पिछली गर्मियो की बात है.. देर रात अचानक लाइट चली गयी थी.. काफ़ी देर गर्मी से जद्दोजहद करने के बाद मैं छत पर चला गया.. बहुत दिनो बाद उपर देखा था.. सब कुछ इतना रोमांटिक लग रहा था की सोचा कुछ लिखा जाए,और शादी के बाद की पहली रात से ज़्यादा भला और क्या रोमांटिक होगा.. तो जो लिखा वो अब आप सबके सामने है..
गीली गीली ले जा कर
टांग दी थी उजाले पर
पहली थी ना...
इसलिए शायद...
इतना संभाला था..
वरना...
रोशनी सी तुम आई थी कमरे में
झीने घूँघट में सुहानी लगी थी
आज जो देखा तुमको..
पहली बार तस्वीर से तुम बाहर थी
बड़े पलंग की आधी जगह
में दोनो समा गये थे..
बंद आँखें किए, तुम्हारी
बातें सुनता रहा..
एक एक बात दिल तक उतरती
जा रही थी..
इतने में जुल्फे तुम्हारी
गिर पड़ी मेरी आँखो पर
और रेशमी हाथो से तुमने
उनको संभाला फिर से...
गोद में तुम्हारी सर रख कर
दुनिया से बेख़बर हो गया
कहाँ से तिनका लायी थी तुम
मेरे कानो में डालकर सताने लगी
अच्छा अच्छा..
तुम्हारी हर बात पर
मेरा सिर्फ़ यही, कहना होता था
कैसे सहलाया था तुमने
उंगलियो के पोरो से मेरे गालो को
लगा जैसे समंदर किनारे
रेत पर टहल लिए हो पल दो पल...
बिंदिया चूड़ी कंगन..
सब उतार दिए मैने
अब तुम ख़ूबसूरत थी...
पहले से ज़्यादा
जाने कहा से चादर के बीच
पड़ा इक गुलाब आ गया हाथो में
बेचारा! तुम्हारी महक के आगे
शर्मशार हो गया...
रात भर अलाव की गर्मी
बिस्तर पर बिखरती रही...
होंटों ने आज आराम किया था
बहुत...
आँखें ही आँखो से
बतियाती रही...
नींद भी परेशान थी करवट ले लेकर
अपने मंसूबो में कामयाब नही हुई...
घड़ी की सुइयो के साथ
तुम्हारी उंगलिया भी मेरी
ज़ुल्फ़ो में फिरती रही...
और
गीली गीली ले जा कर
टांग दी थी जो उजाले पर
उस रात की बूँदे
ज़मी पर गिरती रही....
kushbai...koi 4 panktiyan chun kar kya rakhunga yahan? puri hi nazm ek behta hua jharna hain...har shabd uth-ti hui leher hain...aur hum bhi usmein bhig liye aaj to...
ReplyDeleteवाह क्या बात है ! बहुत रोमांटिक !
ReplyDeleteमेरे पास तो इस नज़्म की तारीफ़
ReplyDeleteकरने के अल्फ़ा्ज़ लिखत पढ़त में
तो हैं नहीं...अब आप चाहे जो भी
समझें, पर लाचार हूँ ।
kush bhai kya baat hai,
ReplyDeleteshandar likha hai
behad khoobsoorat.. :)
ReplyDeleteअच्छा, तो आप पर सावन सवार हो गया है:)
ReplyDeleteप्रकृति की सुन्दरता ,,,उसका साथ इसी भाव को जगाता है..बेहद खूबसूरत .... !
ReplyDeleteवाह जी वाह रोमांटिक माहोल बना दिया। बहुत खुब।
ReplyDeleteगोद में तुम्हारी सर रख कर
दुनिया से बेख़बर हो गया
कहाँ से तिनका लायी थी तुम
मेरे कानो में डालकर सताने लगी
क्या बात है ? सावन ने रुमानियत का हरा रंग बिखेरा है आप पर.और आपने इन्द्र्धनुष सजा दिया.भई वाह !
ReplyDeletewow!!
ReplyDeletebus naam hi kafi hey : Kush ney likha hey!!
nice !!
really sweet!!
kush G hame ye to pata nahi k aap shadishuda hai ya nahi par jo apne shabdo ko piroya hai aur jo ravangi di bhai vaah kya baat hai, ghazab.
ReplyDeleteis kavita ke liye kuch bhi kahungi to pahle kaha hai usse kam hi hoga... kahi se vo pahle jo likha tha iske liye...vo mil jaye to vahi post kar du??
ReplyDeletebhut sundar. romantic bhi. badhiya. jari rhe.
