"अबे तुझे क्या पता... बाईक के पीछे लड़की बिठायी क्या तुने कभी,...? बार बार ब्रेक लगाने में जो मज़ा आता है वो तू क्या समझेगा प्यारे.. " आईने के सामने कंघी करते हुए वो बोला..
"तू तो साले कमीना का कमीना ही रहेगा.." उसका दोस्त हँसते हुए बोला.. "पर ये लडकिया रोज़ रोज़ कैसे मिल जाती है तुझे.. ?"
"अरे प्यारे ढूँढने से तो खुदा भी मिल जाता है.. वो क्वींस रोड पे फैक्ट्री है ना कपड़ो की.. वहां काम करने वाली लडकिया अक्सर रात को लिफ्ट ले ही लेती है.. बस अपना काम बन जाता है.. चल मैं निकलता हु ऑफिस के लिए आज की स्टोरी रात को आकर बताऊंगा.. "
"बाय!"
"बाय!"
-----------
कहानी का मुख्य पात्र आज ऑफिस में देर तक रुका था.. घडी साढे दस बजा चुकी थी और वो सोच रहा था कि कही आज सारी लडकिया निकल नहीं जाए.. इतने में बॉस ने आकर उससे जाने के लिए कहा.. वो फ़ौरन हेलमेट उठाया और तेज़ कदमो से सीढिया उतर कर पार्किंग की ओर चला गया.. उसे जल्दी थी.. वैसे तो उसके ऑफिस से क्वींस रोड की दूरी करीब पांच दस मिनट थी पर वो और जल्दी जाना चाहता था.. फैक्ट्री के सामने वाले बस स्टैंड को खाली देखकर वो मायूस हो चुका था.. उसने रुक कर चारो तरफ नज़र दौडाई पर कोई लड़की नज़र नहीं आयी.. वो किक मारकर आगे बढ़ने लगा.. इतने में उसकी नज़र रोड लाईट के सहारे खडी लड़की पर पड़ी.. उसकी आँखों में एक चमक आ गयी.. वो बिना समय गवाए उस लड़की तक पहुंचा..
सफ़ेद सलवार कमीज और लाल दुपट्टा पहने खडी वो लड़की देखने में बहुत सुन्दर थी.. आँखों में गहरा काजल और माथे पर बड़ी लाल बिंदी.. कानो में बड़ी बड़ी बालिया और दोनों हाथो में एक दर्जन से भी ज्यादा चुडिया.. ऐसी लड़की उसने यहाँ पहले कभी नहीं देखी थी.. वो उसे देखता ही रह गया.. "हेल्लो" वो लड़की बोली.. सकपकाकर उसने बोला "जी..? इतनी रात गए यहाँ क्या कर रही है आप..?"
"मुझे लिंक रोड जाना है.. बहुत देर से वेट कर रही हूँ.. ना कोई बस मिल रही है ना ऑटो.. फिर रात भी काफी हो रही है.. "
"नो प्रोब्लम बैठो मैं छोड़ देता हूँ.. "
"लेकिन रात काफी हो गयी है और... "
"अरे डरिये मत मैं कुछ नहीं करूँगा.. वैसे भी मुझे लिंक रोड ही जाना है वहां से अपनी सिस्टर को लेकर घर जाऊँगा मैं.. "
"नहीं वो बात नहीं है.. पर "
"अरे मैडम आप यकीन करिए.. कुछ नहीं होगा वैसे भी यहाँ अकेले खड़े रहने में खतरा ज्यादा है.. और इस इलाके में सिर्फ फेक्ट्रिया है ज्यादा ट्रैफिक रहता नहीं है पता नहीं आपको ऑटो मिले ना मिले.. "
लड़की ने थोडा सोचकर हाँ कर दी.. वो मन ही मन खुश हो गया.. और जानबूझकर वो थोडा पीछे बैठ गया सीट पर जगह काफी कम बची थी.. लड़की सहमी हुई सी बैठ गयी.. अब वो मन ही मन खुश था.. गाडी बिलकुल धीरे धीरे चला रहा था.. साथ साथ लडकियों के रात को अकेले ना घूमने पर लेक्चर भी सुना रहा था.. वो लड़की चुपचाप बैठी सुन रही थी.. इस रस्ते को वो अच्छी तरह जानता था.. उसे पता था आगे स्पीड ब्रेकर आने वाला है.. उसने बाईक की रफ़्तार थोडी बढा दी... और स्पीड ब्रेकर के बिलकुल नजदीक जाकर जोर से ब्रेक लगाया.. अचानक झटका लगा.. लड़की का हाथ उसके कंधे पर आ गया.. वो रोमांचित हो उठा..
