पिछली कड़ी में आपने देखा किस तरह से फुलो और चंदू को पहली नज़र में प्यार हो गया.. आइए देखते है कैसे हुआ दोनो के प्यार का इज़ेहार
प्यार करने वालो से भला हवा कब तक रूठती.. चंद्रकांत की पतंग हवा में गोते खाने लगी.. और उड़ते हुए हमेशा की तरह जा पहुँची फूलकंवर के एंटीने में.. फूलकंवर भी खुशी खुशी अपने तेल से सने हाथो से पतंग छुड़ाने आई.. पर ये क्या पतंग पे तो कुछ लिखा है.. "प्यारी फुलो.." फुलो!!... जाने कैसी मिठास थी इस नाम में फूलकंवर को फुल्की, फुलिया, फुलु तो अब तक सब कहते थे पर ये 'फुलो' उसे भा गया.. और यही प्यार की रीत भी है.. प्यार सबको एक नाम दे ही देता है.. उसके मुँह से भी हौले से निकला 'चंदू..' और हवा के साथ ये नाम उड़ता हुआ चंद्रकांत के कानो तक जा पहुँचा..चंदू! चंदू! चंदू! चंद्रकांत को अपने कानो में ये नाम बार बार सुनाई दिया.. प्यार हवाओ में बह ही जाता है.. चंदू के मन में अजीब सी सरसरी फैल गयी.. उसने अपनी फुलो को देखा मानो कह रहा हो की आगे तो पढ़ो.. प्यार निगाहो की भाषा भी तो जानता है.. फुलो आगे पढ़ने लगी.. 'प्यारी फुलो.. क्या तुम भी मेरे बारे में वही सोचती हो जो मैं तुम्हारे बारे में सोचता हू.. अगर हा तो अपने झाड़ू की सीख से एक छेद करदो पतंग में और अगर नही तो दो छेद कर दो.."
अपना चंदू परेशान हो रहा था. फुलो को इतना वक़्त क्यू लग रहा है.. उसने प्रार्थना की.. 'हे मुरली मनोहर.. पतंग में एक ही छेद करवाना..' उधर फूलकंवर को झाड़ू नही मिल रही थी.. बहुत देर इधर उधर ढूँढने के बाद उसने अपने बालो में लगानी वाली पिन से छेद कर दिया..और पतंग छुड़ाकर उड़ा दी.. चंदू ने भी पतंग को अपनी तरफ खींचा.. वो जल्दी से जल्दी पतंग को अपनी तरफ उतार लेना चाहता था ..लेकिन अगर कहानी में ट्विस्ट ना हो तो मज़ा ही कहा आता है.. चंदू ने देखा ना जाने कहा से एक गुलशन ग्रोवर नुमा काली पतंग उड़ती हुई आई.. और चंदू की पतंग के उसके साथ पेंच हो गये.. चंदू घबरा गया.. एक तो आख़िरी पतंग थी उपर से फुलो का जवाब भी था उस पर.. अगर पतंग कट गयी तो जवाब कैसे मिलेगा.. उधर फुलो की साँसे भी चढ़ चुकी थी.. उसने दोनो हाथ जोड़ कर कहा "राम जी लाज़ रखना हमारे चंदू की.."
लेकिन काली पतंग थी की कटने का नाम नही ले रही थी.. उपर से चंदू की पतंग में छेद होने से वो ठीक भी नही उड़ रही थी.. चंदू घबरा गया था.. उसे लगा कही फुलो ने दो छेद तो नही कर दिए.. पतंग ठीक से उड़ क्यो नही रही है.. वो सोच ही रहा था की इतने में एक ज़ोर से झटका लगा.. और चंदू की पतंग काट गयी.. फुलो की आँख में आँसू आ गये.. वो चिल्लाई नही इ इ इ!!! .. चंदू ने आव देखा ना ताव.. सीढ़िया उतर के भागने लगा.. वो किसी भी कीमत पर इस पतंग को खोना नही चाहता था.. उधर से फुलो भी तेज़ी ने नीचे उतरी., उसे लगा की पतंग किसी और के हाथ ना लग जाए.. वो भी भागी.. दोनो अलग अलग गलियो में बेतहाशा भाग रहे थे.. दोनो की नज़रे आसमान में थी...
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-ये लीजिए नीलिमा जी, आपका सब सामान तैयार है
-ये नही.. वो
-लेकिन आप तो हमेशा वो महँगी वाली टिकिया.......
-लेती थी! मगर वही सफेदी, वही झाग, कम दामो में मिले, तो कोई ये क्यो ले भला वो ना ले..
-मान गये
-किसे?
-आपकी पारखी नज़र और निरमा सुपर दोनो को..
निरमा सुपर डिटरजेंट टिकिया.. धुलाई में सुपर दम.. दाम फिर भी कम..
