अनुराग बाबू का ब्लॉग चूसा इतना रस निकला की कल मधुमेह का चेक अप कराके आया हू.. पूरे पंद्रह सौ रुपये लगे.. मेरे पास कैश थे नही तो सोचा ए टी एम से निकाल लू.. लेकिन कौनसे वाले ए टी एम से निकालु? छ्: बॅंक में अकाउंट है.. एच डी एफ सी वाले से निकाल लेता हू घर के पास ही है तो अपनी बाईक पे चला जाऊँगा.. अब इतनी सी दूरी के लिए कौन कार निकालेगा... बस यही सोच के अपना एप्पल का लॅपटॉप बंद किया.. जी हा तीन दिन पहले ही मैने एप्पल का लॅप टॉप लिया है.. पुराना वाला मैने अपने ड्राइवर के बेटे को दे दिया.. बड़ा होशियार बच्चा है.. ड्राइवर के पास इतने पैसे नही की उसको पढ़ा सके.. इसलिए मैने उसका एडमिशन शहर के एक अच्छे स्कूल में करवा दिया.. जिसकी फीस दस हज़ार रूपये महिना है, और अपना लॅप टॉप भी उसको दे दिया..
खैर मैने ए सी ऑफ किया और उठा सीधे दो ब्रेड में टमाटर को दबा के अपने माइक्रोवेव में ग्रिल कर डाला.. हालाँकि मेरे कूक भी अच्छा खाना बनाते है.. पर मुझे अपने हाथ से बनाया सेंडविच अच्छा लगता है..
खैर ए टी एम से दस हज़ार रुपये निकाल कर.. सीधे हॉस्पिटल पहुँचा.. मुझे लंबा इंतेज़ार नही करना पड़ा.. क्योंकि इस हॉस्पिटल में ही मैं तीन बार अपना ब्लड डोनेट कर चुका हू.. और यहा पर मैने डोनेशन देकर एमर्जेन्सी वॉर्ड का रिनोवेशन कराया था.. डॉक्टर मुझे देखते ही अपनी सीट से खड़ा हो गया.. मैने बताया की कैसे अनुराग जी के ब्लॉग की मिठास से मुझे मधुमेह की शंका हुई.. आप चेक अप करिए.. डॉक्टर ने तुरंत नर्स को बुलाया..
नर्स जब चेक अप कर रही थी तो मैने देखा उसकी आँखो में कुछ नमी सी थी.. मैने उस से कारण पूछा तो उसने बताया नही.. मैने जब बहुत ज़िद की तो वो बोली की उसकी शादी नही हो पा रही है.. दहेज की वजह से.. पूरे घरवाले परेशान है उसके पिताजी की तबीयत ठीक नही.. मुझसे उसका दुख देखा नही गया.. मैने फ़ौरन जेब से साढ़े आठ हज़ार रूपये निकाले (पंद्रह सौ चेक अप के काट लिए थे पहले ही).. हालाँकि डॉक्टर ने मना किया था..आपसे पैसे नही लूँगा.. पर मुझे ये बिल्कुल पसंद नही.. सबको अपनी मेहनत के पैसे मिलने ही चाहिए
क्लिनिक से लौटते हुए रास्ते में हनुमान मंदिर पे रुका.. जाते ही पंडित जी को बोला आज मंदिर में सौ किलो का चुरमा चढ़ाया जाए.. शाम को सभी में वो चुरमा वितरित करवाया.. और उनसे वादा किया की जिस तरह पिछली अमावस्या पर सबको कपड़े दान किए थे.. वैसे ही इस बार सबको कंबल दान करूँगा...
सभी मुझे दुआए दे रहे थे.. पर मुझे उन दुआओ के मिलने से ज़्यादा खुशी अपने मन को शांति मिलने से हुई..
नही नही आप ग़लत समझ रहे है.. ये सब करके मन को शान्ति नही मिली.. अब आपसे क्या छुपाना आज ये सब लिखकर मन को इतनी शांति मिली है.. की क्या बताऊ..