"आप ठीक तो है ना..! वो दरअसल स्पीड ब्रेकर नज़र नहीं आया था.. " वो बोला
"कोई बात नहीं.." लड़की धीरे से बोली..
उसने फिर से बाईक की रफ़्तार बढा ली थी.. और अपनी बाईक का रियर मिरर इस तरह से सेट करने लगा कि जिसमे पीछे बैठी लड़की का चेहरा साफ़ नज़र आये.. उसने देखा लड़की के चेहरे पर मुस्कान थी.. वो खुश हो गया. एक गढ्ढे के पास फिर से उसने ब्रेक लगाया.. और मिरर में देखा लड़की मुस्कुरा रही थी.. अब तो उसके मन की मुराद पुरी हो गयी थी.. वो पुरे रास्ते ब्रेक लगाता और मिरर में लड़की को मुस्कुराते हुए देखता.. मिरर में मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर वो खुश होता जा रहा था.. इतने में लड़की बोली..
"बस यही रोंक दीजिये.. "
"लेकिन लिंक रोड तो वो सामने की तरफ है.. "
"नहीं बस मुझे यही तक आना था वो पिछली गली में मेरा घर है मैं चली जाउंगी "
"तो मैं आपको घर तक छोड़ देता हूँ.. "
"नहीं नहीं उसकी कोई जरुरत नहीं.. आपने मेरी इतनी हेल्प की इसके लिए थैंक्स "
"अरे इसमें थैंक्स की क्या बात है... "
"अच्छा तो मैं चलती हु.. " और वो पलटकर जाने लगी..
"ज़रा सुनिए.. " वो बोला....... "आप फिर कब मिलेगी वहा.. "
"मिल जाउंगी.. चिंता मत करिए इतनी आसानी से आपका पीछा नहीं छोडूंगी.." वो हँसते हुए बोली..
"हाहाहा.. ज़रूर..!" वो भी हंस दिया और बाईक को स्टार्ट करके वापस जाने लगा..
रास्ते भर वो बार बार उस लड़की को याद कर रहा था.. कैसे ब्रेक लगते ही वो लड़की उससे चिपक सी जाती थी.. और जब उसने कंधे पर हाथ रखा था एक सरसराहट फ़ैल गयी थी जिस्म में.. इतनी खूबसूरत लड़की उसे पहले कभी नहीं मिली थी.. यही सोचते सोचते उसकी नज़र रियर मिरर पर पड़ी.. उसने देखा वही लड़की उसमे मुस्कुरा रही थी.. उसने अचानक ब्रेक लगाये.. पीछे देखा तो कोई नहीं था.. उसने मिरर में देखा तो वो लड़की नहीं थी.. वो मुस्कुराया.. ज़रूर कोई वहम होगा..
उसने गाडी स्टार्ट की थोडा आगे ही बढा था कि उसे फिर से आईने में वो नज़र आयी.. ठीक वैसे ही मुस्कुराते हुए.. उसने घबराकर गाडी रोकी और गौर से देखा तो वो लड़की नहीं थी.. उसने अपनी पीछे की सीट पर हाथ फिराकर देखा कुछ भी नहीं था.. सुनसान सड़क पर वो अकेला खड़ा था.. अब वो घबरा रहा था.. उसने बाईक स्टार्ट की और चलने लगा.. थोडी दूरी पर जाके उसने जैसे ही मिरर में देखा.. वो लड़की मुस्कुरा रही थी..
