पर रेट्रो जमाना अभी भी अन्दर ही अन्दर किसी कोने में दुबका हुआ पड़ा है.. एक चवन्नी में दुनिया जहान ढूंढ लेने वाली उस उम्र..... उस खालिस उम्र में बीती हर एक बात रेट्रो हो चुकी है... ठीक उस उम्र में जब बेफिक्री का लिहाफ ओढ़े एक टांग पे टांग टिकाये घंटो कही पड़े रहते थे.. और दुनिया को बदलने की ख्वाहिशे जेब से बाहर सरक रही होती.. ईमान तब स्कूल के बस्ते में साबुत पड़ा मिलता था.. और दुनियादारी नाइजीरिया के किसी सुदूरवर्ती इलाके में रही होगी शायद..
कागज़ तक पर पांव पड़ने पर विधा माता से माफ़ी माँगना और टिश्यु पेपर के खास पलो में इस्तेमाल के बीच की दुनिया.. प्रलय आने से पहले ही शायद दो भागो में बँट चुकी है.. नागराज.. फेंटम.. बांकेलाल.. हवालदार बहादुर.. एक उम्र इन लोगो के साथ भी गुज़र डाली जो साले दुनिया में ही कही नहीं है.. दिवाली के बाद जो पैसे मिलते थे.. उससे बाकी कई दिनों नागराज से मुलाक़ात पक्की हो जाती थी.. अठन्नी में किराये पर एक कोमिक्स आती थी.. जिसे आठ लोग पढ़ते थे और अठन्नी बँट जाती..
खाना खाने के लिए मम्मी की आवाज़े.. या दूध का गिलास देखकर पिकासो की पेंटिंग सा मुंह.. बचपन की उन तमाम कीमती चीजों से भरी हुई जेबे.. जिन्हें बेचने पर बाज़ार में दो कौड़ी भी ना मिले.. खाली सडको पर चक्कों को लकड़ी से चलाते हुए पास से गुजरती हुई कारो को देखकर आँखों में सपने ठूंस लेना.. रेल की पटरियों पर सिक्के रखना.. और सिक्को को सोने की अशर्फी में बदल जाने के लल्लू ख्याल... सड़क पर जमा पानी में जानबूझ के पांव रखना.. एक छक्के में कोने वाली आंटी की बालकनी की लाईट फोड़कर भागना.. बिना हाथ धोये गरमा गरम जलेबियों पर टूट पड़ना.. और दोस्त की आवाज़ पे पंखा टी वी सब चालु छोड़ जाना..
भगवान चाहे मिले ना मिले.. पर साईकिल का ताला खुला मिलना... कैंची साईकिल चलाकर मोहल्ला नाप लेना.. शाम स्टाइल मारने के लिए बैडमिन्टन खेलना और फिर कॉक को 'उनके' घर में फेंकना.. फिर लेने जाना.. वो कॉक भी अगर जिन्दा हुई तो कही रेट्रो मोड़ में पड़ी मिलेंगी.. सीडी और आईपॉडस का तब जन्म भी नहीं हुआ था.. उलझती कैसेटो की रील को घुमा घुमाकर टेप रिकोर्डस में चलाना.. साईड 'ए' वाली ज़िन्दगी भी क्या जिंदगी थी.... अब लगता है किसी ने पलट के ज़िन्दगी की साईड 'बी' लगा दी है..
और जो कुछ युही पड़ा मिला..
दूरदर्शन का रुकावट के लिए खेद है.. या फिर गुमशुदा की तलाश.. सिबाका गीत माला.. या मिले सुर मेरा तुम्हारा.. हमदर्द का टोनिक सिंकारा.. केम्पा कोला.. हिंदी फीचर फिल्म का शेष भाग.. लेम्रेडा स्कूटर.. बोल्बेटम पैंट... कानो पर आते हुए बाल.. और लास्ट में आर डी बर्मन का........वकाऊ
स्पेशल थैंक्स टू मेजर गौतम.... जिनकी पोस्ट ने आज कुछ लिखने को मजबूर किया.. वैसे ये तो अपना रेट्रो मोड़ था.. कुछ आपका भी तो होगा.. ?
