नए साल का पहला दिन है... मैं उनिंदी आँखो को मलते हुए उठता हू और दरवाज़ा खोलता हू.. कोई मेरे आँगन में पूरी दुनिया का बंडल बाँध कर फैंकता है.. मैं उसे उठाता हु.. ऊपर नज़र जाती है... सुबह सुबह फिर आसमान में किसी ने सोने का एक सिक्का रख दिया है..
कभी सोचा है की कोई रात को पैदा हो और सुबह मर जाए.. ? ये ओस की बूंदे, रात को आई थी..
मेरे आँगन में लगे गुलाब पर आख़िरी साँसे गिन रही है.. छोटी सी ज़िंदगी भी कितनी खूबसूरती से जी जाती है..
रात को कितने लोगो ने नशा किया होगा...मुझे सुबह की चाय का नशा है.. चाय बनाता हु .. और हाथ में पूरी दुनिया लेकर बैठ जाता हू.. नया साल है.. नये साल की बधाई दी जा रही है.. नये साल पर रेजोलुशन लीजिए.. लिखा है स्मोकिंग छोड़िए.. ड्रिंकिंग छोड़िए.. गाड़ी धीरे चलाइए.. पर ये सब तो मैं पहले ही नही करता.. फिर रेजोलुशन क्या लिया जाए..
और फिर क्या करेंगे.. रेजोलुशन लेकर.. जो कभी पूरे ही नही होते.. क्यो कभी कुछ भी पूरा नही होता. ऐसा लगता है सब कुछ अधूरा है.. अधुरी खुशिया.. अधूरे काम.. अधूरे दिन.. अधूरी राते.. कभी पुरा होने की चाह में कितनी ही ज़िंदगिया अधूरी ही बीत जाती है..
मेरे पापा... अचानक याद आया..
पापा की कितनी ही हसरते मेरे कपड़ो की सिलाई के कुछ धागो के बीच उलझी हुई होगी.. कितने ही सपने मेरी किताबो के उपर चढ़े अख़बारो के कवर में दबे होंगे.. कितना गिल्ट महीने के आखिरी दिनों में मेरे स्कूल के फटे हुए जूतों के बीच से झांक रहा होगा..
पापा..
आज अचानक मुझे सुबह सुबह पापा की याद क्यो आ रही है.. पापा को रिटायर हुए तीन साल हो चुके है.. अब एक और साल बीत गया है.. सब कहते है पैसा हो तो खुशिया मिल जाती है.. क्या पापा के सामने जाकर रख दू चेक बुक.. और कहु की पापा आपके लिए ढेर सारी खुशिया लाया हू..
पर पापा के लिए खुशिया ये नही.. मैं जानता हू.. उन्हे इसमे खुशी नही मिलेगी.. पापा को खुशी तब मिलती थी जब मेरा कोई दोस्त घर के बाहर आकर मुझे आवाज़ लगाता और पापा अंदर मम्मी को मेरे दोस्त का नाम बताते की वो होगा.. और जब बाहर मेरा वही दोस्त होता जिसका नाम पापा ने लिया.. तो उनको बहुत खुशी होती थी..
मगर अब? अब तो दोस्त लोग घर नही आते मैं जो नही हू वहा.. आ जाए तो पहले ही फोन कर लेते है.. मिस कॉल मारू तो बाहर आ जाना.. पापा अब गेस नही करते..
ओस की बूंदे कभी मरती नही.. एक बूँद अभी अभी अख़बार पर गिरी..
अपनी उंगली से उसे हटाया.. एक खबर थी दिल्ली का अप्पू घर बंद होकर अब जयपुर में शुरू होने वाला है.. दोस्तो की फरमाइश याद आई.. इस बार रोलर कोस्टर की राइड पर चलेंगे.. कितना मज़ा आया था ना पिछली बार..
पापा के कंधो की राइड.. जब मम्मी खाना बनाती थी... पापा मुझे कंधे पर बिठाकर बाहर घुमाने ले जाते..पापा के कंधो की राइड के आगे कौन से रोलर कोस्टर की राइड होगी..
ओस की बूंदे मर कर भी नही मरती.. फिर गिर पड़ी..
अख़बार में फिर लिखा है किसी ने रेजोलुशन लिया है.. मोटा होना है.. पतला होना है.. लंबा होना है..
पापा को कोई गिफ्ट दू अच्छा सा? क्या दू?
वक्त ! ........... हाँ यही ठीक रहेगा.. पापा को थोड़ा वक़्त देता हू.. यही रेजोलुशन ठीक रहेगा.. ये साल पूरा पापा के नाम है.. बस
अख़बार बंद कर दिया है.. चाय ख़त्म हो चुकी है.. आसमान में टंगा सोने का सिक्का पिघल रहा है.. एक और दिन बाहर दरवाजे पर मेरा इंतेज़ार कर रहा है... मैं आदतन देर करता हू.. वो बाहर हॉर्न बजा रहा है..
