कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)
थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..
पूर्व में हमने देखा ब्लॉग जगत के देवता, उसके विमान और ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..
विमान ठीक ब्लोगाश्रम के ऊपर मंद गति से मंडरा रहा है.. कई दिवस हुए विमान के पुर्जो में तेल नही दे पाने से घर्र घर्र की मधुर ध्वनि वातावरण में सुशोभित हो रही है.. पक्षी विमान के पास आकर हेय दृष्टि से उसे देखकर जा रहे है.. एक नटखट पक्षी ने अभी अभी देवता के समीप अपनी दीर्घ शंका व्यक्त कर दी है..
देवता अपने पावन नेत्रो से उस पक्षी को खुन्नस अर्पित कर रहा है.. पक्षी देवता को अपने पृष्ठ भाग पे बची खुची शंका दिखाते हुए मुस्कुराता हुआ निकल चुका है..
देवता अपना चश्मा खोज रहा है.. आयु अधिक होने से दृष्टि कमजोर हो गयी है.. इतनी ऊंचाई से उचित दिखता नही है देवता को.. पुन: इस उँचाई से नीचे देवता विमान ले जा भी नही सकता..
क्या कहा आपने? क्यो नही ले जा सकता? अब मित्र बता तो रहे है किंचित संयम रखिये.. क्यो अकारण कथा के लंगोट में हाथ घुसा रहे है..
तो आपका प्रश्न था की देवता इस उँचाई से नीचे विमान क्यो नही ले जा सकता? इसका उत्तर ये है की कुछ दिवस पूर्व एक अन्य देवता इस उँचाई से विमान को तनिक नीचे ले गया था..उसी क्षण धरती से उर्ध्व दिशा में प्रकाश वेग से भी तीव्र गति से एक सोंटा आया और सीधा देवता के कपाल पर एक गुमडा सादर समर्पित कर गया..
बस तभी से देवता ने विमान को एक निश्चित उँचाई से नीचे नही ले जाने के लिए विमान चालक से विनती की है.. अब पुन ये प्रश्न मत कीजिएगा की विनती क्यो की.. यह हम आपको कथा के पूर्व में ही बता चुके है..
परंतु पाठक यदि प्रश्न भी ना पूछे तो वो पाठक ही क्या.. हमे विदित है की आपका अगला प्रश्न क्या है? आप यही पूछना चाह रहे है ना की वो सोंटा कहा से आया विमान में.. ?
तो चलिए हम श्रीमान सोंटेधारी से भी आपका परिचय करवा देते है..
कहा जाता है की इन्हे कभी बिना सोंटे के नही देखा गया.. पूरे ब्लॉग जगत में इन्हे लेकर भाँति भाँति की किवंदतिया फैली पड़ी है.. उनमे से ही एक हम उठाकर आपको बताते है की.. ये किसी से भी कभी भी भिड जाते है.. इनका मूल नाम तो किसी को नही ज्ञात परंतु ये ब्लॉगजगत में कही भी अनिष्ट देखते ही.. उस ब्लॉगर को एक सोंटे का प्रहार अर्पित कर आते है..
गुरुजी के आश्रम में इनका विशिष्ट स्थान है.. गुरुजी के आशीर्वाद से इन्होने अब तक नाना प्रकार की मुद्राओं में विविध स्थानो पर सोंटो का प्रहार किया है.. बस तभी से इनका नाम सोंटेधारी पड़ गया.. और इन्हे इनके वास्तविक नाम से कोई नही जानता.. कदाचित् इन्हे स्वयं भी अपना नाम स्मरण नही होगा..
अरे अरे मित्र.. इनके समीप जाने की चेष्ठा ना करे अन्यथा आपका पृष्ठ भाग इनके सोंटे की विजय गाथा में एक अध्याय और बढ़ा सकता है..
इन्हे इनके हाल पर छोड़कर हम आपको ले चलते है गुरूजी के समीप..
गुरुजी असुंदर जी को बिठाकर फिर से अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसा के बैठ गये..
"कौन है ये माँ का सपूत?" गुरुजी की वाणी में वेग अधिक था..
कुछ नये नये पास बनवाकर आए चेले काँप उठे.. वही कुछ पुराने अपने पास वालो से गुरुजी के विषय में कुछ यू कहने लगे..
"कुछ नही हुआ है. बुढऊ के रक्तचाप की गति उच्च निम्म होती रहती है.."
"हमने कहा कौन है ये माँ का सपूत?" ये मात्र उच्च रक्तचाप नही था..
"कौन है ये एकल दास?" गुरुजी ने क्रोध से पूछा..
एकलदास सोंटेधारी की दिशा में देखते हुए उठा और दोनो कर जोड़ते हुए बोला..
"हे समस्त गुरुओ में उत्तम! हमसे क्या भूल हुई?"
"उत्तम की सर्वोत्तम?" गुरुजी तनिक संतुलित होते हुए बोले..