वाह कुश जी बेहतरीन अभिव्यक्ति .... आभार
ReplyDeleteवाह सही रेट्रो मोड़ है
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद समय मिला है ब्लोगिंग के लिए
ये लेख पढ़ना बहुत अच्छा लगा
आशा है तुम सकुशल हो, नव वर्ष मंगलमय हो
बढियां,नव वर्ष मंगलमय हो.
ReplyDeleteकोई साइड सी भी होती है क्या? अपनी तो वही चल रही है, या शायद उस पर ही टेप अटक गया है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ज़िंदगी के किस मोड़ की बात कर दी मियाँ...
ReplyDeleteअब तो इस साइड-बी की ज़िंदगी में हम खुद उलझ से गये हैं...
न अब एक पैर पर दूसरा पैर रखने का समय मिलता है और न वो नज़रें कहीं मिलती
विद्याकसम,
ReplyDeletenice !
purani jeans or gitar गाना याद आ गया और अपनी साइड A की जिन्दगी भी. कमाल का लिखा है .आपकी कलम में जादू है
ReplyDeleteये तो बिलकुल पुरानी हिंदी फिल्मों की तरह फ्लैश बैक में ले गए आप.... ..
ReplyDelete....और हाँ... वो भी याद आता है, शुक्रवार या शायद शनिवार को ४:४५ पर ट्यूशन से जल्दी जल्दी भाग कर घर आना ताकि हिंदी फीचर फिल्म छूट ना जाए //
कोई लौटा दे मेरे बिते हुए दिन
ReplyDeleteबिते हुए दिन वो प्यारे पल छिन :)
कुश साहब.. कितने पन्ने पलट दिए.. कुछ मुझे भी पड़ा मिला है.. जंगल जंगल बात चली है पता चला है.. चड्डी पहन के फूल खिला है.. लक्स सुपरहिट फिल्म के इस भाग के प्रायोजक हैं.. चंद्रकांता की कहानी.. ये माया है पुरानी.. और जाने क्या क्या.. इस कलर टीवी से अच्छा वो शटर वाला ब्लैक एंड वाईट टीवी हुआ करता था तब..
ReplyDeleteबरात घुमा कर अब आये हो लग रह था नामकरण कर्वाने ही आओगे . खैर साइड ऎ मे हमेशा हिट गाने ही होते है
ReplyDeleteवाह कुश भाई. बहुत दिन के बाद आये, हम तो सोच रहे थे की आप ही शादी करने चले गए हैं.
ReplyDeleteसाइड A वाली ज़िन्दगी सच में अच्छी थी. जो अब सिर्फ दिमाग के किसी कोने में सांस ले रहा है!
बहुत सुंदर लगी आप की यह बाते, बहुत कुछ याद दिला दिया, लेकिन हमारी केसेड मै ऎ ओर बी दोनो तरफ़ हिट गीत ही चलते थे, य़ानि दो साईडे पसंद है जी
ReplyDeleteध्रुव की तौहीन...सुपर कमांडो ध्रुव की ऐसी तौहीन!!!
ReplyDeleteहिमाकत है ये हिमाकत!!! एडिट किया जाय, पोस्ट अभी-के-अभी एडीट किया जाय...नागराज के बाद अपने ध्रुव का जिक्र आना तो बनता है।
क्या खूब प्रस्तुति है !!
ReplyDelete
ReplyDeleteऒऎ पाप्पे, अभी तेरे दूध के दाँत भी कहाँ टूटे हैं, कि बीते दिनों को याद करने लग पड़ा ?
बस तू अपनी बारात करा दे, फिर चड्ढी पहन कर फूल खिलाते रहना !
