Monday, May 5, 2008

जन्म हुआ... माँ खुश... दादी नाराज...


जन्म हुआ ,लोग आए
माँ खुश, दादी नाराज़
पिता रूख़े, पर अच्छे
दादी कहती, और बच्चे
स्कूल नही, घर आँगन
जींस नही, चूड़ी कंगन
खेल नही, चूल्हा चॉका
पढ़ने का, नही है मौक़ा
होली दीवाली, एक सी सब
छुटकारा मुझे मिलेगा कब
बड़ी हुई, लड़का ढूंढो
लड़का मिला, दहेज की चिन्ता
दहेज दिया, सुख नही
सुख मिला, कभी कभी
आख़िर क्या, पता नही
फिर हुआ, पाव भारी
इंतेज़ार है सबको उसका
क्या होगा, शायद लड़का
लेकिन ये तो लड़की हुई
जन्म हुआ, लोग आए
मा ख़ुश, दादी नाराज़.
----------------

18 comments:

  1. मा ख़ुश, दादी नाराज़.

    bahut kuch kehti hai ye ek line...
    naari..ek aise chakravyuh mei atak jaati hai jise wo kabhi chhutkara nahi paa sakti..

    vishay aur kavita likhne ke liye badhai..

    likhte rahe..

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  2. aapne jo loop laga diya hai n=n+1 ka, yahi to jad hai is samsya ka !

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  3. समाज का सही रूप दिखाती है ये कविता।

    शीर्षक बहुत सुन्दर है !!

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  4. chahe hum kitna bhi padhlikh le ye chakra todne mein abhi tak kamayab nahi huye hai,kab tak dadi nazar rahogi,wah bhi to ek aurat hai,ya ek maa jab dadi ke singhasan par baithati hai ye silsila chalta hai phir se,kahi to iska fullstop hona chahiya,bahut behtarin,badhai.

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  5. ek bhartiya nari ki puri zindagi jivani likh di...aur woh bhi itne kam shabdo mein...itne chotdar tarike se....

    har pehloo par gaur farma liya...aur samaaj ko bhi chata laga diya...

    likhte rahiye...

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  6. जन्म हुआ ,लोग आए
    माँ खुश, दादी नाराज़
    yah 2 lines hi puri kavita ka saar kah dati hai...
    bahut aachi kavita likhi hai

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  7. जन्म हुआ ,लोग आए
    माँ खुश, दादी नाराज़

    एसा सच जिस पर हमारा समाज शर्मिंदा भी नहीं होता। काश....

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  8. भारतीय समाज ग्रसित हैँ
    ऐसी ही अवधारणाओँ से
    ये भी एक कटु सत्य है -
    आपका शुक्रिया कुश जी ...
    इस बारे मेँ ध्यान खीँचने के लिये ..
    - लावण्या

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  9. माँ खुश दादी नाराज़ ..बड़े अच्छे अंदाज में आपने बात रखी है बेटियों के बारे में समाज के पूर्वाग्रह के बारे में।

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  10. अरे कुश पता नही क्यो लोग बेटियो से इतना नाराज रहते हे,यह दादी नानी भी तो किसी की बेटिया थी,बेटा सब मो चहिये चाहे वो साला बडा हो कर मां वाप को पुछे भी ना.

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  11. जन्म हुआ ,लोग आए
    माँ खुश, दादी नाराज़


    --यह दो लाईन अपने आप में एक महाकाव्य है, कितनी ही बातें, कितने ही प्रश्न और युग अपने आप में समेंटे.

    --बहुत बधाई इतनी ऊँची दो पंक्तियाँ देने के लिये-इसके आगे बाकी की पंक्तियों की जरुरत ही नहीं थी-खुद ब खुद मन ही मन में रच जाती पूरी रचना हर पाठक के मन मानस में.

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  12. खुश मां वाली एक पीढ़ी अब दादी बन चुकी है। उम्मीद करता हूं कि अब मां खुश और दादी भी खुश होंगी।

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  13. जोड़ घटाव की दुनिया....है ना...दादी भूल जाती है की वे वे भी एक नारी है.....

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  14. आप सभी की स्नेहिल प्रतिक्रियाओ के लिए धन्यवाद.. आप सबकी की इन प्रतिक्रियाओ से ही मेरा हौंसला बढ़ता है.. भविष्य मैं भी यूही मार्गदर्शन करते रहिएगा..

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  15. यह कविता बहुत अच्छी है। वाकई, ऐसा लगा कि कोई मेरी बात कह रहा है।

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  16. kavita ka bhaav hridyasparshee hai..
    advitiya , bejod, bemisaal...
    nishchaya hee aap badhai ke patra hai...

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  17. जो कहा आपने वही सच है.. कहाँ सब दावा करते हैं प्रगती का, और कहाँ आज भी नारी का अपमान उसके होने से पहले ही शुरू हो जाता है!!!!ये ही वजह है के आज ज़्यादातर प्रदेशों में पुरुष और स्त्री अनुपात असामान्य रूप से हिल गया है. अगर यूँ ही चलता रा रहा हम ज़्यादा दूर नही चल पाएँगे.आख़िर कब ये समाज सोचने पर मजबूर होगा के प्रकरती के नियम नियमों साथ खेलोगे तो खामियाज़ा खुद ही को भुगतना होगा. सयाने भी बचकानी बातें करेंगे तो बच्चो का बचपना कौन देखेगा? क्या देखा है कभी आपने जब दिन भर के ऑफीस के बाद पिता घर पहुँचता है तो छोटी २ साल की बेटी पानी का गिलास ला कर देती है. गिलास में चाहे पानी दो घूँट हो लेकिन उससे ज़्यादा मीठा और कुछ नही लगता. उससे ज़्यादा संतुष्टि कोई कोल्ड ड्रिंक और कोई शरबत पी कर नही होती.
    कभी कहीं पढ़ा था.. नारी ही नारी की शत्रु है.. और हमारे समाज में ये सच भी लगता है. अमरे समाज में बहुत ज़रूरी है नारी खुद का सम्मान करे पहले, तभी दूसरों से सम्मान करवा पाएगी.

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..