- क्या है!
- कुछ नही
- तो फिर ये कानो में तिनका क्यो डाल रही हो..
- क्यू गुदगुदी होती है ?
- नही गुस्सा आता है..
- हा तुम तो बस गुस्सा ही करो मुझ पर!
- तो और क्या करू यार कब से बुक पढ़ रहा हू.. तुम हो की कभी कुछ कभी कुछ.. यार तुम चुपचाप बैठ नही सकती क्या..
- अरे अब हम यहा गार्डन में बुक पढ़ने आए है ? कितना अच्छा मौसम हो रहा है लगता है बारिश आने वाली है.. और तुम हो की इस किताब में मुँह डाले बैठे हो.. छोड़ो इसे
- ओह कम ऑन नीना दो ना यार बुक..
- तो पहले वादा करो हरी वाली चूड़िया दिलाओगे..
- ये तो कोई बात नही हुई... तुम तो ब्लैकमेल कर रही हो..
- ब्लैक हो या वाइट मुझे नही पता, बोलो दिलाओगे या नही, वरना किताब नही मिलेगी...
- अच्छा ठीक है.. दिला दूँगा अब तो किताब दो..
- और दूध जलेबी..
- हा बाबा वो भी, अब लाओ किताब दो मेरी..
- अरे क्या तोते की तरह रट लगा रहे हो किताब किताब, जब मैं साथ होती हू तो मुझसे भी बात कर लिया करो...
- तुमसे तो रोज़ ही बात करता हू..
- क्या खाक करते हो रोज़ बात.. पहले तो दिन में दस बार फोन करते थे.. रोज़ मिलने आते थे.. अब तो मिलना ही नही होता एक तो इतने दिनो बाद मिलने आए हो उपर से इस किताब में मुँह घुसा के बैठे हो.. मैं तो कुछ हू ही नही तुम्हारे लिए.. बस तुम्हारी किताब.. तुम्हारी कवितए और तुम्हारे गुलज़ार..
- यार क्यो परेशान कर रही हो..
- हा भई मैं तो परेशान करती हू .. मुझे भी कौनसा जो तुमसे बात करनी है... जब साथ में हो तो कोई अहमियत नही समझता देख लेना एक दिन जब छोड़ के चली जाऊंगी तब पता चलेगा..
- नीना ! पागल हो क्या कैसी बाते करती हो..
आज शाम फिर वही गुज़ारी
जहा मैं किताब पढ़ता रहता
और तुम्हारी गोद में
सर मेरा रखा होता था..
तुम तिनका डालकर कानो
में मेरे सताती थी
मेरे हाथ में तुम्हारा
हाथ रखा होता था...
दोनो देखते रहते आसमान
से गिरते हुए सूरज को
अंधेरा जल भुन कर माथे
पर आ चुका होता था
उठकर चल देते थे हम
हाथो में हाथ लिए
तुम्हारा सर मेरे
काँधे पर होता था
हर बार पार्किंग का टोकन
खो देता था जेब से अपनी
और तुम्हारे पर्स में
ना जाने कहा से वो होता था
गरम गरम दूध जलेबी
गेन्दामल हलवाई की
दोनो मिट्टी के सिकोरो
में एक साथ खाते थे हम
ख़ाली सड़को पे बातें
करते हुए चलते रहते
एक दूजे का हाथ थामे
भूल जाते सब ग़म
चूड़ीवाले को देखते ही
तुम्हारी ज़िद शुरू हो जाती
और मुआ चूडी वाला भी
तुम्हे देखते ही वहा आ जाता था
तुम भागकर सड़क पार करती थी
ओर मैं तुम पर चिल्लाता था..
घबरा कर तुम्हारे पास आता
क्या यार नीना साँसे निकाल देती हो!
इक रोज़ फिर ऐसे ही तुम्हारा
सड़क को पार करना हुआ था
मैं तब दूसरे छोर पे था
तबसे तुम उस ओर चली गयी
आज शाम फिर वही गुज़ारी
सुखी टहनियो के नीचे..
मगर मेरे हाथो में कोई
किताब नही होती है..
तिनके बिखरे हुए है
अब भी यहाँ वहाँ..
हवाएं आकर इन्हे
उड़ा ले जाती है..
अकेला चलता हू मेरे
काँधे झुके से है थोड़े...
सामने से साथ आता हुआ
कोई जोड़ा दिख जाता है..
तुमसे पार्किंग का कूपन
माँगने से पहले ही
जेब में पार्किंग का
कूपन मिल जाता है
इक रोज़ चूड़ी वाले ने पूछा था बस!
अब वो भी नही आता है
तुम्हारे लिए चूड़िया ख़रीद लू
पर तुम अब ज़िद ही नही करती
हलवाई के यहा जाता हू
भीड़ में शायद वो
देख नही पाता..
