"इंडियन मुजाहिदीन एक हिंदू संगठन है जो मुसलमानों को बदनाम करने के लिए बम फोड़ रहा है"
जिन लोगो ने फ़िरदौस जी का ताज़ा लेख पढ़ा है उन्हे भी मेरी तरह उनपर दया ज़रूर आई होगी.. माफ़ कीजिएगा मैं इस तरह के लेख लिखता नही हू पर शायद ये हम लोगो की कमज़ोरी ही है की हम ये नही लिख पाते क्योंकि हम एक अच्छे समाज की कल्पना में जीते है और हर बार ये सोचकर की कही कोई ग़लत मतलब ना निकाल ले हम लिखते नही है..
मेरा भी यही विचार है मेरा किसी धर्म विशेष से कोई बैर नही है.. ना मैं हर मुसलमान को आतंकवादी कह रहा हू.. पर मैं उन मुसलमानो से मुखातिब हू जो हमे अपना भाई कहते हुए ऐसी पोस्ट लिखते है की मन खराब हो जाता है.. मैं एक हिन्दुस्तानी से ये अपेक्षा करता हू की वो अपने देश में होने वाले अत्याचारो पर दुखी हो और यदि ना भी हो तो कम से कम व्यर्थ बकवास ना करे.. और ये तो हरगिज़ नही चाहूँगा की वो देश की अस्मत लूटने वाले के पक्ष में ब्लॉग पर पोस्ट लिखे..
और ये तो हरगिज़ नही चाहूँगा की वो ये लिखे की "हिंदू, मुसलमानो के भेष में बम विस्फोट करते है, मुसलमानो को बदनाम करने के लिए.." इस पर गुस्सा तो नही लेकिन तरस ज़रूर आता है.. कुछ दिन पहले ये लिखा गया था की रक्षंदा महिला ना होकर पुरुष है.. तब भी बहुत दुख हुआ था की बिना तथ्यो के लोग ऐसी बाते कैसे करते है.. यहा भी वही बात..
दुख तो तब होता है जब पढ़े लिखे लोग इस तरह की बाते करते है.. फ़िरदौस जी का कहना है की "कानपुर में नकली दाढ़ी मूँछो के साथ पकड़े गये थे लोग.. महाराष्ट्र के एक नेता ने कहा की हिंदू आतंकवादी दस्ते बनाओ और उसके बाद अहमदाबाद में बम विस्फोट हुए.." गोया की उनका कहना है हिंदू संगठन ने इंडियन मुजाहिदीन के नींव रखी है.. और उसके उपरांत समस्त हिंदू मंदिरो के आगे बम रखे है.. और विस्फोट करके अपने ही देश को छलनी किया है.. इसका तो ये अर्थ होता है की जिनको पकड़ा है वो सब मुसलमान नही होकर हिंदू है..
पिछले शनिवार को मैं जोधपुर में था वहा चार मुसलमानो को पुलिस ने पकड़ा जिसका विरोध वहा पर मौजूद चार हज़ार मुसलमानो ने किया.. अगले दिन उन चार व्यक्तियो ने अपना गुनाह कबूल किया और आतंकवादियो को ठहराने की बात कबूल की.. वो चार हज़ार लोग दोबारा नज़र नही आ रहे है.. फिर्दोस जी के अनुसार वो चार लोग भी हिंदू ही होंगे. जो पिछले बीस वर्षो से मुसलमान बनकर मुस्लिम इलाक़े में रह रहे है.. और उनकी रक्षा में जो चार हज़ार लोग आए थे वो भी सब हिंदू ही रहे होंगे.. जो पिछले कई सालो से वहा रहते हुए मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए लोगो को मुस्लिम होने का धोखा दे रहे है..
फिरदौस जी ने पाक धर्म ग्रंथ क़ुरान के कुछ अंश भी प्रस्तुत किए है जिसमे लिखा है की अमन से जीना चाहिए.. इसलिए मुसलमान आतंकवादी हो ही नही सकते क्योंकि उन्होने यक़ीनन क़ुरान पढ़ी होगी.. तो फिर्दोस जी आप ही बताइए की कौन से धर्म ग्रंथ में लिखा है की बम फोड़ने चाहिए.. जब धर्म ग्रंथ लिखे जा रहे थे तब ना कोई बम थे ना बंदूक और ना ही आतंकवाद, ये सब उसके बाद की बाते है..
"आपने लिखा है की जयपुर बम विस्फोट के बाद मुसलमानों ने वहा जाकर पीडितो की मदद की" जिन जयपुर धमाको में आप मुसलमानो की सहायता की बात कर रही है.. तो वो करके मुसलमानो ने कौनसा तीर मार लिया और हिन्दुओ ने भी या फिर किसी भी धर्म के लोगो ने कौनसा तीर मार लिया क्या घायलो की सेवा करना इंसानियत नही है.. वो तो सबको ही करनी चाहिए उसका एहसान क्यो जता रही है आप? क्या किसी हिंदू या अन्य धर्म के व्यक्ति ने लिखा की हमने वहा पर जाकर पीड़ितो की सहयता की?
जिन जयपुर बम धमाको की आप बात कर रही है मैने उस मंज़र को देखा है.. हमारा अपना शहर छलनी हुआ था. और आपकी जानकारी में इज़ाफा करते हुए मैं ये भी बता दू की कोटा का एक मौलवी भी इनमे सम्मिलित था जो मदरसे में पढाता भी था और शायद पाँच वक़्त का नमाज़ी भी रहा हो..
या फिर आपकी सोच के अनुसार वो एक हिंदू भी हो सकता है जो मुस्लिम भेष में रह रहा हो कदाचित् नकली दाढ़ी मूँछे लगाकर.. क्योंकि आपके अनुसार इंडिया मुजाहिद्दीन का असली मास्टर माइंड तो हिंदू ही है..
