आप लोग सोच रहे होंगे कि ये कुश साला रोज़ रोज़ अपने ब्लॉग पर कोई नयी पोस्ट लेकर आ जाता है.. और फिर हमे उसे ज़बरदस्ती पढ़ना पड़ता है.. फिर टिपियाना भी पड़ता है.. उपर से उसको पढ़ पढ़ कर बोर और हो गये है.. तो दोस्तो घबराईए मत आपकी इसी बोरियत को दूर करने की तरकीब लेकर आया हू.. मैं जानता हू की ब्लॉग जगत के दो दिग्गज ज्ञानदत्त पांडे और डाक्टर अमर कुमार.. की लेखन स्टाइल के मेरी तरह आप सब भी मुरीद है... तो मैने सोचा क्यो ना मेरी ब्लॉग पर आपको उन्ही की स्टाइल में कुछ परोसने का कार्यक्रम किया जाए... क्या कहा इतनी हिम्मत कहा से आई?
अजी पिछली बार जब इसी स्टाइल में हमने अनुराग जी, रक्षंदा, अजीत जी, और शिव कुमार जी की स्टाइल में लिखा था तब जो हमको आप लोगो ने शाबाशी दी.. बस उसी का ग़लत मतलब निकाल कर हम फिर हिम्मत कर लिए है...
तो इस बार दो दिग्गजो की स्टाइल में पढ़िए फिर से एक बार...
मानसिक हलचल वाले श्रीमान ज्ञानदत्त पांडे की लेखन स्टाइल
सुबह गाड़ी से ऑफीस जाते हुए सड़क के बीचो बीच हमारी गाड़ी खराब हो गयी.. जब तक ड्राईवर ठीक कर रहा था.. हमने सोचा बाहर घूम लिया जाए.. मैं अपने मतलब की चीज़े सड़क पर सर्चने लग गया.. सड़क के दूसरी तरफ मैंने देखा एक सब्जी वाला आलू और टमाटर बेच रहा था.. उसने अपने ठेले पर फिक्स रेट का भी बोर्ड लगा रखा था.. हम कन्फ्यूजिया गये की सब्जी वालो ने भी अब फिक्स रेट रखना शुरू कर दिया है..
उसके ठेले पर करीब दस लोग खड़े थे.. जितनी देर मैं वहा खड़ा रहा.. करीब चालीस लोगो ने वहा से सब्ज़ी खरीदी.. इस बीच कुछ लोग भाव पूछ कर भी चले गये.. कुछ ने आवश्यकता से अधिक सब्ज़ी खरीदी.. सब्ज़ी वाले ने अपने ठेले के नीचे वाली साइड में स्टेट काउंटर लगा रखा था.. मैं हमेशा कहता हू की इस तरह के स्टेट सबको अपने ठेले पर लगाने चाहिए..
ये है उस ठेले वाले का सब्ज़ी बेचने का ग्राफ..
इस सब्जी वाले ने आज अधिक दाम में सब्जी बेचकर बहुत मुनाफा कमाया है लेकिन बी बी सी ने कह दिया है.. की यदि इसी दाम पर सब्जिया बेची गयी तो अगले सप्ताह में महंगाई इतनी बढ़ जाएगी की आपको सब्जी खरीदने के लिए लोन लेना पड़ेगा..
बी बी सी की पोल रिपोर्ट
हो सकता है कुछ लोगो को मेरी ये पोस्ट समझ नही आई होगी.. ये मध्य वर्ग की स्नोबरी का ही असर है.. की उन्हे इस तरह की पोस्ट समझ नही आती.. और वो कन्फ्यूजिया जाते है... किसी को ये भी लग सकता है की मेरी ये पोस्ट बकवास है... वैसे यह जरूर है कि आपकी समझ का सिगनल-टू-न्वॉयज रेशो (signal to noise ratio) कम होता है; कि कई बातें आपके ऊपर से निकल जाती हैं। अब कोई दास केपीटल या प्रस्थान-त्रयी में ही सदैव घुसा रहे, और उसे आलू-टमाटर की चर्चा डी-मीनिंग (d- meaning – घटिया) लगे तो आप चाह कर भी अपनी पोस्टें सुधार नहीं पाते।
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कुछ तो है.....जो कि , यु ही निठल्ला, अचपन.. पचपन बचपन सरीखे ब्लोग्स के स्वामी गुरूवर डा. अमर कुमार की लेखन स्टाइल..