"सर्वोत्तम प्रभो!"
"हम्म अब उचित है! परंतु ये कहा उचित है की तुम अन्य ब्लॉगरो पर आरोप प्रत्यारोप करते फ़िरो?" गुरुजी की वाणी में अभी तक क्रोध था.. सोंटा धारी दो कदम अग्र दिशा में आ चुका था और एकल दस दो कदम पीछे हो लिया..
"हे गुरुओ में सर्वोत्तम कुछ ब्लॉगर जो एक दूसरे के मित्र है वो मेरे ब्लॉगपत्र पर नही आकर एक दूसरे के ब्लॉगपत्र पर ही जाते थे.. मुझे ये उचित नही लगा, अत: मैं वहा टिप्पणी कर आया की एक ही दल में घूमते रहोगे या कदाचित् हमारे ब्लॉगपत्र पर भी दिव्य दृष्टि धरोगे.."
"गुरुजी बोले रे मूर्ख! कौन मित्र और कौन शत्रु? यहा सभी तुम्हारे मित्र ही तो है.. एक परिवार में भी तो पुत्र की माता से ज़्यादा बनती है पिता से कम.. क्या इसका ये अर्थ है की माता एवं पुत्र का पिता से कोई प्रथक दल है?"
"पुन: मित्र भी तो सब यहा आकर ही बने है.. एक दूसरे को पढ़कर ही बने है.. कोई पहले से मित्र थोड़े ही थे.."
"किंतु गुरुवर आप इन बिलावो से परिचित नही है.. ये तो आपके छींके से भी दही चुरा ले.. ऐसे जान पड़ते है.."
इतना सुनते ही गुरुजी के आदेश की प्रतीक्षा किए बिना ही सोंटाधारी आगे बढ़ा और श्रीयुत एकलदास को अपने एक हस्त से उठाकर पास की कुटिया में ले गया..
कुछ देर तक एकलदास की वाणी समीर की मंद बयारो के संग ताल से ताल मिलकर नाद करती रही.. उसके पश्चात् वो भी बंद हो गयी..
गुरुजी पुन: लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसा के बैठ गये.. सोंटाधारी पुन: बाहर आ गया.. अगली बारी की प्रतीक्षा में..
प्रार्थना कीजिए वो अगली बारी आपकी नही हो...
जारी
nice-"गुरुजी बोले रे मूर्ख! कौन मित्र और कौन शत्रु? यहा सभी तुम्हारे मित्र ही तो है..
ReplyDeleteब्लागाश्रम में विचरण करने वाले सोंटाधारी के कार्य-कलापों का अद्भुत वर्णन करने वाले हे ब्लॉगरश्रेष्ठ, क्षमा...क्षमा...हे ब्लॉगर सर्वश्रेष्ठ, ब्लागिंग की गाथा को नई ऊंचाईयों तक पंहुचाने वाले हे ब्लागाधिराज, समस्त ब्लागरों में उत्तम, हे ब्लागरोत्तम, आपके अद्भुत लेखन से प्रसन्न देव-दानव, यक्ष-दक्ष, यत्र, तत्र, सर्वत्र पुष्पवर्षा करने का कार्यक्रम निर्धारित कर रहे हैं.
ReplyDeleteअपने लेखन के प्रकाश से ब्लॉगजगत को धन्य कर देने वाले हे ब्लागाप्रकाश, ऐसे ही ब्लॉग रचना करते रहें. हम आपके इस प्रयास के आगे नतमस्तक हैं, हे लेखकश्रेष्ठ.....क्षमा ..क्षमा...हे लेखकसर्वश्रेष्ठ..अपने लेखन की मंदाकिनी को बहाए रखें.
कदाचित अब समझ आया कि ये सोंटेधारी इन दिनों क्यों आपके मित्र है ?
ReplyDeletebahad bhaawporn
ReplyDeleteachcha laga
andaaj bhi behtreen
मजेदार .लिखते कमाल का है आप :) पढ़ कर लगता है कि कहीं बहुत गहरे प्रवचन सुन रहे हैं ..जय कुश बाबा की :)
ReplyDeleteहे सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर पोस्ट के रचयिता ! हे ब्लॉगर शिरोमणी, आपको
ReplyDeleteताऊ का साष्टांग दंड प्रणाम !
इस महान ग्रन्थ, जो आपके द्वारा रचा जा रहा है की अदभुत और
अति उतम रचना ke लिए आपको अग्रिम बधाई !
श्रेष्ठ ब्लॉग पोस्ट
ReplyDeleteउत्कृष्ट व्यंग रचना धन्यबाद आपको मेरे ब्लॉग पर पधारने हेतु पुन:: आमंत्रण है
ReplyDeleteकुछ दिवस पूर्व एक अन्य देवता इस उँचाई से विमान को तनिक नीचे ले गया था..उसी क्षण धरती से उर्ध्व दिशा में प्रकाश वेग से भी तीव्र गति से एक सोंटा आया और सीधा देवता के कपाल पर एक गुमडा सादर समर्पित कर गया...