तू शब्दों का धनी तो है ही, अच्छी पोस्ट उकेरी है । तारीफ़ कर रहा हूँ ।
ReplyDeleteऒऎ पाप्पे, अभी तेरे दूध के दाँत भी कहाँ टूटे हैं, कि बीते दिनों को याद करने लग पड़ा ? बस तू अपनी बारात करा दे, फिर चड्ढी पहन कर फूल खिलाते रहना !
तू शब्दों का धनी तो है ही, अच्छी पोस्ट उकेरी है । तारीफ़ कर रहा हूँ ।
ठीक उस उम्र में जब बेफिक्री का लिहाफ ओढ़े एक टांग पे टांग टिकाये घंटो कही पड़े रहते थे.. और दुनिया को बदलने की ख्वाहिशे जेब से बाहर सरक रही होती.. ईमान तब स्कूल के बस्ते में साबुत पड़ा मिलता था.. और दुनियादारी नाइजीरिया के किसी सुदूरवर्ती इलाके में रही होगी शायद..
ReplyDeleteक्या करते हो सर जी आप..जैसे किसी कुएं मे अचानक से धक्का देने वाली बात हो गयी यह तो..और फ़्लैश-बैक ऐसा जैसे कही ओपेन-एयर थियेटर मे किसी पिक्चर के ईस्टमैन कलर्स के बीच एक दम से ब्लैक-एन्ड-व्हाइट रील आ जाय (वो भी तब जबकि हमारे ब्लैक-ऐंड-व्हाइट उतने ज्यादा ब्लैक-ऐंड-व्हाइट भी नही है..रंग सारे सूखे नही हैं अभी)...हाँ एक कन्फ़्यूजन यह है कि पता कैसे लगे कि कब ’ए’ साइड खत्म हुई और ’बी’ साइड आ गयी..दुनियादारी का यह कैसेट-प्लेयर जिंदगी की कैसेट को एक बार डालने के बाद दोबारा निकाल कर साइड चेंज करने की इजाजत कहाँ देता है..और तब क्या हो जब वह कैसेट एक ही ट्रैक पर फ़ंस जाय जो आपका सबसे कम पसंदीदा है..लाइफ़ का हद से ज्यादा प्रेडिक्टेबल होना एक कर्स लगता है कभी कभी...
हाँ गौतम साहब की बात से मैं भी सहमत हूँ नागराज बिना ध्रुव के कैसे है यहाँ..पोस्ट का आई क्यू लेवल कम हुआ जाता है ऐसे तो..बल्कि जिक्र होता है तो डोगा और फ़ाइटर टोड्स का भी होना चाहिये..और हम अठन्नी भी नही देंगे.
खैर आपकी इस नॉस्टाल्जिक पोस्ट से खयाल आता है कि अपनी भी पुरानी कविता नुमा नॉस्टाल्जिक बकवास चीज ही ठेल दूँ पने ब्लॉग पर..अटके टेप वाली जिंदगी की इस कैसेट के बीच..वरना गौतम साहब तो ...खैर अब तो उनके कमेंट मिलना भी दूभर हो जायेगा..ऐसा रिजॉल्यूशन ही ले लिये हैं वो इस बार.. ;-)
आपको गौतमजी से प्रेरणा मिली! अपूर्व को तुमसे मिली अब देखते हैं अपूर्व से किसको मिलती है।
ReplyDeleteकिराये की किताबें पढ़ने के दिन याद आ गये। इत्ते दिन बाद ये पोस्ट देखकर अच्छा लगा। डा.अनुराग कोई एतराज/उतराज तो न करेंगे कि पोस्ट से डा.अनुराग की याद आ जाती है।
मतलब बहुत अरसा नहीं हुआ जब कागज़ पर पाँव पड़ने पर विद्या माता से माफ़ी मांगी जाती थी,वो ज्ञान को अर्जित करने का पवित्र और मेहनत भरा सफ़र होता था,और अब दुनिया ज्ञान की सूचनाओं से आक्रान्त हो चुकी है. सब कुछ इंस्टेंट,फास्ट. ये तो कुछ वैसा ही हुआकि साइड ए में चित्तचोर के गाने हैं और साइड बी में धूम के.
