कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)
थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..
प्रात की मधुर बेला.. ब्लॉग जगत की पावन धरा के पास ब्लॉगी नदी शांत गति से चल रही है. समीप ही एक आश्रम नुमा स्थान है, जिसके बाहर ब्लोगाश्रम का चिन्ह भी लगा है.. सभी ब्लॉगर अपनी अपनी शंकाओ का निवारण कर के आश्रम में आ रहे है.. परम पूजनीय ब्लॉग बापू अर्तार्थ ब्लोगाश्रम के गुरुजी अपनी कुटिया में ध्यानमग्न है अथवा अपनी लॅपटॉप पटटिका पर अपने कोमल करो से टिप्पणिया लिख रहे है..
समस्त वातावरण ब्लॉग मय हुआ जा रहा है.. सभी ब्लॉगर आकर अपना अपना आसन ग्रहण कर रहे है.. कुछ एक ब्लॉगर अलग से जा बैठे है.. अपनी अपनी चर्चाओ में सभी मग्न है.. आइए सुनते है इन्ही ब्लॉगरो में से इन दो ब्लॉगरो का संवाद..."क्यो मित्र आज कल तुम टीपिया नही रहे हो हमारी ब्लॉग पर? सब कुशल तो है.."
"क्या कहु बंधु, जबसे इस उदर रोग से पीड़ित हुआ हू.. अधिकांश समय तो नहर पे उकड़ू बैठते हुए ही व्यतीत हो रहा है.. हस्त प्रक्षलित करता हू की फिर से.."
"बस बस मित्र में समझ गया.."
आप इनके चक्करो में मत उलझिए.. ये इसी प्रकार के बहाने बनाने में कुशल है.. ब्लॉगर जो ठहरे. इन्ही की भाँति और भी ब्लॉगर है जो अपने गुरुजी की प्रतीक्षा में बैठे है.. गुरुजी इन्हे बहुत प्रिय है.. ये सभी गुरुजी की बाते बड़े ध्यान से सुनते है.. एवं उनका पालन करते है.. गुरुजी के लिए इनके मन में जो अपार श्रद्धा वो देखिए इन ब्लॉगरो के संवाद में..
"क्यू मित्र ये बुढऊ अभी तक आया क्यो नही? क्या कर रहा होगा अंदर.."
"पता नही मित्र कदाचित् रात्रि अधिक देर तक बैठकर लेख लिखा हो तो अभी तक शय्या पर ही आसीन हो.."
"इसका भी कुछ समझ नही आता मित्र"
"क्या कर सकते है?"
इनसे थोड़ी ही दूरी पर कुछ ब्लॉगरो का जमावड़ा था.. वे आपस में चर्चा कर रहे थे..
"क्या बात है मित्र आजकल तो तुम बहुत अच्छा लिख रहे हो.."
"बस दुआ है आपकी.. वैसे लेखन तो आपका भी कुछ कम नही. ऐसा लगता है माता सरस्वती का आशीर्वाद है आप पर.."
"अरे कहा मित्र.. हम तो बस यू ही.."
इतने में अचानक एक कीड़ा आकर इनकी पीठ पर सवार हो जाता है.. दूसरे ब्लॉगर ने कीड़ा भगाया..
"मित्र कीड़ा चलने से खुजली सी होती प्रतीत होती है.. तनिक अपने कोमल करो से खुजा दो तो मैं धन्य हो लू.."
"अरे कैसी बात करते हो मित्र.. हम नही खुज़ाएँगे तो कौन खुज़ाएगा.. उस दिन जब हमे खुजली मची थी.. तब आपने भी तो खुज़ाया था.."
और दोनो खिलखिलाकर हंस पड़े.. बाकी के ब्लॉगरो ने पीछे मुड़कर देखा.. और फिर अपनी अपनी चर्चा में लीन हो गये..
इतने में कोई ब्लॉगर चिल्लाया... गुरुजी आ गये गुरुजी आ गये..
गुरुजी अपनी कुटिया से निकले.. पीछे पीछे दो चेले उनकी लॅपटॉप पट्टीका उठाए.. आ रहे थे.. सभी ब्लॉगर अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गये.. और झुक कर गुरुजी को प्रणाम किया.. कुछ गुरुजी जी के प्रिय ब्लॉगर तो इतना झुके की नीचे ज़मीन पर बैठा एक कीड़ा उनकी नाक में घुस गया.. उनमे से एक आध ने तो ज़ोर से छींक कर उस कीड़े को वायु मंडल की नमी को सादर समर्पित किया..
गुरुजी ने सबको बैठने के लिए कहा.. और स्वयं अपनी लॅपटॉप पट्टीका खोलकर बैठ गये..
सभी ब्लॉगर सहमे हुए से बैठे थे.. की गुरुजी पता नही इनमे से किसकी ब्लॉग खोल कर शुरू हो जाए.. सबकी नज़रे गुरुजी के चेहरे पर टिकी थी..
