(नोट: यह लेख मैने लाइट मूड में रहते हुए लिखा है.. कृपया लाइट मूड में ही पढ़े.. यदि किसी को इसे पढ़कर कोई आपत्ति हो तो अग्रिम क्षमा चाहता हू.. एक और बात इस लेख का रचना जी की पोस्ट से कोई संबंध नही.. उनका अभियान एक अलग दिशा में है.. )
आज सुबह से मैं देख रहा था की श्रीमती जी बड़ी उत्सुक थी.. बार बार आकर टेबल पर पड़ी आफ़त यानी की हमारा टेलिफोन देखने आ जाती.. हम समझ नही पाए की ये माज़रा क्या है.. और हमने हिम्मत की बनियान पहनकर पूछ ही लिया अरी भागवान बार बार क्यो देख रही हो फोन को.. क्या माज़रा है.. वो बोली क्यू दिन भर फोन पर गपियाने का ठेका तुमने ही ले रखा है.. रॉंग नंबर पर भी घंटो बतियाते हो जैसे वो तुम्हारे फूफा का फोन हो और हमने जो एक बार फोन की तरफ नज़र क्या उठाई हम तुम्हारी 'आँख की किरकिरी' बन गये.. भूलो मत हम आज की नारी है.. और तुमसे दो हाथ भारी है.. हम कुछ बोले नही नेताओ को देख देख कर ये तो सीख ही गये थे की बम विस्फोट हो जाए तो कह दो की अभी कुछ कहा नही जा सकता सो हमने भी कुछ कहा नही.. इतने में वो तौलिया उठाकर नहाने चल दी..
और हम अख़बार में रोज़ की फिक्स खबर राखी सावंत के बारे में पढ़ रहे थे बेचारी परेशान थी.. उसका बयान था "कहा है भगवान श्री कृष्ण? जो इस अबला की रक्षा करे.." एक बार तो हमे लगा की हम ही निकल ले स्कूटर लेके पर फिर सोचा की पेट्रोल की कीमत इतनी बढ़ गयी की कही निकलने से पहले ही दस बार सोचना पड़े.. हम सोच ही रहे थे की हमारी घंटी बज गयी.. अब आप कहेंगे की आपकी कहा जनाब फोन की बजी यू कहिए.. अरे साहब हमारे यहा जब भी फोन आता है.. घंटी हमारी ही बजती है.. हमने फोन उठाया और कहा हैलो.. सामने से आवाज़ आई मैं नारी सशक्तिकरण डिपार्टमेंट से बोल रही हू.. आप श्रीमती जी से बात करवाईए.. हमने कहा जी वो तो नहा रही है... आप मेसेज दे दीजिए मैं उन्हे दे दूँगा.. वो बोली तुम मर्द लोग अपने आप को समझते क्या हो तुम क्यो दोगे मेसेज क्या तुमने हमे इतना कमज़ोर समझा है की हम उन्हे दोबारा फोन नही कर सकते तुम हमेशा ये क्यो सोचते हो की हम तुमपे निर्भर है.. हमने कहा बहनजी आप मुझे ग़लत समझ रही है.. मैं तो सिर्फ़ ये कह रहा..... उसने मेरी बात बीच में ही काट दी और बोली.. फिर कर दी ना पुरुषो वाली बात तुम्हे तो हमेशा यही लगता है की हम ग़लत सोचते है .. सोच तो तुम्हारी ही सही है.. हमने कुछ बोल दिया तो तुम्हारी मर्दानगी पे आँच आ जाती है.. हम बोले अरे आप तो बुरा मान गयी चलिए हम माफी माँगते है आप माफ़ कर दीजिए.. तुमने अब क्या हमे भिखारी समझ लिया जो माफ़ करो कह रहे हो... अरे मैडम आप तो खमख़्वाह बात का बतंगड़ बना रही है.. वो बोली क्यो ना बनाए जब तुम पुरुष बात का बतंगड़ बना सकते हो तो हम क्यो नही आख़िर भगवान ने दोनो को बराबर का दर्ज़ा दिया है..
सारी पीड़ा सारे दुख भोगे हम और तुम बैठकर मलाई खाओ.. सुबह बेचारी नारी उठकर तुम्हारे माँ बाप के लिए चाय बनाए फिर तुम्हारे बच्चो को नहलाए स्कूल भेजे.. सबका खाना बनाए दिन भर घर की सॉफ सॉफ सफाई करे शाम होते ही तुम मर्द लोग ऑफीस से घर आते ही फिर चाय माँगते हो.. चाय पिलाए तुमको रात को खाना बनाए दिन भर तुम्हारे लिए पीसती रहे और तुम रात में क्या देते है गाली! लेकिन अब ऐसा नही चलेगा नारी को सशक्त होना पड़ेगा..
