छोटी सी थी मैं
जब अब्बु रोज़ चवन्नी दिया
करते थे.. एक मेरी
और दूसरी रमज़ान की
होती थी..साथ साथ
मस्जिद के परले वाली
दुकान से चकली
ख़रीदने जाते थे
एक दिन रमज़ान ने
मेरी चकली गिरा दी
मैने ग़ुस्से में
आकर उसकी चवन्नी
छीन ली.. और भाग कर
पहुँची बानो की
छत पर.. रमज़ान पीछे
पीछे आया. तो उछाल दी
आसमान में .. उस रोज़ रमज़ान
बहुत रोया था.. रात मैने
उसकी चवन्नी ढूँढ ली
मगर दे ना सकी उसे लाकर,
रमज़ान अब भी आता है साल
में एक बार अपनी चवन्नी
लेने ..
सुना है अब लोग उसकी चवन्नी को
चाँद कहते है...
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(२)
पैरो के नीचे
ज़मीन दबा के
जो ज़ोर से छलांग लगाई
की जा पहुँची आसमान
की पेशानी पर..
और लबो से इक
निशानी छोड़ दी वहा..
तब सुर्ख़ लाल
रहती थी.. मगर वक़्त
के साथ पिघलते पिघलते
रंग उतरता गया..
मैं जीती रही बदस्तूर..
इक रोज़ मेरा भी चलना हुआ
तबसे मेरे होंठ की
वो निशानी मेरी याद में
सफ़ेद पड़ गयी है..
सुना है लोग उसे आजकल
चाँद कहते है...
vaise ek chaand humare saath zamin par bhi hain...aur duniya use 'kush' ke naam se jaanti hain...
ReplyDeleteअरे वाह...क्या कल्पना है!मैं भी सोचती हूँ और किन किन चीज़ों को चाँद बनाया जा सकता है! बहुत बढ़िया दोनों ही...चवन्नी कुछ ज्यादा जची!
ReplyDeleteबाबा रे इतने बीमार लग रहे थे कुछ देर पहले एक पोस्ट पर :) तब भी इतना सुंदर लिख लिया तुमने कमाल है भाई तुम्हारी .:) बेहद पसंद आया यह चाँद का ख्याल और रमजान ..बहुत मासूमियत है दोनों रचनाओं में ...बहुत खूब
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ReplyDeleteबरसों पहले हम जुदा हुए उनसे
ReplyDeleteफ़िर न मिलने की कसम खा कर
सालों बाद भरी महफ़िल
जो नजरे टकराई फ़िर उन्ही से जाकर
हम उन्हें देखते रहे, वो हमें
दस्तक देने लगी यादें जब कई आकर
वो अश्क जो उन्होंने
छत पर जाने तक रखा बचाकर
सुना है अब लोग उसे चाँद कहा करतें हैं
जुदा तस्वीर....जुदा अंदाज.....सोचता हूँ एक चाँद कितने लोगो के सपनो के भर ढो रहा है बरसो से बिना शिकायत किए हुए ....जहाँ तक ....आपके चाँद की बात है.....खूबसूरत है....
ReplyDeletebachpan mei mere bhai ko poonam ka chaand ek amrud pakaa hua amrud nazar aata tha...
ReplyDeletechaand ka sabse apna apna equation hota hai..pehli rachna behad hi khoobsoorat hai..
dusri bahut alag aur bahut sundar..
baantne ke liye shukriya..
likhte rahe :)
Chand ke bhi kitne roop :-)
ReplyDeleteNew Post : best gift of my life
क्या बात है....
ReplyDeleteयथार्थ व कल्पना का अद्भुत संगम.
कालातीत..
बधाई स्वीकारें..
chalo.... tumne bhi chand ki aur dekha to sahi .... chavavni samajhkar hi sahi :P .... ya koi nishani samajh kar hi sahi.....khubsurat hai dono chand.....
ReplyDeleteBahut Bahut badhiya....ye padhkar sach me bahut maza aaya. Kya sundar kalpana hai...badhai sweekar karein
ReplyDeleteआपकी कल्पना का जवाब नहीं, शब्द सरिता हो जाते हैं!
