में.. देखना मत भूलिएगा 30 जून सोमवार को..


तब तक आप स्वागत कीजिए ब्लॉग जगत में एक और नये ब्लॉग का नीला आसमान

Tuesday, June 24, 2008

कहानी फूलकंवर और चंदू की... (भाग - तीन)

पिछली कड़ी में आपने देखा कैसे हुआ चंदू और फुलो के प्यार का इजहार.. लेकिन घर लौटने पर फुलो के सामने बाबूजी खड़े थे.. आइए देखते है आगे क्या हुआ..

सामने बाबूजी खड़े थे.. फुलो को देखते ही बोले अरे बिटिया रानी.. ये क्या हुआ ? गीली कैसे हो गयी.. बाहर बारिश हुई क्या.. फुलो ने मन में सोचा हा बाबूजी बारिश तो हुई लेकिन प्यार की.. जो आप नही समझेंगे.. अरे क्या हुआ कुछ बोलती क्यो नही फूलवा.. व व वो बाबूजी हम आ रहे थे.. दरिया के पास से तो पैर फिसल गया और पानी में गिर गये.. दरिया के पास लेकिन वहा क्या करने गयी थी? वो तो सुनसान जगह है.. हमको एक अच्छी पतंग दिखी तो वोही लेने गये..पतंग तो मिली नही हम दरिया में गिर गये.. तुझे कहा ज़रूरत पड़ गयी पतंग उड़ाने की ये सब तो लड़को के काम है.. क्यो बाबूजी जो काम लड़के कर सकते है क्या वो लड़किया नही कर सकती.. बस बस हमसे बहस मत कर.. चार जुमले क्या पढ़ लिए बेटी बाप बन गयी है.. अरे सुनती हो फूलवा की माँ.. ज़रा अंदर से नींबू मिर्ची लाकर इसकी नज़र उतार दो.. अंदर से फुलो की माँ नींबू मिर्ची और आरती की थाली लेकर फुलो की नज़र उतारने आती है.. क्या बाबूजी आप भी इन सब अंधविश्वासो में यकीन करते हो.. तू नही समझेगी रे फुलवा जब बेटी बड़ी होती है तो बाप ज़रा पुराने ख्यालो का हो जाता है.. माँ सुन रही हो बाबूजी पुराने ख्यालो के हो गये है.. पुराने ख्यालो में तो आप ही आती होगी.. चुप कर माँ से ज़बान लडाती है.. चल जा अपने कमरे में..

सुनो जी! कोई अच्छा सा लड़का देखकर अब इसका ब्याह करा दो और गंगा नहा लो..अब सुन भी रहे हो.. या हुक्का ही पीते रहोगे.. हा भाई सुन रहा हू.. पहले कालेज तो ख़त्म होने दे.. कालेज वालेज नही.. पहले ब्याह करा दो.. फिर ये जाने और इसके करम.. अच्छा अच्छा अब खाना ला दे.. बहुत भूख लगी है..

..उधर फुलो अपने कमरे में बैठी.. हाथ में किताब लिए आज जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोच रही थी रह रह कर उसके मन में चंदू का ही ख्याल आ रहा था.. उधर चंदू का भी यही हाल था दोनो एक दूसरे के सपनो में खो गये थे और जब हीरो हिरोइन सपनो में खोते है तो क्या होता है आप सभी को पता है.. जी हा दोस्तो पब्लिक डिमांड पर एक गाना और जब तक गाना चलेगा जानकी भौजी सबको गुड का शरबत भी पिलाएगी.. तो लीजिए पेस है चंदू और फुलो की कहानी का ये पहला गाना..




तू मेरा चंदू है
मैं तेरी फुलो....
तू मेरा चंदू है
मैं तेरी फुलो..

भूल जाओ चाहे दुनिया सारी
पर मुझको ना भूलो..

तुम बन जाओ पतंग
और ले चलो मुझे उड़ाकर
कब से अटकी हू एंटीने में
ले चलो छुड़ाकर..

हम दोनो मिलकर बाँधे
प्रेम का झूला
मैं झूलु.. तुम झूलो

तू मेरा चंदू है
मैं तेरी फुलो....
तू मेरा चंदू है
मैं तेरी फुलो....

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दम लगाकर............ हईसा
ज़ोर लगाकर................ हईसा
जीतेंगे हम .............हईसा
अरे खीँचो सारे ...........हईसा
तोड़ भी दो.......... हईसा
ज़ोर लगाकर ...................हईसा

मानते ही नही.. अरे कितनी बार समझाया है ये फेविकोल का मजबूत जोड़ है टूटेगा नही.. फर्निचर का साथी जिसकी निशानी है हाथी
फेविकोल 30 साल से चॅंपियन.. फेविकोल ऐसे जोड़ लगाए अच्छे से अच्छा ना तोड़ पाए..

हईसासासासा ....



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उधर चंदू भी अपना फुलो के ख्यालो में जाने कब सो गया.. पता ही नही चला.. सुबह से चंदू बैचैन था.. आज मंदिर पे फुलो आएगी या नही.. क्या होगा आज.. शाम बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी.. सुबह से दस बार वो छत के चक्कर लगा चुका था.. शायद फुलो को देखले एक बार.. बहुत देर से उसे फुलो दिखी नही.. चंदू परेशान हो गया.. उसने सोचा कही कुछ गड़बड़ तो नही.. नही नही गड़बड़ नही होगी.. शुभ शुभ बोल चंदू शुभ शुभ बोल.. चंदू से रहा ना गया,.. वो अपने बापू की साइकल उठाके चल दिया फुलो के घर की ओर.. दो तीन चक्कर लगा लिए फुलो के घर के आगे.. मगर वो दिखी नही.. इस बार अपने चंदू ने साइकल की चैन उतार दी फुलो के घर के आगे.. और वही बैठकर साइकल की चैन ठीक करने लगा.. इतने में पीछे से फूलो का भाई माखन आ गया.. अरे चंदू तू यहा क्या कर रहा है..

म म मैं कुछ नही साइकल की चैन ठीक कर रहा था.. उतर गयी थी. चंदू ने घबराते हुए कहा..
अरे यार इतना बड़ा हो गया एक साइकल की चैन नही लगा सकता .. चल मैं अभी किए देता हु .. और माखन ने चंदू की साइकल की चैन चढा दी.. लेकिन उसके हाथ गंदे हो गये.. माखन ने चंदू को बोला चल अंदर चल हाथ धो ले.. वैसे भी बहुत दिन हुए बात किए हुए..चल आजा.. चंदू थोड़ा घबरा रहा था.. माखन से स्कूल में तो कभी कभी बात हुई थी.. लेकिन कभी उसके घर नही आया.. और आज अगर उसे कुछ पता चल गया.. तो गड़बड़ हो जाएगी.. वो दरवाजे पे साइकल लेके खड़ा हो गया.. माखन ने कहा अरे अंदर आजा साइकल वही खड़ी कर दे... चंदू ने कहा साइकल में स्टॅंड नही है.. हा हा तू और तेरी साइकल चल वो पेड़ से टीका के आजा.. चंदू अंदर गया.. माखन कुँए से पानी निकालने लगा.. लेकिन रस्सी कम पड़ गयी.. वो खीझ के बोला.. कहने को तो सब कहते है दुनिया ऊँची जा रही है.. पर सुसरी देखती नही पानी कितना नीचे जा रहा है.. तू रुक यही, मैं अंदर से रस्सी लेकर आता हू..

चंदू वही खटिया पर बैठ गया.. सामने बँधी भैंसे चंदू को देख रही थी.. चंदू ने अपनी नज़रे भैंसो से हटा ली.. पास ही हुक्का पड़ा हुआ था.. शायद फुलो के बाबूजी का था.. चंदू इधर उधर अपनी फुलो को ढूंड ही रहा था.. की पीछे से एक आवाज़ आई

चंदू!!!

किसकी थी ये आवाज़ ? क्या हुआ चंदू का? क्या माखन को चंदू और फुलो के बारे में पता चल गया? अब आगे क्या होगा चंदू और फुलो का जानेंगे अगले एपिसोड में 'हम लोग'

Monday, June 23, 2008

"कॉफी विद कुश का तीसरा एपिसोड"

दोस्तो स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के तीसरे एपिसोड में...
आज की जो हमारी मेहमान है उनके बारे में एक बात कहना बहुत मुश्किल है. की उनकी कलम उर्दू में बेहतर लिखती है या हिन्दी में.. उनके पसंदीदा गीत तो हम उनके ब्लॉग पर सुनते ही आए है.. साथ ही उनकी अपनी आवाज़ में भी हमे काफ़ी गीत मिल चुके है..