जयपुर में जिस मुसाफिर खाने में आतंकवादी रुके थे वो मुसलमानो द्वारा चलाया जाता है.. उस मुसाफिर खाने में हिंदू आतंकवादी जो मुसलमान के भेष में रह रहे थे उनकी सुरक्षा मुसलमानो ने ही की थी और बम फट जाने के बाद भी नही बताया की ये लोग यहा छूपे हुए थे.. शायद उन्हे इस बात का अनुमान नही था की ये हिंदू बम फोड़कर मुसलमानो को बदनाम करने की नीयत से यहा आए है..
ताज्जुब तो तब होता है जब एक ओर, जहा विस्फोट में लोग मर रहे है वहा सब लोग उनके बारे में लिख रहे है..वही पर आप जैसे लोग ये कहते फिर रहे है की सिमी को क्यो बदनाम किया जा रहा है.. तो मत कीजिए ना बदनाम पर हमसे मत कहिये..क्योंकि हमसे नही होगा, हमने वो मंज़र देखा है जयपुर में.. जब विस्फोट हुआ था..
मुझे लग रहा है की या तो आप सिमी के बारे में कुछ जानती नही है और या फिर सब जानते हुए भी नाटक कर रही है.. क्योंकि सिमी द्वारा अलीगढ से प्रकाशित होने वाली पत्रिका कभी पढ़ लीजिएगा जिसमे हिंदू के खिलाफ क्या लिखा गया है.. और जिस पर अब प्रतिबंध भी लग चुका है. मैने भी वो पत्रिका पढ़ी है. और गुस्सा भी आया था लेकिन इसका मतलब ये नही की मैं सभी मुसलमानो को गलिया देने लग जाऊ..
और आपका तो ये भी कहना हो सकता है की वो पत्रिका हिंदू छपवाते है और खुद को गालिया लिखकर मुसलमानो में बँटवाते है और फिर कहते है की मुसलमान ऐसा करते है.., जाकर पहले आँकड़े सॉफ करिए की पूरी दुनिया में आतंकवाद कौन फैला रहा है और किसके नाम पर फैला रहा है... मगर मैं आपकी तरह बेवकूफ़ नही हू की सभी मुसलमानो के खिलाफ झंडा लेकर खड़ा हो जाऊ जिस प्रकार आप खड़ी है हिन्दुओ के खिलाफ.. ज़रा गौर करके अपनी पिछली पोस्टो पर नज़र डालिए.. आपकी सारी पोस्ट में बाकायदा हिन्दुओ को किसी ना किसी विषय पर नसीहत दी गयी है..
आप खुद ही अपने दिल पर हाथ रख कर बताईएगा की आप विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और आर एस एस के बारे में क्या सोचती है.. आप क्या, मुसलमान जनसंख्या का एक तबका ही उनके बारे में क्या सोचता है.. सब इस से भली भाँति परिचित है..
खामख्वाह माहोल खराब मत करिए.. और ईश्वर के लिए इस प्रकार की पोस्ट मत लिखिए जब हम एक सभ्य समाज की कल्पना कर रहे है.. आज का युवा हिंदू मुस्लिम भेद भाव से कोसो दूर है.. मेरे मुस्लिम मित्रो का मेरे घर उसी प्रकार आना जाना है जैसे बाकी लोग आते है.. हमारे बीच इन विषयो पर कभी बात नही होती या विवाद नही होते ..
ये आप जैसे कुसोच वाले लोग है जो इस प्रकार की बातो से इन सबको और बढ़ावा दे रहे हा.. आप लोग तो उस महॉल में जी लिए पर मेरी प्रार्थना है की कम से कम अपने बच्चो को कभी ये अंतर मत बताइए की हिंदू अलग है और मुसलमान अलग..
यही मेरी आपसे विनती है...
Kush Bhai, accept my heartiest congratulations on such a fantastic piece of writing. It takes courage to stand and be counted among the few sane and fearless voice.
ReplyDeleteIt's just great to read your article. Anybody with a blessing of a logical mind can sense the emerging truth among a number of hypocritical cries.
सहमत हूँ आपसे....इन आतंक की घटनाओं को इस तरह से नहीं सोचा जाना चाहिए कि मुसलामानों पर अत्याचार लिया जा रहा है!जो भी गलत करेगा उसकी निंदा होगी ही! कई हिन्दू संगठन भी हैं जिन्हें पढ़ा लिखा वर्ग पसंद नहीं करता!
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे....इन आतंक की घटनाओं को इस तरह से नहीं सोचा जाना चाहिए कि मुसलामानों पर अत्याचार लिया जा रहा है!जो भी गलत करेगा उसकी निंदा होगी ही! कई हिन्दू संगठन भी हैं जिन्हें पढ़ा लिखा वर्ग पसंद नहीं करता!
ReplyDeleteहर चीज़ को हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से देखने समस्या हल नहीं होती बल्कि और उलझती है। आतँकवादी को हिन्दू या मुस्लिम का तमगा किस लिये? वह तो पूरी मानवता का दुश्मन है।
ReplyDeleteabhi firdaus ka padhna baqi hai.
ReplyDeletebawajood kahunga k unke paas tark kamzor hain.
haan dadhi-moonch wali bat sach hai ise hindu, indian express aur TOI ne bhi published kia tha.lekin baat maharasHtr ke naanded ki thi, na k kanpur ki,
kaanpur me pichle dinon bomb banate waqt bajrang dal k log mare.ise kamobesh sabhi ne chaapa lekin ander ke panon par.
khair main seemi ka samarthan nahin kar raha hoon.
jahan rss hindu rashtr ki baat karta hai, wahi semi islamic rashtr ki dono samprdaayik hain aur atiwaadi.
DESH K LIYE DONO GHAATAK HAIN, AUR HAMEIN MUKHAR HOKAR INKI NINDA INKA VIRODH KARNA CHAHIYE.
AAPNE ACHCHA LIKHA HAI.
kabhi samay mile to boss idhar bhi aayen.
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
" आप खुद ही अपने दिल पर हाथ रख कर बताईएगा की आप विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और आर एस एस के बारे में क्या सोचती है.. आप क्या, मुसलमान जनसंख्या का एक तबका ही उनके बारे में क्या सोचता है.. सब इस से भली भाँति परिचित है.."