हालाँकि हम नारी की बड़ी इज़्ज़त करते है क्योंकि हमारी माँ भी एक नारी है हमारी पत्नी भी और हमारी बेटी भी जो अभी शिमले में पढ़ती है... पर ये नारी तो हमे अजीब लगी.. हमने कहा की आपके पति आपके साथ ऐसा करते है?? वो बोली मेरे साथ किसी मर्द की ये करने की हिम्मत नही मैने तो इसीलिए शादी ही नही की.. हमने कहा तो फिर आपको कैसे पता की पति ऐसा करते है.. वो बोली हमारे संगठन की औरतो ने बताया आपकी श्रीमती जी ने भी.. हम सोफे से उछल पड़े.. थोड़ी देर पहले की हमे हमारी बीवी की आँख याद आ गयी.. हमने कहा ये सब आपको हमारी बीवी ने कहा वो बोली अजी आपकी क्या सबकी बीविया यही कहती है... अब तो हम परेशान हो गये,..
वो बोली तुमने तो हमारा जीना हराम कर रखा है तुम हम नारी को बराबर का दर्ज़ा क्यो नही देते? हम बोले मैडम कैसे दे सकते है बराबर का दर्ज़ा? आप तो हमसे भी ज़्यादा पूज्यनीय है.. नारी का तो श्रेष्ठ स्थान है सबसे उपर हम तो नीचे वाले फ्लोर पे है. .आप अपना दर्ज़ा गिराना क्यो चाहती है.. वो बोली क्या मतलब? हमने कहा जी आपने पढ़ा नही 'नारी सर्वत्र पूज्यते' नारी की तो पूजा होती है है.. हम करते भी है नवरात्रि में माँ दुर्गा की नौ रूपो में पूजा होती है.. उसने कहा तुम तो माँ दुर्गा को बीच में ले आए मैं तो इंसानो की बात कर रही हू.. हमने कहा मैडम आपने कब की इंसानो की बात आप तो नारी की कर रही है इंसान की करती तो पुरुष भी होते.. वो बोली बात को घूमाओ मत हम सब समझते है तुम हमेशा हमको अपने से हीन बताते हो.. कमज़ोर बताते हो.. तुम्हे लगता है तुम ही दुनिया में श्रेष्ठ हो..
हमने उनसे कहा मैडम श्रेष्ठता की बात छोड़िए हमे सब पता है कौन श्रेष्ठ है.. माँ को ईश्वर से भी उपर का दर्ज़ा प्राप्त है.. वो पुरुष नही होते नारी ही होती है.. एक नारी जो अपने अंग के कोमल टुकड़े को अपने गर्भ में नौ महीने तक रखती है.. ये संसार का सबसे मुश्किल काम है पर उस नारी के चेहरे पर शिकन तक नही आती.. वो सारे दर्द झेल कर भी एक मासूम को दुनिया में लाती है और फ़र्क़ नही करती की उसका बेटा मर्द है या स्त्री.. कभी उसकी ममता में झाँका है आपने.. शादी करके अपने आँगन को छोड़कर किसी और के आँगन में जाना और उसी में अपना संसार बसाना.. क्या कम हिम्मत का काम है.. हमारी पत्नी जो सुबह चाय बनती है उसमे उसका प्रेम छलकता है.. वो जिन बच्चो को उठाकर स्कूल भेजती है वो मेरे नही हमारे है मेरे माँ बाप को अपना समझकर उनकी सेवा करती है.. शाम को जब मैं घर आता हू तो अपनी साड़ी के पल्लू से मेरा पसीना पौंछ ती है.. मेरे कहने से पहले चाय ले आती है. जानती है की मैं थका हुआ हु..वो मुझे परेशान देख नही सकती.. रात को सबको खाना खिलाकर खुद खाती है.. जब सोने जाते है तो दिन भर की बाते सुनाती है मुझको और पलको पर थकान लिए सो जाती है.. हर एक दिन गर्व से जीने वाली मेरी पत्नी के चेहरे पर हर शाम एक विजयी मुस्कान होती है.. इतनी हिम्मत क्या है किसी और मैं? किसी मर्द में ? अजी छोड़िए मर्द वर्द सब नारी से नीचे ही है.. हम तो कम से कम है अपनी पत्नी से नीचे..हमने एक साँस में कह डाला!