आपके मन में जो विचार आ रहे है.. वो बिल्कुल सही है... इसे आप ढिंढोरा पीटना ही कहेंगे...
यदि कोई दावा करना चाहे की उपरोक्त विवरण काल्पनिक है.. तो उसके दावे की सत्यता मैं अभी ही स्वीकार करता हू.. अच्छा कार्य करके मन को शांति मिलनी चाहिए.. ना की अच्छे कार्य के बारे में बताकर.. अपने कर्तव्य का पालन करना ही सद्कर्म है.. मैने पोस्ट लिखकर अपने कर्तव्य का पालन किया है.. अब आप टिप्पणी करके अपने कर्तव्य का पालन कीजिए.. यही सद्कर्म है...
खैर मैने ए सी ऑफ किया और उठा सीधे दो ब्रेड में टमाटर को दबा के अपने माइक्रोवेव में ग्रिल कर डाला.. हालाँकि मेरे कूक भी अच्छा खाना बनाते है.. पर मुझे अपने हाथ से बनाया सेंडविच अच्छा लगता है..
खैर ए टी एम से दस हज़ार रुपये निकाल कर.. सीधे हॉस्पिटल पहुँचा.. मुझे लंबा इंतेज़ार नही करना पड़ा.. क्योंकि इस हॉस्पिटल में ही मैं तीन बार अपना ब्लड डोनेट कर चुका हू.. और यहा पर मैने डोनेशन देकर एमर्जेन्सी वॉर्ड का रिनोवेशन कराया था.. डॉक्टर मुझे देखते ही अपनी सीट से खड़ा हो गया.. मैने बताया की कैसे अनुराग जी के ब्लॉग की मिठास से मुझे मधुमेह की शंका हुई.. आप चेक अप करिए.. डॉक्टर ने तुरंत नर्स को बुलाया..
नर्स जब चेक अप कर रही थी तो मैने देखा उसकी आँखो में कुछ नमी सी थी.. मैने उस से कारण पूछा तो उसने बताया नही.. मैने जब बहुत ज़िद की तो वो बोली की उसकी शादी नही हो पा रही है.. दहेज की वजह से.. पूरे घरवाले परेशान है उसके पिताजी की तबीयत ठीक नही.. मुझसे उसका दुख देखा नही गया.. मैने फ़ौरन जेब से साढ़े आठ हज़ार रूपये निकाले (पंद्रह सौ चेक अप के काट लिए थे पहले ही).. हालाँकि डॉक्टर ने मना किया था..आपसे पैसे नही लूँगा.. पर मुझे ये बिल्कुल पसंद नही.. सबको अपनी मेहनत के पैसे मिलने ही चाहिए
क्लिनिक से लौटते हुए रास्ते में हनुमान मंदिर पे रुका.. जाते ही पंडित जी को बोला आज मंदिर में सौ किलो का चुरमा चढ़ाया जाए.. शाम को सभी में वो चुरमा वितरित करवाया.. और उनसे वादा किया की जिस तरह पिछली अमावस्या पर सबको कपड़े दान किए थे.. वैसे ही इस बार सबको कंबल दान करूँगा...
सभी मुझे दुआए दे रहे थे.. पर मुझे उन दुआओ के मिलने से ज़्यादा खुशी अपने मन को शांति मिलने से हुई..
नही नही आप ग़लत समझ रहे है.. ये सब करके मन को शान्ति नही मिली.. अब आपसे क्या छुपाना आज ये सब लिखकर मन को इतनी शांति मिली है.. की क्या बताऊ..
आपके मन में जो विचार आ रहे है.. वो बिल्कुल सही है... इसे आप ढिंढोरा पीटना ही कहेंगे...
