
हालाँकि मैं इस काबिल नही की मैं इस विषय पर लिखू.. परंतु आज रहा नही गया.. तो लिख दिया..
आप सभी का आशीर्वाद चाहूँगा..
::.. कान्हा.. राधा ..:: अपने नंद नंदन जा रहे है अपनी टोली लेकर.. और आज ही मय्या के कई बार समझाने के बाद भी राधा जी ने ज़िद कर ली की वो दही बेचने जाएगी.. अपनी सखियो के साथ.. अपने कान्हा को ख़बर लग गयी बस फिर क्या.. पहुँच गये वही अपनी टोली लेकर.. आइए देखते है क्या हुआ.
राधिका से मिलने कान्हा
टोली लेके आए रे..
देख देख गोपियन को
कैसा मुह बनाए रे..
दही ले जाती राधा को
रोक दिए राह रे..
बोले बिना दिए कर
कहा को तू जाए रे..
भोली राधा डर के मारे
पीछे ..हौ चली
गोपिया सभी एक संग
चिल्लाई रे...
वन धरती मय्या का है
काहे तोहे दे कर..
चलो हटो आगे, लागे नही
तोह से हमे डर..
मुह बिचककार मोहन सबको सताए रे. ...
कान्हा जी ने भी हार कब मानी रे
गोपियन को सबक सिखाने की ठानी रे
मारे पथ्हर गुलेल की कमानी से
दही वाली गगरी तोड़ गिराई रे..
देख हाल गोपियन का कान्हा मुस्काये रे...
गोपिया सब उलाहने देते हुए.. भाग गयी वहा से.. कन्हाई अपने बाल सख़ाओ के संग
अपनी क्रीड़ाओ में व्यस्त हो गये..

खेल सब खेलत लागे
कोई लुके कोई भागे..
खेल खेल साथी सभी
थक थक आए रे..
बैठे सभी थके हारे
तभी एक साथी पुकारे.
हम से रहा ना जाए
लघु शंका के मारे..
अब सरपट साथी भागे
लघु शंका मिटाने जाए रे..
कान्हा जी का चंचल मॅन
यहा भी, कैसे ना रिज़ाए रे..
कहने लगे कान्हा सबसे
वही विजेता होगा..
जिसकी लघु शंका की धार
सबसे उपर जाए रे..
देख देख बाल ठी-ठोली
देवता भी नभ से..
लीला अपने कान्हा की
हँस हँस जाए रे..
ऐसे अनोखि बातें कान्हा, कहा से तू लाए रे.. ..
गोपिया भी कब तक बैठी रहती.. कान्हा के मोहपश मे बंधी.. लौट आती है.. सबसे पीछे राधा जी.. आगे आगे उनकी सारी सखिया.. कान्हा जी के संग खेलने को आई है...

कान्हा भोले मन का
बात मान जाए रे.
सब गोपियन को मुरलिया की
धुन से रिज़ाए रे..
पास बिठा के सबको
पैर दबवाए रे..
हाथो से गोपियन के
रस भरे फल खाए रे
देख कर कान्हा जी को ऐसे
साथी ग़ुस्साए रे.. बोले खीझ के
देखो, नंद बाबा का लाला
बड़ा इतराए रे..
कान्हा साथियो को अपने और भी जलाए रे..
....अब कान्हा जी जो जला रहे थे साथियो को.. उन्हे नही पता था.. की राधा जी रूठ जाएगी उनके ऐसा करने से.. राधा जी रूठ कर जा बैठी.. अब कन्हाई को आवाज़ दी जा रही है की आओ और राधा रानी को मनाओ..

ओ कन्हाई.. तू सुनता जा रे..
जोहे बाट तोरी राधा जमुना किनारे
झूठ मूट रूठी बैठी
काहे तुम ना आए...
काहे सारे खेल तुमने
गोपियन को खिलाए...
सांझ हो चली कान्हा
उसको बुला लो..
पीपल की टहनी वाले
झूले मे झूला लो
तोरे संग ही घर जाएगी
भाई सारे विनती कर हारे..
ओ कन्हाई.. तू सुनता जा रे..
...........अब अब हमारे कान्हा जी जो सब जानते है की उनकी
राधा जी भला कब तक रूठेगी तो कान्हा जाते है राधा जी को मॅनाने.. के लिए........

ओ मोरी राधा रानी.. काहे
जा बैठी तू जमुना किनारे
मोरी भोली गयया .. बंसी
तोहे ही पुकारे..
गोपियन तो सितारो जैसी
चंदा तू है राधा..
मैं तो अधूरा हू तू
अंग मोरा आधा ..
तू ही मोरी जीवन साथी
जेसे दिया और बाती
काहे भूलू तोहे, मोहे तू बता रे
ओ मोरी राधा रानी.. अरज करू आ रे..
.......राधा जी भी बड़ी भोली है जल्दी से मान जाती है......
ओ कन्हाई मोरे.. सुनता जा रे
तेरे संग प्रीत कभी टूट ना पाए रे.
तुझ पर आने से पहले
विपदा... आँगन मोरे आए रे...
तोरि सुनकर मुरलिया
मैं नाची जाउ..
देख देख जमुना मे ख़ुदको
शरमाती जाउ..
जादू कैसा तूने लाली पे किया रे..
ओ कन्हाई मोरे.. बतलाता जा रे..
.........और समस्त पृथ्वी प्रेम के पाशो मे बँध जाती है क्योंकि कान्हा राधा के रास का प्रारंभ होता है.. ...

राधा को सुध नाही
कान्हा के आलिन्गन मे
दोनो का मन रमा
एक दूजे के मॅन मे..
कान्हा भूले गय्या अपनी
भूले गोकुल नगरी..
राधिका भी भूली सखिया,
पनघट पे गगरी..
रास की रामाई मे रम्वत जा रे
ओ कान्हा राधिका का तू हौ जा रे...
चंदा की चटक चुनर
कैसी लहराई.. कान्हा की बाहो मे
कैसी लाली शरमाई..
उठाके चले राधा रानी को कान्हा
कनुप्रिया जो थकने को आई
मेघ झूमे धरा पर बूँदे गिराए रे
झूमे धरती सारी अंबर झूमे जाए रे
सारा जग राधा कान्हा, ..मय होई जाए रे..
कान्हा राधा.. राधा कान्हा मय होई जाए रे..

सारा जग राधा कान्हा, ..मय होई जाए रे..
कान्हा राधा.. राधा कान्हा मय होई जाए रे..
सारा जग राधा कान्हा, ..मय होई जाए रे..
कान्हा राधा.. राधा कान्हा मय होई जाए रे..