अब तो वो बुरी तरह से डर गया था.. वो समझ नहीं पाया ये क्या हो रहा है.. उसने बाईक को वापस उलटी तरफ घुमाया.. और तेज़ी से उसी तरफ चल पड़ा.. जहाँ से वो आया था.. पुरे रास्ते भर उसे मिरर में वो लड़की मुस्कुराते हुए नज़र आ रही थी.. उसकी आँखों से लगातार आंसु बह रहे थे.. वो घबरा चुका था... थोडी ही देर में वो फिर से क्वींस रोड पर आ चुका था.. उसकी साँसे बढ़ी हुई थी.. उसने वहा आकर जैसे ही गाडी रोकी उसका कलेजा काँप उठा.. उसका शरीर सुन्न हो गया..पूरा बदन पसीने में भीग उठा.. उसकी आँखों से खून बहने लगा.. और वो भक्क से जमीन पर गिर पड़ा... जिस लड़की को वो लिंक रोड पर छोड़ आया था वो अभी सड़क के दूसरी तरफ उसी रोड लाईट के सहारे खडी थी जहाँ से उसने लिफ्ट दी थी...
जय हो महाराज.... हर जगह वो ही दिखाई दे रही थी...
ReplyDeleteuuuuffff... itna darawana experience..
ReplyDeletesach to nahin tha naaaa???
मजेदार.
ReplyDeleteye Horror story kyun likh rahe hain saahab??
ReplyDeleteकुश की कलम का नया ऎंगल . मेरे तो रोंगटे खडे हो गये
ReplyDelete:)
ReplyDeleteje baat !!
बाइक नही है मेरे पास पर स्कूटर है, काम चला लेंगे. वैसे यह क्विंस रोड किधर है कुश बाबु, अपने को भूतनी भी चलेगी. नो प्रोब्लम.
ReplyDeleteGazab kaushal hai katha kathan ka!
ReplyDeleteउस लडके का पता भेज दो.... हम ने कभी खुब सुरत चुडेल नही देखी, इसी बहाने देख लेगे:)
ReplyDeleteअरे बाबा रे !! कुश जी यह कहाँ किसके चक्कर में पड़ गए आप ...सच है या ..........यह किस तरह की सोच में डूबे हैं आज कल जो इस तरह की कहानियाँ आपकी कलम से उतर रही है :)
ReplyDeleteओफ्फ ... ये भुतहा एंगल कहाँ से आ गया आपकी लाइफ में.... ? मुझे कोई क्यूँ नही मिली क्वींस रोड पर आज तक ?
ReplyDeleteआज रात की स्टोरी कब सुनाओगे ?
kush ji rochak tana bana buna hai aapne..kuch hatke karne ke liye badhai bhi :)
ReplyDeleteकल्पना के घोड़े खूब दौड़ाते हैं है आप...।
ReplyDeleteअंत आते-आते आपने डरा ही दिया। शुक्र है कि यह सही नहीं है।
@रंजन भाईसाहब
ReplyDeleteवैसे पोस्ट तो मेरी भी व्यस्को के लिए ही है.. पर आपकी तरह मैंने कुछ सेंसर नहीं किया..
@शिखा
नहीं सच नहीं था.. सच होता तो मैं लिखने के लिए बचता क्या :)
@सुब्रह्मण्यम साहब
मज़ा ही नहीं आये तो फिर मज़ा कैसा.. ? :)
@प्रियेश जनाब
कभी कभी जोनर चेंज भी होना चाहिए.. सोचा कुछ नया ट्राय करता है इस बार
@अनिल कान्त
:) थैंक्स है भीडू
@पंकज भाईसाहब
ReplyDeleteक्वींस रोड़ तो जयपुर में है आ जाइये.. मिलवा देते है
@क्षमा जी
शुक्रिया.. आपकी पाठकीय नज़र है ये तो.. सोचालय पर आपके कमेंट्स मुझे खास तौर पर पसंद आते है
@भाटिया साहब
जर्मनी में कहा चुड़ैले होंगी.. उसके लिए तो आपको यही आना पड़ेगा.. :)
@रंजू जी
अभी डूबे कहा है.. ये तो सतही कहानिया है.. किनारे पे बैठके लिखी हुई.. :)
@सैयद भाई
आपको कहा मिलेगी आप तो खुद लिफ्ट लेते हुए मिलते हो क्वींस रोड़ पे..
@पारुल
एक्चुली..! मैं हट के ही करना चाह रहा था.. आपने नोटिस किया मतलब कुछ बट बनी.. थैंक्स
@धीरू भाईसाहब
ReplyDeleteजब ये थोट आया था तब रोंगटे तो मेरे भी खड़े हो गए थे.. दरअसल ये थोट रात को बारह बजे के आस पास खाली क्वींस रोड़ जो यहाँ जयपुर में ही है से गुज़रते हुए आया.. काफी टाईम से लिखने की सोच रहा था..
