कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Monday, August 30, 2010
ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पलो में प्यार मिठास घोल देता है..
'अभी इतनी बूढी भी नहीं हुई हूँ कि तु कुछ भी कहे और मान लु मैं.. इस डिब्बे से कैसे हो जायेगी बात तेरे नानाजी से..?' बोलते हुए नानीजी अपनी दवाइयों वाली थैली में से दवाई निकालने लगी..
अरे आप तो बस देखती जाओ.. शाम को तैयार रहना मैं नानाजी के पास जाकर फोन करूँगा.. आप उठा लेना..
सत्तर की उम्र में भी एकदम चुस्त नानाजी एक दिन चलते चलते सड़क पर गिर पड़े.. आसपास वाले लोगो ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया.. बस तबसे वही है.. नानीजी ने तो तीन साल पहले ही बिस्तर से ऐसी दोस्ती गांठी कि फिर बिस्तर छोड़ने का सवाल ही नहीं उठा.. हर रोज़ नानाजी को याद करती रहती बस.. जैसे ही कोई अस्पताल जाकर आता उस से बस नानाजी के बारे में ही पूछती.. ठीक तो है ? कब वापस आयेंगे ?
जब भी घर के दरवाजे पर कोई आवाज़ होती है.. उन्हें लगता नानाजी आ गए.. जब मैं नानीजी के पास पंहुचा तो वो बोली 'क्यों रे तेरे नानाजी मेरे बारे में पूछते नहीं है.. ?'
'पूछते है ना' मैंने कहा..
'अच्छा क्या बोलते है ?' नानी जी आँखों में चमक लिए हुए बोली..
'बोलते है तेरी नानी तो मुझे भूल ही गयी है.. सब मिलने आते है वो ही नहीं आती.. '
'झूट..!' नानी बोली 'ऐसा तो हो ही नहीं सकता... वो तो अब पांव उठते नहीं है वरना तो चली ही जाती.. पता नहीं कैसे होंगे वो? '
'अच्छे है नानी.. आप क्यों चिंता करती हो.. '
'लल्ला मेरा एक काम करेगा..' नानी बड़े प्यार से बोली
'हाँ कहो ना नानी.. '
'तु एक चिट्ठी लिख देगा उनके लिए.. जैसा मैं कहती हूँ बस वैसे.. '
'अरे वाह लव लैटर.. क्या बात है नानी.. '
'चुपकर बेसरम..! बस किसी को बताना नहीं.. '
ठीक है नानी बताओ क्या लिखना है..
छुटकी के पापा,
आप मेरे लिए उस दिन इमली लाने गए थे ना फिर अभी तक वापस क्यों नहीं आये..? बच्चो से पूछती हूँ तो कहते है पापा ठीक है.. पर मुझे लगता है कुछ ठीक नहीं.. जब आप पास नहीं होते हो तो कुछ ठीक क्यों नहीं लगता..? रोज़ शाम को सोचती हूँ आप आज आ जाओगे पर आप नहीं आते हों.. मेरा यहाँ अकेले मन नहीं लगता.. बस बैठी बैठी आपकी आराम कुर्सी को देखती रहती हूँ.. कभी खिड़की से हवा आ जाये तो इसे हिलती देखती रहती हूँ आप अखबार पढ़ते हुए ऐसे ही तो बैठते है इस पर.. और तो और कौनसी दवाई कब लेनी है कुछ पता नहीं चलता.. रोज़ खिड़की पर गाय आकर खडी हो जाती है वो अलग.. मुझसे तो उठकर रोटी दी नहीं जाती.. कल छोटा गया था उसको रोटी देने पर खायी ही नहीं.. आप आओगे तभी खाएगी.. और हाँ वो टेबल पर पड़ा कैलेण्डर भी नहीं बदला है किसी ने.. जिस तारीख को आप गए थे अभी भी वैसी की वैसी है.. बाहर ठण्ड भी पड़ने लग गयी अब तो.. आप जर्सी नहीं ले गए थे मैं लल्ला के साथ भिजवा दूंगी.. और कान खुले मत रखना आपको सर्दी जल्दी लग जाती है.. मेरी चिंता मत करना आप मैं यहाँ बिलकुल ठीक हूँ.. बस आप जल्दी से आ जाओ..