गुरुजी का चेहरा तेज युक्त मानो अपने सबसे घटिया लेख़ पर सौ टिप्पणिया लेके बैठे हो.. मंद मंद मुस्कुराते हुए.. आज किसी चेले की शामत आने वाली है.. गुरुजी जब भी किसी की ठुकाई का मानस बना लेते है.. तब उनके चेहरे पर ऐसी ही शीतल मुस्कान रहती है..
अचानक चेहरे के भाव बदले.. उन्होने पूछा अड़ंगा राम कहा है?
अड़ंगा राम जी अपने दोनो करो को जोड़े हुए खड़े हुए..
"क्या हुआ स्वामी?"
"अबे स्वामी के पूत! क्या टिप्पणी कर रहे हो तुम सुंदरलाल के ब्लॉग पत्र पर.."
"स्वामी वो सुंदर लाल बड़ी असुंदर पोस्ट लिख रहा था. इसीलिए मैने कहा की ऐसा मत लिखो वरना ठीक नही होगा.. अब गुरुजी कोई इस तरह की पोस्ट लिखे और हम कुछ ना बोले ये तो ग़लत है ना.."
"ग़लत और सही हमे मत सिख़ाओ.. अपने ब्लॉग पत्र पर लिखने के लिए सभी स्वतंत्र है.." गुरुजी आवेश में बोले..
"जब तुमने अपने ब्लॉग पत्र पर आलू बुखारे के विषय में चौबीस लेख़ लिखे थे.. तब दूसरे ब्लॉगरो का मन भी यही किया था की वो आलू बुखारा उठाके तुम्हारी ........... में घुसा दे... लेकिन उन्होने संयम रखा.. अब तुम भी संयम रखो.. वरना अगर मैने संयम खो दिया तो फिर.."
गुरुजी की बात को बीच में ही काटकर.. अन्यी ब्लॉगरो ने नाद किया.. धन्य हो.. धन्य हो..
अड़ंगा राम जी समझ गए की अभी मौन रहने में ही भलाई है..
गुरूजी फ़िर से पटटिका में मुंह घुसा के बैठ गए.. दुसरे ब्लोगरो की भी साँसे अटकी..
अजी आप क्यो अपनी साँसे अटका रहे है.. आपका नंबर अभी नही है.. लेकिन अगला नंबर किसका है ये देखेंगे हम अगली पोस्ट में.. तब तक गुरु जी को डिस्टर्ब न किया जाए..
जारी
:D .. ha ha ha ..... kya khub likha hai kush...bilkul tadrashay ho raha tha padhte wakt..... aisa lag raha tha ki main kisi nadi ke kinare par shant chitt kahi paas mein badi tanmayata se ye pura khel bhajata hua dekh rahi hu .... kamal ki varnan kiya hai ..... badhai... :D
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ReplyDeleteसाँसें तो अटक ही गयीं हमारी....तुम कहते हो कि साँसें न अटकायें !हे भगवान..... जिस दिन हमारी बारी आये उस दिन इस पोस्ट को अंतर्ध्यान कर देना! और हाँ..इन गुरूजी का नाम पता बता दो तो उन्हें पटा लें कुछ दे दिवा कर!
ReplyDeleteबहुत मस्त पोस्ट...मस्त आइडिया!
हे भगवान दया !! कुश बाबा आपका दिमाग बहुत दौड़ता है :) मजेदार है .....अब पता नहीं कौन कौन आएगा आपके इस फेरे में ..:)
ReplyDeleteबहुत खूब कुश जी बहुत ही बढ़िया और मजेदार पोस्ट है। अगला नम्बर किसका है इंतजार रहेगा।
ReplyDeletehmmm....to ab blog par bhi baba log aane lage. Aapne ek taraf coffee with kush me blog ka Star TV shuru kiya hai aur ab blogashram me blog jagat ka Sanskar channel.
ReplyDeleteBahut mazedaar hai.
वाह, बहुत से लोग पादुकाराज का स्मरण - आस्वादन कर रहे हैं। बहुत सी ज्ञानचतुर्वेदीय पोस्टें आनी चाहियें!
ReplyDeleteआपकी लीड के लिये साधुवाद!
हा हा हा बहुत सुन्दर कल्पना है। हास्य के माध्यम से आपने बहुत कुछ कह दिया। पढ़कर बहुत आनन्द आया। अति सुन्दर। हृदय से बधाई। सस्नेह
ReplyDeleteधन्य हुए वत्स...हम धन्य हुए. भाषा-शैली अद्भुत...तथ्य तो पराद्भुत...
ReplyDeleteनए-नए प्रयोग करने में आप महारतगति प्राप्त कर चुके हैं, हे ब्लॉगरश्रेष्ठ. ऐसी अद्भुत ब्लॉगरचना के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद.
कुश भाई
ReplyDeleteपात्र और सुपात्र में येही फर्क होता है...पात्र को भेंट दो तो वो उसका सदुपयोग करता है कुपात्र को दो तो वो उसे कचरा पात्र में डाल देता है...आप ने मरीचिका पुस्तक का कितने मनोयोग से अध्ययन किया है, ये आप की इस पोस्ट की भाषा और शैली से स्पष्ट ही विदित हो जाता है. बहुत उत्तम लेखन कर रहे हो मित्र...हमारी शंका का, की आप ने पुस्तक खोली भी है या नहीं, पूर्ण निदान हो गया है...अहो अहो कह कर मन आप पर पुष्प वर्षा करने का हो रहा है मित्र...क्या कहते हैं...करदें?