@सिद्दार्थ भाईसाहब
शुक्र ही है कि सच नहीं.. कभी कभार मूड तो चेंज होना ही चाहिए ना..
अगली बार जयपुर आना होगा तो क्विंस रोड जरूर जाएंगे रात में. आपसे मुलाकात तो होती रहेगी, भूतनियों को हम जरा प्रफेरेंस देंगे
ReplyDeleteकुश भाई इस बार आपकी कल्पना की उड़ान ने आखिर में जोर झटका जोर से दिया।
ReplyDeletewow!!!!!!amazing
ReplyDeleteशुक्र है, अभी तो उसने मोमबत्ती ले कर गाना नहीं गाया
ReplyDeleteज़िंदगी के चौबीस हसीन साल जयपुर की क्वींस रोड पर मोटर साईकिल चलाते गुज़ारे हैं जनाब लेकिन ऐसा दिलचस्प वाकया हमारे साथ कभी नहीं हुआ...तब क्वींस रोड आज की तरह रोशन और चौड़ी नहीं हुआ करती थी...अँधेरी और संकरी होती थी...किस्मत की बात है...वैसे अब आप लगता है रामसे बंधुओं के लिए कोई धाँसू स्क्रिप्ट लिखने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं...आगाज़ तो अच्छा है अंजाम खुदा जाने...:))
ReplyDeleteनीरज
बेचारे को वहीं सजा मिल गयी। कहानी में त्वरित न्याय का तत्व रोचक लगा।
ReplyDeleteवाह साब... दोस्त के नाम पर लिख दिए... कही आप ही तो नहीं थे बॉस.... :-)
ReplyDeleteरामू की पिक्चर का नाना पाटेकर याद आया ...वैसे रंगीला कम्पनी ओर सत्या के बाद रामू याद नहीं आते ..... .अच्छा है क्वीन अरे नहीं क्वींस रोड के बहाने कुछ स्क्रीन प्ले बाहर तो आया .वरना लगता था मोटर साइकिल से यूं ही ब्लोग्स से गुजर जाते हो...लिफ्ट के लिए भी नहीं पूछते .... ...
ReplyDelete@नीरज जी ने चौबीस के आगे स्पेशली हसीन जोड़ा है .....कृपया विस्तार से व्याख्या की जाये ....वैसे अब जमाना बदल गया है अब लोग अँधेरी ओर संकरी सड़के ढूंढते है .....
शुक्र है कि लड़की की मृतात्मा थी
ReplyDelete-
-
सजीव लड़की ज्यादा तकलीफदेह होती है
समझ गए बबुवा.. आज ही अपने बाइक का साइड मिरर हटा देता हूँ.. ना रहेगा बांस, ना बाजेगी बांसुरी.. :)
ReplyDeleteलगा कि जैसे होनी-अनहोनी देख रहा होऊं भाई.. खैर अच्छा हुआ ऐसे कमीनों के साथ यही होना चाहिए था..
ReplyDeleteRamsay Brother ki film ke liye perfect story hai :)
ReplyDelete@पंकज भाईसाहब अगेन
ReplyDeleteपहले जयपुर को तो परेफरेंस दीजिये.. तब ना जाइएगा भूतनी से मिलने..
@छौक्कर साहब
झटका जोर का तो नहीं था ना... :)
@सारिका जी
धन्यवाद्.. ऐसे ही किसी एक्सप्रेशन का वेट कर रहा था.. जिसमे अमेजिंग तो मिले कम से कम.. :) थैंक्स
@गगन शर्मा जी
अब मोमबत्तिया वैसे भी कौन जलाता है.. सब मोबाईल की लाईट जला लेते है..
@नीरज जी
हसीन सालो वाले मुद्दों पर टोर्च फेंकी ही जाए.. वैसे इस कहानी का थोट क्वींस रोड़ से जाते हुए ही आया था.. इसीलिए यही नाम दिया.. रामसे के लिए अगर लिख रहा होता स्क्रिप्ट तो बाहर बारिश हो रही होती.. और हिरोइन भीगी हुई होती..
