कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Wednesday, May 7, 2008
भगवान का नाम..
भगवान का नाम ..
बचपन से सुनता आया हू
वो सबकी रक्षा करता है
मैं उसे ढूँड रहा हू,
कुछ लोग कहते है वो नही है
मैं मंदिर जाता हू..
मुझे मिलता है..
मैं उस से बात करता हू
वो सुनता है..
मैं लौट आता हू..
भगवान से मैने कहा तो था..फिर भी
सब वैसा ही है, कुछ बदलता क्यो नही
मा बोल ही रही थी...
आजकल सब माल नक़ली मिलता है
बनिया भी चालबाज़ है..
भगवान पर भरोसा तो है
वो नक़ली नही हो सकते
पर अगर हुए तो..
एक काम करता हू..
देख लेता हू
फिर मंदिर में जाकर...
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chhote bachhe..ka point of view ..ya hamare man mei chhupe balak ka point of view...bahut pyari kavita..
ReplyDeletelikhte rahe...
सरल और सुंदर :) पर बहुत कुछ कहती हुई
ReplyDeleteपर अगर हुए तो..
ReplyDeleteएक काम करता हू..
देख लेता हू
फिर मंदिर में जाकर...
बहुत सादगी से कहा गया सच..
***राजीव रंजन प्रसाद
kya baat hai...bahut khuub khayaal..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत विचार।
ReplyDeleteकई बार हमे लगता है की भगवान् है भी या नही।
चुभता हुआ सच आवरण मे... यह भी खूब रही
ReplyDeleteaap ne is vishay par kuchh zyada hi komalta se baat rakh di...shayad bhagwan se dar gaye...ya vishwas abhi kayam hain...
ReplyDeletevaar thoda tez dhar karte to maza aa jata...
बहुत अच्छे कुश। आजकल जिस तरह दुनिया चल रही है इस से तो लगता है कि भगवान भी नकली ही हैं वरना क्या उनकी सीढ़ियों से किसी मासूम को उठा लिया जाता और उनको पता नहीं चलता?
ReplyDeletekuch sochene par majboor karti hai,bahut hi badhiya.bhagwan shayad der se sunate hai,ya baar baar kehne par pata nahi.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा... मासूमियत भरी लाइनें. वैसे मन्दिर, मस्जिद तो भगवान् को कैद करने के लिए बनाए गए हैं, भगवान् तो हर जगह रहने वाले हैं,
ReplyDeleteखुशकिस्मत है आप जो अक्सर भगवान् से मिलते है ....यहाँ तो रोज आवाजे लगती है ....लगता है ऐ. सी चलाकर सो गया है......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. सहज भाव.
ReplyDeleteखूबसूरत विचार
ReplyDeleteaapki kavita ki sahajta bahut mohak hai. chote chote shabd, chote se vaakya aur in sabme ubharati ek sundar si baat..is kavita ke liye badhai.
ReplyDeletekush..aapki kavita bahut achchi hai lekin mere man mein ek skanka hai...uska samaadhan karo. mandir mein jaakar aapko kaise pata chalta hai ki bhagwan asli hai ya nakli..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteकुश भाई भगवान अगर हे तो वो मन्दिर मस्जिद मे तो बिलकुल नही हे,पता हे कहा हे ? मन्दिर के बाहर उन भिखारियो मे जिन्हे हम अकसर दुत्कारते हे,
ReplyDeleteआप की कविता ने बहुत कुछ कह दिया, बहुत ही सुन्दर कविता लिखी हे आप ने.
जो सब को लगा वही मुझे भी। सहज और सुंदर। बहुत उम्दा।
ReplyDeleteआप सभी की स्नेहिल प्रतिक्रियाओ का धन्यवाद.. भविष्य में भी इसी प्रकार मेरा हौसला बढ़ते रहे..
ReplyDeleteआभार
कुश
अपने मन में झंकिये, भगवान् आपको वहीं मिल जायेंगे. आपका मन भी तो एक मन्दिर है.
ReplyDeletebahut sunder bhav hai . Badhai..
ReplyDeleteBhagvaan shabd kee vyakhya kee koshish kee hai hamne bhee .
Padiyega...