ReplyDeleteबहुत समर्थ भाषा,हर शब्द पूरे अपने स्वाद के साथ.
गौतम जी से थोड़ा आगे बढ़ते हुये, कौन कहता है कि नागराज-ध्रुव नहीं होते हैं? अजी आपके कहने भर से क्या होता है, जिसको साथ पाकर हम अब भी बच्चे हुये जाते हैं ये संभव ही नहीं कि वो ना हो.. कभी-कभी सोचता हूं कि क्यों ना बीहड़ों में जाकर पहिंटम की खोज कर ही ली जाये.. मगर इस साईड ए वाली जिंदगी में फुरसत थी मगर पैसे नहीं और साईड बी वाली जिंदगी में पैसे हैं मगर फुरसत नहीं की कहीं जा सकें.. खैर घुघुती जी वाली साईड सी को भी इन्वेंट होना है, देखते हैं.. शायद उसमें पैसे भी हों और फुरसत भी..
ReplyDeleteतुम ही एक दिन फेशबुक पर मुझे बोल रहे थे कि "यार पीडी, बहुत जल्दी नौस्टैल्जिक हो जाते हो.." और खुद ही ऐसे लिख कर नौस्टैल्जिक भी कर दिया करते हो..
साईड 'ए' वाली ज़िन्दगी भी क्या जिंदगी थी.... अब लगता है किसी ने पलट के ज़िन्दगी की साईड 'बी' लगा दी है..,,बहुत देर तक ज़िन्दगी में चूं चूं करती हुई घिसटती रहती है फिर ....इसी बी साइड में ....और ए साइड याद आती रहती है ....
ReplyDeleteभाई कुश, अगर वैसे दिन वापस लाने का कोई तरिका मिले तो उसे भी पोस्ट कर देना अपने ब्लोग पर.....काफ़ि लोगो की दुआए मिलेगी....
ReplyDelete"बचपन की उन तमाम कीमती चीजों से भरी हुई जेबे.. जिन्हें बेचने पर बाज़ार में दो कौड़ी भी ना मिले.."
ReplyDeleteBahut dino baad wapsi aur aate hi cha gaye :), nice post, bahut pyara likha hai
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteये पैराग्राफ तो सीधे बचपन की छुट्टियों के दिन दिखा गया !
ReplyDelete...."दूरदर्शन का रुकावट के लिए खेद है.. या फिर गुमशुदा की तलाश.. सिबाका गीत माला.. या मिले सुर मेरा तुम्हारा.. हमदर्द का टोनिक सिंकारा.. केम्पा कोला.. हिंदी फीचर फिल्म का शेष भाग.. लेम्रेडा स्कूटर.. बोल्बेटम पैंट... कानो पर आते हुए बाल.. और लास्ट में आर डी बर्मन का........वकाऊ "...
कुछ मैं भी कहूं .........
स्कूल में बच्चों के माँ पापा बारिश वाले दिन लेने आ जाया करते , बिना किसी के आये हुए तब तक इन्तजार करना पढता था जब तक बारिश न थम जाए ! और हमारा गाँव काफी दूर था तो माँ तो अपने खेतों के अनाज (जो कि हम कब खाते थे पता ही नहीं चलता था ,मेहनत लेकिन काफी होती थी महिलाओं कि ) और रसोई के भात का इंतजामात में दुनिया समेट लेती ,
एक दिन पता चला कि हमको भी कोई लेने आया है ,सारे गाँव के ८-९ बच्चों को लेने ५-६ बड़े भाई लोग ,शायद अध्यापिकाओं का दर्शन करना इन भाईयों का उद्देश्य था :) ,मगर हम शायद ही इतना कभी फूले समाये होंगे :) !
