कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)
थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..
पूर्व में हमने देखा ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..
गुरुजी अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसाए बैठे थे.. जो चेले टिप्पणी पाने के लिए कतार खंडित करके अग्रसर हो जाते थे.. वो भगवान से प्रार्थना कर रहे थे की उनकी बारी आज नही आए..
सुंदर लाल जी को स्वयं अपनी दृष्टि में धोबी पछाड़ लगाने के पश्चात् गुरुजी ने उच्च स्वर में कहा
"असुंदर लाल कहा है?"
"असुंदर भाई आश्रम की अघोषित परंपरा के अनुसार कर जोड़े हुए खड़े हुए"
"हे गुरुओ में श्रेष्ठ क्या भूल हुई हमसे?"
"श्रेष्ठ कि सर्वश्रेष्ठ ? गुरुजी ने आशंका व्यक्त की"
"गुरुओ में सर्वश्रेष्ठ स्वामी!"
"हुं अब उचित है.. परंतु ये अनुचित है की तुम्हारे ब्लॉग पत्र पर पोस्ट से ज़्यादा तो तुमने भिन्न भिन्न आयामो वाले अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगा रखी है .. पाठक तुम्हारी पोस्ट का स्वाद ले या फिर तुम्हारे चित्र का ?"
"अभयदान दे तो कुछ कहु स्वामी?"
"कह तो ऐसे रहे हो जैसे हम यहा प्रतिदिन दो चार को मृत्यु दंड देते है.... कहो क्या कहना है.."
"प्रभु हमे किसी ने कहा की ब्लॉगपत्र पर सुंदर चित्र लगाने से पाठक बहुत आते है.."
इतना सुनते ही पूरा आश्रम ठहाको से गूँजायमान हो उठा.. गर्दभ धरा पर लुट्ने लगे.. वृक्षों पर पक्षियो के पेट में बल पड़ गये.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समस्त धरा अपने मुँह पर हाथ रखकर हंस रही है..
गुरुजी भी हँसने लगे.. उनके हँसने से उनके उदर में कुछ हलचल सी हुई.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ब्लॉगी नदी के तट पर लहरे उत्पन्न हो रही हो..
पुन: ये तो रही ब्लॉग जगत की पावन धरा की बात यहाँ का तो आकाश भी इतना निराला है की एक पूरी ब्लॉग पुराण इसी पर लिखी जाए.. यूँ तो आकाश में पवन के वेग से भी तीव्र गति से उड़ने वाले यान गमन करते रहते है.. परन्तु इन सबके मध्य भी एक विशेष वातानाकूलित विमान है.. जो ब्लॉगरो के पुण्य कर्मो पर पुष्पवर्षा करता है.. जी हाँ देवताओ का विमान..
देवताओ के विमान की ये विशेषता है की इसमे एक विशाल उदर का स्वामी विराजता है.. जो ब्लॉगरो के सद्कार्यो अथवा उनकी सद् पोस्टो पर टिप्पणी वर्षा करते हुए अहो अहो का नाद करता है.. ब्लॉगजगत के श्रेष्टि वर्ग में यदा कदा इनकी टिप्पणिया मिल ही जाती है..
यधपि कुछ ब्लॉगरो पर इनकी टिप्पणी वर्षा नही हो पाती.. वो इस अपेक्षा से पोस्ट लिखते है की हमने सृष्टि की महानतम पोस्ट रच डाली है.. और अब तो स्वयं ब्रह्मा जी भी अपने विमान में बैठकर आएँगे और इन पर टिप्पणी वर्षा करेंगे..
परंतु इनके स्वपन भी तब खंडित हो जाते है.. जब तीनो लोको में एक भी कला प्रेमी व्यक्ति नही मिलता जो इनकी रचना का मर्म समझ सके.. सहश्त्रो बार अपने टिप्पणी वाले लिंक पर चटका लगाकर देख चुके है.. कदाचित् चमत्कार हो जाए..