जल्दी से क्लिक कीजिए नीचे दिए गये लिंक पर.. देखने के लिए
"कॉफी विद कुश का तीसरा एपिसोड"

Saturday, June 21, 2008

कहानी फूलकंवर और चंदू की... (भाग - दो)

पिछली कड़ी में आपने देखा किस तरह से फुलो और चंदू को पहली नज़र में प्यार हो गया.. आइए देखते है कैसे हुआ दोनो के प्यार का इज़ेहार

प्यार करने वालो से भला हवा कब तक रूठती.. चंद्रकांत की पतंग हवा में गोते खाने लगी.. और उड़ते हुए हमेशा की तरह जा पहुँची फूलकंवर के एंटीने में.. फूलकंवर भी खुशी खुशी अपने तेल से सने हाथो से पतंग छुड़ाने आई.. पर ये क्या पतंग पे तो कुछ लिखा है.. "प्यारी फुलो.." फुलो!!... जाने कैसी मिठास थी इस नाम में फूलकंवर को फुल्की, फुलिया, फुलु तो अब तक सब कहते थे पर ये 'फुलो' उसे भा गया.. और यही प्यार की रीत भी है.. प्यार सबको एक नाम दे ही देता है.. उसके मुँह से भी हौले से निकला 'चंदू..' और हवा के साथ ये नाम उड़ता हुआ चंद्रकांत के कानो तक जा पहुँचा..चंदू! चंदू! चंदू! चंद्रकांत को अपने कानो में ये नाम बार बार सुनाई दिया.. प्यार हवाओ में बह ही जाता है.. चंदू के मन में अजीब सी सरसरी फैल गयी.. उसने अपनी फुलो को देखा मानो कह रहा हो की आगे तो पढ़ो.. प्यार निगाहो की भाषा भी तो जानता है.. फुलो आगे पढ़ने लगी.. 'प्यारी फुलो.. क्या तुम भी मेरे बारे में वही सोचती हो जो मैं तुम्हारे बारे में सोचता हू.. अगर हा तो अपने झाड़ू की सीख से एक छेद करदो पतंग में और अगर नही तो दो छेद कर दो.."

अपना चंदू परेशान हो रहा था. फुलो को इतना वक़्त क्यू लग रहा है.. उसने प्रार्थना की.. 'हे मुरली मनोहर.. पतंग में एक ही छेद करवाना..' उधर फूलकंवर को झाड़ू नही मिल रही थी.. बहुत देर इधर उधर ढूँढने के बाद उसने अपने बालो में लगानी वाली पिन से छेद कर दिया..और पतंग छुड़ाकर उड़ा दी.. चंदू ने भी पतंग को अपनी तरफ खींचा.. वो जल्दी से जल्दी पतंग को अपनी तरफ उतार लेना चाहता था ..लेकिन अगर कहानी में ट्विस्ट ना हो तो मज़ा ही कहा आता है.. चंदू ने देखा ना जाने कहा से एक गुलशन ग्रोवर नुमा काली पतंग उड़ती हुई आई.. और चंदू की पतंग के उसके साथ पेंच हो गये.. चंदू घबरा गया.. एक तो आख़िरी पतंग थी उपर से फुलो का जवाब भी था उस पर.. अगर पतंग कट गयी तो जवाब कैसे मिलेगा.. उधर फुलो की साँसे भी चढ़ चुकी थी.. उसने दोनो हाथ जोड़ कर कहा "राम जी लाज़ रखना हमारे चंदू की.."

लेकिन काली पतंग थी की कटने का नाम नही ले रही थी.. उपर से चंदू की पतंग में छेद होने से वो ठीक भी नही उड़ रही थी.. चंदू घबरा गया था.. उसे लगा कही फुलो ने दो छेद तो नही कर दिए.. पतंग ठीक से उड़ क्यो नही रही है.. वो सोच ही रहा था की इतने में एक ज़ोर से झटका लगा.. और चंदू की पतंग काट गयी.. फुलो की आँख में आँसू आ गये.. वो चिल्लाई नही इ इ इ!!! .. चंदू ने आव देखा ना ताव.. सीढ़िया उतर के भागने लगा.. वो किसी भी कीमत पर इस पतंग को खोना नही चाहता था.. उधर से फुलो भी तेज़ी ने नीचे उतरी., उसे लगा की पतंग किसी और के हाथ ना लग जाए.. वो भी भागी.. दोनो अलग अलग गलियो में बेतहाशा भाग रहे थे.. दोनो की नज़रे आसमान में थी...

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-ये लीजिए नीलिमा जी, आपका सब सामान तैयार है
-ये नही.. वो
-लेकिन आप तो हमेशा वो महँगी वाली टिकिया.......
-लेती थी! मगर वही सफेदी, वही झाग, कम दामो में मिले, तो कोई ये क्यो ले भला वो ना ले..
-मान गये
-किसे?
-आपकी पारखी नज़र और निरमा सुपर दोनो को..

निरमा सुपर डिटरजेंट टिकिया.. धुलाई में सुपर दम.. दाम फिर भी कम..


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दोनो गलियो से निकलते हुए नदिया के पास आ गये थे.. दोनो की नज़रे आसमान में थी.. बस किसी तरह से पतंग उनके हाथ लग जाए.. शुक्र है आज किसी की नज़र नही पड़ी थी पतंग पे वरना पतंग देखकर तो मोहल्ले के लड़के ऐसे टूट पड़ते है जैसे शहद पे मक्खी.. पतंग भी अब तक उड़ते उड़ते परेशान हो चुकी थी.. तो बस नीचे उतरने लगी.. ज्यो ही नीचे गिरने वाली थी पतंग की एक साथ दो हाथ गिरे उस पर.. एक हाथ पे दूसरा हाथ.. जी हा पहली बार चंदू और फुलो के हाथो ने बात की..दोनो एक दूसरे की आँखो में देखने लगे.. बैकग्राउंड में मधुर संगीत बजने लगा .. फटी हुई पतंग पे दोनो एक दूसरे का हाथ थामे खड़े थे.. चंदू फुलो को देख कर मुस्कुराया.. फुलो ने शर्म से आँखे झुका ली... और पलटके जाने लगी.. चंदू ने उसकी कलाई पकड़ ली.. एकदम से फुलो बोली..'हाय राम'.. फुलो की आँखे बंद हुई.. और जीभ होंठो के बीच आ फसी..

जाने दे ना चंदू.. फुलो बोली.. इतनी जल्दी.. पहले दोबारा मिलने का वादा करो.. दोबारा !फुलो रुकी.. हा दोबारा.. और ऐसे नही..कही ऐसी जगह बस जहा तू हो और मैं हू.. दूजा कोई नही..लेकिन ऐसी जगह कहा है.. ' फुलो बोली.. चंदू भी कहा हार मानने वाला था बोला 'डूंगरी वाले हनुमान जी के मंदिर.. वहा आजा कल शाम..' फुलो बोली हम तो ना आएँगे.. और भागने लगी.. चंदू भी पीछे भागा..इतने में फुलो का पाँव फिंसला और छपाक !! से दोनो दरिया में गिर गये.. हालाँकि पानी तो कम ही था.. लेकिन दोनो गीले हो गये.. फुलो ने देखा चंदू उसी की ऑर देख रहा है.. फुलो ठंड से ठीठुर गयी.. चंदू अपनी गोद में उठाके उसको बाहर ले आया.. फुलो चंदू की आँखो में देख रही थी..

बाहर आकर दोनो साथ साथ चलने लगे. कोई कुछ नही बोल रहा था.. ये खामोशी भी प्यार का एक हिस्सा है.. आख़िर प्यार में आ ही जाती है.. थोड़ी दूर चलने के बाद चंदू अपने घर की तरफ मुड़ा.. फुलो मुस्कुराई.. आज फुलो इतनी खुश थी जितनी पहले कभी नही हुई.. फुलो मन ही मन खुश होते है हुए.. घर पे पहुँची.. जैसे ही अंदर कदम रखा उसने देखा..

सामने उसके बाबू जी खड़े थे..

क्या कहा बाबूजी ने फुलो को? फुलो ने क्या जवाब दिया? क्या किसी ने फुलो और चंदू की खबर बाबूजी को दे दी? और अगर दी तो क्या होगा फुलो का?... जानेंगे अगली कड़ी में हम लोग

Friday, June 20, 2008

कहानी फूलकंवर और चंदू की...

वाह तो सब लोग आ गये.. बैठो जी बैठो.. ओहो तो दरी चटाई सब लाए हो! बढ़िया.. शुरू करते है चंदू और फुलो की कहानी.. कल मना किया फिर भी कुछ लोग बच्चे ले कर आए है.. खैर अब लाए जो तो ठीक है पर ध्यान रखना इनका ज़्यादा शोर ना मचे.. जैसा की आप सब जानते है की गाँव में हाई स्कूल बनाने के लिए पैसा चाहिए तो इस कहानी के बीच में कुछ विज्ञापन भी रखे है.. जिससे आने वाला पैसा स्कूल बनाने में लगाया जाएगा.. तो अब शांति से बैठो और सुनो कहानी...