पापा डांट रहे है.. रोज़ स्कूल बस को वेट करवाते हो.. हर काम में देर लगाते हो..
मैं तैयार होकर ऑफीस के लिए निकलता हू... आज का दिन मेरे साथ है.. अब देर नही करूँगा पापा...
नए साल में तुम्हारा इस तरह पापा को याद करना दिल छू गया! तुमने एकदम सही तोहफा चुना है पापा के लिए....उन्हें आज सिर्फ यही चाहिए!
ReplyDeleteसमय तो आप अपने पापा को देगें पर आपकी ये बातें ये अंदाज हमारे दिल में बहुत गहरे उतर कुश ! हम कायल हैं आपके अंदाजे बयाँ के . आपका वादा पूरा हो !
ReplyDeletei wish jo resolution liya hai use nibha sako pure saal bhar..... :) ..aur is baar ki likhawat wapas dil chu gai....
ReplyDeletebahut payri post... :-) :-)
ReplyDeleteNew Post : Din Dhal Jaaye, Haye Raat Na Jaaye..
कुश जी नमस्कार,
ReplyDeleteएकदम दिल को छू लेने वाली बातें लिखी हैं. लग रहा है कि ये बातें किसी और ने नहीं बल्कि मैंने ही लिखी हैं. घर से दूर होकर बड़ी याद आती हैं उनकी. मैं जब भी घर जाता हूँ तो पापा बाहर ही खड़े मिलते हैं, इतनी ठण्ड में भी. ताकि बेटे को किवाड़ ना खडखडाने पड़ें.
पापा को कोई गिफ्ट दू अच्छा सा? क्या दू?
ReplyDeleteवक्त ! ........... हाँ यही ठीक रहेगा.. पापा को थोड़ा वक़्त देता हू.. यही रेजोलुशन ठीक रहेगा..
वाह। दिल को छू गया। आजकल भला कौन सोचता ऐसे।
लिखने का तरीका सुन्दर है.
ReplyDelete".. अब देर नही करूँगा पापा..."
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली बातें!!!!
बहुत ही मर्मस्पर्शी बातें लिखी हैं आपने कुश भाई। यह सब पढ़कर बहुत कुछ दिल दिमाग में तैरने लगा। माता-पिता से बढ़कर दुनिया की कोई सच्चाई नहीं है। संतान को चोट लगती है तो मां-बाप को दर्द होता है, माता-पिता को ठेस लगती है तो संतान आहत होता है। एक के दुखी होने का खयाल ही दूसरे की आह निकलने के लिए काफी होता है।
ReplyDeleteइस खुशी के लिए वक्त ही तो चाहिए, पैसा ये काम नहीं कर सकता ! इससे अच्छा रेजोल्यूशन क्या हो सकता है.
ReplyDeleteजिस माता पिता को आप जैसे कोमल संवेदनशील ह्रदय का संतान मिले ,उस सा सौभग्यशाली और कौन होगा..........
ReplyDeleteआपकी बातों ने तो बिल्कुल भिंगो दिया.निःशब्द हूँ क्या कहूँ.......... हमेश ऐसे ही बने रहें.......
बहुत ही दिल को छु लेने वाला लिखा है आपने कुश ..नए साल का खूबसूरत तोहफा है यह
ReplyDeletepadhkar oos ki kuchh boonden yahaan bhi aa gayeenn...
ReplyDeletemeri bhi yahi kahaani hai kamo-besh...
acchaa lagaa padhkar !!!
जिसको आप जैसी औलाद मिल जाये उसको तो यही जन्नत है. भाई लगता है अबकि बार आपकई वजह से जयपुर रुकते हुये जाना पडॆगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार के साथ सुन्दरतम भाव. लेखन मे तो आपकी कलम कौन पकडेगा? धार और भावनाएं बनी रहें, यही प्रार्थना इश्वर से.
रामराम.
bahut dino baad kush style me likhe ho.. bahut badhiya likhe ho.. ya fir ye kahun ki meri man ki baaten chura liye ho?? vaise is baar mere papa ka resolution hai ki vo thora vakt mujhe den retire hone ke baad.. :)
ReplyDeletemain kaamna karta hun ki aap apni resolution puri kar sake...bahut accha laga padh kar..
ReplyDeletebahut hi achcha resolution hai..yah saal papa ke naam..
