Wednesday, July 23, 2008

एक रात में 'पहली रात' की बात

पिछली गर्मियो की बात है.. देर रात अचानक लाइट चली गयी थी.. काफ़ी देर गर्मी से जद्दोजहद करने के बाद मैं छत पर चला गया.. बहुत दिनो बाद उपर देखा था.. सब कुछ इतना रोमांटिक लग रहा था की सोचा कुछ लिखा जाए,और शादी के बाद की पहली रात से ज़्यादा भला और क्या रोमांटिक होगा.. तो जो लिखा वो अब आप सबके सामने है..



गीली गीली ले जा कर
टांग दी थी उजाले पर
पहली थी ना...
इसलिए शायद...

इतना संभाला था..
वरना...

रोशनी सी तुम आई थी कमरे में
झीने घूँघट में सुहानी लगी थी
आज जो देखा तुमको..
पहली बार तस्वीर से तुम बाहर थी

बड़े पलंग की आधी जगह
में दोनो समा गये थे..

बंद आँखें किए, तुम्हारी
बातें सुनता रहा..
एक एक बात दिल तक उतरती
जा रही थी..

इतने में जुल्फे तुम्हारी
गिर पड़ी मेरी आँखो पर
और रेशमी हाथो से तुमने
उनको संभाला फिर से...

गोद में तुम्हारी सर रख कर
दुनिया से बेख़बर हो गया
कहाँ से तिनका लायी थी तुम
मेरे कानो में डालकर सताने लगी

अच्छा अच्छा..
तुम्हारी हर बात पर
मेरा सिर्फ़ यही, कहना होता था

कैसे सहलाया था तुमने
उंगलियो के पोरो से मेरे गालो को
लगा जैसे समंदर किनारे
रेत पर टहल लिए हो पल दो पल...

बिंदिया चूड़ी कंगन..
सब उतार दिए मैने
अब तुम ख़ूबसूरत थी...
पहले से ज़्यादा

जाने कहा से चादर के बीच
पड़ा इक गुलाब आ गया हाथो में
बेचारा! तुम्हारी महक के आगे
शर्मशार हो गया...

रात भर अलाव की गर्मी
बिस्तर पर बिखरती रही...
होंटों ने आज आराम किया था
बहुत...

आँखें ही आँखो से
बतियाती रही...
नींद भी परेशान थी करवट ले लेकर
अपने मंसूबो में कामयाब नही हुई...

घड़ी की सुइयो के साथ
तुम्हारी उंगलिया भी मेरी
ज़ुल्फ़ो में फिरती रही...
और

गीली गीली ले जा कर
टांग दी थी जो उजाले पर
उस रात की बूँदे
ज़मी पर गिरती रही....

41 comments:

  1. kushbai...koi 4 panktiyan chun kar kya rakhunga yahan? puri hi nazm ek behta hua jharna hain...har shabd uth-ti hui leher hain...aur hum bhi usmein bhig liye aaj to...

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  2. वाह क्या बात है ! बहुत रोमांटिक !

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  3. मेरे पास तो इस नज़्म की तारीफ़
    करने के अल्फ़ा्ज़ लिखत पढ़त में
    तो हैं नहीं...अब आप चाहे जो भी
    समझें, पर लाचार हूँ ।

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  4. kush bhai kya baat hai,
    shandar likha hai

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  5. अच्‍छा, तो आप पर सावन सवार हो गया है:)

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  6. प्रकृति की सुन्दरता ,,,उसका साथ इसी भाव को जगाता है..बेहद खूबसूरत .... !

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  7. वाह जी वाह रोमांटिक माहोल बना दिया। बहुत खुब।
    गोद में तुम्हारी सर रख कर
    दुनिया से बेख़बर हो गया
    कहाँ से तिनका लायी थी तुम
    मेरे कानो में डालकर सताने लगी

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  8. क्या बात है ? सावन ने रुमानियत का हरा रंग बिखेरा है आप पर.और आपने इन्द्र्धनुष सजा दिया.भई वाह !

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  9. wow!!
    bus naam hi kafi hey : Kush ney likha hey!!
    nice !!
    really sweet!!

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  10. kush G hame ye to pata nahi k aap shadishuda hai ya nahi par jo apne shabdo ko piroya hai aur jo ravangi di bhai vaah kya baat hai, ghazab.

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  11. is kavita ke liye kuch bhi kahungi to pahle kaha hai usse kam hi hoga... kahi se vo pahle jo likha tha iske liye...vo mil jaye to vahi post kar du??