ReplyDeleteमैं आतंकी मुस्लिम संगठनों के बारे में वही सोचता हूँ जो विहिप ,बजरंग दल या संघ के बारे में सोचता हूँ ।
कुशजी , आप क्या सोचते हैं विहिप , बजरंग दल के बारे में?
kush ko gussa bhi aataa hai??
ReplyDeleteआतंकवादी का कोई धर्म-ईमान होता है? कौन धर्म निरर्थक नरसंहार को जायज बताता है?
ReplyDeleteसच कहूँ उस लेख को सरसरी तौर पर देखा ही था ,क्लिक करके खोला भी नही...तुमने इतने विस्तार से लिखा तो मालूम चला की ये सब लिखा हुआ है.....दुखद है ..सब कुछ दुखद है.... आदम ओर हव्वा थे इस बात को तो सब मानते है .....फ़िर धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई ?क्या कारण थे की इंसान को धर्म की या मजहब की जरुरत पड़ी ?चलिए मान ले की धरम बन गये .....पर ऐसा क्यों है की हर इंसान अपने धर्म ओर अपने मत को सच्चा समझता है ?मैंने तो कही नही पढ़ा ???क्यों पढ़े लिखे लोग जो इस समाज में प्रतिष्ठित जगहों पर बैठे है intellectual है अपने अपने धर्म की बात आते ही असहज हो जाते है ?क्यों आजकल किसी अपराधी का धर्म पहले देखा जाता है ओर अपराध बाद में ?
ReplyDeleteक्यों हम देश में एक समान कानून लागू नही कर सकते जो इस देश में रहने वाले लोगो के लिए हो.?सीबीआई के पूर्व director ओर उत्तर प्रदेश पुलिस के एक प्रमुख अधिकारी ने कभी अपने इंटरव्यू मव कहा था कि जब हम किसी अपराध कि छानबीन करते है ओर कोई चैन बनने लगती है ...तो उस सिलसिले में हमें कई जगहों पर जाना पड़ता है ....उन जगहों पर जाने से पहले ही हम पर इतने राजनैतिक दबाव आने लगते है कि मजबूरन हमें अपनी जांच अधूरी छोडनी पड़ती है.....बाद में अकर्मण्यता का ठीकरा भी इन्ही लोगो के ऊपर फोड़ दिया जाता है .......
अपराधी अपराधी है , चाहे वो किसी भी धरम का हो....उस नन्हे बच्चे को जिसकी जान देलही ब्लास्ट में गयी उसे तो शायद ये भी नही मालूम कि आतंवाद क्या होता है ?कुछ चीजों को मजहबी चश्मे से दूर रखना चाहिए ..खास तौर से जब वे देश कि सुरक्षा से जुड़ी हो....
आपने ठीक ही लिखा है, मेरी सोच है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है। आतंकवाद ना हिन्दू है ना मुसलमान। इन्सान पहले इन्सान होता है फिर हिन्दू या मुसलमान।
ReplyDeleteGurmeetsingh.
पहले तो बधाई स्वीकारो की अपनी जुबान खोली.
ReplyDelete"हम लोगो की कमज़ोरी ही है की हम ये नही लिख पाते "
गलत कहा. हमने तो बहुत खरी खरी लिखी है, बीना यह परवाह किये कि हमारे बारे में लोग क्या कहेंगे.
अफ्लातुनजी से व्यक्तिगत कोई शिकायत नहीं, हम में मित्रता है. उन्हे मैं बताना चाहुंगा की आतंकवादियों में और हिन्दु संगठनो में जो सबसे बड़ा फर्क है वह है भारत के प्रति निष्ठा. अगर आपको यह नजर नहीं आता तो क्या कहें! :)
मैं नहीं आनता फिरदौस कोई महिला है, इस प्रकार के कई चिट्ठे है, कुछ बन्द हो गए...एक ही गुट द्वारा लिखे जा रहे हैं. ये लोग देशद्रोहियों को मानसिक खुराक पहूँचाने का काम कर रहे हैं.
डाक्टर अनुराग की बातों से पूर्णतः सहमत हूँ. बड़ी ही दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति है कि अपराधी के आपराध से ज्यादा तरजीह उसके धर्म को दी जाती है और इस तरह के अमानवीय कार्यों को अंजाम दे रहे लोगों की भर्त्सना करने उन्हें दण्डित करने के बजाय हम आम लोग आपस में सिर फुटौवल को तैयार हो जाते हैं.इतना भी नही समझ पाते कि एक ओर तो हमारा सामना धर्म के नाम पर निर्दोषों का खून बहाने वालों उन लोगों से है जो धर्म और अधर्म में विभेद करना जानते ही नही और दूसरी ओर धर्म जाति के नाम पर हमें आपस में लड़वाकर '' फूट डालो,शासन करो '' की राजनीति करने वाले इन नराधम जननायकों से है.
ReplyDeleteचलते फिरते हँसते बोलते लोगों को एक पल में लाशों में तब्दील कर घरों को उजाड़ देने वाले इन आतंकवादियों का कौन सा मजहब है ? ऐसे मौकों पर अनर्गल प्रलाप सर्वथा निंदनीय है. क्या हम अस्वस्त हो सकते हैं कि इनके अगले निशाने पर हम नही हैं ? जब ये बम फेंकते हैं तो यह पड़ताल कर फेंकते हैं कि उसमे मरने वालों में किस धर्म और किस उम्र के आस्तिक या नास्तिक लोग होंगे?
आतंकियों का कोई धर्म नहीं पर सारे आतंकी एक ही धर्म के... ये तो पुरानी बात है.
ReplyDeleteऐसी बातें मैं कभी नहीं बोलता... पर आक्रोस होना स्वाभाविक है. मुझे नहीं लगता की कोई धर्म इसकी इजाजत देता है... अगर देता है तो फिर धर्म काहे का?
