Monday, December 6, 2010

पिछले सन्डे ही तो पहला पिम्पल फूटा है..












पतले चक्कों वाली सायकिल
पर पैंडल मारते मारते
शहर के दुसरे कोने
में आ गए..
अब बस्ते रख दिए है
पेड़ से सटाकर..
और मोजो को
जूतों में खिसका दिया है..
कोहनी का तकिया बनाकर.
लेट गए है मिट्टी में
और देखते हुए
आसमान में
मुस्कुराकर कहते है.. कि साला
पी टी आई जो पकड़
लेता तो धुनाई बहुत होती..

कुछ देर सुस्ताकर
खोलते है टिफिन
मेथी के परांठो
की खुशबू लुटा देते
है आसमानों में..
अब एक टांग पे टांग
टिकाये गिनते है
अंटी के सिक्को को..
और खरीद के पतंग
चाँद तारो वाली
बस्ते से चरखी..
निकाल लेते है..

लम्बी तान पतंग को देके..
बस ऊपर ही तकते है..
कट जायेगी जब
दस पांच पतंगे..
झाड के पैंट को अपनी..
बस्ते में चरखी धर लेंगे..
सायकिल पे रख के बस्ता अपना
फिर से घर को चल लेंगे..

जो कहते है
ऐसा हाल रहा तो
आगे जाकर क्या करोगे?
उनकी हमको फ़िक्र नहीं
आफ्टर आल अभी
पिछले सन्डे ही तो पहला पिम्पल फूटा है..

Thursday, September 16, 2010

सोशल मिडिया मैरिज..


सीन 1 

- सुनो जी रश्मि अब बड़ी हो गयी है.. कल रात भर लैपटॉप पर बैठे बैठे ना जाने किससे चैटिंग कर रही थी.. मुझे लगता है अब इसकी शादी करवा देनी चाहिए..  
- ठीक है मैं आज ही शादी.कॉम पर उसकी प्रोफाईल बना देता हूँ..  
- अरे उसकी क्या जरुरत है..? वो अपनी फेसबुक वाली मिसेज शर्मा है ना.. उनके कोई ऑरकुट फ्रेंड का लड़का है.. फ्लिकर पर फोटो अल्बम देखा उसका.. देखने में तो बड़ा सुन्दर है.. ट्विटर पर एक हज़ार से ज्यादा फोलोवर है उसके.. और तो और खुद के डोमेन पर अपना ब्लॉग भी बना रखा है.. आप कहे तो बात करू उनसे.
- हूँ..! ठीक है पर पहले रश्मि से भी पूछ लेना.. 

सीन 2

- रश्मि बेटा क्या कर रही हो.. ?
- कुछ नहीं मोम बस अपने स्टेटस मेसेज्स के रिप्लाई दे रही थी.. 
- बेटा हमने तेरे लिए एक लड़का पसंद किया है..  बहुत अच्छा लड़का है.. उनकी मम्मी से मेरी चैट भी हुई थी.. मैंने तुम्हारा ऑरकुट प्रोफाईल का लिंक भी दे दिया उनको.. 
 - ओ मोम इतनी जल्दी क्या है. .? और वैसे भी बिना किसी को जाने पहचाने कैसे शादी कर लु..?
 - अरे तो मैंने कब मना किया है..  तुझे उसकी प्रोफाईल का लिंक मेल कर देती हूँ.. देख ले कैसा दिखता है.. कैसे दोस्त है उसके.. अच्छी कंपनी में काम करता है.. तुझे लिंक्ड इन का भी लिंक दे दूंगी.. तु एक बार देख तो सही.. 
 - ठीक है मोम.. 
सीन 3 

rash003 : hi
jatin.kumar1984 : hi 
do i know u?
rash003 : meri mom ne aapka
id diya tha 
jatin.kumar1984 : oh ha mummy ne 
bataya tha.. ms. sharma ki follower 
hai na aapki mom..
rash003 : ya 
wo chahte hai hamari shadi ho jaye
jatin.kumar1984 : not bad
kya karti ho tum?
ye mera linked in ka id hai..
it company mein hu 
jatin.kumar1984 : nice job! main bhi it 
company mein hu ye mera profile hai
rash003 : ha main dekh chuki hu..
profile is good.. but main chahti hu ki
hum face 2 face bhi mile ek baar
u know itna bada decision hai  
jatin.kumar1984 : i understand.. in fact
main bhi chahta tha face 2 face baat karna
rash003 : good to u have web cam?
jatin.kumar1984 : ya 1 sec.
rash003 : u have nice hair cut
jatin.kumar1984 : thanks! tumhara chashma 
to kool hai.. 

सीन 4

- ये देखो.. रश्मि ने ब्लशिंग वाला स्माईली भेजा है लगता है शरमा गयी अपनी शादी की बात सुनके.. 
- वो सब तो ठीक है लेकिन उसे लड़का पसंद है या नहीं ?
- हाँ है ना आप खुद ही देख लो फेसबुक पे खुद लाईक किया है उसने 
- हूँ.. ठीक है तो फिर गूगल में कोई अच्छा सा मुहूर्त सर्च करके शादी करवा देते है दोनों की.. 


- परसों शाम का मुहूर्त निकला है.. 
- अरे लेकिन ये तो बहुत जल्दी होगा.. नेट की स्पीड भी स्लो है सबको इनविटेशन कैसे भेजेंगे ?
- अरे इसमें क्या है कार्ड अपलोड करके सबको लिंक शेयर कर देंगे. इसमें कितना तो टाईम लगता है.. सब हो जायेगा  
- ठीक है फिर..शादी के मन्त्र की एम् पी थ्री डाउनलोड करलो नेट से.. फोटो अल्बम के लिए पिकासा ठीक रहेगा और वीडियो के लिए यू ट्यूब पर अकाउंट बना लेता हु.. 
- आज मेरे लिए बहुत ख़ुशी का दिन है मैं अभी अपना स्टेटस अपडेट करती हु..  


सीन 5
जतिन और रश्मि ने अपना स्टेटस चेंज किया  

jatin is married now
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rashmi is married now
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सीन 6

- क्या कर रही हो रश्मि डार्लिंग?
- अरे स्पीड बहुत स्लो है जतिन सबने बधाईया ई ग्रीटिंग्स से भेजी है ना फ्लैश में है देर लग रही है खुलने में.. 
- कम ऑन रश्मि तुम्हारे पास मेरे लिए तो वक़्त ही नहीं है.. मैं कबसे तुम्हे पिंग कर रहा हूँ और तुम हो कि.. पता नहीं कहा बिजी हो..
- सोरी हनी डीसी हो गया था.. प्लीज डोंट माईंड..  

सीन 7

जतिन और रश्मि को हैप्पी वेडिंग एल्बम में टैग किया गया 
3 व्यक्तियों को ये पसंद है 




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Wednesday, September 8, 2010

सड़क पर औंधे मुंह पड़ा शहर..

सुना भी तो जा सकता है..


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शहर का गिरेबान पकड़ कर जैसे किसी ने उसे नीचे गिरा दिया हो.. सड़क पर औंधे मुंह पड़ा हुआ है.. सड़क पर ही पड़ी खाली शराब की बोतले.. एक दुसरे से टकरा टकराकर सन्नाटे को तोड़ने की कोशिशे कर रही है.. उनमे बची थोडी बहुत शराब नालियों में बहती जा रही है.. सिगरेट के कुछ बुझे पड़े ठूंठ रात की चिंगारियों से अभी तक खुद को अलग नहीं कर पाए है.. कुत्ते.. कुत्तो की तरह फूटपाथ पे लेटे हुए है.. और इन सब पे नज़र रखता लैम्पोस्ट बिना हिले अपनी जगह पर खड़ा खड़ा चुपचाप सबकुछ देखता जा रहा है..

तेज़ी से भागती गाडियों के चक्के सड़क की छाती पर निशान छोड़ गए है.. हवा निकल कर फुस्स हो चुके गुब्बारे सड़क के कोनो में बिखरे हुए है.. दो चार पतंगे बिजली के तारो में उलझी हुई है.. दीवारों पर लिखा दिल्ली चलो अब कुछ साफ़ नहीं दिखता.. सड़क पर जमा कचरे में चूहे मुंह मार रहे है..

दूर कही से रेडियो के गाने की आवाज़ आयी है.. ऊंची हील वाली एक सैंडल सड़क पर पड़ी है.. थोडी ही दूरी पर दूसरी सैंडल, आगे चलकर लेडिज पर्स और उसके आगे घुप्प अँधेरा.. लोग अभी तक सो रहे है.. सूरज थोडी देर में निकलेगा निकल ही आएगा.. अखबार से भरा हुआ ट्रक सड़क से गुज़रा है.. फूटपाथ पे लेटे आदमी की टांग से इंच भर के फासले से.. चमेली के पत्तो की महक सहमी सहमी सी सड़क तक आ रही है..

मंदिर में घंटीया बज रही है.. दरगाह से अजान की आवाज़ भी आ रही है.. कुत्ते भोंकते हुए भाग रहे है.. अखबार वाला सायकिल की घंटी बजाता हुआ निकला है... नीम के पेड़ पे बैठी चिड़ियाओ की आवाज़े आ रही है.. कुलमिलाकर अब कह सकते है कि सुबह हो रही है.. ये दिन गुजरेगा.. बीतेगा.. बीत ही जाएगा... फिर शाम होगी, रात होगी और सुबह होगी.. सब कुछ युही चलेगा... चलता ही है.. चलता ही जाएगा..

Monday, August 30, 2010

ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पलो में प्यार मिठास घोल देता है..