अब तो कुछ एक नटखट ब्लॉगर भी इनसे परिहास करने लगे है.. इन्हे मार्ग मध्य में देखकर कहते है "वो देखो आकाश में उड़नतश्तरी.." ये देखते है तो इन्हे कुछ दृश्य नही होता.. फिर ये उन ब्लॉगरो को अनोनामस बंधु से भी सुंदर भाषा में गालिया देते हुए पाए जाते है..
परंतु सारे ही ब्लॉगर यहा पर ऐसे नही है.. कुछ एक तो ऐसे है जिन्हे टिप्पणी नही मिलती तो वे स्वयं ही अपने ब्लॉग पत्र पर अनोनामस बनकर टिप्पणी कर आते है इन शब्दो के साथ की..
" आहा! आपकी रचना में कैसी पीड़ा है.. हमारे हृदय को चीर कर चली गयी.. अभी हम नगर वैद्य के यहा उपचार कराने आए है.. "
परंतु ऐसे आत्मनिर्भर ब्लॉगर भी बहुत कम पाए जाते है ब्लॉग जगत की पावन भूमि पर..
विशाल उदर वाले स्वामी ने अभी अभी अपने विमान चालक से विनती की है..विमान को ब्लोगाश्रम की दिशा में ले जाने के लिए.. अब आपका प्रश्न होगा की इतने विशाल उदर के देवता ने अपने विमान चालक से विनती क्यो की आदेश क्यो नही दिया.. तो मित्र आपके इस प्रकार के प्रश्न के लिए तो खडाऊ लेकर आपकी ठुकाई करनी चाहिए.. पर क्या करे पाठक की ठुकाई करना शास्त्रों के विरुद्ध जो है..पुन: आपकी ठुकाई कर दी तो हमे पढ़ेगा कौन..
तो आपका प्रश्न था की देवता ने विनती क्यो की इसका उत्तर हम आपको बता देते है.. एक बार एक देवता ने अपने विमान चालक से अभद्र भाषा में बात की थी.. बस उसी क्षण उस चालक ने विमान उल्टा कर दिया.. और वो देवता मृत्युलोक की अतुलनीय धरा पर अपने पृष्ठ भाग के सहारे गिरा था.. बस तभी से एक दरार है.. अरे नही मित्र दरार वहा नही जहा आप सोच रहे है.. दरार तो चालक और देवता के मध्य है.. आप भी ना कहाँ से कहाँ चले जाते है... यदि उचित रस पान करना है तो हमारे साथ ही रहिए..
अजी साथ रहने का ये भी मतलब नही की आप हमे लघु शंका निवारण हेतु भी अकेला नही छोड़ेंगे.. अजी अभी जाइए जब आगे बढ़ेंगे हम स्वयं आपको बुला लेंगे.. अभी विश्राम कीजिए और किंचित सदभावो वाली पोस्ट लिख दीजिए.. किसे ज्ञात देवता प्रस्सन हो जाए और अपना विमान लेकर आपके ब्लॉग पत्र पर आकर टिप्पणी वर्षा कर दे..
जारी
भाई अभी तो पढ़ते ही जा रहे हैं थोडा और आगे ले चलिए फिर हमहूँ टीपीयाने का सोचेंगे ! हाँ ऊ चित्र वाला मामला तो जोरदार तो बटबै बा ,कयिऔ बार त ससुरा हम फोटुयिये देख के तिप्पनियै भूल गवा बाटी ! यिहई बतिया तूहूं मार्क कहे बाट भाई -तोहअनू कम रसिक नाय बाट !
ReplyDeleteaaj pahucha aapke blog pe
ReplyDeletefir aaunga
kataha jari rakhen
"बस तभी से एक दरार है.. अरे नही मित्र दरार वहा नही जहा आप सोच रहे है.. दरार तो चालक और देवता के मध्य है.. आप भी ना कहाँ से कहाँ चले जाते है... यदि उचित रस पान करना है तो हमारे साथ ही रहिए.."
ReplyDeleteअति सुंदर...अति सुंदर...विलक्षण लेखन....हे ब्लॉग जगत के सुपात्र आप की सदा ही जय हो...