आतंक को किसी धर्म से जोड़ना गलत है. बम फोड़ने वाले मुसलमान तो नहीं हो सकते और हिंदू भी नहीं. ये तो केवल हैवान हैं.अफसोस इस बात का है कि इन हैवानों को पकड़ने के बजाय पुलिस केवल खानापूर्ति करके चुप हो जाती है. www.raviwar.com पर एक आजमगढ़ की एक रिपोर्ट लगी है. उसे पढ़ कर ये बात और साफ हो जाएगी.
ReplyDeleteआपकी बात से मैं परी तरह सहमत हूँ। कुछ लोग अकारण ज़हर फैला रहे हैं। हम सबको इसका तीव्र विरोध करना चाहिए। सस्नेह
ReplyDeletegood article. ahfaz
ReplyDeletegood article. ahfaz
ReplyDeleteRamzaan ke paak maheene mein jo aisa kaam kar rahe hain woh kiske liye zehaad kar rahe hain yeh baat samajh se psre hai. baaki ke 11 maheene bhi kya aur koi kaam nahin hai.
ReplyDeleteyeh sab theek nahin hai.
ReplyDeletekabhi kabhi sochti hu agar aaj Gandhiji jinda hote to ye sab dekh kar hame kaunsa raasta dete??? shayad vo bhi nahi soch sakte the ki unke SWATANTRA bharat ke logo ke vichar itne kaid honge...
ReplyDeleteहमें तो शिकायत इस बात से है कि आतंकवाद को कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में नहीं देखा जा रहा है. आतंकवादी चाहे किसी धर्म का हो, उसे उसके किए गए जघन्य काम की सजा मिले, हम तो केवल इतना चाहते हैं. केवल आतंकवादियों को सजा मिले. हमें इस बात से बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि आतंकवादी हिंदू है या मुस्लिम और या फिर किसी और धर्म का.
ReplyDeleteaap log neeche di gai post ko padhiye aur bataiye ki firdaus ki is post par daya ani chahiye ya kush ki fuss post par daya ani chahiye.
ReplyDeleteदिल्ली में जो बम धमाके हुए उसके लिए मैं क़तई यह नहीं कहूंगी कि 'यह प्रतिक्रिया थी' जैसा हमारे देश के 'कुछ स्वयं घोषित देशभक्त' कहते हैं...अगर सब इंतक़ाम लेने पर उतर आएं तो दुनिया से कुछ क़ौमों का नामो-निशां तक मिट जाएगा...
कौन कहता है कि मुसलमान दहशतगर्दी की निंदा नहीं करते...? जब जयपुर में धमाके हुए थे तो मुस्लिम संगठनों ने इसके विरोध में धरने दिए थे और प्रदर्शन करते हुए दोषियों को सज़ा देने की मांग भी की थी...इतना ही नहीं अस्पतालों के बाहर घायलों को खून देने वाले मुसलमानों की क़तारें लग गईं थीं...
जिस तरह उलेमाओं ने दहशतगर्दी को इस्लाम के खिलाफ़ क़रार दिया है, वह क़ाबिले-तारीफ़ है। अब जब उलेमाओं ने ही दहशतगर्दों के खिलाफ़ मुहिम शुरू कर दी है तो इससे आने वाले वक्त में मुसलमानों की कुछ परेशानियां ज़रूर कम हो सकती हैं। वरना होता यह रहा है कि दहशतगर्दी के हर वाक़िये को इस्लाम से जोड़ दिया जाता है। नतीजतन मुल्क के तमाम मुसलमानों को कठघरे में खड़ा कर उनकी वतनपरस्ती पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। मीडिया में भी दहशतगर्दी को 'इस्लामी दहशतगर्दी' के तौर पर प्रचारित किया जाता है, जबकि हिन्दुस्तान में कितने ही दूसरे ऐसे दहशतगर्द हैं जो भाषा के नाम पर हिन्दी भाषी लोगों का बेरहमी से क़त्ल कर देते हैं। इसके बावजूद इन दहशतगर्दों को इनके मज़हब से नहीं जोड़ा जाता। महाराष्ट्र में जिस तरह उत्तर भारतीयों के साथ बदसलूकी की जा रही है, वो भी किसी से छुपी नहीं है।
आतंकवादी को देखने का दावा करने वाले बच्चे से कोई रिपोर्टर पूछती है-क्या आतंकवादी ने पेंट-शर्ट पहनी थी? लड़का हां कहता है...इतने में कोई दूसरा रिपोर्टर पूछता है-क्या आतंकवादी ने कुर्ता-पायजामा पहना था? लड़का कहता है...हां, कुर्ता-पायजामा पहना था...अब उस लड़के की किस बात पर भरोसा किया जाए...?
रिपोर्टर यह भी पूछते हैं-क्या उसकी दाढ़ी-मूंछें थीं...यानि उसके मुंह में शब्द डाले जा रहे हैं...सवाल यह भी है कि क्या दाढ़ी-मूंछें सिर्फ़ मुसलमान ही रखते हैं...? कानपुर में एक विशेष संगठन के दो लोग बम बनाते मारे जाते हैं...इसी तरह नांदेड़ में 'एक संगठन' के लोगों के पास से पास से मस्जिदों के नक़्शे, नक़ली दाढ़ी-मूंछे और मुस्लिमों द्वारा पहनी जाने वाली टोपियां मिलती हैं...अच्छा हुआ ये घटनाएं सामने आ गईं... इससे यह साबित हो गया कि कुछ लोग मुसलमानों को आतंकवादी साबित करने के लिए ख़ुद आतंकवाद फैला रहे हैं...महाराष्ट्र के एक नेता ने तो खुलेआम ऐलान करते हुए हिंदू आत्मघाती दस्ते बनाने की सलाह दी थी...उसके एक हफ़्ते बाद ही सूरत में बम मिलने लगे...जो लोग नक़ली दाढ़ी-मूंछे और मुस्लिमों द्वारा पहनी जाने वाली टोपियां का इस्तेमाल कर सकते हैं...क्या वो इस्लामी नाम का इस्तेमाल करते हुए इंडियन मुजाहिदीन नाम का कोई संगठन नहीं बना सकते...?
