खैर उपरोक्त पंक्तियो का मेरे इस लेख से कोई लेना देना नही.. किसी घटना, पात्र अथवा जीवित मृत, या शरीर से जीवित और आत्मा से मृत व्यक्ति से भी इसका कोई संबंध नही है..
आज हम आपको कुछ लोगो से मिलवाने वाले है
एक तो बरसाती मेंढक, दूसरा चश्माधारी, तीसरा आँख का अँधा और चौथा भोंपु
1) बरसाती मेंढक - जो केवल बरसात में बाहर निकलते है
बरसाती मेंढको के बारे में आप लोगो ने सुना होगा.. जो केवल बरसात में ही बाहर आते है और बारिश बंद होने के बाद दुबक लेते है.. ऐसे ही कुछ मेंढक आ चुके है..
उदहारण - पिछले कुछ दिनों से भारत का नपुंसक मीडिया जब चिल्ला चिल्ला के हिंदू आतंकवाद भगवा आतंकवाद की आवाज़े लगा रहा था... तब ये मेंढक छुपे हुए थे... तब इन्हे ये नही लगा की वक़्त सांप्रदायिकता को छोड़कर लोगो को एक करने का है.. और लोगो को समझाना है की आतंकवादी का कोई धर्म नही होता..
पर
2) आँख का अँधा - ये धरती पर ग़लती से आए वो बेचारे है जिनकी आँखे तो है पर वो देख नही सकते
उदहारण - जैसे कोई कहे की आतंकवादी मासूम है.. उन्हे गुमराह किया गया है..
चलो मान लिया की इनको किसी ने इस राह पर धकेला है... तो फिर जिसने इनको धकेला है इस राह पर, उनको किसने धकेला है.. और जिनको उन्होंने धकेला है.. उन्हे इस राह पर किसने धकेला है..
और अगर सिर्फ़ इन आतंकवादियो के मन में नफ़रत पैदा की गयी तो जिसने पैदा की उसके मन में नफ़रत कहा से आई .. क्या वो अपनी माँ के पेट से नफ़रत लेके पैदा हुआ?
और अगर ऐसा है तो फिर ये आतंकवादी क्यो नही नफ़रत लेकर पैदा हो सकते?
मार्कोस के अफ़सर ने स्पष्ट शब्दो में कहा की ये पूरी तरह से प्रशिक्षित थे.. वो जानते थे की वो क्या कर रहे है..
हमारी इच्छाशक्ति के विरुद्ध कोई किसी को इस बात के लिए नही बहला सकता की तुम जाकर मर जाओ पर लोगो को मार के आओ.. जिसने ये काम किया है वो ये जानते थे की वो क्या कर रहे है..
3) चश्माधारी - इनके पास एक चश्मा होता है ये सबको उसी चश्मे से देखते है...
ये वो व्यक्ति है जो कहेगा की मैं एकता चाहता हू.. ये वही बात हो गयी की तेज धूप में खड़ा व्यक्ति कहता है की मुझे धूप चाहिए.. फिर वो बताता है की देखो वहा छाया है और यहा धूप, मैं चाहता हू यहा पर भी धूप आए..
उदहारण - जैसे कोई कहे की तुम मुसलमान हो और वो हिंदू है.. मैं चाहता हू तुम दोनो एक हो जाओ..
एक होने की बात कैसे हो रही है. अलग करके.. ऐसे लोगो से मैं यही कहूँगा की हम लोग एक ही है और एकता से ही रहते है.. पर आप जैसे लोग बार बार हमे आकर ये एहसास दिलाते है की हम अलग है..
4)चुनाव में काम आने वाला भोंपु - जो सिर्फ़ बोलता है सुनता नही है..
भोंपु ऐसे होते है जो सिर्फ़ सुनाने का काम करते है.. सुनते नही है. ये वही बात सुनाते है जो इनको सुनानी हो.. इनके खुद के कान नही होते.. पर यदि ग़लती से आप ये समझ ले की चलो कोई बात नही कान नही है पर दिल तो होगा बात समझ तो सकते है.. और बात को इन्हे बताने गये तो ये आपकी बात ही अनसुनी कर देंगे..
उदहारण - जैसे आपने किसी ब्लॉग पर कुछ पढ़ा और आपने कमेन्ट किया तो ये भोंपु देखेंगे यदि आपका कमेंट इनकी विचारधारा से मेल ख़ाता नही होगा तो ये उसे दबा देंगे.. क्योकि ये नही चाहते की इनकी पॉल दूसरो के सामने खुल जाए..
तो दोस्तो आज की मुलाकात का ये सिलसिला समाप्त होता है..