मजा आ गया :) !
nice!!
ReplyDeletePadke Achha Laga !!! Likhte Raho
ReplyDeletebahut acha likha hai kush ab professional writing shuru kar dijiye
ReplyDeletespeachless and lost in retro side of my life... side A of life is alltime HIT yaar....
ReplyDeleteरेडियो के कान मरोड़ कर जैसे तैसे रेडियो सीलोन सुनना , बेल बौटम से सड़क साफ़ होती देखना .. कानो तक लम्बे बाल , फूलदार प्रिंटेड शर्ट ऐसी की लड़का और लड़की में अंतर करना मुश्किल हो जाना ...
ReplyDeleteये यादें तो हमारे कॉलेज जिंदगी की है ....
क्या क्या नहीं याद आया ...
सुन्दर प्रस्तुति ...!!
शेर पे सवा शेर ...
ReplyDeletenice !
उन लल्लू ख्यालों की दुनिया !
ReplyDeleteडॉ० साहब का कमेंट मेरा भी समझा जाये....!
ReplyDeleteवैसे कल हम भी लेटे लेटे चले गये थे उधर ही की तरफ जब माँ ने फोन कर के पूँछा मुझे याद कर रही हो क्या...! हमने सोचा कि गज़ब मोबाईल रख रखा है यार बिना मिलाये मिल जाता है।
ReplyDeleteआलस ना होता तो कुछ ऐसी ही पोस्ट आज हम भी लगा रहे होते।
कैची साइकल....फैंटम...नागराज...सिंकारा....न जाने और कितनी चीज़ें याद आ गयीं इस लिस्ट के साथ! मन ही रेट्रो हो गया! पता नहीं क्यों हर साल की शुरुआत के साथ मन पीछे की और भागने लगता है!
ReplyDeleteएक अरसा हुआ...
ReplyDeleteशुक्र है लौट आये. गौतम राजरिशी साहब का आभार...
आप स्मृतियों के वातायन पर नहीं, राजपथ पे ले आये हैं इस पोस्ट से.
अरे वाह...इतनी आसानी से उन सारी गलियों में घूम आए... और उन सारे अहसासों को भी जीकर वापस, सही सलामत हाज़िर...कहीं कुछ टूटा नहीं...कहीं कुछ छूटा नहीं...अटके भी नहीं,कहीं....हम्म कोशिश करते हैं,हम भी
ReplyDeleteइन सारे शब्दों में मोकलसर, गुन्दी का मोहल्ला, नवचौकिया, फताहपोल, व्यासपार्क, ब्रह्मपुरी, गांधी मैदान.. घूम आया...
ReplyDeleteकागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी..
हुआ यूँ के तीन दिन पहले हमें भी पुराने दिन याद आ रहे थे फेस बुक पे खास तौर से वो वाले जब हम में से एक भाई...एंटीना ठीक करने ऊपर जाता था ...नीचे वाला जोर से चिल्लाता था" अब ठीक है "..कसम से एक बार जंगली पिक्चर आ रही थी ओर क्लाइमेक्स में आंधी चल गयी...बेचारा भाई एंटीना पहले घुमाता रहा .फिर आखिर कार .पकड़ कर बैठ गया .....
ReplyDeleteदूरदर्शन पर पहले कई चीजे आती थी उनमे से एक थी....एक चिड़िया अनेक चिड़िया दाना चुग चुग जाती चिड़िया .....शायद यु ट्यूब पर आज भी है ....
बहुत शानदार पोस्ट. धन्यवाद गौतम जी को.
ReplyDeleteएक बार कैसिट पलटो फिर से.
@महेन्द्र मिश्र
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद्
@श्रद्धा जी & मनोज मिश्र जी..
शुक्रिया.. आपको भी नव वर्ष मंगलमय हो..
@घुघूती जी
साईड सी के अभी अपने नियम कायदे है.
@अनिल कान्त
अब कैसेट को बदला भी जाना चाहिए.. क्या कहते हो?