'अभी इतनी बूढी भी नहीं हुई हूँ कि तु कुछ भी कहे और मान लु मैं.. इस डिब्बे से कैसे हो जायेगी बात तेरे नानाजी से..?' बोलते हुए नानीजी अपनी दवाइयों वाली थैली में से दवाई निकालने लगी..
अरे आप तो बस देखती जाओ.. शाम को तैयार रहना मैं नानाजी के पास जाकर फोन करूँगा.. आप उठा लेना..

सत्तर की उम्र में भी एकदम चुस्त नानाजी एक दिन चलते चलते सड़क पर गिर पड़े.. आसपास वाले लोगो ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया.. बस तबसे वही है.. नानीजी ने तो तीन साल पहले ही बिस्तर से ऐसी दोस्ती गांठी कि फिर बिस्तर छोड़ने का सवाल ही नहीं उठा.. हर रोज़ नानाजी को याद करती रहती बस.. जैसे ही कोई अस्पताल जाकर आता उस से बस नानाजी के बारे में ही पूछती.. ठीक तो है ? कब वापस आयेंगे ?

जब भी घर के दरवाजे पर कोई आवाज़ होती है.. उन्हें लगता नानाजी आ गए.. जब मैं नानीजी के पास पंहुचा तो वो बोली 'क्यों रे तेरे नानाजी मेरे बारे में पूछते नहीं है.. ?'
'पूछते है ना' मैंने कहा..
'अच्छा क्या बोलते है ?' नानी जी आँखों में चमक लिए हुए बोली..

'बोलते है तेरी नानी तो मुझे भूल ही गयी है.. सब मिलने आते है वो ही नहीं आती.. '
'झूट..!' नानी बोली 'ऐसा तो हो ही नहीं सकता...  वो तो अब पांव उठते नहीं है वरना तो चली ही जाती.. पता नहीं कैसे होंगे वो? '
'अच्छे है नानी.. आप क्यों चिंता करती हो.. '
'लल्ला मेरा एक काम करेगा..' नानी बड़े प्यार से बोली
'हाँ कहो ना नानी.. '
'तु एक चिट्ठी लिख देगा उनके लिए.. जैसा मैं कहती हूँ बस वैसे.. '
'अरे वाह लव लैटर.. क्या बात है नानी.. '
'चुपकर बेसरम..! बस किसी को बताना नहीं.. '
ठीक है नानी बताओ क्या लिखना है..

छुटकी के पापा,
आप मेरे लिए उस दिन इमली लाने गए थे ना फिर अभी तक वापस क्यों नहीं आये..? बच्चो से पूछती हूँ तो कहते है पापा ठीक है.. पर मुझे लगता है कुछ ठीक नहीं.. जब आप पास नहीं होते हो तो कुछ ठीक क्यों नहीं लगता..? रोज़ शाम को सोचती हूँ आप आज आ जाओगे पर आप नहीं आते हों..  मेरा यहाँ अकेले मन नहीं लगता.. बस बैठी बैठी आपकी आराम कुर्सी को देखती रहती हूँ.. कभी खिड़की से हवा आ जाये तो इसे हिलती देखती रहती हूँ आप अखबार पढ़ते हुए ऐसे ही तो बैठते है इस पर..  और तो और कौनसी दवाई कब लेनी है कुछ पता नहीं चलता.. रोज़ खिड़की पर गाय आकर खडी हो जाती है वो अलग.. मुझसे तो उठकर रोटी दी नहीं जाती.. कल छोटा गया था उसको रोटी देने पर खायी ही नहीं.. आप आओगे तभी खाएगी.. और हाँ वो टेबल पर पड़ा कैलेण्डर भी नहीं बदला है किसी ने.. जिस तारीख को आप गए थे अभी भी वैसी की वैसी है.. बाहर ठण्ड भी पड़ने लग गयी अब तो.. आप जर्सी नहीं ले गए थे मैं लल्ला के साथ भिजवा दूंगी.. और कान खुले मत रखना आपको सर्दी जल्दी लग जाती है.. मेरी चिंता मत करना आप मैं यहाँ बिलकुल ठीक हूँ.. बस आप जल्दी से आ जाओ..

मैं पैन चलाते चलाते रुक कर नानी को देखने लगा.. आँखे कब भीग आयी पता ही नहीं चला.. नानी बोले जा रही थी बस.. मैं उन्हें देख रहा था..

क्या हुआ लल्ला ? लिखा कि नहीं? नानी ने मेरी ओर देखा..
'लिख दिया नानी..' मैंने नानी की हिदायतों के साथ उस चिट्ठी को जेब में डाला.. और नानी की दी हुई जर्सी ली..  

नानाजी.. कुछ बोलते नहीं थे.. पर हाँ सुन जरुर सकते थे.. मैंने मौका देखकर नानी जी वाली बात कही.. उन्होंने मेरी तरफ देखा.. कुछ बोलने की कोशिश की पर बोल नहीं पाए.. मैंने चिट्ठी निकालकर पढना शुरू किया.. नानाजी के हाथो में हलचल देखी.. ज्योंही चिट्ठी ख़त्म हुई नानाजी की आँख से एक आंसू गिर कर उनके गालो पर आ गया.. नानाजी ने हाथ उठाकर मुझे बुलाया.. मेरे पास जाते ही उन्होंने अपना हाथ मेरे सर पर रख दिया.. उस शाम मैं और नानाजी बहुत रोये..

मैं जानता था नानीजी को आज सारी रात नींद नहीं आयी होगी.. सुबह जब पहुंचा तो नानीजी बिस्तर पर बैठी अपनी दवाइयों से उलझ रही थी.. मेरे जाते ही उन्होंने पुछा क्यों लल्ला पढ़ा उन्होंने क्या कहा ? कब आ रहे है ?

जब नानीजी को बताया तो वो बहुत खुश हुई.. अब तो ये रोज़ का सिलसिला बन गया..
 मैं हर रोज़ नानीजी का लैटर लेकर अस्पताल जाता.. और नानाजी को पढ़कर सुनाता.. धीरे धीरे नानाजी बोलने भी लग गए थे..

एक दिन मैं अपने दोस्त से मोबाईल लेकर आया..

अभी इतनी बूढी भी नहीं हुई हूँ कि तु कुछ भी कहे और मान लु मैं.. इस डिब्बे से कैसे हो जायेगी बात तेरे नानाजी से.. बोलते हुए नानीजी अपनी दवाइयों वाले थैली में से दवाई निकालने लगी..
अरे आप तो बस देखती जाओ.. शाम को तैयार रहना मैं नानाजी के पास जाकर फोन करूँगा.. आप उठा लेना..

उस दिन मैं नानीजी के पास लैंडलाईन फोन रखकर गया और नानाजी  के पास जाकर मोबाईल से बात करवाई.. 'हल्लो हल्लो' नानाजी से जोर से बोल रहे थे.. शायद नानीजी को अब भी यकीन नहीं था.. कि वो नानाजी से बात कर रही थी..

'मुझे कहाँ कुछ हुआ है..' नानाजी बोल रहे थे..
'वो तो तु दिन भर परेशान करती रहती है,, इसलिए कुछ दिनों के लिए यहाँ चला आया.. थोड़े दिन तो आराम से रहूँगा यहाँ.. और तुझे कहाँ मेरी फ़िक्र है तुझे तो तेरी इमली की चिंता है..  इमली भी पड़ी है मेरे पास.. लल्ला के हाथ नहीं भेजूंगा.. खुद लेकर आऊंगा नहीं तो तू नाराज हो जाएगी.. और तु मेरी चिंता मत करना.. मैं यहाँ अच्छा हूँ.. बस दिन भर तेरी आवाज़ नहीं आती.. तु वो गाना गाती थी ना.. "अभी ना जाओ छोड़कर..." वो बड़ा याद आता है..  मैं तो सीख ही नहीं पाया.. इस बार मुझे याद करा देना पूरा.. अकेले में गा लिया करूँगा.. अरे लल्ला सुनता है तो क्या हुआ...? और हाँ तेरी दवाई की पर्ची अलमारी में रखी है लल्ला को बोलके सब टाईम पर ले लेना.. नहीं तो फिर खांसती रहेगी रात भर और मुझे भी नहीं सोने देगी.. मैंने जर्सी पहन ली है.. अभी भी वैसी की वैसी है.. जैसी तुने पहली बार सिलाई की थी.. तेरी सारी चिट्ठिया मिली मुझे. क्या जरुरत थी इन सबकी? अभी भी बच्ची की बच्ची है तू तो.. हाँ हाँ अपना ख्याल रखूँगा..मेरी चिंता मत करना तू बस अपना ख्याल रखना.. मैं जल्दी आऊंगा घर फिर से तेरी किचकिच सुनने .. ' अब रखता हूँ.. ख्याल रखना..

अगली बहुत देर तक मैं नानाजी को देख रहा था.. वो कौनसी डोर होंगी जिसने नाना नानी को उम्र के इस दौर में भी बाँध रखा है.. ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पलो में प्यार कैसी मिठास घोल देता है कि हम सब दर्द भूल जाते है.. नानी जी अपने सब दर्द भूलकर नानाजी को चिट्ठी लिखती है.. नानाजी साँसों से लड़ते हुए उनसे इस तरह बात करते है जैसे पहली बार बात कर रहे हो..  ज़िन्दगी के उस मोड़ पर जब दुनिया पीछे छूट जाती है.. तब प्यार ही दो रिश्तो में गर्माहट बरकरार रखता है..

दूसरी शाम जब मैं अस्पताल पहुंचा तो सब लोगो को नानाजी के आसपास खड़ा देखा.. नानाजी वादा तोड़कर जा चुके थे..