अंत में
मैं न हिंदू हु न मुस्लिम, मैं एक भारतीय हु और यही मेरा धर्म है,
कुछ भोपू तो " हे भगवान इन्हे माफ़ करना क्योकि ये नही जानते ये क्या कर रहे है " जैसे डायलाग मारते है . कुछ भोपू आपके इस जहा मे पैदा होने पर अफ़सोस जाहिर करते है . ये अलग बात है कि उनके मा बाप उनके जैसे दोगले ट्च्चे घटिया मानव नाम के जानवर के उनके यहा पैदा होने पर आज तक अफ़सोस मना रहे हो :)
ReplyDeleteऔर ऐसे दोनो आख के अंधे आखो पर पट्टी बाध कर बात बात मे आर एस एस गोडसे हाफ़ पेंट जैसे शब्दो को बोलते रहते हो . साथ मे मुसलमान कितने मिलनसार और हिंदू कितने घटिया पर लेखन और फ़िर दोनो एक हो जाये पर भाषण उगलना इन की खास पहचान है
अच्छा भोंपू विश्लेषण है .पर सोलह आने सच लिखा है कुश जी आपने यह भोंपू पुराण ...
ReplyDeleteएक तो बरसाती मेंढक, दूसरा चश्माधारी, तीसरा आँख का अँधा और चौथा भोंपु
ReplyDelete------
हम तो आजकल वन इन फोर देख रहे हैं। फीड एग्रेगेटर पर जाइये और आप भी उनके लिंक खोजिये! :-)
मौसम बरसात या जाड़े का
ReplyDeleteहम हर मौसम में दिखते हैं
हम नहीं रहे अब बरसाती
क्यों ब्लॉगर ऐसा लिखते हैं?
हम चाहे आंख के अंधे हों
सबकुछ हमको दिख जाता है
जो मिले हमें सुख नयनों का
मामला चाक हो जाता है
नयनों का सुख भी अजब-गजब
चश्मा तक लगवा देता है
चश्मा को नाक पर सीधा कर
जो चाहे कहवा लेता है
चश्मा सीधाकर भोंपू ले
हम जब भी आगे आ जाएँ
झाडें तकरीरें गरम-गरम
और सारे जग पर छा जाएँ
हम सदियों तक बस ऐसे ही
ऐसी-तैसी करते रहते
जो चाहो हमको कह लो तुम
जो हम चाहें वो हम कहते
कुश एक प्रकार और भी हैं पीढी सुधारक अपनी बिगड़ गयी सो आगे आनेवाली भी बिगडी ही रहे
ReplyDeleteअरे कुश भाई, आपके ये मेंढक पुराण और भोंपू पुराण पढ़कर मजा आ गया. लगे रहो, एक आध पुराण और पढ़ा देना. आपसे यही उम्मीद है.
ReplyDeleteइस वक़्त जब पूरा देश दुःख हताशा ओर क्रोध में डूबा है .ओर सिर्फ़ एक दुश्मन उन्हें नजर आ रहा है .आतंकवाद ...जो लोग इसमे जात -पात .धर्म..शहर ...गाँव .. मोहल्ला ढूंढते है....वे ठीक उन नेताओ की तरह है जो मौका ओर हालात देखकर अपना सुर बदलते है.."इग्नोर देम"
ReplyDelete"मैं न हिंदू हु न मुस्लिम, मैं एक भारतीय हु और यही मेरा धर्म है,"
ReplyDeleteबेहद सटीक व्यंग भाई कुश ! बेहतरीन स्टाईल में !
रामराम !
भारतीयता ही हमारा धरम है.
ReplyDeleteइन महानुभावों के वर्गीकरण से परिचय कराने के लिए धन्यवाद.
यही सुझाव है- भोले भाले लोग इन से बच कर ही रहे --क्योंकि चतुर व्यक्ति तो इन्हें यथायोग्य जवाब दे ही देते हैं.
बेहद सटीक आंकलन विभिन्न् चरित्रों का
ReplyDeleteडियर कुश,
ReplyDeleteयार बडा ही अच्छा लिख डाला। पता है इस तरह से लिखने वालो को हम "एके ४७नियॉ" कहते। यानी तुम ने दमदार लिखा और अपनी कलम से दूसरा चश्माधारी, तीसरा आँख का अँधा, और चौथा भोंपु कि पेन्ट उतारने कि बात तो सटिक लगी, किन्तु बरसाती मेंढक के रुप मे (उदहारण - पिछले कुछ दिनों से भारत का नपुंसक मीडिया ) पत्रकारो पर आपकी नारजगी समझ मे नही आई। फायर ब्रॉणड कि तरह लिखते रहे।
एक एक शब्द मे, सो-सो चेहरे है,
एक एक चेहरे पर सो सो पहरे है।
किसे सुना रहे हो गीता और कुरान,
हॉ सुनने वाले जन्म से बहरे है॥
ये शासक है तब तक ये हमे सतायेगे
दुसरे भी इसी तरह नोच-नोच कर खायेगे।
नही बन्द होगा यह सिलसिला अगर हम,
त्याग कि जमीन पर नई पोध नही लगायेगे॥
न मै हिन्दु हु ना मुसलिम, ना सिख, ना हू ईसाई, सबसे पहले मै इन्सान हु,फिर भारतीय, फिर हिन्दु, मुसलिम, सिख, ईसाई,जैन हु॥॥)
हार्दिक मगलभावना ।
ये तो अक्सर मिलते हैं... अच्छा किया आपने भी मिलवा दिया !