ReplyDeletesach mein aap ke papa bahut khush hue hongey.
unki sabhi umeedon par khare utrne ki koshish karna.
naye varsh ki dher sari shubh kamnaon ke saath
नसीब वाले हैं....
ReplyDeleteयादों की पोटली और उसमे ढेर सारा प्यार हर किसी को नही मिलता......
अक्षय-मन
बेहतरीन यादेँ उभरी हैँ कुश जी -
ReplyDeleteऔर सोने का सिक्का और पापा के प्रति प्यार और आदर मन को बहुत भाया
स-स्नेह,
- लावण्या
बेहतरीन पोस्ट। अभी-अभी पढ़ी। पढ़ के मन खुश हो गया। क्या तारीफ़ करूं! बस यही दुआ है तुम्हारी मुराद पूरी हो!
ReplyDeleteओस की बूंदें मर कर भी नहीं मरती...और पापा के लिये ये अमूल्य गिफ्ट
ReplyDeleteईश्वर करें हम सब ये वादा पूरा कर सकें
bilkul dil ko choo lene vala bat likhi hai! बिल्कुल सत्य लिखा है आपने!
ReplyDeleteलाजवाब लेखन....भाई वाह...
ReplyDeleteनीरज
ReplyDeleteपापा को एक अच्छी सी बहूरानी का गिफ़्ट दे,
और.. पूरा साल नहीं, बल्कि पूरा जीवन उसके नाम कर दे !
हमरी न मान, तो पापा से पूछ ले !
यह अपनत्व की तू तड़ाक है, बवाल न कर दीजो !
पुरे भारत के नोजवान ऎसा ही सोचे तो, भारत मै वर्द्ध आश्रम खुले ही ना, लेकिन सोचे ही नही ऎसे बने तब बात बने.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आप ने
धन्यवाद
bahut khoobsoorat likha hai yaar, dil ko chhoo gaya. bahut acchi gift bhi de rahe hain aap papa ko. ishwar kare ek behad khushiyon bhara saal aap apne papa ke sath bitayein.
ReplyDeletemai bas padhti rahi kal se aaj tak kai baar
ReplyDeletepapa yaad aa rahe hain ab ghar men koi ghanti nahi bajata mobile par ring karte hain log
kal se soch rahi hun ki ek comment likhoon par kya likhoon samajh men nahi aa raha hai
मैं आपकी रचनाओं को बहुत पहले से पढ़ता आया हूं, हमेशा की तरह ह्रदयस्पर्शी.
ReplyDeleteअद्भुत भाव संप्रेषण... मर्मस्पर्शी... वाह.. कुश जी वाह...
ReplyDeletebehtarin lekhan!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है, दिल को छू गया
ReplyDeleteओह मित्र, मैं तो अपने सीनियर सिटिजंस के कारण ही यहां रह रहा हूं।
ReplyDeleteऔर उनका साथ मन को सुकून देता है।
अभी-अभी पढ़ी। बहुत सुन्दर विचार के साथ सुन्दरतम भाव,पापा के प्रति प्यार और आदर मन को बहुत भाया .
ReplyDeleteधन्यवाद
वाकई वक्त से बढिया उपहार कुछ नहीं हो सकता अपने परिजनों के लिए। सुंदर लिखा आपने।
ReplyDeleteaapne bahut hi sundar likha hai,isi tarah aap likhte rahe,aap kabhi hamare blog par aaiye,aap ka swagat hai,
ReplyDeletehttp://meridrishtise.blogspot.com
naya saal mubarak,aur waqt ki pabandi ka resolution hi achha laga.magar kuch din baad wahi routine der se uthna,bahut sundar lekh khs kar papa ko jo baatein apne sambhodit ki hai.
ReplyDeletebahut sundar rachna, gahan aur marmasparshi. naye saal par purane rishto ko waqt dena ka resolution bahut achcha laga
ReplyDeleteजावेद साहब का एक शेर याद आ गया
ReplyDelete"जाती रही लम्स की गर्मी बुरा हुआ
गिन गिन के सिक्के मेरा हाथ खुरदुरा हुआ "
ऐसा ही हो रहा है ...रोज कई सिक्के जमा करके हम दिन को खर्च कर रहे है......मुझे भी याद है पापा जिस रोज रिटायर हुए थे ..अजीब से निराश थे....वैसे इस उम्र में मुझसे भी ज्यादा सक्रिय है ...पर डॉ अमर कुमार की बात पर गौर करो भाई....इस साल जयपुर आना है.
पूरी पोस्ट बहा ले गई. बहुत सुन्दर लिखा है इससे बेहतर नये साल के लिए आखिर क्या सोचा जा सकता है. शाबाश!!!
ReplyDeleteशुभकामनाऐं.