'लल्ला!...' नानी की आवाज़ ने चौंकाया..
नानाजी को गुज़रे हुए तीन हफ्ते बीत चुके थे.. नानीजी बिना कुछ बोले बस बिस्तर पर लेटी रहती थी.. आज जब मैं उनकी दवाईयो पर निशान लगा रहा था.. नानीजी बोली..
लल्ला... एक बात कहे.. ! तुम उस दिन वो लाये थे ना जिससे तुमने नानाजी से बात करायी थी..
'मोबाईल '
हाँ वही.. वो तो बड़ी अच्छी चीज थी.. उस से एक बार तेरे नानाजी से बात करा दे ना.. आज यहाँ मन नहीं लग रहा हमारा..

Thursday, August 19, 2010

खो जाने में जो मज़ा है वो पा जाने में कहाँ..?


आज थोडी देर के लिए सूरज को पीछे धकेल देते है.. गर्मी से हाल बुरा कर दिया ससुरे ने... चाँद को भी थोडा नीचे सरका देते है. साला धरती पे लाईट कम मारता है.. इन चिनार के पेडो की हाईट कम करनी पड़ेगी वरना लोग अमरुद समझ कर आसमान से तारे तोड़ लेंगे.. और बादल! बादलो का क्या करे..? पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लगा देता हूँ.. इधर उधर घुमते रहते है दिन भर.. इसी बहाने लोगो को ठिकाने लगाते रहेंगे.. वो पिकासो वाली पेंटिंग लाना यार.. मोनालिसा वाली... एक काम करते है उसको आसमान पे एक साईड में लगा देते है.. धरती घूमेगी तो पूरी दुनिया देख लेगी.. पेंटिंग वाले ब्रश और कुछ वाटर कलर ले आओ.. सारे बच्चो को हाथ में देकर बादलो पे बिठा दो.. आसमान में रंग भरते रहेंगे.. एक काम करो ना यार कोई बढ़िया सा मोगरे वाला परफ्यूम लाकर स्प्रे मार दो.. पूरी दुनिया में..

दो बड़े वाले स्कूप भर के हिमालय की बर्फ उठा लों और शरबत डालकर बरफ के गोले बाँट दो सबको... दुनिया में बहने वाली सारी हवा को थोडी देर के लिए डीप फ्रीज़र में रख दो.. ताकि ठंडी ठंडी हवा सबके गालो को लगे... दो लोग जाओ और दुनिया के सारे नींबू तोड़ के समंदर में मिला दो.. इस बार बारिश में सबको नींबू पानी पिलायेंगे.. वो इन्द्रधनुष उधर कहाँ लटक रहा है.. उसको यहाँ सेंटर में रखो.. और लाल वाला रंग थोडा झुका के नीचे रखो ताकि लडकिया उसमे ऊँगली डुबाकर लिपस्टिक लगा ले..

ज़मीन का एक टुकड़ा काटकर पतंग बना दो उसकी.. आसमान में पेंच लड़ायेंगे सब.. और रेगिस्तान की मिट्टी के खिलौने बनाकर बाँट दो बच्चो में.. बादलो में जमा बूंदों में गुलाब जल मिला दो.. महकती हुई बारिशे मिट्टी की खुशबू को और हसीन बना देगी...

खो जाने में जो मज़ा है वो पा जाने में कहाँ..?

...............

मेरी बात सुनके हँसना मत..
कि मैं दौड़ना चाहता हूँ तितलियों के पीछे
और बनाना चाहता हूँ..
समंदर के करीब रेत के टीले
और पकड़ के खरगोश को
दोनों हाथो में... अपने गालो को
गुदगुदाना चाहता हूँ..
मैं भीगना चाहता हूँ बारिश में
और छातो को जमा पानी में
उल्टा बहाना चाहता हूँ..
मैं भागना चाहता हूँ.. नंगे पांव
और बात करना चाहता हूँ  हर अजनबी चेहरे से
या देखकर उन्हें बिना बात के मुस्कुराना चाहता हूँ..
मैं ठोंक के कील इसकी
पीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ..

Friday, August 6, 2010

कुत्ते का इंतकाम..

कुत्ता जो है वो टांग पे टांग टिकाये फूटपाथ पे लेटे लेटे सामने लगे खम्बे को घूर रहा है.. इस खम्बे ने ही उसकी धार से उसी को करंट दे दिया था.. और वो भी नुक्कड़ की मिसेज गुप्ता की हरमाईनी के सामने... जी जनाब आपने बिलकुल ठीक पढ़ा हरमाईनी.. अब ये जो मिसेज गुप्ता है ये पति के ऑफिस चले जाने के बाद अक्सर किताबो में घुस जाती है.. किताबे इन्हें अपने बच्चो सी लगती है खुद की कोई औलाद नहीं शायद इसलिए किताबो को गोद ले लिया इन्होने... खैर वजह चाहे जो भी हो हम उसमे अपना मुंह नहीं मारते.. और बात को आगे बढ़ाते है.. तो ये मिसेज गुप्ता जो है जिनकी बात मैं कर रहा हूँ.. इन्हें बच्चो की किताबे बहुत पसंद है.. और खासकर जे के रोलिंग की हैरी पोटर..   और उसी हैरी पोटर की किताब के एक किरदार हरमाईनी के नाम पर इन्होने अपनी प्यारी कुतिया का नामकरण किया है.. नहीं जनाब कुत्तो का नाम अंग्रेजी में रखके अपनी गुलामी का बदला नहीं लिया जा रहा है.. ये तो बस भावनात्मक दृष्टिकोण है.. अब रख लिया तो रख लिया जाने दीजिये.. खामख्वाह उत्तेजित होंकर क्यों अपना बी पी बढा रहे है..

अब पढ़िए चुपचाप...! तो हरमाईनी जो है.. अरे साहब वही हरमाईनी जिसके बारे में ऊपर बताया मैंने.. हाँ तो हरमाईनी जो है वो मिसेज गुप्ता के चार गोल चक्कर काटके फुदकती हुई सड़क किनारे जा लगी ही थी कि ठीक तभी अपनी कहानी का नायक उसी खम्बे पे टांग उठाये खड़ा हुआ जिस खम्बे की बात मैंने पहली ही पंक्ति में की है.. बस जनाब जैसे ही उसने धार लगायी की खम्बे ने करंट का झटका मारा और कुत्ता फटके से पीछे जा गिरा.. हरमाईनी बेशर्मी से खींसे निपोर कर मुस्कुराने लगी.. और कुत्ते की आँखों में खून उतर आया...पर स्थिति की गंभीरता और उष्णता को देखता हुआ बेचारा अपमान का घूँट गिलास में डालकर पी गया.. लेकिन उसी दिन से कुत्ता अपने अपमान का बदला उस नामाकूल खम्बे से लेना चाहता है पर मौका है कि मिलता ही नहीं..

और आज जब शहर के बाशिंदे लिहाफो में घुसे पड़े ऊंघ रहे है तब कुत्ता जो है वो टांग पे टांग टिकाये फूटपाथ पे लेटे लेटे सामने लगे खम्बे को घूर रहा है.. चाहता तो वो ये है कि मोहल्ले के सारे सड़क छाप कुत्तो को ले जाके धार लगाकर खम्बे को नाले में बहा दे.. पर जबसे उस कुत्ते की फजीती की खबर बाकी कुत्तो को मिली है सब उस खम्बे से कन्नी काटने लगे है.. कुत्ता मन ही मन बाकी कुत्तो को गाली देता है.. "इंसान साले"

कुत्ता अपनी बेबसी के चलते रात होते होते जैसे ही जोर से रोता है पड़ोस की खिड़की से एक चप्पल आके उसके मुंह पे दर्ज हो जाती है.. "हरामी कही के.. " कुत्ता शायद ऐसा ही कुछ मन में सोचता है.. अब नहीं सोचता तो नहीं सोचता होगा लोड क्यों ले रहे है.. जाने दीजिये.. तो कुत्ता खिसियाकर चुपचाप आंसु बहाने लग जाता है.. और एक बात मैं आपको बता दूँ.. कि जब भी कोई कुत्ता उदास होता है तो वो गाना गाता है.. अब गाना सुनने के लिए उतावले मत होइए..  कुत्ते का गाना तो मैं आपको सुनाने से रहा..

तो जनाब कुत्ता गाना वाना गाकर सो तो गया है पर उसके कुत्ते जैसे मुंह पर जो मुस्कराहट चम चम कर रही है उसकी वजह सपने में उसके और खम्बे के बीच हो रहे घमासान युद्ध का सीन है.. कुत्ता धनुष बाण लेकर हरमाईनी के घर के ठीक सामने खड़ा है.. खम्बा कुछ ही दूरी पर लगभग घबराया हुआ है.. हर्माइनी की जो उंगलिया है वो उसी के दांतों के तले दबी हुई है.. कुत्ता अपने धनुष से एक बाण छोड़ता है.. और हवा में एक से छ: बाण हो जाते है. और सभी बाणों के आगे लाल पीले सितारे चमक जाते है.. बाण तो खम्बा भी छोड़ता है पर कुत्ते के तीरों से टकराकर बाण टूटकर गिर जाते है.. कुत्ता मुस्कुराता है और हरमाईनी की तरफ विजयी भाव से देखता है.. हरमाईनी जो है वो बेवकुफो की तरह पता नहीं क्यू लाल हुए जा रही है..