मैं पैन चलाते चलाते रुक कर नानी को देखने लगा.. आँखे कब भीग आयी पता ही नहीं चला.. नानी बोले जा रही थी बस.. मैं उन्हें देख रहा था..
क्या हुआ लल्ला ? लिखा कि नहीं? नानी ने मेरी ओर देखा..
'लिख दिया नानी..' मैंने नानी की हिदायतों के साथ उस चिट्ठी को जेब में डाला.. और नानी की दी हुई जर्सी ली..
नानाजी.. कुछ बोलते नहीं थे.. पर हाँ सुन जरुर सकते थे.. मैंने मौका देखकर नानी जी वाली बात कही.. उन्होंने मेरी तरफ देखा.. कुछ बोलने की कोशिश की पर बोल नहीं पाए.. मैंने चिट्ठी निकालकर पढना शुरू किया.. नानाजी के हाथो में हलचल देखी.. ज्योंही चिट्ठी ख़त्म हुई नानाजी की आँख से एक आंसू गिर कर उनके गालो पर आ गया.. नानाजी ने हाथ उठाकर मुझे बुलाया.. मेरे पास जाते ही उन्होंने अपना हाथ मेरे सर पर रख दिया.. उस शाम मैं और नानाजी बहुत रोये..
मैं जानता था नानीजी को आज सारी रात नींद नहीं आयी होगी.. सुबह जब पहुंचा तो नानीजी बिस्तर पर बैठी अपनी दवाइयों से उलझ रही थी.. मेरे जाते ही उन्होंने पुछा क्यों लल्ला पढ़ा उन्होंने क्या कहा ? कब आ रहे है ?
जब नानीजी को बताया तो वो बहुत खुश हुई.. अब तो ये रोज़ का सिलसिला बन गया..
मैं हर रोज़ नानीजी का लैटर लेकर अस्पताल जाता.. और नानाजी को पढ़कर सुनाता.. धीरे धीरे नानाजी बोलने भी लग गए थे..
एक दिन मैं अपने दोस्त से मोबाईल लेकर आया..
अभी इतनी बूढी भी नहीं हुई हूँ कि तु कुछ भी कहे और मान लु मैं.. इस डिब्बे से कैसे हो जायेगी बात तेरे नानाजी से.. बोलते हुए नानीजी अपनी दवाइयों वाले थैली में से दवाई निकालने लगी..
अरे आप तो बस देखती जाओ.. शाम को तैयार रहना मैं नानाजी के पास जाकर फोन करूँगा.. आप उठा लेना..
उस दिन मैं नानीजी के पास लैंडलाईन फोन रखकर गया और नानाजी के पास जाकर मोबाईल से बात करवाई.. 'हल्लो हल्लो' नानाजी से जोर से बोल रहे थे.. शायद नानीजी को अब भी यकीन नहीं था.. कि वो नानाजी से बात कर रही थी..
'मुझे कहाँ कुछ हुआ है..' नानाजी बोल रहे थे..
'वो तो तु दिन भर परेशान करती रहती है,, इसलिए कुछ दिनों के लिए यहाँ चला आया.. थोड़े दिन तो आराम से रहूँगा यहाँ.. और तुझे कहाँ मेरी फ़िक्र है तुझे तो तेरी इमली की चिंता है.. इमली भी पड़ी है मेरे पास.. लल्ला के हाथ नहीं भेजूंगा.. खुद लेकर आऊंगा नहीं तो तू नाराज हो जाएगी.. और तु मेरी चिंता मत करना.. मैं यहाँ अच्छा हूँ.. बस दिन भर तेरी आवाज़ नहीं आती.. तु वो गाना गाती थी ना.. "अभी ना जाओ छोड़कर..." वो बड़ा याद आता है.. मैं तो सीख ही नहीं पाया.. इस बार मुझे याद करा देना पूरा.. अकेले में गा लिया करूँगा.. अरे लल्ला सुनता है तो क्या हुआ...? और हाँ तेरी दवाई की पर्ची अलमारी में रखी है लल्ला को बोलके सब टाईम पर ले लेना.. नहीं तो फिर खांसती रहेगी रात भर और मुझे भी नहीं सोने देगी.. मैंने जर्सी पहन ली है.. अभी भी वैसी की वैसी है.. जैसी तुने पहली बार सिलाई की थी.. तेरी सारी चिट्ठिया मिली मुझे. क्या जरुरत थी इन सबकी? अभी भी बच्ची की बच्ची है तू तो.. हाँ हाँ अपना ख्याल रखूँगा..मेरी चिंता मत करना तू बस अपना ख्याल रखना.. मैं जल्दी आऊंगा घर फिर से तेरी किचकिच सुनने .. ' अब रखता हूँ.. ख्याल रखना..