ReplyDeleteकब खुलेगीँ आँखेँ और कब आतँकीयोँ का खात्मा होगा ?
ReplyDeleteअपनी लाजवाब शैली में जम के धज्जियाँ उडीं है आप ने इन लोगों की जो आँख के अंधे नाम नयन सुख वाले हैं....बहुत खूब...आप को पढ़ना एक ऐसी अनुभूति है जो और कहीं नहीं मिलती...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सही लिखा है कुश..
ReplyDeleteवैसे ज्ञान जी कि बात भी मान लेना अगर फोर इन व्न देखना है.. वैसे मुझे पता है कि तुम भी उन्हें जानते हो.. :)
"मैं न हिंदू हु न मुस्लिम, मैं एक भारतीय हु और यही मेरा धर्म है,"
ReplyDeleteमेरा भी यही कहना है.
धन्यवाद
लाजवाब जीतनी तारीफ़ की जाये कम है।शानदार,जानदार और दमदार पोस्ट्।
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण है!!!! पर सोलह आने सच लिखा है!!!!!
ReplyDeleteप्राइमरी का मास्टर
बेहतरीन !! बहुत अच्छे कुश.
ReplyDeleteभाई पंगेबाज और ज्ञान ददा की टिप्पणियों को हमारी टिप्प्णी मानी जाय.
ReplyDeleteये मेंडक जब बरसात के बाद बाहर नहीं निकलते तो भीतर रह कर सीरियल बना लेते हैं। ये आंख वाले आंख के अंधे ही नहीं दिमाग के भी अंधे होते हैं। च्श्मधारी तो किसिम-किसिम के होते हैं, धर्म के, मर्म के, ....और कुछ लाल-चश्म धारी भी जो अलग अलग गुटॊं में रह कर ‘दुनिया के मज़दूर एक हो का नारा लगाते है! भोंपुवाले बहरे तो वेचारे बहरे हैं तो दूसरों की कैसे सुनेंगे?
ReplyDeletebahut behtareen dhang se aapne bhopu ko paribhashit kiya hai,
ReplyDeleteBhopu koi aadmi hota to aapke virodh me aavaj utha deta ki aap aise logon se meri tulna kyo kar rahe hain.
बहुत बढ़िया वर्गीकरण कुश, ऐसे लोगों को ढूंढ कर निकाल रहे हो बधाई, खासकर ब्लागिंग की दुनिया में भोंपूओं को खूब ढूंढा जिनकी विचारधारा आपसे मेल नहीं खाती तो चिल्ला चिल्ला कर सबको बताएंगे कि ये गलत कह रहा है।
ReplyDeleteअज़गर !
ReplyDeleteकुश भाई अज़गर आपको माफ़ नहीं करेगा । इन अज़गरों को तो आप नज़र अंदाज़ कर गये..
कुछ भी हो जाये, टस से मस नहीं होते हैं.. कोल्डब्लडेड क्रीयेचर्स..
बस अपना पेट भरा हो, फिर दीन दुनिया से इनका कोई नाता नहीं रहता !
आज देश में यही बहुसंख्यक हैं, पर आप भी लगता है,
कि अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का अनुपालन करते हुये..
इन चार वर्गों से आगे इनको दरकिनार कर दिया !
इन अज़गरों की सुधि लेयो, भाई ! इनको भी जगाओ ना !
कंचन जी के ब्लॉग पर निः शक्तों से जुड़े आपके अच्छे विचार बहुत अच्छे लगे।
ReplyDeleteशेष शुभ
इति शुभदा
अच्छा लगा संबंध स्थापन और उसका संयोजन।
ReplyDeleteबेहद सटीक वर्गीकरण किया है कुश। आंखो की जिस भी क्वालिटी के ये लोग हैं... जाहिर है समाज के लिए तो नाकारा, निकम्मे और नुकसानदायक ही हैं... अगली बार उम्मीद है कुछ अच्छी किस्मों का वर्गीकरण भी पढ़ने को मिलेगा।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeletebahut satik aur dhardaar likha hai. udaharan ke sath vargikaran bilkul sahi mel karta hai.
ReplyDeletebahut satik aur dhardaar likha hai. udaharan ke sath vargikaran bilkul sahi mel karta hai.
