जब तुम पास होती थी तब कितनी ही बातें करती थी.. एक बार बोलना शुरू किया नही की बस.. और जब मैं कुर्सी से उठकर तुम्हारे मुँह पे हाथ रखके तुम्हारा मुँह बंद कर देता था तो तुम आँखो में सवाल लिए पूछती क्या है!... मैं कहता नयी धुन बनाई है यार सुन तो लो.. तुम्हारा कहना होता धुन चाहे कैसी भी हो मेरी आवाज़ के बिना अधूरी है.. अच्छा चलो सुनाओ देखे तो सही कैसी धुन है तुम्हारी? मैं कहता अरे पागल धुन दिखती नही है सुनी जाती है.. अच्छा अच्छा बस करो और सुनाओ.. तुम धुन सुनते हुए गुनगुनाने लगती ... मैं खो सा जाता आवाज़ में तुम्हारी.. तुम मेरी आवाज़ में मिल सी जाती.. कितनी ही रातें ऐसे गुज़ार दी थी हमने..
मगर इक रात सब कुछ बदल गया .. तुम्हारी सालगिरह पर मैने तुम्हे कंगन दिए थे.. तुमने पूछा पैसे कहा से लाए.. मैं जवाब नही दे पाया.. तुम समझ गयी थी मैने अपनी सबसे अच्छी धुन बेच दी .. कितनी चिल्लाई थी तुम मुझ पर.. आज के बाद कभी बात मत करना मुझसे.. गुस्से में सीढ़िया उतर कर तुम चली गयी..
रूठ ती तो तुम पहले भी थी.. पर इस तरह नही की फिर मानोगी ही नही.. अब भी कभी बाहर बारिश होती है तो लगता है तुम गुनगुना रही हो वहा से... मैं अब भी जब धुन बनाता हू तो देखता रहता हू सीढ़ियो की तरफ जहा से तुम गयी थी कभी... शायद लौट आओ वही से...
तेरी ही बात बस तेरी ही
बात सारी रात चलती रही
मैं देखता रहा तस्वीर तेरी
और शमा जलती रही ....
बड़ी ज़ोर से आई हवा
और खिड़की खोल गयी..
कमरे में मेरे हर तरफ
तेरी ही खुश्बू घोल गयी...
मैने उठाया गिटार और
गीत वही गुनगुनाने लगा..
बंद आँखें किए मंद
मंद मुस्कुराने लगा...
चांद की रोशनी ठिठक
कर होले से कमरे में आ गयी
बिन माँगे इज़ाज़त मुझसे..
तेरी तस्वीर में समा गयी...
साज़ मेरे गिटार से निकले ही थे
की तेरी आवाज़ मुझे मिल गयी..
चाँद रात वाली बगिया में..
सितारो की इक कली खिल गयी...
तुम गाती रही साज़ पे मेरे
और मैं बस तुम्हे सुनता रहा..
सारी यादो को रख हथेली पर
सपने तुम्हारे बुनता रहा..
........................
yeh gadya aur kavita ka mel..bahut achha laga..dono ek duje se khoobsoorati se jude hue hai...
ReplyDeleteचांद की रोशनी ठिठक
कर होले से कमरे में आ गयी
बिन माँगे इज़ाज़त मुझसे..
तेरी तस्वीर में समा गयी...
khoobsoorat likha hai...
aise experiment karte rahe...
likhte rahe..
kushbhai...behtar laga...par aap ki likhai ki anoki jo kashish hai woh kahin gayab hai is mein...
ReplyDeletegadya aur padya ka mishran..achha laga.
ReplyDeletehaan shuruaat mein ek jagah 'wo' poochhti hain-Kya hai!!
ha ha.achha laga unka aisa poochhna.
wo samajh gayeen maine sabse achhi dhun bech di...ye kahin aakhiri mein batana tha.thoda zyada achha lagta.
achha hai magar.
कुछ बारिशे अलग ही आसमान से गिरती है ,कुछ ज़ज्बे किन्ही खास दिल से निकलते है ....कुछ लम्हे कुछ खास लोगो के लिए होते है....
ReplyDeleteतुम गाती रही साज़ पे मेरे
ReplyDeleteऔर मैं बस तुम्हे सुनता रहा..
सारी यादो को रख हथेली पर
सपने तुम्हारे बुनता रहा..
सपने बुने ही जाते हैं .अच्छा लगा इसको पढ़ना .आपने अपने दिल की बात बहुत खूबसूरत अंदाज़ में कही है ..
ek kaam karo aap...likhne ko full time profession bana lo aap....beautiful... :)
ReplyDeleteचांद की रोशनी ठिठक
ReplyDeleteकर होले से कमरे में आ गयी
बिन माँगे इज़ाज़त मुझसे..
तेरी तस्वीर में समा गयी...
kya baaat hai!!!!!wah!
वाह !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ।
वाह भाई.. छ गए! जमे रहो!
ReplyDeleteखयालों में बहकर आपका लिखने का ये अन्दाज़ बहुत ही अच्छा है..जैसे सब आँखों के सामने बिखर जाये मोतीयों की तरह ठीक इस तरह आपने सब कह दिया है..
ReplyDeleteतुम गाती रही साज़ पे मेरे
और मैं बस तुम्हे सुनता रहा..
सारी यादो को रख हथेली पर
सपने तुम्हारे बुनता रहा..
बहुत अच्छा लिखा है..
beintaha khoobsurat...
ReplyDeleteSochte hain kabhi kabhi.. wo ek hee thi/hai jo aapko itne inspirations deti hai ya aise kai sari aapki inspirations bani rahti hain!!! :)
prem ki itni khoobsurat rachnayein ham aapki padh chuke hain.. ke kai baar sochte hain...kya reality mein koi itna sochta hoga!!!
wah behad khubsurat jazzbaat,jab man mile ho,insaan koi bhi pyari vastu ka tyag karde,story ke saath poem ka aisa khubsurat taalmel hai ke subhan aala,awesome.
ReplyDeleteतुम गाती रही साज़ पे मेरे
ReplyDeleteऔर मैं बस तुम्हे सुनता रहा..
सारी यादो को रख हथेली पर
सपने तुम्हारे बुनता रहा
--बहुत उम्दा.
jabardast.
ReplyDeleteअति सुंदर.
एक खूबसूरत ahsaas.
kush badahi हो इतने अच्छे lekhan के लिए.
बहुत ही रूमानी अंदाज़ है आपका....लगता है किसी और दुनिया में पहुँच गए.
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