विज्ञापन समाप्त
दोनो गलियो से निकलते हुए नदिया के पास आ गये थे.. दोनो की नज़रे आसमान में थी.. बस किसी तरह से पतंग उनके हाथ लग जाए.. शुक्र है आज किसी की नज़र नही पड़ी थी पतंग पे वरना पतंग देखकर तो मोहल्ले के लड़के ऐसे टूट पड़ते है जैसे शहद पे मक्खी.. पतंग भी अब तक उड़ते उड़ते परेशान हो चुकी थी.. तो बस नीचे उतरने लगी.. ज्यो ही नीचे गिरने वाली थी पतंग की एक साथ दो हाथ गिरे उस पर.. एक हाथ पे दूसरा हाथ.. जी हा पहली बार चंदू और फुलो के हाथो ने बात की..दोनो एक दूसरे की आँखो में देखने लगे.. बैकग्राउंड में मधुर संगीत बजने लगा .. फटी हुई पतंग पे दोनो एक दूसरे का हाथ थामे खड़े थे.. चंदू फुलो को देख कर मुस्कुराया.. फुलो ने शर्म से आँखे झुका ली... और पलटके जाने लगी.. चंदू ने उसकी कलाई पकड़ ली.. एकदम से फुलो बोली..'हाय राम'.. फुलो की आँखे बंद हुई.. और जीभ होंठो के बीच आ फसी..
जाने दे ना चंदू.. फुलो बोली.. इतनी जल्दी.. पहले दोबारा मिलने का वादा करो.. दोबारा !फुलो रुकी.. हा दोबारा.. और ऐसे नही..कही ऐसी जगह बस जहा तू हो और मैं हू.. दूजा कोई नही..लेकिन ऐसी जगह कहा है.. ' फुलो बोली.. चंदू भी कहा हार मानने वाला था बोला 'डूंगरी वाले हनुमान जी के मंदिर.. वहा आजा कल शाम..' फुलो बोली हम तो ना आएँगे.. और भागने लगी.. चंदू भी पीछे भागा..इतने में फुलो का पाँव फिंसला और छपाक !! से दोनो दरिया में गिर गये.. हालाँकि पानी तो कम ही था.. लेकिन दोनो गीले हो गये.. फुलो ने देखा चंदू उसी की ऑर देख रहा है.. फुलो ठंड से ठीठुर गयी.. चंदू अपनी गोद में उठाके उसको बाहर ले आया.. फुलो चंदू की आँखो में देख रही थी..
बाहर आकर दोनो साथ साथ चलने लगे. कोई कुछ नही बोल रहा था.. ये खामोशी भी प्यार का एक हिस्सा है.. आख़िर प्यार में आ ही जाती है.. थोड़ी दूर चलने के बाद चंदू अपने घर की तरफ मुड़ा.. फुलो मुस्कुराई.. आज फुलो इतनी खुश थी जितनी पहले कभी नही हुई.. फुलो मन ही मन खुश होते है हुए.. घर पे पहुँची.. जैसे ही अंदर कदम रखा उसने देखा..
सामने उसके बाबू जी खड़े थे..
क्या कहा बाबूजी ने फुलो को? फुलो ने क्या जवाब दिया? क्या किसी ने फुलो और चंदू की खबर बाबूजी को दे दी? और अगर दी तो क्या होगा फुलो का?... जानेंगे अगली कड़ी में हम लोग
फ़िर से विज्ञापन.... निरमा वाली... गजब... कहानी थोडी पुरानी लगती है, बापू से डर जायेगी अपनी फूलो... ऐसा मत करना कहानी लेखक.....
ReplyDelete@राजेश जी
ReplyDeleteनिश्चिंत रहे राजेश जी.. जैसा आप सोच रहे है.. वैसा नही होगा.. ये कहानी पूर्णत: नवीन है.. एक्सपेक्टेड तो कुछ भी नही है इसमे.. आपको निराश नही करूँगा.. टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
ओह्ह्हो यह तो अच्छा नही हुआ ..बाबूजी कहाँ से आ गए :)उनको एक दो एड लेने भेजो अपने ब्लागवा के लिए ...धोनी की या युवराज की .बहुत व्यस्त हैं यह दोनों ..
ReplyDeletebapuji ko aana kyun tha bich mein,jo ho dekha jayega phulo ki chandu se mulakat to go gayi,pyar ki baat to ho gayi:):)
ReplyDeleteकुश जी सलाम आप की कलम को...क्या सीन लिख मारा है...एक कमी है...कहानी में गीत नहीं हैं...वो भी डाल दीजिये फ़िर देखिये चंदू और फुलों की ये प्रेम कथा बॉक्स ऑफिस पर क्या कमाल दिखाती है...या फ़िर चेनल की टी आर पी फटाफट बढाती है.... विज्ञापनों की बाड़ कैसे ले आती है...और धनवर्षा करवाती है (आप पर). बहुत रोचक चल रही है ये कथा...