ReplyDeleteभाई कुश...तुम तो वैसे भी मजेदार लिखते हो। तुम्हारी चवन्नी का चांद करोड़ों का हो जाता है औऱ सफेद पड़े होठों में चांद की लकदक चमक झिलिमला जाती है.... अच्छी कविताएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.. जवाब नहीं..।
ReplyDelete.. तो हमें हुक्का वाले फोटो में उलझाकर खुद चांद गढ़ रहे थे :)
nice
ReplyDeleteपैरो के नीचे
ReplyDeleteज़मीन दबा के
जो ज़ोर से छलांग लगाई
की जा पहुँची आसमान
की पेशानी पर..
और लबो से इक
निशानी छोड़ दी वहा..
तब सुर्ख़ लाल
रहती थी.. मगर वक़्त
के साथ पिघलते पिघलते
रंग उतरता गया..
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई
कमाल की उड़न भरी है भाई इस बार ! मान गए !
ReplyDeleteअच्छी कल्पना है आपकी कविता मेँ !
ReplyDeletekaafii dino baad puraney gulzarian saa...bahut acchha
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर,बधाई.
ReplyDeletedoosri nazm behad achchi lagi
ReplyDeleteचाँद को कैसा सजाया....सुभानल्लाह
ReplyDeletei've no words..
ReplyDeleteonly superb... :)
एक चाँद कितने फ़साने आपके भी और.... चाँद तो चाँद है...
ReplyDeleteसुन्दर कल्पना और प्यारी कविता ....
ReplyDeleteआप सभी की स्नेहिल टिप्पणियो के लिए बहुत बहुत आभार.. कृपया भविष्य में भी यूही मार्गदर्शन करते रहे..
ReplyDeleteआभार
कुश
इतनी देर से आने की माफ़ी चाहूंगी, आपकी नज़्म के बारे में इतना ही कहूँगी की आपका तसव्वुर हैरान करता है, कल्पना का ये रंग वाकई बेहद दिलकश है, बात तो बस imagine की है की वो कौन सा रंग लेती है और कौन सा रंग छोड़ जाती है, चाँद को जो रंग आपने दिया है वो amazing है कुश जी, दिल को छूती हुयी इस हसीं नज़्म के लिए आपका बेहद शुक्रिया.
ReplyDeleteवाह वाह सिर्फ़ वाह.
ReplyDeleteशब्दों की चित्रकारी की क्या कहूँ.लाजवाब है.बहुत ही सुंदर.....
सुंदर प्रस्तुति.शुक्रिया.
ReplyDeletekamaal ke rang hain aapke....kitne sundar chitra hain aapkekavita ke...
ReplyDeletesuparv blog this is really good blog . plz keep it up
ReplyDeletevisit my blog
www.netfandu.blogspot.com
bas itna hi kahunga behtreen...
ReplyDeleteआप कल्पना वाकई बहुत अच्छी कर लेते हैं.बहुत बहुत बधाई .इतनी अच्छी कविता के लिए .
ReplyDeletekalapna ki parakastha aur gharayi shabdon main
ReplyDeletelikhte waqayi kamaal ho
कुश आपके ब्लोग पर आकर अच्छा लगा. आप बहुत अच्छा लिखते है.. वैसे तो आपके ब्लोग पर अक्सर आता हुँ.. पर आज पता चला कि आप जोधपुर से है तो बहुत अपना सा लगा.. "अपणायत" इसे ही कहते है...
ReplyDeleteरंजन मोहनोत
aadityaranjan.blogspot.com
aap sabhi ki pratikriyao ke liye bahut bahut dhanyawad.. kripya bhavishy mein bhi yuhi mera margdarshan karte rahe..
ReplyDeletechand, chavanni aur ramjan, kya likha hai aapne,bas yahi kahenge bhai kush, dil khush ho gaya
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ReplyDeleteapki chavanni yahi chand mera bhi fvrt hai...mera bachpan ka dost hai. or ha is ramzaan par apki kavita padhkar laga ki apke lekhan me bahut jaan hai....all the best...:)
ReplyDeleteRead more: http://kushkikalam.blogspot.com/2008/08/blog-post_21.html#ixzz1Wu8CqMnV