हिल हिल हिल पोरी हिल्ला ज़रा कमर तू अपनी हिल्ला... अपुन भी अपनी कमर हिल्ला रेला है.. क्या कहा ये कौनसी भाषा है.. अब ये अजीत भाई का ब्लॉग तो है नही जहा दो कोस पे भाषा बदले ये तो हमारी पर्सनल प्रॉपर्टी है.. यहा तो ऐसी ही भाषा मिलेगी.. बोले तो क्षेत्रीय भाषा.. क्या है की आज कल हर जगह क्षेत्रवाद ही फैल रहा है.. फिर भी आप अगर शुद्ध भाषा पढ़ना चाहते है तो उधर क्यू नही जाते?... हा जी उधर ही हमारे गुरु जी के हिया.. वहा पर फाइव स्टार भाषा में बात की जाती है..
ये हम है
हमारा क्या है हम ठहरे कच्ची बस्ती की नाली में रेंगने वाले कीडे.. कभी इसकी पीठ पर चढ़े तो कभी उसकी पीठ पर.. हालाँकि हम एक बेताल अपनी पीठ पर लिए घूमते है.. सही समझे एक ही तो जान की दुश्मन है हमारी पंडिताइन..
वैसे बेतालो की कमी तो ब्लॉग जगत में भी नही है.. एक प्रेत यहा घूमता विचरता पाया जाता है.. पर हमने भी पहाड़ी वाली मज़ार के मलंग से लिया हुआ ताबीज़ पहन रखा है.. ऐसे भूतो को तो हमने धूल चटा दी है..
वो तो आज अनुरगवा की डिमांड थी इसलिए मैं आधी रात को बैठ कर ये पोस्ट लिख रहा हु.. वरना अभी दो पैग लगाकर सो चुका होता...
रूकावट के लिए खेद है..., मुसलचंद खरदूषनचंद की वारिस पंडिताइन यहा तांकझांक कर हंसते हुए चली गयी, जाते जाते एक बोली कस गयी वा अलग से, "यह क्या अलाय बलाय लिख रहे हो? न कोई सर पैर है, न कोई विषय! अगर किसी की टिप्पणी आएगी भी तो यही होगी की आप जैसे चुगद को लिखने उखने की कोई तमीज़ भी है?" उनका हसना फिर शुरू हो गया.. हंस लो भाई हंस लो... आपकी इसी हँसी में तो मेरी ज़िंदगी फँसी है!
मैने कहा जाओ भागवान तो आँखे दिखाते हुए अब सोने का फरमान जारी करते हुए चली गयी.. पर मेरी तो शिव भाई से चेट चल रही है.. इस से पहले की श्रीमती जी दोबारा आए मैं भागता हू और शिव भाई आपसे यही कहूँगा.. 'अभी टेम नही है शिव भाई..'
तो अभी मैं चलता हू मित्रो (कहने में क्या जाता है), यदि आपमे से कोई इस नीचे बने हुए चोकोर टिप्पणी बक्से की और जाए तो किसी भी भाषा में कुछ भी फेंक सकता है...
अरे हँसते हँसते ही टिप्पणी कर रही हूँ.....आपने ये कैसे सोच लिया की इस पोस्ट को कोई पड़ेगा नही.....मैंने इसे सबसे पहले पड़ा है....
ReplyDeletehaahaahaa..
ReplyDeleteमजा आ गया..
अरे कुश भइया, कमाल कर दिए कमाल...कहाँ-कहाँ का आईडिया...कैसा-कैसा आईडिया...क्या केने क्या केने...ऐसे-ऐसे शोले भड़का देतो हो कि आग भभकती रहती है.
