पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे..
उसने खिड़की बंद नही की... पता नही क्यो उसे आज सुबह से ही लगा था कोई तूफान आने वाला है.. तेज़ हवा का एक बदतमीज़ झोंका खिड़की को खोलते हुए अंदर तक आ गया...
पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे...
उसकी नज़रे मोबाइल पर टिकी थी.. फिर एक बार मोबाइल की घंटी बजी.. वो देखता रहा स्क्रीन पर.. पूरी रिंग गयी.. उसने फोन नही उठाया.. कल शाम से वो ऐसा कितनी ही बार कर चुका था...
पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे...
उसने खिड़की की तरफ देखा.. आसमान लाल हो चुका था.. आज आँधी बड़ी ज़ोर से आने वाली थी.. उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई.. वो खिड़की की तरफ ही देखता रहा.. अबकी बार दरवाजा और तेज़ी से ख्टाकाया गया.. .वो उठा उसने दरवाजा खोला और फिर एक झटके के साथ बंद कर दिया.. मगर बाहर से धक्का लगा.. वो पीछे गिरा..
एक तेज़ हवा के झोंके की तरह वो कमरे के अंदर तक आ गयी..
वो मुँह फेर कर खड़ा हो गया..
सहमी हुई आवाज़ में वो बोली.. "तुमने कल मुझसे पूछा था ना की तुम मुझसे शादी कैसे कर सकते हो ये जानते हुए की मुझे एड्स है.." अबकी बार बादल बहुत ज़ोर से गरजे थे..
मैं उसी का जवाब देने के लिए यहाँ आई हूँ.. तुम्हे इतने फोन किए पर तुमने उठाया नही.. मैं जानती हू ये तुम्हारे लिए भी मुश्किल होगा.. तुमने ठीक कहा था मुझे एड्स है तो तुम मुझसे शादी कैसे कर सकते हो? फिर उस से क्या फर्क पड़ता है.. की हमने एक दूसरे के साथ रहने की कसमे खाई थी.. तीन सालो में तीन सुहानी सादिया मैने तुम्हारे साथ गुजार दी.. वो एक ही साँस में सब बोले जा रही थी..
पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे...
इसीलिए मैं यहा तुमसे कहने आई हू.. की मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. और एक नयी ज़िंदगी की शुरुआत करो.. मेरे साथ जीने में तुम्हारे लिए कुछ नही रखा है.. मैं यहाँ से बहुत दूर चली जाउंगी.. तुम्हारी ज़िन्दगी से भी..
खिड़की से आए तेज़ झोंके ने पानी का गिलास गिरा दिया.. छन्न छन्न की आवाज़ कमरे में बिखर गयी..
वो दबे कदमो से उसकी तरफ मुड़ा.. और पास में पड़े पन्ने उसकी ओर बढ़ा दिए.. वो उन्हे हाथो में लेकर देखती रही.. फिर उसकी तरफ नज़र उठाकर देखा.. अब तक उसकी आँखो में आँसू आ गये थे.. उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गयी थी.. अब तक वो ये जान गयी थी की कल जिसने उसे एड्स होने के कारण छोड़ने की बात कही थी.. ये एड्स उसे उसी ने दिया है..
रिपोर्ट के पन्ने उसके हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिर पड़े.. एक असीम सुकून उसके अंदर तक उतर गया.. वो नही जानती थी की क्यो उसे इस बात से बहुत खुशी हो रही थी..
उसने दबी आवाज़ में लड़की से पूछा क्या अब तुम मुझे छोड़ दोगी?
आसमान में एक बिज़ली ज़ोर से कड़की... उसने कोई जवाब नही दिया.. और तेज़ कदमो के साथ बाहर निकल गयी..
बादल बहुत तेज़ बरस रहे थे.. कुछ इस तरह से जैसे आज ये आखिरी बारिश हो... ऐसा तूफान पहले कभी नही आया था... वो दरवाजे की तरफ देखते हुए खड़ा रहा..
पन्ने हवा में अभी भी उड़ रहे थे..
bahut sundar rachna, kalpanaon mein itne sundar rang kahaan se bharte ho kush
ReplyDeleteTom Hanks ko ye story milti to 'philedelphia' ki story aur naam dono
ReplyDeletealag hotein...
waqaii me yatarth ke qareeb hai...
aur is par ek badhiyaa si short film ban sakti hai...
BRAVO!!!!
tum vridhdhaashram aur vridhdhon ke jeewan par bhi kuch likho...
आज का एक कड़वा सच जिसे तुमने सही लफ्जों में ढाल दिया है .सही अंत किया इसका ..अच्छी लगी यह
ReplyDeleteकुश जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है. बधाई स्वीकारें.
एक बेहतर मगर संवेदनशील रचना। बधाई।
ReplyDeletekamal ki kahani likhi hai kush.mujhe iska ant bhi bahut pasand aaya.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन कहानी ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत संवे्दनशील कहानी..