यदि कोई दावा करना चाहे की उपरोक्त विवरण काल्पनिक है.. तो उसके दावे की सत्यता मैं अभी ही स्वीकार करता हू.. अच्छा कार्य करके मन को शांति मिलनी चाहिए.. ना की अच्छे कार्य के बारे में बताकर.. अपने कर्तव्य का पालन करना ही सद्कर्म है.. मैने पोस्ट लिखकर अपने कर्तव्य का पालन किया है.. अब आप टिप्पणी करके अपने कर्तव्य का पालन कीजिए.. यही सद्कर्म है...
चलिये हमने दन्न से सद्कर्म किया!
ReplyDeleteढमढमा ढम!
आप धन्य हैं जी.. इतने महान काम करते हैं.. आपसे मिलने कि इच्छा तीव्र होती जा रही है.. जब भी मिलूंगा आंखों में नमी लेकर मिलूंगा.. सच्ची बात कह रहा हूं, इसे काल्पनिक ना समझें.. :D
ReplyDeleteपर ज्यादातर लोग अच्छे कर्म करने में कम और ढोल बजाने में ज्यादा रूचि रखते हैं।
ReplyDeletebahut khuub!
ReplyDeletemedia walon ko bhi bulwa liya hota...kitaab bhi likhna shuru kar dijeeye..'main aur meri nekiyan' :D--
-kabhi bhi UNSUNG HERO ki tarah nahin rahna chaheeye--bhaiyaa zamaana showshe-baazi ka hai-
--sahi raah par chaley ho--
-waise andaze' bayan bahut badiya laga..
ek teekhey VYANGKAAR banNey ke poore lakshan nazar aa rahey hain...
Aisee 'samaz sewa' ke darshan[varNan] aksar karaate raheeye--Mantri banNe ke asaar ban jayengey :D---samjh rahey hain...samjh rahey hain.....:D-
[NOTE--sugar level sab kam ho jayega---tippani -ek bhi jo karela ke juice mafik mil gayee to!]us ki bhi tayyari rakhna..]
इतनी करी नेकियाँ की कलम लफ्ज़ सब तर गए .नेकी कर ब्लॉग में डाल इसको कहते हैं कुश बाबा ..और अनुराग के ब्लॉग को बच के पढ़े या खूब पढ़े इस से नए आइडिया मिल सकते हैं लिखने के :) या फ़िर मधुमेह हो सकता है अत्यन्त मीठे से ..
ReplyDeleteachcha dhol bajaya aapne...kisi ki yaad dila di!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट है. आपको साधुवाद और बधाई.
ReplyDelete:)
ReplyDelete:)
:))
:)))
:D
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क्लिनिक से लौटते हुए रास्ते में हनुमान मंदिर पे रुका.. जाते ही पंडित जी को बोला आज मंदिर में सौ किलो का चुरमा चढ़ाया जाए.. शाम को सभी में वो चुरमा वितरित करवाया..
ReplyDeleteभाई कुश, हम तो आपकी नेकी के कायल होगये की चलो एक तो नेक बन्दा है ! पर आपने जिस हनुमान मन्दिर पर चूरमा बंटवाया , वहीं पर हमभी रहते हैं आजकल ! आपने चूरमा तो बंटवा दिया पर आपके दस हजार तो कभी के खत्म हो चुके थे, और आपका चूरमे का भुगतान ताऊ ने किया था ! क्योंकि शाम को आप जल्दीबाजी में नोटों की गड्डिया घर ही भूल आए थे ! आप जैसे दरियादिल आदमी का भंडारा था सो चूरमा भी देशी घी का था ! उसकी लागत भाव १६० रुपये किलो से हमें १६०००/ रुपये भिजवा देवे ! मुनाफा ताऊ अपने वालो से नही लेता ! फ़िर कब आ रहे हैं चूरमा बंटवाने ? :)
जबरदस्त पोस्ट ! बधाई !
मैने पोस्ट लिखकर अपने कर्तव्य का पालन किया है.. अब आप टिप्पणी करके अपने कर्तव्य का पालन कीजिए
ReplyDeleteलो जी कर लिया अपने कर्तव्य का पालन।
एक बहतरीन जोक।
:) महान काम किया.