वो बोली आप की पत्नी सुखी है इसका मतलब संसार की सारी नारिया सुखी नही है.. हमने कहा बस मैडम जी अब आई ना आपकी बात समझ में जिस तरह हमारी पत्नी के सुखी होने से सारी नारिया सुखी नही.. ठीक उसी तरह आपके दुखी होने से भी हर नारी दुखी नही,.. नारी को सशक्त बनाने से अच्छा है इंसान सशक्तिकरण अभियान चलाइए हर कमज़ोर इंसान की मदद करेंगे चाहे पुरुष हो या नारी.. यकीन मानिए हम भी आपके साथ आएँगे.. मिलजुलकर काम करेंगे तभी देश का विकास होगा.. सब अपनी अपनी सोचेंगे तो देश का नाश ही होगा.. जब दोनो का दर्ज़ा बराबर है तो दोनो के बारे में सोचिए..
हमारी पत्नी पीछे खड़ी सब सुन रही थी उसके चेहरे पर अश्रुमिश्रित मुस्कान मिली.. उसने कहा मैं तो खुद को बहुत सशक्त महसूस कर रही हू.. की मुझे आप जैसा पति मिला.. वो तो वहा सबको कुछ ना कुछ बोलना था तो अपनी विमला जी ने कहा तू भी कुछ बोल दे क्या पता अगली लीडर तू बन जाए.. तो मैने भी जोश मैं बोल दिया बाकी घर पे तो आपको पता ही है की कौन सशक्त है और कौन कमज़ोर.. अब ये तो हमे भी पता था.. शायद फोन पे उन्होने हमारी श्रीमती जी की बात सुनली थी.. वो फोन रख चुकी थी.. हमारी बीवी ने कहा की चलो जी क्यो ना हम अनाथ बच्चो के लिए कुछ करे किसी एक की पढ़ाई का खर्चा ही उठा ले कम से कम.. सच मानिए हमे बहुत गर्व हुआ की हमारी घर की नारी सशक्त हो रही है..
भाई,
ReplyDeleteमैं इस क्षमा से बड़ा परेशान हूं। जब खुलकर लिखो तब क्षमा मत मांगो।
मैंने आपका लेख लाइट मूड में पढ़ा. लाईट मूड और लाईट हो गया. कुछ भारी बातें भी कह डाली हैं आपने इस लेख में. दोनों बराबर हैं, यही यथार्थ है. अब कोई न माने तो वह जाने.
ReplyDeletelekh shuru to hota hai light mood mein (aapke wrong nos!!!) par fir kaafi bhaari ho jaata hai..
ReplyDeletepar light se heavy philospophy ka transition bahut sehejta se hua hai...daad dete hai iski..
achha laga lekh...
likhte rahe!
कुश जी,
ReplyDeleteनोट पढ़कर आफिस की सारी लाईट जला ली..उसके बाद पढा, लाईट में पढ़कर अच्छा लगा..
nari sashaktikaran ki zaroorat to bahut hai..par shayad morcha, sabha aur naare-baazi iska tareeka nahi. Siksha aur arthik swatantrata ke liye bahut sa kaam karna hoga.
ReplyDeleteIn fact, samaj ke sabhi kamzor vargo ke liye yahi mool mantra hai...siksha aur arthik aatma-nirbharta.
Is lekh me aapne kai gahan vishayon par baat ki hai. Iske liye badhai
:) बहुत खूब......कहना पड़ेगा कि कुश की कलम कमाल की है.
ReplyDeleteमीठी छुरी से "spare rib" को काट डाला :)
राधा कान्हा पर लिखी भाव भीनी रचना ने भी बहुत प्रभावित किया...
इसी भाव से लिखते रहिये... शुभकामनायें
अच्छी कही- मगर बहुत कठिन है डगर पनघट की-ज़रा सम्हल कर :)
ReplyDeletewah gurudev dhamki hame deten hain aur chhma dusro se mangte hain
ReplyDelete:-) yah bhi khub rahi..iska jwab diya jayega aapko...
:):);):),aare aare khush kanha ji,aapki radhika bahut hi nasibowali hai:):),light mood mein padha,aur bahut hanse bhi,aap jante hai jo dusron ko khil khilakar hasate hai,bhagwan unhe khushiyon ki saugatein dete hai,thoda serious hokar kahe,bahut hi khubsurat ultimate lekh tha.bahut badhai:):):);)
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती के साथ सिक्के का दूसरा पहलू दिखाने के लिए धन्यवाद ! वैसे बता दूँ आपके निर्देश को परे रखकर उस अभियान से जोड़ कर ही पढ़ा आपका लेख . अंशुमान जी से सहमति रखते हुए प्रश्थान करता हूँ.