कुत्ता तीर पे तीर चलाते चलाते भूल गया है कि सुबह हो चुकी है.. और बाकी के कुत्ते उसकी मुद्राओ को देखकर खी खी कर रहे है.. कल रात जिस खिड़की से चप्पल आयी थी उसके मकान मालिक सूरज को अर्क देने के लिए खिड़की खोले है और उलटे लेटे हुए हवा में पाँव किये कुत्ते की मुद्रा देखकर दूसरी चप्पल कुत्ते के पेट पर धढ़ाम से अर्पित करते है.. कुत्ता भक से उठता है और चप्पल फेंकने वाले को ऐसे शब्द कहता है कि जो मैं यहाँ लिख नहीं रहा हूँ..

थोडी दूरी पर जाते ही सामने खड़े कुत्तो को हँसते हुए देखकर.. कुत्ता अपने सपने को याद कर के खिसिया जाता है.. उसे ऐसा लगता है जैसे इस संसार में उसका अब कोई नहीं रहा.. वो धरती पर दो दो कौड़ी के खम्बो से झटके खाने के लिए ही पैदा हुआ है.. या फिर मुए मरदूदो की चप्पल झेलने के लिए.. पर इस कुत्ते जैसी ज़िन्दगी से तो मरना ही बेहतर है.. यही सोच के कुत्ता सामने से आ रही ट्रक के चक्के के कदमो तले शहीद होना चाहता है.. कि तभी हरमाईनी भागती हुई आकर उसकी पूँछ पर पांव रख देती है..

मुझे मर जाने दो मैं जीना नहीं चाहता.. कुत्ता फ़िल्मी डायलोग मारता है.. हरमाईनी उसके मुंह पर अपने हाथ रखके कहती है मरे तुम्हारे दुश्मन.. कुत्ता उसकी बात सुनकर खम्बे को देखता है.. पर खम्बा अपनी बत्ती को दिन में भी जलाकर जैसे कुत्ते के अरमानो की बत्ती बना देता है.. कुत्ता हरमाईनी की तरफ देखता है.. हरमाईनी कुत्ते की तरफ देखती है और फिर दोनों एक दुसरे की तरफ देखते है.. अरे आप उधर कहाँ देख रहे हो आप तो इधर देखो.. हाँ तो दोनों एक दुसरे को देख रहे है.. अचानक हरमाईनी कुत्ते के कान में कुछ कहती है.. और कुत्ता गुस्से से भोंकने लग जाता है.. हरमाईनी को वही छोडके भाग जाता है.. हरमाईनी उसे आँखों से ओझल हुए देखती जाती है... कुता दोबारा हरमाईनी के पास नहीं आता है..

और कई सालो बाद...

हरमाईनी कई बार दूसरी कोलोनी के किसी कुत्ते के साथ देखी गयी थी कालांतर में उसके आठ दस बच्चे भी हुए.. और मिसेज गुप्ता के भी पर वो दूसरी कोलोनी में नहीं गयी.. इसी कोलोनी में रहने वाले उनके पति से उन्हें एक प्यारी सी लड़की मिली... जी हाँ लड़की का नाम भी हरमाईनी रखा है.. मिसेज गुप्ता दोनों में कोई भेदभाव नहीं करती.. चप्पल वाले पडोसी की चप्पल एक बार एक कुत्ता मुंह में दबाकर नाले में फेंक आया था तभी से उन्होंने चप्पल फेंकनी बंद कर दी है.. पर इस बात से बेखबर की खम्बे में कभी किसी एक दिन बारिश की वजह से करंट था और कुत्ते के खम्बे के पास धार लगाने की कोशिश में उसे करंट लग गया था... वो कुत्ता अब भी कभी कभी आकर खम्बे के सामने भौंकके चला जाता है.. खम्बे में अब हाई मास्क लाईट लग चुकी है.. वो और ज्यादा रौशनी दे रहा है...कुत्ते के भौंकने का शायद ही खम्बे पर कोई असर हो...मोहल्ले में पुराना जो था वो सब कुछ ख़त्म हो चुका है बस बाकी है तो 'कुत्ते का इंतकाम'.......... जो ना जाने कब पूरा होगा..???

Tuesday, July 13, 2010

अ गर्ल एट क्वींस रोड़...

"अबे तुझे क्या पता... बाईक के पीछे लड़की बिठायी क्या तुने कभी,...? बार बार ब्रेक लगाने में जो मज़ा आता है वो तू क्या समझेगा प्यारे.. " आईने के सामने कंघी करते हुए वो बोला..

"तू तो साले कमीना का कमीना ही रहेगा.." उसका दोस्त हँसते हुए बोला.. "पर ये लडकिया रोज़ रोज़ कैसे मिल जाती है तुझे.. ?"

"अरे प्यारे ढूँढने से तो खुदा भी मिल जाता है.. वो क्वींस रोड पे फैक्ट्री है ना कपड़ो की.. वहां काम करने वाली लडकिया अक्सर रात को लिफ्ट ले ही लेती है.. बस अपना काम बन जाता है.. चल मैं निकलता हु ऑफिस के लिए आज की स्टोरी रात को आकर बताऊंगा.. "

"बाय!"
"बाय!"
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कहानी का मुख्य पात्र आज ऑफिस में देर तक रुका था.. घडी साढे दस बजा चुकी थी और वो सोच रहा था कि कही आज सारी लडकिया निकल नहीं जाए.. इतने में बॉस ने आकर उससे जाने के लिए कहा.. वो फ़ौरन हेलमेट उठाया और तेज़ कदमो से सीढिया उतर कर पार्किंग की ओर चला गया.. उसे जल्दी थी.. वैसे तो उसके ऑफिस से क्वींस रोड की दूरी करीब पांच दस मिनट थी पर वो और जल्दी जाना चाहता था.. फैक्ट्री के सामने वाले बस स्टैंड को खाली देखकर वो मायूस हो चुका था.. उसने रुक कर चारो तरफ नज़र दौडाई पर कोई लड़की नज़र नहीं आयी.. वो किक मारकर आगे बढ़ने लगा.. इतने में उसकी नज़र रोड लाईट के सहारे खडी लड़की पर पड़ी.. उसकी आँखों में एक चमक आ गयी.. वो बिना समय गवाए उस लड़की तक पहुंचा..

सफ़ेद सलवार कमीज और लाल दुपट्टा पहने खडी वो लड़की देखने में बहुत सुन्दर थी.. आँखों में गहरा काजल और माथे पर बड़ी लाल बिंदी.. कानो में बड़ी बड़ी बालिया और दोनों हाथो में एक दर्जन से भी ज्यादा चुडिया.. ऐसी लड़की उसने यहाँ पहले कभी नहीं देखी थी.. वो उसे देखता ही रह गया.. "हेल्लो" वो लड़की बोली.. सकपकाकर उसने बोला "जी..? इतनी रात गए यहाँ क्या कर रही है आप..?"

"मुझे लिंक रोड जाना है.. बहुत देर से वेट कर रही हूँ.. ना कोई बस मिल रही है ना ऑटो.. फिर रात भी काफी हो रही है.. "

"नो प्रोब्लम बैठो मैं छोड़ देता हूँ.. "
"लेकिन रात काफी हो गयी है और... "
"अरे डरिये मत मैं कुछ नहीं करूँगा.. वैसे भी मुझे लिंक रोड ही जाना है वहां से अपनी सिस्टर को लेकर घर जाऊँगा मैं.. "
"नहीं वो बात नहीं है.. पर "
"अरे मैडम आप यकीन करिए.. कुछ नहीं होगा वैसे भी यहाँ अकेले खड़े रहने में खतरा ज्यादा है.. और इस इलाके में सिर्फ फेक्ट्रिया है ज्यादा ट्रैफिक रहता नहीं है पता नहीं आपको ऑटो मिले ना मिले.. "

लड़की ने थोडा सोचकर हाँ कर दी.. वो मन ही मन खुश हो गया.. और जानबूझकर वो थोडा पीछे बैठ गया सीट पर जगह काफी कम बची थी.. लड़की सहमी हुई सी बैठ गयी.. अब वो मन ही मन खुश था.. गाडी बिलकुल धीरे धीरे चला रहा था.. साथ साथ लडकियों के रात को अकेले ना घूमने पर लेक्चर भी सुना रहा था.. वो लड़की चुपचाप बैठी सुन रही थी.. इस रस्ते को वो अच्छी तरह जानता था.. उसे पता था आगे स्पीड ब्रेकर आने वाला है.. उसने बाईक की रफ़्तार थोडी बढा दी... और स्पीड ब्रेकर के बिलकुल नजदीक जाकर जोर से ब्रेक लगाया.. अचानक झटका लगा.. लड़की का हाथ उसके कंधे पर आ गया.. वो रोमांचित हो उठा..

"आप ठीक तो है ना..! वो दरअसल स्पीड ब्रेकर नज़र नहीं आया था.. " वो बोला
"कोई बात नहीं.." लड़की धीरे से बोली..

उसने फिर से बाईक की रफ़्तार बढा ली थी.. और अपनी बाईक का रियर मिरर इस तरह से सेट करने लगा कि जिसमे पीछे बैठी लड़की का चेहरा साफ़ नज़र आये.. उसने देखा लड़की के चेहरे पर मुस्कान थी.. वो खुश हो गया. एक गढ्ढे के पास फिर से उसने ब्रेक लगाया.. और मिरर में देखा लड़की मुस्कुरा रही थी.. अब तो उसके मन की मुराद पुरी हो गयी थी.. वो पुरे रास्ते ब्रेक लगाता और मिरर में लड़की को मुस्कुराते हुए देखता.. मिरर में मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर वो खुश होता जा रहा था.. इतने में लड़की बोली..