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  12. bhut sundar. romantic bhi. badhiya. jari rhe.

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  13. waah lagta hai sawan ki pehli fhuar ke saath saath aapka manwa bhi rang gaya :) bahut hi sundar likha hai sapana dekha sach hai ya likha hua sach :)







    ;

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  14. wow...what a romantic poem. simpally beautiful..

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  15. Bahut sundar. Kush, bahut badhiya likha hai.

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  16. गीली गीली ले जा कर
    टांग दी थी जो उजाले पर
    उस रात की बूँदे
    ज़मी पर गिरती रही....


    चारो ओर रूमानियत बिखेर दी भाई....ऊपर से नीचे तक सिर्फ़ रोमानियत .....ये पंक्तिया बेहद प्यारी लगी है ओर देर तक साथ रहेंगी

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  17. सुन्दर।
    लाइट यूं ही जाती रहे!

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  18. वाह कया बात हे, बहुत कूछ याद दिला गई आप की यह कविता...धन्यवाद

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  19. kitni baar padhi hai ye kavita...pata nahi..par har baar utni taazgi..utni hi romantic hai..uff! maza aaya..

    likhte rahe..

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  20. बेहद खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!

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  21. कुश साहब, एक-एक शब्द में रुमानियत भर दी आपने। ऐसे कलमबद्ध किया कि पढ़ने वाला उस रुमानियत में बस डूबा जाए.. बहुत ही उम्दा

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  22. रोशनी सी तुम आई थी कमरे में
    झीने घूँघट में सुहानी लगी थी
    आज जो देखा तुमको..
    पहली बार तस्वीर से तुम बाहर थी

    बड़े पलंग की आधी जगह
    में दोनो समा गये थे..

    बंद आँखें किए, तुम्हारी
    बातें सुनता रहा..
    एक एक बात दिल तक उतरती
    जा रही थी..

    इतने में जुल्फे तुम्हारी
    गिर पड़ी मेरी आँखो पर
    और रेशमी हाथो से तुमने
    उनको संभाला फिर से...

    गोद में तुम्हारी सर रख कर
    दुनिया से बेख़बर हो गया
    कहाँ से तिनका लायी थी तुम
    मेरे कानो में डालकर सताने लगी

    क्या बात है कुश,बहुत ही रोमांटिक नज़्म लिखी है,हर हर लफ्ज़ में प्यार का नशा सा है...बहुत ही हसें लगी...वाह

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  23. बहुत खूब, क्या कहने. शब्द ही नही हैं तारीफ़ करने के लिए. बस दुआ है की ऐसे ही और अच्छा लिखो आप...

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  24. hmmm... ab tareef to ham kya karein... sab ne itna kuch kaha hai ke kuch baki nahi raha tareef mein.
    Ham to ye poochna chahenge, ye padh kar kitni ladkiyon ne aapko mail kiya?

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  25. कुश भाई
    बेहतरीन...एक नौजवान की कलम से निकले सच्चे भाव जो सबके दिल दिमाग पर बरस गए...शालीनता के साथ कही गयी राज की बात...वाह..वा.
    नीरज

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  26. Kush ji aapne to sama romantic sa bana dala.. itna pyara aur seedhe dil se likh dala... bahut sundar

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  27. bus saans thaame padhti hi chali gayi

    bahut pyaar bandha hua likha hai
    ek ek sabad jaise haazar mani rakhta ho
    bhaut kamaal

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  28. achcha roomani prayas laga aaapka...

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  29. बहुत अच्छे कुश ,बहुत ही अच्छी नज़्म है.

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  30. ye chhayavad hai ya satya ?kintu hriday se phoota nirmal nirjharni ki tarah laga

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  31. Sawan ka Mahina,
    Pawan kare SHOR
    Jiyara re jhume aise,
    Jaise,
    Ban ma nache mor !!

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  32. wah kush jee,aur aage kaya kahun aap to bemisal hain hi.baar baar ek hi bat dohrati hun..apki kalam hamesa chalti rahe.

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  33. वाह!
    गहरे भाव
    काफ़ी इंटरेस्टिंग है.
    कई बातें याद आ गई.
    बधाई.

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  34. आप सभी की स्नेहिल प्रतिक्रियाओ के लिए धन्यवाद.. भविष्य में भी यूही आशीर्वाद बनाए रखिएगा

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  35. सुन्दर प्रस्तुती । आज गुगल पर दुसरा कुछ ढुँढते मै इस ब्लग पर आ पहुँचा । धन्यवाद

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  36. wah..,kya bat hai....bhot hi achhi.....

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..