ReplyDeleteमैं तो एक ढोल खरीद कर लाया था, हर काम के बाद बजाने के लिए. अब कैसे बजाऊँ? :(
बीच में ब्लूमबर्ग साहब (अभी न्यूयार्क के मेयर) के बारे में ख़बर छपी थी की वो अनोनिमस फिलेंथ्रोपी करते हैं. कुछ दिनों में ये छपी की ये ख़बर अखबार में कैसे आई :-)
ReplyDeleteअभी अभी कुश के ब्लॉग पर एक टिप्पणी कर के आरहा हूँ . बडा नेक लडका है .इतने अच्छे अच्छे आइडियाज लाता है . आप लोगों ने देखा होगा . दर असल उसके मेल पर भेज देता हूँ कभी कभी . ढम ढम ढम .
ReplyDeleteक्या करे कुश भाई !
ReplyDeleteएक बार पति पत्नी की दोस्ती पर कुछ लिखा तो एक साहब नाराज हो गए की हमारी पत्नी भी ब्लॉग पढ़ती है आप ऐसी बातें करके उन्हें मत भड़काये ....चाँद पर लिखा तो P.D अपना हिस्सा लेकर कवि बन गये.....ईमानदारी पर लिखा तो फ़िर एक ओर साहब भड़क गये की इमानदारी का ठेका सिर्फ़ हमारी फर्म को मिलता है ..पूरे साल का ठेका हमने ले रखा है ..आपको लेना है तो अगले साल नीलामी में आओ ....अपने दोस्त "जाट" पर लिखता हूँ तो एक साहब कहते है जाट पर क्यों लिखते हो बनियों पर क्यों नही ???बताओ भैय्ये .अब किस पर लिखे ?????
टोरंटो से समीर भाई जहाज पर चढ़े तो हमने सोचा हम भी "पुरूष ब्लोगर मीट"करके गम ग़लत करते है .वे बोले एक दिन के लिए कोई सा तम्बू बुक करा लो.मै कुछ विदेसी ताडी रख लेता हूँ....तुम देसी ले आना .
....हमने कहा दो दिन के लिए चाहिए ...एक दिन गम ग़लत करने में लग जायेगा दूसरा उसे सीधा करने में...........
वैसे भैय्ये इतने ATM कार्ड कौन से पर्स में रखते हो ?रखना तो दूर ......इतते सारे पिन नंबर याद कैसे रखते हो....ओर हाँ तुमने तो पिछले महीने झुग्गी वाले को खून दिया था ....उसका पड़ोसी आज बीमार है रात को ..गली के मुहाने पर पान वाले के बगल में दूसरी मंजिल पे जो अस्पताल है ....वहां खून देने आ जाना.....चिंता मत करना ...उसके बाद ग्लूकोस के बिस्किट मिलेगे ,अर्रर्र्र तुम्हे तो सूगर है !
kya baat hai ekdam jhakas post aur doc saab ki tippani bhi
ReplyDeleteढोलक तो हम भी बजाना चाहते हैं कुश जी, लेकिन बजाने का शऊर ही नहीं है। थोड़ा कच्चा हूँ। अब आपलोगों की सोहबत में शायद कुछ सीख जाऊँ।
ReplyDeleteजय हो ब्लॉगरी की। हम आत्ममुग्ध हैं:)
आप जैसा दानवीर सदिओं मे एक बार ही पैदा होता है . कलयुग मैं आपका अवतार हम लोगो के कल्याण के लिए है . दोनों हाथों से नेकी करे और ब्लॉग मे डाले .ताकि आपके लिए हम ढोल बजा सके हम तो यही काम करते है
ReplyDeleteआज आपने अमीरों पर बड़े प्यार से तमाचा मारा है, और लोग समझ रहे हैं कि गाल पर क्रिम लगाई है:)
ReplyDelete दानपुण्य करनेवाले अमीरों को बख्श देना चाहिए, बेचारे(!) कुछ तो निष्पाप हो लेंगें।
चलिए कम से कम आप सोचते तो अच्छा हैं...दुनिया के अधिकाँश लोग सिवाय अपने बारे के और कुछ सोचते ही नहीं...बहुत बढ़िया लिखा है आपने...हमेशा की तरह...