ReplyDeleteनीरज
एक आध गाना भी हो जाता तो मजा आ जाता .....कोई आईटम सोंग भी चलेगा....क्या कहते है.?रामू भैया से कहे क्या ..रामू को नही जानते अरे वही रामू की आग वाले.......बस एक ही विनती है भाई ये लाइट बार बार जाती है इसके वास्ते भी कुछ इंतजाम कर लो......
ReplyDeleteये ऐपिसोड भी अच्छा लिखा अपने कुश जी ..
ReplyDeleteचलिये आगे क्या हुआ ये भी लिखिये, इँतज़ार है -
स स्नेह्,
-लावण्या
भैया पुरनिया पटल पर पुरानी कहानी है या इसमें आधुनिक जूम आयेगा?!
ReplyDeleteagli kadi kab?
ReplyDeletekushbhai...gulzar sahab ki tarah ekad romani gana ho jata to aur maza aata...aur haan...vigyapan mein naam badal gaya hai ya badal diya hain?
ReplyDeleteab kuchh BLAST ho to maza aa jaye...
uff oh kush ji...jaise hi ham daanto tale ungli rakh padh rahe hote hai..aaj ki kahani khatm ho jaati hai...
ReplyDeleteachha nahi padhne waalon ko yu tadpana..
fulo..aur chandu...bada pyaara..
:)
अमां यार, सिचुयेशन पहले से भेज देते तो एक गाना भी लिख देते, वो जब कम पानी वाली नदी से चंदु अपनी फुलो को उठाकर ला रहा था, उस समय बैकग्राउन्ड में चलाते.
ReplyDeleteआज फिर नरमा का एड-उड़न तश्तरी का नहीं..
बहुत सही माहौल खींचे हो. यह बाबू जी कहाँ से आ गये यार कबाब में हड्डी टाईप??
चंदू जी उर्फ़ कुश जी ..एक झकास आइडिया है ..आप एक प्रतियोगिता भी डाल दो इस कहानी में ...गाने बताओ .और इनाम पाओ इनाम में आपके ब्लॉग का विज्ञापन दिया जाएगा एक अच्छी रकम के चेक के साथ :) कहो तो पहला गाना हम दे आपकी इस प्रेम कहानी को :)
ReplyDeleteye bapu bhi na..bilkul galat mauke par aa jate hain. ab intezaar rahega ki ye jaanne ka ki ye kaise react karenge....vaise vigyapan gazab ke hain.
ReplyDeletelikhte rahiye
sahi hai--80 ke dashak mein le gaye--nirma wale vigypan se--
ReplyDeletekahani bahut rochak chal rahi hai--
[ek idea hai kyun na phone 3535 par sms karwa ke public pucch lo ki KYA fulwa babuji se dar jayegi--'haan' ke liye type karen-YES---aur 'na' ke liye type karen-No--?]
[dobara puchh rahi hun---जानकी भौजी ने सबके लिए गुड का शरबत बनाया है.. '' is sharbat ko kab serve kiya jayega??sab apne gilas liye baithey hain.]
भाई विज्ञापन के रेट नहीं बताये आपने... अब तो कहानी रोचक होते जा रही है... बाबूजी अमरीश पूरी टाइप हैं या अलोक नाथ टाइप?
ReplyDeleteझाडू के सींक से छेद...वाह जी वाह प्यार में दिमाग कितना क्रिएटिव हो जाता है!गाने भी चाहिए भाई इस फिल्म में....मस्त फिल्म है.
ReplyDeleteक्यों हमको लगने लगा है जैसे के सेक्यूरिटी रीज़न्स से नाम बदल दिए गये हैं!! लगता है जैसे कहानी आपकी आप बीती है...:)
ReplyDeleteकोई बात नही .. हम समझते हैं! दोस्त ऐसे ही नही हैं!!!
हा हा
कहानी एकदम मस्त चल रही है... वैसे मुझे बाबूजी के रूप में अमरीश पूरी हमेशा पसंद आए!!! बहुत बड़ी पंखा रही हूँ उनकी मैं.
hmmm...agree with manisha......sach kaho kahi ye tumhari kahani to nahi??.....agar aisa hai to aur bhi maza aayega hame... :P ...all the best to fulo......sorry fulkanvar...babuji se dariyo mat....
ReplyDeleteबाबूजी को लाकर आपने कहानी मे ट्विस्ट ला दिया है। :)
ReplyDeleteअगली कड़ी का इंतजार कर रहे है।
agalaa bhaag jaldi laao.. :)
ReplyDeleteकुश, आए थे तीसरी कड़ी पढने...पता चला दूसरी छूट गई है. ये पढ़कर जा रहे हैं, तीसरी पढने...बहुत शानदार लेखन है...बहुत बढ़िया...फूलो और चंदू जिंदाबाद.
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