माँ कहती थी की...
चोरी करना बुरी बात है
मगर आज हुआ ही कुछ ऐसा
222 नंबर के बस स्टॉप पर
ऑफीस से घर को
थका हारा जा रहा था
की नज़र जा टिकी किसी की
गर्दन पर गिरती हुई ज़ुल्फ़ो पर
जो संभाले संभल नही रही थी
कसूर उनका नही था
हवा भी तो कम्बख़त
सौतन हो चली थी॥
बसंती चुनरिया को
थामे रखी थी वो
मगर वक़्त सी चुनरिया
थमी नही उसके हाथो में
उड़ती हुई आकर मुझपर आ गिरी,
जैसे चुकाया हो एहसान
पिछले किसी जन्म के क़र्ज़ का...
महकता हुआ आँचल ले कर
दे आया उसको, मुस्कुराई
मैं सुन तो नही पाया पर
शायद कुछ कहा था उसने,
होंठ हिले थे उसके
ऐसा मुझको लगा था
फिर खड़ी हो गयी वो
दिल से कितबो को लगाए
पहाड़ी की किसी ढलती
शाम सी लग रही थी...
अचानक नाज़ुक उंगलियो से
आँखो को छुआ उसने
ये रेत भी ना मनचली
छुने के बहाने चाहिए इसे!
और हवा भी ना मानी नही
कर आई उसके गालो में गुदगुदी
जीवन की वो पहली साँझ
आज सूरमय थी बड़ी,
की दिल पर वज्रपात हो गया!
उसकी बस आ गयी थी॥
खिड़की में से देखने की
कोशिश की बहुत, ऐसा लगा
कोहरे में थोड़ी सी चाँद की
रोशनी नज़र आई थी
मैं अकेला वही खड़ा रह गया
222 न। मेरी भी तो बस थी
इतना भी याद ना रहा॥
जाते जाते एक गुस्ताख़ी कर आया हू
माँ ने कहा तो था की चोरी करना बुरी बात है
पर उसकी एक झलक चुरा कर लाया हू...
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वाह भई वाह ...चोरी करना बुरी बात तो है लेकिन ऐसी चोरी की कोई सजा नहीं है!करते रहिये...
ReplyDeletepehli nazar mein jaise aap ka dil ghayal ho gaya vaise hi....is nazm ne hamara bhi dil ghayal kar diya...
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ReplyDeleteअगर ये चोरी है तो हम डकैत हुए. पक्के...!
ReplyDeleteबस सजा का अभी भी इंतज़ार है :-)
कुश हकीक़त में एक खूबसूरत ख़याल है। मगर ऐसी चोरी पर तो ऊपरवाला भी सज़ा नहीं देगा। तो घबराने की कोई बात नहीं है।
ReplyDeleteशुभकामनायें।
ऐ लो ..जब पुलिस [पल्लवी जी ] कह रही है कि इस चोरी की कोई सजा नही तो भाई फ़िर डर काहे का ....
ReplyDeletevah vah.. :)
ReplyDeleteहाँ सही ही है.
ReplyDeleteअब समझ आया पहला इंटरविउ पल्लवी जी का क्यों था.:)
बहुत सुंदर लिखा.
बधाई.
.
पल्लवी जी ने कह दिया है लेकिन सावधान रहिएगा। थोड़ी सी चूक में ही आगे सजा वाला अपराध भी है।
ReplyDeletebas!!
ReplyDeletelafangagiri ko thode achhe shabd de diye aur ban gaye saadhu.
saaf saaf ek line mein likh dete line maar rahe the bus stop par.
badhiya hai badhiya hai.
Bahut payra likha kush ji aapne, Pahli nazar ka pyar, sala apna to jaha koi sunder ladki dekhi wahi pahla pyar ho jata hai.pahli nazar ka pyar :-)
ReplyDeleteपहला चोर देखा जो इकबाले जुर्म के साथ सजा की गुहार लगा रहा है । लगे रहो बडे भाई चोरी करते रहो - उपर वाले के यहॉं देर है अन्धेर नहीं - सजा जरूर मिलेगी कभी न कभी - सुना है उसकी लाठी बेआवाज है
ReplyDeleteखुदा ऐसी चोरी सबको नसीब करे...ओर ऐसे पुलिस वाले भी.....
ReplyDeleteuski ek jhalak churakar laya hun,wah bahut hi mithas ke saath saji sundar ehsaason se bhari kavita,awesome
ReplyDeleteबहुत सही बात.......
ReplyDeleteआलोक सिंह "साहिल"
माँ ने कहा तो था की चोरी करना बुरी बात है
ReplyDeleteपर उसकी एक झलक चुरा कर लाया हू...
-बहुत सही!! बढ़िया लिखा है.
aisi hi chori kai log karte hain, devanand se lekar hritik aur kush se lekar..... badhiya likha. Nice post
ReplyDeleteअच्छा लिखा है।
ReplyDeleteइस प्यारी सी चोरी के लिए तो आपको बधाई ही दी जानी चाहिए।
ReplyDelete'ये रेत भी ना मनचली
ReplyDeleteछुने के बहाने चाहिए इसे!
और हवा भी ना मानी नही
कर आई उसके गालो में गुदगुदी '
arey wah !kya ahsaas hai!
:) bas hum to muskara rahe hain aap ki kavita ko padh kar--waise bahut pyari si gustakhi ki hai!
Kush ! this poem of yours is my all time favt..aaz bahut salon baad fir padha ise.utna hi maja aaya..its just BEAUTIFUL.
ReplyDeletehan..thanks for your comment [:)]