सच तो ये है की किसी और को जीवन में कोई पुस्तक भेंट देकर मुझे इतनी खुशी हुई, नहीं जितनी आप को दे कर हो रही है...लिखते रहो वत्स...
नीरज
जारी रहे ये आनंददायक कथा.
ReplyDeleteरे शठ...तुम्हारी किताबों की आलमारी में "मरीचिका" को ना देख मुझे अत्यधिक निराशा का आभास हो रहा ही...इस भूल को शीघ्र ही सुधार लो बालक...
ReplyDeleteनीरज
ब्लोगाश्रम ?????भैय्ये ....सर फुटव्वल हो जायेगा ....रोज पंचायत बैठेगी ......की इनने मेरे बारे में इशारा किया था मै जानू ......यूँ ही था ससुरा जो अनोनिमस बन के लिखे है.....सबूत है म्हारे पास ....ऐसी हिन्दी ओर कोई नही लिखे
ReplyDelete------की यो ही है...जो बस खूबसूरत पीठ खुजावे ..देख लो इसके दीवार पे किसके लिंक दे रखे है...?
(जारी रहेगा अगले लेख के साथ
सुंदर चल रही है ब्लोगाश्रम की चर्चा...
ReplyDeleteरचना सुंदर है. लेखनी में कदाचित स्याही नहीं, अम्ल है. ब्लॉग पर विचारों को ऐसे उकेरा है कि हे चिट्ठाकारों में सर्वश्रेष्ठ, आपके ऊपर इन्द्र, चंद्र, सूर्य, वृहस्पति, वगैरह-वगैरह पुष्पवर्षा के लिए लालायित हैं.
ReplyDeleteकिंतु यह कैसा न्याय है, हे ब्लॉगरश्रेष्ठ? कदाचित उन्हें प्रताड़ित करना उपयुक्त जान नहीं पड़ता, जो अपने मोहक, मनमोहक चित्रों को लगा ब्लागसंसार को सुशोभित कर रहे हैं. हे प्रताड़ित करनेवालों में सर्वश्रेष्ठ, ऐसी स्थिति में चिट्ठाकारों के घावों पर लेप लगाने के लिए स्माईली नामक चिन्ह का उपयोग श्रेयस्कर रहेगा.
सुंदर
ReplyDeleteक्या बात है.. मौज ही मौज है। इस पोस्ट को पढ़कर हमारा पूरा इलाका ठहाको से गूँजायमान हो उठा.. गर्दभ धरा पर लुट्ने लगे.. वृक्षों पर पक्षियो के पेट में बल पड़ गये.. ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो समस्त धरा अपने मुँह पर हाथ रखकर हंस रही है.. :)
ReplyDeleteदरार है? दरार को कैसे भरा जाये मित्र? ब्लॉगाश्रम मेँ भी अनेक ब्लॉग कम्प आते रहते हैँ। अनेक दरारें बन गयी हैं। कदाचित उन्हें भरने का भी आपके पास सोल्यूशनीय द्रव्य हो ---
ReplyDelete:-)
jo apne likha yahi to ho raha hai blaag jaga....t me .
ReplyDeleteबहुत खूब | आनंददायक
ReplyDeleteकुश , लाजवाब लिखा है तुमने.... हंस हंस के सच में लोट पोट हों गए हम !! थैंक्स....ये तो जानती थी की तुम + attitude रखने वाले बन्दे हों पर ये नहीं पता था की इतने positive हों !!! ब्लॉग जगत की सारी बाते बड़ी बखूबी बता रहे हों !!
ReplyDeleteजारी रखिये... फिलहाल साथ छोड रही हूँ, अगले कडी पर मिलुँगी... :)
ReplyDeleteमजेदार चल रहा है। चलते रहो। धांसू लेखन!
ReplyDeleteसच् मेँ एक्दम नयी कथा है कुशजी बेहद रोचक ..जारी रहे ..