ReplyDeleteनीरज
जल्दी अपना पता बताइए ..एक ढोल पार्सल कर देती हूँ ..मेरे पास बहुत हैं
ReplyDeleteकुश साहब हमे भी आप अपना चोकीदार, ड्राईवर, नोकर, माली जो चाहे रख लो . सच मै बहुत काम आते है मुझे, लेकिन इस सब के बाद भी मेहनत से बस इतना ही कमा पाता हु की अपना एक सपना ही पुरा कर पाऊ, हा अगर आप जेसा मालिक मिल जाये तो मै भी पांच सात नोकर रख लुगां, तो नोकरी पक्की. कब आऊ.फ़िर तो मेरे पडोसीयो के सपने भी पुरे होगे
ReplyDeleteआप का सेवक
भाई हम तो आधा काम ही दो बार करेंगे। ढॊल बजायेंगे, नेकी कोई और कर ले।
ReplyDeleteकुश भाई , आप भी एकदम क्लासिक बँदे हो !!:)
ReplyDelete@अच्छा कार्य करके मन को शांति मिलनी चाहिए.. ना की अच्छे कार्य के बारे में बताकर.. अपने कर्तव्य का पालन करना ही सद्कर्म है..
ReplyDeleteअच्छा कार्य करके मन को शांति मिलती है. यह मेरा अनुभव है, आपका भी होगा. अच्छे कार्य के बारे में बताना बुरी बात नहीं है पर यह दूसरे बताएं तो ज्यादा अच्छा होता है. अपने कर्तव्य का पालन में तो शान्ति ही शांति है.
आज कल तो लोग उस काम का ढोल पीटते हैं जो उन्होंने किया नहीं होता.
wah kuch bahi wah..!
ReplyDeletekya sateeek kalpnaye udate hoo..!
yar akhir yeh vichar aate kaise hai tumhare man me///??
newayws..b'ful writerss..
greetings.
I have read only one of ur posts.and it seems amazing.will b visiting frequently.
ReplyDeleteTake Care.
बहुत बहुत बहुत ही बढ़िया और सही .
ReplyDeleteश्रद्धेय आलोक जी के शब्दों में कहें तो " क्या केने जी क्या केने"
ReplyDeleteकुछ ज्यादा नहीं फेंक दिये कुश भाई?
:)
आपके मन की शांति का तो नहीं पता.किंतु तमाम वाकिया पढ़ कर अपार हर्ष और शांति का अनुभव कर रहा हूँ...
ReplyDelete....हो! हो!! हो!!!
बले श्माल्ट होते जा लहे हैं छोटे मियां तो, बड़ों बड़ों के कान कतरने लगे
ReplyDeleteबिलकुल कुश जी अच्छा काम करके ही मन को शान्ति मिलती है न कि उनका ढिढोरा पीट कर मन को शान्ति मिलेगी।
ReplyDeleteमैने भी अपने तमाम नौकरों से कहा था कि कुश की पोस्ट में टिप्पणी कर देना याद से, आज देख के पता चला सारे के सारे कामचोर निकले। एक ने भी टिप्पणी नही की लिहाजा अपना हाथ जगन्नाथ करना पड़ रहा है। पहली लाईन में ही सारे प्वाइंट ले गये कुश और हम हो गये खुश।
ReplyDeletebahut khoob khush bhai. aapka ye andaz bhi pasand aaya.
ReplyDeleteबैठा सद्कर्मियों को गिन रहा था, वापस जा रिया हूँ, एक दो दिन में शोले की लाइन में लगने को..
ReplyDeleteले भाई, मेरा भी सद्कर्म जमा कर ले,
ला दिखा तेरी संचिका कहाँ है, मैं डाल देता हूँ, तूने तो हाथ लगाना नहीं है !