ये कहानी है बसंतपुर के दो नौजवानो चंद्रकांत और फूलकंवर की…..फूलकंवर दीनानाथजी(पांडे जी के ऑफीस वाले नही) की बेटी थी.. बड़ा भाई माखन पहलवानी करता था, और छोटा जिसे सब छुटकु कहते थे स्कूल में पढ़ने जाता था.. फूलकंवर स्कूल की पढ़ाई पूरी करके कॉलेज में दाखिला ले चुकी थी... दो महीने बाद उसे शहर जाना था. गर्मी की छुट्टिया थी तो वो वही रह गई..

यहा तक तो सब ठीक था लेकिन 11 जून के उस इतवार ने सब कुछ बदल दिया.. दिन का समय था.. फूलकंवर दूरदर्शन पर चित्रहार देख रही थी. की अचानक छत पर आई तेज हवा से एंटीना हिल गया. उस वक्त घर पर कोई नही था तो फूलकंवर खुद ही छत पर चली गई.. जैसे ही फूलकंवर एंटीने को ठीक करने लगी की बड़ी ज़ोर से एक पतंग उसके पास से लहराई.. और तेज हवा से फूलकंवर के चहरे पर उसके बाल आ गये.. फूलकंवर ने बालो को हटाकर देखा तो पीछे वाली छत पे अपनी कहानी का हीरो चंद्रकांत उर्फ चंदू पतंग उड़ा रहा था..

यू तो फूलकंवर उसे पहले भी कई बार देख चुकी थी पर आज चंद्रकांत उसे अलग लगा.. उधर चंद्रकांत भी फूलकंवर के चहरे पे उड़ते बालो के बीच से उसका चेहरा देखकर देखता ही रह गया.. इतने में उसके हाथ से पतंग की डोर छूट गई,वो आगे भागा और पकड़ने की कोशिश की पर उसका पाव फिसला और वो छज्जे से लटक गया. फूलकंवर की सास अटकी , वो दो कदम आगे बढ़ी चंद्रकांत छज्जे पे लटका फूलकंवर को देख रहा था. उसने पतंग की डोर को भी पकड़ लिया और फूलकंवर के सामने विजयीभाव से देखा फूलकंवर भी मुस्कुरा दी उसके मुस्कुराते ही चंद्रकांत का हाथ फिसला... फूलकंवर ने अपना हाथ दिल पे रखा और धीरे से बोली “हाय राम!!!” शायद रामजीने उसकी सुन ली थी चंद्रकांत फिरसे छत पर आ गया. फूलकंवर के मन ही मन कितनी ही सारंगिया बजने लगी.. वही चंद्रकांत के मन में उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का तबला दनादन बजने लगा दोनो एक दूसरे को देख ही रहे थे की नीचे से फूलकंवर की मा ने एक आवाज़ लगाई वो शायद लौट आई थी और फूलकंवर नीचे जाने लगी.. चंद्रकांत एक कदम आगे बढ़ा और दोनो हाथ छत की दीवार पे टीका दिए फूलकंवर नीचे जा चुकी थी और अपना चंद्रकांत वही खड़ा रहा हाथ में पतंग की डोर लिए.

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फिर तो ये रोज़ का सिलसिला बन गया फूलकंवर किसी ना किसी बहाने से छत पर आ जाती कभी कच्चे आम की केरिया सुखाने कभी सूखे हुए पापड़ लेने.. बस दोनो छत पे एक दूसरे को सबसे नज़ारे चुरा चुरा के देखते रहते.. चंद्रकांत हर रोज़ अपनी पतंग फूलकंवर की छत पे लगे एंटीने मे फसा देता था. और फूलकंवर उसे छुड़ाती थी. फूलकंवर को इस तरह पतंग छुड़ाने में बहुत मज़ा आता था और अपना चंद्रकांत सोचता रहता की कब तक मैं पतंग फ़साता रहूँगा और ये छुड़ाती ती रहेगी क्या कभी उससे मुलाकात होगी भी या नही.

कभी कभी तो उसको देखते हुए चंद्रकांत की पतंग कट भी जाती थी लोग मोहल्ले में सब उसका मज़ाक उड़ाने लग गये थे.. बेंत भर के छोकरे उसकी पतंग काट जाते थे.. चंद्रकांत को ये सब बर्दास्त नही होता था लेकिन वो कर भी क्या सकता था.. आख़िर ऐसा करते करते उसकी सारी पतंग कट चुकी थी.. अब तो उसके पास ज़्यादा पैसे भी नही थे उसने आसमान की तरफ देख कर कहा “ओ मुरली मनोहर, तुम तो सब के पालनहार हो!!! अपना भी कुछ जुगाड़ लगाओ “ इतना कहना था की आसमान से एक कटी हुई पतंग उड़ते हुए उसके छत पर आ गई बस चंदू तो खुश हो गया बोला “ जय हो बांके बिहारी! तूने लाज रख ली हमारी!! “ लेकिन ये क्या? पतंग पे लिखा था “ पतंग लूटने वाले तेरा मुंह काला “ ये पढ़ते ही अपने चंद्रकांत ने उपर देखा और कहा “ क्या बांके बिहारी !! भक्तो से मज़ाक करते हुए शरम नही आती???" उसने सोचा की पतंग ही फाड़ डाले जैसे ही वो पतंग फाड़ने वाला था की उसने देखा पतंग पे जो लिखा था वो तो बड़े काम की चीज़ थी इस तरह तो वो भी अपने दिल की बात पतंग पे लिख के फूलकंवर की छत तक पहुचा सकता था..

बस, फिर क्या!! उसने अपनी जेब में बची आखरी अठन्नी निकाली और लाला के यहाँ से दिल के आकार वाली पतंग ले आया और पानी गरम करने वाली अंगीठी से दो चार कोयले ले लिए और अपना हाले दिल लिख डाला.. अब पतंग लेके चंदू बैठ गया और इंतज़ार करने लगा अपनी फूलकंवर का... छत का दरवाजा खुला और फूलकंवर आ गई. उसे देखते ही चंदू की आँखो में दो सौ वाट के बजाज के बल्ब की चमक आ गई. और वो फ़ौरन पतंग उड़ाने लगा लेकिन हवा भी आज उसका साथ नही दे रही थी.. उधर फूलकंवर अपने हाथ में डाबर आवला केश तेल लेकर अपने घने मुलायम काले बालो पे लगा रही थी..

और इतने में अचानक....

अचानक क्या हुआ ? क्या हवा ने चंदू का साथ दिया ? क्या फूलकंवर को चंदू का संदेश मिला ? अगर नही मिला तो क्या हुआ पतंग का ? इन सब सवालो के जवाब जानेंगे अगली कड़ी में 'हम लोग'

Thursday, June 19, 2008

जी हा दोस्तो आ रहे है वो..

सुनो सुनो सुनो !! सुनो सुनो सुनो !! सुनो सुनो सुनो !!
वो आ रहे है... अरे वो आ रहे है.. जी हा दोस्तो आ रहे है वो.. अब नही रुकेंगे.. बेधड़क आ रहे है..दोनो ही आ रहे है आपसे मिलने..


दरिया के पास वाले बरगद के पेड़ के नीचे..कल से बांची जाएगी.. शर्मीली, चुलबुली फूल कंवर उर्फ फूलो और नसीब के मारे चंद्रकांत उर्फ चंदू की प्रेम कहानी..

सभी श्रोताओ से निवेदन है अपने अपने घर से दरी, टाट पट्टी, बोरी बैठने के लिए लेकर आए.. और साथ ही अपने मोबाइल फोन भी स्विच ऑफ रखे, सिर्फ़ डॉक्टर लोगो को अनुमति है की वाईब्रेट मोड पर रख सकते है.... एक विशेष बात पाँच साल से कम के बच्चो को घर पे अपनी सासू माँ के पास छोड़कर आए और यदि सासू माँ भी आने की ज़िद करे तो तो खुद घर पे बैठ जाइए.. लेकिन बच्चो को ना लाए वो खमख़्वाह चिल पो मचाते रहते है.. पिछली बार भी इंटेरवल से पहले तक बच्चो के दूध का इंतेज़ाम हो रहा था... और हा सब अपने साथ साथ गिलास ज़रूर ले आना.. जानकी भौजी ने सबके लिए गुड का शरबत बनाया है.. तो दोस्तो दिल थाम के बैठो क्योंकि कल आ रहे है.. आपसे मिलने चंद्रकांत और फूल कंवर.. तो आप भी हो जाइए तैयार इन दोनो से मिलने के लिए..

