आज सुबह समीर जी की पतंग वाली पोस्ट पढ़ी... तो अपनी लिखी एक रचना याद आ गयी.. तो सोचा क्यो ना आपको पढ़वा दी जाए.. ये कहानी भी एक पतंग की ही है
रोज़ गगन में हज़ारो पतंग
के साथ वो भी उड़ती थी..
लहराती मचलती.. आसमानो से
बातें करती हुई...
इक डोर थी जो उसको थामे रखती थी
डोर से बंधी वो पतंग..
ऊँचाइयो में गोते लगा कर
लौट आती थी...
इक शाम एक एक कर सारी
पतंगे उतर गयी थी...
इक्का दुक्का पतंगे थी
और वो भी बहुत दूर..
अचानक कही से एक पतंग आई
काले माँझे वाली...
उसके इरादे कुछ नेक नही लगे
वो गोते खाने लगी..
पतंग उलझ पड़ी काले
माँझे से.. पूरा दम लगाया
डोर ने भी हिम्मत ना हरी
काले माँझे से पतंग को छुड़ाया
काल माँझा भी कहा हारता
फिर से लौटा... और ऊपर गिरा पतंग के
.. बेचारी पतंग दर्द से
छ्ट-पटा उठी..
रोई, गिडगिड़ाई, मगर काले माँझे
का दिल नही पिघला..
लहुलुहान सी पतंग हो गयी बेचारी
और अपनी हिम्मत हारी..
थकि प्यासी.. निढाल सी
हो चली थी.. वो पतंग
शाम की सर्द हवाओ में
कोयले सी जली थी..वो पतंग
जिसके भरोसे ऊँची उड़ान भरी थी
वो डोर तो कब की टूट चुकी थी..
काले मॅन के मांझो की दुनिया में
एक और पतंग लुट चुकी थी...
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काला मांझा हो या भूरा .....पतंग को तो आसमान में उड़ना ही पड़ेगा.......तेज हवा हो या ना हो.
ReplyDeletepatang ki to hasti hi mit jaye gar udan na ho usmein...ek ghutan si baaki reh jaaye...
ReplyDeleteजिसके भरोसे ऊँची उड़ान भरी थी
ReplyDeleteवो डोर तो कब की टूट चुकी थी..
लगता है पतंगों का नशा सर चढ़ कर बोलने लगा है :) अच्छी लगी आपकी रचना
kaale maanjhe ke dar se kahin patang udna bhool jaayegi?
ReplyDeleteuse aur oonchi udaan bharni hai. aapki kavita ne sochne par majboor kar diya hai.
is rachna ke liye badhai
kab tak yu hi kale manje wale ghago se patang haarti rahegi..kabhi jita bhi do...
ReplyDeleteउड़न तश्तरी की रचना भी अच्छी लगी और यह भी। पतंग की लहराहट में आकर्षण है!
ReplyDeleteअजी गजब ढा दिया। कुश का यू पतंग उडाना भा गया।
ReplyDeleteकि प्यासी.. निढाल सी
ReplyDeleteहो चली थी.. वो पतंग
शाम की सर्द हवाओ में
कोयले सी जली थी..वो पतंग
lagat hey jesse ye har kissi ki ye roz ki kahani hey!!
NICE
समीर जी की पोस्ट पर सटीक टिप्पणी की है आपने अपनी इस रचना के माध्यम से...बहुत खूब.
ReplyDeleteनीरज
बहुत अच्छी रचना !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
bahut achhi kahani lagi,......
ReplyDeletewaise about me me jo aapne likha hai,usne mujhe chamatkrit kiya.....
वाह!! बहुत कायदे से भाव उकेरे हैं-बेहतरीन. रचना पसंद आई. बधाई.
ReplyDeleteहमेशा की तरह संवेदना जगाती रचना...
ReplyDeleteयहाँ भी आप मात खा गए... पतंग को फिर लुटा हुआ कह गए....काला मांझा काल का दूत भी हो सकता है.... जीवन की डोर कभी तो टूटेगी..ऐसा क्यों न सोचा :(
कुश रँगोभरी पतँग की मुक्त गगन पर उडान भरती कविता पढकर खुशी हुई
ReplyDeleteकाले माँझेवाले का मुँह काला !! :)
- लावण्या
achchi lagi ye kavita....kale maanjhe se aapne kale man ke logon ko jodne ki koshish ki . lekin ant mein happy ending kyo nahi kiya kale maanjhe ko harakar. :)
ReplyDeleteek aur khoobsoorat rachana..jisme kai aur arth chhupe hai...
ReplyDeletelikhne le liye badhai...
likhte rahe..
थकि प्यासी.. निढाल सी
ReplyDeleteहो चली थी.. वो पतंग
शाम की सर्द हवाओ में
कोयले सी जली थी..वो पतंग
जिसके भरोसे ऊँची उड़ान भरी थी
वो डोर तो कब की टूट चुकी थी..
काले मॅन के मांझो की दुनिया में
एक और पतंग लुट चुकी थी...
बहुत सुंदर,क्या कहूँ,एक अलग अंदाज़ दिखाती हुयी....बहुत खूब
:)
ReplyDeleteacchhi kavita !!!
बहुत अच्छी कविता है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता हे,
ReplyDeletepatang pasand aayee. khula aasman or umeedon ki udaan. kaale manjhe ka dar.phir bhi hawa main terane ka moh. bahut khoob. kush bhai. lage rahiye
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