Tuesday, August 26, 2014

रंगमंच का प्यादा

बैकग्राउंड में बांसुरी का संगीत बज रहा है.. स्टेज पर एक आराम कुर्सी पड़ी है.. जिसकी कोई आवश्यकता ही नहीं बची है.. सब लोग व्यस्त है.. परदे पर आसमान भी बनाया हुआ है..  मगर उसमे अभी रात है.. आठ दस तारे बने हुए है परदे पर.. और कोने में एक चाँद पड़ा ऊंघ रहा है..  सामने दर्शक है. जो ताली बजाने से लेकर उबासी लेने तक का काम कुशलता से अंजाम दे सकते है.. “ये कैसी विडम्बना है कि जब मैं गलत था तो सब मेरे साथ थे पर अब जब मैं सच का साथ देना चाहता हूँ तो कोई मेरी बात सुनने को भी तैयार नहीं..” बैक ग्राउंड से आवाज़ आयी है और लाल रंग की मद्धिम रौशनी स्टेज पर उतरी है.. इसी रौशनी में एक दाढ़ी वाला चेहरा नमूदार होता है..  “मैं पूछता हु आखिर क्यों..? संवाद अदायगी में इसका कोई सानी नहीं.. आँखों में जला देने वाली आग और माथे पर भिगो देने वाला पसीना.. रेड स्पोट लाईट ठीक उसके चेहरे पर और आँखे ऐसी लाल के जैसे लहू उतर आया हो इनमे..

दर्शक सांस रोके बस उसी चेहरे पर टकटकी लगाये बैठे है.. अचानक स्वर में करुणा आ जाती है.. दर्शको के बीच अब संवेदनाये हिलोरे मार रही है.. चारो तरफ अँधेरा है बस एक नीली स्पोट लाईट का प्रकाश मंच पर बिखरा हुआ है.. बैकग्राउंड में अब वायलिन बजने लगी है..अक्सर ऐसे उदास पलो में हमें किसी ऐसी ही धुन के सहारे की जरुरत होती है.. इस धुन के साथ ही नायक का करूण  राग दर्शक दीर्घा में फैले अँधेरे को चीरता हुआ उनके भीतर उतरता जाता है.. 

नायक फिर से कहता है...
“ये कैसी विडम्बना है कि जब मैं गलत था तो सब मेरे साथ थे पर अब जब मैं सच का साथ देना चाहता हूँ तो कोई मेरी बात सुनने को भी तैयार नहीं.. क्यू इस दुनिया में गलत सही है और जो सही है वही गलत है.. क्यू सच्चाई और ईमानदारी मक्कारी के पैरो तले रौंदी जा रही है.. क्या सत्य का अंतिम समय आ चुका है? क्या आने वाली नस्लों को नहीं नज़र आएगा सच? जैसे हमारे पास डायनोसोर के सिर्फ किस्से है वैसे ही किस्से उनके हिस्से में होंगे सच के?” उसकी आँखों में आंसू ठहरे हुए है.. अभी गालो तक नहीं पहुंचे, लेकिन पहुंचेगे ज़रूर.. थियेटर में सारा खेल ही टाईमिंग का है, “तो क्या मैं भी चल पडू उसी राह में कि जिसकी मंजिल सिवाय झूठ और पाखण्ड के कुछ भी नहीं?”

दर्शक स्तब्ध बैठे है.. किसी का फोन वायब्रेट हो रहा है पर उससे कुछ ख़ास फर्क नहीं पड रहा किसी को. दो रक्तरंजित आँखो में सैकड़ो आँखे झाँक रही है.. ऐसा लग रहा है अब खून बह उठेगा इनसे.. मगर नहीं, “क्या कोई है जो दे सके मुझे दिलासा? अरे इतना ही कह दो कि मैं तुम्हारे साथ हूँ.. बाद में चाहे धोखा दे देना.. पर एक बार इतना तो कह दो कि मैं साथ हूँ.. डूबते को तिनके का सहारा ही तो चाहिए.. दे सको तो दे दो इतना वरना पूरी दुनिया तुम रख लो.. मैं लात मारता हूँ इस दुनिया को.. जो सिर्फ तब चिल्लाती है जब लात उसके पिछवाड़े पर पड़ती है.. नहीं रहना मुझे ऐसी दुनिया में.. मैं अपनी दुनिया खुद बसाऊंगा.. अपने नियम.. अपनी ख़ुशी के लिए.. और तुम्म!! हाँ हाँ तुम कायर लोगो को फटकने तक ना दूंगा अपनी दुनिया के आस पास भी कि मैं जानता हूँ गर तुम्हारे कदम पड़े उस ज़मी पर तो तुम उसे भी अपनी तरह बना दोगे.. क्योंकि मैं जानता हूँ खुदा ने सिर्फ जन्नत बनायीं थी दोज़ख की ईजाद तो तुम लोगो ने की...” और वो मुंह फेर लेता है दर्शको से

दर्शक खड़े होकर तालिया बजाते है.. मंच पर प्रकाश कम हो जाता है.. अभिनेता के चेहरे पर विजयी भाव है.. वो चाहता है कि जल्द से जल्द उसका नाम पुकारा जाए और वो मंच पे जाकर सबका शुक्रिया अदा करे.. जैसे ही उसका नाम पुकारा जाता है वो मंच पर पहुँचता है लेकिन नाशुक्रे लोग उठ उठ कर चल दिए है.. कुछ है जो फोन पर बात कर रहे है.. कुछ आगे वाली सीट के नीचे खिसक गए अपने जूते ढूंढ रहे है.. इन सबमें भी जो चेहरे मंच की तरफ है उनको देखकर वो खुश हो रहा है.. ये उसका मैडल है.. और जवाब भी कि अभी वो वक़्त नहीं आया है कि उसे अपनी दुनिया बनानी पड़े.. पर्दा गिर रहा है..!!