५० % हिन्दी ब्लॉग जगत में एक नयी शुरुआत॥ आम तौर पर देखा गया है की नारी मुद्दो पर जब बात की जाती है तो वो अपना मूल विचार त्याग कर एक बहस का रूप ले लेती है॥ कही पर पुरुष तत्व हावी हो जाता है तो कही पर स्त्री॥ दोनो ही अपना पक्ष सही ठहराते है॥ और ये ठीक भी है क्योंकि दोनो का ही अपना अलग नज़रिया होता है॥ जिस तरह से किसी भी स्थिति को एक स्त्री देखती है पुरुष वैसे नही देख पाता॥ इसमे ग़लती किसी एक की नही है॥ जन्म के वक़्त किसी में इतनी समझ नही होती की वो लड़का है या लड़की.. ये सब धीरे धीरे उसे पता चलता है.. और बचपन से जवानी तक पहुँचते पहुँचते एक अदृश्य दीवार लड़के और लड़की के बीच खड़ी हो जाती है.. जिसके एक पार पुरुष होता है और दूसरी तरफ़ नारी..
इन बढ़ती बहस को तो हम सभी लोग देखते भी है.. कुछ लोग इनमे हिस्सा लेते है अपनी बात कहते है.. कुछ लोग सिर्फ़ पढ़ते है और निकल जाते है.. नारी या चोखेर बाली ब्लॉग पर यदि हम देखे तो इन पर जो कॉमेंट आते है वो बहस को कही और ले जाते है.. कुछ लेख में इस तरह की बात होती है की पुरुष वर्ग नाराज़ हो जाता है,और किसी टिप्पणी में ऐसी की स्त्री वर्ग नाराज़ हो जाता है.. सब एक दूसरे को जवाब देने की होड़ में लग जाते है.. परंतु इसके मूल तत्व में जाने का प्रयास कोई नही करता..
मैं सिर्फ़ अपनी सोच की बात करूँगा जो मेरा सोचना है मैं बस वही लिख रहा हू.. दरअसल सारे फ़साद की जड़ हमारे ही द्वारा बनाया हुआ समाज है.. जिसके अपने कुछ उसूल है, अपने नियम है.. आशिक्षा सबसे बड़ी रुकावट है इसमे.. जन्म से ही लड़की को सिखा दिया जाता है की फला काम तुम्हारा नही.. ये काम लड़को का है.. ठीक इसी तरह लड़को को भी पता होता है कौनसा काम उनका है और कौनसा लड़कियो का.. और बस इसी को नियम बनाकर सब चलते रहते है..
समाज का कहना है की ये सब नियम हमारे बुज़ुर्गो ने बनाए है तो कुछ सोच समझ कर ही बनाए होंगे.. हो सकता है, सोच समझ के बनाए गये हो पर वो तब की बात थी आज वक़्त अलग है.. हालाँकि आज पुरुष स्त्री मतभेद अनुपात कम हुआ है.. लेकिन फिर भी इसे एक अच्छी स्थिति नही कहा जा सकता..
कुछ लोगो का कहना है की स्त्रियो को भी पुरुषो के बराबर का अधिकार मिले.. पर मेरी सोच अलग है मेरा मानना है की दोनो को समान अधिकार मिले ना पुरुष को नारी के बराबर और ना ही नारी को पुरुष के बराबर. बस दोनो को बराबर मिले.. और किसी से भी अपने अधिकार ना तो माँगे जाते है और ना ही छीने जाते है.. अधिकार अभी भी हमारे पास है बस देर है तो जागरूक होने की.. बस आवश्यकता है तो एक सार्थक सोच की.. जो की शिक्षा के माध्यम से मिल सकती है..
यदि एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे तो इससे कुछ हासिल होने के बजाय स्त्री और पुरुष एक दूसरे से और दूर होते जाएँगे.. जो की प्रकृति के ही विरुद्ध है.. 'एकता में शक्ति है' हम सभी जानते है.. अलग अलग मंच बनाने से अच्छा है एक ऐसा मंच हो जहा स्त्री पुरुष दोनो आपस में बात करे और किसी भी समस्या का निदान करे.. मैं जानता हू की ब्लॉग जगत में पुरुष नारी दोनो बराबर है.. तो कोई ये भी सोच सकता है की फिर इस तरह की सोच की आवश्यकता क्यो? परंतु साथ मिलकर चिंतन तो अवश्य किया जा सकता है.. यदि सभी साथ मिलकर चर्चा करे तो किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है.. फिर सदियो से हम यही सुनते आए है की स्त्री - पुरुष एक दूसरे के पूरक है.. तो दोनो साथ मिलकर रचना जी के शब्दो में 'एक सार्थक समाज और सार्थक भारत का नव निर्माण करे ।'
आशा है इस प्रयास आप सभी का सकारत्मक सहयोग मिलेगा॥
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'एकता में शक्ति है' ... क्या बात कहे दी आपने कुश जी ....काश की हर लड़का कुश होता और एकता में इतना विश्वास रखता ...पर क्या करे... जहाँ देखो वहाँ .. सिर्फ़ बहस होती है इस बात पर सदियो से...... और वैसे एक और मुद्दा भी है उठाने को... अगर सिर्फ़ लड़के और सिर्फ़ लड़कियो में भी एकता नही बन पाई तो लड़के और लड़कियो में ये बात कहा संभव होगी ....शुरुआत घर से करनी चाहिए ऐसा सुना है ...तो पहले हमे शुरुआत करनी पड़ेगी .... कहा जाता है ( :( ...लड़कियो के बारेमें :( ) की औरत ही औरत की दुश्मन होती है.... पहले वो तो दोस्त बने ...फिर लड़को से दोस्ती की उम्मीद करेंगे.....