ReplyDeleteबढि़या वर्गीकरण। इन भले लोगों से अक्सर मुलाकात होती है..कुश भाई आपने अच्छा किया जो इन्हें नाम दे दिया।
ReplyDeleteडॉ अनुराग की बात से सहमत हूं। ये वक़्त सिर्फ आतंकवाद और आतंकवादियों के खात्मे के बारे में सोचने का है, उनके मज़हब-जाति का नहीं।
ReplyDeleteजैसे कोई कहे की तुम मुसलमान हो और वो हिंदू है.. मैं चाहता हू तुम दोनो एक हो जाओ..
ReplyDeleteएक होने की बात कैसे हो रही है. अलग करके.. ऐसे लोगो से मैं यही कहूँगा की हम लोग एक ही है और एकता से ही रहते है.. पर आप जैसे लोग बार बार हमे आकर ये एहसास दिलाते है की हम अलग है..
Bahut sahi kaha aapne.Lajawaab aalekh hai.Padhkar aanand aa gaya.
Kush, aapse ek guhaar lagane aayee hun...Mumbaime hue aatankwaadi hamlonke baad maine apne blogpe do lekh likhe hain," Meree Aawaaz Suno", tatha," Ye Jazba salamat rahe"...ek documentary banane jaa rahee hun" Jateeywaad, Aatankwaad aur Suraksha karmiyon"ko maddenazar rakhte hue...sahi sawalonke, aur jawabonke gehrayime utarna chahti hun...kayi aisee sachhaiyan deshwasiyonke aage ujagar karna chahti hun, jis se we mehroom hain...unhen nahee pata ki kis cheezka, kis waqt kaun zimmedaar hota hota hai...aur is haqme deshwaasi kya kar sakte hain..unke siwaa ab Hindustanka koyi anya rakhwala nahee, aur wo vibhajit rahe to vibhajit karnewalonka, mauqaparast raajneeti khelnewalonka, jo har haalme apna ullu seedha karna chahte hain, chahe unhen kiseeki laashko raundke guzarna pade, ham kaam aurbhi aasaan kar denge...yahee to ye mauqaparast chahte hain...deshko bech khana chahte hain...aur yaad rahe, ye sab hamarehi samajki upaj hain...hamareehi maa behnon ke jaye hain...baharse nahi aa tapke..to phir hamehi antarmukhee hoke chintan karna hai ki hamare sanskar kahan chook gaye...? Hamare pariwaarwalon ne kahan galati kee??"Aayiye haath uthayen hambhi, ham jinhen rasmo-duaa yaad nahee, Rasme muhobbatke sivaa koyi but, koyi khudaa yaad nahee..."
ReplyDeleteIntezaarme...
सुंदर विश्लेशण. आभार.
ReplyDeleteविगत दो-तीन दिनों की कोशिश के पश्चात खुल पाया है ये ब्लौग...जाने क्यों बार-बार कोई पासवर्ड की मांग कर रहा था
ReplyDeleteमनभावन रहा ये कुछ चुने लोगों से मिलवाना..
aajkal ye chaaro prakaar hi dekhne mein aate hain...par chaaahe kuchh bhi kahte raho koi sudharne wala nahi hai.
ReplyDeleteपहली बार ब्लॉग पर आया 7-8 लेख इकट्ठे पढ़ गया. मज़ा आ गया. शोले जितनी आप ने दिखाई अच्छे से देखी.
ReplyDeleteइन मेढकों से दोस्ती अच्छी नहीं है कुश !
ये कब तेरा साथ छोड़ कर पानी में डुबुक जाएँ, कुछ पता नहीं !!
उदाहरण के साथ कुछ नाम लिंक देते तो मुझे समझने में सुविधा हो जाती. :)
ReplyDeletekushbhai...deri ke liye maafi. aapne bilkul sahi farmaya hai. hum ek hain...par baar baar alagta ka ehsas dilaya jata hain...gumrah nahi hote woh...bas fitrat hi aisi hoti hain...
ReplyDeletekataksh chitran har ghatna kaa..
ReplyDeleteaur yeh bhi sach hai inhi 4 me se hum bhi koi hai...!
we have to think for us first. If we point our 1 finger to other then rest 4 point on us.
GHANTNAYE HOTI HAI AKHBARO ME CHAPTI HAI..BUDDHI JIVI VARG TARAH TARAH KI TIPPNAI DETA HAI.......
AGAR YAHI TIPPNAIYA JARI RAHI TO SHAYD EK DIN HUM "VICHAR VYAKT KARNE KA MOULIK ADHIKA" KHO DENEGE..!
jo angrazo ke samaya me yaha hota tha..!
desh ki raksha karna...apni job ko bachane jaisa hona chahiye..!(chahe kuch bhi ho yeh job me nahi chodunga, chahe kuch bhi ho bharat maa ki raksha me karoonga...)