"बस यही रोंक दीजिये.. "
"लेकिन लिंक रोड तो वो सामने की तरफ है.. "
"नहीं बस मुझे यही तक आना था वो पिछली गली में मेरा घर है मैं चली जाउंगी "
"तो मैं आपको घर तक छोड़ देता हूँ.. "
"नहीं नहीं उसकी कोई जरुरत नहीं.. आपने मेरी इतनी हेल्प की इसके लिए थैंक्स "
"अरे इसमें थैंक्स की क्या बात है... "
"अच्छा तो मैं चलती हु.. " और वो पलटकर जाने लगी..

"ज़रा सुनिए.. " वो बोला....... "आप फिर कब मिलेगी वहा..  "
"मिल जाउंगी.. चिंता मत करिए इतनी आसानी से आपका पीछा नहीं छोडूंगी.." वो हँसते हुए बोली..
"हाहाहा.. ज़रूर..!" वो भी हंस दिया और बाईक को स्टार्ट करके वापस जाने लगा..

रास्ते भर वो बार बार उस लड़की को याद कर रहा था.. कैसे ब्रेक लगते ही वो लड़की उससे चिपक सी जाती थी.. और जब उसने कंधे पर हाथ रखा था एक सरसराहट फ़ैल गयी थी जिस्म में.. इतनी खूबसूरत लड़की उसे पहले कभी नहीं मिली थी.. यही सोचते सोचते उसकी नज़र रियर मिरर पर पड़ी.. उसने देखा वही लड़की उसमे मुस्कुरा रही थी.. उसने अचानक ब्रेक लगाये.. पीछे देखा तो कोई नहीं था.. उसने मिरर में देखा तो वो लड़की नहीं थी.. वो मुस्कुराया.. ज़रूर कोई वहम होगा..

उसने गाडी स्टार्ट की थोडा आगे ही बढा था कि उसे फिर से आईने में वो नज़र आयी.. ठीक वैसे ही मुस्कुराते हुए.. उसने घबराकर गाडी रोकी और गौर से देखा तो वो लड़की नहीं थी.. उसने अपनी पीछे की सीट पर हाथ फिराकर देखा कुछ भी नहीं था.. सुनसान सड़क पर वो अकेला खड़ा था.. अब वो घबरा रहा था.. उसने बाईक स्टार्ट की और चलने लगा.. थोडी दूरी पर जाके उसने जैसे ही मिरर में देखा.. वो लड़की मुस्कुरा रही थी.. 

अब तो वो बुरी तरह से डर गया था.. वो समझ नहीं पाया ये क्या हो रहा है.. उसने बाईक को वापस उलटी तरफ घुमाया.. और तेज़ी से उसी तरफ चल पड़ा.. जहाँ से वो आया था.. पुरे रास्ते भर उसे मिरर में वो लड़की मुस्कुराते हुए नज़र आ रही थी.. उसकी आँखों से लगातार आंसु बह रहे थे.. वो घबरा चुका था... थोडी ही देर में वो फिर से क्वींस रोड पर आ चुका था.. उसकी साँसे बढ़ी हुई थी.. उसने वहा आकर जैसे ही गाडी रोकी उसका कलेजा काँप उठा.. उसका शरीर सुन्न हो गया..पूरा बदन पसीने में भीग उठा.. उसकी आँखों से खून बहने लगा.. और वो भक्क से जमीन पर गिर पड़ा... जिस लड़की को वो लिंक रोड पर छोड़ आया था वो अभी सड़क के दूसरी तरफ उसी रोड लाईट के सहारे खडी थी जहाँ से उसने लिफ्ट दी थी...

Monday, June 7, 2010

बादल ऑन ड्यूटी हो.. और चाय की तलब..!

बादल ऑन ड्यूटी हो.. और चाय की तलब..!  ऊपरवाले क्या खालिस ज़िंदगी दी है तूने....!  इस से बढ़िया कॉम्बिनेशन तो हो ही नही सकता..  झमाझम बारिश में नहाना किसी एक्स्ट्रा केरिकुलर एक्टिविटी की तरह हर ऑफीस मे होना चाहिए.. वरना सीट पे बैठे बैठे ठंडे मौसम में जो गर्म आहें निकलती है की  सी भी तड़प कर चार गाली दे मारता है..

वैसे इधर मौसम दो चार दिनों से अच्छा है.. ठंडी हवा चल रही है.. देखते है इंदर बाबू कब तक मेहरबान रहते है. प्लास्टिक की थैलिया जेब में रख कर घूम लो बॉ... मोबाइल और पर्स गीले नही हो जाए.. एंड डोंट माइंड थैलिया प्लीज़..! प्लास्टिक कैरी बैग्स भी बोल सकता था..  पर उस से मेरी भारतीयता को ठेस पहुचती और मैं तो ठहरा पक्का देसी.. वैसे बारिश की बात करे तो किसी ने ठीक ही कहा है.. हर बारिश की अपनी अलग कहानी है..


ड्रीम : ऑफिस की खिड़की से बाहर हवा में छलांग लगाके भीगना.. और कंप्यूटर को नाव की तरह पानी में बहा देना..
फैक्ट : ऑफिस की खिड़की से बाहर गिरती हुई बूंदों को देखना.. और फिर दिल पर चट्टानें रखकर कंप्यूटर की स्क्रीन में नज़रे गड़ा लेना..
 












ये गिरी एक और बूँद खिड़की पे..
रात
नौ से बारह राजनीति देखने का प्रोग्राम है ..अभी के लिए टाटा रहेगा..

Wednesday, April 7, 2010

लव स्टोरी... विद आउट लव!

लव के बिना भी कोई लव स्टोरी होती है..?  अजी होती है.. अधिकतर स्टोरियों में से लव लापता ही होता है.. मगर वो ऐसी कोई कहानी नहीं थी इसमें लव था पूरा पूरा..  वन हंड्रेड परसेंट.. इंग्लिश में कहो तो सौ प्रतिशत..

लेकिन थी वही घिसीपिटी लव स्टोरी.. जिसमे ना हिरोइन का बाप
गुंडा था ना उसकी माँ बीमार थी.. ना भाई आवारा था औरना ही हीरो बेरोज़गार..  दोनो तो मिले भी नही थे कभी...  फिर ऐसा क्या था जिसके लिए राईटर मजबूर हो गया इसे लव स्टोरी कहने  के लिएकही उसे किसी ने मजबूर तो नही किया ? और मजबूर किया भी हो तो हमे क्याहम चलते है कहानी की तरफ.. दोनो में प्यार  तो था नहीं और ना ही दोनो मिले थे कभी.. मग लव ? लव को कौन रोक सका है..? वो तो साला हवाओ में बहता है.. आसमानो में उडता है.. किसी लाल बत्ती पे रुकता थोड़े ही है.. कम्बख़्त हो ही जाता है..  तो हो ही गया..

इधर लव हुआ उधर पूरी बोतल खलास.. नहीं नहीं खांसी की दवाई थी बोतल में.. हीरो की पड़ोसन को खांसी जो थी.. बेटे तो विदेश चले गए थे.. अकेली पड़ी रहती थी.. सुबह शाम दवाई लेती थी बेचारी.. क्या कहा ? हीरो की पड़ोसन से हमें क्या मतलब? तो छोडिये.. जाने दिजिये.. गोली मारिये पड़ोसन को.. मास्टर की बात करते है.. मास्टर बड़े ही मास्टर आदमी थे.. कपडे सिलते थे.. फीता हाथ में लेकर लोगो को नापते थे.. नाप रहे थे एक दिन हिरोइन को... फीते से तो नाप लिया ही था आँखों से भी नाप लिए... हिरोइन जानती थी ये लव नहीं है कुछ और है.. हिरोइन को युही हिरोइन नहीं कहते.. नज़र है उसके पास.. नजरो को परखने की..

देखा..! नजरो के फेर में कहानी को नज़र लग गयी... तो हम कह रहे थे कि लव था नहीं.. अजी होता कैसे..? बचपन से हीरो बाप की लातो और मोहल्ले की लडकियों से जो कुत्ते की तरह पीटा था.. कि लव नाम का लफाडू ही भूल बैठा...फिर लवस्टोरी के हीरो को लव ही नहीं पता तो गुरु लवस्टोरी कैसी? बस यही सोच के पंडित जी को फैक्स भेजा.. तुरंत आइये..!

पंडित जी कौनसे अमरीका के राष्ट्रपति थे.. तुरंत आ गए.. पर ये क्या? फैक्स किसको भेजा था और कौन आ गया.. ये तो दुसरे पंडित जी थे..खैर अब जो आये सो अच्छा.. पंडित तो पंडित होता है.. ज्यादा से ज्यादा चोटी लम्बी या छोटी होती होगी... होती होगी से ये मतलब नहीं कि राईटर को पता नहीं कि है या नहीं.. बस वो बचना चाहता है.. उन लोगो से जो बगल में राम और बगल में ही छुरी दबा के बैठे है.. पर राईटर ही अगर डर जाएगा तो लव स्टोरी आगे कैसे बढ़ेगी..? क्या कहा वैसे भी कौनसी आगे बढ़ रही है..?

माफ़ कीजियेगा जनाब...! भावो में भटक गए थे इधर उधर.. अब भटकते है कुछ लोग भावो में भी भटकते है.. क्या कहा लापतागंज के
डायलोग मार रहे है.. ? अब मारते है जी.. कुछ लोग डायलोग भी मारते है.. क्या कहा.. आप नहीं मारते?... अब कुछ लोग नहीं भी मारते है..   फिर भटक गए,,, इधर उधर की लल्लो चप्पो में असली बात गच्चा खा गयी.. असली बात थी क्या वैसे? अरे नहीं गुरु गुस्सा मत होइए.. हमें पता है हम तो ये चेक कर रहे थे कि आप तो नहीं भटके.. शुक्र है आप यही हो.. लव स्टोरी के लिए पाठक का होना बहुत ज़रूरी है.. और लव का भी..