@प्रवीण जी
ReplyDeleteत्वरित न्याय.. यही तो वो शब्द है जो मैं हाईलाईट करना चाह रहा था.. आपकी पारखी नज़र से बच नहीं पाया.. मान गए..!
@आशीष भाई
मैं होता तो यहाँ मिलता क्या.. :)
@डा. साहब
वैसे मुझे कौन के रामू भी इम्प्रेस करते है.. नीरज जी से जवाब मांग लिया गया है... क्या पता उनके किस्सों पर भी कुछ पोस्ट बन जाये.. मैं तो लिफ्ट दे भी देता.. क्या करू पेट्रोल ख़त्म हो गया था..
@प्रकाश गोविन्द जी
ये हुआ ना कमेन्ट.. यकीन मानिए इस कमेन्ट ने तबियत हरी कर दी..
@पीडिया
मतलब सुधरोगे नहीं...
@दीपक भाई..
जैसा को तैसा भी तो मिलना चाहिए.. होनी अनहोनी कभी देखा नहीं इसलिए कुछ कह नहीं सकता.. :)
@शिखा जी
तो क्या कहती है आप..? भेज दु रामसे ब्रदर्स को.. वैसे ऊपर नीरज जी से रामसे वाली बात तो कह ही चुका हूँ..
गफलत पर गफलत ..... डर कर लोग घर जाते है ... वापिस क्वींस रोड नहीं कुश साब ! संपादन की जरुरत है.. पर किस्सागोई का प्रयास अच्छा है|
ReplyDeleteपोस्टर बहुत मौजू और आकर्षक है, आपने बनाया है? पोस्टर के लिए बधाई!
ReplyDeleteवाह भाई
ReplyDeleteमजा आ गया
हम तो रोज रात को आते जाते हैं
कभी कोई मिली नहीं
क्या कुश ,इतने दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया भी तो इतनी लचर कहानी ...मैं अंत की सोच कुछ लगाए बैठा था ,होना कुछ और चाहिए था और कर दिया आपने एकदम से क्लीश....ऐसी उम्मीद तो ना थी ...खैर कथानक प्रवाह और बांधे रखने की क्षमता ,औत्सुक्य ने कहानी में जान डाले रखी है ..नेक्स्ट टाईम मगर ऐसा कोई भी थीम नहीं !
ReplyDeleteअबे यार ऐसी नज़रों से ओझल ना होने वाली हमें तो ना मिली आजतक ! :) ऐसी क्या... आज तक किसी ने लिफ्ट ही नहीं माँगा... धुंध कर लिफ्ट देने का कभी ट्राई नहीं किया... अफ़सोस ! चलो कभी आजमाएंगे :)
ReplyDelete;-)
ReplyDeleteकुश भाई, महाशय अरविन्द मिश्र से मैं भी सहमत हूँ... कहानी सुलझती नहीं बल्कि और भी उलझती हुई खत्म हो रही है पर हो सकता है आपका यही मकसद रहा हो या फिर नेक्स्ट पार्ट का इंतज़ार...
ReplyDelete@प्रेम साहब
ReplyDeleteपर्सनल एक्सपीरियंस से कह सकता हूँ... जब भी हम कुछ अजीब होता देखते है तो उसकी वजह जानना चाहते है.. होरर फिल्मो में भी तो आवाज़ सुनकर किरदार रात को भी निकल लेते है.. :)
और हाँ पोस्टर मैंने ही बनाया है.. आपकी बधाई ले रहा हूँ,, बाइज्जत!
@राजीव भाई
इस बार गौर करियेगा.. शायद कोई मिल जाये
@अरविन्द जी
आप कह रहे है तो यक़ीनन कमी रही होगी.. आफ्टर ऑल ये जोनर नया ही तो था मेरे लिए.. हाथ आजमाने जैसा कुछ लगा.. लेकिन नो एक्सक्यूज, अगली बार बेहतर करने की कोशिश करूँगा.. कथानक प्रवाह और औत्सुक्य आपको पसंद आया.. ये जानकार अच्छा लगा.. दरअसल मैं चाह भी कुछ ऐसा ही रहा था..
