Monday, December 17, 2007

पिछ्ले वीकेंड पर डाक बंगले में

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पिछ्ले वीकेंड पर डाक बंगले में
बढ़िया कॅंप फ़ायर हुई थी...
देर तक घड़ी के नुंबरो में
अटकी रही सुई थी..

मिसटर शर्मा मिसेज़ वर्मा
कपूर साहब .. मिसेज़ चॉप्रा
सब के सब कपल आए हुए थे
जाम पे जाम मेहफ़ील में छ्ाए हुए थे

टेबल पर वोड्का की बॉटल के पास
गोल्डन कलर का रखा था बॉक्स
सारे मिसटर ने अपनी कार की चाबिया
डाल दी सुनहरे कलर के बॉक्स में

अगले जाम के साथ शुरू होने वाला था
अदला बदली का खेल,.. हवा में जाम टकराए
मिस्टर. शर्मा चिल्लाए.. कम ऑन फ्रेंड्स...
और चाबी वाले बॉक्स में डाल दिए सबने हाथ

चाबी होंगी जिसकी जिसके हाथ में
बीवी जाएगी उसकी उसके साथ में
अदला बदली का खेल था ये
नये ज़माने का कैसा 'मैल' था ये

मिस्टर. शर्मा के हाथ में आई
मिस्टर .वर्मा जी की कार..
पर बीवी ने वर्मा जी की
साफ़ कर दिया इनकार...

वर्मा जी को थी जल्दी..
स्टेटस का भी रखना था ख़्याल
बीवी को नज़रो से कर दिया चुप
पर आँखो में फिर भी रहा सवाल

रात गहरी निकल चुकी थी..
सुबह ने दी फिर से आवाज़
सभी लौट कर चल दिए घर को
निपटने अपनी काम काज

आज फिर से वीकेंड है..
फिर से आज महफ़िल सज़ेगी
जाम से जाम फिर टकराएंगे
गाड़ियो की चाबिया फिर बदलेंगी

मिसेज़ वर्मा कब से बैठी है तैयार
मगर वर्मा जी कुछ ख़ुश नही..
शायद उनकी सारी हसरत आज पिघल गयी
बदलना चाहते थे बीवी पर शायद बीवी बदल गयी..

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छन्न से तू चली आई मेरे सपनो में

छन्न से तू चली आई मेरे सपनो में
हसी फिर लबो पर खिलखिलाई मेरे सपनो में...

संगिनी बन तू संग.. रहेगी जीवन भर
उम्मीद की इक कली खिल आई मेरे सपनो में...

जो रज़ा थी छुपी तेरे दिल के किसी कोने में
वो निगाओ से छ्लचलाई मेरे सपनो में...

इक तपीश लबो से, तूने रखी थी मेरे लबो पर
जली हो जैसे दिया सलाई मेरे सपनो में...

भीड़ में खो ना जाए बच्चा , मा के हाथो से
थाम ली कुछ ऐसे तूने कलाई मेरे सपनो में ...

एक मुक़कम्मल ज़िंदगी जो पा नही सकता था मैं
कुछ इस तरह से तूने दिलाई मेरे सपनो में..

Saturday, December 1, 2007

"...कुछ क्षनिकाए...."


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दूर अंतरिक्ष से
गिरा था एक उल्का पींड
सीधा टकराया मेरी
कल्पनाओ से..

तुम्हारे टुकड़े टुकड़े
कैसे संभाल कर
जोड़े थे मैने...

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फिर रात को संभाला था तुमने..
कैसे आसमा से
ज़मी पर आ गयी थी
साथी की तलाश में..

तुम्हे देख लिया था शायद
आज अमवास जो है..

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उम्मीद बूझने वाली है
मगर जाने कॉनसा
तेल डाल रखा है..
लौ बूझने का नाम नही लेती
हर थोड़ी देर बाद
और भड़क जाती है..
शायद जवान बेटे का इंतेज़ार करती
मा की आँखें होगी....

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मशाले शायद रास्ता
भटक गयी..
या फिर तू कही मुस्कुराई है


आज फिर अंधेरी गलियो
से रोशनी नज़र आई है...

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तेरी हर नज़र शरार्त है.....

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ज़ुल्फ़ो में लगे गुलाब को
देख कर शरमाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है....

माथे की बिंदिया चूम कर
निगाओ में छुप जाती...
तेरी हर नज़र शरार्त है.......

निगाओ से होते हुए..
लबो पर ज़रा ठहरती,..
तेरी हर नज़र शरार्त है......

लबो की सहराओ से निकल
गर्दन पर मचल जाती
तेरी हर नज़र शरार्त है....

गर्दन से उतरती होले
सीने में दफ़न हो जाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है.....

सीने में सिर्हन जगाती
कमर पर आकर ठहरती..
तेरी हर नज़र शरार्त है....

कमर से उतरती नीचे
एक अगन जगा जाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है...

पैरो की तलहटियो में
मगन सी होती जाती
तेरी हर नज़र शरार्त है...

क़दम प्यार से चूमती
जन्नत की सैर कराती...
तेरी हर नज़र शरार्त है

भरी महफ़िल में ना छ्ूकर भी
एक छुहन जगा जाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है.....

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