कुछ क्षणिकाए -
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तुमने आकर कहा था
ये मुलाकात अब आख़िरी है
मैं तो था जैसे
वैसे ही खड़ा रहा... मगर
रात के माथे पर शिकन
देखी मैने..
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पंजो के बल खड़े होकर
तुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
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तेरे साथ बिताए पल
आ जाते है अक्सर ख्यालो में..
बड़ी बेरहमी से पकड़
के गिरेबान मेरा.. कई सवाल
पूछते है......
लबो पे मेरे
सिलवटे तो आती है मगर कोई
जवाब नही आता..
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घंटो तक चाँद को
निहारते हुए छत पे..
तुम ओर मैं बैठे रहते थे
बड़ी देर तक खामोशिया
बातें करती थी..
अब जो खामोशी है
वो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
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तुमने आकर कहा था
ReplyDeleteये मुलाकात अब आख़िरी है
मैं तो था जैसे
वैसे ही खड़ा रहा... मगर
रात के माथे पर शिकन
देखी मैने..
ye wali to bas kamaal hai.khoobsurat likha hai....
पंजो के बल खड़े होकर
ReplyDeleteतुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
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घंटो तक चाँद को
निहारते हुए छत पे..
तुम ओर मैं बैठे रहते थे
बड़ी देर तक खामोशिया
बातें करती थी..
अब जो खामोशी है
वो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
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:
tumhari kshanikaye....bahot khub...kam shabdo mein badi baat ...hamesa intzaar raheta hai.....is baat to pictures bhi bahot achchi hai....
लबो पे मेरे
ReplyDeleteसिलवटे तो आती है मगर कोई
जवाब नही आता..
Bahut acchha hai bhai.
पंजो के बल खड़े होकर
ReplyDeleteतुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
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kya baat hai
तेरे साथ बिताए पल
आ जाते है अक्सर ख्यालो में..
बड़ी बेरहमी से पकड़
के गिरेबान मेरा.. कई सवाल
पूछते है......
लबो पे मेरे
सिलवटे तो आती है मगर कोई
जवाब नही आता..
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labon par mere silwaten to aati hai magar koi jawaab nahi aata
bahut hi achhi
घंटो तक चाँद को
निहारते हुए छत पे..
तुम ओर मैं बैठे रहते थे
बड़ी देर तक खामोशिया
बातें करती थी..
अब जो खामोशी है
वो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
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अब जो खामोशी है
ReplyDeleteवो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
bahut khuub likha hai!
sabhi kshanikayen achchee lagin Kush..
घंटो तक चाँद को
ReplyDeleteनिहारते हुए छत पे..
तुम ओर मैं बैठे रहते थे
बड़ी देर तक खामोशिया
बातें करती थी..
अब जो खामोशी है
वो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
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wah bahut hi khubsurat
aur raat ke mate pe shikan wali bhi behad pasand aayi,bahut badhai
तुमने आकर कहा था
ReplyDeleteये मुलाकात अब आख़िरी है
मैं तो था जैसे
वैसे ही खड़ा रहा... मगर
रात के माथे पर शिकन
देखी मैने..
bhut ghari rachana. badhai ho.
घंटो तक चाँद को
ReplyDeleteनिहारते हुए छत पे..
तुम ओर मैं बैठे रहते थे
बड़ी देर तक खामोशिया
बातें करती थी..
अब जो खामोशी है
वो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
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रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
क्या बात है जी ..बहुत बहुत सुंदर .. रिश्ते के एहसासों में डूबी हुई भाव पूर्ण है यह लफ्जों के मोती
क्या बात है? कुश जी सब आप ही की भाषा बोल रहे हैं।
ReplyDeleteपंजो के बल खड़े होकर
ReplyDeleteतुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
kyaa baat hai..
vaise dinesh ji ki baat se main bhi sahmat hun aur aapki hi bhasha bol daala.. :)
kushbhai....bahot badhiya... pehli aur aakhri khanika ne to jaise waqt rok diya....lajawab...
ReplyDeleteबहोत खूब कुश जी ..सुँदर बनी हैँ सभी क्षणिकाएँ !
ReplyDelete- लावण्या
छ गए हो गुरु !
ReplyDeleteभावों की गहरी पकड़.
ReplyDeleteबधाई
मन को छू गयीं।
जो के बल खड़े होकर
ReplyDeleteतुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
bahut khoob......maja aa gaya.
waah!!!
ReplyDeletebahut hi acchi hain saari ki saari ksanikaayen...
mazaa aa gaya!!!
भावों की अभिव्यक्ति तो कोई आपसे सीखे मित्र!
ReplyDeleteपंजो के बल खड़े होकर
ReplyDeleteतुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
ये खयाल बेहतरीन लगा
अब जो खामोशी है
ReplyDeleteवो बाते नही करती. ..
मेरी तरह चाँद भी रोज़ आकर
खाली हाथ लौट जाता है
--बहुत खूब..बेहतरीन!!
ye vaala kush jaanaa-pehchaana hai...saari hi bahut khuubsurat baatey hain..
ReplyDeleteBahut khoob...saari kee saari bahut achchhi.
ReplyDeleteAap kamaal kar rahe hain.
saari hi shankaye bahut sundar..par ye..
ReplyDeleteतुमने आकर कहा था
ये मुलाकात अब आख़िरी है
मैं तो था जैसे
वैसे ही खड़ा रहा... मगर
रात के माथे पर शिकन
देखी मैने..
bahut khoobsoorat soch...
likhte rahe...
पंजो के बल खड़े होकर
ReplyDeleteतुम चूम लेती हो मुझे..
रिश्तो की लंबाई
कद से नापी
तो नही जाती..
उम्दा, बहुत ही बढ़िया...
बढिया जी लेकिन असली आलू-चना / विवेचना बाद मे फ़ुरसत से की जायेगी :)
ReplyDeleteक्षणिकाएँ काफ़ी दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ने वाली हैं। अच्छी लगीं।
ReplyDeleteशुभम।
क्षणिकाएँ काफ़ी दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ने वाली लगीं।
ReplyDeleteशुभम।
khoobsurat andaz aur khoobsurat khayal... share karne ke liye shukriya
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