तो लव का हम कुछ यु कह रहे थे.. कि हीरो पहली बार जब हिरोइन की गली से गुजरा तो हिरोइन अपनी नानी के यहाँ
ऋषिकेश गयी हुई थी..वरना तो दोनों मिल ही जाते.. खैर जिस दिन हिरोइन की ट्रेन वापस स्टेशन  पर आने वाली थी उसी दिन हीरो की भी ट्रेन थी शिमला की... पर दोनों की ट्रेन में साढे आठ घंटे का फर्क था.. सो नहीं मिले..

अब नहीं मिले तो नहीं मिले.. हम क्यों अपना खून जलाये.. क्या कहा.. जलाएंगे ? तो ठीक है जलाइए. आप पाठक है कुछ भी जला सकते है.. आपकी बात तो माननी ही पड़ेगी..  तो बात कुछ ऐसी है..कि उस शाम लव स्टोरी की हिरोईन बहुत कन्फ्यूज थी.. बैठे बैठे सोच रही थी कि लव स्टोरी में वो क्यों झक मार रही है.. तभी राईटर ने उसका एक प्रेमी पैदा कर दिया.. अरे नहीं नहीं महाशय.. अभी के अभी थोड़े ही पैदा किया है. वो तो लव स्टोरी में अभी आया है.... क्या कहा.. जबरदस्ती घुसाया है..?  साहब अब आप हद पार कर रहे है.. पाठक की औकात में रहिये.. राईटर की कहानी है जो मर्जी आये करे.. आप क्यों कहानी के पजामे में हाथ घुसा रहे है..

क्या कहा.. इस से अच्छा है कहानी ख़त्म कर दे... ? लीजिये फिर.. तो अंत कुछ ऐसा हुआ कि.. हिरोईन को एक प्रेमी मिल गया.. दोनों ने शादी कर ली...हीरो अब चालीस पार कर चुका है..  अजी बिलकुल शादी शुदा है.. पिताजी के कहने पर शादी कर ली थी साढे तीन बच्चे भी है.. अजी एक अभी अन्दर ही है ना.. क्या कहा हीरो की बीवी प्रेग्नेंट है ? अजी नहीं अभी तो हीरो के अन्दर है.. वो भी आएगा.. थोडा सब्र रखिये.. एक तो आप उतावले बहुत जल्दी हो जाते है..

तो मैं कहा था..?
हाँ शादी... ! तो दोनों ने शादी कर ली.. पर हिरोईन का प्रेमी साला निकम्मा निकला..और हीरो की पत्नी? अजी हीरो की पत्नी हीरो के घर कम रहती है और अपने मायके ज्यादा.. और लव..? यही पूछ रहे है ना आप.. तो यार एक तो आप लोग सवाल बहुत करते हो.. राईटर बेचारा क्या क्या लिखे.. उसकी खुद की लाईफ तो लव स्टोरी विद आउट लव है.. परेशान होंकर उसने अज्ञातवास ले लिया.. और लव स्टोरी की वाट लग गयी.. बस खुश! 




आफ्टर अ लॉन्ग लॉन्ग टाईम-
राईटर जो है.. वो अभी तक लव ढूंढ रहा है.. आपको कही मिले तो बता देना प्लीज.. इट्स अ हम्बल रिक्वेस्ट!  

Monday, March 29, 2010

खट्टी मिश्री जैसी लाईफ...


हवा और तेज़ हो रही है.. पन्ने उड़ाने की चाल है.. मैंने पेपरवेट रख दिया है..
तुम्हारे ख्याल कीमती है मेरे लिए.. मैं इन्हें वेस्ट नहीं जाने दूंगा..
बड़ी मुश्किल से मिलती है हंसी तुम्हारी.. इस बार आँखे खुली रखूँगा...
मैंने अपने मोबाइल से कैच कर लिया है.. अब तुम्हे कही जाने नहीं दूंगा..
तुम्हे नाराज़ करना नहीं चाहता.. पर तुम नाराज़ हो जाती हो..
तुमसे बेइंतेहा मोहब्बत करता हूँ मैं.. बस टैटू नहीं गुदवा सकता..
अब इसे कभी खोने नहीं दूंगा.. बड़ी शिद्दत से मिला है यकीन तुम्हारा..
वो पल संभाला हुआ है अब भी.. जब तुमने'ह' पे 'आ' की मात्रा लगायी थी..
चलो मान लिया मैं आँखे बंद कर लेता हु...... जब तुम गर्दन पर किस करती हो..
लों बताओ.. जब हम लड़ेंगे ही नहीं तो फिर शादी क्यों की..?
शादी का मतलब सिर्फ सेक्स होता है...? नहीं ये सवाल नहीं है..
कहो तो तुम्हे उठा कर ले चलु... आयोडेक्स तो है ना घर पे..
तुम मजाक भी नहीं समझती.. इनडायरेक्टली बेवकूफ थोड़े ही कहा मैंने..
मैं कोने में बैठा हुआ हूँ..... मेरी जान! तुम शोपिंग जो कर रही हो..
लों अब तो बर्तन भी धो दिए मैंने.. अब तो देखने दो क्रिकेट मैच..
मैं सिर्फ सुनता रहता हूँ..... फॉर अ चेंज आज सिर्फ तुम बोलो.. 
जानता हूँ टॉवेल तुम्हारा है.. अब ऐसे क्या देख रही हो..
तुम्हारी फीलिंग्स, फीलिंग्स और मेरी फीलिंग्स कुछ भी नहीं... समझ गया, मेरी फीलिंग्स कुछ भी नहीं..
तुम हमेशा वो लाल वाली साड़ी ही पहना करो डार्लिंग... इस बार खर्चा कुछ ज्यादा हो गया है
क्या करती हो यार तुम.... अरे मैंने तो कहा था "वाह! क्या करती हो यार तुम.."
चाँद की साइज़ का रैपर नहीं मिला था वरना ले आता.... जन्मदिन मुबारक जानेमन
वो आवाज़ अभी भी कानो में रहती है.. करीब आकर आई लव यु कहा था ना तुमने..
अरे भीग गया तो क्या हुआ.... तुम्हे पकौड़े खाने थे ना..
मुझे इमरान हाश्मी पसंद नहीं है... चलो आज जन्नत देखने चले..
फिर से आँख में आंसु... तुम्हे गले ही तो लगाया है..

और लास्ट में...


  • आईन्दा मुझसे बात मत करना.......... अब चुप क्यों हो?



और जिसके बिना ये पोस्ट अधूरी है... फेसबुक पर हमारे मित्र पंकज बेंगाणी की एक वॉल पोस्ट ..
"Had a good healthy fight with wife last night.We are almost certain about divorce. Alas! we are a normal couple. :)  "

और हाँ!! आपके पास भी हो कोई ऐसी लाईन हो तो शेयर कर सकते है... सकते है.. हमने रोका थोड़े ही है... :)

Tuesday, March 16, 2010

मुझे सोल्यूशन चाहिए.. कॉमरेड

इन लौटती आवाजों को पीछे धकेल धकेल कर मेरे माथे पर पसीने का पहाड़ उग गया है.. पर ये फिसल फिसल के मेरे कानो में आकर बैठ जाती है.. मैंने अपने दोनों हाथ अपने कानो पर रख दिए है.... पर ये स्थायी समाधान नहीं है.. मुझे सोल्यूशन चाहिए.. कॉमरेड,

अपने दल वाले मुझे 'च' से शुरू होने वाले किसी शब्द से बुलाते है.. एक्जेक्टली वो वर्ड क्या है मैं नहीं जानता.. मैंने ठीक से सुना नहीं.. मेरे कानो पर मेरे हाथ है.. मैंने अपने हाथो को वेल्डिंग करके जोड़ लिया है कानो से.. मैं सुनना नहीं चाहता बम विस्फोटो में मरने वालो की चीखे.. मैं सुनना नहीं चाहता गर्भ से लौटती लडकियों का क्रंदन..मैं सुनना नहीं चाहता आरक्षण के लिए भीख मांगती आवाज़े.. मैं सुनना नहीं चाहता लुटती हुई अस्मतो की पुकारे.. कि मेरे कान सुन सुन कर सुन्न हो चुके है.. अब कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें कॉमरेड, ........... तुम चाहो तो तीन सौ बीस की स्पीड से आती ट्रेन को मेरे कानो में घुसा दो.. या फिर ठूंस दो सौ हाथियों की चिंघाड़ इनमे.. इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा.. मैंने अपने दोनों हाथो से ढंककर रखा हुआ है इन्हें..

क्या बताऊ तुम्हे कि मैं नोर्मल मोड़ में हैंग हो जाता था बार बार.. मेरी सारी फाइले डिलीट हो जाती थी... मेरा कंट्रोल बटन काम नहीं कर रहा था.. मैं चाहकर भी F5 नहीं दबा पा रहा था... और फिर पूरी तरह करप्ट हो जाने के बाद मैंने खुद को फोर्मेट कर दिया था.... अब मैं खुद को सेफ मोड़ में चला रहा हूँ.. मैं जानता हु तुम ये सब नहीं समझोगे.. तुम कम्पूटर के बारे में कुछ भी तो नहीं जानते.. अगर जानते होते तो समझ सकते थे मेरी बात.. जान जाते कि क्यों में हाय्बर्नेट हो गया था.. पर तुम तो अनपढ़ ठहरे.. तुम कैसे समझोगे.. ? तुम तो, जब ज्ञान बांटा जा रहा था.. तब छलनी लेकर खड़े थे कॉमरेड.. क्यों जब तुम्हे पढ़ लिख जाना चाहिए था.. तब तुम तपती दोपहरी में दो कौड़ी के कंचो के लिए दोस्तों से उलझते थे कॉमरेड..? अब देखो खुद को.. कंचो की तरह टकरा रहे हो दुसरे कंचो से..