ReplyDeleteकुश जी,
अगर एड़्स कि जगह एच आई वी का उपयोग करें तो ये तकनीकी रुप से ठीक रहेगा
जीवन की सच्चाई को बहुत ही मार्मिक ढंग से बयां किया है। बधाई।
ReplyDeleteआज का एक कड़वा सच जिसे सही लफ्जों में ढाल दिया है ......मार्मिक ढंग से बयां किया है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteमार्मिक कथा है.मन भर आया पढ़कर.एक बड़ी सशक्त फ़िल्म देखी थी इसी विषय पर जिसने अन्दर तक झकझोर दिया था, उसकी याद आ गई.
ReplyDeleteपन्नों पर पेपरवेट रख दो, कहानी तो उम्दा है।
ReplyDeleteओह डीयर, समझ नहीं आता क्या टिप्पणी करें। जो भी करेंगे, हल्की ही होगी।
ReplyDeleteThis is a sad reality of modern world.
ReplyDeleteYour short story is effective.
एक अजीब सी भावना को अपने पन्नों की तरह उड़ा दिया ,
ReplyDeleteअभी भी दिल-दिमाग में बिजली सी कौंध रही है........
क्या बात है, अति सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
प्रकृति में और पात्रों के दरम्यान आपने सुंदर कशमकश दिखाया है, कथा की नाटकीयता भी काफी रोचक है।
ReplyDeleteWah...! Kitnee khoobsoorteese kahanee pesh huee aur khatm huee...kuchh aur kehnekee zaroorathee nahee..stabdh ho gayee hun..!
ReplyDeleteशिल्प, शैली में आपके स्टाइल की एक अच्छी रचना...लेकिन कुश जी आपसे कथानक में और नवीनता की अपेक्षा है, जो आपने ही जगाई हुई है.
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह बांधा है इस संवेदनशील विषय को. बढ़िया.
ReplyDeleteपर अब भी
ReplyDeleteह्रदय में मचलता सागर
होठों से नही निकलेगा
बुन लीं हैं हमने मुश्किलें ऐसीं
कि कोई रास्ता नही निकलेगा।
बहुत खूब।
सन १९९९ से २००१ तक मै नाको के उस प्रोजेक्ट के साथ जुडा रहा जिसमे ढेरो HIV पशेंट के संपर्क में आया ,हैरानी की बात थी उस वक़्त बिहार ओर पूर्वी उत्तरप्रदेश के कितने मजदूरों को जो मुख्तया वहां माइग्रेशन पोपुलेशन के तौर पर थे ओर उसमे से कितने लोग अविवाहित थे ...कभी कभी सोचता हूँ की कितने लोग अभी भी tip of iceberg की तरह इस रोग से संक्रमित है.....अपनी आँखों से मैंने एक बहुत ही प्यारी बच्ची ओर उसकी मां को देखा है ..जिसमे पति को ये रोग पहले से था (शादी से )पर उसने समाज के भय से छिपाए रखा ......पर अपने साथ दूसरी जिंदगी को खतरे में डाल दिया ......
ReplyDeleteइसी विषय पर मैंने दो पोस्ट लिखी है अपने तजुरबो के नाम से...
बहुत सटीक उम्दा कहानी.धन्यवाद कुश जी .
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया कहानी लिखी हैं आपने .बधाई
ReplyDeleteकुश भाई...सबसे पहले तो क्षमा इस बात पर की मैं देर से इस पोस्ट पर पहुँचा....हैरान हूँ की ऐसी चूक हुई कैसे...और भी अधिक हैरान हूँ तुम्हारी लेखन शैली और कथ्य को पढ़ कर, जिस नौजवान से मैं जयपुर में मिला था उसमें इतनी संवेदनाएं भरी हुई हैं इसका अंदाजा तब नहीं हुआ था... बहुत बहुत अच्छी रचना है तुम्हारी...ऐसा लेखन तुम्हें एक दिन बहुत ऊचाईयों पे ले जाएगा...देखते रहना...मेरी शुभकामनायें...
ReplyDeleteनीरज
sundar aur samvedansheel rachna
ReplyDeleteranjan ji ki baat sahi hai HIV jyada sahi lagega.
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकमानांयें
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!!आभार
परिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteपिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभ कामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। यही प्रभू से प्रार्थना है।
ReplyDeleteबेहतरीन...........
ReplyDeleteबस्स और कुछ नहीं..
Itni khoobsurat rachna ke baad kaha gum ho gaye kush ji aap? jaldi se kuch aur likhiye taki hume kuch acha padhne ko mile :-)
ReplyDeleteNew Post :
खो देना चहती हूँ तुम्हें..
भाई कुश जी
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामना . आप सशक्त कलम के धनी रहे. ढेरो बधाई
Hi Kush,
ReplyDeletejanamdin ki dher sari badhyeeyan aur shubh kamnaYen.ishwar tumhen har man-chahi khushi de.
aaj bahut dino baad tumhare blog ka naya ruup dekha--bahut hi sundar hai aur tumhari creativity ki jhalak dikha raha hai.
kahani bhi achchee hai..ek cineplay ki trah...
i have seen the movie named " 10 kahaniya", some incidents are quite similar to story.
ReplyDeleteBeautifully expressed the thoughts, like writer himself telling his story...! he.he..
neways..good one.