अगली बहुत देर तक मैं नानाजी को देख रहा था.. वो कौनसी डोर होंगी जिसने नाना नानी को उम्र के इस दौर में भी बाँध रखा है.. ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पलो में प्यार कैसी मिठास घोल देता है कि हम सब दर्द भूल जाते है.. नानी जी अपने सब दर्द भूलकर नानाजी को चिट्ठी लिखती है.. नानाजी साँसों से लड़ते हुए उनसे इस तरह बात करते है जैसे पहली बार बात कर रहे हो.. ज़िन्दगी के उस मोड़ पर जब दुनिया पीछे छूट जाती है.. तब प्यार ही दो रिश्तो में गर्माहट बरकरार रखता है..
दूसरी शाम जब मैं अस्पताल पहुंचा तो सब लोगो को नानाजी के आसपास खड़ा देखा.. नानाजी वादा तोड़कर जा चुके थे..
'लल्ला!...' नानी की आवाज़ ने चौंकाया..
नानाजी को गुज़रे हुए तीन हफ्ते बीत चुके थे.. नानीजी बिना कुछ बोले बस बिस्तर पर लेटी रहती थी.. आज जब मैं उनकी दवाईयो पर निशान लगा रहा था.. नानीजी बोली..
लल्ला... एक बात कहे.. ! तुम उस दिन वो लाये थे ना जिससे तुमने नानाजी से बात करायी थी..
'मोबाईल '
हाँ वही.. वो तो बड़ी अच्छी चीज थी.. उस से एक बार तेरे नानाजी से बात करा दे ना.. आज यहाँ मन नहीं लग रहा हमारा..
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kush ji..rishte ka ek khoobsurat pahlu likha hai aapne..so touchy!
ReplyDeleteमार्मिक !
ReplyDeleteयही प्यार रिश्तो मे अब क्यो महसूस नही होता . शायद ग्लोबल वार्मिग का तो असर नही
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteकाश आप मेरी आँखों मे आँसू देख पाते ... बेहद मार्मिक और रिशों की संम्वेदना के करीब
ReplyDeleteऔर वो यूँ कि नानी से मेरा लगाव कुछ इस कदर था कि काफी बड़ा होने तक नानी को ही अपनी माँ समझता था ...
"वो कौनसी डोर होंगी जिसने नाना नानी को उम्र के इस दौर में भी बाँध रखा है.."
ReplyDeleteबुढापे की डोर........ .:)
Read more: http://kushkikalam.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+kushkikalam+%28%22%3F%3F%3F+%3F%3F+%3F%3F%3F%22%29#ixzz0y5ByvdLr
जीवन के हिस्से से शब्द दर शब्द निकली हुई ये रचना। कई जगह होठ रुक गए पढते-2 और आँखे बोलने लगी। और क्या कहूँ...... वैसे आज नानी की याद दिला दी आपने। जो बेटा बेटा कहती है।
ReplyDeleteभावुक कर दिया, लल्ला...
ReplyDeletekush ji aap shi he pyaar kisi bhi musibt se ldne ki sbe bdhi taaqt hota he or nsib vaale hote hen voh lg jinke paas kisi ka pyar or pyaar ka lmha hta he . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteभावुक कर देने वाली हैं यह ..आज कल तो यह एहसास नहीं बचे हर रिश्ता मतलब का और बनावटी लगता है
ReplyDeleteउफ़.... कितनी मेहनत लगी पढने में...कितना कसरत करना पड़ा पानी पर (आँखों के) तैर रहे अक्षरों को पकड़ पकड़ कर पढने में.....