खैर..! कंचे खरीदते भी तो कैसे ? तुम्हारे पास पैसे भी तो नहीं है.. वही एक सिक्का अंटी में दबाये घुमते रहते हो.. कि जिसे तुम्हारी माँ ने तुम्हे दिया था कंचे लाने के लिए.. और चप्पल टूटने की वजह से तुम घर लौट आये.. तभी तुम्हारी माँ पंखे से लटकी हुई मिली.. इस सिक्के में तुम क्या अपनी माँ को ढूंढते हो कॉमरेड.. ? क्या इतने पुराने सिक्के में तुम्हे कुछ मिलेगा भी.. क्यों नहीं तुम इस पर नाइट्रिक एसिड डाल देते हो.. ताकि तुम्हारा सिक्का फिर से चमक उठेगा.. ! पर तुम क्या नाइट्रिक एसिड लाओगे.. तुम्हे तो साईंस के माने भी नहीं पता.. तुम इतने बड़े झंडू क्यों हो कॉमरेड..?

वैसे झंडू तो मैं भी हूँ यार.. तुमसे सवाल पे सवाल पूछ रहा हूँ.. ये जानते हुए भी कि जवाब मैं सुन ही नहीं सकता.... पर तुम मेरी एक बात सुन लों.. किसी से भी हमारे मिशन के बारे में बात मत करना....  मैं जानता हूँ कि हम सब किसी भरोसे के लायक नहीं पर क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ कॉमरेड? या फिर तुम भी मिल जाओगे उन लोगो से और लील लोगे प्राण इस मिशन के.. ?

नहीं नहीं ऐसा मत करना कॉमरेड अब तो मिशन पूरा होने का वक़्त आ गया है... ये पेनअल्टीमेट समय है.. मैंने खुद को समेट लिया है अपने अन्दर..मैं टुकड़े कर रहा हूँ.. अहंकार के, मेरी कायरता के, मेरी चुप्पी के, मेरी नासमझी के, मेरी मक्कारी के, मेरे झूठ के, मेरे वजूद के... कि मैंने आखिरी बार आसमान में नज़र उठाली है.. मैं ईश्वर से नज़रे मिलाने की पोजीशन में हु..  मैं तुम्हारे सामने घुटनों के बल बैठता हूँ.. मेरे हाथ पैरो के नाख़ून नुकीले हो रहे है... मेरी दुम निकल रही है पीछे से.. मेरी जीभ लम्बी हो रही है... मैं अपना सर तुम्हारे पैरो में रखकर तुम्हारे तलवे चाट रहा हूँ... कि मैं अब कुत्ता बन गया हूँ.. अपने मिशन में कामयाब..

हमारे दल की जीत हुई है.. हमारी शपथ पूरी हुई है.. मेरे अन्दर एक जश्न की शुरुआत हो चुकी है.. मुझे नगाडो की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है... तालियों की गडगडाहट मेरे कानो में गूँज रही है.. आदिवासी कबीलों के स्वर सुन रहा हूँ मैं... कितने ही तरह की आवाज़े...लहरों के तट पर आने की आवाज़.. बादलो के गडगडाने  की आवाज़.. मंदिरों में बजती हुई घंटिया...वाह.!
इंसान से कुत्ता बनने की प्रक्रिया का अंत यहाँ जाकर होगा.. तुम्हारे चरणों में.. ये मैं नहीं जानता था कॉमरेड.. पर मैं इंसानियत को त्याग चुका हूँ.. और कुत्ता बन गया हूँ..

एक कुत्ते के सुनने की क्षमता 40 Hz से 60,000 Hz होती है.... और ये इंसान से लगभग दुगुनी है.... अब इतना तो तुम जानते ही हो कॉमरेड.. भौ भौ..!

Tuesday, February 2, 2010

फटा पोस्टर निकला हीरो..

फटा पोस्टर निकला हीरो.. फिल्म हीरो हीरालाल का ये डायलोग आज भी हम तब इस्तेमाल कर लेते है जब कोई धमाकेदार एंट्री लेता है... फिल्मो के कुछ डाय्लोग्स कालजयी हो जाते है.. सबसे कॉमन में शोले का डायलोग आता है.. जब भी कही दो चार लोग चुप बैठे है तो कोई आकर कहेगा "इतना सन्नाटा क्यू है भाई?" या फिर दिवार फिल्म की तर्ज पर.. तुम्हारे पास क्या है पर ये कहना कि मेरे पास माँ है .. इसी डायलोग को फिल्म गुलाल में अलग तरीके से बोला गया.. डायलोग वही है मगर भावनाए बदल गयी है.. फिल्म का एक चरित्र जढ्वाल.. बन्दूक दिखाकर कहता है "मेरे पास माँ है" .. आजकल वैसे भी बन्दूको के साए में ही पलते है बच्चे..

सलीम जावेद की जोड़ी ने हमें कई डाय्लोग्स दिए है.. जिसमे खास तौर पर शोले और दिवार .. याद कीजिये..
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कितने आदमी थे?

यूँ कि ये कौन बोला?

अब तेरा क्या होगा कालिया ?

सरदार मैंने आपका नमक खाया है

बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना

ये हाथ हमका दे दे ठाकुर

इतना सन्नाटा क्यों है भाई..

हम अंग्रेजो के जमाने के जेलर है..

हमारा नाम भी सुरमा भोपाली येसे ही नहीं है..




sholay
deewar-wallpaper
मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता..

पीटर तुम मुझे वहा ढूंढ रहे हो और मैं तुम्हारा यहाँ इंतज़ार कर रहा हूँ..

मेरा बाप चोर है..

खुश तो बहुत होंगे आज तुम..

भाई तुम साइन करते हो या नहीं..

जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ..

मेरे पास माँ है..


आज की बात करे तो मुझे गुलाल.. कमीने .. लक आदि फिल्मो के डाय्लोग्स पसंद आये है.. फिल्म गुलाल के डायलोग अनुराग कश्यप ने लिखे है और कमीने के विशाल भारद्वाज ने.. फिल्म गुलाल में एक किरदार पृथ्वी बना को जब घर से भागते हुए पकड़ा जाता है तो वो कहते है कि रास्ता भूल गया था.. और फिर से कहते है कि इस घर में मैं अकेला ही रास्ता नहीं भूला हूँ..
फिल्म कमीने में जब किरदार गुड्डू प्रियंका चोपड़ा से कहता है कि मेरे पास कंडोम नहीं है तो प्रियंका कहती है.. वैसे भी हमारे बीच कोई तीसरा आये मुझे पसंद नहीं है.. फिल्म में चार्ली स को फ बोलता है संवाद में वो कुछ ऐसे कहता है…
चार्ली : मैं फ को फ बोलता हूँ..
भोपे : अबे फ को फ नहीं तो क्या ल बोलेगा..

ज़रा याद कीजिये गुलाल के कुछ डाय्लोग्स..
gulaal-wallpaper
या तो हांफ ले या बोल ले .. हांफ हांफ के मत बोल.. 
 
जो कुछ नहीं कर सकता वो लॉ कर लेता है..  

ये सवाल से सबकी फटती क्यों है.. ? कोई जवाब नहीं है इसलिए?

डेमोक्रेसी बची नहीं यहाँ पे और ये बैठके एरिस्टोक्रेसी चाट रहे है..

इस मुल्क ने हर शख्स को जो काम था सौंपा उस शख्स ने उस काम की माचिस जलाके छोड़ दी..

कल छोटी दिवाली थी ना मन में बड़े फटाके फूट रहे थे..

साला हक़ से लिया है पाकिस्तान और लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान और कोई बीच में ना आना वरना ले जाऊंगा राजपुताना..
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लाईफ बड़ी कुत्ती चीज़ है.. और इस दुनिया में कुत्तो का सिर्फ एक  जवाब है.. कमीने

ज़िन्दगी में हमारी वाट इस से नहीं लगती है कि हम कौनसा रास्ता चुनते है.. वाट लगती है इस से कि हम कौनसा रास्ता छोड़ते है..

पैसा कमाने के दो रास्ते है.. एक फोर्टकट और दूसरा छोटा फोर्टकट 

एफे एफे केफे केफे हो गए केफे केफे एफे एफे हो गए..

इसे पता नहीं कि दुनिया कितनी बड़ी हरामजादी है तुम साले कितने बड़े कुत्ते कमीने हो..