हमारे देश की पुलिस भी ख़ूब है...सीबीआई के साथ मिलकर भी आरुषी के क़ातिल को आज तक पकड़ नहीं पाई...लेकिन आतंकवादियों को पकड़ने में सबसे आगे रहती है...हो भी क्यों न...? यही काम तो सबसे आसान है किसी भी मुसलमान को पकड़ कर मीडिया के सामने आतंकवादी घोषित कर दो...कोई यह जाने कि कोशिश क्यों नहीं करता कि इंडियन मुजाहिदीन का असली मास्टर माइंड कौन है...
दरअसल दहशतगर्दी को इस्लाम से जोड़ना एक सोची-समझी सांजिश है जिसकी शुरुआत पश्चिमी देशों ने की थी। आतंकवाद की निंदा करनी चाहिए, भले ही वो कोई इंसान करे, संगठन करे या फिर कोई सरकार करे, लेकिन इसे मजहब से जोड़े जाने को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता। गौरतलब है कि 'इस्लाम' शब्द अरबी भाषा के 'सलाम' शब्द से निकला है, जिसका मतलब है सलामती, अमन। ऐसी हालत में आखिर किस बिनाह पर कहा जा सकता है कि इस्लाम दहशतगर्दों को पनाह देता है।
क़ुरान में कहा गया है कि ''वह (अल्लाह) ऐसा माबूद है कि उसके अलावा कोई दूसरा माबूद नहीं है, वह शहंशाह है, पाक है, सलामती और अमन देने वाला निगरां है।'' (क़ुरान: 59:23)
क़ाबिले-गौर यह भी है कि मुसलमानों को हुक्म दिया गया है कि जब किसी पैगम्बर का नाम सुनो तो उसके साथ 'अलैहिस्सलाम' कहो। इसका मतलब है उन (पैगम्बर) पर सलामती और अमन हो। जब मुसलमान आपस में मिलते हैं तो एक-दूसरे को सलाम करते हैं, जिसका मतलब भी अमन और सलामती ही है।
जन्नत में भी लोगों को सलामती के ही शब्दों से पुकारा जाएगा। इस बारे में कहा गया है कि ''और उनका परस्पर सलाम यह होगा कि अमन और सलामती हो तुम पर।'' (क़ुरान:10:10)
जन्नत की तारीफ में कहा गया है कि ''वहां हर तरफ से अमनो-सलामती ही अमनो-सलामती की आवाज आएगी।'' (क़ुरान 56:26)
पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल0 को संबोधित करते हुए कहा गया है कि ''ऐ मुहम्मद! हमने तुम्हें दुनिया के लिए दयालुता ही बनाकर भेजा है।'' (क़ुरान 21:07)
क़ुरान में जगह-जगह लोगों को सब्र करने और माफ़ करने की ताकीद की गई है। क़ुरान में 85 जगह अल्लाह को माफ़ करने वाला कहा गया है। अल्लाह ने अपने नबी से कहा है कि ''ऐ पैगम्बर! ईमान वालों से कह दो कि वे उनको भी माफ कर दिया करें जो अल्लाह के कर्म परिणामों की उम्मीद नहीं रखते, ताकि लोगों को उनकी करतूतों का बदला मिले। जो कोई अच्छा काम करता है तो अपने लिए ही करेगा और जो कोई बुरा काम करता है तो उसका बवाल उसी पर होगा। फिर तुम अपने रब की तरफ लौटाए जाओगे।'' (क़ुरान 45 : 14-15)
''बुराई को भलाई से दूर करो'' (क़ुरान 28 :54)
''और जो शख्स सब्र से काम ले और दूसरे के कसूर को माफ कर दे तो बेशक यह बड़ी हिम्मत का काम है।'' (क़ुरान 42 :43)
''बेशक अल्लाह तुम्हें इंसाफ़ और नेक काम करने का हुक्म देता है।'' (क़ुरान 16 :90)
''तुम में जो श्रेष्ठ और सामर्थ्यवान हैं, वे नातेदारों, मुहताजों और अल्लाह के रास्ते में घरबार छोड़ने वालों को कुछ न देने की कसम न खा बैठें। उन्हें चाहिए कि माफ़ कर दें और उनसे दरगुज़र करें। क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला और रहम करने वाले है।'' (क़ुरान 24 :22)
''भलाई और बुराई बराबर नहीं है। अगर कोई बुराई करे तो उसका जवाब भलाई से दो। फिर तुम देखोगे कि तुम्हारा दुश्मन ही तुम्हारा गहरा दोस्त बन गया है। और यह गुण उन्हीं को मिलता है जो सब्र करने वाले हैं और जो बेहद खुशनसीबहैं। अगर इस बाबत शैतान के उकसाने से तुम्हारे अंदर कोई उकसाहट पैदा हो जाए तो अल्लाह की पनाह तलाश करो। बेशक वही सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है।'' (क़ुरान 41 : 34-36)
पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल0 ने अपनी बेटी के क़ातिल को माफ़ करते हुए बस यही कहा था कि मेरी नज़रों के सामने से हट जाओ...यही है मेरा इस्लाम...
मैं भी जब रात को सोती हूं तो दिल से उन सभी लोगों को माफ़ कर देती हूं, जिन्होंने मेरा बुरा किया हो...और अल्लाह से भी दुआ करती हूं कि उन्हें माफ़ कर देना...और जाने या अनजाने में मुझसे कुछ ग़लत हो गया हो तो उसके लिए भी मुझे माफ़ कर देना...मुझे बचपन से यही तालीम मिली है...
Those who are DEAD , ask them -
ReplyDeleteCan you ?
Hatred & Bomb blas is a coward's act.
Against Humanity which I strongly protest.
As long as those keep making & using the BOMBS
Peace or AMAN will not take place.
Not on this Rath, not in INDIA nor in Jannat.
How come, there are no Bomb blasts in the Middle East ?