ReplyDeleteमैं डर गया हूँ सोच रहा हूँ कि घर का फोन कटवा दूँ .....वैसे अंशु की बात से सहमत हूँ......ओर पारुल जी की भी
ReplyDeleteवाह कुश जी,आपको कोटिशः धन्यवाद. धन्यवाद इसलिए कि कल से यह विषय दिमाग मे घुस उत्पात मचाये हुए था.बिल्कुच नींद चैन छीन ली थी इसने.पर आपने वह बहुत कुछ लिख डाला जो मेरे दिमाग मे घुमड़ रहा था.बहुत ही सही,सटीक लिखा है ..
ReplyDeleteऔर हाँ,डरने का नही. जो सही है वह सही है.सत्य उदबोधन मे संकोच नही होना चाहिए.सबकी अपनी अपनी सोच है.जिसे जैसे लेना होगा लेगा.
"नारी और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं " ये सन्दर्भ केवल पति पत्नी के लिये ही होता पर नारी सशक्तिकरण जब हम बात करते हैं तो हम नारी का रिश्ता नारी से , पुरूष से और समाज से तीनो को लेते हैं । पुरूष के रूप मे पति भी हैं , बेटा भी , पिता भी , दोस्त भी , प्रेमी भी , गुरु भी । और आज कल कि नारी अविवाहित भी हैं और अकेली अपने काम करने मे सक्षम भी सो " नारी सशक्तिकरण " उस नज़रिये से देखे जहाँ नारी लीक से हट कर काम करना चाहती हैं और करती भी हैं ।
ReplyDeleteजहाँ तक पति पत्नी के सम्बन्ध हैं मेरा मानना भी यही हैं कि इस जगह नारी और पुरूष एक दूसरे को अगर पूर्णता नहीं देते तो वह शादी ही अधूरी हैं और ऐसे संबंधो को निभाना या ना निभाना एक ही बात हैं ।
पढ़कर अच्छा लगा शुभकामनायें.
ReplyDeleteनारी सशक्तिकरण के बहाने
ReplyDeletewaah ji badi achchi baat kahi aapne..par maaafi kisse maang rahe hain ? kya koi aisa bhi hai jise ye post padhkar bura lagega..?
ReplyDeleteआज पहला कमेन्ट रचना जी की पोस्ट पर किया था.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़ कर ल्काग रहा है उसी कमेन्ट के आधे हिस्से से काम चल जायगा सो पेश है:
पति ने पत्नी से कहा :-
"ढोर,गंवार,शुद्र,पशु,नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी"
इसका अर्थ समझती हो ये समझाऊँ.
पति ने जवाब दिया
"इसका अर्थ तो बोल्कुल ही साफ है
इसमे एक जगह मैं हूँ चार जगह आप है"
bahut hi acha, maza aa gaya padhkar
ReplyDeleteदूध के जले हैं। अत: फूंक फूंक कर पढ़ा!
ReplyDeleteआप की बात सही है और पारुल जी की भी.... तुलसी या संसार में भांति भांति के लोग....
ReplyDeleteबहुत खूब ! :)
ReplyDeleteNo comments.
ReplyDeleteone step at a time...
ReplyDeleteboond boond se bharta sagar -
good article, noble thoughts.
:-)
ReplyDeleteतो आजकल सशक्तिकरण वाली से चल रही है ?
ReplyDeleteतक़ल्लुफ़ क्या जी, मुआफ़ी क्यों माँगते हो..
और किससे मुआफ़ी माँग रहे हो, नर से या नारी से ?
जरा यह भी बताते जाओ
बहुत कुछ कहना है सोच कर कहे्गे. आज समय नही् है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
kushbhai....ek bahot hi behtrain lekh...tez vyang ke saath saath gehrai bhara sandesh bhi...
ReplyDeleteaur khud ko "........." kehne wale apne aap ko ek baar tatole padhne ke baad to bhi kaafi hain...likhai safal ho jaye...
kuchh na kahen to behtar hai--light moood mein hi rahen....:)
ReplyDeletebada delicate mamla hai...himmat hai aap ki aise vishay par kuchh bhi likh paana..
sach to ye hai ki dono ho barabar hain--dono ki apni ahmeeyat hai...
आपने अपनी बात अच्छी तरह रखी है..पर इस मसले के बहुत सारे पहलू और भी हैं जिन पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
ReplyDeleteअब तो आपको अच्छा लग रहा होगा, क्यूँ??? :)
ReplyDeleteहमें भी अच्छा लग रहा है.
bahut ache....
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