दो दशक पहले के डाय्लोग्स और आज के डाय्लोग्स बदल गए है.. किरदार बदल गए है.. ब्लैक एंड व्हाईट कुछ भी नहीं रहा.. सब कुछ ग्रे शेड में हो गया है.. फिर भी कुछ डाय्लोग्स है जो हमेशा ऐसे ही याद किये जाने वाले है.. ऐसे में एवरग्रीन हिंदी फिल्मो के किरदारों के डाय्लोग्स है जो ऑरकुट पर किसी कम्युनिटी में मिले थे..
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हीरो -
* shashi_kapoor तेरे सामने तेरी मौत खड़ी है कुत्ते!!
* तुम्हारे लिए मेरी जान भी हाज़िर है!
* अपने आदमियों से कहो की बंदूकें फेंक दे!
* दुनिया की कोई ताक़त हमे जुदा नही कर सकती!
* मेरे होते हुए तुम्हारा कोई बाल भी बाका नहीं कर सकता!
* माँ, मुझे आशीर्वाद दे!
* पुलिस मेरे पीछे लगी हुई है!
* खबरदार जो उसे हाथ भी लगाया!
* मेरी माँ बहुत बीमार है..
* जब तब अपने बाप के खून का बदला नही ले लेता, चैन से नही बैठूँगा!!
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हिरोईन -
yogeeta-bali-wallpaper * भगवान के लिए मुझे छोड़ दो!
* हटो. तुम बड़े वो हो !
* नहीं!
* मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती!
* प्यार करना कोई गुनाह नहीं!
* कुछ गूंडे मेरे पीछे पड़े है!
* कोई देख लेगा!
* मैने तुम्हे क्या समझा, और तुम क्या निकले!
* तुम मुझसे कितना प्यार करते हो?
* आज तुम नही आते तो पता नही क्या हो जाता!!
* मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हू! 
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बहन
Farida_Jalal1
* मेरे भैया को लंबी उमर देना, भगवान!
* मेरे भाई पे कोई आँच ना आए!
* खबरदार जो मुझे छूआ भी, मैं अपनी जान दे दूँगी!
* भय्या.. तुम तो बस मेरे लिए एक प्यारी सी भाभी ले आओ ..
* भगवान के लिए, मेरा सुहाग मत उजाडो..
* भगवान के लिए मुझे छोड़ दो..
* मैं किसी को मुंह दिखाने लायक ना रही..
* दरवाजा क्यों बंद कर रहे हो..
* ये आप मुझे कहाँ ले जा रहे है..
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विलेन
jugnu_hook* अब सारे हिन्दुस्तान पर हमारा राज़ होगा!
* बताओ फार्मूला कहाँ है?
* तुम्हारी माँ हमारे क़ब्ज़े मैं है!
* ये सौदा तुम्हे बहुत महंगा पड़ेगा
* इन गोरी गोरी कलाईयों को काम करने की क्या ज़रूरत है!
* यहाँ तेरी इज़्ज़त बचाने कोई नही आएगा!
* बुला तेरे भगवान को– देखता हूँ कौन आता है?
* गद्दारी की एक ही सज़ा होती है, मौत!
* उसकी कोई तो कमज़ोरी होगी, कोई माँ या बहन?
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डॉक्टर
* आई एम सॉरी!
* इन्हें दवा कि नहीं दुआ की जरुरत है..
* इसका तो बहुत खून बह चुका है. फॉरेन ऑपरेशन करना पड़ेगा!
* भगवान ने चाहा तो सब ठीक होगा!
* बधाई हो, तुम बाप बनने वाले हो!
* इसकी हालत बहुत नाजुक है!
* अरे! इसे तो तेज़ बुखार है!
* अब सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में हैं!
* 24 घंटे तक होश नही आया तो….
* बच्चे को तो हमने बचा लिया पर माँ को नहीं बचा सके..
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पिता
* 220px-Madan_Puri एक बार इसके हाथ पीले कर दू, फिर में चैन से मर सकता हू!
* इस घर के दरवाज़े, तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद है!
* वॉच मैन ! इसे धक्के मारकर बाहर निकाल दो!
* तुम खुद दो वक़्त की रोटी नही खा सकते, मेरी बेटी को क्या खिलाओगे?
* मेरे जीतेज़ी ये शादी नहीं हो सकती!
* मेरी बेटी से प्यार करने से पहले अपनी औकात और हमारी हैसियत तो देखी होती
* मैं जल्द ही दहेज़ की सारी रकम चुका दूँगा!
* यह आप क्या कह रहें है, भाई साहिब!
* गाड़ी रोको ड्राइवर!
* मैं कहता हूँ, दूर हो जा मेरी नजरो से ..
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माँ Nirupa_Roy_300
* ये कंगन मुझे मेरी सास ने दिए थे..
* मेरा राजा बेटा!
* मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है!
* मेरा बेटा ऐसा कभी नहीं कर सकता!
* मेरा बेटा तेरी मौत बनकर आएगा,
* एक बार मुझे माँ कह कर पुकारो बेटा…
* मेरे बेटे की रक्षा करना प्रभु!
* मेरे राजा बेटे को आज में अपने हाथो से खिलाऊंगी
* हे भगवान, मेरे सुहाग की रक्षा करना!
* मैने तेरे लिए गाजर का हलवा बनाया है!
* मैने तुम्हे पाल पॉस कर बड़ा किया…
* मार, मार इसे बेटे, इसने तेरे देवता जैसे पिता का खून किया!
* भगवान मैने आजतक तुमसे कुछ नही माँगा!!
* बेटा ये तो…. यह तो खुशी के आंसू है….
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खैर ये तो रही मेरी बात.. अब कुछ ऐसे ही डाय्लोग्स आपके पास भी तो होंगे.. तो हो जाये दो चार इधर भी..

Tuesday, January 5, 2010

साईड 'ए' वाली ज़िन्दगी भी क्या जिंदगी थी....


रेट्रो मेमोरीज...  उन गलियों की जहाँ छीले हुए घुटनों के साथ.. सड़क पर गावस्कर को पीछे छोड़ने की कसमे खायी थी .. आवारगी कंधो पर ढोते हुए पापा से नज़रे बचाते घरो में घुसने का नाम ही तब ज़िन्दगी हुआ करता था.. कैलंडर के पन्नो के साथ उम्र भी बदल चुकी है...

पर रेट्रो जमाना अभी भी अन्दर ही अन्दर किसी कोने में दुबका हुआ पड़ा है.. एक चवन्नी में दुनिया जहान ढूंढ लेने वाली उस उम्र..... उस खालिस उम्र में बीती हर एक बात रेट्रो हो चुकी है... ठीक उस उम्र में जब बेफिक्री का लिहाफ ओढ़े एक टांग पे टांग टिकाये घंटो कही पड़े रहते थे.. और दुनिया को बदलने की ख्वाहिशे जेब से बाहर सरक रही होती.. ईमान तब स्कूल के बस्ते में साबुत पड़ा मिलता था.. और दुनियादारी नाइजीरिया के किसी सुदूरवर्ती इलाके में रही होगी शायद..

कागज़ तक पर पांव पड़ने पर विधा माता से माफ़ी माँगना और टिश्यु पेपर के खास पलो में इस्तेमाल के बीच की दुनिया.. प्रलय आने से पहले ही शायद दो भागो में बँट चुकी है.. नागराज.. फेंटम.. बांकेलाल.. हवालदार बहादुर.. एक उम्र इन लोगो के साथ भी गुज़र डाली जो साले दुनिया में ही कही नहीं है..  दिवाली के बाद जो पैसे मिलते थे.. उससे बाकी कई दिनों नागराज से मुलाक़ात पक्की हो जाती थी.. अठन्नी में किराये पर एक कोमिक्स आती थी.. जिसे आठ लोग पढ़ते थे और अठन्नी बँट जाती..

खाना खाने के लिए मम्मी की आवाज़े.. या दूध का गिलास देखकर पिकासो की पेंटिंग सा मुंह.. बचपन की उन तमाम कीमती चीजों से भरी हुई जेबे.. जिन्हें बेचने पर बाज़ार में दो कौड़ी भी ना मिले.. खाली सडको पर चक्कों को लकड़ी से चलाते हुए पास से गुजरती हुई कारो को देखकर आँखों में सपने ठूंस लेना.. रेल की पटरियों पर सिक्के रखना.. और सिक्को को सोने की अशर्फी में बदल जाने के लल्लू ख्याल...  सड़क पर जमा पानी में जानबूझ के पांव रखना.. एक छक्के में कोने वाली आंटी की बालकनी की लाईट फोड़कर भागना.. बिना हाथ धोये गरमा गरम जलेबियों पर टूट पड़ना.. और दोस्त की आवाज़ पे पंखा टी वी सब चालु छोड़ जाना..

भगवान चाहे मिले ना मिले.. पर साईकिल का ताला खुला मिलना... कैंची साईकिल चलाकर मोहल्ला नाप लेना.. शाम स्टाइल मारने के लिए बैडमिन्टन खेलना और फिर कॉक को 'उनके' घर में फेंकना.. फिर लेने जाना.. वो कॉक भी अगर जिन्दा हुई तो कही रेट्रो मोड़ में पड़ी मिलेंगी.. सीडी और आईपॉडस का तब जन्म भी नहीं हुआ था.. उलझती कैसेटो की रील को घुमा घुमाकर टेप रिकोर्डस में चलाना.. साईड 'ए' वाली ज़िन्दगी भी क्या जिंदगी थी.... अब लगता है किसी ने पलट के ज़िन्दगी की साईड 'बी' लगा दी है..

और जो कुछ युही पड़ा मिला.. 
दूरदर्शन का रुकावट के लिए खेद है.. या फिर गुमशुदा की तलाश.. सिबाका गीत माला.. या मिले सुर मेरा तुम्हारा.. हमदर्द का टोनिक सिंकारा.. केम्पा कोला.. हिंदी फीचर फिल्म का शेष भाग.. लेम्रेडा स्कूटर.. बोल्बेटम पैंट... कानो पर आते हुए बाल.. और लास्ट में आर डी बर्मन का........वकाऊ 

स्पेशल थैंक्स टू मेजर गौतम.... जिनकी पोस्ट ने आज कुछ लिखने को मजबूर किया.. वैसे ये तो अपना रेट्रो मोड़ था.. कुछ आपका भी तो होगा.. ?