जन्मदिन पर कितने ही लोगो ने फ़ोन किया.. इतनी सारी दुआए मिली की संभालनी मुश्किल हो गयी.. काश! दुआओ का भी कोई फिक्स डिपोसिट होता की आज जमा करा लो और जब ज़रूरत हुई तब निकाल लो..
जन्मदिन के दूसरे दिन शाम को एक फ़ोन आया.. नंबर अंजान था.. उठाया तो सामने से आवाज़ आई
"भाईकुश? " पुराने दोस्त इसी नाम से पुकारते थे
मैने कहा " हाँ "
वो बोली "बिलेटेड हैप्पी बर्थडे"
मुझे समझ नही आया कौन है पर मैंने थॅंक्स कहा
उसने कहा... "पहचाना नही"
इस बार मैने पहचान लिया था.. ये विद्या थी..
ज़िंदगी के सबसे ख़र्चीले.. आवारा.. पर मस्ती भरे दिनों की एक साथी.. लड़को के साथ पंजे लडाना उसका शौक था.. मुझसे हर बार हारती थी.. पर कभी उसके चेहरे पर शिकन भी नही आती.. देखना एक दिन तुमको ज़रूर हराऊँगी..
पूल टेबल पर उसका जवाब नही होता था.. हम दोनो की जोड़ी ने पूल में बहुतो को हराया है.. टयुसंस बंक करना और पूल खेलना.. बस हर दो चार दिन में ये हो ही जाता था...
एक दिन वो कही से बीडी का बण्डल ले आई बोली यार आज बीड़ी पीकर देखते है.. कैसी होती है.. शाम तक हम लोगो का खाँसी के मारे बुरा हाल था..
न्यू ईयर वाली शाम हम मिले उसने कहा आज की रात बारह बजे मस्ती करते है.. हम चाहते तो घर पे बता के जा सकते थे.. पर उसने कहा खिड़की से कूदकर चलते है.. एडवेंचर के बिना लाइफ क्या.. उस रात पहली बार मैं घर से बिना बताए रात को निकला था.. पूरी रात शहर की गलियो में बाइक पर घूमे थे..
उसकी ज़िंदगी में एडवेंचर्स की एक खास जगह थी.. हर सिंपल से काम में रोमांच.. यही उसका फंडा था .. पूरे ग्रूप की जान..
कुछ दिनों बाद हमारे एक्साम से हम लोगो में दूरिया बढ़ गयी...बहुत दिनों से मिलना नही हुआ था..
एक शाम पूल क्लब में मैने विद्या को एक लड़के के साथ देखा.. दोनो एक दूसरे को किस कर रहे थे.... मुझे बहुत गुस्सा आया.. मैं तेज़ी से उनकी और गया.. मैने विद्या का हाथ खींच कर उसको उस लड़के से अलग किया.. और ज़ोर से विद्या के गाल पर एक थप्पड़ मारा.. वो लड़का मेरी तरफ आया.. मैने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया.. सब लोग अंदर आ गये... कोई भी कुछ समझ नही पाया.. मैं तेज़ स्पीड से नीचे उतर गया..
विद्या मेरे पीछे पीछे आई.. मगर मैने उस से बात नही की.. मैं बहुत गुस्से में था.. उस रात मुझे नींद नही आई.. बार बार विद्या और उस लड़के का चेहरा मेरी आँखो के सामने आता रहा... मैं एक महीने के लिए अपनी मौसी के यहा चला गया..
थोड़े दिनों बाद पता चला.. विद्या गुवाहाटी चली गई है... मैंने उसे ढूँढने की भी कोशिश नही की.. वक़्त कैसे चला गया पता ही नही चला...
"क्यो अब तक नाराज़ हो?..." विद्या बोली..
मुझे याद आया मैं फोन पे हू...
"विद्या !..." मैने कहा
" क्या बात है पहचान लिया.."
" कैसी हो?"
" अच्छी हू! और तुम? "
" हाँ अच्छा हू.."
" सॉरी उस दिन मैने.."
उसने बात बीच में ही काट दी..
" बहुत मुश्किल से ढूढ़ा है तुम्हारा नंबर.. लेकिन एक दिन लेट हो गयी.."
" थॅंक्स!.." मेरी आवाज़ बहुत धीरे थी
" एक बात बतानी थी तुमको.."
" हाँ बोलो.." मैने कहा
"अच्छा हुआ उस दिन तुम आ गये.. वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती किस कर रहा था.. मैने तुमसे बात करने की इतनी कोशिश की पर तुम मिले नही.. तुमको उस दिन से थॅंक्स बोलना चाहती थी.. तुमको मेल भी किया हॉट मेल वाले आई डी पर.. लेकिन तुम्हारा जवाब नही आया.. आज इतने सालो बाद तुम्हारा नंबर मिला है...तुम नही आते तो पता नही क्या हो जाता.."