@सागर
तुम भी मज़े ले लो..
@शिखा जी
पुरानी जींस और गिटार तो अपना फेवरेट है..
@सैयद भाईजान
ये अच्छा याद दिलाया आपने..
@प्रसाद जी
ReplyDeleteये दिन तो हमारे ही हाथ में है..
@केतन भाई
शटर वाला ब्लैक एंड व्हाईट टी वी तो मैं भूल ही गया था.. क्या याद दिलाई है.. मज़ा आ गया..
@धीरू भाईसाहब
बारात तो आपके बिना कैसे निकलेगी.. साईड बी में भी हिट गाने हो. यही दुआ है..
@आशीष भाई..
आपके कमेंट्स का तो इंतज़ार रहता है.. बहुत ख़ुशी होती है आपको अपने ब्लॉग पर देखकर.. कभी बात करेंगे..
@भाटिया साहब
दोनों साईड में ही हिट गाने हो तो क्या कहना..
@मेजर साहब..
सब आग तो आप ही की लगायी हुई है.. हाँ धुर्वध्रुव को भूलने के लिए कान पकड़ के माफ़ी.. हम तो खुद सुपर कमांडो ध्रुव प्ले कर चुके है बचपन में..
@गुरुवर
दूध के दांतों में ही रूट केनाल करवा चुका हूँ..
मैं तो खुद इसी इंतज़ार में हु कि कब फूल खिले..
@अपूर्व
ReplyDeleteकेक पे क्रीम से जो फूल बना होता है.. वो सबसे बढ़िया पीस होता है केक का.. तुमने वही उठाया.. अच्छा लगा.. तुम्हारी टिपण्णी पे तो कोई टिपण्णी करना भी मुनासिब नहीं..
@अनूप जी
हमें भी इस बार अनुराग जी वाला टच नज़र आया.. अगली बार नहीं होगा.. गारंटी
@संजय भासा
आपका कमेन्ट तो एड ऑन है मेरी पोस्ट का..
@पी डी
तुमसे ऐसा ही कमेन्ट एक्स्पेक्ट कर रहा था.. उस दिन मैं ही फेसबुक पर लिख कर आया था.. पर आज गलती मेजर साहब की है.. उन्होंने ही मुझे नौस्टैल्जिक किया..
@रंजना जी
साईड बी को पलटा जाए.. क्यों ?
@मीता
ये की ना तुमने काम की बात.. अब यही करूँगा साईड ए को फिर से चलाने के तरीके
@रोहित
थैंक्स रोहित..
@दर्शन भाई
ReplyDeleteआपका कमेन्ट तो मेरी पोस्ट को खींच के और आगे ले गया.. ज़िन्दगी भी कैसे कैसे मोड़ लेती है...
@डाक्टर साहब
आपका तो लगता है साईड ए अभी ख़त्म भी नहीं हुई.. तभी शरारते सूझ रही है.. वैसे एंटीना पकड़ने वाली बात पे तो बचपन की एक इमेज बन आयी आँखों केसामने..
@मनोज
थैंक्स ड्यूड
@नीलिमा जी
एक नोवेल लिख रहा हूँ अभी तो..
@विजय जी
आपका कमेन्ट सर आँखों पर.. सही कहा आपने ए साईड हमेशा हिट होती है...
@वाणी गीत
आपने तो दो चार और हिट गाने याद दिला दिए साईड ए के..
@अभिषेक भाई...
चलो किसी ने तो लल्लू खयालो को पकड़ा.. नज़र तेज़ है तुम्हारी.. हो कहा आजकल ?
@कंचन कँवर
ReplyDeleteइतना आलस भी ठीक नहीं कि दुसरो के कमेन्ट को अपना बताया जाए..
@हवलदार साहब
साल की शुरुआत में कुछ पुरानी चीज़े याद आ ही जाती है.. कल शाम से आपको याद कर रहा हूँ..
@किशोर जी...