और हा इस कहानी में आपको मिलेगा दूरदर्शन, आम का अचार, पतंगबाज़ी , पहलवानी, साइकल की चैन का उतरना, और नज़रो से नज़रो का लड़ना, दो निर्दोष प्यार करने वाले और ज़ालिम समाज, गाँव का मेला भी होगा और बड़ा कोई झमेला भी होगा.. बस देखते जाइए.. कल इसी ब्लॉग पर..

नोट : फॅमिली के लिए अलग से बैठने की सुविधा उपलब्ध है

तब तक हम बैठकर पढ़ते है गुलज़ार साहब को समर्पित ये ब्लॉग "गुलज़ारनामा"

Wednesday, June 18, 2008

जानिए कौन है 'कॉफी विद कुश' के अगले मेहमान..

मिलिए चाँद पुखराज का वाली पारूल जी से 'कॉफी विद कुश' के अगले एपिसोड में..

और जानिए...

क्या है पारूल जी का ब्लॉगिंग से जुड़ा दिलचस्प अनुभव

पारूल जी की बचपन की शरारातो के बारे में..

ब्लॉग लेखन में उनका आगमन..

कैसा रहा पहली बार हॉरर फिल्म देखने का अनुभव?

इन सभी सवालो के जवाब मिलेंगे आपको 'कॉफी विद कुश' के अगले एपिसोड में.. देखना मत भूलिएगा दिनांक 23 जून 08 सोमवार को... आपके अपने ब्लॉग 'कॉफी विद कुश' पर..


तब आप आनंद लीजिए एक और उम्दा हिन्दी ब्लॉग का.. मोरपंख

Tuesday, June 17, 2008

बंटी और निम्मो की शादी..



पिछली गली में शोर मचा है
पूरा का पूरा मोहल्ला सज़ा है
रात आज की कुछ अलग लगती है
हर दीवार और खिड़की चमकती है

बच्चे सब गुब्बारो में गुल है
महके हुए आज सारे फूल है
भाभीया लेकर थाल खड़ी है
ख़ुशनुमा सबकी ये चाल बड़ी है

हम भी अचकन डाल के आ गये
नज़रे सबसे संभाल के आ गये
बंटी और निम्मो की शादी जो है
बस्ती की सारे कंगाल भी आ गये

रामलाल के कैफे में और
प्रेमियो वाले गार्डेन में
दोनो ने थी जो कसमे खाई
आज की रात वो पूरी होने आई

लड्डू,बर्फ़ी और गाज़र का हलवा
शीला, सुशीला की बेटियो का जलवा
नाच नाच के सब है मस्त,
मनसुख काका भी पीके पस्त.

सभी ख़ुशी से झूम रहे है
भिखारी भी मज़े से घूम रहे है
सब कुछ सही सलामत है
पर आने वाली एक आफ़त है

ये लो जी वो आ ही गयी
महफ़िल पे मुसीबत छा ही गयी
एक लड़की चिल्लाती हुई आती है
बंटी को अपना पति बताती है

जुते चप्पल और डंडो की बरसात
घूसे मुक्के और पड़ गयी लात
बंटी का बुरा हाल हो गया
पल में बेचारा फटे हाल हो गया..

उज़ड़ी शादी की रंगत,
टूटी खाने वालो की पंगत,
निम्मो कुछ भी समझ ना पाई
माहौल में बड़ी उदासी छाई

वीडियो वाले ने भी मौक़ा ना छोड़ा
क्लोज़ अप करके लिया बंटी का चेहरा
खींचा जो लड़की ने ज़ोर से
उतर गया फिर बंटी का सेहरा

इतने में वो लड़की चिल्लाई
ये किसको मैने लात जमाई
मुझको मेरे सुहाग की कसम
ये कबूतर नही है मेरा ख़सम

बंटी फिर से संभल चुका था
चल गया माहौल जो अभी रुका था
लोग सब खाने में लग गए
महफ़िल को फिर से ज़माने में लग गए

एक ही पल में हो गया सब बँटाधार
बंटी से भर गये न्यूज़ चैनल और अख़बार
इस पर बंटी ने बुरा ना माना
और सबको बताया घटना का विस्तार

आख़िर सब कुछ प्लानिंग से हुआ था
टी आर पी बढ़ गयी चैनल की और
बंटी का हुआ सपना साकार
बन गया वो भी टी वी स्टार..

Monday, June 16, 2008

कॉफी विद कुश का दूसरा एपिसोड..

दोस्तो स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के दूसरे एपिसोड में...
आज के जो हमारे मेहमान है वो ब्लॉग जगत की एक बहुत ही जानी मानी सख्शियत है.. जिनकी ब्लॉग पे हमेशा नयी पोस्ट का इन्तेज़ार लगा रहता है.. इनकी यादो की दराज खुलती है तो बहुत ही रोचक होती है... बीते दिनो के किससे खूबसूरती से बयान करने में इन्हे महारत हासिल है..

जल्दी से क्लिक कीजिए नीचे दिए गये लिंक पर.. देखने के लिए
कॉफी विद कुश का दूसरा एपिसोड

Saturday, June 14, 2008

मैं नारी सशक्तिकरण डिपार्टमेंट से बोल रही हू..

(नोट: यह लेख मैने लाइट मूड में रहते हुए लिखा है.. कृपया लाइट मूड में ही पढ़े.. यदि किसी को इसे पढ़कर कोई आपत्ति हो तो अग्रिम क्षमा चाहता हू.. एक और बात इस लेख का रचना जी की पोस्ट से कोई संबंध नही.. उनका अभियान एक अलग दिशा में है.. )


आज सुबह से मैं देख रहा था की श्रीमती जी बड़ी उत्सुक थी.. बार बार आकर टेबल पर पड़ी आफ़त यानी की हमारा टेलिफोन देखने आ जाती.. हम समझ नही पाए की ये माज़रा क्या है.. और हमने हिम्मत की बनियान पहनकर पूछ ही लिया अरी भागवान बार बार क्यो देख रही हो फोन को.. क्या माज़रा है.. वो बोली क्यू दिन भर फोन पर गपियाने का ठेका तुमने ही ले रखा है.. रॉंग नंबर पर भी घंटो बतियाते हो जैसे वो तुम्हारे फूफा का फोन हो और हमने जो एक बार फोन की तरफ नज़र क्या उठाई हम तुम्हारी 'आँख की किरकिरी' बन गये.. भूलो मत हम आज की नारी है.. और तुमसे दो हाथ भारी है.. हम कुछ बोले नही नेताओ को देख देख कर ये तो सीख ही गये थे की बम विस्फोट हो जाए तो कह दो की अभी कुछ कहा नही जा सकता सो हमने भी कुछ कहा नही.. इतने में वो तौलिया उठाकर नहाने चल दी..

और हम अख़बार में रोज़ की फिक्स खबर राखी सावंत के बारे में पढ़ रहे थे बेचारी परेशान थी.. उसका बयान था "कहा है भगवान श्री कृष्ण? जो इस अबला की रक्षा करे.." एक बार तो हमे लगा की हम ही निकल ले स्कूटर लेके पर फिर सोचा की पेट्रोल की कीमत इतनी बढ़ गयी की कही निकलने से पहले ही दस बार सोचना पड़े.. हम सोच ही रहे थे की हमारी घंटी बज गयी.. अब आप कहेंगे की आपकी कहा जनाब फोन की बजी यू कहिए.. अरे साहब हमारे यहा जब भी फोन आता है.. घंटी हमारी ही बजती है.. हमने फोन उठाया और कहा हैलो.. सामने से आवाज़ आई मैं नारी सशक्तिकरण डिपार्टमेंट से बोल रही हू.. आप श्रीमती जी से बात करवाईए.. हमने कहा जी वो तो नहा रही है... आप मेसेज दे दीजिए मैं उन्हे दे दूँगा.. वो बोली तुम मर्द लोग अपने आप को समझते क्या हो तुम क्यो दोगे मेसेज क्या तुमने हमे इतना कमज़ोर समझा है की हम उन्हे दोबारा फोन नही कर सकते तुम हमेशा ये क्यो सोचते हो की हम तुमपे निर्भर है.. हमने कहा बहनजी आप मुझे ग़लत समझ रही है.. मैं तो सिर्फ़ ये कह रहा..... उसने मेरी बात बीच में ही काट दी और बोली.. फिर कर दी ना पुरुषो वाली बात तुम्हे तो हमेशा यही लगता है की हम ग़लत सोचते है .. सोच तो तुम्हारी ही सही है.. हमने कुछ बोल दिया तो तुम्हारी मर्दानगी पे आँच आ जाती है.. हम बोले अरे आप तो बुरा मान गयी चलिए हम माफी माँगते है आप माफ़ कर दीजिए.. तुमने अब क्या हमे भिखारी समझ लिया जो माफ़ करो कह रहे हो... अरे मैडम आप तो खमख़्वाह बात का बतंगड़ बना रही है.. वो बोली क्यो ना बनाए जब तुम पुरुष बात का बतंगड़ बना सकते हो तो हम क्यो नही आख़िर भगवान ने दोनो को बराबर का दर्ज़ा दिया है..