ReplyDeletewaah lagta hai sawan ki pehli fhuar ke saath saath aapka manwa bhi rang gaya :) bahut hi sundar likha hai sapana dekha sach hai ya likha hua sach :)
ReplyDelete;
wow...what a romantic poem. simpally beautiful..
ReplyDeleteBahut sundar. Kush, bahut badhiya likha hai.
ReplyDeleteगीली गीली ले जा कर
ReplyDeleteटांग दी थी जो उजाले पर
उस रात की बूँदे
ज़मी पर गिरती रही....
चारो ओर रूमानियत बिखेर दी भाई....ऊपर से नीचे तक सिर्फ़ रोमानियत .....ये पंक्तिया बेहद प्यारी लगी है ओर देर तक साथ रहेंगी
सुन्दर।
ReplyDeleteलाइट यूं ही जाती रहे!
वाह कया बात हे, बहुत कूछ याद दिला गई आप की यह कविता...धन्यवाद
ReplyDeletekitni baar padhi hai ye kavita...pata nahi..par har baar utni taazgi..utni hi romantic hai..uff! maza aaya..
ReplyDeletelikhte rahe..
बेहद खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!
ReplyDeleteबिजली जाए और लाइट आए।
ReplyDeleteकुश साहब, एक-एक शब्द में रुमानियत भर दी आपने। ऐसे कलमबद्ध किया कि पढ़ने वाला उस रुमानियत में बस डूबा जाए.. बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteरोशनी सी तुम आई थी कमरे में
ReplyDeleteझीने घूँघट में सुहानी लगी थी
आज जो देखा तुमको..
पहली बार तस्वीर से तुम बाहर थी
बड़े पलंग की आधी जगह
में दोनो समा गये थे..
बंद आँखें किए, तुम्हारी
बातें सुनता रहा..
एक एक बात दिल तक उतरती
जा रही थी..
इतने में जुल्फे तुम्हारी
गिर पड़ी मेरी आँखो पर
और रेशमी हाथो से तुमने
उनको संभाला फिर से...
गोद में तुम्हारी सर रख कर
दुनिया से बेख़बर हो गया
कहाँ से तिनका लायी थी तुम
मेरे कानो में डालकर सताने लगी
क्या बात है कुश,बहुत ही रोमांटिक नज़्म लिखी है,हर हर लफ्ज़ में प्यार का नशा सा है...बहुत ही हसें लगी...वाह
satyam shivam sundaram
ReplyDeleteबहुत खूब, क्या कहने. शब्द ही नही हैं तारीफ़ करने के लिए. बस दुआ है की ऐसे ही और अच्छा लिखो आप...
ReplyDeletehmmm... ab tareef to ham kya karein... sab ne itna kuch kaha hai ke kuch baki nahi raha tareef mein.
ReplyDeleteHam to ye poochna chahenge, ye padh kar kitni ladkiyon ne aapko mail kiya?
कुश भाई
ReplyDeleteबेहतरीन...एक नौजवान की कलम से निकले सच्चे भाव जो सबके दिल दिमाग पर बरस गए...शालीनता के साथ कही गयी राज की बात...वाह..वा.
नीरज
Kush ji aapne to sama romantic sa bana dala.. itna pyara aur seedhe dil se likh dala... bahut sundar
ReplyDeleteNew Post :
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bus saans thaame padhti hi chali gayi
ReplyDeletebahut pyaar bandha hua likha hai
ek ek sabad jaise haazar mani rakhta ho
bhaut kamaal
achcha roomani prayas laga aaapka...
ReplyDeleteबहुत अच्छे कुश ,बहुत ही अच्छी नज़्म है.
ReplyDeleteye chhayavad hai ya satya ?kintu hriday se phoota nirmal nirjharni ki tarah laga
ReplyDeleteSawan ka Mahina,
ReplyDeletePawan kare SHOR
Jiyara re jhume aise,
Jaise,
Ban ma nache mor !!
wah kush jee,aur aage kaya kahun aap to bemisal hain hi.baar baar ek hi bat dohrati hun..apki kalam hamesa chalti rahe.
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteगहरे भाव
काफ़ी इंटरेस्टिंग है.
कई बातें याद आ गई.
बधाई.
bahut khoob, likhte rahiye.
ReplyDeleteआप सभी की स्नेहिल प्रतिक्रियाओ के लिए धन्यवाद.. भविष्य में भी यूही आशीर्वाद बनाए रखिएगा
ReplyDeletepehley ki tarah aaj bhi pasand aayi....:)
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुती । आज गुगल पर दुसरा कुछ ढुँढते मै इस ब्लग पर आ पहुँचा । धन्यवाद
ReplyDeletewah..,kya bat hai....bhot hi achhi.....
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