नन्हे हाथो में
बर्तन ओर गिलासे देखकर
पूछा मैने॥
गुड़िया! बर्तन हाथो में लिए
कहा जा रही हो॥ बोलो,
कुछ मासूमियत से कहा उसने
पास वाली अम्मा जी के यहा
अश्टमी का पूजन है
कन्याओ को बुलाया है,
हम छोटी जात के है तो
बर्तन ख़ुद लाने को बोला है...
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aapki ek aur rachna..samaj ka kala chehra saamne laati hai..wo bhi bade hi sensitivity se..
ReplyDeletekaha se laate hai aap ye sensitvity....
aapka prayaas yuhi jaari rahe..
likhte rahe..
ओह!! पढ़ते ही अन्दर तक चली गई यही कविता लगा किसी ने तेज धार किसी चीज से शरीर में पैवस्त कर दिया हो. इसे हमे बदलना होगा.
ReplyDeleteसमाज का एक और आईना दिखाती है आपकी यह रचना ..अच्छी सच्ची लगी ..अभी भी कई जगह इस मानसिकता से लोग उभर नही पाये हैं ..
ReplyDeletekadwi sachchai....bahut andar tak chhoo gayi!kaash sabhi log itne sensitive ho jaayen..
ReplyDeletebahut achhe.
ReplyDeletebahut teekha vyangya
bahut sateek baat
naqaab odhe logon ke munh par zabardast tamacha.
bahut achhe...
(likhte rahe likhne ki zaroorat hai?? )
सच्चाई को बयान करती रचना, सुन्दर है।
ReplyDeleteहमारे समाज का नंगा और विकृत चेहरा.
ReplyDeleteबहुत सही है भाई.
ReplyDeleteteer bilkul nishane par hai..bas ummeed hai ki is samaj ko is teer ki chubhan mehsoos ho.
ReplyDeleteBahut hi umda aur sajeev lekhan
bilkul sahi nishana lagaya hai,samaj ke uss hisse ko dard hona chahiye,jo aaj bhi aisi soch rakhte hai,insaan to ek hi hai bas lall khun se bana,ye chota,bada kaha se aagaya?
ReplyDeletebahut sashakt rachana
कुश,
ReplyDeleteआपकी कलम वाकई कुशाग्र है। अच्छा लिख रहे हो... और सबसे बड़ी बात यह कि आपने ब्लॉग का माहौल कूल बना रखा है। कूल कलर पिक्चर्स एंड कूल कलर टेक्सट विद कूल थीम।
बहुत अच्छा!!!
कड़वा सच एक सीधी और सच्ची कविता के माध्यम से कहा कुश.
ReplyDeleteदुःख भी होता है पढ़कर कि ऐसे-ऐसे लोग अभी भी है समाज मे.
बड़ा सूक्ष्म ऑब्जर्वेशन! बहुत अच्छा लिखा।
ReplyDeleteबेहद कड़वी सच्चाई और हकीकत ।
ReplyDeleteबढ़िया है.
ReplyDeleteसच, मन दुखी हो गया. बहुत मार्मिक-एकदम आईना दिखाती रचना. आभार.
ReplyDeleteकुश जी,
ReplyDeleteभगवान कैसे प्रसन्न होगेँ ऐसे अनुष्ठानोँ से जब समाज ऐसे भेदभाव् करता है ?अच्छी कविता लिखी आपने ..
- लावण्या