When any one lives in INDIA or any Nation, they ALL need to obey the LAWS & be good citizens.
Those who bring about CHAOS, will be caught & punished severely.
WATCH OUT ALL YOU COWARDS who kill innocent children & Women.
dekhiye kuch bade log kaise gol mol comment karke bach gaye .
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ReplyDeleteआतंक और आतंकवाद का कोई धर्म, जाति , महजब, देश, दीन-ईमान, घर परिवार भाई बहन ...... कोई नहीं होता. दहशत और हिंसा ही इसका सब कुछ है. इसको किसी व्यक्ति या धर्म बिशेष से जोड़ना पूर्वाग्रह का परिणाम है.
ReplyDeleteआतंकवाद के मूल में जड़ धार्मिक विश्वास है -जो भी मूर्खतापूर्ण धार्मिक विचारों और इसके पारम्परिक कर्म काण्ड में लिप्त है वह चरमवादी और आतंकवादी बन सकता है -सच तो यह है कि कई धर्मों ने सामयिक परिवरतन कर ओने को समयाकूल ढंग से बदला है -पर कुछ अभी वही कपार फोड़ कबीलाई युग में रह रहे हैं -जिनका भगवान् ही मालिक है !दुनिया से ऐसे बेवकूफों का सफाया शुरू हो चुका है -और हम एकाध स्दाशक तक धर्म जनित आतंकवाद से छुटकारा पा लेंगे -ऐसा मेरा पक्का विश्वास है .
ReplyDeleteकुश जी पूरी सनसनी फैला दी आपने। बधाई। कुछ भी कहने से पहले मैं यह कहना चाहूंगा कि कोई भी मजहब किसी की हत्या करने या हिंसा फैलाने की बात नहीं करता। इस्लाम भी नहीं। मैंने फिरदौस जी की पोस्ट पढी उन्होंने कहीं भी उस चीज का जिक्र नहीं किया है जिस चीज को आपने आज के ब्रेकिंग न्यूज चैनलों की तरह सनसनी बना दिया। बाकी आज के लोग पढे लिखे हैं और समझदार भी हैं। फिरदौस ने किसी मजहब के व्यक्ति पर इल्जाम नहीं लगाया है। उन्होंने सिर्फ अपनी बात कही है। एक गुजारिश है आप सब से कि प्लीज किसी दुख दर्द और मुश्किलात को किसी मजहब से न जोडे। हम सब जब एक साथ रहेंगे तो किसी भी मुश्किल को झेल लेंगे। अलग थलग पड जाएंगे तो सब खत्म हो जाएगा।
ReplyDelete.
ReplyDeleteसहमत हूँ, डाक्टर अनुराग से...
वाकई, पहले इंसान बना... फिर बदअमनी को रोकने के इरादे से मज़हब का इज़ाद किया गया ।
दीन को ईमान मानने वाले मुस्लमीन फ़िदायतीन कबाइली तरीकों को अख़्तियार कर, ज़ेहाद को चल निकले.. और यह ज़ुनून आज तलक कायम है । ताज़्ज़ुब नहीं कि पूरी दुनिया इस्लाम से ताल्लुक रखने वालों को शक से देखती हैं... और इसके लिये माकूल वज़ूहात भी मौज़ूद हैं । पर... इस खूँरेज़ी तस्वीर को अपनी जगह पर बरकरार रहने देने में और मौके-बेमौके इसकी झाड़-पोंछ कर इसे ताज़ा बनाये रखने में इन सियासतदाँ तबके की भागीदारी से आँखें मोड़ रखना एक शुतुरमुर्ग़ी नज़रिया है.. भीष्म साहनी का तमस याद आता है, किसी को ? तवारीख़ के इस दौर में भी मैं चंद वाक़यों का चश्मदीद हूँ, इसलिये यह लिख पा रहा हूँ !
बहुत शर्मनाक है लोगों को इतना सब होने के बावजूद हिंदुओं पर आरोप लगाना
ReplyDeleteखासकर इन अफलातूनजी से कहना चाहूंगा कि सफदर नागौरी जैसे लोग खुलेआम मीडिया से बातचीत में भारत के प्रति अपनी भड़ास निकालते हैं पर कभी हिंदू संगठन के किसी नेता को देशविरोधी बात करते सुना है ?
इन जैसे तथाकथित समाजवादी कब सुधरेंगे पता नहीं.....ऐसे बुद्धिजीवियों से तो हमारी अपढ़ जनता भली है
achhi baat hai ki aaj ki yuva pirhi jati dharm se upar uthakar gambhir muddon par bhi positive soch rakhti hai agar isi soch se yuva milkar aage badhrge tabhi is desh ke politicians aur desh ke dushmno ko muhrorh jawab desh ki tarskki se denge par jaroorat hai dridh nishchay ki aur mujhe vishwas hai ki HUM HONGE KAMYAAB.....
ReplyDeleteइस नाज़ुक विषय पर बहुत सोच विचार कर लिखना चाहिए ! आशा है आप लोग ध्यान देंगे !
ReplyDeleteआदर सहित !
अभी अभी आपका पोस्ट पढा.. बहुत दिनों से ब्लौग दुनिया से बाहर था..
ReplyDeleteआते ही आपका पोस्ट पढकर जी खुश हो गया..
सब साफ़ साफ़ लिख डाला.. बधाई स्वीकारें..
बहुत विचारणीय और साहसी आलेख है कुश..बधाई. दूसरा वाला हमने पढ़ा नहीं जिसका आप जिक्र कर रहे हैं.