सारी पीड़ा सारे दुख भोगे हम और तुम बैठकर मलाई खाओ.. सुबह बेचारी नारी उठकर तुम्हारे माँ बाप के लिए चाय बनाए फिर तुम्हारे बच्चो को नहलाए स्कूल भेजे.. सबका खाना बनाए दिन भर घर की सॉफ सॉफ सफाई करे शाम होते ही तुम मर्द लोग ऑफीस से घर आते ही फिर चाय माँगते हो.. चाय पिलाए तुमको रात को खाना बनाए दिन भर तुम्हारे लिए पीसती रहे और तुम रात में क्या देते है गाली! लेकिन अब ऐसा नही चलेगा नारी को सशक्त होना पड़ेगा..

हालाँकि हम नारी की बड़ी इज़्ज़त करते है क्योंकि हमारी माँ भी एक नारी है हमारी पत्नी भी और हमारी बेटी भी जो अभी शिमले में पढ़ती है... पर ये नारी तो हमे अजीब लगी.. हमने कहा की आपके पति आपके साथ ऐसा करते है?? वो बोली मेरे साथ किसी मर्द की ये करने की हिम्मत नही मैने तो इसीलिए शादी ही नही की.. हमने कहा तो फिर आपको कैसे पता की पति ऐसा करते है.. वो बोली हमारे संगठन की औरतो ने बताया आपकी श्रीमती जी ने भी.. हम सोफे से उछल पड़े.. थोड़ी देर पहले की हमे हमारी बीवी की आँख याद आ गयी.. हमने कहा ये सब आपको हमारी बीवी ने कहा वो बोली अजी आपकी क्या सबकी बीविया यही कहती है... अब तो हम परेशान हो गये,..

वो बोली तुमने तो हमारा जीना हराम कर रखा है तुम हम नारी को बराबर का दर्ज़ा क्यो नही देते? हम बोले मैडम कैसे दे सकते है बराबर का दर्ज़ा? आप तो हमसे भी ज़्यादा पूज्‍यनीय है.. नारी का तो श्रेष्ठ स्थान है सबसे उपर हम तो नीचे वाले फ्लोर पे है. .आप अपना दर्ज़ा गिराना क्यो चाहती है.. वो बोली क्या मतलब? हमने कहा जी आपने पढ़ा नही 'नारी सर्वत्र पूज्यते' नारी की तो पूजा होती है है.. हम करते भी है नवरात्रि में माँ दुर्गा की नौ रूपो में पूजा होती है.. उसने कहा तुम तो माँ दुर्गा को बीच में ले आए मैं तो इंसानो की बात कर रही हू.. हमने कहा मैडम आपने कब की इंसानो की बात आप तो नारी की कर रही है इंसान की करती तो पुरुष भी होते.. वो बोली बात को घूमाओ मत हम सब समझते है तुम हमेशा हमको अपने से हीन बताते हो.. कमज़ोर बताते हो.. तुम्हे लगता है तुम ही दुनिया में श्रेष्ठ हो..

हमने उनसे कहा मैडम श्रेष्ठता की बात छोड़िए हमे सब पता है कौन श्रेष्ठ है.. माँ को ईश्वर से भी उपर का दर्ज़ा प्राप्त है.. वो पुरुष नही होते नारी ही होती है.. एक नारी जो अपने अंग के कोमल टुकड़े को अपने गर्भ में नौ महीने तक रखती है.. ये संसार का सबसे मुश्किल काम है पर उस नारी के चेहरे पर शिकन तक नही आती.. वो सारे दर्द झेल कर भी एक मासूम को दुनिया में लाती है और फ़र्क़ नही करती की उसका बेटा मर्द है या स्त्री.. कभी उसकी ममता में झाँका है आपने.. शादी करके अपने आँगन को छोड़कर किसी और के आँगन में जाना और उसी में अपना संसार बसाना.. क्या कम हिम्मत का काम है.. हमारी पत्नी जो सुबह चाय बनती है उसमे उसका प्रेम छलकता है.. वो जिन बच्चो को उठाकर स्कूल भेजती है वो मेरे नही हमारे है मेरे माँ बाप को अपना समझकर उनकी सेवा करती है.. शाम को जब मैं घर आता हू तो अपनी साड़ी के पल्लू से मेरा पसीना पौंछ ती है.. मेरे कहने से पहले चाय ले आती है. जानती है की मैं थका हुआ हु..वो मुझे परेशान देख नही सकती.. रात को सबको खाना खिलाकर खुद खाती है.. जब सोने जाते है तो दिन भर की बाते सुनाती है मुझको और पलको पर थकान लिए सो जाती है.. हर एक दिन गर्व से जीने वाली मेरी पत्नी के चेहरे पर हर शाम एक विजयी मुस्कान होती है.. इतनी हिम्मत क्या है किसी और मैं? किसी मर्द में ? अजी छोड़िए मर्द वर्द सब नारी से नीचे ही है.. हम तो कम से कम है अपनी पत्नी से नीचे..हमने एक साँस में कह डाला!

वो बोली आप की पत्नी सुखी है इसका मतलब संसार की सारी नारिया सुखी नही है.. हमने कहा बस मैडम जी अब आई ना आपकी बात समझ में जिस तरह हमारी पत्नी के सुखी होने से सारी नारिया सुखी नही.. ठीक उसी तरह आपके दुखी होने से भी हर नारी दुखी नही,.. नारी को सशक्त बनाने से अच्छा है इंसान सशक्तिकरण अभियान चलाइए हर कमज़ोर इंसान की मदद करेंगे चाहे पुरुष हो या नारी.. यकीन मानिए हम भी आपके साथ आएँगे.. मिलजुलकर काम करेंगे तभी देश का विकास होगा.. सब अपनी अपनी सोचेंगे तो देश का नाश ही होगा.. जब दोनो का दर्ज़ा बराबर है तो दोनो के बारे में सोचिए..

हमारी पत्नी पीछे खड़ी सब सुन रही थी उसके चेहरे पर अश्रुमिश्रित मुस्कान मिली.. उसने कहा मैं तो खुद को बहुत सशक्त महसूस कर रही हू.. की मुझे आप जैसा पति मिला.. वो तो वहा सबको कुछ ना कुछ बोलना था तो अपनी विमला जी ने कहा तू भी कुछ बोल दे क्या पता अगली लीडर तू बन जाए.. तो मैने भी जोश मैं बोल दिया बाकी घर पे तो आपको पता ही है की कौन सशक्त है और कौन कमज़ोर.. अब ये तो हमे भी पता था.. शायद फोन पे उन्होने हमारी श्रीमती जी की बात सुनली थी.. वो फोन रख चुकी थी.. हमारी बीवी ने कहा की चलो जी क्यो ना हम अनाथ बच्चो के लिए कुछ करे किसी एक की पढ़ाई का खर्चा ही उठा ले कम से कम.. सच मानिए हमे बहुत गर्व हुआ की हमारी घर की नारी सशक्त हो रही है..

Friday, June 13, 2008

::.. कान्हा.. राधा ..::

हालाँकि मैं इस काबिल नही की मैं इस विषय पर लिखू.. परंतु आज रहा नही गया.. तो लिख दिया..
आप सभी का आशीर्वाद चाहूँगा..


::.. कान्हा.. राधा ..::










अपने नंद नंदन जा रहे है अपनी टोली लेकर.. और आज ही मय्या के कई बार समझाने के बाद भी राधा जी ने ज़िद कर ली की वो दही बेचने जाएगी.. अपनी सखियो के साथ.. अपने कान्हा को ख़बर लग गयी बस फिर क्या.. पहुँच गये वही अपनी टोली लेकर.. आइए देखते है क्या हुआ.

राधिका से मिलने कान्हा
टोली लेके आए रे..
देख देख गोपियन को
कैसा मुह बनाए रे..

दही ले जाती राधा को
रोक दिए राह रे..
बोले बिना दिए कर
कहा को तू जाए रे..

भोली राधा डर के मारे
पीछे ..हौ चली
गोपिया सभी एक संग
चिल्लाई रे...

वन धरती मय्या का है
काहे तोहे दे कर..
चलो हटो आगे, लागे नही
तोह से हमे डर..

मुह बिचककार मोहन सबको सताए रे. ...

कान्हा जी ने भी हार कब मानी रे
गोपियन को सबक सिखाने की ठानी रे
मारे पथ्हर गुलेल की कमानी से
दही वाली गगरी तोड़ गिराई रे..

देख हाल गोपियन का कान्हा मुस्काये रे...

गोपिया सब उलाहने देते हुए.. भाग गयी वहा से.. कन्हाई अपने बाल सख़ाओ के संग
अपनी क्रीड़ाओ में व्यस्त हो गये..
