ReplyDeleteक्या लिख डाला है न...क्या कहूँ...
जियो...जियो....
ReplyDeleteअचानक से दुखी कर दिया इस कहानी ने....!!
ReplyDeleteजो मूल भाव था वो बहुत ही संवेदनशील था। सोचती हूँ कि उम्र के इस पड़ाव पर जब भविष्य रह ही नही जाता हाथ में ...तब अपना सबसे प्यार साथी खोना.... कितना रीतापन दे जाता होगा...!!!
तुम्हारे चित्र पर लिखा कैप्शन I just wan to hear you voice. मुझे पोस्ट का सटीक शीर्षक लगा। वो चित्र खुद में बहुत कुछ कह रहा है...!!!
और हाँ एक बात और जाने कैसे मुझे आज भी अपने इर्द गिर्द ऐसे रिश्ते दिख जाते हैं....!! बिना स्वार्थ के... बस प्यार से लबालब....!!!
मगर कहीं कहीं थोड़ी नाटकीयता भी लगी... शायद ज़रूरी रहा हो...!!!!!
कुश भाई तुम ऐसे दर्दीली पोस्ट कब से लिखने लगे...रुलाने का ठेका ले लिया है क्या ???
ReplyDeleteनीरज
सुन्दर, भावुक, मार्मिक... पढ़ कर मज़ा आ गया, शुक्र है आंसू नहीं गिरा बस एक कतरा आया था, मैंने संभाल लिया जैसे आपने संभाला... जरुरी नहीं है की मार्मिक ही हो पर जब तार पकड़ें तो ऐसे ही पकड़ें... तो कुश बैक विद द बैंग...
ReplyDeleteअब समझे आप हीरो क्यों हो ?
इतनी भावुक पोस्ट, आंखों से आंसू बड़ी मुश्किल रोक पाए, बहुत अच्छा लिखा है कुश। रिश्तों का इतनी बारीकी से इतना सटीक विश्लेषण, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रेम जवानों की बपौती नहीं है! जीवन की संध्या में भी प्रेम धारा उतने ही वेग से फूटती है...अमर रहे नाना नानी की प्रेम कहानी!!
ReplyDeleteमार्मिक पोस्ट।
ReplyDeleteSPEACHLESS
ReplyDeleteएक नोवेल याद आ गया.....मिले कही पर तो पढ लेना...द नोट्बुक ...फ़्रोम निकोलस स्पार्क्स .... तुम्हारी सुखी कलम मे फ़िर से स्याही भर गइ है...लग रहा है जईपुर मे अच्छी बारिश हुइ है इस साल.... :)
ReplyDeleteकुश! जीवन के उस दौर मे प्रवेश कर चुके हम. एक भय हमे भी सताता है.........नही जाना चाहती...तुम्हारे बाद भी नही. तुम्हारे बिना भी नही.' इनसे कहा मैंने.
ReplyDeleteबहुत कुछ वही ..सबके मन की बात.जानते हो दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता है ये एकदम नाना नानी के जैसा.
बहुत अच्छा लिखते हो.
यह कहानी पढ कर मुझे मेरे मां बाप याद आ गये, लडते भी थे आपस मै, लेकिन पिता जी के बाद मां जल्द ही चली गई उन के पास...................
ReplyDeleteदेह छूट जाती है बंधन नहीं छूटते
ReplyDeleteकुश साहब, बहुत बढ़िया.
Kya Baat h !
ReplyDeleteऐसा भी क्या लिखना भला ..
ReplyDeleteरोते रोते पढ़ना पड़े..
और कुछ कहते न बने..
ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पलो में प्यार कैसी मिठास घोल देता है कि हम सब दर्द भूल जाते है...
ReplyDeleteप्यार ही सबसे बड़ा दर्द दे जाता है जिसको अनेक मीठे पल भी भुला नहीं सकते... :-(
ReplyDeleteकुश जी,
ऎसे लिखते हैं, भला ?