ReplyDeleteशानदार लेखन है भाई....बहुत ही शानदार!
:) कमाल है भाई तुम्हारी सोच की ..खूब भालो ..अब बाकी तो जिन पर लिखा वो ही बोलेंगे हमारा तो हँसते हँसते हाल बुरा है
ReplyDelete:D kya khoob likha hai, maza aa gaya padhkar
ReplyDeleteदेखिये न मैं भी कितना बेशर्म हूँ फ़िर आ गया हु अपनी पोस्ट लेकर..
ReplyDeleteये आप का कसूर नहीं है..."छूटती नहीं है काफिर मुहं से लगी हुई..." ये ग़ालिब साहेब फरमा गए शराब के बारे में,,,अगर उस वक्त ब्लॉग्गिंग होती तो फरमाते..."छूटती नहीं है काफिर दिल से लगी हुई..." तो कुश भाई ये दिल से लगी हुई चीज है आप लाख इस से दूर भागो फ़िर से लौट लौट आती है कई कई बहाने लेकर...
पता नहीं ये जयपुर के पानी का असर है या आप की खोपडी में डली खाद का जो हर बार एक नयी फसल लहलहाने लगती है आप की पोस्ट में...ग़ज़ब का लिखा है भाई...अगर आप नहीं बताते तो येही लगता की ज्ञान भईया या अमर जी को पढ़ रहे हैं...लिखते रहो.....
नीरज
कुश, खूब मिमिक्री की। बस माध्यम बदल गया। इसे लिखित वर्ज़न वाली मिमिक्री कहना पड़ेगा।
ReplyDeleteखूब पकड़ा है।
मैं आपको मेल कर रहा हूं । कृपया ध्यान दीजिएगा ।
ReplyDeleteसुधर जाओ वरना हमे आपके बिगडने का ग्राफ़ छापना पडेगा वो भी पूरे कनफ़्यूनाईड ग्राफ़िक्स के साथ जिसमे हमे आपके ब्रेनवा का जो मैपिंग पिछले बरस कराये थे. उसका नया एडीशन भी
ReplyDeleteकुछ समझे का आप ? अच्छा यही है काफ़ी खत्म हो गई है एक ठॊ नया डिब्बा भिजवाय दो. ताकी हम काफ़ी पीने मे लगे रहे और आप जे पोस्टमार्टम करते रहो :)
शुक्रिया भाई. हम तो पहले ही ताऊ के साथ-साथ इन भाइयों के भी मुरीद हैं. लगता है आपका नाम भी इस लिस्ट में जुड़ने वाला है.
ReplyDeleteआपने ज्ञानदत्त पांडे और डाक्टर अमर कुमार जी की लेखन स्टाइल में लिखकर कमाल कर दिया और हमने अपनी स्टाईल में कमेंट करके कमाल कर दिया।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा जी।
है ना कमाल
।
वाकई मजा आ गया पढ के. आपने हू ब हू इन दोनो को अपनी लेखनी में उतार दिया
ReplyDeleteसूक्ष्म दृष्टि है आपकी
:-) :-)
ReplyDeleteकुश भाई इस की भी जरूरत है ब्लागिंग को। धंधा अच्छा चमकने वाला है।
ReplyDeleteकोई संतई नही ,कोई आतंकवाद नही ...इसे कहते है ओरिजनेलक ठेलक ....या असल की नक़ल .....समझे वतन के सजीले नौजवान !
ReplyDeleteवैसे तुम्हारे टेम्पलेट पर हमारी नजर पड़ गई है ,पिक्चर के पैसे तो देते नही ...अब एक दो टेम्पलेट ही दे दो.......