गौतम जी का तो मैं भी आभार कर रहा हूँ...
@रश्मि जी
हम उन गलियों से गुज़र ही रहे थे.. सोचा सबको ले चले.. शुक्र है कुछ टूटा फूटा नहीं..
@रंजन भाईसाहब
आप तो फिर से पीछे ले जा रहे है.. गाँधी मैदान में तो आधा बचपन गुजरा है.. गेंद को छक्के मार कर मैदान से बाहर कई बार पहुंचाई है..व्यास पार्क में भी कईबार खेले है..
@मिसिर जी
अब बस कैसेट ही पलटी जायेगी..
bahut mast aur umdaa !!!
ReplyDeleteI can relate myself directly to each and every line of urs !!!
Thanx:)
झकास।
ReplyDelete--------
बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
कुश भाई, आपकी पोस्ट पढकर ऐसा लगा कि अपने बचपन की फिल्म देख रहा हूँ। सच्ची, विधामाता की कसम।
ReplyDeleteहमहूँ घूम आये हैं बीते दिनों की गलियों में...पैरलल , बेलबाटम....दरजी से उनके पायेंचे को ज्यादा से ज्यादा चौड़ाई ४०-४५ इंच के लिए लड़ना....स्लैक्स के नाम से ...सबको गुस्सा आना...कोई पहनने नहीं देता.........
ReplyDeleteएंटेना घमाने के लिए ऊपर चढ़ना और गोहार लगाना...आया ...नहीं आया '
दूरदर्शन का ...तेनेणें सुनना, चाचा चौधरी, फैंटम, क्रिक्केट सम्राट के लिए लड़ना....'हमलोग' बडकी छोटकी मंझली लाली जी की बातें , मालगुडी डेस, कथा सागर, विक्रम बेताल, street howk , i love lucy . बॉडी लाइन, ओल्ड फोक्स देखना ....ना जाने क्या क्या याद आ रहा है...रुकना मुश्किल लग रहा है लेकिन अब बस...मैं सचमुच डूबउतरा रही हूँ...बीते दिनों में ...आपका धन्यवाद महा नोस्टालजिक पोस्ट के लिए....
@प्रियेश भाई..
ReplyDeleteज़िन्दगी और कुछ नहीं... तेरी मेरी कहानी है..
@जाकिर साहब
शुक्रिया.. आपका कमेन्ट भी एकदम झकास
@सुशिल भाई
बचपन सबके एक से ही लगते है.. नहीं ?
@अदा जी
आपने तो कई और नाम भी जोड़ दिए.. वाकई कमाल की यादे है..
महा नोस्टालजिक पोस्ट.. कमाल का कोम्प्लिमेंट है.. आगे महा लग जाएगा.. ये तो सोचा ही नहीं था.. थैंक्स !
यह बिलकुल वैसा ही जैसे मेरे किताब वाले तख्ते पर "कला और बूढ़ा चाँद" का मिलना...
ReplyDeleteखाना खाने के लिए मम्मी की आवाज़े.. या दूध का गिलास देखकर पिकासो की पेंटिंग सा मुंह.. बचपन की उन तमाम कीमती चीजों से भरी हुई जेबे.. जिन्हें बेचने पर बाज़ार में दो कौड़ी भी ना मिले..
ReplyDeleteBachpan yaad aa gaya..aankhen bhar aayeen..
साइड बी के मजे लोगे तो पता चलेगा कि साइड ए तो रद्दी थी !
ReplyDeleteबेफिक्री का लिहाफ ओढ़े पढने वाली पोस्ट है आपकी.दुनिया को बदलने की ख्वाहिशे ही दुनिया को बदलती है इक दिन.इक उम्र इन्ही यादो के नाम हो जाती है.यादे..खूबसूरत यादे..साईड 'ए' वाली ज़िन्दगी भी क्या जिंदगी थी.... अब लगता है किसी ने पलट के ज़िन्दगी की साईड 'बी' लगा दी है. साईड 'बी न लगती तो मन में रहता न जाने क्या था साईड 'बी में.उलझती कैसेटो से अच्छा है कि दोनों साईड सुन ली गयी.