आज तो रूला ही दिया आपने !
पर इसमें कुश जी की क्या गलती है, फिर मैं रो क्यों रहा हूँ ?
काश कि उस वक्त मुआ नेटवर्क बिज़ी रहा होता, तो नाना जी की जिजीविषा कायम रह जाती..
नानी जी से दो-बोल बोलने की उम्मीद ही उनकी जिजीविषा जो थी !
यह नेटवर्क वाले वाकई बहुत रुलाते हैं !
गलत समय पर तड़ से लाइन भिड़ा देते हैं,
और सही समय पर नेटवर्क बिज़ी !
कुश जी,
ReplyDeleteऎसे लिखते हैं, भला ?
आज तो रूला ही दिया आपने !
पर इसमें कुश जी की क्या गलती है, फिर मैं रो क्यों रहा हूँ ?
काश कि उस वक्त मुआ नेटवर्क बिज़ी रहा होता, तो नाना जी की जिजीविषा कायम रह जाती.. नानी जी से दो-बोल बोलने की उम्मीद ही उनकी जिजीविषा जो थी !
यह नेटवर्क वाले वाकई बहुत रुलाते हैं !
गलत समय पर तड़ से लाइन भिड़ा देते हैं,
और सही समय पर नेटवर्क बिज़ी !
mujhe lagta hai..umr ke is padav par ye dor aur jyada majboot ho jati hai. jeevan mein pyar ki mithas ke alava aur kuch baki nahi rahta. bahut pyara likha tumne..
ReplyDelete@kush ji
ReplyDeleterishton ki garmahat ke nanhe nahe lamhon ko bahut khoobsurti se sameta hai...par ant mein dil mein tees si rah gai...
क्या कर डाला तुमने कुश भाई ...
ReplyDeleteमैं तो बह चला ... मैं अक्सर ये ल्फ्जात प्रयोग करता हूँ कि शायद "उम्र के ५०-६० सावन में जिस प्रकार का प्रेम अपने माता-पिता या उनके माता पिता के बीच नजर आता है वो ईश्वरीय होता है ..
Divine ,Totally Divine ...
खुद के नाना-नानी याद आ पढ़े मुझे ...नाना जी पिछले साल ही गुजरे और नानी का ये खालीपन और दर्द शायद ही कोई समझ सकता है ..
"सब कुछ पढ़ते-२ ,सबकुछ भूलकर अंत में कुछ ऐसे प्रार्थना निकली मन से कि "काश आप नानीजी की बात करवा पाए होते नाना जी के जाने के पश्चात " ...
हम तो भावुक हो उठे हैं ....
जियो आप और आपकी कलम !!
उम्र के एक मोड़ पे आपके जब तमाम रिश्ते आहिस्ता आहिस्ता फ़िल्टर होने लगते है .तब एक ही रिश्ता रहता है फेविकोल के जोड़ की माफिक...बस जिसका दुश्मन ऊपर वाला ही करता है .....
ReplyDeleteकहानी को शोर्ट करते तो ...
bahut bariya
ReplyDeletesach parte parte mere aakh me aasu aa gaya
awww How CUTE..यही निकला मूंह से जब तक कहानी के अंत तक नहीं आई...पर अंत में आह .....काश कि उस डिब्बे से फिर से बात हो जाती नानी की. .
ReplyDeleteजियो भाई.
ReplyDeleteलल्ला, बहुत मार्मिक लिखा है, भावुक कर दिया।
ReplyDeleteआपको कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteहरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा हरे हरे
बहुत अच्छी लगी कहानी ...मार्मिक ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! जियो एक बार और!
ReplyDeleteसब कुछ प्रेम, संवेदना और प्रेरणा से भरा हुआ था.. की अचानक अंतिम से दसवां लाइन टकराया और हम अचकचा गए.
ReplyDeleteक्या बोलें और यहाँ क्या लिखे हम.
कुश भाई .....आपने तो लगभग रुला ही दिया .
ReplyDeleteसच्ची में पढ़कर मज़ा आ गया .