हा!हा!!हा!!!...आपकी लेखन-शैली के हम कायल हो गये हैं कुश भाई
ReplyDeleteये आईडिया लाते कहाँ से हो?
maza aa gaya.....padhte kaise nahi,
ReplyDelete....style me rahne ka
ऐ भईये इस लिंक को देखो... मैं तो कहता हूँ एक ऐसी ही प्रतियोगिता कराये देते हैं: http://uk.answers.yahoo.com/question/index?qid=20070614052759AAmte1Z
ReplyDeleteकुश कम ही पढ़ा है आपको...मगर अच्छा लगा, हॉस्य भी अच्छा लिखते हो...:)
ReplyDeleteबढ़िया ठेला है! :)
ReplyDeleteतो फिर तैयार हो जाओ और अधिक ब्लागरों को ठेलने को। नहीं ठेलोगे तो दंड पेलोगे -:)
ReplyDeleteभाई कुश जी ये दोंनों तो खुद भी अपनी स्टाइल में लिख रहे हैं पर फुरसतिया अपनी स्टाइल नैनीताल में छोड आये हैं . उनकी स्टाइल में ठेलिए तो मजा हो .आपकी प्रतिभा को तो हमने पहले ही पहचान लिया है . आप को फिल्म मंत्रालय ऐसे ही तो नहीं दे दिया हमने :)
ReplyDeleteक्या खुराफ़ाती दिमाग पाया है। ओरिजिनल ठेलक! मजा आ गया जी!
ReplyDeleteकमाल कर दिया !! :-))
ReplyDeleteमजा आ गया..!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteब्लागिंग से मन भरा हुआ है, फिर भी..
ReplyDeleteपन, अपुन को पेग तो चढ़ाइच नहीं,
चढ़ने नईं सकता, हाज़मा चाइयेराले बाप, हाज़मा !
खाली पीली फ़र्ज़ी पेग चाहे जितना पिला ले, अपुन को चलेंगा !
पन, झक्कास लिखता है,. तू तो रे ?
अपुन तुमको इनाम देना माँगता भाई कुश, ..
बोल क्या माँग रैला यै ?
पन, वो लड़की नहीं माँगने का, जो तेरे को भाई नहीं बोलती...
वोइच तो लफ़ड़ा है, जो तू खुराफ़ात करने को टाइम पायेला है !
ओरिजनल डुप्लिकेट .छा गये कुश .
ReplyDeleteजबरदस्त!!! बेहतरीन!!
ReplyDeleteमजा ही मजा!!
बहुत बढ़िया, कुश..आनन्द आ गया.
एक ही साथ दो दो की मिमिक्री -डुप्लीकेट हो तो ऐसा !
ReplyDeletebhaut khub kush ji
ReplyDeleteलगता है अगली पीढी के ठेलक शिरोमणि का चुनाव हो गया है ! लाजवाब आइडिया है ये आईडिया किंग का ! जीते रहो !
ReplyDeleteराम राम !
bahut hi safai se nakal kartey ho kush!
ReplyDelete-Anoothi prastuti ek naye rang ke saath jo blogging ki monotony ko todti hai.
-is shaili mein likha pichhla lekh nahi padha-abhi padhti hun-
कम्म्माल,जबरदस्त,ल्ल्लाजवाब.......
ReplyDeletebahut hi badhia, maza aa gaya. kya copy kya hai dono ka writing style.
ReplyDeletemazedar post kush bhai.
ReplyDeletehum to aapko dhundte dhundte pahuch jate hia aur ek aap hai ki aate hi nahi :-)
New Post :- एहसास अनजाना सा.....
aur Sir ji ek aadhi achi si theme hame bhi de dijiye na :
ReplyDelete'द ग्रेट इंडियन ब्लॉगरवा शो'
ReplyDeleteAaj pahli baar apka blog dekha. vakai maza aa gaya padhke.
ReplyDeletekushbhai...maza hi kuchh aur hain...
ReplyDeleteऐ कुश की कलम जाग तुझे विवेक जगाए .
ReplyDeleteलिख दे फिर ऐसा कुछ कि मज़ा आ जाए .
pehli baar aapke blog per aaya..maza aa gaya post ko phadkar....
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