नीरज
गुरूजी का पता या मोबाइल नंबर मिल जाता तो....?
ReplyDeleteek rochak prasang....
ReplyDeleteउच्चा कोटीय रचना के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteकुश जी, आप नित नवीन व रुचिकर प्रयोग रुपी पोस्ट लिख रहे हैँ साधुवाद जी ! :)
ReplyDeletelikhne ka style waqayi bhaut achha hai
ReplyDeleteshabad aur unki lay jab bhi padho ek saans main hi padh lete hain
अभी जारी है तो क्या कहें -पञ्च लाईना का इंतज़ार है !
ReplyDelete"क्या बात है मित्र आजकल तो तुम बहुत अच्छा लिख रहे हो.." :-)
ReplyDeleteरात्रि बेला में ब्लॉगी नदी में स्नान करने उतरा तो आपके आश्रम में चला आया, चकित करने वाला दृश्य सर्वत्र उपस्थित था। प्रवेश द्वार पर प्रहरी भी मौजूद थे। पर वे आपस में यूँ ही बात करते रहे,अंदर आने पर उन्होंने न मुझे रोका, न टोका, मैं हतप्रभ रह गया, बल्कि पूछा कि यात्रा से थके आयें हैं, तनिक विश्राम करके जाइएगा..... जारी।
ReplyDeleteकुशजी, पढ़कर चिन्मय आनंद का सुख प्राप्त हुआ। धॉंसू लेख।
कुश भाई लगे रहॊ, अपने गुरु की उमर तक पहुचते पहुचते १०० तक पहुच जाओगे....
ReplyDeleteवेसे आज कल सुना हे टिपण्णिया भी राशन कार्ड पर मिलने लगी हे.
एक अति सुन्दर लेख के लिये धन्यवाद
ये बाबा जी कुछ जाने पहचाने से लग रहे हैं भई!! जरा नाम पता दे देते तो ठीक रहता. :)
ReplyDeleteजारी रहो..आगे इन्तजार है.
sahi chal rahi hai, aage ka intejaar hai dekhen kya gul khilta hai
ReplyDeleteउन बाबाजी का नाम तो पता नही पर आपका नाम ज़रूर स्वामी सम्पूर्णान्द रखना पडेगा,बाकि पन्चो की राय,आखिर हम इस आश्रम के नये चेले जो ठहरे,मस्त पोस्ट,मज़ा आ गया।
ReplyDeletekush, abhi kuch comment padhe aapke blog par ....last comment kiya gaya hai ki aapka naam jarur swami sampurnanand rakhna padega.....kya kahte ho ..... :) ... gulzar ji ka sahi naam ....sampurnsingh hi hai.... :) ..rakh lo yaar sach mein ..
ReplyDeleteचलो यह भी अच्छा है... चोट खाए ह्रदय से उच्च कोटि की रचनाएँ निकल रही है :-)
ReplyDeleteअति सुंदर,वाह कुश जी..आजकल अपने ब्लॉग जगत में व्यंग की बाढ़ आई हुई है.
भाई इब त किम्मै सोचणा पडैगा ताऊ न भी ! यो तो बात ही
ReplyDeleteसर पै तैं निकली जावै सै ? यो गुरुजी का नाम पता देदो हमको तो !
कुश जी बड़ी आनंद दायक पोस्ट ! बहुत शुभकामनाएं !
धन्य हो सखा, गुरूदेव को हमारा भी चरण स्पर्श कहें.
ReplyDeleteमजेदार पोस्ट बनी है... वैसे ये गुरू जी कौन हैं? पता लगे तो इनसे अच्छे समाधान निकाल कर खुद ही उस पदवी पर बैठने का इंतजाम कर लिया जायेगा :D
ReplyDeleteधन्य-धन्य। इस किताब का निचोड़ स्टाइल पेश किया है। मजेदार पोस्ट। ग्रहणशीलता धांसू है। प्रस्तुति धांसू च फ़ांसू। कैसे पहले न देख पाये।
ReplyDeleteअद्भुत है...कुश
ReplyDeleteकैसे कर लेते हो यार!
ये उन दिनों के पोस्ट हैं जब मैं ब्लौग पर नया-नया आया ही था...और चतुर्वेदी जी का स्टाइल..अहाहा!
अगली किश्त पे जा रहा हूँ
हमारी ही पोल खोल रहे हो वत्स !!
ReplyDeleteआंय, खुश तो बहुत होगे तुम....
चलो चरण-धूलि जल्दी से लेलो फिर हम चलें.
पर इतना भी मत झुकना कि नाक में कीड़ा ही घुस जाय. हर बार कीड़े बाहर नहीं आते....
कहीं ऐसा न हो कि फिर हमें अपनी पादुका का प्रयोग करना पड जाए.
मस्त है।
ReplyDeleteभाई साहब शानदार लेखन | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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