ReplyDeleteहम्म तो ये है सारा चक्कर यानि कि दुनिया के जितने भी देशों में इस तरह की आतंकी बम विस्फोट वाली वारदातें हो रही है वो उस देश के लोग ही करा रहे हैं, दुनिया रे दुनिया Very bed Very bed। कुश हिंदी में एक कहावत है अगर उसे यूज करते तो इतना लंबा नही लिखना पड़ता, वो है - खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे।
ReplyDeleteकुश भाई माफ करना, मैं ने फिरदौस का आलेख पढ़ा, और इस का आलेख पढ़े बिना ही आप को दी गई बधाई वापस ले ली। आप ने फिरदौस को गलत प्रस्तुत किया।
ReplyDeleteफिरदौस खान के ब्लाग 'मेरी डायरी' पर कमेन्ट मोडरेशन लगा हुआ है. जो पोस्ट उन की विचारधारा से अलग होती है उसे वह नहीं छापतीं. उन्होंने हज यात्रियों के लिए और ज्यादा दी जा रही सुविधाओं पर एक पोस्ट लिखी थी. उस पर मैंने एक टिपण्णी की कि अमरनाथ यात्रियों को भी ऐसी सुवुधायें दी जानी चाहियें. बस वह भड़क उठीं, और गालिओं से भरी एक पोस्ट लिख डाली कि कुछ लोगों का काम ही है पानी पी-कर मुसलमानों को कोसना. मैं तो हक्का बक्का रह गया. अब मुसीवत यह है कि वह तो कुछ भी लिखती रहती हैं पर हमारी कोई टिपण्णी वह छपने नहीं देतीं. मुझे तो यह भी एक प्रकार का आतंकवाद ही लगता है. परदे के पीछे से आतंकवादी हमले करते हैं. यह अपने ब्लाग पर कमेन्ट मोडरेशन के पीछे छिप कर हमले करती हैं.
ReplyDeleteदिनेश भाई कुश तो ठीक लिख रहे हैं पर हमारे चश्में का नंबर थोङा कमजोर होता जा रहां है.इस पूरे लेख मैं लेखिका ने आतंकवादियों का बचाव किया है और जिन घटनाओं का उल्लेख किया है वे तो शायद बहुत पुरानी घटनाएं हैं और इनका सहारा लेकर कब तक आतंकवाद का बचाव किया जाता रहेगा.हमें सैक्यूलर दृष्टिकोण के नाम पर आतंकवादियों और देशद्रोहियों के वचाव करने से लोगों का रोकना चाहिये
ReplyDeleteदनिश जी से पूरी तरह सहमत हूँ, फिरदौस जी की पोस्ट को बड़े ही ग़लत ढंग से लिया गया है...नाराजगी और गुस्से से पहले उसे ध्यान से पढने की ज़रूरत थी...कुश आप एक बेहद senstive और समझदार इंसान हैं, साथ ही एक बेहद अच्छे कवि भी, लेकिन माफ़ कीजियेगा, यहाँ कहीं भी आपके अन्दर का कवि नज़र नही आता...फिरदौस जी ने किसी को निशाना नही बनाया, उन्होंने सच्चाई लिखी है, आप उसे कैसे झुठला सकते हैं...ये ख़बर अखबार में आई थी, उन्होंने सिर्फ़ खदशा जताया है की ऐसा क्यों नही हो सकता ?
ReplyDeleteजो लोग ऐसा कर सकते हैं, वो और साजिश क्यों नही कर सकते, बाकी रहा दहशत गर्दी का सवाल तो कुश जी, आतंकवाद का कोई धर्म या मज़हब हो ही नही सकता...जो लोग इंसान कहलाने के लायक न हों वो किसी धर्म के कैसे हो सकते हैं...उनके नाम चाहे कुछ भी हों, इस पोस्ट में कुश जैसे कहीं दिखायी ही नही देते...ये तो एक आम सा आदमी जो किसी के जवाब पर कुछ भी बोलता चला जाता हो या कोई भी ग़लत सही इल्जाम लगाता चला जाता है...अरे...आप मुस्लिम्स की बात करते हैं ना तो वो तो आदी होगये हैं ऐसे हजारों इल्जामों के, एक और सही, लेकिन आप तो एक इल्जाम पर ही आपा खो बैठे...क्यों? जब हम इतना बर्दाश्त कर सकते हैं तो आप क्यों नही? कुश जी हर चीज़ को एक आँख बंद करके देखेंगे तो चीज़ें आधी ही नज़र आएगी...मैंने सिर्फ़ सच का साथ दिया है...उम्मीद है आपने बुरा नही माना होगा...
likte to aap kafi achha hain...
ReplyDeletepar apne jo title choose kiya hai kya us par dhyan diya kabhi?
ek baat bataiye..apke anusar terrorist ko police pakad nahi pati..
aur ap ne sabko bata bhi diya ki unka dharm kya hai?
abhi to khud hi dharm ko atankwad se hata rahe the..aur abhi hinduo ko jod idya atankwad se
main nahi janta ki galati kiski hai..par ap jarur jante hain ki hindu hi gunahgaar hain.
ap kabhi kisi sehar ke purane ilako me gaye hain?
maine sachai dekhi hai...main sabhi muslims ko galat nahi kahna chahta hun
par aap hinduo ko hi in sabke liye jimmedar maan rahe hain..
kya milega badnam karke kisi aur dharm ko..
SIMI hi kyu har jagah mil jata hai
....main kisi bhi aise organisation ke khilaf hun
chahe wo SIMI ho ya bajrang dal
par aap to bhaut bade astrologer nikale..
sab kuch ek baar me hi bata diya..
hinduo ko garv hona chahiye ap par
abhi bhi apko yahi lagega ki main koi kattarpanthi HINDU hun.....
par ek baat apoko bata dun.....
ye aaj ke youth ki awaz hai
ise development chahiye na ki religon based decision, jaisa ki ap ne le liya hai
terrorist ko fansi do to ap hi jaise log sadko par utar jate ho..
aur agar blast ho to government ko galiya dete ho
likhne ko bahut kuch hai..
par kya karu apke post se bada na ho jaye
"दस्तूर किसी मजहब का ऐसा भी निराला हो
ReplyDeleteएक हाथ में हो इल्म दूजे में निवाला हो"
ये काफी़ गंभीर विषय है.. बिना सोचे जाने इस तरह आक्षेप लगाना नादानी है.. ये जहर फैलाने जैसा है..