@भाई अभिषेक
नहीं मिली तुम्हे कभी.. ? कहानी के शुरुआत की लाईन्स पढ़ी नहीं लगता है तुमने.. ढूँढने से तो खुदा भी मिल जाता है.. :)
@शाह नवाज़ भाईजान
आपकी स्माईली संभाल कर रख रहे है.. शुक्रिया
@सागर जानी
तुम सुलझी कहानी चाहते हो तो.. तुम्हारे लिए वैसा ही कुछ लिख डालेंगे.. हुकुम तो करो
तो किया हुकुम.
ReplyDeleteएक और आदेश "कृपया रेगुलर रहें"
जयपुर में यह क्वींस रोड किधर है? नयी बनी है क्या? जब जयपुर छोडा था तब से आज तक बहुत विस्तार हो गया है। वैसे जयपुर में ऐसे किस्से कहानियां बहुत चलते हैं। लेकिन आपने बहुत खूबसूरती से लिखी है कहानी। बधाई।
ReplyDeleteइस कहानी से ये साबित हुआ कि चुड़ैल भी प्यार करती हैं :)
ReplyDeleteबहुत दिन बाद पढ़ने को मिला यहां कुछ अच्छा लिखा है आपने.
ReplyDeletekush at queens road.............
ReplyDeletevery poor and cheap.
ReplyDeletecheap and this type of vulgar content should not be written in hondi. keep this type of stories in your english vulgar blogs
ReplyDeleteअरे कुश भाई, रामसे ब्रदर्स की पिक्चर ज्यादा देख रहे है क्या इन दिनों ??? रोज़ क्वींस रोड से ही आता जाता हूँ. वोह भी रात 11-12 बजे अगर मुझे मिल गयी तो !!!!!!!! अब तो रास्ता ही बदलना पड़ेगा :)
ReplyDelete
ReplyDeleteबेहतरीन !
पर जाने क्यों मेरा मन घबड़ा रहा है..,
मैं कल ही फटी लँगोटी वाले असली फोकट बिरहम भरमचारी बाबा से एक गारँटीड शाही रक्षा यँत्र भेज रहा हूँ ।
अगले ज़ुमेरात को अपने बाँयीं बाँह में सुबह नौ बज कर गपतालिस मिन्ट पर बाँध लेना और किसी काने काले कुत्ते को कोई काली चीज खिला देना । यह ऎसी लड़कियों और ऎसे सुर्रियों से तुम्हारी रक्षा करता रहेगा ।
@ ज़नाब सुर्री साहब
आप कौन ज़मात पास हैं,
आपका कोनो पुरफाइल नहीं हैं, इसलिये डायरेक्ट पूछ रिया हूँ ।
कृपया हिज़्ज़े सुधारें
contant = Content
hondi = Hindi
आप शायद यही लिखना चाहते थे ना ?
वैसे इस कहनिया का असर तो आप पर साफ दिख रहा है
cheap contant......................................................... सभी लोग देख रहे हैं कि आपका किस बुरी तरह काँप रहा है ।
चिराँध न फैलायें, वरना ईश्वर भी आपको अपने पास न फटकने देगा ।
ReplyDeleteयह तो रह ही गया था :
क्यों आप जैसे लोग हर ब्लॉग पर पाखाना करके मॉडरेशन का खन्दक खुदवाते हो ?
अपनी पहचान के साथ कोई स्वस्थ बहस करो, कमियाँ बताओ, सुझाव दो... यह क्या ?
@अजित गुप्ता जी
ReplyDeleteमिलट्री एरिया से अजमेर रोड की तरफ जाने वाली रोड़ ही क्वींस रोड़ है... दोबारा आइये..दिखायेंगे आपको.. :)
@इन्द्रनील जी
प्रेम ही तो है जो शाश्वत है.. :)
@पश्यंती मदाम
हाँ दिन तो वाकई बहुत हो गए थे,. पर आपने याद रखा इसके लिए थैंक्स
@वर्षा जी
मैं तो रोज़ ही इस रोड़ से दिन में दो बार ऑफिस के लिए निकलता ही हूँ.. तो इस हिसाब से आपने सही कहा.. :)
@सुरसुरी डियर
डार्लिंग टेक अ चिल पिल
@अमित भाई
इस बार ज़रा बचकर जाइएगा.. :)
@गुरुवर
ये सब करना पड़ेगा क्या.. ? हनुमान चालीसा से काम नहीं चलेगा क्या.. ?