ReplyDeleteऐसे सोंटाधारी महोदय को सुरक्षित दूरी से सादर नमन्।
कुश जी, आपतो कमाल का लिखते हैं। पढ़ते-पढ़ते जो तेज हँसी छूटी कि पत्नी चिन्तित हो गयीं। हक्का बक्का देखने लगीं जैसे मुझे कोई दौरा पड़ गया हो।
ब्लॉगाश्रम में कथा-वार्ता का रोचक इंतजाम है :)
ReplyDeleteक्या बात है कुश जी !
ReplyDelete.. ब्लोगाश्रम सीरीज़ बडी अच्छी रही :)
- लावण्या
स्वामी जी अगले अध्याय का इंतज़ार रहेगा
ReplyDelete.
ReplyDeleteभाई कुश सही जा रहे हो,
इस व्यंग मे सत्य की मिलावट का अनुपात सटीक है ।
इस गुरु की ज्ञानसत्ता का छायावादी चरित्र बड़ा विचित्र है, मित्र !
लगे रहो.. इस ऋंखला की सार्थकता उजागर होती जारही है, सोंटावाद सोंटावाद !
ब्लॉग कथामृत का श्रवण चल रहा है -भक्त श्रोता भाव विभोर हो रहे हैं ,अभक्त विभक्त हो रहे हैं ,हम हकबकाए देख रहे हैं की किस ओर का पाला थामें -यह लगता है पितृपक्ष से आगे भी चलता जायेगा -यह ब्लॉग युग कीकथा है इसकी तर्पण तिथि लाजिमी है कोई दूसरी ही होगी -ये सोंटाधारी जिसकी सिद्धार्थ भी अर्थार्थ निकाल चुके हैं व्याकरण की लिहाज से किस लिंग के हैं -यह एक लघु शंका है !और अभी कुछ दीर्घ शंकाएँ भी बाकी हैं !
ReplyDeleteहे ब्लौगजगत के वेदव्यास! हे मुनिश्रेष्ठ! आपकी लेखनी का सोंटा यूँ ही चलता रहे. ब्लौगाश्रम के निवासियों को यूँ ही प्रफुल्लित करता रहे.
ReplyDeleteअद्भुत कथानक. अत्यन्त रोचक स्टायल.
khubsurat kavita...arthpurn interviews....aur ab ye blogshram ki philosophy ... sahi hai .... aage kya iraada hai ??? :P
ReplyDeleteहे ब्लोगाचार्य ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो अंतरात्मा तक ब्लॉग मय हो गयी है....ऐसा सुन्दर लेखन देखकर कहीं स्वर्ग से देवता गण भी आपसे प्रशिक्षण लेने के लिए इस धरा पर न उतर आयें....आती सुन्दर. जितनी प्रशंसा की जाए कम है!
ReplyDeleteप्रार्थना किजिये..वाली अंतिम पंक्ति अब हमारे लिए काम की नहीं-हमारा तो अब लोगों को शुभकामना देने का कार्य शेष रहा, हे ब्लॉगरश्रेष्ठ.
ReplyDeleteसोंटा से घायल भी ही ही ही कर उठें, यह होता है मस्त सटायर!
ReplyDeleteकौन घायल हुआ? किसी ने हामी न भरी।
विमान का ओवर हॉलिंग करवा कर अगली पोस्ट के साथ पुनरागमन करना। :-)
बहुत अच्छा लिखा है...कमाल का लिखते हैं आप...
ReplyDeleteअरे यार, गजब व्यंग्य लिखते हो, आज बहुत दिनों बाद फिर से ब्लाग पर आना हुआ, पढऩा लिखना छोड़ दिया था। आहा पढ़ते ही मजा आ गया। जियो जयपुर का नाम रोशन कर रहे हो भई।
ReplyDeleteकुश महाराज !
ReplyDeleteकुछ हम जैसे नए व अनाडी ब्लागर्स पर कृपा कर साफ़ साफ़ मार्गदर्शन करें,तो कृतार्थ होंगे ! आपका ब्लाग बहुत खूबसूरत है !
आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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अरे अरे मित्र.. इनके समीप जाने की चेष्ठा ना करे अन्यथा आपका पृष्ठ भाग इनके सोंटे की विजय गाथा में एक अध्याय और बढ़ा सकता है..
ReplyDeleteमुझे खुशी है की आप की रचना भी मूल रचना से उन्नीस नहीं है...बधाई...
नीरज
जै!जै! हो आपकी गुरुजी! सादर प्रणाम! मज़ा आया!
ReplyDeleteगुरुदेवोभव!
हम तो प्रतिक्षा ही करते रहें इनके सोंटे की...
ReplyDeleteअद्भुत लेखन!