खेल सब खेलत लागे
कोई लुके कोई भागे..
खेल खेल साथी सभी
थक थक आए रे..

बैठे सभी थके हारे
तभी एक साथी पुकारे.
हम से रहा ना जाए
लघु शंका के मारे..

अब सरपट साथी भागे
लघु शंका मिटाने जाए रे..
कान्हा जी का चंचल मॅन
यहा भी, कैसे ना रिज़ाए रे..

कहने लगे कान्हा सबसे
वही विजेता होगा..
जिसकी लघु शंका की धार
सबसे उपर जाए रे..

देख देख बाल ठी-ठोली
देवता भी नभ से..
लीला अपने कान्हा की
हँस हँस जाए रे..

ऐसे अनोखि बातें कान्हा, कहा से तू लाए रे.. ..


गोपिया भी कब तक बैठी रहती.. कान्हा के मोहपश मे बंधी.. लौट आती है.. सबसे पीछे राधा जी.. आगे आगे उनकी सारी सखिया.. कान्हा जी के संग खेलने को आई है...














कान्हा भोले मन का
बात मान जाए रे.
सब गोपियन को मुरलिया की
धुन से रिज़ाए रे..

पास बिठा के सबको
पैर दबवाए रे..
हाथो से गोपियन के
रस भरे फल खाए रे

देख कर कान्हा जी को ऐसे
साथी ग़ुस्साए रे.. बोले खीझ के
देखो, नंद बाबा का लाला
बड़ा इतराए रे..


कान्हा साथियो को अपने और भी जलाए रे..


....अब कान्हा जी जो जला रहे थे साथियो को.. उन्हे नही पता था.. की राधा जी रूठ जाएगी उनके ऐसा करने से.. राधा जी रूठ कर जा बैठी.. अब कन्हाई को आवाज़ दी जा रही है की आओ और राधा रानी को मनाओ..
















ओ कन्हाई.. तू सुनता जा रे..
जोहे बाट तोरी राधा जमुना किनारे

झूठ मूट रूठी बैठी
काहे तुम ना आए...
काहे सारे खेल तुमने
गोपियन को खिलाए...

सांझ हो चली कान्हा
उसको बुला लो..
पीपल की टहनी वाले
झूले मे झूला लो

तोरे संग ही घर जाएगी
भाई सारे विनती कर हारे..

ओ कन्हाई.. तू सुनता जा रे..

...........अब अब हमारे कान्हा जी जो सब जानते है की उनकी
राधा जी भला कब तक रूठेगी तो कान्हा जाते है राधा जी को मॅनाने.. के लिए........
















ओ मोरी राधा रानी.. काहे
जा बैठी तू जमुना किनारे
मोरी भोली गयया .. बंसी
तोहे ही पुकारे..

गोपियन तो सितारो जैसी
चंदा तू है राधा..
मैं तो अधूरा हू तू
अंग मोरा आधा ..

तू ही मोरी जीवन साथी
जेसे दिया और बाती
काहे भूलू तोहे, मोहे तू बता रे

ओ मोरी राधा रानी.. अरज करू आ रे..



.......राधा जी भी बड़ी भोली है जल्दी से मान जाती है......

ओ कन्हाई मोरे.. सुनता जा रे
तेरे संग प्रीत कभी टूट ना पाए रे.
तुझ पर आने से पहले
विपदा... आँगन मोरे आए रे...

तोरि सुनकर मुरलिया
मैं नाची जाउ..
देख देख जमुना मे ख़ुदको
शरमाती जाउ..

जादू कैसा तूने लाली पे किया रे..

ओ कन्हाई मोरे.. बतलाता जा रे..

.........और समस्त पृथ्वी प्रेम के पाशो मे बँध जाती है क्योंकि कान्हा राधा के रास का प्रारंभ होता है.. ...
















राधा को सुध नाही
कान्हा के आलिन्गन मे
दोनो का मन रमा
एक दूजे के मॅन मे..

कान्हा भूले गय्या अपनी
भूले गोकुल नगरी..
राधिका भी भूली सखिया,
पनघट पे गगरी..

रास की रामाई मे रम्वत जा रे

ओ कान्हा राधिका का तू हौ जा रे...


चंदा की चटक चुनर
कैसी लहराई.. कान्हा की बाहो मे
कैसी लाली शरमाई..

उठाके चले राधा रानी को कान्हा
कनुप्रिया जो थकने को आई
मेघ झूमे धरा पर बूँदे गिराए रे
झूमे धरती सारी अंबर झूमे जाए रे

सारा जग राधा कान्हा, ..मय होई जाए रे..

कान्हा राधा.. राधा कान्हा मय होई जाए रे..



















सारा जग राधा कान्हा, ..मय होई जाए रे..

कान्हा राधा.. राधा कान्हा मय होई जाए रे..

सारा जग राधा कान्हा, ..मय होई जाए रे..

कान्हा राधा.. राधा कान्हा मय होई जाए रे..

Thursday, June 12, 2008

जानिए कौन है 'कॉफी विद कुश' के अगले मेहमान

मिलिए दिल की बात वाले डा. अनुराग से कॉफी विद कुश के अगले एपिसोड में..

और जानिए...

क्या है अनुराग जी का ब्लॉगिंग से जुड़ा दिलचस्प अनुभव

अनुराग जी के कॉलेज के दिनो के बारे में..

बचपन की शरारते..

कैसे थे आज से दस साल पहले के डा. अनुराग

जानिए क्या पसंद है उन्हे बीवी के हाथ की चाय या कुश की कॉफी..

इन सभी सवालो के जवाब मिलेंगे आपको कॉफी विद कुश के अगले एपिसोड में.. देखना मत भूलिएगा दिनांक 16 जून 08 सोमवार को... आपके अपने ब्लॉग कॉफी विद कुश पर


तब तक आप आनंद लीजिए इन दो ब्लॉग्स का जहा मैं अक्सर पढ़ने का आनंद लेता हू..

अमलतास और मुन्तज़ीर

Tuesday, June 10, 2008

222 नंबर के बस स्टॉप पर...


माँ कहती थी की...

चोरी करना बुरी बात है

मगर आज हुआ ही कुछ ऐसा

222 नंबर के बस स्टॉप पर

ऑफीस से घर को

थका हारा जा रहा था

की नज़र जा टिकी किसी की

गर्दन पर गिरती हुई ज़ुल्फ़ो पर

जो संभाले संभल नही रही थी

कसूर उनका नही था

हवा भी तो कम्बख़त

सौतन हो चली थी॥

बसंती चुनरिया को
थामे रखी थी वो
मगर वक़्त सी चुनरिया
थमी नही उसके हाथो में

उड़ती हुई आकर मुझपर आ गिरी,

जैसे चुकाया हो एहसान
पिछले किसी जन्म के क़र्ज़ का...

महकता हुआ आँचल ले कर

दे आया उसको, मुस्कुराई

मैं सुन तो नही पाया पर
शायद कुछ कहा था उसने,
होंठ हिले थे उसके
ऐसा मुझको लगा था
फिर खड़ी हो गयी वो
दिल से कितबो को लगाए
पहाड़ी की किसी ढलती
शाम सी लग रही थी...
अचानक नाज़ुक उंगलियो से
आँखो को छुआ उसने

ये रेत भी ना मनचली

छुने के बहाने चाहिए इसे!

और हवा भी ना मानी नही
कर आई उसके गालो में गुदगुदी
जीवन की वो पहली साँझ
आज सूरमय थी बड़ी,
की दिल पर वज्रपात हो गया!
उसकी बस आ गयी थी॥
खिड़की में से देखने की
कोशिश की बहुत, ऐसा लगा
कोहरे में थोड़ी सी चाँद की
रोशनी नज़र आई थी
मैं अकेला वही खड़ा रह गया
222 न। मेरी भी तो बस थी
इतना भी याद ना रहा॥
जाते जाते एक गुस्ताख़ी कर आया हू
माँ ने कहा तो था की चोरी करना बुरी बात है
पर उसकी एक झलक चुरा कर लाया हू...

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Monday, June 9, 2008

सभी ब्लॉगर मित्रो का स्वागत है 'कॉफी विद कुश' के पहले एपिसोड में....

नमस्कार मित्रो॥ आप सभी की प्रतिक्रिया देखकर उत्साह और बढ़ गया.. आज शुभारंभ होने जा रहा है एक नये ब्लॉग कॉफी विद कुश का.. जहा हम मिलाएँगे आपको हर बार एक ब्लॉगर से.. जिससे की हम अपने ब्लॉगर मित्रो को और करीब से जान सकेंगे.. अभी यह पहला एपिसोड है तो कृपा करके आप अपने सुझाव ज़रूर दीजिएगा.. ताकि हम इसे और बेहतर बना सके.. ज़्यादा समय ना लेते हुए मैं आपको ले चलता हू .. कॉफी विद कुश की पहले एपिसोड की तरफ... स्वागत है॥

यह क्लीक कीजिये

कॉफी विद कुश का पहला एपिसोड

Saturday, June 7, 2008

सभी ब्लॉगर मित्रो को निमंत्रण ...