ReplyDeleteअच्छा विचार है। चाहे जिस भी मंच पर हों, अधिकतर प्रयास संवाद का होता है। नाराज होना संवाद के लिए सही वातावरण नहीं बनाता। किसी की बात पर आप अपने तर्क रखें व कहें कि आप सहमत नहीं हैं तो इसका अर्थ नाराज होना नहीं होता। सदा भाषा समझाने की हो यह भी नहीं हो पाता। जब तर्क रखे जाते हैं तो कुछ कटु सत्य भी होते हैं। आशा है जैसा आप चाह रहे हैं वैसी सार्थक वार्ता यहाँ हो पाएगी।
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
khayal to accha hain...zyada kuchh kehunga nahi is vishay par...
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सटीक बात कही है आपने ...नारी और पुरूष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और कमियाँ तो दोनों में हैं यही दोनों की कमियाँ एक दूसरे को सही राह पर चलना सिखाती है ..दोनों अपने अपने अधिकारों और फ़र्ज़ को ले कर एक साथ चले तो कुछ मुश्किल नही ..बहस हो पर जरुरी मुद्धो पर ..एक दूसरे को नीचा दिखाने के मुद्दे पर नही ..आप आज के युवा वर्ग का प्रतिनिधितव करते हैं और यह विचार पढ़ कर खुशी होती है कि आज का युवा जानता है कि समाज में प्रेम पूर्वक कैसे रहना है ..और इसी तरह से विचारों से एक नवनिर्माण करना है जहाँ बात अहम् की न हो बस मिलजुल कर साथ चलने की हो..
ReplyDeleteकुश जी ,पता नही क्यों इस प्रयास में आपकी नेतागिरी के अलावा मुझे कुछ नही दिखाई देता .नाम "५० प्रतिशत " और बातें १०० की , क्या गारंटी है कि यहाँ ५०-५० में मतभेद, नाराजगी नही रहेगा .जब सब कुछ रहेगा ही यहाँ भी तो वहां क्यों नही बहस जमने दिया जाए . क्यों सारे पुराने अड्डे बंद कर दिए जाए ? कविता ,कहानी लिखिए, अच्छा लिखते है . बेकार की नेतागिरी मुझे पसंद नही .बड़े आए पंचायती राज लेकर
ReplyDeleteतुम समझते क्या हो ? सबके सब केवल तुम्हारे आगे नतमस्तक हो . सपना न देखों वो भी खुली दोपहरी में .
"अधिकार अभी भी हमारे पास है बस देर है तो जागरूक होने की.. बस आवश्यकता है तो एक सार्थक सोच की.. जो की शिक्षा के माध्यम से मिल सकती है.."
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात लिख गए हैं आप. बस इसके आगे पीछे और कुछ कहने को बचता ही नहीं है.
नीरज
@आदरणीय अनॉनामस बंधु/ बहन
ReplyDeleteक्षमा चाहता हू यदि मेरे किसी लेख अथवा किसी शब्द से आप आहत हुए हो.. भविष्य में आपको शिकायत का मौका नही दूँगा..
आपने मेरे ब्लॉग हित के बारे में सोचा इसके लिए धन्यवाद, आगे भी इसी प्रकार मेरा मार्गदर्शन करते रहे
आभार
कुश
कुश, एक अच्छी शुरुआत, अगर यह बात सब स्वीकार लें तो दुनिया के ज्यादातर विवादों का अंत बड़ी आसानी से हो सकता है, लेकिन यह कहने में जितना आसान लगता है , करने में उतना ही मुश्किल है, फिर भी हमारी शुभकामनाएं स्वीकारें, आशा करते हैं कि आपकी ये पहल सफल होगी।
ReplyDeleteकुश जी
ReplyDeleteमुझे आपका विचार बहुत पसन्द आया। इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएँ।
It is very nice thought:
ReplyDeleteI think the issue is too versatile to address but the way u have presented is appreciable..
I would like to add that we should address it based on issues:
like equality in work and wages, our perceptions regarding the marriage of a guy and a girl, dowry system, Job working time etc etc..
But Kush it is really nice that you brought up a social issue very nicely..
I thank every one for their valuable comments , i also thank कुश
ReplyDeletefor writing a post on 50% blog . 50% blog belogs to naari group and has been created by me as i had several request from people to make a joint blog where man and woman can write together
so here is the blog and all of you can email your posts according to my first post before कुश post . on my post you can find the email address where you can send your post for discussions . i will neither be commenting on writng so the post owner will have to participatre actively to answer the questions
this post of कुश has been repeated on his blog merely to give a wider coverage . the orginal post is on the blog called http://pachaaspratishat.blogspot.com/
thansk and regds to all
regds to all
हमारी शुभकामनाएं..
ReplyDeletemain hamesha hi saath hoon
ReplyDeletejaha tak vicharon ko rakhne ki baat hai to vichar to sabhi ke alag alag hote hain do insaan ek jaisa hi soche kam hi hota hai aisa
haan ek dusre ko samh kar sahi rasta chunna zaruri hai
umeed hai ki is debate ke baad kuch achhe hal bhi nikal kar aayenge
aur jo log likh rahe hain yaa padh rahe hain unke dimag aur dil ki baattiyan jalegi