ReplyDeleteखूबसूरत यादें। बहुत सी बातें अपनी ही कहानी लगती हैं।
ReplyDeletedelicious...chewing every bit....
ReplyDeletekush ki kalam to khoob chalti hai bhai..nostalgic feel de gaya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमहावीर शर्मा
यह साइड "ए" है ही ऐसा कि उसमे डूबो तो मन तरल हो बहने लगता है और तब गद्य भी लिखो तो पद्य सा हो जाता है,नहीं???
ReplyDeleteबहुत कुछ याद दिला दिया तुमने....बहुत ही आनंद आया...
देर से आने के लिए खेद है और इतना आनंदित करने के लिए आभार....
ऐसे ही कभी कभी साइड ए लगा लिया करो और हमसे उन क्षणों को सांझा कर लिया करो...तुम्हारे बहाने हम भी गोटा लगा आया करेंगे उन दिनों,पलों में....
यह साइड "ए" है ही ऐसा कि उसमे डूबो तो मन तरल हो बहने लगता है और तब गद्य भी लिखो तो पद्य सा हो जाता है,नहीं???
ReplyDeleteबहुत कुछ याद दिला दिया तुमने....बहुत ही आनंद आया...
देर से आने के लिए खेद है और इतना आनंदित करने के लिए आभार....
ऐसे ही कभी कभी साइड ए लगा लिया करो और हमसे उन क्षणों को सांझा कर लिया करो...तुम्हारे बहाने हम भी गोटा लगा आया करेंगे उन दिनों,पलों में....
कागज़ तक पर पांव पड़ने पर विधा माता से माफ़ी माँगना और टिश्यु पेपर के खास पलो में इस्तेमाल के बीच की दुनिया..
ReplyDeleteतभी अब तक आदत है, किसी किताब के गिर जाने पर दो बार माथे से लगाने की, और tissue पेपर का वो रोल इसी अपराधबोध के साथ इस्तमाल करते हैं अब भी...
"...Grop up यार !! be professional !! Tissue paper are ment for that !!!"
"ह्म्म्मम्म...."
B-side songs are released on the same record as a single to provide extra "value for money".(Courtsy: Wikipedia)
एक वो जी गयी जिंदगी, एक ये पैसा वसूल ज़िन्दगी.
प्रेम के बाद शायद इस Nostalgia पे ही सबसे ज़्यादा लिखा गया होगा,
लेकिन एक पक्ष और भी इसका...
'दूर के ढोल सुहावने होते हैं ' वाला...
मुझे अब भी याद है उन विज्ञापनों से कितनी कोफ़्त होती थी, या फिर 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' से ही...
क्या पसंद होगा किसी को उस वक्त 'रूकावट के लिए खेद'
पर अब बार बार You Tube में क्यूँ खोजता हूँ मैं उसको.
आपके साइड " ए " के बारे में पढ़कर
ReplyDeleteबहोत खुशी हुई :)
अब दुआ यही है के साइड " बी " -->
उससे भी शानदार गुजरे कुश भाई
स स्नेह,
- लावण्या
कसम से यादे ताजा हो गई, वैसे हम उस वक़्त खाली कैसेट ले जा के उसपे साइड A और साइड B में अपने मन-पसंद गाने रिकॉर्ड करवाते थे - कैसेट तो अभी भी घर के एक कोने में पड़ा है.. पर शायद टेप रिकॉर्डर ही नहीं रहा ... या किसी के घर में अगर है.. तो शायद अब घर में सुनने वाले ही नहीं रहे..
ReplyDeletebahut khub ...........bachpan me chale gaye.
ReplyDeleteaccha laga likhte raho
ReplyDeletechaa gaye tusi.....god bless....
ReplyDelete