" मतलब उस दिन वो..??.."
" हाँ वो मेरे साथ ज़बरदस्ती कर रहा था.."
" तो तुमने बताया क्यो नही मुझे.."
" तुमने मौका ही नही दिया.. या फिर शायद किस्मत ने.."
मैं बहुत देर तक चुप रहा.. पता नही हमारी बात कब ख़त्म हुई... मैं बस सोचता ही रहा..
मैने उसे एक मौका भी नही दिया.. उसने कितनी कोशिश की थी मुझसे बात करने की.. पर मैने नही की.. और करीब सात साल तक हम दोनो को एक दूसरे की खबर नही थी.. मैं तो उसे भूल भी चुका था.. पर आज उसके फोन कॉल ने मन में अजीब सी हलचल मचा दी..
विद्या ठीक कहती थी.. एक ना एक दिन तुमको ज़रूर हराऊँगी..
गुस्से की वजह से समझ चली जाती है. सीख देने वाला वाकया.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट है, भाई.
देखिये दुआओं का बैंक न होने का फायदा. दोस्त याद कर लेते हैं.वरना फिक्स डिपॉजिट से आप दुआएं निकालते और दोस्तों को भूल जाते.आपका गुस्सा समझ आया पर अपनी दोस्त की बात न सुनना नहीं. चलिए इस जन्मदिन जिन्दगी की तरफ से आपके लिए यह सीख ही एक तोहफा है !
ReplyDeletedekho...is baar tumhare birth day par tumhe tumhari khoyi hui dost wapas mil gayi....ek chhoti si galatfahmi kitni dooriyaan badha deti hai. bahut achchi post .
ReplyDeleteपोस्ट पर क्या लिखें? वह तो बहुत सेण्टीमेण्टल मामला है।
ReplyDeleteयह किताबों की अलमारी बहुत अच्छी लग रही है। स्टीफन कोवी तो जबरदस्त लिखते हैं।
विद्या ठीक कहती थी.. एक ना एक दिन तुमको ज़रूर हराऊँगी..कुश ,बहुत पहले कहीं थीं-
ReplyDeleteजोड़-तोड़ गुणा भाग यों करता है क्यों करता है
बाज़ रिश्तों में घाटा ही नफ़ा करता है……
अरे कुश भाई आज मेरे पास इस बात का कोई जबाब नही बस एक ठ्ण्डी आह सी निकली दिल से......
ReplyDeleteपढ़ते पढ़ते मैं पन्द्रस साल पीछे चला गया, बहुत सेंटी सेंटी हो गया... :) यादें है भाई...इन पर बस थोड़े ही है.
ReplyDeleteलिखते कमाल हो. अब पूरानी मित्र मिल ही गई है तो फोन मारते रहा करो.
यार आप तो कमाल का लिखते हो ! जवाब नही ! इतने सटीक और सौम्य शब्दों में ? ये गद्य है या कविता ? बहुत शुभकामनाएं !
ReplyDeletesuch jindgi kuch ase hi rang dikhati hai
ReplyDeleteमैटर अपार्ट-लिखा बहुत सुन्दर है. वैसे इसे जन्म दिन का तोहफा ही कहेंगे.
ReplyDeletesach krodh insaan ka bada dushman hai,kuch sikha gaya ye wakiya,bahut khub
ReplyDeleteक्या कहूँ ?टिप्पणी दुबारा लौटकर करता हूँ...
ReplyDeletePost par koi comment nahi.. yah post mahsoos karne vaali thi..
ReplyDeletekai baar main apni post ke sath imaandari nahi baratataa hun.. so aisa kuchh nahi likh paata hun.. nahi to mere paas bhi bataane ko ek ghatna hai.. jab bhi ham mile to aapko sunaaunga.. :)
ab to lagta hai ki kabhi Bhivadi gaya to aapse milne Jaipur specially aana hi parega.. jaroor aaunga.. :)
मुझे भी एक फ़ोन का इंतज़ार है ,और यह पढने के बाद लगता है किसी दिन घंटी बजेगी
ReplyDeleteदिल को छुने वाला लेख
भगवान आपकी दोस्ती हमेशा बनाये रखे .
ReplyDeleteइसी को तो जिदंगी कहते हैं दोस्त। खैर देरी से ही सही हमारी तरफ से जन्मदिन मुबारक। कितनी साफगोई से और साधारण शब्दों से पोस्ट लिख दी आपने। बहुत ही अच्छा लगा पढकर।
ReplyDeleteये कैसी अज़ब
ReplyDeleteदास्ताँ हो गई है...
छुपाते छुपाते
बयाँ हो गई है :)
- लावण्या
ज़िंदगी में जीतने के लिए दिल से हारना अच्छा है .
ReplyDeleteमैंने कहीं सुना था ,नज़र करता हूँ ;
इस बात का है गम ही क्या कि तुमने किया दिल बरबाद
गम तो इस बात का है कि बहुत देर में बरबाद किया ..