बहुत ही सुंदर और मार्मिक .......................
गज़ब की कहानी, कुश....और देखो ना मुझे भी "द नोटबुक" की याद आयी मीता की तरह। मेरी और मेरी उत्तमार्ध की सबसे पसंदीदा किताब....मौका मिले तो जरूर पढ़ना।
ReplyDelete...और ये ब्लौग पे कितने गैजेट जोड़ लिये हैं। कोई गेमिंग कन्सोल सा दिखता है।
हम तो खुद ही इस के पात्र बन गये थे, क्या लिखे हो, लल्ला शब्द बहुत दिनों बाद पढ़ा सुना, और बहुत सी यादें घूम गयीं अपने मानसपटल में... काश कि मोबाईल सभी जगह काम करता ....
ReplyDeleteसही वक़्त पर आँसू छलकने से रुक गए...
ReplyDelete"द नोटबुक " पढ़ी/देखी है?
ओह्ह! पहले भी लोगों को 'द नोटबुक' याद आई...मैं अकेला नहीं :)
ReplyDeleteफिर से बधाई, बहुत बढ़िया...
पठनीय!
ReplyDeleteज़िन्दगी के उस मोड़ पर जब दुनिया पीछे छूट जाती है.. तब प्यार ही दो रिश्तो में गर्माहट बरकरार रखता है..
ReplyDeleteखूबसूरत और दिल को गहरे तक छू जाने वाली प्यारी कहानी....शायद इसी प्यार की गर्माहट से उंगलियाँ कीबोर्ड पर थिरक उठी...
Aapne bahut acha likha hai....Ham aaz kuch dundh rahe the padhane ko mile...fir kisi tarah yahan pahuche ....wo kahte hai na, kabhi aadmi bhatakta hai chandi ke liye or ...sona mil jata hai ..waise hi khushi ka ehsaas hua is post ko padhane ke baad...bahut hi sundar..:)
ReplyDelete~Yagya
Allahabad
भाई कुश,
ReplyDeleteलगता है आपने मेरी ही आपबीती लिख दी है जिसे लिखने से में जी चुरा रही थी और साथ-साथ शब्द भी खोज रही थी जो मुझे मिल नहीं रहे थे.मेरे मम्मी और पापा के बीच ऐसा ही कुछ वाकया हुआ और जिसकी में गवाह बनी.शायद में जिंदगी भर न भूल सकूं. अभी २७ नवम्बर को मेरे पापाजी........१४ दिन के अस्पताल के चक्कर लगाती हुई मैंने कुछ ऐसे ही हालातों को देखा है. घर आते ही मम्मी की कुछ इसी तरह की बातें और अस्पताल पहुँच कर पापाजी की हिदायतें. और वो आंसू भरी नज़र से पापाजी की मम्मी को देती हुई अंतिम बिदाई !! याद आते ही..........................शायद अभी-अभी इस हालत से गुजरी हूँ,इसलिए लिखने से कतरा रही हूँ...शायद कभी सम्भव हो सके तो.......मन को बहला रही हूँ कुछ अगला-पिछला याद करके,आपने अच्छा लिखा,मन को छू जाने वाला..........
सच में, मन बार-बार यही कहता है उनसे जो अब नहीं हैं मेरे साथ....I just want to hear your voice...................
पढ़ते - पढ़ते आँख में आंसू और बार - बार साफ करते हुए पढना . इस लेख ने तो बहुत कुछ याद दिला दिया . ऐसा प्रेम तो उम्र के इसी मोड़ पर देखने को मिलते हैं . बहुत खूब
ReplyDeletebohot hi sundar story hai....one of the best....
ReplyDeleteजब सबके कमेंटस पढ़ रहा था तो सोच रहा था कि बस यूं ही लोगों ने भावुक होकर लिख दिया होगा। मगर जब कहानी की रूह से होकर गुजरा तो अंदाजा हुआ कि मेरे दिल पर क्या गुजरी है। यकीन मानिए भाई साहब दिल पूरी तरह पसीज गया।
ReplyDeleteकहानी की आखिरी लाइन तो एकदम छलनी कर देती है। लाजवाब।