दो सिकोरे मेरी ओर बढ़ाता है
कब तक तुम्हे साथ लेकर
चलता रहूँगा मैं..
मुझसे अब ये नही होता है
होंठो को मुस्कुराहट देने
वाला दिल अकेले में बहुत रोता है...
- नीना! क्यू सता रही हो यार तुम, अब तुमसे ही बात करूँगा बस.. देखो अब किताबे भी नही पढ़ता हू ! आ जाओ ना नीना की मैं अब भी गार्डन में तुम्हारा इन्तेज़ार करता हूँ !
-- ए कौन है वहा ! चल पार्क बंद होने का टाइम हो गया है.. कब से सीटी बजा रहा हू सुनते ही नही है लोग, जब फाटक बंद करता हू तब आते है.. कितनी बार कहा है फाटक बंद होने से पहले आ जाया करो..
behad yaane behad khoobsoorati se likha gaya hai...
ReplyDeletekavita bahut hi khooobsoorat..hone ke saath saath..screenplay padhne mei bhi bahut maza aaya..
aap aise hi hamei aapki duniya mei kho jaane ke mauke diya kare..
likhte rahe...
bahot achche.... :D ... pahle laga ki kuch jyada hi romantic lag raha hai....par fir pata chala...ki ye to yado ka mausam hai.....
ReplyDeleteइक रोज़ फिर ऐसे ही तुम्हारा
ReplyDeleteसड़क को पार करना हुआ था
मैं तब दूसरे छोर पे था
तबसे तुम उस ओर चली गयी
dard bhi meetha hota hain... aur meethe se bhi dard milta hain...
kushbhai...salam kubul kariye...
Lage raho bhai kush... hamesha ki tarah haseen andaze bayan ....
ReplyDeleteसचमुच ख़याल ख़ूबसूरत है और ज़रा सा नम भी।
ReplyDeleteसच कहूँ ..जब पढ़ना शुरू किया तब अजीब सा लगा फ़िर जब कविता पर आया तो थम सा गया....बेहद खूबसूरत.....शायद कई दिनों बाद तुम्हारी एक बेहतरीन रचना .......
ReplyDeleteबहुत खूब... दिल से निकली आवाज़ लग रही है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर...और गीली
ReplyDeleteयादों के झरोखे से
ReplyDeleteदिल की आवाज और खूबसूरत ख्याल.
बहुत अच्छा लिखा मित्र.
बधाई.
ye naya tareeka tumhare likhe ka achha chal pada hai.pahle bhoomika mein kahani aur phir kavita...aur donon hi judwaa ki tarah..ek se hi khoobsoorat..ek se hi baatein karte hue.
ReplyDeletejohn Alia ke sher yaad aa gaye-
जब तुम आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे
मेरी तन्हाई में ख्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं
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इक रोज़ फिर ऐसे ही तुम्हारा
सड़क को पार करना हुआ था
मैं तब दूसरे छोर पे था
तबसे तुम उस ओर चली गयी
bahut badi baat halke se kah di.
bahut achhe.
बहुत खूबसूरत...शानदार!
ReplyDeleteओह, यह तो अत्यन्त परिष्कृत लेखन है।
ReplyDelete:)....bahut khuubsurat..halki fulki rochak rachna.......pyari si kavita...likhte rahiye....
ReplyDeletebahut sundar kush ji, kya likha hai aapne, shandaar kavita hai
ReplyDeleteआप सभी की स्नेहिल टिप्पणियो के लिए धन्यवाद.. आपके प्यार और हौंसला अफज़ाई से ही लिखने की प्रेरणा मिलती है... यूही आते रहिएगा.. आपका अपना ब्लॉग है.. पधारो सा
ReplyDeletejaise hi paane post kiya tha usi samay maine padh liya tha.. magar comment karne ke haalat me nahi tha.. koi shabd hi nahi the.. ab itni sare comment padh kar, kuch unse shabdon ki udhaari lekar aapko badhaai de raha hun.. :)
ReplyDeleteभीगी सी......बहुत सच्ची.....कुरेदने वाली रचना
ReplyDeleteभावुक, यादोँ की द्रश्यावली -
ReplyDeleteबढिया प्रयास है कुश जी
लिखते रहेँ -
स्नेह,
- लावण्या
दिल की गहराईयों से निकले नम ज़ज्बात. बहुत खूब.
ReplyDeleteकल भी पढ़ा था इसको आज फ़िर से पढ़ा बेहद खूबसूरत लिखा है आपने ..कविता दिल को छू लेने वाली है ..ख्याल भी क्या खूबसूरती से क्गाज पर जगह पा जाते हैं लिखते रहे
ReplyDeletebejod....!! lajwab....!!!
ReplyDeletebehad khoobsoorat aur udaas kar dene waali!
ReplyDeleteDil ko chhoo liya.
bhot bhot bhot hi jyada sundar rachna hai yeh....ji krta hai bar bar pdhta hi rahu
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