श्री गणेश जी महाराज की असीम कृपा से
एक नया ब्लॉग प्रारंभ होने जा रहा है....


'कॉफी विद कुश'


जहा हर बार हम मिलाएँगे आपको एक ब्लॉगर से॥
जी हा ठीक समझे आप
हर बार होगा एक ब्लॉगर से साक्षात्कार॥
सोमवार दिनाक 09 जून 08 की
मधुर वेला पर आप सभी ब्लॉगर मित्र
सपरिवार सादर आमंत्रित है॥
धन्यवाद।


बाल मनुहार - चिंकी, पिंकी, गुड्डू, बब्बू, टीना


नन्हे हाथो में बर्तन ओर गिलासे देखकर....



नन्हे हाथो में
बर्तन ओर गिलासे देखकर
पूछा मैने॥
गुड़िया! बर्तन हाथो में लिए
कहा जा रही हो॥ बोलो,
कुछ मासूमियत से कहा उसने
पास वाली अम्मा जी के यहा
अश्टमी का पूजन है
कन्याओ को बुलाया है,
हम छोटी जात के है तो
बर्तन ख़ुद लाने को बोला है...
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Friday, June 6, 2008

मासूम बेटी का अपनी माँ से एक सवाल...



बड़े अचरज से माँ
को देखते हुए पूछा था उसने
क्यू तुम मुझे राजा बेटा कहती हो ?
माँ ने मुस्कुरा के बोला
अरे पगली तुझे तो प्यार से
राजा बेटा कह देती हू..
फिर भैया को आप कभी प्यार से
रानी बेटी क्यो नही कहती ??

माँ के पास मुन्नी की इस
बात का कोई जवाब नही था!
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Thursday, June 5, 2008

मैं 'लेलो जी लेलो जी लेलो बैंक' से बोल रही हूँ ..

गुड आफ्टर नून सर, मैं 'लेलो जी लेलो जी लेलो बैंक' से बोल रही हूँ .. सर हमारी कंपनी ने नया प्लान निकाला है सिर्फ़ पंद्रह सौ रुपये के डाउन पेमेंट पर आप कार ले सकते है बाकी की रकम आसान किश्तो में.. इतना ही नही सर..
एक मिनिट मैडम एक मिनिट अब हम कुछ बोले, ये क्या है आप हमे फोन लगाते ही शुरू हो गयी अरे भई कम से कम पूछ तो लिया करो की सामने वाला सुनना चाहता भी है या नही.. फोन लगा नही की शुरू हो गये बस.. अरे सर आप तो नाराज़ हो गये मुझे लगा था की आप बहुत बिज़ी होंगे तो फालतू में हाय हैलो में टाइम वेस्ट करने से अच्छा है फटाफट बात कर ली जाए... वैसे तो हम अपनी रज़ाई की दुकान पर तकिया लगाकर लेटे हुए थे लेकिन बिज़ी सुनकर हम में भी जोश आ गया.. हम भी अपनी रा. ऊ. मा. वि. की इंग्लिश में बोले या या मैडम यू आर राइट. प्लीज़ स्पीक नाउ.. थॅंक यू सर वो बोली.. सर आप हमारी कंपनी से लोन ले लीजिए और खरिदिये अपने सपनो की कार.. सपनो वाली कार ! अव्वल तो हमारे घर के मच्छरो ने हमे कभी सोने नही दिया और जब कभी ग़लती से आँख लग भी गयी तो अपने सपनो में कार तो कभी आई नही हा साहूकार ज़रूर आ जाते थे और डराते भी थे.. हम बोले जी कार वार तो हमको लेनी नही.. आप किसी और को फोन करिए..

वो बोली अरे सर कार नही लेनी तो कोई बात नही आप भाभी जी के लिए बॅंकाक की ट्रिप बुक करवा दीजिए.. हमारी बॅंक उस पे भी लोन देती है .. और इंट्रेस्ट रेट भी कम है हमने कहा हा इंट्रेस्ट तो हमारा भी थोडा कम है वहा जाने में.. नही नही सर आप समझे नही मैं ब्याज की बात कर रही हू.. ब्याज !!! हम गद्दी से उछल पड़े.. ये किस मनहूस का फोन आया है आज.. ये क्यो ऐसे डरावनी बाते कर रही है.. हमने कहा मैडम लगता है आपने कोई ग़लत नंबर मिला दिया है.. हम तो असल ही नही चुका पाते ब्याज क्या चुकाएँगे.. वो हँसी और बोली सर डोंट वरी ब्याज निकालना तो हमारा काम है.. हमारे रिकवरी एजेंट आदमी की खाल उधेड़कर भी माल निकाल लेते है.. पर आप घबराईए नही आप तो सज्जन पुरुष है आपके साथ वो ऐसा नही करेंगे.. आप तो ले लीजिए लोन..

हमे तो ये लड़की कोई जिन्न पिशाच मालूम होती है पीछे ही लग गयी है.. कैसे पीछा छुड़ाए इससे.. हमने कहा मैडम हमारे पास तो पासपोर्ट ही नही हम कही नही जा सकते.. वो बोली सर कोई बात नही जब तक पासपोर्ट बनता है आप भाभी जी को नयी ज्वेलरी दिला दीजिए.. हमारी बॅंक उस पर भी लोन देती है.. अरे भई हमको नही दिलानी ज्वेलरी... सोने के भाव देखे है आपने...सोने ही नही देते.. आप तो बस रहने दीजिए... मुझे माफ़ करिए.. अरे सर आप तो इतनी निराशाजनक बात कर रहे है जैसे आपने आई पी एल में टीम खरीदी हो और वो मैच हार गयी.. सर चिंता मत कीजिए आपकी हर दुखद घड़ी में 'लेलो जी लेलो जी लेलो बैंक' आपके साथ है.. आप तो एक काम करिए अपने लिए एक घर खरीद लीजिए हमारी बैंक उस पर भी लोन देती है.. अरे लेकिन हमारा तो पहले से ही मकान है जहा हम रहते है फिर भला दूसरा क्यो खरीदे.. वो बोली सर मैं कहा रहने के लिए बोल रही हू.. आप तो खरीद लीजिए बाद में बेच देना.. ये बात तो हमारे भेजे के ओवर ब्रिज से गुज़र गयी.. हमने कहा जब बेचना है तो खरीदे ही क्यू.. वो बोली मुनाफ़ा सर जी मुनाफ़ा.. आजकल तो सबको मुनाफ़ा चाहिए.. ये सुनते ही हमने सोचा की लो यहाँ तो सबको मुनाफ़ा चाहिए और एक हम है की दादाजी की दुकान पे दादाजी के जमाने के भाव पे रज़ाईया बेच रहे है,

हमने कहा लेकिन हम ज़मीन किसको बेचेंगे हम तो ये सब समझते नही है.. कही सस्ती बेच दी और मुनाफ़ा कम हुआ तो? वो थोड़ी आवाज़ को धीमे करके बोली डोंट वरी सर मैं हूँ ना मैं पार्ट टाइम प्रॉपर्टी का भी काम करती हूँ .. आप तो बस लोन ले लीजिए.. नही नही ये ज़मीन वमीन हमसे नही होता.. आप तो मुझे बक्श ही दीजिए.. वैसे भी मैं ज़्यादा बात करता हू तो थक जाता हू.. इतना सुनते ही वो बोली क्या बात करते हो सर लगता है आपको दमे की बीमारी है.. ये बहुत ख़तरनाक बीमारी है सर.. आदमी खांसता रहता है.. जल्दी थक जाता है.. चिड़चिड़ा हो जाता है. बीवी बच्चे उसे इग्नोर करते है.. धीरे धीरे वो दिल का मरीज़ हो जाता है.. यहाँ तक की उसकी जान भी जा सकती है.. इतनी सारी बीमारियो में खर्चा भी बहुत होता है.. सर आप एक काम क्यो नही करते आप मेडिकल लोन ले लीजिए हमारी बॅंक उस पे लोन देती है.. हे भगवान ..ऐसी बाते सुनकर मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा.. मैं नीचे गिर गया.. मेरे बेटे ने आकर मुझपर पानी फेंका फोन पे वो लड़की अभी भी बोल रही थी, आवाज़ सुनकर मेरे बेटे ने फोन उठाया.. लड़की बोली अरे अंकल कहा गये.. कही मर तो नही गये.. अगर मर गये है तो गड़बड़ हो जाएगी.. वैसे भी आजकल अंतिम संस्कार में खर्चा बहुत होता है लेकिन आप चिंता मत करिए हमारी 'लेलो जी लेलो जी लेलो बैंक' उस पर भी लोन देती है..