ReplyDeleteमैं अक्सर peace tv देखता हुँ.. कुरान और इस्लाम को समझना चाहता हूँ... पर हैरानी तब होती है.. जब कुरान की आयते लिख आतंक से पल्ला झाड़ने की कॊशीस करते है.. जैसा फिरदोस जी ने किया है.. हम ये समझते है कि कुरान आतंक नही सिखाती.. पर कुछ लोग एसे है जो एक हाथ में कुरान और दुसरे में बम रखते है..
यहां फिरदौश जी से एक प्रार्थना और है कि वे कमेंट मॉडरेशन हटायें नहीं तो यह एक ब्लॉग न रहकर मात्र एक भोंपू हो जायेगा जो बोलता तो रहता है पर सुनता कुछ भी नहीं ,ये महा महिषी जो इनको सूट करता है वो छपने देती है बाकि को निकाल बाहर कर देती है ....
ReplyDeletesawal yah hai ki aap log aatankvad ke sath musalman shabd ka istemal kyon karte hain? hum chahe kavi hon ya lekhak, musalmanon ke khilaf chalaye ja rahe dushprachar ka shikar hain. is lekh se bhi yahi jhalakta hai.
ReplyDeleteKush maine aapke lekh ko padha fir firodus ke lekh ko padha
ReplyDeletefirdous ji jo kahna chati thi wo baat theek se nahi kahe paayi aur kahi na kahi muslim ke bachhav ko karte hue hindu ki taraf badh gayi
aur aap bhi firdous ji ki baat ke pahile hi misre se itna naraz hue ki unki aage ki baat ko bina pakshpaat wali nazron se nahi dekh paaye
aatank vaad hindi muslim nahi hai koi dharam koi mazhabd nahi batata ki ladho
ye sirf kuch sawarthi logon ka kaam hai
jo log apna ullu saadhne ke liye nirdosh logon ki jaan le rahe hain
hum padhe likhe logon ka farz hai ab ye hai ki ye bedh baav jo wo hamare man mein bo rahe hain unhe nahi badhne de
ladhe nahi aur unke har bure iradon ko nakam kar de
mujhe umeed hai ki dukh ki gadhi mein sab ek saath hokar aatankvaad rokne ka solution sochenge
कुश जी ने साहसी लेख तो लिखा है, लेकिन कुछ दुस्साहसी लोग खुलकर मुस्लिम आतंकवाद का बचाव एक-दो गैर-मुस्लिम चरमपंथी संगठनों के इक्का-दुक्का उदाहरण ढूँढ कर दिखाते हुए कर रहे हैं।
ReplyDeleteफलाने भी तो व्यभिचारी हैं,इसलिए हम भी इसमें आकण्ठ डूबे रहेंगे। वाह! क्या तर्क हैं?
इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाना इसलिए गलत नहीं है कि कुछ लोग हिन्दू धर्म के नाम पर भी उग्रवाद फैला रहे हैं। ...कुछ लोगों ने नकली दाढ़ी-मूँछ लगाकर समाजविरोधी काम कर दिया तो असली दाढी मूँछ वालों का सारा गुनाह जायज हो गया, उसे माफ़ कर देना चाहिए।
हकीकत तो ये है कि यह हमारे बहुसंख्यक हिन्दुओं का देश भारत ही है जहाँ हिन्दूवादी चरमपन्थ का विरोध भी बहुसंख्यक हिन्दू करते हैं।
जिन इक्का-दुक्का घटनाओं का जिक्र फ़िरदौस साहिबा ने किया है, उस तरह की घटनाएं मुस्लिम आबादी के भीतर भी आये दिन होती रहती हैं, लेकिन इसे मात्र एक आपराधिक घटना मानकर देखा जाता है।
राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खतरनाक नेटवर्क बनाकर फिदायीन संगठन बनाने और निर्दोष नागरिकों पर हमले करने का पाठ किसी हिन्दू संगठन को पढ़ाते हुए नहीं देखा सुना गया। ...यदि किसी ने देखा भी हो तो इससे वह जायज नहीं हो जाता।
कोई भी व्यक्ति पाक़ कुरान की आयतों की नेकी पर सवाल नहीं उठा सकता। लगभग सभी धर्मों की मूल बातें एक सी हैं।
...यहाँ तो इसके दुरुपयोग से कुछ खास किस्म की कट्टरतावादी भावनाओं को भड़काने पर चिन्ता होती है जो ९/११ के व्यापक नरसंहार और फ़िदायी हमलों में भी धर्म की सेवा और जेहाद का अक्स ढूँढते हैं।
काफी अच्छा विश्लेषणा प्रस्तुत किया है आप ने. संवेदनशील विषय पर बहुत ही संयम एवं आत्मनियंत्रण के साथ आपने जो कुछ प्रस्तुत किया है उसे अधिक से अधिक लोगों द्वारा पढवाया जाना चाहिये!
ReplyDelete-- शास्त्री
-- समय पर दिया गया प्रोत्साहन हर मानव में छुपे अतिमानव को सबके समक्ष ला सकता है, अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
kushbhai...kis kis ka muh bandh karenge? kis kis ko kahan rokenge? mazhab ke naam par log kya kya nahi kar rahe? isne to keval ek lekh likha hain... aap us par dhyan de kar uska mansuba pura kar rahe hain...so just ignore it...
ReplyDeleteSOMETIMES NO REACTION IS THE BEST REACTION...
hi everyone
ReplyDeleteजरा इधर भी गौर करें
ReplyDeleteMera naam Amit jain hai. Hamari jansankhya mahaj 70-75 lakh hai,jo muslim jansankhya( kariban 18 crores )se kafi kam hai . hum hazaro saalo se is desh me raha rahe hai lekin haamare saath to kabhi is desh ne sautela vehvaar nahi kiya na hi kabhi kiya jaayega, kewal in jaise kattarpanthi logo ko hi aisa kyon lagta hai, kahin iska kaaran yeh kudh to nahi. aakhir pakistaan ka nirmaan karne wale jain thai,ya budist the,ya muslim.
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