Thursday, July 3, 2008

ज़िंदगी के तीन पहलु - कुश

कहते है ऊँचाइयो को
छूना है, तो नज़र आसमान
में होनी चाहिए..
इतनी देर से बीच सड़क
पे पड़ा हू.. लगता है
सबको यहाँ ऊँचाइयो को
छूना है॥

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आज सुबह वृद्धाश्रम
के बाहर एक लाश मिली है..
सुना है कल कोई छोड़ गया था..
रात भर ठंड से सिकुड के
मर गया..
पुलिस ने शिनाख्त की है
कोई लिहाफो का व्यापारी था..

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दाल में नमक नही होता
तो प्लेट फेंक देते थे..
आज बिना नमक की दाल
चुपचाप खा गये..
लगता है घोष बाबू अब
रिटायर हो गये है..

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29 comments:

  1. तीन पहेलू...... रोज़ मररा की जिंदगी में से चुन के निकाले हुए...सिधे सादे शब्दो में ढले हुए...खुब्सुरत...

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  2. teeno hi lajawab...kya khayalat hain...aur peshi bhi behad umda...

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  3. क्या कहें..लेखन लाजवाब है.
    लेकिन तीन पहलू...तीनों ने उदास कर दिया.

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  4. दाल में नमक नही होता
    तो प्लेट फेंक देते थे..
    आज बिना नमक की दाल
    चुपचाप खा गये..
    लगता है घोष बाबू अब
    रिटायर हो गये है..

    bahut hi sundar shanika..dil ko chhu gayi...

    teeno hi pehlu khoobsoorati se pesh hue hai..badhai..

    likhte rahe

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  5. दाल में नमक नही होता
    तो प्लेट फेंक देते थे..
    आज बिना नमक की दाल
    चुपचाप खा गये..
    लगता है घोष बाबू अब
    रिटायर हो गये है..

    sachmuch retirement ke baad aisa hota hai? main to dar gayi....achchi lagi teenon hi.

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  6. रीमाइण्डर पोस्ट - नमक कम करने का यत्न किया जाये!

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  7. मने तो अब ठान ली है रिटायर ही नहीं होना है :-) बहुत अच्छे पहलु हैं.

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  8. har din ki zindagi se jude wakiye jo ke sachhai ko darshate hai,bahut achhi tarah se likhe hai kush ji,khas kar retire hone ke baad wali bin namakki dal.kuch sochne par majboor karti hai.bahut badhai

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  9. तीनो जिंदगी के आम पहलू है कोई नई बात नही है मगर सच है .

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  10. कुश क्या कहूँ इतनी बडी बडी सच्चाईयाँ छोटे से रुप मे दिखा दी। काबिले तारीफ। बहुत खूब लिखा है। पर क्या करे सच यही है। पर पता नही यह झूठ कब होगा।

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  11. kush ,aapne itni sundar kshanikayen banayi hain jo shayad umra se aati hain ya anubhav se....aapne jeet liya hum sabko

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  12. "bhut damdaar abheeveyktee"

    Regards

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  13. तीनों कल्पनायें एक से बढ़ कर एक....


    रात भर ठंड से सिकुड के
    मर गया..
    पुलिस ने शिनाख्त की है
    कोई लिहाफो का व्यापारी था..


    --वाह!! बधाई.

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  14. वाह जिंदगी के रंगों को खूब लफ्जों में समेट है आपने ..सभी रंग एक चुभन सी देते हैं यह वाली बहुत ही अच्छी लगी

    दाल में नमक नही होता
    तो प्लेट फेंक देते थे..
    आज बिना नमक की दाल
    चुपचाप खा गये..
    लगता है घोष बाबू अब
    रिटायर हो गये है..

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  15. कुश भाई जिन्दगी के तीन पहलुयो मे एक पहलू जो मेरे पिता के साथ बीता हे... वो यह हे...
    दाल में नमक नही होता
    तो प्लेट फेंक देते थे..
    आज बिना नमक की दाल
    चुपचाप खा गये..
    लगता है घोष बाबू अब
    रिटायर हो गये है..
    बहुत दुख होता हे जब जख्म दिल पर लगता हे ओर जख्म देने वाला हमारे सामने खडा हॊ ओर हम बंधनो मे बंधे मजबुर खडे बस देखते रहे,

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  16. खूबी से सचाई परोसी है।

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  17. जो भी लगा उदास मुझे ..
    जाने क्यों अपना सा लगा......


    सच है ..जिंदगी के .पर क्या कहे....इन पहलू ने ओर छौकर की कविता ने उदासी सी भर दी....

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  18. itne kam shabdon mein zindagi ke itne bade pahluon ko aapne ujagar kar diya hai. bahut hi achchi rachanaa!!!

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  19. तीनों ही क्षणिकाएं मर्म को छूनेवाली हैं, जीवन के अलग-अलग सत्‍यों का उद्घाटन करती हुईं।

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  20. बहुत खूब जनाब...पहली और तीसरी क्षणिका कमाल की लगी।

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  21. कुश भाई,
    कई कई बार ज़ुगाली ले ले कर पढ़ी,
    यह छोटी छोटी तीर सरीखी क्षणिकायें ।

    यदि कभी मैं यह चोरी करूँगा ( करूँगा तो अवश्य ही ! )
    करना ही पड़ेगा.. मैं इतना अच्छा तो लिख ही नहीं सकता तो ..अपनी ओर से इसमें एक उलट-फेर कर दूँगा ..


    आज बिना दाल के नमक से खा रहे हैं, चुपचाप
    लगता है.... बाबू रिटा.......हो गये

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  22. तीनो ही मर्म स्पर्शी....लेकिन पता नहीं क्यों तीसरी क्षणिका से मन आक्रोश से भर गया.... ऐसा क्यों होता है???

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  23. alag alag pahlun aur alag alag soch

    आज सुबह वृद्धाश्रम
    के बाहर एक लाश मिली है..
    सुना है कल कोई छोड़ गया था..
    रात भर ठंड से सिकुड के
    मर गया..
    पुलिस ने शिनाख्त की है
    कोई लिहाफो का व्यापारी था..

    ye lekin sochne par mazbur kar gaya
    ki kya pane ke liye bhaag rahe hain sab

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  24. भाई कुश जी
    "जिन्दगी के तीन पहलू" जो आपने दिखाये, आंसमां से लिहाफों और लिहाफों से चुटकी भर नमक में आदमी के जिंदगी भर के स्वार्थ से भरी जिस निरर्थक व्यस्तता को आपने दिखाने की कोशिश चन्द पंक्तियों में की वह निश्चय ही कबीले तारीफ है.

    मै नही समझता कि ऐसे गहरी बातें भी यदि व्यंग समझ लोग भूल जायेंगें तो ये पढ़े -लिखे लोग संयम, संतोष एवं कर्म का सही अर्थ कब समझेंगे, सही अर्थों में जीना कब सीखेंगें.

    लिखते रहिये ऐसी ही सुंदर सुंदर क्षणिकाएं , कोई तो मर्म समझेगा और अपना जीवन तनाव रहित बनाने का प्रयास करेगा.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..