गुरुवर आपकी दूसरी टिपण्णी ज्यादा प्रभावशाली लगी..
झटकेदार पोस्ट!
ReplyDeleteसबके कमेंट के जबाब इत्ते सलीके से दे रहो हो। क्या व्यवस्थित होने की तारीख आ रही है पास।
नियमित लिखना चाहिये कुश को सागर की इस बात से सहमत।
अरे बाप रे ! रोंगटे खड़े हो गए... मुझे हॉरर फ़िल्में बहुत पसंद हैं... और कहानियाँ भी. कहानी अच्छी लगी. लड़के को मारना नहीं चाहिए था... नहीं, चलो अच्छा है... कुछ ज्यादा ही बदमाशी कर रहा था. सज़ा मिल गयी.
ReplyDeleteऔर तुम लड़का लोग सुधरोगे नहीं...
बाबू.. झन्नाटा दिये हो एकदम!
ReplyDeleteवैसे तुम्हारा काउन्टर क्या कहता है कितने स्पीडब्रेकर है क्वीन्स रोड पर ;)
:)
ReplyDeleteतुम्हें भी शौक है...रियर मिरर सेट करने का..?
बढ़िया कहानी लिखी. बहुत बढ़िया. जानर चेंज करने वाली बात समझ में आई. मैं भी चेंज करके एक कहानी लिखता हूँ.
ReplyDelete@अनूप जी
ReplyDeleteलोग तो तारीख आने के बाद व्यवस्थित होते है.. सागर ने बात कब कि वो तो हुकुम चढ़ाके गया है..
@अराधना
होरर कहानिया अच्छी लगती है.. ! अपनी बिरादरी की हो.. और हमने लड़के को मारा कब..नीचे ही तो गिराया है.. ये तो पाठक की सोच पर निर्भर है मारा समझे या गिरा.. और वैसे अब सुधरने का नहीं बिगड़ने का जमाना आ गया है.. :)
@पंकज
झन्नाटा देने के लिए ही तो लिखा बांगड़ू.. और हाँ हकीकत ये है कि पूरी क्वींस रोड़ पर मात्र एक स्पीड ब्रेकर है.. जयपुर शहर की चुनिन्दा खूबसूरत और हरीभरी सडको में से एक है ये.. :)
@मनु भाई
हामरी बाईक का तो मिरर ही कोई चुरा ले गया :)
@मिसिर जी
आप तो बस लिख दीजिये..कहानी अपने आप बन जायेगी..
Content is poor but idea is good. To show maximum number of comments do comment yourself. Bravo.......
ReplyDelete@ डा० अमर कुमार
Thanks to understand my real feelings. When the story thread is weak, how can a sensible person appreciate it?
@Suri - Does it matter, if you have thousands of comments in a single post? For me, it doesn't.
ReplyDeleteअरे यार तुम हारर शो के लिए स्क्रिप्ट कब से लिखने लगे। मैं तो इतने प्यार से इंतजार कर रही थी कि कब तुम्हारे नायक को प्रेमिका मिलेगी तुमने तो भूतनी से मिलना दिया।
ReplyDelete...वैसे ये क्वींस रोड के चक्कर लगाने थोड़े कम करो और काम पर ध्यान दो। .. औक क्वींस रोड पर लड़कियां रात दस बजे के बाद नहीं शाम को पांच से आठ के बीच मिलती हैं इंफर्मेशन अपडेट करो भई :-)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअरे यार खूबसूरत चुड़ैलें हमेशा लिफ्ट ही क्यों मांगती हैं। चलना हो तो मोटरसाइकल के साथ साथ नहीं उड़ सकतीं। वैसे मैं जयपुर नहीं गया हूं कभी। आता हूं जल्दी। हो सकता रात में कभी ऑफिस से एक बजे रात में निकलने के बाद जयपुर का रास्ता पकड़ लूं। कई दिनों से विचार बना हुआ है। सुना है कि राह में सुनसान रास्तों पर भी चुड़ैल मिल जाती है। दिल्ली में तो जिंदा चुड़ैलें और भूत मिले हैं। वैसे दिल्ली में कभी किंग रोड था जो अब राजपथ कहलाता है। उस पर तो कई बार आवारगी की है। भूत नहीं मिला। लगता है अब क्वींस रोड पर अवारगी करने का समय है। अब इसके लिए जयपुर तो आना ही पड़ेगा। पर अपन मोटरसाईकिल नहीं चलाते। पहले ड्राइवर रखा हुआ था। अब जयपुर में कहां मिलेगा ड्राइवर रात में मोटरसाईकल पर घुमाने के लिए। यही मुसीबत है।