Wednesday, June 4, 2008

नीना! क्यू सता रही हो यार तुम..

- क्या है!

- कुछ नही

- तो फिर ये कानो में तिनका क्यो डाल रही हो..

- क्यू गुदगुदी होती है ?

- नही गुस्सा आता है..

- हा तुम तो बस गुस्सा ही करो मुझ पर!

- तो और क्या करू यार कब से बुक पढ़ रहा हू.. तुम हो की कभी कुछ कभी कुछ.. यार तुम चुपचाप बैठ नही सकती क्या..

- अरे अब हम यहा गार्डन में बुक पढ़ने आए है ? कितना अच्छा मौसम हो रहा है लगता है बारिश आने वाली है.. और तुम हो की इस किताब में मुँह डाले बैठे हो.. छोड़ो इसे

- ओह कम ऑन नीना दो ना यार बुक..

- तो पहले वादा करो हरी वाली चूड़िया दिलाओगे..

- ये तो कोई बात नही हुई... तुम तो ब्लैकमेल कर रही हो..

- ब्लैक हो या वाइट मुझे नही पता, बोलो दिलाओगे या नही, वरना किताब नही मिलेगी...

- अच्छा ठीक है.. दिला दूँगा अब तो किताब दो..

- और दूध जलेबी..

- हा बाबा वो भी, अब लाओ किताब दो मेरी..

- अरे क्या तोते की तरह रट लगा रहे हो किताब किताब, जब मैं साथ होती हू तो मुझसे भी बात कर लिया करो...

- तुमसे तो रोज़ ही बात करता हू..

- क्या खाक करते हो रोज़ बात.. पहले तो दिन में दस बार फोन करते थे.. रोज़ मिलने आते थे.. अब तो मिलना ही नही होता एक तो इतने दिनो बाद मिलने आए हो उपर से इस किताब में मुँह घुसा के बैठे हो.. मैं तो कुछ हू ही नही तुम्हारे लिए.. बस तुम्हारी किताब.. तुम्हारी कवितए और तुम्हारे गुलज़ार..

- यार क्यो परेशान कर रही हो..

- हा भई मैं तो परेशान करती हू .. मुझे भी कौनसा जो तुमसे बात करनी है... जब साथ में हो तो कोई अहमियत नही समझता देख लेना एक दिन जब छोड़ के चली जाऊंगी तब पता चलेगा..

- नीना ! पागल हो क्या कैसी बाते करती हो..




आज शाम फिर वही गुज़ारी
जहा मैं किताब पढ़ता रहता
और तुम्हारी गोद में
सर मेरा रखा होता था..

तुम तिनका डालकर कानो
में मेरे सताती थी
मेरे हाथ में तुम्हारा
हाथ रखा होता था...

दोनो देखते रहते आसमान
से गिरते हुए सूरज को
अंधेरा जल भुन कर माथे
पर आ चुका होता था

उठकर चल देते थे हम
हाथो में हाथ लिए
तुम्हारा सर मेरे
काँधे पर होता था

हर बार पार्किंग का टोकन
खो देता था जेब से अपनी
और तुम्हारे पर्स में
ना जाने कहा से वो होता था

गरम गरम दूध जलेबी
गेन्दामल हलवाई की
दोनो मिट्टी के सिकोरो
में एक साथ खाते थे हम

ख़ाली सड़को पे बातें
करते हुए चलते रहते
एक दूजे का हाथ थामे
भूल जाते सब ग़म

चूड़ीवाले को देखते ही
तुम्हारी ज़िद शुरू हो जाती
और मुआ चूडी वाला भी
तुम्हे देखते ही वहा आ जाता था

तुम भागकर सड़क पार करती थी
ओर मैं तुम पर चिल्लाता था..
घबरा कर तुम्हारे पास आता
क्या यार नीना साँसे निकाल देती हो!

इक रोज़ फिर ऐसे ही तुम्हारा
सड़क को पार करना हुआ था
मैं तब दूसरे छोर पे था
तबसे तुम उस ओर चली गयी

आज शाम फिर वही गुज़ारी
सुखी टहनियो के नीचे..
मगर मेरे हाथो में कोई
किताब नही होती है..

तिनके बिखरे हुए है
अब भी यहाँ वहाँ..
हवाएं आकर इन्हे
उड़ा ले जाती है..

अकेला चलता हू मेरे
काँधे झुके से है थोड़े...
सामने से साथ आता हुआ
कोई जोड़ा दिख जाता है..

तुमसे पार्किंग का कूपन
माँगने से पहले ही
जेब में पार्किंग का
कूपन मिल जाता है

इक रोज़ चूड़ी वाले ने पूछा था बस!
अब वो भी नही आता है
तुम्हारे लिए चूड़िया ख़रीद लू
पर तुम अब ज़िद ही नही करती

हलवाई के यहा जाता हू
भीड़ में शायद वो
देख नही पाता..
दो सिकोरे मेरी ओर बढ़ाता है

कब तक तुम्हे साथ लेकर
चलता रहूँगा मैं..
मुझसे अब ये नही होता है
होंठो को मुस्कुराहट देने
वाला दिल अकेले में बहुत रोता है...

- नीना! क्यू सता रही हो यार तुम, अब तुमसे ही बात करूँगा बस.. देखो अब किताबे भी नही पढ़ता हू ! आ जाओ ना नीना की मैं अब भी गार्डन में तुम्हारा इन्तेज़ार करता हूँ !

-- ए कौन है वहा ! चल पार्क बंद होने का टाइम हो गया है.. कब से सीटी बजा रहा हू सुनते ही नही है लोग, जब फाटक बंद करता हू तब आते है.. कितनी बार कहा है फाटक बंद होने से पहले आ जाया करो..

Tuesday, June 3, 2008

और क्या कहू.....

जब तुम पास होती थी तब कितनी ही बातें करती थी.. एक बार बोलना शुरू किया नही की बस.. और जब मैं कुर्सी से उठकर तुम्हारे मुँह पे हाथ रखके तुम्हारा मुँह बंद कर देता था तो तुम आँखो में सवाल लिए पूछती क्या है!... मैं कहता नयी धुन बनाई है यार सुन तो लो.. तुम्हारा कहना होता धुन चाहे कैसी भी हो मेरी आवाज़ के बिना अधूरी है.. अच्छा चलो सुनाओ देखे तो सही कैसी धुन है तुम्हारी? मैं कहता अरे पागल धुन दिखती नही है सुनी जाती है.. अच्छा अच्छा बस करो और सुनाओ.. तुम धुन सुनते हुए गुनगुनाने लगती ... मैं खो सा जाता आवाज़ में तुम्हारी.. तुम मेरी आवाज़ में मिल सी जाती.. कितनी ही रातें ऐसे गुज़ार दी थी हमने..

मगर इक रात सब कुछ बदल गया .. तुम्हारी सालगिरह पर मैने तुम्हे कंगन दिए थे.. तुमने पूछा पैसे कहा से लाए.. मैं जवाब नही दे पाया.. तुम समझ गयी थी मैने अपनी सबसे अच्छी धुन बेच दी .. कितनी चिल्लाई थी तुम मुझ पर.. आज के बाद कभी बात मत करना मुझसे.. गुस्से में सीढ़िया उतर कर तुम चली गयी..
रूठ ती तो तुम पहले भी थी.. पर इस तरह नही की फिर मानोगी ही नही.. अब भी कभी बाहर बारिश होती है तो लगता है तुम गुनगुना रही हो वहा से... मैं अब भी जब धुन बनाता हू तो देखता रहता हू सीढ़ियो की तरफ जहा से तुम गयी थी कभी... शायद लौट आओ वही से...



तेरी ही बात बस तेरी ही
बात सारी रात चलती रही
मैं देखता रहा तस्वीर तेरी
और शमा जलती रही ....

बड़ी ज़ोर से आई हवा
और खिड़की खोल गयी..
कमरे में मेरे हर तरफ
तेरी ही खुश्बू घोल गयी...

मैने उठाया गिटार और
गीत वही गुनगुनाने लगा..
बंद आँखें किए मंद
मंद मुस्कुराने लगा...

चांद की रोशनी ठिठक
कर होले से कमरे में आ गयी
बिन माँगे इज़ाज़त मुझसे..
तेरी तस्वीर में समा गयी...

साज़ मेरे गिटार से निकले ही थे
की तेरी आवाज़ मुझे मिल गयी..
चाँद रात वाली बगिया में..
सितारो की इक कली खिल गयी...

तुम गाती रही साज़ पे मेरे
और मैं बस तुम्हे सुनता रहा..
सारी यादो को रख हथेली पर
सपने तुम्हारे बुनता रहा..

........................