ReplyDeleterochak prasang.........maza aa gaya
ReplyDeleteअतिसुंदर.....साधु....साधु :)
ReplyDeleteआओ आओ बन्धु!! इतने ठहाकों के बीच शिव बाबू स्माईली की जगह खोज रहे हैं. हा हा!! तीनों लोकों के लोगों का इतना उत्साह देखकर मेरा मनोबल और बढ़ गया है..आज और फोटू हिंचवा कर लगवाता हूँ!! मान गये, ज्ञान जी(चतुर्वेदी वाले) का भूत सर चढ़ कर बोलता है..हमने भी कुछ रोज पहले बारामासी खत्म की.
ReplyDeleteबहुत सही-जानते हुए भी कि सबसे पहले मैं ही लपेटे में आऊँगा..इन्तजार लगा था-सार्थक रहा इन्तजार..अब आगे इन्तजार है..तब तक फूल बरसा आऊँ. :)
बहुत सही गुरू..
ReplyDeleteखूब मस्ती में लिखे हो.. :)
ब्लॉगाश्रम कथा अच्छी चल रही है, जारी रखें, इस आश्रम का मैंने भी पास बनवा लिया है।
ReplyDeleteजय हो महाराज की ! मजमा जम रहा है ! शुरुआत बड़ी
ReplyDeleteजोरदार है , आगे भी बनी रहे , यही शुभकामना है !
कितना गंदा लिखा है , मज़ा आ गया लगे रहो गुरु| यो यो यो....
ReplyDeleteसत्य वचन स्वामी सम्पूर्णानन्द जी महाराज,
ReplyDeleteभाई बहुत अच्छा लिखा हे मजा तो आ ही गया, मेने भी अपने नन्हें मुन्हें बांलाग पर खुब फ़ोटू चिपका रखे हे..... लेकिन टिपाण्णीयो के लिये नही किसी ओर मकसद के लिये... :)
ReplyDeleteधन्यवाद
विलक्षण लेखनी है आपकी! गुरूजी को हँसा-ह~म्साकर बीमार कर देंगे आप। इस धरा-धाम पर ऐसे आश्रम हो लिए हैं तो अलग से लाफिंग क्लब बनाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
ReplyDeleteशानदार और मजेदार यथार्थ परोसा है आपने। बधाई।
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ReplyDeleteतुम सेवक हम स्वामी....
खुले आम गा रहा हूँ, तनि अनुरगवा के बतिया भी सुनल जाये ।
क्या आश्रम है :)और कितने अच्छे गुरु महाराज जी ..:) बहुत बढ़िया
ReplyDelete" आहा! आपकी रचना में कैसी पीड़ा है.. हमारे हृदय को चीर कर चली गयी.. अभी हम नगर वैद्य के यहा उपचार कराने आए है.. "
ReplyDeleteअहा, बहुत खूब, मजेदार। जितनी तारीफ की जाए,उतनी कम। इस पोस्ट में है बहुत दम।
zordaar shuruat ke baad asardaar doosri kadi.
ReplyDeleteBlogashram bahut manoranjak hai.
"मित्र आपके इस प्रकार के प्रश्न के लिए तो खडाऊ लेकर आपकी ठुकाई करनी चाहिए.. पर क्या करे पाठक की ठुकाई करना शास्त्रों के विरुद्ध जो है..पुन: आपकी ठुकाई कर दी तो हमे पढ़ेगा कौन.." बहुत बढ़िया !! प्रथम अंक में ही श्रंखला के लिए राग, उत्सुकता, आनंद जगा लेना ही आप जैसे ब्लॉगर की विशेषता है. अभी और सकारात्मक व्यंग्य का रस-स्वादन होगा...इसी आकांक्षा से.!! और आपको आश्वासन कि लिखते रहिये तो हम पढ़ते रहेंगे. हा हा हा...हँसते भी रहेंगे.
ReplyDeleteगर्दभ धरा पर लुट्ने लगे.. वृक्षों पर पक्षियो के पेट में बल पड़ गये.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समस्त धरा अपने मुँह पर हाथ रखकर हंस रही है..
ReplyDeletekya baat hai...ultimate likh rahe ho.hamare bhi pet mein bal pad gaye.
बेजोड़....लगता है किसी को भी नहीं छोड़ा तुमने!
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