ReplyDeleteभैया पोस्ट को ही ’हिच’काअकियन टच दे दिये..हम तो रात के बारह बजे के सूनसान और रोमांटिक माहौल मे किसी ’उस’ टाइप के सीन से अपना पैसा वसूल होने की खातिर टकटकी लगा कर बैठे थे..मगर डाइरेक्टर ने चर्का दे दिया..बस पोस्टर देख कर धोखा खा गये..खैर कभी-कभी बिना वजह डरना भी सेहत के लिये लाभदायी होता है..वैसे समझ मे आया कि रात मे आप और आपक मोटरसाइकल किधर बिजी रहती है...वैसे मजे की एक बात है कि हमारे एक मामाजी भी अपना ऐसा ही एक अनुभव क्लेम करते है डिट्टो..मतलब रोमांटिक पार्ट हटा कर..हकीकत जो भी हो मगर सुनने मे बड़ा मजा आता है..आपको भी सुनाऊंगा कभी जो मौका मिला तो..अमावस की रात को :-)
ReplyDeleteहा भाई रजवाडो का जमाना तो गया..क्वींस रोड पर अब ऐसी ही क्वींन मिलेगी..
ReplyDeleteक्यों डरा रहे हो बेचारों को... बेचारियाँ खड़ी रह जायेगी अकेली हमेशा के लिए .... :-)
ReplyDeleteकल ही रामसे भाईसाब ने हमसे तुम्हारा फोन नंबर लिया है....बात हो गयी ?
ReplyDeletekush bhai .. shuru kiya to accha laga , lekin jaise hi ant aaya to main dar gaya , kyonki abhi abhi DVD par ek film dekhi ..an american hauting ... kush bhai main to kasam khaata hoon ki ab kabhi jaipur nahi aaunga aur na hi kabhi kisi ko lift dene ki koshish karunga ... huhuhuhuuhuhuhuh.... baap re.. aaj hi soch raha tha , ki saari jawani kat gayi kisi se flirt kiye hue , kisi ko lift diye hue aur aaj hi ye kahani padhi ... baap re.. meri aakhir tamanna bhi adhuri rah gayi ..kush sirf sirf tumhari wajah se .. kuch din baad ye nahi likh sakte the.............
ReplyDeletewaise kudos for an awsome story ..
एक अजीब-सी सिहरन दौड़ गयी..ज्यों-ज्यों क्लाइमेक्स की तरफ बढ़ता गया।
ReplyDeleteइसक सिक्वेल भी लिखा जाना है क्या?
हमारे यहाँ भी एक सड़क के लिये ऐसी ही कथा प्रचलित है ।
ReplyDeleteDost....A Girl at quines road-2, likh hi Daalo.
ReplyDeletekahani badiya lagi.
अरे कुश ........... मजा आ गया. मनोरंजक पोस्ट. एक्के साथ ये आइडिया RGV,RAMSEY,KANTI SHAH,JEETU CHAWDA OR विक्रम भट्ट्वा को भेज ( बेच) दो.
ReplyDeleteसत्य
गजब आइडिया । स्टोरी का अन्त दुखद लगा । मगर आप की प्रस्तुती और संवाद का अन्दाज अलग है । मजा आया । धन्यवाद । अगर आप को मिस्टर योगी नाम का धारावाहिक याद है तो ऐसा कुछ प्रयोग कैसा रहेगा । लिखते लिखते कथा से पात्र बाहर आए और राइटर को सबक सिखाए ।
ReplyDeletekafi pehle suni thi ek kahani "DIDI" wo yaad aa gayi!
ReplyDeletetum bhoot mein believe karte ho :-0
ReplyDelete:-( raat mein dara diya
dhundhne se khuda bhi mil jata hai...........par saja acchi mili, kahani acchi lagi.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ ....अच्छी तरह बुना है ताना -बाना ...बढ़िया लगी कहानी ...
ReplyDelete