सेंटी मामला है... नो कमेंट्स !
ReplyDeleteदुआओं की एफ.डी. कराना जरूरी होता है, जिसके ब्याज पर हम सारी उमर गुजार देते हैं, यह एफ.डी. आप कभी मत तुड़वाना।
ReplyDeleteकथात्मक विवरणों में जैनेन्द्र की झलक मिलती है।
बहुत सुंदर।
बस यादों के बियाबान में गुम गया था....इसलिए देर हो गई...टीप देने में ....मैं भी सोच कर गया था कि डॉ अनुराग की तरह लौट कर कुछ कहूंगा....पर अभी भी कुछ नहीं है...कुश जी ...कहने के लिए...शब्द शिल्प से गढ़ी गई...मनोरम...चित्र.
ReplyDeleteआपकी इस जीवंत स्मृति को नमन
ReplyDelete:)
ReplyDeleteये स्माइली कुश के अपने पोस्ट पर कमेन्ट के लिए..
aksar aisa hota hai..zindagi ne aap ko mauka to diya apni ghalati sudharne ka-
ReplyDelete-maafi mang lena zarur!
[saat saal jyada hain lekin itne bhi nahin - anyways-:)-]
क्या कह सकते हैं...। बस महसूस कर सकते हैं कि कैसा रहा होगा आपका चेहरा जब फोन पर सच्चाई का पता चला होगा।
ReplyDeleteयदि यह एक संस्मरण/कथा भर नही ,सचमुच आपका जन्मदिन था ,तो हमारे तरफ़ से भी 'बी लेटेड' जन्मदिन की शुभकामना ले लीजिये.
ReplyDeleteबाकी यदि यह संस्मरण है तो कहूँगी,आप जैसा दोस्त ईश्वर सबको दें.
यदि यह कथा है तो.......बहुत ही रोचक और मन को छूती हुई कथा है.
इसके लिए आभार.
बहुत अच्छा लिखा आपने..
ReplyDeletebadi nikhalasata se aapne baya kiya ye...itni himmat bahot kam logo mein hoti hai..badhai....
ReplyDeleteहार और जीत की अपनी अपनी परिभाषाएं होती हैं.
ReplyDeleteकौन जानता है की जिंदगी की किस राह पर हमारी परिभाषाएं कब बदल जायें.
आपके संस्मरण ने न जाने क्यों काफी बातें याद दिला दीं. बाक़ी फ़िर कभी..
अब विद्या को बुलाकर काफी पिलायें भाई, और कुछ यादगार पलों से रूबरू हो सकें आपके ।
ReplyDeleteयादों के झरोखे से सुन्दर वाक्या..कभी कभी वर्तमान से भूत अधिक सुन्दर लगने लगता है
ReplyDeleteविद्या के लिए (और आपके लिए भी )अच्छा ही हुआ । यदि आपका हाथ एक बार उठा तो बार बार उठता । गलत और सही बातें हो सकतीं हैं, परन्तु किसी भी हाल में हाथ उठाना सही नहीं कहा जा सकता । दोस्त या प्रेमी या पति पत्नी बराबर होते हैं, इन सम्बन्धों में हाथ उठना कभी भी सही नहीं हो सकता । वह या आप आज सोच सकते हैं कि यह दोबारा नहीं होता, परन्तु बहुत सम्भव है होता और आज जो आपको ग्लानि हुई है उससे भी अधिक ग्लानि से दो जीवन भर जाते ।
ReplyDeleteजन्मदिन की देर से ही सही बधाई ।
घुघूती बासूती
भैया कुश जी
ReplyDeleteहमें तो १४ सालों बात हमारे हार जाने का पता चला।
बहुत सी बातें याद दिलवा दी आपने.. बस पहले उन यादों में एक बार फिर से जी लें। बाद में दूसरी पोस्ट पढ़ेंगे।
"बिलेटेड हैप्पी बर्थडे"
ReplyDeleteहमारी तरफ़ से भी...इस बार जयपुर आने पर काफ़ी आप पिलायेंगे...जनम दिन की पार्टी समझ कर हम पियेंगे...ठीक है ना...
बेहतरीन पोस्ट...शुरू से अंत तक...विद्या जी को समझईये की दोस्ती में हार जीत नहीं होती...सिर्फ़ जीत ही होती है.
नीरज
"बिलेटेड हैप्पी बर्थडे"
ReplyDeleteहमारी तरफ़ से भी...इस बार जयपुर आने पर काफ़ी आप पिलायेंगे...जनम दिन की पार्टी समझ कर हम पियेंगे...ठीक है ना...
बेहतरीन पोस्ट...शुरू से अंत तक...विद्या जी को समझईये की दोस्ती में हार जीत नहीं होती...सिर्फ़ जीत ही होती है.
नीरज